लेकिन तनिक विचार जरुर करें कि यह वैमनस्य से लबालब भेदभाव कोई मुद्दा है या नहीं।
उत्तराखंड में हम लोग अब भी साझा चूल्हा के हिस्सेदार हैं,मुझे मरते हुए इसीलिए भेदभाव के बंगाल के बजाय उत्तराखंड में जनमने का गर्व रहेगा।
पलाश विश्वास
सिखों की राजनीति लिखकर मित्रों को भेजते भेजते कल रात भोर में तब्दील हो गयी। रिजर्व बैंक की ओर से 2005 के करंसी नोटों को खारिज करने की कार्रवाई का खुलासा करने के मकसद से तैयारी कर रहा हूं जबसे यह घोषणा हुई तबसे। आज लिखने का इरादा था।
लेकिन मार्च से पहले अभी काफी वक्त है । इस पर हम लोग बाद में भी चर्चा कर सकते हैं।इसलिए फिलहाल यह संवाद विषय स्थगित है।
बसंतीपुर के नेताजी जयंती समारोह की चर्चा करते हुए हमने उत्तराखंड की पहली केशरिया सरकार की ओर से वहां 1952 से पुनर्वासित सभी बंगाली शरणार्थियों को विदेशी घुसपैठिया करार दिये जाने की चर्चा की थी।
इन्हीं बंगाली शरणार्थियों की नागरिकता के सवाल पर साम्यवादी साथियों की चुप्पी की वजह से पहलीबार हमें अंबेडकरी आंदोलन में खुलकर शामिल होना पड़ा है।
हम बार बार विभाजन कीत्रासदी पर हिंदी,बांग्ला और अंग्रेजी में लिखते रहे हैं,क्योंकि भारत में बसे विभाजनपीड़ितों की कथा व्यथा यह है।
इस विभाजन में केंद्रीय नेताओं के मुकाबले बंगाल के सत्तावर्ग की निर्णायक भूमिका का खुलासा भी हमने बार बार किया है।
इसी सिलसिले में शरणार्थियों के प्रति सत्तावर्ग के शत्रुतापूर्ण रवैये के सिलसिले में हमने बार बार मरीचझांपी जनसंहार की कथा सुनायी है।
जिसपर आज भी भद्रलोक बंगाल सिरे से खामोश हैं।
यही नहीं, विभाजनपीड़ित बंगाली दलित शरणार्थियों के देश निकाले अभियान की शुरुआत जिस नागरिकता संशोधन कानून से हुई ,उसे पास कराने में बंगाल के सारे राजनीतिक दलों की सहमति थी।
हमने उत्तराखंड, ओड़ीशा, महाराष्ट्र से लेकर देशभर में चितरा दिये गये बंगाली दलित शरणार्थियों के बंगाल से बाहर स्थानीय लोगों के बिना शर्त समर्थन के बारे में भी बार बार लिखा है।
असम में भी जहां विदेशी घुसपैठियों के खिलाप आंदोलन होते रहते हैं,वहां गुवाहाटी में दलित बंगाली शरणार्थियों को नागरिकता देने की मांग लेकर सभी समुदायों की लाखों की रैली होती है।
हमने इस सिलसिले में उत्तराखंड में होने वाले जनांदोलनों में तराई और पहाड़ के सभी समुदायों की हिस्सेदारी की रपटें 1973 से लगातार लिखी है।
1973 से देश भर में मेरा लिखा प्रकाशित होता रहा तो अंग्रेजी में जब लिखना शुरु किया तो बांग्लादेश, पाकिस्तान,क्यूबा,म्यांमार और चीन देशों में वे लेख तब तक छपते रहे जबतक हम छपने के ही मकसद से प्रिंट फार्मेट में लिखते रहे।
लेकिन बंगाल में तेईस साल से रहने के बावजूद बांग्लादेश में खूब छपने के बावजूद मेरा बांग्ला लिखा भी बंगाल में नहीं छपा। अंग्रेजी और हिंदी में लिखा भी नहीं।
हम देशभर के लोगों से बिना किसी भेदभाव के कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, पूर्वोत्तर लेकर कच्छ तक, मध्यभारत और हिमालय के अस्पृश्य डूब बेदखल जमीन के लोगों को बिना भेदभाव संबोधित करते रहे हैं और उनसे निरंतर संवाद करते रहे हैं।
बाकी देश में मुझे लिखने से किसी ने आज तक रोका नहीं है।
कल जो सिखों की राजनीति पर लिखा,जैसा कि सिख संहार को मैं हमेशा हरित क्रांति के अर्थशास्त्र और ग्लोबीकरण एकाधिकारवादी कारोपोरेट राज के तहत भोपाल गैस त्रासदी और बाबरी विध्वंस के साथ जोड़कर हमेशा लिखता रहा हूं और पंजाबियत के बंटवारे पर भारत विभाजन के बारे में लिखा है,अकाली राजनीति के भगवेकरण की तीखी आलोचना की है। लेकिन किसी सिख या अकाली ने मुझसे कभी नहीं कहा कि मत लिखो।
इसी लेख पर बंगाल से किन्हीं सव्यसाची चक्रवर्ती ने मंतव्य कर दिया कि किसी बांग्लादेशी शरणार्थी को भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करने की जरुरत नहीं है।
इससे पहले नामदेव धसाल पर मेरे आलेख का लिंक देने पर भद्रलोक फेसबुक मंडली से चेतावनी जारी होने पर मैं खुद उस ग्रुप से बाहर हो गया।नामदेव धसाल पर लिखने की यह प्रतिक्रिया है।
हिंदी और मराठी के अलावा बाकी भारतीय भाषाओं में दलित,आदिवासी और पिछड़ा साहित्य को स्वीकृति मिली हुई है। लेकिन बांग्ला वर्ण वर्चस्वी समाज ने न दलित,न आदिवासी और न पिछड़ा कोई साहित्य किसी को मंजूर है।
परिवर्तन राज में हुआ यह है कि वाम शासन के जमाने से कोलकाता पुस्तक मेले के लघु पत्रिका मंडप में बांग्ला दलित साहित्य को जो मेज मिलती थी,इसबार उसकी भी इजाजत नहीं दी गयी।
बांग्ला दलित साहित्य के संस्थापक व अध्यक्ष मनोहर मौलि विश्वास ने अफसोस जताते हुए कि बांग्ला में कहीं भी दलित साहित्यकार ओमप्रकाश बाल्मीकि या कवि नामदेव धसाल के निधन पर कुछ भी नहीं छपा।जब पेसबुक लिंक पर हो लोगों को ऐतराज हो तो इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
मनोहर दा ने कहा कि पुस्तकमेले के व्यवस्थापकों को दलित शब्द से ऐतराज है।
उन्होंने बताया कि हारकर उन्होंने अपनी अंग्रेजी पत्रिका दलित मिरर के लिए अलग टेबिल की इजाजत मांगी और उससे भी सिरे से दलित शब्द के लिए मना कर दिया गया।
प्रगतिशील क्रांतिकारी उदार आंदोलनकारी बंगाल की छवि लेकिन अब भी देश में सबसे चालू सिक्का है।उसीका खोट उजागर करने के लिए निहायत निजी बातों का भी खुलासा मुझे भुक्तभोगी बाहैसियत करना पड़ा।
प्रासंगिक मुद्दे से भटकाव के लिए हमारे पाठक हमें माफ करें।
लेकिन तनिक विचार करे कि यह वैमनस्य से लबालब भेदभाव कोई मुद्दा है या नहीं।
मेरे पिता 1947 के बाद इस पार चले आये, पूर्वी बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश की तराई में 1958 के ढिमरी ब्लाक तक भूमि आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1969 में ही दिनेशपुर के लोगों को भूमिधारी हक मिल गया था। हम तराई में जनमे और पहाड़ में पले बढ़े। हमें किस आधार पर बांग्ला देशी शरणार्थी कहा जा रहा है।इसी सिलसिले में आपको बता दूं कि मेरे बेटे को 2012 में एक बहुत बड़े एनजीओ से सांप्रदायिकता पर फैलोशिप मंजूर हुई थी। दिल्ली में उस एनजीओ की महिला मुख्याधिकारी जो संजोगसे चक्रवर्ती ही थीं, ने उसे देखते ही बांग्लादेशी करार दिया और कहा कि सारे पूर्वी बंगाल मूल के लोग विदेशी हैं।तुम विदेशी हो और तुम्हें हम काम नहीं करने देंगे।आननफानन में उसकी फैलोशिप रद्द कर दी गयी।आदरणीय राम पुनियानी जो को यह कथा मालूम है।बस,हमने इसे अपवाद मानते हुए आपसे साझा नहीं किया था।पुनियानी जी ने तब अनहद में उसके काम करने का प्रस्ताव किया था। लेकिन वह एकबार दूध से जलने के बाद छाछ भी पीने को तैयार नहीं हुआ।
मैं उत्तराखंड,झारखंड और छत्तीसगढ़ के आंदोलनो से छात्रजीवन से जुड़ा था। किसीने इसपर कोई ऐतराज नहीं किया। गैरआदिवासी होते हुए मैं हमेशा आदिवासी आयोजनों में शामिल होता रहा हूं,देश के किसी आदिवासी ने मुझसे नहीं कहा कि तुम गैर आदिवासी और दिकू हो। पूर्वोत्तर और दक्षिणभारत में भी ऐसा कोई अनुभव नहीं है।
हमारे पुरातन मित्रों की तरह न मैं कामयाब पत्रकार हूं न कोई कालजयी साहित्यकार हूं।मुझे इसका अफसोस नहीं है बल्कि संतोष है कि अब भी पिता की ही विरासत जी रहा हूं। जनपक्षधर संस्कृतिकर्म के लिए तो अगर पुनर्जन्म के सिद्धांत को सही मान लें,लगातार सक्रियता के लिए सौ सौ जनम लेने पड़ते हैं। हम अपनी दी हुई स्थितियों में जो कर सकते थे,हमेशा करने की कोशिश करते रहे हैं।इस सिलसिले में जब प्रभाष जोशी जी जनसत्ता के प्रधानसंपादक थे,तभी हंस में मेरा आलेख छप गया था कि कैसे बंगाल के सवर्ण वर्चस्व के चलते हमें किनारे कर दिया गया।हमें जो लोग विदेशी बांगलादेशी बताकर लिखने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं,उन्हीं के भाईबंधु मीडिया में सर्वेसर्वा हैं। बंगाल में तो जीवन के हर क्षेत्र में। हमने उनको कोई रियायत नहीं दी है।इतिहास,साहित्य और संस्कृति के मुद्दों पर उनके एकाधिकार को हमेशा चुनौती दी है। गौरतलब है कि उन मुद्दों पर इन लोगों ने कभी प्रतिवाद करनाभी जरुरी नहीं समझा। सिखों के मुद्दे पर सिखों की ओर से हस्तक्षेप का आरोप नहीं लग रहा है,आरोप लगाया जा रहा है तो बंगाल के वर्णवर्चस्वी सत्ता वर्ग से।
इससे आगे हमें खुलासा नहीं करना है। लेकिन उत्तराखंड और देश के दूसरे हिस्सों में गैर बंगाली आम जनता का रवैया हमारे प्रति कितना पारिवारिक है,सिर्फ उसके खुलासे से निजी संकट के इस रोजनमचा को भी साझा कर रहा हूं। उत्तराखंड में हम लोग अब भी साझा चूल्हा के हिस्सेदार हैं,मुझे मरते हुए इसीलिए भेदभाव के बंगाल के बजाय उत्तराखंड में जनमने का गर्व रहेगा।
आज तड़के दिनेशपुर से पंकज का फोन आया सविता को।तब मैं सो रहा था।सविता ने जगाकर कहा कि उसकी मंझली भाभी को दिमाग की नस फट जाने की वजह से हल्द्वानी कृष्मा नर्सिंग होम में भरती किया गया है परसो रात और वह कोमा में है।सविता ने मेरे जागने से पहले ही बसंतीपुर में पद्दोलोचन को फोन कर दिया और वह ढाई घंटे के बीतर हल्द्वानी पहुंच गया।दिनेशपुर में हसविता के मायकेवाले सारे लोग जमा हो गये।उसे बड़े भाई अस्वस्थ्य बिजनौर के धर्मनगरी गांव में हैं।भकी सारे लोग दिनेशपुर और दुर्गापुर में पम्मी और उमा के यहां डेरा डाले हुए हैं और बारी बारी से अस्पताल आ जा रहे हैं।
हल्द्वानी में न्यूरो सर्जरी का कोई इंतजाम नहीं है।नर्सिंग होम में इलाज संभव नहीं है और वहां रोजाना बीस हजार का बिल है।इसी बीच दिल्ली से दुसाध जी का फोन आया और उन्होंने लखनऊ में स्वास्थ्य निदेशक से बात की।फिर उनसे हमारी बात हुई। इसी बीच रुद्रपुर से तिलक राज बेहड़ जी भी कृष्मा नर्सिंग होम पहुंच गये। सविता के भतीजे रथींद्र,दामाद सुभाष और कृष्ण के साथ पद्दो ने तमाम लोगों से परामर्श करके मरीज को देहरादून ज्योली ग्रांट मेडिकल कालेज में स्थानांतरित करने का फैसला लिया।क्योंकि वे लोग दिल्ली में सर्जरी कराने का खर्च उढा नहीं सकते।देहरादून में उन्हें स्थानीय मदद की भी उम्मीद है।वे लोग कल भोर तड़के तक देहरादून पहुंच जाएंगे घोर कुहासे के मध्य,ऐसी उम्मीद है।
अभी अभी पद्दो ने हल्द्वानी से फोन करके बताया कि मरीज को नर्सिंग होम से डिस्चार्ज करवा देहरादून रवाना हो चुके हैं। आगे कठिन समय है। देहरादून में जिन मित्रों की ज्योली ग्रांट मेडिकल कालेज अस्पताल तक पहुंच हैं वे अगर न्यूरोलोजी विभाग में श्रीमती पद्दो विश्वास और उनके परिजनों की कोई मदद इलाज के सिलसिले में कर सकें,तो मौके पर हमारे न पहुंच पाने की कमी पूरी हो सकती है।मेरे भाई का नाम पद्दो है तो सविता की बाभी का नाम बी पद्दो है।बेहद खुशमिजाज पचास साल की इस महिला के लिए हम सारे लोग बेहद चिंतित है।
आजकल दिल की बीमारियों का इलाज और आपरेशन कहीं भी कभी भी संभव है,लेकिन मस्तिष्काघात से हमारे मित्र फुटेला जी तक अभी उबर नहीं सके हैं और हमारे अपने ही लोग दिल्ली तक पहुंचने लायक हालत में नहीं है।फिरभी उत्तराखंड में हमारे परिचितों का दायरा इतना बड़ा है कि हमारे लोग दिल्ली जाने का जोखिम उटाये बगैर उत्तराकंडी विकल्प ही चुनते हैं।बाकी देश में बाकी आम लोगों के साथ क्या बीतती होगी,अपनों पर जब बन आती है ,तभी इसका अहसास हो पाता है।
Mahesh Joshi commented on your post. |
Mahesh wrote: "देहरादून के मित्रों से नैनीताल समाचार की अपील है कृपया पीड़ित परिवार की मदद करैं. पलास दाज्यू पद्योलोचन वा अन्य लोगों का सम्पर्क नंबर भी लिखें." |
प्रभू से हृदय से प्रार्थना है रुग्ण साथी को शीघ्रातिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ दें |
Sabyasachi Chakravarty commented on your post in Narendra Modi Sena West Bengal.
Original Post
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Vidya Bhushan Rawat
हिंदुत्व की जातिवादी मानसिकता का शिकार व्यक्ति चाहे वो 'आम आदमी' हो या ख़ास हमेशा दलित महिला विरोधी, पूर्वाग्रहों का शिकार, मेरिट नाम कि बीमारी से ग्रस्त, कामचोर, दम्भी, नसलवादी सोच वाला होगा। पार्टियां इसमें मायने नहीं रखती क्योंकि मध्यवर्ग भारत में इसी सोच पे आश्रित है और इनके साथ अराजनैतिक दिखने वाले अन्य लोगो यथा बाबा, पाखंडी, ढोंगी सभी का एक ही अजेंडा है के बदलाव के नाम पर देश में आ रहे बदलाव को रोकना। दुसरो से अलग दिखने वाले ये सभी लोगो जाति और सोच में सामंती चरित्र का शिकार हैं और उनकी दबी भावनाएं साफ तौर पर अब जाहिर होने लगी हैं? कुमार विश्वास तो ट्रेलर है और खुला खेल है बाकि सब अंदर से कुछ और और बाहर कुछ और नज़र आते हैं..
Like · · Share · 18 hours ago ·
Both Ambedkar and British recommended separate states for BC/SC/ST/FC/Muslim/Sikh/Christian/Parsi/Jain in 1932 itself.You should live on H1B type visa in those separate states as perhttps://en.m.wikipedia.org/wiki/Communal_Award | 10:09 PM (1 hour ago) | * | |
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Economic Times
Navbharat Times Online
2005 के पहले जारी नोट वापस लेने के फैसले का असर आपके घर से लेकर बाहर तक हो सकता है! पत्नी की सालों की मेहनत हो सकती है बर्बाद तो...
देखिए कुछ मजेदार कार्टून
http://navbharattimes.indiatimes.com/hansi-mazak/hansimazakphotoshow/29280676.cms
Like · · Share · 5,786851,799 · 18 hours ago ·
Economic Times
Economic and Political Weekly
"If the political achievements were so remarkable why did Maoists face such an embarrassing defeat in the second CA elections? It is clear that the Nepali Maoists could not properly explain their achievements – their remarkable and revolutionary nature and what it could mean for livelihoods – to the electorate."
http://www.epw.in/commentary/maoist-defeat-nepal.html
Economic and Political Weekly
"Jhumpa Lahiri's The Lowland can be read as a narrative about what life could be in the absence of the ideological movements of the 1960s and the 1970s shaping the personal (and the political). I particularly aim to read it as a comment on the psychology of the hyper-individualistic self emerging in the post-ideological era and its likely implications for the democratic politics."
http://www.epw.in/commentary/self-and-political.html
India Today
The India Today Group-CVoter Mood of the Nation poll confirms the consistency with which the Modi juggernaut has been conquering the mind space of India and the Manmohan-led UPA regime has been undergoing the most devastating political atrophy of our time.
Do you see BJP gaining further ground before the 2014 elections?
Like · · Share · 1,811449284 · 10 hours ago ·
BBC Hindi
आम आदमी पार्टी ने अपने अधिकारिक फ़ेसबुक पेज पर एक वीडियो पोस्ट किया. वीडियो दिल्ली पुलिस के जवानों से संबंधित है और इस वीडियो के सामने आने के बाद पुलिस तुरत-फुरत हरकत में आ गई है. जानिए क्या है पूरा मामला.
Like · · Share · 932162191 · 8 hours ago ·
Lenin Raghuvanshi
'मेरे बेटे को फांसी मत देना, एक बार उसको मेरे सामने खड़ा कर दो'1998 से मानवाधिकार जननिगरानी समिति ने इस मामले को उठाया था। कई बार राष्ट्रपति से सजा माफ़ी की गुहार भी लगाई गई। जननिगरानी समिति के सचिव डॉ लेलिन ने बताया कि 19 दिसंबर 1997 से सजा काट रहे सुरेश और रामजी को वाराणसी के सेशन कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। अब कई वर्षों की लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस परिवार को राहत दी है।
http://www.bhaskar.com/article/UP-VAR-supreme-court-converted-death-sentence-to-life-imprisonment-4502163-PHO.html
'मेरे बेटे को फांसी मत देना, एक बार उसको मेरे सामने खड़ा कर दो'
सर्वोच्च न्यायालय ने 15 लोगों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है।
Like · · Share · 5 hours ago ·
The Economic Times
IN PICS: #Amul launches India's first milk ATM http://ow.ly/sTUJv
Like · · Share · 14,1532523,555 · 12 hours ago ·
BBC World News
"The more I see of how Brazil is preparing to host the tournament, the more I am convinced the country as a whole will not reap much benefit."http://bbc.in/1mDibEe
Wyre Davies, BBC's Rio de Janeiro correspondent, takes a closer look at the construction delays that have some people questioning whether#Brazil will be ready to host the World Cup this summer.
Photo courtesy of Shaun Botterill/Getty Images.
Like · · Share · 36279113 · about an hour ago ·
Jassi Jasraj
Brutality of Delhi Police....This is insane and inhuman !!
Tuhada ki kehna ess baare?? Kya eh theek hai??
https://www.youtube.com/watch?v=cYuwW6UuaQM
Brutality of Delhi Police near Lal Qila on 12-01-14
This video shows the Inhumane act of Police in Delhi on sunday evening (12-01-14).Expect some action
Unlike · · Share · 9827198 · 6 hours ago ·
Vivek Nirala posted a photo to Kranti Bodh's timeline — withMangalesh Dabral and 45 others.
Aamantran-
Unlike · · Share · 4 hours ago ·
ibnlive.com
Election tracker: Modi top choice, widens lead over Rahul in PM racehttp://ow.ly/sUQBV
Bharatiya Janata Party (BJP) prime ministerial candidate Narendra Modi is the most preferred choice of the voters for the post of PM in 18 states across India. He has got the backing of 34 per cent respondents while Congress Vice President Rahul Gandhi has got the support of 15 per cent.
#ElectionTracker #2014LokSabhaElections #NarendraModi #BJP#Congress
Like · · Share · 1,057175146 · 5 hours ago ·
Vidya Bhushan Rawat likes an article on Indiatimes.
The world is much beyond internet and AAP will realise it soon. The middle class do gooders have not been able to handle Delhi. It is not enough to abuse but prove that you have ideas to change. All their life, these 'revolutionaries' enjoyed the patronage and now want to claim the space meant for those who are fighting the battle. So far 168 deaths due to cold have been reported from Delhi in past 23 days. What has the government done so far ? To hide his inefficiency, Kejriwal is doing this drama. He will have to respond to Supreme Court about his 'dharna'. 'jinke ghar sheeshe ke bane hote hain woh dusro ke gharon pe pathar nahi fankte....
Rahul, Sonia, Modi are new AAP members - The Times of India
Like · · Share · 7 hours ago via Indiatimes ·
Malayalam
Like · · Share · 8658184 · 4 hours ago ·
Aam Aadmi Party
Three policemen suspended due to shocking police brutality video posted by us on FB.
This is the kind of difference we want to bring in the society.
From the next time any policeman should be afraid while showing such atrocity to anybody.
If you come across any such incident don't be afraid to raise your voice or collect proof by recording the incident or taking pictures and mailing to AAP at <SocialMedia@AamAadmiParty.org>...See More — with Priyakant Kapoor and 47 others.
Aam Aadmi Party
A Delhi High Court on Friday declined stay on the Delhi government's order calling for an audit of power distribution companies. The court asked the Comptroller and Auditor General (CAG) to not submit its final report till the case is heard. The apex court also directed the power companies to cooperate fully with the audit.
However, the power companies allege that the audit is a political ploy and that the order was passed with 'malice on law' without giving the DistComs an ...See More — with Pramod Narayan and 7 others.
Aam Aadmi Party
The Aam Aadmi effect is visible in many government offices dealing directly with the public. The crowd of touts waiting outside government offices has suddenly vanished.
The clerks manning the counters are reaching the office before time for fear of stern action following complaints on the Delhi government helpline.
An official said earlier the clerks used to make money from the touts by rejecting applications, but now they are helping the applicants forward their pleas. — with Amit Mishra and 6 others.
Aam Aadmi Party
"Jan Lokpal Bills broad contours have been finalized, and will be taken up in the cabinet early next week. The Chief Minister office will be under the Jan Lokapal Bill," Arvind Kejriwal.
Read more at:
http://economictimes.indiatimes.com/articleshow/29262851.cms — with Rahul Rathore and 15 others.
45 seconds ago near Calcutta ·
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फिर एक बार 'अन्तर्वर्ती वर्ग' और आज के राजनीतिक संक्रमण पर कुछ सोच :
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कल एक पोस्ट में हमने प्रभात पटनायक के लेख 'अन्तवर्ती वर्गों' पर टिप्पणी की थी। 'अन्तर्वर्ती वर्गों' का शासन - दो शिविरों में बंटी दुनिया की खास परिस्थिति में नव-स्वाधीन देशों में विकास का एक गैर-पूंजीवादी रास्ता।
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नेहरूवियन सोशलिज्म, पंचवर्षीय योजनाएं, कमांडिंग हाइट आफ पब्लिक सेक्टर, जमींदारी प्रथा की समाप्ति से लेकर इंदिरा गांधी के जमाने में बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिविपर्स की समाप्ति, कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण से लेकर 1991 के पहले तक चला आरहा कथित लाइसेंस राज इसी 'गैर-पूंजीवादी विकास' के आख्यान की कथाएं हैं। ये कथाएं अन्य बातों के साथ ही भारत के पूंजीपति वर्ग की वास्तविक स्थिति की सचाई का बयान भी है। भारत की नीतियों के निर्धारण में इसकी अशक्तता, शासन के सैद्धांतिक प्रश्नों पर इसकी अक्षमता भी इस आख्यान से व्यक्त होती है जिसे प्रभात के लेख में भी औपनिवेशिक परिस्थितियों का एक अनिवार्य परिणाम बताया गया है।
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बहरहाल, अभी हम पंडित नेहरू और उस पीढ़ी के नेताओं की बात छोड़ भी देते हैं, लेकिन केंद्र में इंदिरा गांधी से आज तक, सिर्फ चंद सालों के अटल बिहारी वाजपेयी के शासन को छोड़ दिया जाए, और राज्यों में ज्योति बसु, मुलायम सिंह, लालू प्रसाद, मायावती, जयललिता, नवीन पटनायक आदि-आदि का पूंजीपतियों के साथ जिसप्रकार का एक दूरी रख कर चलने का व्यवहार रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है, और वह भी इस सचाई की पुष्टि करता है कि भारतीय राजनीति को कठपुतली की तरह सीधे अपने इशारों पर नचाने की कूव्वत भारत के पूंजीपतियों में आज भी उतनी नहीं है।
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क्या मनमोहन सिंह को एक अक्षम और निर्णयहीनता का शिकार प्रधानमंत्री बताने की टीवी चैनलों की चिल्लाहटों के पीछे भी आर्थिक शक्ति के समानुपात में राजनीतिक शक्ति हासिल न कर पाने की उनकी इसी वेदना का आर्तनाद नहीं है?
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यह सच है कि वाजपेयी के शासन में प्रशासनिक सैद्धांतिक प्रश्नों पर प्रत्यक्ष पूंजीपतियों के हस्तक्षेप के कुछ दृश्य दिखाई दिये थे, जब देश के शिक्षामंत्रियों के एक सम्मेलन में भारत की भावी शिक्षा-व्यवस्था का एक ब्लूप्रिंट तक कोलकाता के एक छुटभैये पूंजीपति पी.डी.चितलांगिया से रखवाने की पेशकश की गयी थी। आज जिन टेलिकॉम क्षेत्र और कोयला खानों के आबंटन के क्षेत्र में इतने भारी नीतिगत-निर्णयों से जुड़े भ्रष्टाचार के अभियोग सामने आ रहे हैं, वे सारी नीतियां एनडीए सरकार के समय में ही अपनायी गयी थी।
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जो भी हो, अभी देश में एक प्रकार के परिवर्तन की जो लहर सी दिखाई दे रही है, हमें उसपर थोड़ी गंभीरता से सोचने की जरूरत है। हमारा मानना है कि वे दिन लद चुके हैं जब किसी व्यक्ति की इच्छा-अनिच्छा से, उसकी सद्भावना-दुर्भावना मात्र से अब ऐसी कोई लहर पैदा हो सकती है। न राहुल गांधी से, न नरेंद्र मोदी से और न ही अरविंद केजरीवाल से। यह समय व्यक्तित्वों का नहीं, व्यक्तित्वों के विलोपन का समय है।
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अपनी सीमाओं के प्रति सचेत, कोरा दिखावा करने में असमर्थ, भोली सूरत का, हकलाहटों से भरा राहुल गांधी अपने पारिवारिक राजनीतिक प्रशिक्षण से बनी आदतों के अनुरूप शासन चलाने की एक परिपाटी का प्रतीक है, तो दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी तमाम चारित्रिक कमजोरियों के मामले में हर राजनीतिज्ञ को मात देने वाला, फिर भी आरएसएस की पाठशाला में इतिहास से लेकर तमाम विषयों का अधकचरा ज्ञान रखने वाला एक ऐसा व्यक्ति है जो मानता है कि उसके पास दुनिया के सभी विषयों पर अंतिम राय सुनाने की योग्यता है। एक ओर हकलाहट और दूसरी ओर अनर्गल लफ्फाजी। एक ओर अपनी सीमाओं के अहसास का दबाव और दूसरी ओर सर्वज्ञता के अहंकार की निरंकुशता।
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और, इन दोनों के दायरे से बाहर, उदय हो रहा है - आम आदमी पार्टी (आप) का। इस ऐतिहासिक नियम का प्रमाण कि जब स्थापित व्यवस्था की जीर्ण संस्थाएं जरूरी बदलाव की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ होती है, तभी सामाजिक परिवर्तन की लहरें पैदा होती है। भ्रष्टाचार, राजनीतिज्ञों-नौकरशाही-पुलिस और न्यायतंत्र की बदनाम धुरी से निपटने में अशक्त साबित हो रहे वर्तमान व्यवस्थागत संस्थानों में भारी परिवर्तन की जरूरतों का प्रतिफलन।
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नरेन्द्र मोदी भी एक परिवर्तन की मांग के साथ आए हैं। कांग्रेस के लंबे शासन में परिवर्तन की मांग के साथ। लेकिन आज की व्यवस्था से उनकी यदि कोई शिकायत है तो इसलिये नहीं कि आम आदमी का जीवन तमाम प्रताड़नाओं का शिकार है बल्कि इसलिये क्योंकि उनकी सारी सहानुभूति देश के बड़े-बड़े पूंजीवादी घरानों के साथ है। उसी प्रकार, जिसकी एक झलक एनडीए के वाजपेयी शासन में देखने को मिली थी और जिसकी तमाम परिणतियों को आज हमारा देश भोग रहा है।
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आम आदमी पार्टी को दिल्ली के चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली है। इस सफलता को इस आंदोलन के एक अंक का पटाक्षेप कहा जा सकता है। आगामी लोकसभा चुनाव इस आंदोलन का दूसरा काफी महत्वपूर्ण अंक होगा। पहले अंक के अंत और उसके बाद के नये अंक के प्रारंभ के बीच, फुर्सत के इस 'गहमागहमी' वाले समय में आज की सामजिक-राजनीतिक परिस्थिति का ठोस जायजा लेते हुए इस आंदोलन के नेतृत्व को सम्भाव्य की सीमाओं को अच्छी तरह समझना होगा, अपने दोस्तों और दुश्मनों के बारे में एक साफ समझ के आधार पर इस नये अंक के पात्रों की भूमिकाओं को तय करना होगा।
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'आप' के पीछे बदलाव की ऐतिहासिक-सामाजिक जरूरतें काम कर रही हैं। इसे कोई कोरा लफ्फाज भुनाने न पायें, इस ओर खास तौर पर सचेत रहने की जरूरत है। — with Jagadishwar Chaturvedi and 5 others.
Navbharat Times Online
मोदी के '56 इंच सीने' पर चुटकी
गोरखपुर रैली में नरेंद्र मोदी के '56 इंच सीना' वाले बयान पर खूब चुटकियां ली जा रही हैं। देखिए क्या कर रहे हैं लोग... http://nbt.in/Yrb7qb
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Arumita Mitra updated her cover photo.
: The spirit and the effort lies in working together hand in hand. And yes 1st Kolkata People's Film festival was a grand success.
People from other states came to visit us and we are endowed with such love and affection.
Yes, we will keep on fighting and we will keep on supporting those director who take the risk of their life to make such movies.
Thanks a lot for your effort to make such movies.
And all the volunteers, spot boys and hall keeper. Thanks to each one of you.
Unlike · · Share · about a minute ago · Edited ·
Aam Aadmi Party
Delhi police is known to be brutal. Every now and then we hear of stories about Delhi police's brutality.
Here is another such video. Not only does the video clearly show Delhi police's inhuman behavior but also the urban legend of police extorting money is caught on camera.
This video was shot by a vigilante near Lal Quila and will the home minister, under whom Delhi police comes, make sure that action is taken against these policemen?
Original video link: https://www.youtube.com/watch?v=cYuwW6UuaQM — with Altaf Siddiqui and 46 others.
Aam Aadmi Party shared a link via Yogendra Yadav.
Social scientist Shiv Vishwanath articulates AAP's quest for full participatory democracy in this opinion piece: "When the citizens of Khirkee objected to its transformation into a red light area, the police and the politicians were indifferent. What Kejriwal argued was that in a democracy where police and Parliament disempower people, a chief minister's place is with the people. Democracy then moves from being representational to becoming direct. Empowerment goes beyond participation and consultation and asks people to decide about their lives.
Decision making is direct. It needs no letters to editor, or permissions from the politician. A locality no longer feels helpless because police is indifferent or a legislator is absent. Kejriwal is also challenging frozen dualisms, questing categories which we have almost rendered sacred."
AAP's battle hymns | Deccan Chronicle
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खास आदमी आम टोपी और हासिये के लोग
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विद्या भूषण रावत
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दिल्ली में ठण्ड से इतनी मौते मैंने पिछले बीस सालो में तो नहीं सुनी जितनी इस बार हुई हैं. बताते हैं के २३ दिनों में अभी तक १७० से अधिक लोग मर चुके हैं. अरविन्द केजरीवाल ने तो पहले ही दिल्ली के हरेक नागरिक को आम आदमी बता दिया इसलिए ये भूख और ठण्ड से मरने वाले लोग तो निस्चय ही आम आदमी नहीं थे. वे वी आई पी भी नहीं थी क्योंकि अगर होते तो खुली सड़क पे न मरते। मंत्री गण जो रात भर लोगो के घरों पर छापे मारी कर रहे थे वे भी इन लोगो को नहीं बचा सके. कहाँ हैं वो ४७ शेल्टर होम्स जो मुख्यमंत्री ने पद ग्रहण करने के तुरंत बाद आर्डर किये थे ? मामला साफ़ है आप का कोई काम बिना मीडिया के नहीं होता और अगर मीडिया इनकी रिपोर्टिंग बंद कर दे सो शायद बहुत से नेता तो बीमार हो जाएँ।
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प्रश्न इस बात का नहीं है के ये मौतें कैसी हुई क्योंकि मात्र एक माह में हम सरकार का आंकलन नहीं कर सकते लेकिन सरकार को चलाने वाले यदि अभी भी उसी मोड में हैं जो रामलीला मैदान में हुआ करता था तो फिर हमें गम्भीरता से सोचना पड़ेगा। मेरे जैसे लोग तो रामलीला मैदान के घटनाक्रम से ही मानते हैं कि आप एक तानशाही वाला फासीवादी लोगो का गुट है जो संसद की सर्वोच्चता को नहीं मानता और स्वतंत्र भारत के सभी संस्थानो को ध्वस्त करना चाहता है. ये वे ही लोग है जो हमारे संविधान से बहुत परेशान है और उसको बदलना चाहते हैं. मुझसे समझ नहीं आता के आखिर हमारे संविधान में ऐसे क्या ख़राब बात है जो बदली नहीं जा सकती आखिर संविधान सभा ने तो संसद को हक़ दिया के वो संविधान में संशोधन कर सकती है और आज़ादी के बाद अभी तक तीन सौ से ऊपर संशोधन हो चुके हैं जो इस संविधान की ज्वलंतता की कहानी कहते हैं. अगर बिजली पानी ही हमारे देश का मुद्दा हैं तो दिल्ली उसे लागु करने का सबसे घटिया उदहारण क्योंकि दिल्ली की मध्यमवर्गीय सवरण जनता तो वैसे भी ज्यादा मुंहलगी है. सरकारी कानून तो लोगो को तमीज सिखाते नहीं इसलिए अगर दिल्ली को महिलाओ की दृष्टि से सबसे घटिया शहर माना जाता है तो इसलिए नहीं के दिल्ली पुलिस के जवान कम हैं अपितु इसलिए के हमारा सामाजिक ढांचा निहायत ही सामंतवादी और जातिवादी है तथा उसको ख़त्म करने के लिए हमारे 'क्रांतिकारियों' ने कभी कोई पहल नहीं की.
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मुझे बहुत बार लोग कहते हैं के तुम्हे संविधान से बहुत प्यार है आखिर इस संविधान ने हमें दिया क्या ? मैंने कहा सबसे पहली बात तो यह है के संविधान से नाराज़ लोग कौन कौन है ? जिन लोगो ने मलाई खाई वोही शिकायती भी बन गए ? दलित, पिछड़ो, आदिवासियों को संविधान से शिकायत नहीं है क्योंकि अगर ये संविधान नहीं होता तो वो कहाँ होते ? इस संविधान कि शिकायत करने वाले क्रांतिकारी मनुवादी संविधान पे चुप रहते हैं ? आखिर हमारा संविधान तो मात्र राजनैतिक तौर पर लागु होता है क्योंकि उसके लागु करने वाले तो खाप वाड़ी हैं और यदि जातिवादियों के हाथ में संविधान होगा तो वो क्या होगा ? हमारे सामाजिक ढांचे में जो मनु का विधान चल रहा है उसके लिए हमारे कितने 'क्रांतिकारी' धरना, प्रदर्शन, भूख हड़ताल कर रहे हैं ? क्या हम गीता, कुरआन, बाइबल, रामायण की एक भी पक्ति बदल सकते हैं जो इंसानियत के विरुद्ध हो ? नहीं क्योंकि हमारा इसी बात में फायदा है. जिस संविधान ने भारत के संविधान को ख़ारिज किया है वो मनुवाद हमारे समाज में भयानक तौर पर व्याप्त है और नैतिकता की बाते करने वाले तमाम पुजारी उस पर बात भी नहीं करना चाहते ?
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आखिर क्यों हरयाणा में दलितो पर हमला करने वाले लोगो पर कार्यवाही नहीं होती ? क्यों अभी तक मुजफ्फरनगर के आतताई खुले में घूम रहे हैं ? गुजरात, मुम्बई, दिल्ली के दंगो के बादशाह क्यों सत्ता के नशे में हैं ? क्यों अभी तक एक भी नरसंहार के करता धर्ता हमारी न्याय प्रक्रिया से बाइज्जत बरी हो जाते हैं ? केजरीवाल और उनके लोगो ने जब भी दिल्ली में धरना प्रदर्शन किये हैं वो देश के संविधान को चुनौती दिए हैं और सरकार ने उनकी आवा भगत अच्छे से की है. मैं पूछना चाहता हूँ के सरकार से हिसाब पूछने का अगर ऐसा ही प्रदर्शन और मेरे हिसाब से इनसे लाख गुना बड़े प्रदर्शन यदि कश्मीर, उत्तरपूर्व और छत्तीशगढ़ में होते हैं या हो जाएँ तो क्या पुलिस वाले इतने प्यार से पेस आयेंगे ? अगर मुस्लिम संघठन रामलीला मैदान में बेमियादी धरने पर बैठ जाएँ और कहें के गुजरात और मुज्जफ्फरनगर के लोगो को न्याय दिलये बगैर वे उठेंगे नहीं और रास्ता जाम कर देंगे तो पुलिस का रवैया कैसे रहेगा ?
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हम सभी जानते हैं अरविन्द केजरिवाल और यूथ फॉर इक्वलिटी अभियान को ? ये मनीष कुमार शर्मा नामक तत्त्व अज्ञानता में ही आप में नहीं आ गए ? ये किरण बेदी और अन्य महारथी यू ही अन्ना आंदोलन से नहीं जुड़े ? असल में ये सभी देश में आने वाले बदलाव से परेशान थे ? ये बदलाव दलित बहुजन ताकते ही ला सकती थे और इसलिए मंडल की प्रतिक्रांति की जरुरत थी और आप उसका सबसे बड़ा हथियार बना. अगर अन्ना आंदोलन से आम आदमी पार्टी की सरकारी यात्रा को देखें तो पता चलेगा के धुर आरक्षण विरोधी और दलितो को हिकारत भरी नज़र से देखने वाले लोगो का जमावड़ा है आप. और मंडल आंदोलन के दौरान जैसे हमारे मध्यवर्गीय सवर्ण वामपंथियों का चरित्र साफ़ दिखाई दिया था वो आज फिर से वैसे ही नज़र आ गया और वे सभी लोगो जो राजनैतिक मज़बूरियों के आरक्षण का विरोध नहीं कर सकते लेकिन आप के जरिये प्रतिबद्धता का पता चल चूका है।
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वाल्मीकि समाज की राखी बिरला ने बिना किसी सोच के ही नहीं कह दिया के आरक्षण से कुछ नहीं होता। राखी को इतना भी ख्याल नहीं के उसकी माँ जो सफाई का काम कर रही है वो भी सामाजिक आरक्षण है जिसके खिलाफ आज तक कोई धरना और प्रदर्शन नहीं हुआ, न ही ये क्रांतिकारी उसके विरुद्ध कुछ कहेंगे। केजरीवाल तो सभी को आम आदमी कहता है / इसका मतलब यह के इन 'आम आदमियों' के घरो के लैट्रिन साफ़ करने वाला भी 'आम आदमी' है और उसके उतनी ही औकात है जितनी इन 'आम आदमियों' की है.
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अफ्रीकन मूल के लोगो के साथ 'इन आम आदमियों' की घृणा वैसी है जैसे आरक्षण के विरुद्ध इनका दलित पिछड़ो के प्रति नफरत . इतना बड़प्पन, इतना दम्भ, इतना नाटक और कही नहीं होता और आज प्रगतिशील दिखने वाले वामपंथी भी उनके झांसे में फंसे हैं. आज भारत के अंदर छुपे रंगभेद का पर्दाफास हो रहा है. अफ्रीकी मूल के लोग हो या उत्तर पूर्व के लोग, दलित हो या पिछड़े, आदिवासी और मुसलमान, अरविन्द केजरीवाल के आम आदमी महा जातिवादी, दम्भी और नसलभेदी हैं और जिस प्रकार से रात्रिकालीन घटनाक्रम को सही साबित करने की कोशिश हो रही है वो शर्मनाक है ? ये वो लोग हैं जो दूसरे को एक मिनट का समय देने को तैयार नहीं ? नैतिकता जैसी इनके आलावा और कही नहीं और यह इम्मानदारी का सर्टिफिकेट देते रहेंगे। अपने मंत्री को पूरा समय देंगे लेकिन पुलिस अधिकारी को नहीं ? पुलिस यदि ख़राब है तो उसको सही बनाया जाए लेकिन अगर मंत्री अपनी मर्जी से छापे मारी करने लगे तो क्या होगा ? लेकिन केजरीवाल का डायरेक्ट डेमोक्रेसी भीड़ का शाशन ही तो है जिसे आंबेडकर ने ख़ारिज कर दिया था. गांधी के ग्राम स्वराज्य में जातीय दम्भ और पूर्वाग्रहों पर आधारित जो लोकतंत्र बनेगा वोही सपना केजरीवाल देखते हैं क्योंकि ऐसी डायरेक्ट डेमोक्रेसी में सारी बाते वैसे ही मैनेज होंगी जैसे आप का मीडिया मैनेजमेंट है. हमें ऐसा लोकतंत्र नहीं चाहिए जो देश और संसद को खाप पंचयात में तब्दील कर दे और देश में मनुवादी न्यायव्यवस्था लागू करवाये जहाँ एक ही आरोप पर जाति के अनुसार दंड की व्यवस्था हो।
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केजरीवाल ने जातिवादी सामंती लोगो को आम आदमी कि टोपी पहनाकर आम आदमी को बहस से ही गायब कर दिया है क्योंकि उसके मुद्दे और नेतृत्व तो उनलोगो के हाथ में है जो व्यवस्था के मज़े लूटकर अब टोपी पहनकर 'आम' दिखने कि कोशिश कर रहा है लेकिन ये लोगो को गुमराह करने राजनीती है. आम आदमी तो और भी हासिये पे चला गया है क्योंकि जिस बिरादरी को केजरीवाल इतना ईमानदार बना रहे हैं उनके दूकान पर काम करने वाले उस अनाम आदमी का ख्याल कौन करेगा जिसको न न्यूनतम मजदुरी है , न कोई छट्टी, न मेडिकल और न अन्य कोई सामाजिक योजना। केजरीवाल के पास तो सरकारी नौकरी को बिना छोड़े अमेरिका जा कर लाखो कमाने कि छूट थी लेकिन उस अनाम आदमी के पास ये कोई आप्शन आज भी नहीं है के वह बनिया की दूकान से आधे घंटे पहले अपने घर जा सकता है या नहीं।
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दिल्ली की सड़को पर ठण्ड से मरने वाले अनाम लोगो की तादाद बढ़ रही है और कडुवी हकीकत यह है के दिल्ली का बदमिजाज और बदतमीज 'आम आदमी' को इसकी कोई परवाह भी नहीं है और न ही इससे कोई मतलब। दिल्ली को दुनिया में महिलाओ के लिए सबसे असुरक्षित जगह इसलिए नहीं कहते के गृह मंत्रालय दिल्ली सरकार के पास नहीं है. दिल्ली को जरुरत है सभ्य बनाने की और उसके लिए आत्मचिंतन की जरुरत होती है। अपनी खामियों को स्वीकारना पड़ता है. हमेशा दुसरो को कोस कर हम अपनी कमी को नहीं छुपा सकते। व्यवस्था परिवर्तन सरकार बदलने और दो चार कानून बनाने से नहीं आने वाला। हमारे सामाजिक ताने बाने को जब तक हम हिलाएंगे नहीं तब तक अनाम आदमी ऐसे ही मरता रहेगा और ये खास लोगो आम आदमी के नाम से मनुवादी व्यवस्था के सबसे सरक्षक बने रहेंगे।
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मनुवाद और प्रगतिशील गणतंत्र के बीच ये युद्ध चलता रहेगा जब तक पुरे समाज का गणतन्त्रिकरण ना हो जाए. हमें उसी दिशा में चलना है नहीं तो ये सभी ताकते गणतंत्र को बदनाम कर मनुतंत्र के मुंह में धकेलने की पूरी साजिश कर रही हैं. हमारा यकीं है हम अपने उन पुरखो की क़ुरबानी को बर्बाद नहीं करेंगे जिनके संघर्षो और विचारो की बदौलत हम आज यहाँ खड़े हैं. एक लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य ही हमारे अधिकारो और भागीदारी कि गारंटी है और उसको बचाने के लिए हमें हर संघर्ष के लिए तैयार रहना है।
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राहुल-अरविन्द और सतशिवम जी शक्ति के सभी स्रोतों में लैंगिक विविधता लागू किये बिना :नहीं हो सकता महिला समस्याओं का समाधान
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एच एल दुसाध
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मित्रों !भारत जैसा समस्याग्रस्त मुल्क विश्व में और कोई नहीं है.इसका तो एक अन्यतम कारण यह है कि विश्व के एक मात्र जाति समाज में बड़े-बड़े साधू-संत,लेखक-कवि से लेकर राजा-महाराजा तक समग्र वर्ग की चेतना से दरिद्र रहे .इसीलिए यहाँ के शासक और योजनाकार सभी वर्गों की समस्यायों के निर्मूलन के प्रति समान रूप से संवेदनशील नहीं रहे.किन्तु इस जन्मगत मानसिक-व्याधि से ये थोड़ा-बहुत उबरे भी तो समस्या की उत्पत्ति के कारणों की तह में जाने की जहमत नहीं उठाये,इसलिए आज भी वे किसी भी समस्या ठोस समाधान देने में पूरी तरह,व्यर्थ हैं .यह विरक्तिकर भूमिका मैंने हाल ही में महिला समस्या लेकर बुद्धिजीवियों,नेताओं और न्यायधीशों द्वारा व्यक्त की गयी चिंता के आईने में बांधी है.
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मित्रों!कुछ दिन पूर्व एनजीओ के सरताज ने रायसीना हिल्स पर कब्ज़ा जमाकर भारतीय लोकतंत्र के महान वार्षिक पर्व, गणतंत्र दिवस परेड को बाधित करने की चेष्टा की.अपने अभूतपूर्व अपकर्म (धरने-प्रदर्शन) के माध्यम से राजपथ पर कब्ज़ा ज़माने के प्रयास के पीछे उसका तर्क यह था कि महिलाओं की सुरक्षा उसके लिए सर्वोपरि है.उधर कल राहुल गाँधी ने महाराष्ट्र के सेवासदन से राष्ट्र को यह सन्देश दिया -'महिला सशक्तिकरण के बिना देश नहीं बन सकता महाशक्ति.भारत में 50 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है.यदि हम इस 50 प्रतिशत जनसँख्या का सशक्तिकरण नहीं करेंगे तो भारत आधा ही मजबूत,आधा गौरवान्वित,आधा ही शक्तिशाली होगा'.इधर आज के अधिकांश अखबारों के मुखपृष्ठ पर बंगाल का सामूहिक दुष्कर्म छाया हुआ है.सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.सतशिवम ने इस घटना पर गंभीर चिंता जताते हुए इसे परेशान करने वाली खबर बताया तथा उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने घटना के बारे में मीडिया में आई खबरों का स्वतः संज्ञान लेते हुए.बीरभूम जिला जज को मौका मुयायना कर जल्द रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दे दिया है.
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मित्रों क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि महिलाओं की समस्यायों को लेकर जो उपरोक्त बातें कही गयी हैं,वह एक दम रूटीन टाइप की हैं.ऐसी बातें वर्षो से ही ढेरों लेखक-कवि,नेता-समाज सुधारक,कानूनविद ,महिला एक्टिविस्ट इत्यादि रह-रह कर उठाते उठाते रहे हैं? किन्तु महिलाओं की समस्या जहाँ की तहां है.ऐसा इसलिए कि महिलाओं की समस्या के समाधान की दिशा में अब तक ठोस नहीं,निहायत ही सतही समाधान किये गए हैं.आप चाहें तो इसे दुसाध का अहंकार कह सकते हैं किन्तु सच्ची बात यह है,जोकि कई बार आपके सामने रख चुनक हूँ, कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया आधी आबादी की समस्या का मूल कारण,जिसमे दुष्कर्मभी शामिल है, मुख्यतः शक्ति के स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक और धार्मिक) में लैंगिक विविधता(gender diversity) की अनदेखी है.अर्थात पूरी दुनिया की पुरुष प्रधान सत्ता ने ही आधी आबादी को समस्त आर्थिक गतिविधियों,राज सत्ता की सभी संस्थाओं के धर्म-सत्ता(पौरोहित्य)से प्रायः पूरी तरह वंचित रखकर ही अशक्त बनाया.इस अशक्ति के कारण ही महिलाएं तमाम तरह के शोषण- उत्पीडन का शिकार हुईं.किन्तु आधुनिक मानवतावाद के उदय के साथ पश्चिम की दुनिया ने,जिसका हर तरह से नक़ल भारत के हुक्मरान,एक्टिविस्ट,लेखक-कवि करने के लिए आज भी अभिशप्त हैं,महिला अशक्तिकरण के कारणों के पृष्ठ में जेंडर डाइवर्सिटी की अनदेखी की उपलब्धि किया इसलिए उसने शक्ति के स्रोतों में जेंडर डाइवर्सिटी के प्रतिबिम्बन पर जोर दिया.इसके फलस्वरूप वहां महिलाओं को शक्ति के अधिकांश क्षेत्रों में वाजिब शेयर मिला जिससे वे सशक्त हुईं ,जिसके फलस्वरूप वहां उनका शोषण का ग्राफ काफी हद तक कम हो गया .किन्तु बात –बात में पश्चिम की नक़ल करने वाले राजा राम मोहन राय –पंडित विद्या सागर के वंशधरों ने उनसे शक्ति के स्रोतों में जेंडर डाइवर्सिटी को सम्मान देने का गुण उधार नहीं लिया.हिन्दू प्रधान प्रधान भारत के शासक ऐसा कर भी नहीं सकते क्योंकि यह देश तो आज भी मानव सभ्यता की दौड़ में कुछ सौ साल पीछे है.इसलिए दलित-आदिवासी-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की भांति ही इस बर्बर देश के शासक महिलाओं को शक्ति के क्षेत्रों में वाजिब शेयर देने की मानसिकता विकसित नहीं कर पा रहे हैं.अब जहाँ तक महिला सशक्तिकरण के लिए काम कर रही नारिवादिनों का सवाल है,वे भी महा जातिवादी हैं.शक्ति के स्रोतों में लैंगिक विविधता लागू करने पर दलित-पिछड़े समाज की महिलाएं भी सशक्त हो सकती हैं इसलिए महिला आन्दोलन को नेतृत्व दे रहीं सुविधासंपन्न वर्ग की महिलाएं भी अपना एजेंडा महज अपनी देह के स्वतंत्र इस्तेमाल तक सीमित रखी हैं.बहरहाल मित्रों यदि आप महिला समस्या के प्रति थोडा भी संवेदनशील हैं तथा आपको भी केजरीवाल,राहुल गाँधी इत्यादि की स्टिरियो टाइप बातों से थोड़ी भी उब हो रही है तो इन लोगों पर इस तरह दबाव बनायें की आधी आबादी का वोट लेने के लिए उनको मुर्ख बनाने की बजाय ये उनको(महिलाओं) अर्थ-राज और धर्म सत्ता में 50%हिस्सेदारी देने की घोषणा करने के लिए बाध्य हो जाएँ.
Dalit Mat with Dev Pratap Singh and Ashok Das
नरेंद्र मोदी इन दिनों खुद को पिछड़ा बताते घूम रहे हैं। तो इस हिन्दू राष्ट्रवादी पिछड़े के गुजरात से एक खबर है। खबर यह है कि मोदी के राज्य गुजरात में दलितों के लिए अलग से श्मशान है। वहां मरने के बाद भी दलितों से अछूतपन का व्यवहार होता है। तुर्रा यह कि इन श्मशानों को बनाने के पैसा गुजरात सरकार देती है। वहां के सामाजिक संगठनों का कहना है कि दलितों के हित के लिए आवंटित राशि का एक बड़ा हिस्सा इन 'श्मशान' के निर्माण में खर्च होता है।
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Ashok Chaudhary To kyaa huaa ?????? Dalito ko Fir b akal aane wali nahi.... Asli sharm to unhe aani chahiye Jo dalit hote hue bhi aaj b BJP keep liye kaam karate h...
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Virendra Gautam Jalalat hai aise pm aur cm se
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Sudhir Sharma Sir n hindu nmuslman n sikh n isai n budh n yhudi sab ek he sab insaan he insaaniat seekho or acche insaan bno
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Daya Shanker JOin AAP.......
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