राजकाज किंतु विशुद्ध वाणिज्य है,एकदम मुक्त बाजार का अर्थशास्त्र
बड़-बड़ बहाइल जाए, गदहवा कहे केतना पानी...!
India Inc Giants Just Pygmies in Front of Global Corporations
पलाश विश्वास
आज का संवाद
राजकाज किंतु विशुद्ध वाणिज्य है,एकदम मुक्त बाजार का अर्थशास्त्र
बड़-बड़ बहाइल जाए, गदहवा कहे केतना पानी...!
अपना अतुल्य भारत अब बिकाऊ है।जिस तरह देश भर में बेदखली मुहिम पीड़ितों के अलावा बाकी जनता तमाशबीन की तरह देखती रहती है,जिस तरह आहिस्ते आहिस्ते राथचाइल्डस घराने के लोग आर्थिक सुधारों के नाम बपर निनानब्वे फीसद लोगों का गली पूरे दो दशक से रेंत रहे है,जैसे रक्षा,मीडिया और खुदरा बाजार तक में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है,जैसे अबाध पूंजी प्रवाह के नाम पर कालाधन का निरंकुश राज है,जैसे खास खास कंपनी के हितों के मद्देनजर सारे कायदे कानून सर्वदलीय सहमति से बनाये बिगाड़े जा रहे हैं,जैस देश में कहीं भी न संविधान लागू है, न लोकतंत्र है ौर न कानून का राज, किसी को डंके की चोट पर हो रही इस नीलामी से कोई ऐतराज नहीं है।खुल्ला बाजार में सारे लोग पांत में खड़े अपनी अपनी क्रयशक्ति तौल रहे हैं ताकि विकास के नाम पर भरपेट तबाही खरीद सकें।
पिछले बीस साल में जश्नी उन्माद में हम सारे लोग बिन छिला बांस झेलने के अभ्यस्त हो गये हैं।किश्त दर किश्त आहिस्ते आहिस्ते आहिस्ते रंग बिरंगे पैकेज में बांस खाने की आदत हो गयी है।अब इस देश में देशभक्ति का हर स्वांग बेमतलब है। नाना दिवसों पर सैन्य राष्ट्र के शक्ति प्रदर्शन में राष्ट्र कहीं नहीं है।
शुरु होने से पहले ही लगता है कि दूसरी संपूर्म क्रांति की भ्रांति का पटाक्षेप हो गया और देश में अस्मिताओं के टूटने का भ्रम भी आखिर बाजार का ही करिश्मा साबित होने लगा है।इसी के मध्य विदेशी निवेशकों ने भारत में विस्तार की योजना बनाई है। वे इस साल होने वाले आम चुनाव के बाद बेहतर कारोबारी माहौल और सुधार प्रक्रिया आगे बढ़ते रहने की उम्मीद कर रहे है। यह बात एक सर्वेक्षण में कही गई।
अर्न्स्ट एंड यंग इंडिया के एक सर्वेक्षण में कहा गया कि पूछे गये सवालों के जवाब में आधे से अधिक (53.2 प्रतिशत) का मानना है कि वह भारत में अपनी उपस्थिति बढ़ाने पर पर विचार कर रहे हें और 57.9 प्रतिशत निवेशक अपने कामकाज के विस्तार की योजना बना रहे हैं।
भारत का दीर्घकालिक दृष्टिकोण भी सकारात्मक है और निवेशकों को उम्मीद है कि देश 2020 तक विश्व की तीन सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज कर रही अर्थव्यवस्थाओं और तीन शीर्ष विनिर्माण गंतव्यों में शामिल होगा।
विनाश कार्यक्रम में विनिर्माण को सर्वोच्च वरीयता का खुलासा िस तरह हो रहा है कि भारत सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की भागीदारी 16 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक पहुंचायेगा और 10 करोड़ लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेगा। यह बात वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कही।
नेताजी जयंती की सबसे बड़ी खबर शायद यह है कि आज कोलकाता में इस मौके पर
पराधीन भारत को आजाद करने के लिए आजाद हिंद फौज बनाने वाले और ब्रिटिश साम्राज्य के लिए बाकायदा युद्ध करने वाले उसी आजाद हिंद फौज के सर्वाधिनायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों और रिश्तेदारों ने केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। नेताजी मृत्यु रहस्य की राजनीते करने वाले सत्ता के खेल से नेताजी के परिजन बेहद परेशान है।
उत्तराखंड की तराई में मेरे गांव बसंतीपुर में राज्य का मुख्य नेताजी जयंती समारोह हर साल की तरह भव्य तरीके से संपन्न हो गया। भाई पद्दोलोचन ने सविता को कार्यक्रम का आंखों देखा हाल भी सुनाया। हर साल स्वतंत्रता सेनानियों को इस मौके पर हमने रोते हुए देखा है।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म दिवस गुरुवार को संसद भवन परिसर में मनाया गया लेकिन वर्तमान सांसदों में से उसके दोनों सदनों के 775 सदस्यों में से केवल एक भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी उपस्थित हुए. संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित इस समारोह में नेताजी को श्रद्धांजलि देने पंहुचे लोगों ने वहां लगे उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किए. आडवाणी के अलावा तीन पूर्व सांसद भी इस अवसर पर मौजूद थे. आडवाणी संसद भवन परिसर में राष्ट्रीय नायकों के सम्मान में आयोजित होने वाले सभी कार्यक्रमों में उपस्थित होते हैं.
आजाद भारत को देश बेचो ब्रिगेड कंपनी राज में बदलने की तैयारी में है,यह देखकर उनको क्या लगता होगा,उससे बड़ा सवाल है कि देश को गुलाम बनाने वाली राजनीति को नेताजी जयंती मनाने का हक है या नहीं।
पद्दो ने अपनी भाभी को बताया कि बसंतीपुर में नेताजी जयंती समारोह में मुख्य अतिथि थे उत्तराखंड के भाजपायी पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी,जिनकी सरकार ने बंगाली शरणार्थियों को विदेशी घुसपैठिया करार दिया था ,जिसके खिलाफ उत्तराखंड की जनता ने अस्मिताओं का दायरा तोड़कर जनांदोलन किया था। उन्हीं कोश्यारी जी का स्वागत हमारे गांव वाले और दूसरे लोग कैसे कर रहे होंगे और उनकी मौजूदगी में क्या नेताजी जयंती मना रहे होंगे,मैं सोच नहीं सकता।बसंतीपुर वालों से बात होगी तो पूछुंगा जरुर।
पूरा देश आज बसंतीपुर है और इस देशव्यापी बसंतीपुर में नेताजी जयंती इसी तरह मनायी गयी गुलामी की गगन घटा गहरानी मध्ये। हमें इसका अहसास तक नहीं है।
डोवास में देश बेचो ब्रिगेड का जमावड़ा लगा है। ग्लोबल इमर्जिंग मार्केट के दुनियाभर के एजेंट और दल्ला जमा हैं वहां। जिन्हें नीति निर्धारण और राजकाज के पाठ पढ़ा रही है जायनवादी वैश्विक एक ध्रूवीय व्यवस्था।
भारतीय नीति निर्धारकों और मुक्त बाजार के राजकाज कारिंदों के लिए ताजातरीन पाठ यही है कि भारत में विकास की बुलेट मिसाइली ट्रेन को समूचे देहात को रौंदने लायक पटरी पर लाने की गरज से राजकाज व्यवसायिक होना चाहिए और सरकार को वाणिज्यिक कंपनी की तरह चलनी चाहिेए।
बिल गेट्स बाबू ने कह ही दिया है कि 2035 तक दुनिया में कोई गरीब देश रहेगा नहीं।जबकि यह आंकड़ा भी बहुत पुराना नहीं है कि दुनियाभर की कुल संपत्ति सिर्फ पचासी लोगों के पास है।
यानी अगले इक्कीस साल में संपत्ति और संसाधनों,अवसरों पर इस एकाधिकारवादी कारपोरेट वर्चस्व खत्म होने के कोई आसार नहीं है।
गरीब देशों का या दुनियाभर के गरीबों का वजूद मिटाकर ही यह करिश्मा संभव है।
कहना न होगा कि त्रिइब्लिशी वैश्विक व्यवस्था के मातहत दुनियाभर की सरकारें इस एजंडे को अंजाम देने के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगा रहीं है।
अपने यहां टीवी विज्ञापनों में देश का कायाकल्प जो किया जा रहा है,वह दरअसल राजकाज के वाणिज्यीकरण का ज्वलंत दस्तावेज है,जिसे या तो हम पढ़ ही नहीं सकते या पढ़ना नहीं चाहते क्योंकि पढ़ा लिखा मध्यमवर्ग इस भारत निर्माण परिकल्पना की मलाई की हिस्सेदारी में ही कृतकृतार्थ है।
वैसे कंपनी का राज क्या हो सकता है, भविष्य के मुखातिब उसका अतीत और वर्तमान हमारे पास बाकायदा है।
हमारी प्रिय लेखिका अरुंधति ने तो साफ साफ कह ही दिया है कि जनादेश का मतलब राजनीतिक रंग चुनना नहीं है,हमें सीधे यह तय करना है कि हम अंबानी के राज में रहना चाहते हैं या टाटा के राज में।
बहरहाल कंपनीराज में जनता की जो दुर्गति होती है, उससे एकाधिकार कंपनिों को छोड़ बाकी कारोबारियों की हालत ज्यादा खराब होने की गुंजाइश ज्यादा है।
स्वदेशी आंदोलन में भारतीय सामंतों और भारतीय कंपनियों के बढ़चढ़कर हिस्सा लेने के इतिहास की चीरफाड़ करें तो सच सामने आयेगा।
ग्लोबीकरण,उदारीकरण और निजीकरण के पीछे विनियंत्रित बाजार में उन्मुक्त प्रतिद्वंद्विता का सिद्धांत है।
भारत में कारपोरेट कंपनियों के आगे परंपरागत गैरकारपोरेट कारोबारी खस्ताहाल है।
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से ये कारोबारी अब बाजार से भी बाहर होने को है।
इकानामिक टाइम्स में आज छपे लेख के मुताबिक वैश्विक कारपोरेट पूंजी के मुकाबले इंडिया इनकारपोरेशन की औकात पिग्मी से ज्यादा नहीं है।
इसका सीधा मतलब तो यह हुआ कि तत्काल विदेशी कंपनियों के फेंके टुकड़ों से मुटिया रही भारतीय कंपनियों और कारोबरी वर्ग और उनके कारिंदे छनछनाते विकास के मलाईदार हिस्सेदार फिलहाल है,लेकिन कंपनी राज पूरी तरह बहाल हो जाने के बाद जहां उत्पादक समुदायों, किसानों, मजदूरों,वंचितों समेत तमाम किस्म के गरीबों का सफाया तय है वहां बाहुबलि जैसे पेशियों की प्रदर्शनी कर रहे मध्यवर्ग और उनके आका भारतीय कारपोरेट यानी टाटा बिड़ला अंबानी मित्तल जिंदल गोदरेज वगैरह वगैरह की भी खैर नहीं है।
देश बेचो ब्रिगेड की अगुवाई में मध्यवर्ग के जश्नी समर्थन से इंडिया इनकापोरेशन भी आत्मध्वंस पर आमादा है।
विषय विस्तार से पहले एक अच्छी खबर यह कि हमारे प्रिय कवि कैसर पीड़ित वीरेन डंगवाल का जो जटिल असंभव सा आपरेशन होना था,टलते टलते वह सकुशल संपन्न हो गया है।वीरेनदा अब आराम कर रहे हैं दूसरा जटिल आपरेशन के बाद।
लेकिन कोलकाता से एक बुरी खबर भी है। मेरे लिए यह खबर हमारी असमर्थता की शर्मनाक नजीर है। हम मीडिया के बीचोंबीच हैं, लेकिन हमें आज कोलकाता में प्रतिरोध के सिनेमा की संयोजक कस्तूरी के फोन से संजोगवश यह खबर मालूम हुई।
कस्तूरी को भी तमाम मित्रों की तरह वीरेनदा की सेहत की फिक्र लगी थी।बरेली से रोहित ने फिल्मकार राजीव को आज सुबह ही वीरेनदा के आपरेशन के बारे में बता दिया थी लेकिन संजय जोशी और कस्तूरी को खबर नही ंमिली थी।
हमने बताया तो उसने जवाब में कहा कि वीरेनदा का आपरेशन तो हो गया ,अब नवारुण दा की चिंता है।
नवारुण दा यानी,यह मृत्यु उपत्यका मेरा देश नहीं के कवि, कंगाल मालसाट के उपन्यासकार और भाषाबंधन के संपादक नवारुण भट्टाचार्य भी कैंसर पीड़ित हैं और इलाज के लिए मुंबई में है। कोलकाता में यह खबर कहीं नहीं है।
महाश्वेता दी के परिवर्तनपंथी बन जाने के बाद मीडिया का फोकस उन्हीं पर है,उनसे अलग थलग रह रहे और परिवर्तनपंथियों के बजाय अब भी जनपक्षधर मोर्चे से जुड़े होने की वजह से नवारुण दा मीडिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं है।
बांग्ला में हिंदी की तरह सोशल मीडिया भी अनुपस्थित है। मैं भी कोलकाता आता जाता नहीं हूं।
अब यह खबर जानकर जोर का झटका लगा है। सविता को बताया तो वह और नाराज हो गयी इसलिए कि नवारुण दा की हालचाल हम लेने से क्यों चूक गये।
सविता सही कह रही है। हम लोग जो जनपक्षधरता का दावा करते हैं,साथ तो चल ही नहीं सकते। न हमारे बीच सत्तावर्ग की तरह कोई संवाद की नदियां बहती हैं। उससे भी बड़ी विडंबना है कि हमें आपस में कुशल क्षेम पूछने का भी अब्यास नहीं है।
हमारे छनछनाते विकास के विज्ञापन के लिए काल्पनिक यथार्थ का बखूब इस्तेमाल किया जा रहा है। जो इनफ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है,उसीको शोकेस किया जा रहा है। बाकी जो विस्थापन है,जो तबाही है,जो अविराम बेदखली है,जो प्रकृति से निरंतर बलात्कार है,जो प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट है,जो नरमेध यज्ञ है,उसकी कोई चर्चा नहीं हो रही है।
छनछनाते विकास के आंकड़े हर जुबान पर है।परिभाषाओं के तहत समावेशी विकास की मृगमरीचिका भी खूब है। बाजार के विस्तार के लिए कारपोरेट उत्तरदायित्व की धूम है।तकनीक और सेवाओं की शेयरी धूम है।
लेकिन कोई छनछनाता अर्थशास्त्री उत्पादन प्रणाली, उत्पादन,उत्पादन संबंधों,श्रम के हश्र और खेत खलिहान देहात की कोई बात नहीं कर रहा है।
धर्मोन्मादी सुनामी का ्सर यह है कि भारतीय बाज़ार में तेजी का माहौल लगातार दूसरे दिन भी बना रहा और सेंसेक्स-निफ्टी रेकॉर्ड ऊंचाई पर बंद हुए। बीएसई का 30 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स अब तक के अपने सबसे ऊपरी स्तरों पर बंद हुआ। सेंसेक्स 36 अंक यानी करीब 0.2 फीसदी की बढ़त के साथ 21,374 के स्तर पर बंद हुआ। सेंसेक्स कल भी रेकॉर्ड ऊंचाई पर बंद हुआ था। वहीं एनएसई का 50 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स निफ्टी भी साल की बेस्ट ऊंचाई पर पहुंचा। निफ्टी 7 अंक यानि 0.1 फीसदी की बढ़त के साथ 6,346 के स्तर पर बंद हुआ है। हालांकि बाज़ार के रेकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंचने के बाद भी निवेशकों के बीच कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा है।
बलात्कार सुनामी पर स्त्री विमर्श की धूम है जो देहमुक्ति से शुरु होकर देह मुक्ति में खत्म होती है,पुरुषतंत्र से कहीं टकराती नहीं है।बुनियादी जो बात है कि यह मुक्त बाजार का उपभोक्ता वाद दरअसल पुरुषतंत्रिक है और स्त्री भी खुल्ला बाजार में विमर्श है। बाजार में स्त्री आखेट के सारे साधन रात दिन चौबीसों घंटे सालभर तरह तरह के मुलम्मे में उचित विनिमय मूल्य पर विज्ञापित हो रहे हैं और बिक भी रहे हैं, तो कहीं भी सुगंधित काफी कंडोम में मजा लेने के जमाने में स्त्री सुरक्षा की कैसे सोच सकते हैं,इस पर बहस कोई नहीं हो रही है।जो स्त्री बाजार में खड़ी है,जिसके श्रम और देह का धर्मोन्मादी शोषण हो रहा है और हर सामजिक हलचल में जिस स्त्री की अस्मिता को समाज,अर्थव्यवस्था और राष्ट्र के साझे उपक्रम के तहत मिटाने का चाकचौबंद इंतजाम है, उसको तोड़ने की कोशिश नहीं हो रही।
गौर करें कि मुक्त बाजार में आखिर क्या होता है ,भारत को अमेरिका बनाने की हर संभव कोशिश हो रही है जबकि अमेरिका में 2 करोड़ 20 लाख महिलाएं रेप पीड़ित हैं यानि हर पांचवीं महिला के साथ रेप होता है। ये चौंकाने वाले आंकड़े व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में सामने आए हैं। बुधवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक लगभग आधी रेप पीड़ित महिलाएं 18 साल से कम उम्र में ही यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। क्या कहते हैं आंकड़े. रिपोर्ट के मुताबिक 33.5फीसदी अलग अलग जाति,वर्ग की महिलाएं रेप का शिकार होतीं हैं, जिनमें 27 फीसदी अमेरिकी-भारतीय और अलास्का की महिलाएं शामिल हैं। 15 फीसदी स्पेनिश ,22 प्रतिशत नीग्रो, 19 फीसदी यूरोपीय महिलाओं के साथ रेप होता है।
करमुक्त ख्वाब के तहत सारे लोग अपना अपना टैक्स बचाने का हिसाब जोड़ रहे हैं लेकिन कोई नहीं सोच रहा है कि जो गरीबी रेखा के आर पार के लोग हैं,उनपर टैक्स लगाकर किसतरह समर्थों को लाखों लाखों करोड़ की टैक्स छूट दने की तैयारी है। हम दरअसल किसी नदी,किसी घाटी,किसी वन क्षेत्र, किसी गांव या किसी जनपद को अपने दृष्टिपथ पर पाते ही नहीं है।इस महाभोग के तिलिस्म में हम अपने मौत का सामान ही समेटने में लगे हैं,अपने घर लगी आग पर नजर नहीं किसी की।जल जंगल जमीन की बेदखली के सारे विमर्श कारपोरेट राजनीति के विमर्श में हैं, हम उन्हें नजरअंदाज करते जा रहे हैं।
पहले दस साल तक कांग्रेस के राज को जिन शक्तियों ने भरपूर समर्थन दिया,वे आखिर नमोमय भारत बनाने के मुहिम में क्यों है, इस पहेली को बूझने की किसी ने कोई जरुरत नहीं समझी। बाजार के समूची प्रबंधकीय दक्षता और अत्याधुनिक तकनीक से लैस राजनीति जब जनादेश का निर्माण धर्मोन्मादी सुनामी और अस्मितां की मृग मरीचिका के तहत करने लगी, तो अंतराल में घात लगाकर बैठी मौत के चेहरे पर हमारी नजर ही नहीं जाती। फिर मोदी को रोकने का क्या घणित हुआ कि सीधे रजनीति में प्रत्यक्ष विदेशी विनिवेश और सामाजिक क्षेत्र में विदेशी पूंजी के पांख लगाकर नया विकल्प पेश किया गया।जनपथ पर उस विकल्प की अराजकता के महाविस्फोट के बाद कैसे फिर नमोमय भारत के शंखनाद के मध्य स्त्री सशक्तीकरण के विकल्प बतौर मायावती ममता जयलिलिता के त्रिभुज को पेश किया जा रहा है,राथचाइल्डस के इस अर्थ शास्तर को हम समझने में सिरे से असमर्थ हैं और बाकायदा धर्मोन्मादी पैदल सेनाएं एक दूसरे के विरुद्ध रंग बिरंगी अस्मिताओं और पहचानों के झंडे लहराते हुए धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे महाविनाश के लिए लामबंद हो गये हैं।
यह सारा युद्ध उपक्रम दरअसल कंपनी राज के लिए है।एकाधिकारवादी बहुराष्ट्रीय कंपनी राज के लिए बंधु,हम सारे लोग एक दूसरे पर घातक से घातक,मारक से मारक वार कर रहे हैं और अपने ही रक्त से पवित्र स्नान कर रहे हैं मिथ्या मिथकों के लिए।
याद करें ,पिछले सितंबर में ही भारत के करीब तीन चौथाई बिजनेस लीडर्स (इंडिया इंक) ने देश की खस्ता आर्थिक हालात के लिए मनमोहन सरकार को जिम्मेदार ठहराया है और वो चाहते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बने।
शुक्रवार को प्रकाशित इकोनॉमिक टाइम्स/नेल्सन के सीईओ कॉन्फिडेंस सर्वे में शामिल 100 में तीन चौथाई मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नरेंद्र मोदी को पीएम की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। सिर्फ 7 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी के तौर पर समर्थन किया है। 1947 में ब्रिटिश राज से मुक्त होने के बाद राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार की कांग्रेस पार्टी की चौथी पीढ़ी के नेता हैं। राहुल के पिता राजीव गांधी, दादी इंदिरा गांधी और ग्रेट ग्रैंडफादर जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।
सीईओ कॉन्फिडेंस सर्वे के जरिए इंडिया इंक के दिग्गज दो साफ और अलग-अलग संदेश दे रहे हैं। पहला राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर और दूसरा राष्ट्रीय राजनीति को लेकर। महीनों से नीतिगत मोर्चे पर छाई सुस्ती के बाद सीईओ अब मजबूत लीडरशिप, फैसलों और ऐक्शन के लिए बेचैन हैं। उन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी इन सभी मोर्चों पर राहुल गांधी से कहीं बेहतर साबित होंगे।
हालांकि, सर्वे की मानें, तो यह मत उनकी राजनीति का समर्थन नहीं है, बल्कि इसे सिर्फ उनकी लीडरशिप को हरी झंडी माना जा सकता है। राजनीति के मसले पर 74 फीसदी सीईओ का मानना है कि नरेंद्र मोदी राहुल गांधी से बेहतर पीएम साबित होंगे, जबकि 58 फीसदी को लगता है कि अगर सरकार में स्थिरता है तो कांग्रेस-बीजेपी में कोई भी चल सकती है। मेसेज यह है कि लीडरशिप और स्थिरता पार्टी से ज्यादा मायने रखती है।
दावोस में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती का दौर अब खत्म हो गया है और यदि पुरानी गलतियों को न दोहराया जाए, तो हम निश्चित रूप से 8 फीसदी वृद्धि दर की ओर लौट सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा है कि सुधार उपायों तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया को तेज किए जाने से अच्छे नतीजे सामने आए हैं।
इसका भी आशय समझ लें।
चिदंबरम ने कहा, 'पिछले डेढ़ साल के दौरान हमने फैसला किया कि हमें अधिक निर्णायक होने की जरूरत है। उसके नतीजे दिखे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में स्थिरता आई है। पिछले साल मैंने कहा था कि हम इस साल 5 फीसदी वृद्धि दर हासिल करेंगे, अगले साल 6 प्रतिशत व धीरे-धीरे हम 8 फीसदी वृद्धि दर की ओर बढ़ेंगे।'
विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक में ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ्रीका) के सत्र को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा, 'यदि हम कुछ गलतियों से बचें जो हमने की और अगर हम निर्णायक हो जाएं, तो मुझे कोई संदेह नहीं है कि तीन साल में हम 8 फीसदी वृद्धि दर की ओर लौट सकेंगे।'
वित्त मंत्री ने कहा कि आय में असमानता व मध्यम वर्ग की निष्क्रियता देश के लिए बड़े जोखिम हैं। लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के बारे में चिदंबरम ने कहा, 'भारत ने इस मोर्चे पर अच्छा काम किया है, चीन ने भी अच्छा काम किया है।' उन्होंने कहा कि यही वजह है कि भारत में खाद्य मुद्रास्फीति अभी भी काफी ऊंची है। हम आय में असमानता को और कम करने के लिए बहुत चीजें करना चाहते हैं। हम अमीरों पर कुछ अधिक कर लगाना चाहेंगे, लेकिन हम उद्यमियों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं, इस वजह से हम इस मोर्चे पर धीमे चल रहे हैं।
अर्थव्यवस्थाओं में सरकार की भूमिका को रेखांकित करते हुए चिदंबरम ने कहा, 'जब अमेरिका तथा यूरोपीय बैंक संकट में थे, सरकार को आगे आना पड़ा। राज्य की भूमिका होती है..। अगर आप भारतीय बैंकिंग उद्योग को देखें तो हमारे यहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी बैंक और विदेशी बैंक तथा हम अब कुछ और बैंकों के लिये लाइसेंस दे रहे हैं।'
दावोस में भारत की चमक पहले के मुकाबले काफी घटी है। दावोस में चल रहे वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की चर्चा में पहले के मुकाबले इस साल भारत का जिक्र काफी कम है। इंडस्ट्री दिग्गजों के मुताबिक इसमें कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि भारत ने लाइमलाइट में रहने के लिए कुछ किया भी नहीं है। अब सबकी नजर लोकसभा चुनावों पर है।
कोटक महिंद्रा बैंक के वीसी और एमडी उदय कोटक का कहना है कि दावोस से भारत की चमक इस साल बिलकुल गायब हो गई है। पिछले कुछ सालों में भारत ने कुछ नया नहीं किया है। देश की 6-7 फीसदी ग्रोथ के लिए सबको मिलकर कदम उठाने होंगे। वहीं वित्तीय घाटे, करेंट अकाउंट घाटे में सुधार के लिए सरकार को और कदम उठाने चाहिए।
टीसीएस के एमडी और सीईओ एन चंद्रशेखरन का कहना है कि पूरी दुनिया की नजर भारत के 2014 लोकसभा चुनावों पर है। चुनाव के बाद भारत में ग्रोथ लौटने की अनुमान है।
पीरामल ग्रुप के चेयरमैन अजय पीरामल का कहना है कि दावोस में इस बार भारत पर फोकस कम है। कुछ साल पहले तक वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम में भारत का जिक्र ज्यादा होता था।
भारत फोर्ज के सीएमडी बाबा कल्याणी का कहना है कि भारत से निवेशकों को काफी उम्मीद रही है लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत ने निवेशकों को निराश किया है। अब निवेशक भारत में स्थिति सुधरने का इंतजार कर रहे हैं।
अब हालत यह है कि एक न्यूज चैनल द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक प्रधानमंत्री पद के लिए देश में नरेंद्र मोदी की लहर है। इस सर्वे में प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी पहली पसंद है और इस रेस में सबसे आगे चल रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की फेहरिस्त में सर्वे के मुताबिक मोदी से पीछे हैं।
बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा में आम लोगों पर हुए सर्वे में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक, बिहार, झारखंड में तो बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभरेगी, वहीं प. बंगाल में तृणमूल तो ओडिशा में सत्ताधारी बीजू जनता दल के ही आगे रहने के आसार हैं।
पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी 18 फीसदी लोगों की पसंद हैं, जबकि 11 फीसदी लोग ममता बनर्जी को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार पश्चिम बंगाल में 60 फीसदी लोगों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रदर्शन से संतोष जताया जबकि नरेंद्र मोदी को लोग प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वाधिक तरजीह दे रहे हैं। सर्वे के तहत बिहार में बीजेपी को जबर्दस्त फायदा होने का अनुमान है।
बिहार में 39 फीसदी लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनता हुआ देखना चाहते हैं। बिहार में पीएम के तौर पर नीतीश कुमार 15 फीसदी लोगों की पसंद हैं, जबकि सिर्फ 9 फीसदी लोग राहुल गांधी को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं।
ओडिशा में बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा होने की तस्वीर सामने आ रही है। ओडिशा में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी 33 फीसदी लोगों की पसंद हैं, जबकि राहुल गांधी को 19 फीसदी लोग पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं।
Ashutosh Kumar
रीता डंगवाल हस्पताल के दालान में।आज वीरेन दा तीन महीने के भीतर दूसरे विकट आपरेशन के बाद आईसीयू में आराम फरमा रहे हैं।आपरेशन संतोषजनक रहा । इन दिनों जब भी मुलाक़ात हुई ,राजनीति और कविता की ताज़ा हलचलों पर बात ज्यादा हुई ।ख़ास तौर पर वाम राजनीति की नई चुनौतियों और संभावनाओं के बारे में। शमशेर की होड़ काल से थी ,और लगता है कि काल की वीरेन डंगवाल से है। काल और कविता की होड़ में कविता की जीत पक्की है।
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Tiwari Keshav khush khabri . shukriya aasutosh bhai.
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अंजू शर्मा anant shubhkamnayen viren da...
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Chandreshwar Pandey shubhkamanayen
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Umakant Chaubey वीरेन दा को शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ की शुभकामनाएँ।
Palash Biswas भाभी के चेहरे पर वीरेनदा का स्वास्थ्य देख रहा हूं। हम भरोसा है कि वीरेनदा जल्द ही स्वस्थ होंगे क्योंकि कैसर भी ाखिर वीरेनदा जैसे ही जाबांज लोगों से ही हारता है।
Ravindra Rane shared Amar Ujala's photo.
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Mohan Shrotriya and Amalendu Upadhyaya shared a link.
लो, नवाज शरीफ, ओबामा भी हो गये "आप" के!
जनज्वार डॉटकॉम
जिस वक्त हम सब
पहली नींद ले रहे होते हैं
बिहार, बंगाल और उड़ीसा जैसे राज्यों से
आये गरीब लोग हमारे लिये
चमकती गलियां, चौड़ी सड़के बना रहे होते हैं
यों वे बनीं तो पहले से होती हैं
वे बस उसे और मोटा, पहले से चिकना बनाते हैं
जब दिन में या सुबह वे सो रहे होते होंगे
तब हम जो कुछ करते हैं,
उनसे उन मजदूरों का कुछ जुड़ता है क्या...http://www.janjwar.com/2011-06-03-11-27-26/78-literature/4733-bahut-dino-baad-aisa-ghar-dekha-for-janjwar-by-deepak
India Inc Giants Just Pygmies in Front of Global Corporations
On Wednesday, the 30-share Sensex closed at its highest level. Indian investors may marvel at the size of companies such as TCS, Reliance Industries, ITC, ONGC and Infosys. But a sense of perspective is important. Indian markets, and companies, are puny compared with their global counterparts.
The aggregate market cap of all listed companies was 69.24 lakh crore ($1,126 billion) on Wednesday. But India's total free-float private sector market cap for all listed companies, $509 billion, is only slightly mor than that of Apple Inc and Exxon Mobil.
Some companies, th ough, are beginning to catch up. If we drop the free-float criterion, then TCS' market valuation recently crossed $70 billion, ahead of Accenture's $54 billion and HP's $57 billion. But it is still way behind IBM's $205 billion.
THE DAVOS FOLIO
'India Needs a Business-Like Government'
Jeffrey Sachs, author, economist and director of The Earth Institute at Columbia University, speaks to Supriya Shrinate of ET NOW, on the sidelines of the WEF, Davos, about the problems India has and the government India needs. Excerpts:
In India, we have seen civil society activism result in the Aam Aadmi Party. It has a very populist agenda. Do you believe it is a trend here to stay?
Well, I think what India needs is to have the schools working, the clinics working, the power supply working, the roads working. This is basic governance that puts politics aside and says here are the things that we need to get done. The next government [in India] needs to have a clear timetable. It needs to have clear objectives. I do not think it is too hard to identify what those objectives are. India has a power crisis. It has a water crisis. It has a lot of poor people in the rural areas. The schools are in miserable shape, by and large, aside from some private schools. So for India to do what we all believe India can do — and that is make the final breakthrough out of extreme poverty — the government needs to be a lot clearer, more consequence- and goal-oriented. I hope it is a business-like government, not in the sense of business, but in the sense of getting things done.
Do you think India is really concentrating on dole-outs and not the deliverables?
As long as I have known India, which is a very long time, it has misused the subsidy approach. India could get a lot smarter in how it manages to help poor people, which is a priority. But what India really needs is to get the economy moving with infrastructure, with power, with roads, with transport because we all believe India can grow at 10% per year.
What is your view on Gujarat Chief Minister Narendra Modi's model of development and growth? Do you think India at this moment needs a strongwilled leader like Modi?
Well, as an outsider, I am not endorsing any party or candidate, or region, obviously. But what India needs is a government that can actually get things done with clear goals and a very operational and practical approach. When you see the amount of corruption in the last few years, and these unanswered scandals and paralysis in government, clearly, what India needs is a government that works. There is a lot of payoffs in many directions, and in how land is used or not used big mistakes have been made. These processes do not work very well. I think the administrative and management structures in India are antiquated.
Are AAP's Donations Hit by Anarchy Too?
Online contributions have plunged since Jan 17
SRUTHIJITH KK & RITIKA CHOPRA NEW DELHI
The raucous street politics of Delhi Law Minister Somnath Bharti and Arvind Kejriwal's sitin protest that turned the heart of Lutyens' Delhi into a warzone might be costing the Aam Aadmi Party dearly.
Online donations to the party, the financial lifeline that keeps its political prospects on track, have dropped perceptibly since January 17, when news emerged that Bharti and supporters had raided residences of African nationals in the Khirki Extension neighbourhood at midnight on Wednesday.
On each of the six days starting January 17, the party has received less money in donations than any other day since December 12, when the party reopened donations. In November, AAP had ceased accepting donations, saying it had collected the Rs20 crore it needed to contest Delhi elections. The number of donations on each of the past six days has also been less than any other day since December 12.
The trend during the past week will worry Kejriwal, who plans to field AAP candidates from 400 seats in general elections due in May. Assuming a low expenditure of Rs25 lakh per constituency. (The Election Commission limits expenditure by Lok Sabhacandidates to Rs16-40 lakh) and 150 days before elections, AAP needs to collect at least Rs66 lakh every day. In the past six days, the highest amount it has received is Rs3.04 lakh.
AAP had said it plans to spend about Rs 1 crore per constituency. With that kind of expenditure, the funding gap grows even bigger.
When it reopened donations on 12 December, to prepare for Lok Sabha elections, supporters donated enthusiastically. When Kejriwal took oath as Delhi chief minister, donations to the party started pouring in.
On 28 December, the day the party formed the government, its website received Rs21 lakh in donations.
H L Dusadh Dusadh पलाश दा आप जैसे नेचुरल राइटर-एक्टिविस्ट के मूल्यवान सुझाव को दृष्टिगत रखते हुए मैं पार्टियों के घोषणापत्रों में डाइवर्सिटी शामिल करवाने की रणनीति पर डाइवर्सिटी मिशन के साथियों के साथ मिलकर पुनर्विचार करने जा रहा हूँ.ज्यादा संभवना है हमलोग इस आइडिया का परित्याग ही कर देंगे.
S.r. Darapuri shared Indigenous Peoples Issues and Resources'sphoto.
Shame on so called civilized nations!
On This Day: In 1904 German troops opened fire on unsuspecting Ovaherero/Herero people in Okahandja, Namibia. The Ovaherero and other Namibian people were opposed to any surrender of their lands to foreign powers. Led by Samuel Maharero, the Supreme Chief of the Ovaherero, they had initial success in repulsing the German troops. However, the Germans had greater firepower and began a genocidal policy against the Ovaherero. Between 1903 and 1907 German troops killed approximately 65,000 Ovaherero people. The genocide was part of Germany's imperial efforts in Africa, as many European nations attempted to acquire land throughout the continent during this time. In 1985, the United Nations' Whitaker Report classified the aftermath as an attempt to exterminate the Herero and Nama peoples of South-West Africa, and therefore one of the earliest attempts at genocide in the 20th century.
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गंगा सहाय मीणा
पश्चिम बंगाल में जाति पंचायत के कहने पर 12 लोगों ने एक आदिवासी लड़की से रात भर सामूहिक बलात्कार किया. लड़की की हालत गंभीर है. दिल्ली में इस बात से क्या फर्क पड़ता है. बंगाल यहां से काफी दूर है. वैसे भी यहां 'आप' की सरकार है जिसके नेता योगेन्द्र यादव हरियाणा की खाप पंचायतों को वैध ठहराने के अभियान में लगे हैं. और वामपंथियों से क्या कहें, उनके अनुसार तो बंगाल में जाति ही नहीं है! कांग्रेस और तृणमूल, आपके आदिवासी विकास के मॉडल पर कौन सवाल खड़ा कर सकता है. अब तो आदिवासियों का विकास होकर रहेगा! तुम धन्य हो! तुम्हें धिक्कार है !!
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Palash Biswas It reflects the status in Indian villages univerasal.We could not progress despite the glittering growth story showcased round the clock live.
Krishna Mondal Biswas
Survival of the women folk is very tough in the isolated ISLANDS of Sundarvan area.
They survive only catching fish.
Collecting of prawn eggs (MEEN DHARA).
Cutting and selling of forest woods and lief.
Most of them are illiterate.
Suffering from acute anemia and malnutrition.
A major input to be needed for their integral development.
Like · · Share · Yesterday at 9:49am · Edited ·
Ashok Gajbhiye and 26 others like this.
Balbir Singh my family member.
Amalendu Biswas very natural but difficult life.
16 hours ago · Like · 1
Panyasiri Kolte hey u told where is this place i wanna work for him
13 hours ago · Like · 1
Tapan Mandal People of sundarban area and other survive their life by hard working.They are all amulnibasi poor men and women.
Palash Biswas Thanks Krishna.But we need some real Text also.
The Economic Times
Narendra Modi-led BJP government can lift mood: Moody's
The Economic Times
Pran Kurup, in his blogpost 'Our media must strive to get to the facts' says, role of the media in India's future is becoming critical. It's time the media did some soul-searching and introspection and chose to "self-regulate," at least for the sake of the country at large. Read full post at ET Opinion
The Economic Times
To the common man, polls could bring cheaper loans, freebies and reprieve from dark nights, but at the same time burden him with increased prices. Here's how this election year can turn out for the aam aadmi http://ow.ly/sR6UG
The Economic Times
Ernst & Young, PwC, KPMG and Deloitte to hire 43,000 people. On an average, the Big Four pay salaries of Rs 3 LPA for fresh grads, Rs 4 L for engineers, Rs 7 L for CAs and Rs 11 L for B-school pass-outs. Read more details here http://ow.ly/sR570
Himanshu Kumar
आज सर्वोच्च न्यायालय में सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी की ज़मानत याचिका पर अंतिम सुनवाई पूरी हो गयी .
सोनी सोरी की तरफ से मानवाधिकार अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस और लिंगा कोडोपी की ओर से प्रशांत भूषण ने पैरवी करी .
प्रशांत भूषण ने कहा कि लिंगा कोडोपी को पुलिस ने चालीस दिन तक थाने में अवैध हिरासत में रखा . सोनी सोरी ने हाई कोर्ट की मदद से अपने भतीजे लिंगा को पुलिस की हिरासत से मुक्त करवाया .
इस बात से पुलिस ने चिढ़ कर लिंगा के भाई को हिरासत में ले लिया .जिसे फिर छुडवाया गया . इसके बाद लिंगा को दिल्ली ले आया गया और उसे पत्रकारिता की पढ़ाई में प्रवेश दिलवा दिया गया .
लिंगा कोडोपी ने दिल्ली में एक जन सुनवाई में सलवा जुडूम की ज्यादतियों की पोल खोली . इस बात से घबरा कर छत्तीसगढ़ पुलिस ने लिंगा कोडोपी पर एक कांग्रेसी नेता के घर पर हमला करने का फर्जी केस बना दिया .
लिंगा कोडोपी जब अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद छत्तीसगढ़ वापिस गया और वहाँ उसने पुलिस द्वारा जलाए गए गाँव के वीडियो बनाये तो पुलिस ने लिंगा को इस मामले में फर्ज़ी तौर पर फंसा दिया .
प्रशांत भूषण ने तहलका द्वारा एक पुलिस अधिकारी के फोन स्टिंग को भी कोर्ट के सामने पढ़ कर सुनाया . जिसमे पुलिस अधिकारी ने स्वीकार किया है कि हाँ ये पूरा मामला झूठा है और लिंगा और सोनी को पुलिस ने फंसाया है .
कॉलिन गोंसाल्वेस ने सोनी सोरी के मामले की जानकारी दी और बताया कि पुलिस ने सोनी पर जो भी मामले बनाये हैं उस दिन वो अपने स्कूल में हाज़िर थी . उसका सरकारी हाजिरी रजिस्टर कोर्ट को दिखाया गया .
सरकारी वकील ने कहा कि सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी के नक्सली समर्थक होने के बारे में हमें आईबी ने बताया था .
सरकारी वकील ने यह भी कहा नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है . बुद्धीजीवी लोग और मीडिया भी नक्सली समर्थक है .
इस पर कोर्ट ने कहा कि नक्सली समस्या के इतिहास से इन दोनों के इस मामले से कोई लेना देना नहीं है और यदि बुद्धीजीवी लोग नक्सल समर्थक है तो उन पर मुकदमा चलाओ .
प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार ने कहीं भी आईबी की किसी जानकारी का कोई ज़िक्र नहीं किया है सिर्फ सरकारी वकील यहाँ मौखिक रूप से आज यह कह रहे हैं .
प्रशांत भूषण ने कहा कि यदि सरकार इस तरह से निर्दोष लोगों को फर्ज़ी मामलों में फंसाती रहेगी तो देश में अशांति तो और भी बढ़ेगी .
कोर्ट ने ज़मानत के मामले पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया .
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Abhishek Srivastava
सवेरे-सवेरे उठते ही एक मित्र से फोन पर बात हुई। बहुत अनपढ़ भी नहीं, बल्कि ठीक-ठाक पढ़े-लिखे आदमी हैं, अख़बार में काम करते हैं, संपादकीय पन्नों के लेख भी गाहे-बगाहे पढ़ ही लेते हैं। ऐसा ही कोई लेख उन्होंने पढ़ा था सुबह, तो पूछ रहे थे कि ये 'बुर्जुआ' क्या चीज़ होती है? 'बुर्जुआ' और 'बुर्जुआज़ी' का आखिर मतलब क्या है? कोई मदद करे भाई...
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Uday Prakash, Subhash Gautam, Sanjeev Chandan and 6 others like this.
Uday Prakash हा हा ! अगर संधि विच्छेद कर दें तो दो ऐसे शब्द छत्तीसगढ़ी, बघेली, बुंदेली, अवधी, भोजपुरी में बन जाएंगे कि जान बचा के भागना पडेगा।
about an hour ago · Like · 3
Prakash K Ray अगर उनसे कोई बैर है तो प्रगति प्रकाशन, मास्को की किताबें सुझाएँ। अगर भला करना है तो उन्हें बताएं कि अगर कोई इस शब्द का दिन भर में दो बार से अधिक प्रयोग करे तो उससे दूर रहें।
51 minutes ago · Like · 2
Vipin Shukla कोई यह बता सकता है कि भारत में पूंजीवाद शब्द सबसे पहले कहाँ और कब इस्तेमाल किया गया था.
Chandrika Bgl शिक्षित और साहित्यिक होना लंपट न होने का कोई प्रमाण-पत्र नहीं देता. जहां जब भी मौका मिले सेक्सुअल कुंठाओं का मजा ले लें. उफ़्फ़.
15 minutes ago · Like · 2
Vidya Bhushan Rawat
भ्रष्टाचार के विरुद्ध सबसे बड़ी जंग तब सफल होगी जब दिल्ली का 'ईमानदार' 'आम आदमी' अपने घरो पर काम कर रहे छोटुओं को भी आम आदमी समझ न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करे और मज़दूरो के हक़ और अधिकार वाले सारे कानून हमारे घरो पर भी लागु हों ? मैं केजरीवाल और उनकी टीम से चाहूंगा के सारे व्यापारियों की इनकम टैक्स रिटर्न देखें और जो झूठी रिटर्न फ़ाइल करते हैं उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही हो ? जो व्यापारी टैक्स लेकर भी टैक्स पैड का नहीं देते उनके विरुद्ध कार्यवाही हो ? केजरीवाल साहेब अगर अपनी बिरादरी को कुछ नैतिकता का पाठ पढ़ा देते अच्छा रहता ? दिल्ली के पुलिस वालो से ज्यादा ताकत दिल्ली के व्यापारियों की है जिनकी तिजोरियों में लोगो को भ्रस्ट करने और खरीदने की ताकत है ?
Like · · Share · 2 hours ago · Edited ·
सर्वे: यूपी में बीजेपी की आंधी, दिल्ली में 'आप' ने बिगाड़ा खेल
आईबीएन-7 | Jan 23, 2014 at 10:04pm | Updated Jan 23, 2014 at 10:35pm
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में अब 100 दिन से भी कम वक्त बचा है। सियासी मोर्चे पर सेनाएं कमर कस चुकी हैं। सेनापति विरोधियों को ललकारने में जुट गए हैं, ऐसे में ये जानना दिलचस्प है कि आखिर क्या है देश का मिजाज और क्या है मतदाता की राय। देश की सियासी नब्ज टटोलने के लिए आईबीएन7 अपनी खास पेशकश 'अगर अभी चुनाव हों तो...' के लिए CSDS का देशव्यापी सर्वे लाया है। 5 से 15 जनवरी के बीच CSDS ने देश के 18 राज्यों में ये सर्वे किया। 1081 स्थानों पर जाकर कुल 291 सीटों पर 18591 लोगों के बीच ये सर्वे किया गया। दिल्ली और उत्तर प्रदेश के नतीजे देखें।
दिल्ली में 'आप' का डंका
आईबीएन7 के लिए सीएसडीएस के सर्वे में पता चलता है कि अगर अभी चुनाव हों तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी सभी पार्टियों का सूपड़ा साफ कर देगी। दिल्ली में आईबीएन7 के लिए सीसीएसडीएस ने लोकसभा की सभी 7 सीटों पर 951 लोगों के बीच सर्वे किया। सर्वे के मुताबिक अगर अभी चुनाव हों तो कांग्रेस को शून्य सीटें, आम आदमी पार्टी को 4 से 6 सीटें हासिल होंगी, जबकि बीजेपी को महज 1 से 3 सीटें मिल सकती हैं। वहीं 76 फीसदी दिल्ली वाले केजरीवाल के कामकाज से संतुष्ट हैं।
यूपी में बीजेपी की आंधी
आईबीएन7 के लिए सीएसडीएस के सर्वे में पता चलता है कि अगर अभी चुनाव हों तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी बाकी सभी पार्टियों को पीछे छोड़ती नजर आ रही है। आईबीएन7 के लिए सीएसडीएस ने सर्वे किया। यूपी में अगर अभी चुनाव हों तो 80 सीटों में से बीजेपी को 41 से 49 सीटें मिल सकती है। कांग्रेस 4 से 10 सीटों पर सिमट जाएगी। समाजवादी पार्टी महज 8 से 14 सीटें पाएगी, जबकि बीएसपी के हाथ 10 से 16 सीटें लगेंगी। इसके अलावा अन्य के खाते में 2 से 6 सीटें जा सकती है।
गौरतलब है कि देश में सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटों वाला राज्य यूपी से बीजेपी के पास केवल 10 सीटें हैं। जबकि 2009 में सपा को 22, बसपा को 20 और कांग्रेस के हाथ 21 सीटें लगी थी। वहीं बीजेपी को मोदी के मिशन 272 को सबसे अधिक उम्मीद यूपी से ही है।
Abhishek Srivastava eating PAAN
बड़-बड़ बहाइल जाए, गदहवा कहे केतना पानी...!
Unlike · · Share · 13 hours ago ·
You, Anita Bharti, Shree Prakash, Sanjeev Chandan and 20 others like this.
Shiv Das जब तक ऊंट पहाड़ पर नहीं चढ़ता, उसे उसकी ऊंचाई का अंदाजा नहीं होता
Ramji Yadav गदहा गदहा खेत खयिबा ? नाहीं भिया खरबुज्जा खाब ! कहाँ मिली खरबुज्जा रे ? पेड़ पर चढ़ के तोड़ के खाब . बनारस में प्रचलित घोड़ा-गदहा संवाद !
14 minutes ago · Like · 1
Mrityunjay Alld ए भईया, ई ससुर पनओ क eating करे के परी फेसबुक में का
7 minutes ago · Like · 1
Abhishek Srivastava Ramji Yadav अब समझ में आयल कि गदहवा काहे पेड़ के नीचे खड़ा होके उप्पर ताकेला अ घोड़वा ओकरे छोड़ल खेत से काम चलावेला... सबसे मौज में खरबुजवा हौ जवन रेगुलर रंग बदलत रहेला
Palash Biswas Sorry,Abhishek.The hindi tool is not working.Excellent proverb that you used.I have to use it in another context.You would get it.I hope that it should not have any copyright implication.These days,everything is under surveillance.
a few seconds ago · Like · 1
The Economic Times
Arvind Kejriwal's politics as Delhi's CM & AAP leader has been a dangerous mix of self-righteousness and lynch-mob vigilantism, designed to mask his incapability to push through any of the major changes he had promised. The educated AAP supporter has a lot of thinking to do in the days leading up to the Lok Sabha polls. Is this what he signed up for when he voted AAP in 2013? This week's Poke Me invites your comments on Why Kejriwal is losing the plot http://ow.ly/sRmWi
Satya Narayan
आज बहुत कम लोगों को ही इस तथ्य की जानकारी है कि जो संविधान भारतीय लोकतन्त्र (जनवाद) का "पवित्र" आधार ग्रन्थ है, जो हर नागरिक के लिए अनुल्लंघ्य और बाध्यताकारी है, उसका निर्माण भारतीय जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने नहीं किया था, न ही चुने हुए प्रतिनिधियों के किसी निकाय द्वारा उसे पारित ही किया गया था। संविधान बनाने वाली संविधान सभा को उन प्रान्तीय विधानमण्डल के सदस्यों ने चुना था, स्वयं जिनका चुनाव देश की कुल वयस्क आबादी के मात्र 11.5 प्रतिशत हिस्से से बने निर्वाचक मण्डल ने किया था। जाहिर है कि इनमें से चन्द एक कांस्टीच्युएंसी से चुने गये प्रतिनिधियों को छोड़कर शेष सभी सम्पत्तिशाली कुलीनों के प्रतिनिधि थे। यानी संविधान सभा सार्विक नहीं बल्कि अतिसीमित वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गयी थी और प्रत्यक्ष नहीं बल्कि परोक्ष चुनाव के आधार पर चुनी गयी थी। इन चुने गये प्रतिनिधियों के अतिरिक्त उसमें राजाओं-नवाबों के मनोनीत प्रतिनिधि थे। कुछ उच्च मध्यवर्गीय विधिवेत्ता और प्रशासकों को भी उसमें मनोनीत किया गया था। यहाँ यह भी जोड़ दें कि इस संविधान सभा को चुनने वाले प्रान्तीय विधान मण्डलों का चुनाव (अतिसीमित मताधिकार पर आधारित होने के अतिरिक्त) धार्मिक एवं जातिगत आधार पर पृथक् निर्वाचक-मण्डलों द्वारा किया गया था। चुनाव के इन आधारों और प्रक्रिया का निर्धारण 'गवर्नमेण्ट ऑफ इण्डिया ऐक्ट, 1935′ के द्वारा औपनिवेशिक शासकों ने किया था। संविधान सभा ने 1946 में जब काम करना शुरू किया तो देश अभी ग़ुलाम था। 1950 में संविधान जब बनकर तैयार हुआ तो देश आजाद हो चुका था। लेकिन सार्विक मताधिकार के आधार पर चुने गये किसी नये निकाय द्वारा पारित या पुष्ट किये जाने के बजाय उसी पुरानी संविधान सभा द्वारा इसे पारित करके पूरे देश की जनता पर इसे लाद दिया गया।
Like · · Share · Yesterday at 9:31am
Kavita Krishnapallavi likes this.
Sch Andra भारत में 1817 ई० तक ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य तथा शूद्रों के जन्म-जाति साम्प्रदायिक कर्मों का आरक्षण हजारों वर्ष से चला आ रहा था, इसके बाद अंग्रेजों ने ब्राह्मणों के कुछ अधिकारों की कटौती करनी शुरू कर दी थी, जहाँ से अंग्रेजों के विरुद्ध ब्राह्मणों के व...See More
Satya Narayan
चाय वालों के कुछ किस्से और ख़ूनी चाय की तासीर
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--कविता कृष्णपल्लवी
मेरे बचपन में, गोरखपुर की एक पुरानी बस्ती में एक चाय वाला चाय बेचता था। उसकी चाय में कुछ अलग ही स्वाद था। वह चाय बनाकर भी बेचता था और बुरादा चाय के पैकेट भी। एक दिन मुहल्ले के लोगों ने उसे पकड़कर खूब पीटा। पता चला कि वह चाय में गधे की लीद सुखाकर मिलाता था।
कुछ वर्षों पहले सुल्तानपुर कचहरी के बाहर चाय बेचने वाले एक 'राजनीतिक प्राणी' से सम्पर्क हुआ था। उसके ठीहे पर दिन भर चाय पीकर जो लोग कुल्हड़ फेंकते थे, उन्हें वह रात में बटोर लेता था और अगले दिन फिर उन्हीं में ग्राहकों को चाय देता था।
गोरखपुर में हिन्दू-मुसलमान की मिली-जुली आबादी वाली एक बस्ती में तीन चाय की दुकानें इत्तफ़ाक से मुसलमानों की थी। एक हिन्दू चाय वाले ने वहाँ दुकान खोली और हफ्ते भर के सघन मुँहामुँही प्रचार से उसने 'हिन्दू चाय' और 'मुस्लिम चाय' के आधार पर ग्राहकों का ध्रुवीकरण कर दिया।
जयपुर में सामाजिक कामों के दौरान एक चाय वाले का पता चला जो छोटे-छोटे बच्चों से (मुख्यत: नेपाली) पास के बैंकों, बीमा दफ़्तर और दुकानों में चाय भिजवाता था, फिर जब महीने की पगार देने की बात आती थी तो उनपर चोरी का इलज़ाम लगाकर मार पीटकर भगा देता था।
बहुत पहले, गोरखपुर से लखनऊ जाते समय जाड़े की एक रात में, किसी छोटे स्टेशन पर चाय की तलब लगी। खिड़की से चाय का कुल्हड़ पकड़ ही रही थी कि ट्रेन चल दी। चाय वाला चाय देना छोड़कर फट मेरे हाथ से घड़ी नोचकर भाग गया। मैं देखती ही रह गयी। तो साधो, इन सभी किस्से का लुब्बेलुब्बाब यह कि सभी चाय वाले बड़े ईमानदार और भलेमानस होते हों, यह ज़रूरी नहीं। और राजनीति में आकर वे चाय वालों जैसे सभी आम लोगों के शुभेच्छु बन जायें, लोकहित की राजनीति करने लगें, यह तो एकदम ज़रूरी नहीं।
ज़रूरी नहीं कि कोई चाय वाला होने के नाते जनता का भला सोचे ही! उनकी मानसिकता छोटे मिल्की की भी हो सकती है। यह छोटा मिल्की बड़ा बेरहम और ग़ैर जनतांत्रिक होता है। हर छोटा व्यवसायी बड़ा होटल मालिक बनने का ख़्वाब पालता है। लाल किले तक नहीं पहुँच पाता तो मंच पर ही लाल किला बना देता है। चायवाले से इतनी हमदर्दी भी ठीक नहीं कि उससे इतिहास-भूगोल सीखना शुरू कर दिया जाये। यह कैसे मान लिया जाये कि कोई आदमी महज चाय बेचने के चलते देश का प्रधानमंत्री बनने योग्य है! हर चायवाला सभी चायवालों के हितों का प्रतिनिधि हो, यह भी ज़रूरी नहीं। एक रंगाई-पुताई करने वाले (हिटलर) ने और एक लुहार के बेटे (मुसोलिनी) ने अभी 70-75 वर्षों पहले ही अपने देश में ही नहीं, पूरी दुनिया में ग़जब की तबाही और क़त्लो-गारत का कहर बरपा किया था। यह आर्यावर्त का चायवाला उतनी बड़ी औक़ात तो नहीं रखता, पर 2002 में पूरे गुजरात में इसने ख़ूनी चाय के जो हण्डे चढ़वाये थे, उनको याद किया जाये और आज के मुजफ़्फरनगर को देखा जाये तो इतना साफ हो जाता है कि यह पूरे हिन्दुस्तान को ख़ून की चाय पिला देना चाहता है। ख़ूनी चाय की तासीर से राष्ट्रीय गौरव की भावना पैदा होती है और देश ''गौरवशाली अतीत'' की ओर तेजी से भागता हुआ अनहोनी रफ़्तार से तरक्क़ी कर जाता है, ऐसा इस चायवाला का दावा है।
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Palash Biswas
http://antahasthal.blogspot.in/2014/01/85-elec.html
अंतःस्थल - कविताभूमि: जायनवादी वैश्विक अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीरें और गरीबों के सफाये
Like · · Share · 19 hours ago
Absolutely terrible. In every city we need to form Indo-African Friendship Society and support Africans who are living, visiting and studying here. Please read it. If this is happening in Delhi and DU, I shudder to think what is happening elsewhere.
Skin Deep: Narratives of Racism in Delhi University
By Aashima Saberwal, Bonojit Hussain and Devika Narayan
(Note: This article was published in the november Issue of CRITIQUE - the occasional magazine of NSI Delhi University chapter)
Kevin is from Kenya. He studies at the faculty of Law. We ask him whether he likes India (he doesn't) and about the kinds of challenges he faces. He shrugs and shakes his head "I have don't face any discrimination" He often repeats this sentence at various points of the discussion. After he tells us about shopkeepers who refuse to sell him milk or before narrating how not a single shop at Patel Chest area was willing to type his assignment. "When you go to buy things from a shop they refuse to sell. If you ask for milk they say 'no milk' but you can see the Indians buying milk." Later he tells us a similar story "My mobile phone was stolen. For one week I was thinking how to get a new one. The shops here don't sell to Africans." Kevin doesn't think much of these experiences and dismisses them as insignificant, the ordinary trials of living in a foreign country. A woman on the road provokes a dog, provoking it to bite him, which it does. At Hans Charitable Trust Hospital they ask him for 10,000 rupees for the anti-rabbis injection. This is a service which is provided free of cost, however the small print reads 'unless you are black'. Our interviews starkly shows that this particular subtext is present everywhere. We don't realize that for the most mundane of daily activities (like buying milk) there are conditions that apply. The condition that you are not black.
These interviews give us a glimpse of how these students experience classrooms, hostels, streets, the metro and other public spaces. "What does kala bandar mean?" Boniface asks. They point. They laugh. They don't like sitting next to you in the metro. What must it feel like to enter a strange foreign country where people across the board categorise you as sub-human? Strangers call you black monkey. "When I go back from college to hostel people on the streets keep laughing and staring. It is humiliating" Boniface says. Kevin stayed in a hotel for two months before joining hostel because no one was willing to rent him a room. The entire gamut of racist discrimination faced by the black students of the university includes everything from actual violence to incessant racist remarks, staring and laughing. This is racism in its purest, crudest and most undisguised form.
If one begins mapping the experiences of these students in north campus of Delhi University there is no choice but to face up to the irrefutable fact that India is a deeply racist society. Yet the idea of racism as a socio-political issue is not one that is associated with India. It grew out of the specific history of European and North American societies and is inextricably linked to the historical fact of colonialism, slavery, displacement and migration. Racism is typically conceived off as exclusively an issue between blacks and white in western societies. We are arguing for the establishment of racism as a serious issue in India, one which is in urgent need of not just study but even basic acknowledgement. However with respect to the particular experiences of these students the onus must be put on Delhi University. The university must be identified as the accountable institution whenever there are instances of racism within its purview; this space includes classrooms, hostels and college campuses. As of now you can call a student a 'black bitch' in the university hostel and not face any consequences. As of now racism is not even recognized as a problem. The attitude towards blacks is so normalised and commonplace that the idea of racism as a manifestation of unacceptable bias, prejudice and discrimination is a foreign one. The demand that the university awakens to this issue and takes into consideration the rampant racism which is rooted in university spaces is a basic but essential one. The fact that we have to even demand this basic minimum from the university only goes to show the abysmal degree of neglect.
"There is segregation in the classrooms. In Ramjas College there are three rows: Indians, foreigners and North Eastern students. There is no interaction. They don't speak to each other. I have an Ethiopian friend in Arts Faculty. It is the same situation there. No on sits close to him and if somebody does then everyone gossips about them. A friend from law Faculty told me it was very bad there. When he would walk into the classroom some students would walk out" This sounds like something out of segregated America of the 1940s. Most African students do not arrive here with a framework of race and racial politics. Why should they? They are coming from black majority countries to a non-white third world country. They come unprepared and don't anticipate being treated like non-humans. Unless they have friends in India who have warned them or have some understanding of Indian history they enter student life without being able to contextualise or make sense of this treatment. Joyce says, "There are so many Indians in my country. I'm so used to them. I studied with Indians. My father studied with Indians. We don't see the difference. That is why I find it strange that people stare at me here."
Kevin's interview was particularly revealing. He came having done some research of his own by doing an internet search on "racism". When faced by a vast amount of matter, all to do with racism in the U.S.A he came to the conclusion that it was by definition an American phenomenon. This is probably why he repeatedly told us that he faces no discrimination, while narrating extremely disturbing instances of overt and explicit racism. When you define racism as an issue solely between blacks and whites, then Indian racism which is as entrenched and brutal as in the white dominated counties of the west is conveniently side-stepped. This is deeply problematic. It is truly appalling that there is no language available to talk about the grotesque form of racism that Kevin faces. The deafening silence on the issue of Indian racism robs victims the right to protest and a sense of injustice. How do you even begin a discussion on racism and our fascination with fair skin when there is a complete absence of any critical understanding? By perpetuating this silence we barricade any possibility of debate. We have to start with the very first step, that of exposing Indian racism for what it is. Why does it not shock us that when Boniface walks back home in the evening people on the street point and laugh? Why is someone by virtue of having black skin an immediate target of ridicule? Why is it, of all things, funny? Why does black skin automatically result in being called a monkey? Why is fair lovely? Why is black ugly?
Although it seems obvious, it is important to note that skin colour comes with a powerful symbolic loaded-ness. What are the images constructed around black skin? How are they reproduced and sustained? How did black skin come to denote barbarism and savagery? These are huge complex questions which have no simple answer. To address them in a nuanced manner we are required to dig deep into our history and politics. We need to revisit the long history of colonialism and understand how the logic of dominance played itself out; all this while taking a strong political stance against racism as it exists in all its manifestations today.
Not only is there a pressing need to talk about explicit racism but also to recognise the subtler ways in which our underling prejudices reveal themselves. The fact remains that racism is not an issue of individuals and circumstances but is structural, historical and institutionalized into the very fabric of our society. The general obsession with Europe and the U.S is combined with an absolute neglect of the rest of the world, most of all Africa. It is true this imbalance is a global one and has economic, political and social dimension to it and ultimately whiteness is symbolic of wealth, power and civilization. Black skin came to be constructed as a sign of the uncivilised and barbaric and therefore not 'us', not human. This skewed reality which continues to be reproduced today in the post-colonial world, displays itself plainly all over the university in subtle and not so subtle ways.
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Aashima and Devika are Research Scholar and Post-Graduate student at the Department of Sociology, Delhi University; Bonojit is an independent researcher. Research for this article was assisted by Shobha and Meghana from Dept. of Sociology, DSE
Ajay Banerjee Uttam Sengupta sir...my suggestion first let us form north-east friendship society....we ---I mean some of us ---treat them like dirt...its shameful...
Uttam Sengupta I am all for it. Let us get together and plan it. I truly feel disgusted. How are you placed this week ?
Ajay Banerjee Sir we must...but here is another suggestion...it must have men like Nishit Dholabhai who know NE and even speak nagamese....I will join but my knowledge about NE is like any other north indian
Ajay Banerjee We can meet aftet jan 26 trsffic redtrictions will be liftef.
Bhaskar Chatterjee If you are neutral in situations of injustice, you have chosen the side of the oppressor.
Ashok K Singh Uttam I am sharing this stuff. In absolute agreement, this happens in all parts of the country.
Abraham Abhishek I visit Ethiopia quite often for work. The regard that people there have for Indians is touching. I often feel like telling them " We don't deserve it."
Avinash Bhardwaj Vinay bhaiya read the other side of story. This is also a bitter truth. And that's why I say we people are equally responsible for many bad things which we are facing today.
Ajay Kumar If this is the state of affairs, I would like to know from Mr. Law and Mr. Gopal Rai, their next step for a human cause, when and where is dharana,
Kajal Basu Uttamda: I'm glad you put this up. I'm Sharing it, so as to broaden the discussion and conscientisation base.
Seema Sirohi What a frightening read! I didn't realize that even ordinary chores like buying milk or a cell phone are so difficult. I am amazed at Kevin's attitude. He seems a thousand years more mature than the people he studies with. The VCs in various universities should start some sort of sensitization effort and tell the professors to talk about civility. I am half afraid the teaching faculty may not be innocent.
Rp Shahi So shameful, but thats our society. We feel pride in showing some one lower than us, even if they are not. It reflects in form of religion, caste, skin color, villager/ town divide and every dirt one can think of. It is wonderful that you all are taking up this issue and trying to do some thing.
Buroshiva Dasgupta Indians learn late. 21st century Delhi does what the west did in 19th century.late learners do things with a vengeance.
Ajay Kochhar Uttam - anything to help our children from the NE. Rampant abuse of dignity - emotional& physical, is sickening and against the idea of India.
Rohit Ghosh Reading this article makes me happy at the way Indians are still (mis)treated in the US and Europe.
Uttam Sengupta This needs to start in the Universities first, engaging with students. At this stage let us identify and start talking to teachers and students to find out more. Ajay Banerjee, Meha Dhondiyal Khanduri, Nishith and I could meet next Saturday. Will post details so that others who are interested could also join us.
Somnath Dasgupta Uttam-da, I find it difficult to believe this bit: "This is a service which is provided free of cost, however the small print reads 'unless you are black'." Unless you are black? But we all know that colour and caste racism is common among us. Even the great Gandhi hated the local "kaffirs" while in South Africa.
TaraChandra Tripathi
केजरीवाल जी, विश्व के इतिहास में बन्दरों की सेना के साथ लंका एक ही बार जीती जा सकी. आप के बन्दर तो अपना ही बगीचा उजाड़्ने में लग गये हैं.
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जनज्वार डॉटकॉम with Himanshu Kumar and 48 others
देश के अधिकांश राज्यों में पुलिस को रक्षक के बजाए भक्षक की संज्ञा दी जाती है. समाचार पत्रों के पन्नों को पलटें तो प्राय: नज़र आएगा कि पुलिसकर्मी कहीं सामूहिक बलात्कार में स्वयं शामिल हैं, कहीं चोरी-डकैती में शामिल पाए जा रहे हैं, कहीं आपराधिक गतिविधियों को संरक्षण दे रहे हैं, जुए व शराब के नाजायज़ अड्डे इनकी छत्रछाया में चल रहे हैं...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-06-02/69-discourse/4729-puliswale-gundon-ke-khilaf-tha-ek-mukhymantri-ka-dharna-maanneeya-for-janjwar-by-nirmal-rani
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चन्द्रशेखर करगेती
हल्द्वानी में एक हल्द्वानी ऐसी भी, जहाँ के बासिंदे आजादी के 65 साल बाद भी महरूम है, जन सुविधाओं से !
किसी भी शहर की तरक्की में वहाँ के लोगो व जन सुविधाओं की उपलब्धता का बड़ा हाथ होता है, जिस शहर में जितनी जन सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध होंगी, तरक्की भी उतनी तेजी से आती है वह क्षेत्र चाहे व्यापार का हो या फिर शिक्षा का या फिर लोगो के जीवन स्तर का !
हल्द्वानी शहर भी जैसे जैसे अपनी उम्र में आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे इसका नवोदित इलाका हर जन सुविधाओं के लिहाज से तरक्की की और अग्रसर ...See More
Shamshad Elahee Shams
यह चेतना को कौन सा स्तर हुआ चेतन भगत? गुजरात में बैठे हुए जुम्मा जुम्मा चार दिन की आम पार्टी द्वारा दिल्ली में किये गए करतबों से आपकी चेतना मर्माहत हुई, आपको शर्मिंदगी हुई. नरभक्षी के गले में पडी २००० नरमुंडो की माला आज तक आपको दिखी नहीं, न कोई शर्मिंदगी हुई. टुकड़खोर बाबुओ/नेताओं/माफियाओ/धनपशुओ के जैसे टुकड़खोर कलम घसीटो की संवेदना भी कमाल की होती है. साहित्यिक गलियारों आपका वजूद किसी 'आइटम बाय' से आधिक भी तो नहीं.
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Mohan Shrotriya, Shamshad Elahee Shams, Sudhir Ambedkar and 71 otherslike this.
Shamshad Elahee Shams अशोक वर्मा जी ....इन भगतो की ठगी विद्या बड़ी पुरानी है सर ..
Shamshad Elahee Shams धीरेन्द्र पाण्डेय जी और परमार साहब..यह पोस्ट उन्ही के लिए है जिन्होंने पल्प फिक्शन को भाव दिए है
about an hour ago · Like · 1
Satya Narayan http://ahwanmag.com/Chetan-Bhagat-and-his-communal-thoughts
चेतन भगत: बड़बोलेपन और कूपमण्डूकता का एक साम्प्रदायिक संस्करण
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चेतन भगत जैसे भाड़े के कलमघसीट जिन्हें समाज, विज्ञान, इतिहास के बारे में ज़रा भी...See More
about an hour ago · Like · 2
Santosh Kr. Pandey हमारे हिंदी के वेद प्रकाश और ओमप्रकाश शर्मा इस गधे से ज्यादा बढ़िया गल्प लिखते हैं !
6 hours ago via mobile · Edited ·
ममता सरकार के शासन में गैंगरेप संस्कृति की आँधी चल रही है। एक पंचायत ने एक आदिवासी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करने का आदेश दिया और उस महिला के साथ 13कमीनों ने गैंगरेप किया ।
शर्मसार है भारत जहाँ पंचायतें औरत पर हमले कर रही हैं। जागो बंगाल जागो।
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Suri, Jan. 22: A 20-year-old girl was allegedly gang-raped by at least 13 men at the behest of a kangaroo court in a Birbhum village not more than 25km from Santiniketan for having an affair with a youth from another village.
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The alleged atrocity, unheard of in Bengal in recent memory, took place at Subalpur village, which falls under Labhpur police station.
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Eleven suspects, including the tribal community's morol (head) who allegedly ordered the gang rape as punishment, have been arrested, police said.
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The mother of the girl said over phone from Suri hospital her daughter knew a youth from another village.
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"The youth reached our house on Monday and the villagers came to know of it. They caught him and kept him overnight in a room in another house. Around noon on Tuesday, some villagers came to our house, called my daughter out and told her to accompany them. They also told her that a trial would be held. My husband and I, along with our 15-year-old son, accompanied my daughter," said the mother.
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According to the mother, the youth and her daughter were tied to separate trees in the village square.
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"The morol accused my daughter of breaking tribal rules. The morol and villagers close to him said the boy and the girl should pay Rs 25,000 each as fine. The morol also ruled that as my daughter had broken tribal rules, she would be gang-raped by the villagers. My husband, my son and I were driven out. Then they took my daughter to a house and the villagers took turns at assaulting her. My daughter could recognise 13 of them, including the morol, and named them in the FIR," said the mother.
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The police later said that the gang rape took place in the house of the morol, who has been identified as Balai Maddi.
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The youth, a mason, was released after he agreed to pay Rs 25,000 within a week.
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A police officer said the girl walked home early this morning. "Family members took her to the block hospital in Labhpur this afternoon. After preliminary treatment, the girl went to the police station with her mother and lodged the complaint this evening. After the complaint was lodged, the police admitted her to a district hospital for tests," a police officer said.
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Birbhum SP C. Sudhakar said that on the basis of conversations with doctors, it appeared that the girl was raped. "Our preliminary investigation has revealed that the villagers held a meeting and the morol ordered that the girl be gang-raped," Sudhakar added.
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Subalpur is a tribal village of mostly labourers with some small farmers.
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Kangaroo courts, known as shalishi sabhas, operate in some Bengal villages. The erstwhile Left government had made an abortive attempt to give a legal stamp to village gatherings handling civil disputes, not criminal matters.
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The West Bengal Block Level Pre-Litigation Conciliation Board Bill was introduced in the Assembly in 2003. But an uproar followed amid allegations that the government was trying to subvert the judiciary and pack such groups with its sympathisers. The bill died a natural death in the absence of a consensus, including within the Left itself.
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Septuagenarian Nityananda Hembram, the disham majhi or chief of the Bharat-Jakat Majhi Maroa, a social and cultural organisation of Santhals, said that no morol had been given power to interfere with someone's personal life.
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"This is a most brutal incident. In our tribal community, the will of a woman is respected. What happened in Birbhum is a crime. No tribal custom advocates brutality like rape. According to customs, there is a morol in every tribal village who can call a meeting and give good advice to people and perform rituals," said Hembram, who is an architect from IIT Kharagpur.
7 people like this.
Rajiv Kr Pandey तृणमूल नेताओं के नेतृत्व में एक मंच बना है. उस मंच का नाम है "धर्षक बचाओ मंच". इसने कमदुनी कांड के अभियुक्तों की रिहाई की मांग को लेकर नवान्न में चिठ्ठी भी लिखी है... इससे आप शासक दल के चरित्र को समझ सकते है...
6 hours ago · Like · 2
Arun K Upadhyaya Fir bhi chunavi sarvekshan TMC ko hi aage dikha rahe......kamal ki hai hamari janta bhi.
Arun K Upadhyaya D tribals r known to hve had comparatively better appreciation for d concepts of love and marriage as compared to our so called cultured and educated societies.Wonder who has influenced whom and for d gd or d bad.Strange effects of cultural assimilation..............Shocked !
Rajiv Kr Pandey उपर ग़लती से इस मंच का नाम दूसरा हो गया था.. इस मंच का नाम हैं "कामदूनी इंसाफ़ मंच" ..
Rakhi Roy bangal me ek naya sharmnak itihas banta ja raha he... na jane log kab jagruk honge...
Aam Aadmi Party with Bandana Bharti and 7 others
What do the residents of Khirki village have to say about whatever is happening. Let's hear from them, what they go through.
What would you do if this happened in your locality?
Like · · Share · 2,5033261,429 · 42 minutes ago ·
Satya Narayan
कानून की किताब में कुछ भी लिखा हो, अमीरों के लिए कानून का एक रुख़ होता है और ग़रीबों के लिए दूसरा। कानून के समक्ष समानता की सारी बातें किताबों में दबी रहती हैं। पूँजीवादी न्याय पूँजी के वर्चस्व का ही अंग होता है। इस प्रक्रिया ही ऐसी होती है कि कोई ग़रीब आदमी उस तक पहुँच ही नहीं पाता है। और अमीरों को तो न्याय व्यवस्था उनके दरवाज़े पर आकर न्याय देती है। और सबकुछ बेचने-खरीदने वाली व्यवस्था में न्याय का भी हश्र कमोबेश वैसा ही हो जाता है, जैसे कि किसी भी माल का।
Like · · Share · 14 hours ago ·
Harsh Vardhan and 21 others like this.
DrAshok Kumar Tiwari बिल्कुल सच कहा आपने मैं इसका भुक्तभोगी हू रहा हूँ !
DrAshok Kumar Tiwari आज टी.वी. पर देख रहा था महिला समिति की नेत्रियों का बयान आ रहा था कि कुमार विश्वास अपने चार साल के पुराने महिलाओं के प्रति मजाक वाली कविता पर माफी माँगें तो ये "कमेडी नाइट्स विथ कपिल" पर केस क्यों नहीं करते वो तो रोज महिलाओं विशेषकरके अपनी पत्नी का मजा...See More
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13 hours ago · Like · 1
Sudhir Suman
अइसन गांव बना दे, जहां अत्याचार ना रहे
जहां सपनों में जालिम जमींदार ना रहे....
हम त शुरूए में कहलीं कि सुलहा सुराज ई कुराज हो गइल
रहे जेकरा प आशा-भरोसा उ नेता दगाबाज हो गइल।...
हमनी देशवा के नाया रचवैया हइं जा
हमनी साथी हइं आपस में भईया हइं जा...
24 जनवरी को इंकलाबी स्वाधीनता सेनानी जनकवि रमता जी का स्मृति दिवस है. इस मौके पर आयोजित हो रहे संकल्प सभा का पर्चा
http://jansahity.blogspot.in/2014/01/24-2014.html
रमता जी स्मृति दिवस, 24 जनवरी 2014
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Aam Aadmi Party
"तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा"
We pay homage to this great freedom fighter of India, Netaji Subhash Chandra Bose on his 117th birth anniversary.
Jai Hind.
Like · · Share · 8,7685771,226 · 2 hours ago · Edited ·
14 hours ago via mobile ·
नाम बड़े दर्शन छोटे / काका हाथरसी
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नाम-रूप के भेद पर कभी किया है गौर?
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नाम मिला कुछ और तो, शक्ल-अक्ल कुछ और।
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शक्ल-अक्ल कुछ और, नैनसुख देखे काने,
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बाबू सुंदरलाल बनाए ऐंचकताने।
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कहं 'काका' कवि, दयारामजी मारे मच्छर,
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विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर।
मुंशी चंदालाल का तारकोल-सा रूप,
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श्यामलाल का रंग है, जैसे खिलती धूप।
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जैसे खिलती धूप, सजे बुश्शर्ट हैण्ट में-
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ज्ञानचंद छ्ह बार फेल हो गए टैंथ में।
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कहं 'काका' ज्वालाप्रसादजी बिल्कुल ठंडे,
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पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे।
देख, अशर्फीलाल के घर में टूटी खाट,
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सेठ छदम्मीलाल के मील चल रहे आठ।
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मील चल रहे आठ, कर्म के मिटें न लेखे,
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धनीरामजी हमने प्राय: निर्धन देखे।
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कहं 'काका' कवि, दूल्हेराम मर गए कंवारे,
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बिना प्रियतमा तड़पें प्रीतमसिंह बिचारे।
दीन श्रमिक भड़का दिए, करवा दी हड़ताल,
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मिल-मालिक से खा गए रिश्वत दीनदयाल।
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रिश्वत दीनदयाल, करम को ठोंक रहे हैं,
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ठाकुर शेरसिंह पर कुत्ते भोंक रहे हैं।
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'काका' छ्ह फिट लंबे छोटूराम बनाए,
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नाम दिगम्बरसिंह वस्त्र ग्यारह लटकाए।
पेट न अपना भर सके जीवन-भर जगपाल,
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बिना सूंड के सैकड़ों मिलें गणेशीलाल।
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मिलें गणेशीलाल, पैंट की क्रीज सम्हारी-
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बैग कुली को दिया चले मिस्टर गिरिधारी।
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कहं 'काका' कविराय, करें लाखों का सट्टा,
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नाम हवेलीराम किराए का है अट्टा।
दूर युद्ध से भागते, नाम रखा रणधीर,
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भागचंद की आज तक सोई है तकदीर।
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सोई है तकदीर, बहुत-से देखे-भाले,
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निकले प्रिय सुखदेव सभी, दु:ख देने वाले।
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कहं 'काका' कविराय, आंकड़े बिल्कुल सच्चे,
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बालकराम ब्रह्मचारी के बारह बच्चे।
चतुरसेन बुद्धू मिले, बुद्धसेन निर्बुद्ध,
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श्री आनन्दीलालजी रहें सर्वदा क्रुद्ध।
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रहें सर्वदा क्रुद्ध, मास्टर चक्कर खाते,
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इंसानों को मुंशी, तोताराम पढ़ाते,
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कहं 'काका', बलवीरसिंहजी लटे हुए हैं,
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थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुए हैं।
बेच रहे हैं कोयला, लाला हीरालाल,
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सूखे गंगारामजी, रूखे मक्खनलाल।
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रूखे मक्खनलाल, झींकते दादा-दादी-
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निकले बेटा आसाराम निराशावादी।
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कहं 'काका', कवि भीमसेन पिद्दी-से दिखते,
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कविवर 'दिनकर' छायावादी कविता लिखते।
आकुल-व्याकुल दीखते शर्मा परमानंद,
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कार्य अधूरा छोड़कर भागे पूरनचंद।
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भागे पूरनचंद, अमरजी मरते देखे,
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मिश्रीबाबू कड़वी बातें करते देखे।
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कहं 'काका' भण्डारसिंहजी रोते-थोते,
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बीत गया जीवन विनोद का रोते-धोते।
शीला जीजी लड़ रही, सरला करती शोर,
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कुसुम, कमल, पुष्पा, सुमन निकलीं बड़ी कठोर।
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निकलीं बड़ी कठोर, निर्मला मन की मैली
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सुधा सहेली अमृतबाई सुनीं विषैली।
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कहं 'काका' कवि, बाबू जी क्या देखा तुमने?
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बल्ली जैसी मिस लल्ली देखी है हमने।
तेजपालजी मौथरे, मरियल-से मलखान,
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लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान।
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करी न कौड़ी दान, बात अचरज की भाई,
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वंशीधर ने जीवन-भर वंशी न बजाई।
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कहं 'काका' कवि, फूलचंदनजी इतने भारी-
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दर्शन करके कुर्सी टूट जाय बेचारी।
खट्टे-खारी-खुरखुरे मृदुलाजी के बैन,
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मृगनैनी के देखिए चिलगोजा-से नैन।
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चिलगोजा-से नैन, शांता करती दंगा,
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नल पर न्हातीं गोदावरी, गोमती, गंगा।
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कहं 'काका' कवि, लज्जावती दहाड़ रही है,
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दर्शनदेवी लम्बा घूंघट काढ़ रही है।
कलीयुग में कैसे निभे पति-पत्नी का साथ,
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चपलादेवी को मिले बाबू भोलानाथ।
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बाबू भोलानाथ, कहां तक कहें कहानी,
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पंडित रामचंद्र की पत्नी राधारानी।
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'काका' लक्ष्मीनारायण की गृहणी रीता,
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कृष्णचंद्र की वाइफ बनकर आई सीता।
अज्ञानी निकले निरे, पंडित ज्ञानीराम,
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कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम।
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रक्खा दशरथ नाम, मेल क्या खुब मिलाया,
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दूल्हा संतराम को आई दुलहिन माया।
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'काका' कोई-कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा-
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पार्वतीदेवी है शिवशंकर की अम्मा।
पूंछ न आधी इंच भी, कहलाते हनुमान,
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मिले न अर्जुनलाल के घर में तीर-कमान।
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घर में तीर-कमान, बदी करता है नेका,
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तीर्थराज ने कभी इलाहाबाद न देखा।
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सत्यपाल 'काका' की रकम डकार चुके हैं,
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विजयसिंह दस बार इलैक्शन हार चुके हैं।
सुखीरामजी अति दुखी, दुखीराम अलमस्त,
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हिकमतराय हकीमजी रहें सदा अस्वस्थ।
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रहें सदा अस्वस्थ, प्रभु की देखो माया,
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प्रेमचंद में रत्ती-भर भी प्रेम न पाया।
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कहं 'काका' जब व्रत-उपवासों के दिन आते,
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त्यागी साहब, अन्न त्यागकार रिश्वत खाते।
रामराज के घाट पर आता जब भूचाल,
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लुढ़क जायं श्री तख्तमल, बैठें घूरेलाल।
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बैठें घूरेलाल, रंग किस्मत दिखलाती,
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इतरसिंह के कपड़ों में भी बदबू आती।
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कहं 'काका', गंभीरसिंह मुंह फाड़ रहे हैं,
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महाराज लाला की गद्दी झाड़ रहे हैं।
दूधनाथजी पी रहे सपरेटा की चाय,
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गुरू गोपालप्रसाद के घर में मिली न गाय।
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घर में मिली न गाय, समझ लो असली कारण-
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मक्खन छोड़ डालडा खाते बृजनारायण।
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'काका', प्यारेलाल सदा गुर्राते देखे,
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हरिश्चंद्रजी झूठे केस लड़ाते देखे।
रूपराम के रूप की निन्दा करते मित्र,
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चकित रह गए देखकर कामराज का चित्र।
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कामराज का चित्र, थक गए करके विनती,
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यादराम को याद न होती सौ तक गिनती,
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कहं 'काका' कविराय, बड़े निकले बेदर्दी,
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भरतराम ने चरतराम पर नालिश कर दी।
नाम-धाम से काम का क्या है सामंजस्य?
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किसी पार्टी के नहीं झंडाराम सदस्य।
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झंडाराम सदस्य, भाग्य की मिटें न रेखा,
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स्वर्णसिंह के हाथ कड़ा लोहे का देखा।
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कहं 'काका', कंठस्थ करो, यह बड़े काम की,
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माला पूरी हुई एक सौ आठ नाम की।
DrKavita Vachaknavee and 9 others like this.
Mahendra Sharma वाह! क्या खूब कविता उद्धृत की है, जगदीश्वर जी।
Palash Biswas most relevant quote.We read everything that kaka wrote during seventies.
Uttam Sengupta shared Samantha Modi's photo.
This is what I meant when i said Mr kejriwal and his merry band will gain new converts and become even more self righteousness, convinced that they are also God's gift !
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Aam Aadmi Party
The Online Voter Registration for 2014 elections open up from 21st January.
The link to the website is http://eci.nic.in/eci/eci.html.
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Panini Anand
जिस दिन Musadiq Sanwal मुसद्दिक गया, मैं रात भर बेचैन था. बिना यह जाने कि एक मितर चला गया. सारी रात दर्द और ख़ौफ़ में कटी. जान हलक तक आती रही. समझ नहीं पाया कि क्या हुआ. इतने बरसों की दोस्ती और कबीर पर काम करने के वादे अब सदा के लिए सो गए. मुसद्दिक गए और उसी के साथ टिपनिया के साथ एक कारगर काम कबीर पर पाकिस्तान में करने की कोशिश भी फ़ना हो गई. हम अधूरे रह गए सुलगते कशों और तैरते सुरों के बीच. मुल्तान की मिट्टी में जन्मा यह अदीब, गायक और सूफ़ी अजब फितरत का था. कितना तो खुला और खोलो तो कोई छोर ही न हो जैसे. पाकिस्तान ने एक शानदार पत्रकार खो दिया, जुनूबी एशिया और मुल्तान ने एक महान फ़नकार खो दिया और मेरा तो मितर मेरा यार चला गया. चल खुसरो घर आपणे, जो सांझ भई चहु देस...https://www.youtube.com/watch?v=VKwYtG8RRV0
Musaddiq Sanwal SIngs Shah Hussain
Musaddiq Sanwal, singing Shah Hussain. Beautiful rendering.
Ak Pankaj
रही वामपंथी धारा तो वह तो आदिवासियत के सवाल पर बंटा हुआ है ही. वरना 40 वर्ष पहले कामरेड एके राय और विनोद बिहारी महतो सीपीएम से निकाले नहीं जाते. इस वैचारिक मतभेद को ढकने-पोतने के लिए तो साल सकम अस्तित्व में नहीं आया है. झारखंड के साथ समस्या यह है कि जो झारखंडी हैं वे समाजवादी नहीं और जो समाजवादी हैं, वे झारखंडी नहीं. कामरेड महेंद्र सिंह अपवाद थे.
ढकने पोतने के लिए नहीं बना साल सकम पिछले कुछ दिनों से यहां-वहां आवाजाही में लगा रहा हूं. इस बीच कंप्यूटर खोलने का मौका ही नहीं मिला. आज देखा तो पाया कि साल सकम ...See More
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Bishwanath Mahato and 10 others like this.
Om Prakash ye congress, bjp, aap, communist, mamta, jaylalita, patnayak ye sabhi adivasi virodhi log hai, ye sirf vote mangane ke liye garibi hatao nara dete hai, dhyan bhhatakane ke liye lokpal late, kisano ki jamin harapne ke liye nano late hai, posco late hai. Aur to aur ab log adivasi ko vanvasi kahne ka sadyantra kar rahe hai aur safal bhi ho rahe hai.
17 hours ago · Like · 1
Om Prakash mujhe to aisa lagta hai adivasi netao ko sambidhan mein adivasio ke liye kiya special provision bhi sayad nahi malum hai. Adivasio jo jagrit karne ki jarurat hai.
Giridhari Goswami बिनोद बिहारी महतो १९५७ में दुसरे आम चुनाव में सी.पी.आई. के टिकट पर चुनाव लड़ चुके थे, खोरठा कवी श्रीनिवास पानुरी उनके आन्दोलन में कविता लिख रहे थे, 'मान भुमिक माटीक तरे सोना हिरा मानिक फोरे, ताव पेटेक जालायं हाय,मानभुमेक लोक मोरे' जब बिनोद बिहारी महतो ...See More
Uttam Sengupta
Both AAP and the media appear to be hostile to each other at this point of time. AAP and a large section of the people believe the media to be lapdogs and 'sold out' while the media think of AAP as amateurs. Worth reflecting where we stand.
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जनज्वार डॉटकॉम with Naresh Chandra Naudiyal and 49 others
जिस गांधी की शिक्षाओं को कांग्रेस ने पूरी तरह बिसरा दिया है, उसका एक फीसदी भी अगर केजरीवाल लागू कर पाते हैं तो भविष्य में परिवर्तन के कारक बनने से उन्हें कौन रोक सकता है. बाकी आलोचना की बात है तो मुकम्मल कौन है राजनीति के हमाम में, पर तुलनात्मक रूप से आम जन को चुनाव की नयी स्थिति में तो ला ही दिया है आप की राजनीति ने...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4727-arajkata-ka-yah-rasta-loktantra-ka-mahamarg-banayega-for-janjwar-by-kumar-mukul
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जनज्वार डॉटकॉम, Girijesh Tiwari, Dharmendra Singh and 32 others like this.
Ashok Kumar Sharma Unfortunately, the Left in India is still not learning any lessons and is busy with complicated books written more than a century ago.
20 hours ago · Like · 2
Suresh Swapnil भारत में 'लेफ़्ट' का नाम अभी तक जीवित है, यही सोच-सोच कर ख़ुश होते रहते हैं बेचारे !
Ish Mishra हा हा
Subhash Srivastava LIKE
Satya Narayan
लोग राजनीति में सदा छल और आत्मप्रवंचना के नादान शिकार हुए हैं और तब तक होते रहेगें जब तक वे नैतिक, धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक कथनों, घोषणाओं और वायदों के पीछे किसी न किसी वर्ग के हितों का पता लगाना नही सीखेंगे।
लेनिन
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Harsh Vardhan and 22 others like this.
Haris Wasi YAAR AGR INSAAN CHAVE TO DUNIYA ME SAB THIK HO JAVE AUR EK KHUSHAAL AUR INSAANI AAZADI KE DUNIYA NIRMAAN KRLE
Gladson Dungdung added 4 new photos to the album Press Meet for Fair compensation.
Today, we had a Press Meet in Ranchi on the issue of fair and just compensation. The Power Grid Corporation of India has cut down thousands and thousands of old trees of the Adivasis, their land was also captured and harvest was also destroyed. The most unfortunate part is they were neither informed nor consented. The govt promised them to provide adequate compensation but they're still waiting for it. The villagers have decided not to allow such project to progress till their demands are fulfill.
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Samit Carr, Papu Bauri and 32 others like this.
Db Dranut very nice, here also ONGC are doing like that and we r stopping them too.
Pradip Kumar Hansda WHY ADIVASIS ARE GETTING DEPRIVED OF THEIR LEGAL RIGHTS? JHARKHAND STATE HAS LEGAL PROVISIONS LIKE 5TH SCHEDULE OF CONSTITUTION, PESA ACT, SPT & CNP TENANCY ACT, THERE ALONG JHARKHAND HAS AN ADIVASI CHIEF MINISTER. WILL WE HAVE TO COME TO THE CONCLUSION THAT ALL THE LEGAL RIGHTS GIVEN TO THE ADIVASIS ARE INADEQUATE TO SAFEGUARD THE INTERESTS OF ADIVASIS?
S.r. Darapuri
Inter caste marriages in large numbers .can help in breaking caste system to some extent
Defying taboo in inter-caste love story - IOL Lifestyle | IOL.co.za
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Anita Bharti, Animesh Bahadur, Ram Dular and 35 others like this.
Krishnavanshi Mayank inter caste marriage ka to pta nhi lakin pyar mohabbat me padke hi insan in caste religion ke bevajah ke chochlo se mukti pane ki sochne lagta h.......or vaise bhi desh ka yuva ab badal rha or aage or badlega......
Kuldip Singh But Dalits maintain forcefully their caste identity , rare of rarest cases we have seen inter caste marriage with in dalit community..why they use ja Bheem or Namoh Budhaay
17 hours ago · Like · 1
S.r. Darapuri Charanjit Singh Bons: Pl give some details of Russian experiment if possible.
Dalit View :-q>अपनी जाति से बाहर की लड़की से विवाह करके मेरे बेटे ने न केवल मेरी प्रतिष्ठा खराब की है बल्कि 400 सालों से हमारे खानदान की परंपरा को भी ध्वस्त कर दिया है. अब उसे अपनी गलतियों का हरजाना मुझे चुकाना होगा. उसे बाप के नाम के तौर पर मेरे नाम का इस्तेमाल ...See More
जब बाप ने ठोंका बेटे पर एक करोड़ का मुकदमा - BBC Hindi - भारत
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मामला दिलचस्प है और इससे ये भी पता चलता है कि समाज में जाति की जड़ें कितनी गहरी ...See More
Palash Biswas agree.
Lalajee Nirmal
बहुजनो को सत्ता , शक्ति के श्रोतो और सभी संसाधनों में भागीदारी मिले फिर हम सदाचार और भ्रष्टाचार पर विचार करेगे |यह हमारे लिए कोई एजेंडा नहीं है |
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H L Dusadh Dusadh, Siddharth Kalhans, Satyendra Murli and 25 others like this.
Sandeep Verma तब तक भ्रष्टाचार से बहुजनो के हक़ एवं संसाधनों को लुटने दिया जाय .
H L Dusadh Dusadh संदीप जी मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या अर्थीक और सामाजिक गैर-बराबरी है जो शक्ति के स्रोतों असमान बंटवारे से होती है.अतः विश्व में सर्वाधिक गैर-बराबरी की समस्या से जूझ रहे भारत के वंचितों के एजेंडे में १ से लेकर ९ तक शक्ति के स्रोतों का बटवारा होना चाहि...See More
4 hours ago · Like · 2
Sandeep Verma दुसाध जी ,इस पर मै आमने सामने बैठ कर चर्चा करना चाहूँगा . इसलिए चर्चा से बचने की कोशिश कर रहा हूँ .
Harikeshwar Ram lekin soshli bhrashto ka nakali bhrashtachar hi mudda hai .iske do faiyede hai pahla yah hai bahusankhyko ko purv ki tarah punah rakshs sabit karna dusra arthik garbarabari ke mudde ko dabaya jana aur bahujano ke bich fail rahe vidroh se dhyan hatakar apne ko surakshit rakhna .isse bhi bachne ka agenda hona chahiye .
गंगा सहाय मीणा
क्या इस आदिवासी लड़की को न्याय दिलाने के लिए महिला आयोग संज्ञान लेगा? क्या इसके लिए रायसीना हिल पर दिल्ली की आवाज बुलंद होगी? क्या इस महिला के पक्ष में हमारे प्रगतिशील एंकर प्राइम टाइम पर स्टोरी कर जाति पंचायतों और पश्चिम बंगाल सरकार को कटघरे में खड़ा करेंगे? क्या वंचित तबकों के हक में जाति पंचायतों को अवैध ठहराया जाएगा?
पंचायत का फरमान, लड़की से 13 लोगों ने किया गैंगरेप - Desh - LiveHindustan.com
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Amalendu Upadhyaya
http://www.hastakshep.com/uncategorized/2011/01/22/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7-%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6-%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0
सुभाष चंद बोस की जयन्ती पर विशेष
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Vallabh Pandey
आज बनारस में अकलेस भईया क रैली हौ.... हम त ना गईलीं.... सखी लोग गईल हैं.... देखीं हमहन बदे कउन घोसना करत हउवन ......
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S.r. Darapuri shared a link.
नामदेव ढसाल: 'वह भारतीय कविता का आम्बेडकर था' - BBC Hindi - भारत
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Prakash K Ray
Noted activist and educationist Mary Roy joins Aam Aadmi Party. Roy is also known to fight a successful legal battle for ensuring inheritance right of Christian women over family properties in Kerala. Last week, Malayalam novelist and campaigner Sara Joseph had joined Arvind Kejriwal-led party.
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Uday Prakash, Arun Dev, Ashutosh Singh and 21 others like this.
Neeraj Singh At least they will ask tough questions to Mr.Kumar Biswas about racist remarks made by him on women of Kerala
16 hours ago · Like · 1
Prakash K Ray Sanjay Ji, Ganga pahli baar nahin bahi hai. Aur waise bhi haath dhona achchhi baat hai. Kuchh log to khun ya kaalikh se sane haath bhi nahin dhote.
14 hours ago · Like · 1
Manish Chiranjiv Aap kuch khulasa karne ja rahe the
Prakash K Ray That was about the negotiations.
Jagannath Chatterjee
A new study in the Journal of the American Medical Association examined 188 new drugs that were approved by the FDA between 2005 and 2012 for 206 indications on the basis of 448 pivotal efficacy trials, but found that one-third of the indications were approved on the basis of just a single trial. And trials using surrogate endpoints as a primary outcome were the only basis of approval for 91 indications.
Quality Of Evidence Used By FDA To Approve New Drugs Varies Widely
Like · · Share · 45 minutes ago near Bhubaneswar ·
Navbharat Times Online
रिजर्व बैंक 2005 से पहले जारी सभी नोट वापस लेगा। ऐसे नोटों की पहचान आसानी से की जा सकती है। 2005 से पहले के नोटों के पिछले हिस्से पर आजकल जारी नोटों की तरह प्रकाशन का साल नहीं लिखा होता। ... तो आपने चेक किया अपना नोट!
पढ़ें खबर
http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/01---2005---/articleshow/29211950.cms
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जनज्वार डॉटकॉम with Safikul Islam and 49 others
पूरे मसले को समझने के लिए चंद रोज के बदलाव को समझना ही सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि चंद रोज पहले ही 'आप' प्रमुख अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने भारतीय राजनीति के सत्ताधारी सेक्शन वाले इतिहास में नया अध्याय जोड़ा है. पहली बार भारतीय जनता को एहसास कराया है कि किसी ईमानदार और जनपक्षधर सरकार को उखाड़ने में पूरा भ्रष्टाचारी तंत्र एक है. दिल्ली के मुख्यमंत्री की इतनी औकात नहीं है कि वह थानाध्यक्षों तक को निलंबित करा सके...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4731-bhrshtachari-lage-hain-dushprachar-men-for-janjwar-by-kabir
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Eye witness account of Malviya Nagar incident!
Eye witness says the women were caught red handed in Malviya Nagar.
Is any more proof is needed about what happened that night?
News courtesy: CNN-IBN
जनज्वार डॉटकॉम with Vishnu Sharma and 49 others
हमारी बेइज्जती होती है जब तुम कंधे से कन्धा मिलाकर चलती हो. हमारे सामने हिम्मत से खड़ी होती हो. हमसे बेहतर काम करती हो. हमें चैलेंज करती हो. देखो! ये घूमना-फिरना तो ठीक है, लेकिन हमारे घर की इज्ज़त सिर्फ साडी और सूट सलवार वालियों से ही संभल सकती है...http://www.janjwar.com/society/1-society/4719-sunanda-tum-bhi-mard-ashrit-hi-nikali-for-janjwar-facebook-wall-of-aruna-roy
Unlike · · Share · January 21 at 12:16pm ·
Punjabstudentsunion Psu shared Bhalachandra Shadangi's photo.
Like · · Share · 56 minutes ago ·
Harnot Sr Harnot shared his album: शिमला-तेरे रूप अनेक.
मुझे तो शिमला की इन वादियों में,
जन्नत की तस्वीर नजर आती है।
छाया-एस आर हरनोट
Unlike · · Share · 41 minutes ago ·
Dalit Mat with Avinash D Kadam
Feb Issue Ready. For Subscription call on 09650645600
Pay Rs. 300 For 1 YEAR, Rs. 500 for 2 year
Dalit Dastak
A/c- 1518002100509028
Punjab National Bank
Branch- Patparganj, N.Delhi - 92
IFSC CODE- PUNB0151800
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Pramod Ranjan
जनसत्ता, 23, जनवरी, 2014 से एक सूचना। फेसबुक पर कहीं नहीं दिखी, इसलिए शेयर कर रहा हूं। वैसे, अरूंधति ने खुद अन्ना आंदोलन का पुरजोर विरोध किया था। बहरहाल, यह उनकी मां का अपना फैसला हो सकता है।
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The Economic Times
Modi to Mulayam: Making Gujarat means providing 24/7 electricity
Like · · Share · 4222122 · about an hour ago ·
Aam Aadmi Party
Kejriwal's Delhi Dharna – This is not anarchy, Mr Home Minister, This is Revolution
By Avay Shukla, Retired IAS
A must read blog: http://hillpost.in/2014/01/kejriwals-delhi-dharna-this-is-not-anarchy-mr-home-minister-this-is-revolution/97741/
Jai Hind.
Like · · Share · 5,362573845 · about an hour ago ·
Kamayani Bali Mahabal
» Giving Dalits their due - Kractivism
» Giving Dalits their due - Kractivism
Like · · Share · about an hour ago ·
Jitendra Visariya shared Abdul H Khan's photo.
इसको मज़हब कहो, या सियासत कहो, ख़ुदकुशी का हुनर तुम सिखा तो चले । बेलचे लाओ, खोलो ज़मीं की तहें, मैं कहाँ दफ़्न हूँ, कुछ पता तो चले । -कैफ़ी आज़मी
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Navbharat Times Online
'खून के बदले आजादी देने' का नारा बुलंद करने वाले सुभाष चंद्र बोस का आज जन्मदिवस है।
जानिए नेताजी के जीवन की कुछ अनकही-अनसुनी बातें... http://nbt.in/PJjQbY
Like · · Share · 2,52373185 · 40 minutes ago ·
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