जान माल से कितने सुरक्षित हैं भारत के नागरिक जिनकी गोपनीयता और निजता भारत सरकार भंग कर रही है!
जाने अनजाने जो लोग सीआईए और नाटो की असंवैधानिक कारपोरेट आधार परियोजना के पैरोकार हैं,वे तमाम लोग देशद्रोही पंचमवाहिनी में शामिल है।पंचमवाहिनियां शत्रुपक्ष के लिए अपने ही देश और देशवासियों के लिए युद्ध करती हैं।
पलाश विश्वास
Bishwanath Mahato shared झारखंडी भाषा संस्कृति अखड़ा's photo.
भारत की पहली आदिवासी आवाज मरंङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा के जन्म दिन पर सृजन और संघर्ष के सभी साथियो को जोहार. Gladson Dungdung, गंगा सहाय मीणा, Sunil Kumar 'suman', Neetisha Xalxo
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Ak Pankaj shared Atul Anand's photo.
आज 3 जनवरी को क्रांतिज्योती सावित्रीबाई फुले (1831-1897) का जन्मदिन है. सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा का अलख जलाना (खासकर नारियों के बीच) तब से ही शुरू कर दिया था जब सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म भी नहीं हुआ था!
आज 'शिक्षक दिवस' के मौके पर मैं उन सभी लोगों का कृतज्ञ हूँ जिनसे मुझे कुछ भी सीखने को मिला. आज 3 जनवरी को क्रांतिज्योती सावित्रीबाई फुले (1831-1897) का जन्मदिन ...See More
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आज का संवाद
जान माल से कितने सुरक्षित हैं भारत के नागरिक जिनकी गोपनीयता और निजता भारत सरकार भंग कर रही है!
PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg
TaraChandra Tripathi
अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली विधानसभा में दिये गये भाषण से यह् साफ हो ग्या है कि मोदी जी को नकली लाल किले और नकली संसद-भवन से ही संतोष करना पड़ेगा.
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Anand Patwardhan
AAP has thrown us all a challenge of gauging whether our system is capable of meaningful internal change. some, including myself, are cautiously hopeful at this new experiment in democracy, but not yet convinced that it can actually succeed over time and space.
but because waiting for perfection may mean waiting forever, i think those of us who may have differences with AAP should nevertheless congratulate it on its spectacular success in rekindling hope. and we must offer AAP our critical support even if some choose not to join it.
my point of difference is simple. i believe narendra modi is a fascist and the bjp is not just corrupt, it is something far worse - it is opposed to the very idea of a secular india. not only this, but there is a complete nexus between modi's gujarat model of development and the interests of multinationals and of corporate india. these forces today are in complete ownership and control of our mainstream media and this media in turn is largely responsible for why and how the bjp can literally get away with murder, and corruption.
so everything we do must be directed at ensuring it does not rule us ever again. at times this may mean choosing the most-likely-to-win alternative even when that person or that party is NOT our favourite. this is the principle of strategic voting. it is too early to judge if AAP is able to make a targeted entry across the nation that ensures that those who would destroy the very fabric of our potentially secular democracy are kept out of power.
the composition of the think tank in AAP gives me hope that it can be alive to this issue. so i hope that the terrible mistake Jai Prakash Narayan made by allowing the entry of the RSS into the Bihar movement in 1974-1977 will not be repeated by AAP. the fact is that today u do not need to be in RSS to have an RSS mindset. lies sustained over decades have ensured that this mindset has been internalized by many though most are probably unaware of it.
as new cadre make a beeline for the AAP i hope the fledgling party understands that it is relatively easy to get people to unite against corruption. it is much harder today for people to realize that if india loses its secular character or denies justice to its weakest minorities, it gives up the right to be a democracy.
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Prakash K Ray, Abhijit Kundu, Yadwinder Karfew and 185 others like this.
Manoj Baviskar sharing...
Chris de Almeida i agree and share your thought process in totality
Santanu Ghosh @Anand Patwardhan Thanks Anadji for such perspicacious analysis. The problem before was that the alternatives of BJP were not much better than it. If I can't support Hitler, I can't support Churchill, too. However, definitely, AAP, though all of us may...See More
2 hours ago · Like · 1
Shaila Wagh If you consider yourself to be wishing better deal for aam admi you must support AAP.It is up to all right thinking individuals to encourage,empower &enable AAP to bring about a change!Positive criticism is definitely welcome.
Palash Biswas Agree.
माफ कीजिये मित्रों,मैं आदरणीय गोपाल कृष्ण जी के इस मंतव्य से सहमत हूं कि जाने अनजाने जो लोग सीआईए और नाटो की असंवैधानिक कारपोरेट आधार परियोजना के पैरोकार हैं,वे तमाम लोग देशद्रोही पंचमवाहिनी में शामिल है।पंचमवाहिनियां शत्रुपक्ष के लिए अपने ही देश और देशवासियों के लिए युद्ध करती हैं।
मित्रों,हमारे लिए यह कोई नया विषय नहीं है।2003 में नागरिकता कानून संसोधन विधेयक पास होते ही हम लगातार बांग्ला,हिंदी और अंग्रेजी में इस विषय पर लिख रहे हैं अपने ब्लागं पर। देश के लगभग हर हिस्से में हमने आम जनता को इस विषय पर संबोधित भी किया है।यूट्यूब पर मेरे व्कतव्य भी बहुत पहले से दर्ज है।
गोपाल कृष्ण जी की अगुवाई में हमारे अनेक साथी लगातार इस मामले में जनजागरण चला रहे हैं। इसके बावजूद हम इस सार्वजनिक बहस का मुद्दा नहीं बना सके हैं क्योंकि मीडिया इस असंवैधानिक विध्वंसक डिजिटल बायोमेट्रिक रोबोटिक नागरिकता को सशक्ती करण और सामाजिक उत्तरदायित्व के सबसे बड़े औजार बताकर लगातार उसके पक्ष में उसीकी महिमामंडन कर रहा है।
हालत यह है कि प्रबंधकीय दक्षता के शिखरपुरुष द्वय अरविंद केजरीवाल और नंदन निलेकणि डां. मनमोहन सिंह के अवसान से पहले ही सुधारों के नये ईश्वर बतौर अवतरित हो चुके हैं और खास आदमियों की आम आदमी पार्टी बड़ी तेजी से एकमात्र राजनीतिक विकल्प बतौर तेजी से उभर रहा है।यहां तक कि यूपीए एक में राजकाज में,जनसंहार अश्वमेध में समझदार साझेदार प्रकाश कारत भी आप को वामपंथी विरासत का सही उत्तराधिकार बताने से चूक नहीं रहे हैं।सीपीएम पार्टी के महासचिव प्रकाश करात ने कहा है कि हमारे दल को अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से सीखना चाहिए। एक न्यूज चैनल से बातचीत में करात ने कहा कि लेफ्ट पार्टियों को आप से सीखना होगा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर कैसे युवा लोगों से संवाद स्थापित किया जाए।
करात ने कहा कि बोले कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी बीजेपी और कांग्रेस को चुनौती दे पाई और इससे यह साबित होगा कि देश में वैकल्पिक राजनीति की गुंजाइश है। राष्ट्रीय राजनीति पर अपना रुख साफ करते हुए प्रकाश कारत बोले कि हम कांग्रेस और बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने के लिए कटिबद्ध हैं और इस दिशा में प्रयास जारी हैं।
मुझे ताज्जुब नहीं होगा ,अगर ममता बनर्जी को हाशिये पर धकेलकर वामपंथी दल आप की अगुवाई में फिर तीसरा मोर्चा बनाकर एक बार फिर सत्ता का जायका लें।
अभी अभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भारत देश के राजनीतिक क्रिकेट से सन्यास के लाइव संवाददाता सम्मेलन के दर्शन से निपटकर उठा हूं।सवेरे ही इकोनामिक टाइम्स में नागरिकों की निजता और गोपनीयता भंग में भारत सरकर की कारस्तानी और उससे होने वाले जान माल की लीड खबर पर आदरणीय गोपाल कृष्ण जी से बात हुई कि इंटरनेट में भारत सरकार के खुलासे से अगर यह हाल है तो अमेरिकी प्रिज्मिक खुफिया निगरानी, ड्रोन नजरदारी और नाटो की असंवैधानिक आधारपरियोजना के जरिये नागरिकों की हर जानकारी नाटो,सीआईए, मोसाद,कारपरेटघरानों और आपराधिक गिरोहों के हाथ लग जाने से क्या हाल होगा भारत देश के लोगों का।उन्होंने इस पर ब्यौरा देने का अनुरोध किया है।
हमारे सोशल मीडिया के अनेक दिग्गज और यहां तक अपने नैनीताली छात्रजीवन के अनेक आंदोलनकारी साथी अब आप में शामिल हो गये।
सुंदरवन प्रवास के दौरान उत्तराखंड, झारखंड,छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र समेत तमाम राज्यों के पुराने आंदोलनकारियों से बात हुई तो भारी सदमा लगा यह जानकर कि सबने अपनी अपनी अलग दुकानें सजा रखी हैं और कोई किसी के साथ नहीं है।इनमें जो खास लोग हैं,देश के तामाम खास लोगों की आम आदमी पार्टी में वे शामिल हो चुके हैं या होने वाले हैं।
इसी के मध्य भाई पद्दोलोचन ने बसंतीपुर से सवेरे सवेरे फोन करके दिनेशपुर में पिताजी की स्मृति में चल रही पुलिनबाबू फुटबाल प्रतियोगिता के अपडेट बताते हुए जानकारी दी कि पहाड़ का किस्सा उसकी समझ से भी बाहर है और दिनेशपुर में फिल्मकार सुबीर गोस्वामी जैसे लोग आप के साथ हैं।
अब हम अपने आनंद स्वरुप वर्मा, पंकज बिष्ट, रियाजुल हक, अरुंधति राय, आनंद तेलतुंबड़े, अभिषेक,अमलेंदु जैसे चुनिंदा लोगों के भरोसे ही है जो जनसरोकार के मुद्दों पर हमारे साथ हो सकते हैं।हमने ईटी की लीड पर बहस चलाने के लिए हस्तक्षेप और जनज्वार से भी आग्रह किया है।जगमोहन फुटेला के निष्क्रिय हो जाने के बाद हमारे विकल्प और सिमट गये हैं।
गौर करें कि 12 जून की यह खबर थी कि हैरत और चिंता जताते हुए भारत ने बुधवार को कहा कि वह उन खबरों पर अमेरिका से सूचनाएं एवं विस्तृत जानकारी मांगेगा कि वह उन देशों की सूची में पांचवें पायदान पर था जिन पर अमेरिकी खुफिया विभाग की ओर से सबसे ज्यादा निगरानी रखी जा रही थी। अमेरिकी खुफिया विभाग ने विश्वव्यापी इंटरनेट डेटा पर नजर रखने के लिए एक गुप्त डेटा-माइनिंग कार्यक्रम इस्तेमाल किया था।
भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि यह पाया गया कि उसके नागरिकों की सूचना की निजता से जुड़े घरेलू कानूनों का उल्लंघन हुआ है तो यह अस्वीकार्य होगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरद्दीन ने कहा, ''हां, हम इसे लेकर चिंतित हैं और हमें इस पर हैरानी है।'' प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच साइबर सुरक्षा पर वार्ता होती रहती है जिसके समन्वय का काम दोनों तरफ की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषदें करती हैं।
अकबरद्दीन ने कहा, ''हमारा मानना है कि यह ऐसे मुद्दों पर चर्चा के लिए उपयुक्त मंच है। दोनों पक्षों के वार्ताकारों के बीच इस मुद्दे पर जब बातचीत होगी तो हम संबंधित सूचनाएं एवं विस्तृत जानकारी मांगेंगे।'' निजता से जुड़े भारतीय कानूनों के संभावित उल्लंघन के बारे में पूछे जाने पर प्रवक्ता ने कहा, ''निश्चित तौर पर हम इसे अस्वीकार्य मानेंगे यदि आम भारतीय नागरिकों की सूचना की निजता से जुड़े घरेलू कानूनों का उल्लंघन हुआ होगा। बिल्कुल हम इसे अस्वीकार्य मानेंगे।''
लेकिन देवयानी खोपड़गड़े प्रकरण में भारत अमेरिकी राजनयिक युद्ध में भारतीय नागरिकों की खुफिया निगरानी पर कोई चर्चा हुई हो,ऐसी जानकारी हमें नहीं है।हो भीत कैसे जबकि भारत अमेरिका और इंग्लैंड मेत समूचे पश्चिम के ठुकराये नाटो के युध्धक प्रकल्प आधार बायोमेट्रिक विध्वंस पर अमल कर रहा है और नागरिकों के बारे में सारे निजी तथ्य रापोरेट घरानों, अपराधी गिरोहों,माफिया और सीआईए के साथ साझा कर रही है।
इसके उलट अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को कहा कि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए अनुकूल माहौल है और स्थिति में सुधार जारी रहेगा. प्रधानमंत्री ने कहा, भारत में एफडीआई के लिए अनुकूल वातावरण है और हम ऐसा माहौल उपलब्ध कराना जारी रखेंगे. हम व्यवस्था में जहां कहीं भी सुधार की गुंजाइश है, सुधार करना जारी रखेंगे.
पिछले साल, सरकार ने दूरसंचार, रक्षा, पीएसयू तेल रिफाइनरियों, जिंस बाजारों, बिजली एक्सचेंजों और शेयर बाजारों सहित करीब एक दर्जन क्षेत्रों में एफडीआई नीति के नियमों को उदार किए हैं.
हालांकि, चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-नवंबर के दौरान देश में एफडीआई प्रवाह 15 प्रतिशत घटकर 12.6 अरब डॉलर रह गया जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 14.7 अरब डॉलर था. वर्ष 2013 के अंत में वित्त मंत्रालय ने ब्रिटेन स्थित टेस्को के 11 करोड़ डॉलर के एफडीआई प्रस्ताव को मंजूरी दी.
टेस्को ने देश में टाटा समूह की कंपनी ट्रेंट के साथ मिलकर बहु-ब्रांड खुदरा स्टोर्स खोलने का प्रस्ताव किया है. सरकार निर्माण गतिविधियों, रेलवे व ई-कामर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियमों को उदार बनाने की प्रक्रिया में है.
भारत को 12वीं पंचवर्षीय योजना में ढांचागत सुविधाओं मसलन बंदरगाहों, हवाईअड्डों और राजमार्गों आदि के निर्माण के लिए करीब 1,000 अरब डॉलर निवेश की दरकार है.
सिर्फ 5 रुपये में ऑनलाइन खरीदिए AAP स्टाइल का झाड़ू
आज तक | - 20 मिनट पहले |
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आम आदमी पार्टी (AAP) के चुनाव चिन्ह झाड़ू ने दिल्ली की सत्ता हासिल करने में अरविंद केजरीवाल की काफी मदद की. और तो और AAP ने जब चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ किया तब इसी झाड़ू ने अखबारों और टीवी चैनल्स को अच्छी हेडलाइंस भी दीं. अब जब इस झाड़ू को 'ट्रेड्स' नाम की वेबसाइट ने सिर्फ 5 रुपये में बेचने का ऐलान किया तो कुछ ही घंटों में इसे हजारों ऑडर मिल गए. कंपनी ने पहले एक हजार लोगों को 5 रुपये में झाड़ू दिए. अब कंपनी 30 रुपये वाला झाड़ू को 19 रुपये में बेच रही है. वेबसाइट का कहना है कि उनके इस कदम से हजारों लोग दिल्ली में भ्रष्टाचार-विरोधी मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने महंगाई को काबू में रखने में अपनी सरकार की विफलता को आज स्वीकार किया लेकिन इसके साथ ही कहा कि ऊंचे दाम से किसानों को मदद मिली है और आने वाला समय देश के लिए बेहतर होगा।
प्रधानमंत्री के तौर पर यहां तीसरे संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मनमोहन ने कहा, 'महंगाई को काबू करने में हम उतना सफल नहीं रहे जितना चाहते थे। ऐसा मुख्य रूप से खाद्य मुद्रास्फीति ऊंची रहने की वजह से हुआ। पर, हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि हमारी समावेशी नीतियों से कमजोर वर्ग के लोगों की आमदनी बढी है।'
मुद्रास्फीति के बारे में चिंता पर उन्होंने कहा, 'महंगाई की चिंता करना सही है लेकिन हमें इस पर भी गौर करना चाहिए कि ज्यादातर लोगों की आय मुद्रास्फीति की दर से भी ज्यादा तेजी से बढ़ी है।'
प्राकृतिक गैस, उर्वरक और पेट्रोलियम रिफाइनरी क्षेत्रों के कमजोर प्रदर्शन की वजह से नवंबर में 8 बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर घटकर 1.7 फीसदी पर आ गई। आठ बुनियादी उद्योगों में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट व बिजली की वृद्धि दर एक साल पहले नवंबर, 2012 में 5.8 फीसदी रही थी।
संबंधित खबरें | ||||||||||||||||||
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सरकार द्वारा आज जारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से नवंबर की अवधि में बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर महज 2.5 फीसदी रही, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 6.7 फीसदी रही थी। इन आठ बुनियादी उद्योगों का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 38 फीसद का भारांश है। नवंबर के आईआईपी आंकड़े जनवरी के दूसरे सप्ताह में जारी किए जाएंगे। नवंबर मंं प्राकृतिक गैस का उत्पादन 11.3 फीसदी घट गया। रिफाइनरी उत्पादन में 5 फीसदी की गिरावट आई।
अवैध खनन के लिए केंद्र व ओड़िशा जिम्मेदार: शाह आयोग
Jansatta | - 2 घंटे पहले |
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नई दिल्ली। ओड़िशा में अवैध खनन पर न्यायमूर्ति एमबी शाह आयोग की रिपोर्ट में अवैध तरीके से लौह और मैंगनीज अयस्क निकालने के मामले में खनन कंपनियों से करीब 60 हजार करोड़ रुपए की वसूली की सिफारिश की गई है। शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लौह और मैंगनीज अयस्कों के अवैध खनन मामले में केंद्र और ओड़िशा सरकार दोनों को जिम्मेदार ठहराया है और राज्य सरकार से दोषी कंपनियों से 59203 करोड़ रुपए वसूलने को कहा है। आयोग ने कहा है कि राज्य में हर तरीके से अवैध खनन जारी है और ऐसा लगता है कि कानून असहाय हो गया है। रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि बरामद रकम का उपयोग राज्य के दो ...
PM accepts failure to check unemployment, inflation
The PM also admitted that inflation remained a major problem
कल ही मैंने लिखाःइसी बीच हमारे मित्र गोपाल कृष्ण जी ने बाकायदा एक प्रेस बयान जारी करके अरविंद केजरीवाल और आप की सरकार से माँग की है कि असंवैधानिक आधारकार्ड योजना को वे खारिज कर दें। ममता बनर्जी ने रसोई गैस जैसी जरूरी सेवाओं से आधार को नत्थी करवाने के खिलाफ बंगाल विधानसभा में सर्वदलीय प्रस्ताव पास किया है, लेकिन ममता दीदी ने गैरकानूनी आधार योजना को खारिज करने की माँग अभी उठायी ही नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि भ्रष्टाचारमुक्त भारत बनाने की दिशा में तेजी से जनविकल्प बनती जा रही आप सिर्फ बिजली कंपनियों की ऑडिट करवाने तक सामित न रहकर कॉरपोरेट भ्रष्टाचार के सफाये के लिए भी काम करेगी। इसके लिये जरूरी है कि कारपोरेट राज और सीआईए की असंवैधानिक आधार योजना को सबसे पहले खारिज करें आप।
गौरतलब है कि भारत ने साइबर अपराधों पर निगरानी के लिए अमेरिका साथ मिलकर एक पोर्टल शुरू करने का सुझाव दिया है ताकि हैकिंग और सोशल मीडिया के दुरूपयोग पर अंकुश लगाया जा सके। हाल ही में हुए भारत और अमेरिका के पुलिस प्रमुखों के सम्मेलन में यह सुझाव दिया गया।
अमेरिकी पुलिस अधिकारियों ने इस सकारात्मक रूप से जवाब दिया। भारतीय पुलिस अधिकारियों ने साइबर अपराध की जांच की जरूरत तथा कई मुद्दों पर जोर दिया तथा अमेरिका में मौजूद सर्वर से सूचना हासिल करने के संदर्भ में पुलिस के सामने के आने वाली चुनौतियों से जुड़े मुद्दे को भी सम्मेलन में रखा गया।
इस सम्मेलन में शामिल एक पुलिस प्रमुख ने कहा, 'हमने सामूहिक रूप से एक ऐसे पोर्टल की स्थापना करने का सुझाव दिया है जहां आवेदन दर्ज कराया जा सके और निगरानी की जा सके।' अमेरिकी पुलिस अधिकारियों ने कहा कि वे भी ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और उन्होंने उम्मीद जताई कि ऐसे पोर्टल से दोनों देशों की कानूनी एवं सुरक्षा एजेंसियों को मदद मिलेगी।
कृपया अब इस इकोनोमिक टाइम्स की इस खबर पर गौर करें और सोचे कि इंटरनेट से अगर आपकी जान माल खतरे में है,तो बायोमेट्रिक आधार पहचान क्या कयामत बरपा सकती है।
इकानामिक टाइम्स के मुताबिक अगर कोई साइबर क्रिमिनल डेटा चुराना चाहे या डिजिटली किसी व्यक्ति की आइडेंटिटी की नकल करना चाहे तो उसे सबसे आसान मदद कहां से मिल सकती है? भारत सरकार से।
तमाम सरकारी एजेंसियां बड़ी मात्रा में पर्सनल इन्फॉर्मेशन ऑनलाइन कर रही हैं और कई बार तो इन्हें एक्सेस करने की राह में कोई बैरियर भी नहीं होता है। इन डेटा से लोगों और उनके बैंक खातों का सुराग साइबर चोरों के हाथ आसानी से लग सकता है।
मैकफी लैब्स में डिजिटल सिक्योरिटी एक्सपर्ट बिन्नू थॉमस ने कहा कि अगर मैं किसी को टार्गेट करना चाहूं तो मैं ऐसी डिटेल्स एक्सेस कर सकता हूं, जो दरअसल पब्लिक डोमेन में आनी ही नहीं चाहिए थीं। अच्छी सोशल स्किल्स वाले हैकर्स आसानी से किसी व्यक्ति की नकल कर उसकी ओर से कॉल सेंटर को कॉल कर सकते हैं। किसी युवती से जबरन करीबी बढ़ाने की कोशिश करने वाले, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और दूसरे तमाम तरह के लोग इन डेटा का दुरुपयोग कर सकते हैं।
इसे एक उदाहरण से समझते हैं। अगर कोई देश के बेहद मालदार लोगों को निशाना बनाना चाहे तो जाहिर है वह साउथ मुंबई का रुख करेगा। वह पेट्रोलियम मिनिस्ट्री की वेबसाइट पर एलपीजी ट्रांसपैरेंसी पोर्टल पर जाएगा, जहां इंडेन, भारत गैस और एचपी हर उस व्यक्ति का डेटाबेस रखती हैं, जिसके पास एलपीजी कनेक्शन हो।
अगर वह कुछ फिल्टर्स लगाकर सेलेक्शन करे तो महाराष्ट्र में मुंबई सिटी रीजन में पहुंच जाएगा। कई गैस एजेंसियों के नाम में ही उनके सर्विस एरिया का जिक्र होता है। उसमें से वह किसी को सेलेक्ट करे तो कस्टमर्स की लिस्ट खुल जाएगी। उनके कंज्यूमर नंबर, ऐड्रेस और कई मामलों में मोबाइल नंबर भी मिल जाएंगे।
साइबर चोर अब इलेक्शन कमीशन की वेबसाइट का रुख कर सकता है, जिसने सभी स्टेट इलेक्शन कमीशंस को अपनी पूरी वोटर लिस्ट ऑनलाइन रखने को कहा है। वहां वोटर्स के पते, उम्र और जेंडर की जानकारी मिलेगी। अगर चोर कुछ और कोशिश करे तो फेसबुक और लिंक्डइन जैसे सोशल नेटवर्क्स से शख्स की डेट ऑफ बर्थ और प्रोफेशनल डिटेल्स सामने होंगी।
डेट ऑफ बर्थ, फोन नंबर, ऑल्टरनेट नंबर और बिलिंग ऐड्रेस जैसी डिटेल्स से कई टेलीफोन कंपनियां और बैंक यह तय करते हैं कि जिस शख्स ने उनके कस्टमर हेल्पलाइन नंबर पर कॉल की है, वह वाकई असली व्यक्ति ही है।
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने अनुमान लगाया कि साल 2012 में 24 अरब 70 करोड़ डॉलर का नुकसानआइडेंटिटी थेफ्ट की वजह से हुआ। भारत में इस तरह का डेटा अवेलबल नहीं है।
पेट्रोलियम मिनिस्ट्री ने ईटी के सवालों के जवाब नहीं दिए। चीफ इलेक्शन कमिश्नर वी एस संपत ने रजिस्ट्रेशनऑफ इलेक्टर रूल्स 1960 का हवाला देते हुए कहा कि वोटर रोल एक पब्लिक डॉक्युमेंट है।
डिपार्टमेंट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी के सेक्रेटरी जे सत्यनारायण ने कहा कि हमें इस समस्या पर प्राइवेसी लॉ कीरोशनी में देखना चाहिए , जिसे अभी ड्राफ्ट किया जा रहा है। प्राइवेसी की और साफ व्याख्या निश्चित रूप से कीजानी चा हिए।
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स्त्रीऔर समाज
January 3, 2014 at 4:52pm
Sudha Raje
बलात्कार
एक सामाजिक क्रूरता की सोच है ।
जहाँ बङा भाई बहिन की चोटी खींचकर
छोटी बहिन को थप्पङ बजाकर
पीटता है अपना चाय
नाश्ता खाना बनवाने के हक के साथ ।
जहाँ पिता काका बाबा ताऊ
लङकी को रात दिन पराई पराई कहते
धमकाते रहते है और उसको अजनबी से
डराया जाता है
फिर अजनबी को सौंप कर कह
दिया जाता है हम तो तीरथ नहाये तू
एडजस्ट कर ।
पति
जहाँ सुहागरात के नाम पर
बीबी को जीतने का बिल्ली मारने
का युद्ध आक्रमण करने
की मानसिकता रखकर पहली ही रात
हमला कर देता है ।
स्त्री को समझना नहीं समर्पण
करना भाभियाँ सिखाती है
और
कितनी पीङा उठायी ये
पाक़ीजगी की शान में गढ़कर
सुनाना अच्छा समझा जाता है ।
जहाँ लङको का हक समझा जाता है
लङकी की गाली देना और छेङछाङ
प्रस्ताव प्रपोज और
पीछा करना पटाना ।
लेकिन लङकी को तत्काल चालू कह
दिया जाता है ।
जहाँ एक मानसिक भावना बल प्रयोग
की बनी रहती है मारपीट कर औरत
को दबा कर रखो!!!!
ये बलात्कार के बबूल धतूरे उसी खरपतवार
की पैदाईश हैं
हिंसा लगातार पुरुष की स्त्री पर
जारी रहती है तो वह
कभी भी किसी भी पल किसी के साथ
जानवर बन सकता है ।
बचा खुचा काम नशा और
अश्लीलता की फिल्में किताबे और गीत
कहानियों की विज्ञापनों की टीवी मोबाईल
से घर घर पहुँच करती है ।
ऊपर से इंसाफ में देरी और सुनवाई में क्रूर
ट्रायल स्त्री के ही लिये घातक हद तक
तोङू है ।
केवल कानून नहीं चप्पा चप्पा साफ
करना होगा ।
सुधा राजे
Dta...Bjnr
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ago
Sudha Raje
एक फिल्म है बिल्लू बारबर । एक भीङ
कहती है अरे दूसरे हेयर ड्रैसर ने दुकान
को राखी सावंत की तरह सजा रखा है
और बिल्लू की दुकान!! निरूपाराय??
एक नेता बिहार का कह देता है
कि सङको को हेमामालिनी के
गालों की तरह चमका दूँगा ।
एक गायक कहता है कॉलेज के लङको से
कि क्या लङकियाँ कॉलेज में सुंदर है? अगर
नहीं तो पढ़ो ताकि सुंदर
लङकियाँ जीवन भर ऱोटी बेलेंगी?
एक प्रवंचक कहता है
कि दामिनी भैया कहकर लाज बचाने
की दुहाई देती तो बस के
बलात्कारी रहम करके छोङ देते???
जबकि बाद में वही पोती की उमर
की लङकियों का दुराचारी पाया गया कोई
इस बरसात को पहचाने
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Sudha Raje
इसी खबर में लङकी क्यों विवस्त्र और
शर्मिन्दा होती दिखाता है मीडिया?
लङकी के ऊपर हमला होने की खबर पर
सलाखों के पीछे पुरुष छाया और
फाँसी का फंदा प्रतीक क्यों नहीं?? आई
कैचिंग खबर मतलब रोती विवश विवस्त्र
स्त्री?? ही क्यों ।
पिटता जेल
जाता छायाअपराधी क्यों नहीं??
माईण्ड सैट बदलना होगा!!
औरत हर सामान बेचती रहेगी जब तक
द्विअर्थी संवादो से लोग उसको जिस्म
समझते रहेगे और ये
मीडिया सिनेमा अखबार सब कहीं इस
बढ़ावे के गुनहगार है
सरकार की ओर से नागरिकों की निजी जानकारियों को सार्वजनिक करते रहने के खतरे कितने संगीन है, उसकी गंभीरता पर गौर करने के लिए इन तथ्यों पर भी ध्यान दें कि साइबर हमलों की लगातार बढ़ती घटनाओं के बीच हैकरों की नजर अब सरकारी वेबसाइटों पर लग गई है।
हाल के महीनों में भारत में साइबर हमलों की संख्या में इजाफा हुआ है। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की रिपोर्ट का दावा है कि सरकारी वेबसाइट पर साइबर हमले बढे़ हैं।
हैकर सरकार और सरकारी वेबसाइटों की छवि खराब करने तथा इनकी विश्वसनीयता कम करने के लिए इन्हें निशाना बना रहे हैं। सरकार ने इस सिलसिले में सभी विभागों को अलर्ट जारी किया है।
सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय के तहत आने वाले विभाग सीईआरटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि हैकरों का निशाना ज्यादातर ऐसी वेबसाइट हैं जो डॉट इन (आईएन) डोमेन का इस्तेमाल करती हैं। सभी सरकारी विभागों की वेबसाइट इसी डोमेन पर हैं।
सीईआरटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बैंकिंग, फाइनेंस, तेल और गैस समेत कई सरकारी विभागों की वेबसाइट हैकरों के निशाने पर हैं।
रिपोर्ट ने माना कि पूरे साल साइबर हमले होते रहे हैं, लेकिन मई 2013 के बाद से इन तरह के हमलों में बढ़ोतरी देखने को मिली है।
मई से अगस्त के बीच 11,447 बार साइबर हमले के प्रयास किए गए हैं। इनमें करीब 80 फीसदी हमले सरकारी वेबसाइटों पर किए गए हैं।
सरकार ने इस साल साइबर सुरक्षा पॉलिसी और सोशल मीडिया के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं, लेकिन ज्यादातर दिशा-निर्देश और कानून महज कागज में हैं। इन्हें सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका है।
हाल के दिनों में हैकरों की कारस्तानी से माधुरी दीक्षित और आयुष्मान खुराना की मौत की खबरें बड़ी तेजी से फैलीं। मुजफ्फर नगर दंगों को भी बढ़ावा देने के लिए इसी हथकंडे का इस्तेमाल किया गया था।
सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने माना कि साइबर आतंकवाद से सरकारी वेबसाइटों को खतरा बढ़ा है। इस तरह के हमलों का मुख्य मकसद लोगों में इन वेबसाइट के प्रति भरोसे को खत्म करना है।
ऐसे में सरकार ने सभी संबंधित मंत्रालयों को अलर्ट जारी किया है। किसी भी बाहरी ई मेल को खोलने से पहले उसकी जांच करने, वेबसाइट के रख-रखाव को और अधिक पुख्ता करने, एंटी फिशिंग और एंटी स्पाईवेयर सॉफ्टवेयर को अपडेट करने की सलाह दी है।
भारत में ई-कॉमर्स का बाजार 16 अरब डॉलर तक पहुच गया है। इसकी वजह लगातार इंटरनेट और मोबाइल के इस्तेमाल करने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होना है। ... मोबाइल कॉमर्स में काफी संभावनाएं छिपी हैं। कई तरह के हिचक के बावजूद उपभोक्ता कई कारणों से ऑनलाइन शॉंिपंग की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसमें फ्यूल बचाने, पार्किंग में आने वाली दिक्कत और लंबी कतार से बचना शामिल है। जानकारों का मानना है कि ई-कॉमर्स के ग्रोथ में तकनीकी स्तर पर उत्तम मोबाइल हैंडसेट की भूमिका भी अहम है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि पुरुष ऑनलाइन शॉंिपग अधिक करते हैं। जिस तरीके से किसी भी बिजनेस के ग्रोथ में बाधाएं आती हैं वैसे में यह भी इससे अछूता नहीं रह पाया है। भारत के बड़े भौगोलिक क्षेत्रों को कवर कर पाना इन कंपनियों के लिए एक चुनौती भरा काम है जिससे निपटने के लिए कई स्तर पर रणनीति बनाकर उसे लागू किए जाने की कोशिश की जा रही है।
भारत उन चार प्रमुख देशों में शामिल है, जहां गेमर्स को 2013 के दौरान सबसे ज्यादा साइबर हमले झेलने पड़े। सिक्यॉरिटी फर्म कैस्परस्की लैब ने यह जानकारी दी।
भारत में गेमर्स पर इस दौरान 2,07,245 साइबर हमलों की कोशिश हुईं। उसके बाद रूस, वियतनाम और चीन का नंबर आता है। साल के अंत में साइबर हमलों की संख्या कई लाख में जा सकती है, क्योंकि क्रिसमस पर लोगों को उपहार में गेम्स मिलने की उम्मीद है।
कैस्परस्की के विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि लोकप्रिय गेमिंग प्लैटफार्म मसलन प्लेस्टेशन और एक्सबॉक्स के नए वर्ज़न की वजह से यह आशंका और बढ़ गई है।
प्लेस्टेशन 4 भारत में 18 दिसंबर को पेश किया जा रहा है। हालांकि एक्सबॉक्स वन यहां कब आएगा, अभी इसकी घोषणा नहीं हुई है।
इंटरनेट के यूजर्स सिर्फ बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं हैं। छोटे शहर और गांव में भी इंटरनेट का इस्तेमाल हो रहा है।
भारत सरकार अब गांव में और बेहतर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करना के लिए कार्य कर रही है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा है कि पंजाब के लुधियाना जिले की एक 1000 ग्राम पंचायतों को बीएसएनएस के नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क कार्यक्रम के तहत जल्द ही वाईफाई सुविधा मिलेगी।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने कहा कि यह राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम है, जिसके तहत 2 लाख ग्राम पंचायतों को वाई-फाई सुविधा दी जाएगी और इस योजना के पहले चरण में लुधियाना को शामिल किया गया है।
उन्होंने एक बयान में कहा कि इस योजना के तहत गांवों के लोगों को तुरंत और तेज इंटरनेट सुविधा मिलेगी।
साथ ही उनका ये भी कहना है कि निजी ऑपरेटर गांवों में इंटरनेट सुविधा मुहैया कराने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उन्हें इससे अधिक फायदा नहीं मिलेगा। ऐसे में केंद्र सरकार ने लोगों को यह सुविधा देने की पहल की है।
वो मानते हैं कि इंटरनेट का इस्तेमाल काफी तेजी से बढ़ा रहा है इसलिए उनकी प्राथमिकता ये ही है कि देश की ग्राम पंचायतें भी इंटरनेट के जरिए बाकी दुनिया से जुड़ सकें।
इसके विपरीत दावा यह है कि अमेरिका द्वारा भारतीय राजनयिक देवयानी के खिलाफ की गई कार्यवाही के बाद भारत सरकार पर अमेरिकी संबंधों को लेकर विपक्ष एवं आमजनों का भारी दबाव है। भारत सरकार पहली बार अस्मिता को लेकर अमेरिका सरकार से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर रही है।
इंटरनेट के डोमिन रजिस्ट्रेशन पर अमेरिका ने एकाधिकार कर रखा है। अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियां इंटरनेट के माध्यम से किसी भी संवाद एवं जानकारियों पर नियंत्रण रखकर उनका दुरूपयोग भी कर रही है। वहीं करोड़ों डोमिन पर हर वर्ष वार्षिक शुल्क लेकर अमेरिकन वंâपनियां अरबों डॉलर का मुनाफा कमा रही हैं। वहीं लाखों सर्वर अमेरिका में लगे होने से उनके किराए और जानकारियों का दुरूपयोग करने से भारत सरकार सख्त रूख अपनाने जा रही है।
भारत सरकार ने इंटरनेट पर अमेरिका के एकाधिकार को चुनौती देने का पैâसला किया है। भारत डोमेन रजिस्ट्रेशन एवं इंटरनेट पर निगरानी को लेकर अन्र्तराष्ट्रीय निगरानी संस्था बनाने के लिए चीन और रूस जैसे देशों को साथ लेकर अमेरिका के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है।
इस समय डोमेन पंजीकरण से लेकर उस पर होने वाले सभी संवाद तथा स्टोरेज अमेरिका में होता है। भारत सरकार के दबाव के बाद भारत में सर्वर लगाने के लिए अमेरिका तैयार हुआ। भारत का कहना है कि इससे समस्या हल नहीं होगी। उसे उन डोमेन या साइट पर हुए सभी संवाद का स्टोरेज भी चाहिए जो भारत में पंजीकृत हैं। केन्द्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारिक सूत्रों के अनुसार इंटरनेट पर मुख्य रूप से अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों का नियंत्रण बना हुआ है। भारत में हाल ही में सोशल मीडिया या इंटरनेट के कारण कई विवाद, तनाव और दंगे हुए हैं। ऐसे में इंटरनेट पर भारत से हुए संवाद या बाहर से भारत में आए संवाद का स्टोरेज भारत में होना चाहिए। इससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियां त्वरित कार्यवाही कर सवेंâगी। साइबर सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग को लेकर गठित उप-समिति जल्द ही यह मुद्दा पूरी ताकत से उठाएगी।
डोमेन नेम सिस्टम का प्रबंधन डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स के तहत अमेरिका का नेशनल टेलीकम्युनिकेशन एंड इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन करता है। इसके सारे आर्थिक लाभ उक्त संस्था को मिलते हैं। वहीं अमेरिकी गुप्तचर एजेंसियां इस व्यवस्था से जासूसी कर सारे विश्व को अपनी ऊंगलियों पर नचाती है। उल्लेखनीय है कि भारत में १५ करोड़ उपभोक्ता इंटरनेट का उपयोग करते हैं। चीन के ५६ करोड़ तथा अमेरिका के २५ करोड़ उपभोक्ता इंटरनेट का उपयोग करते हैं। इंटरनेट की दुनिया में भारत तीसरा बड़ा राष्ट्र हैं। चीन और रूस को इस मुद्दे पर अपने साथ कर लेने से अमेरिका को एकाधिकार बनाए रखना काफी मुश्किल होगा।
हमने अमेरिकी खुफिया निगरानी के बारे में पहले ही लिखा है।
Wednesday, July 3, 2013
नागरिकों की नागरिकता, संप्रभुता और निजता के अधिकारों के हनन की नींव पर ही खुले बाजार की अंतरिक्ष छुती बहुमंजिली इमारत की यह विकास गाथा!
पलाश विश्वास
पूरे देश दुनिया को मालूम है कि ममता बनर्जी अराजक राजनेता है और इसलिए वह जब तब सत्ता वर्ग के हितों के खिलाफ भी बयान जारी कर देती है। नागरिकों की खुफिया निगरानी और निजता के अधिकार की चर्चा वह सिर्फ इसलिए कर रही है कि केंद्र सरकार में सत्तारूढ़ य़ूपीए सरकार से उनकी पार्टी अलग हो गयी है।
जाहिर है कि यह मसला कोई नया मामला नहीं है। नागरिकों की नागरिकता, संप्रभुता और निजता के अधिकारों के हनन की नींव पर ही खुले बाजार की अंतरिक्ष छुती बहुमंजिली इमारत की यह विकास गाथा है, जिसका दीदी ने पहले विरोध नहीं किया। और अब जब विरोध कर ही रही हैं तो सोशल नेटवर्किंग पर अपने फैन और आगंतुकों तक सीमित है उनका यह अभिनव विरोध।
अभी हिमालयी सुनामी से पहले और आईपीएल प्रकरण के अवसान से पहले अमेरिकी सरकार की ओर से इंटरनेट पर खुफिया निगरानी की प्रिज्म योजना का खुलासा हो गया तो पूरे विश्व में हंगामा हो गया। चूंकि उसके ग्राफिक्स और तमाम सबूतों को रखना था, जिनके अमेरिकी स्रोत अमेरिका था, इसलिए इसपर मैंने अंग्रेजी में लिखा था। फिर हिमालय में सुनामी आ गयी तो इल प्रकरण पर हिंदी में भी लिखने की फुरसत नहीं है। हर भारतीय की तरह हमारे लिए भी सर्वोच्च प्राथमिकता अपना घर है, जो निःसंदेह हिमालय है। लेकिन इस मामले ने जागरुक नागरिकों का ध्यान जरुर खींचा।
देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर हो गयी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने इस युक्ति से खारिज कर दिया कि इसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है। राजनीति और अरजनीति दोनों ने रहस्यमय चुप्पी साध ली। जैसे अमेरिकी प्रिज्म से उनका कद बड़ रहा हो।
नागरिकता, नागरिक संप्रभुता और निजता के अधिकार के लिए इस देश के तमाम जनसंगठन लगातार आंदोलन कर रहे हैं। हम भी सिर्फ लेखन तक विरोध नहीं कर रहे हैं। इसके खिलाफ हम सड़कों पर है। क्योंकि इसका असर सबसे ज्यादा हमारे स्वजन यानि आदिवासी समाज, शरणार्थी, बंजारा , अछूत और शहरों के बस्तीवासी होंगे।
जल जंगल जमीन और नागरिकता से बेदखली का सबसे कारगर हथियार है गैरकानूनी कारपोरेट बायोमेट्रिक नाटो आविस्कृत आधार योजना ,जिसे खुद अमेरिका, ब्रिटेन , जरमनी समेत विकसित विश्व ने नागरिकों की निजता और संप्रभुता के सवाल पर रद्द कर दिया है। ब्रिटेन में आधा काम हो जाने के बावजूद इस योजना को रद्द करना पड़ा क्योंकि इसके विरोध में सरकार ही उलट दी गयी।
भारत में न सिर्फ नागरिकता, निजता और संप्रभुता का अपहरण हो रहा है बल्कि इसके तहत देश के हर हिस्से में अबाध पूंजी प्रवाह की तरह अबाध बेदखली अभियान जारी है, देश ऩिकाला जारी है और नरसंहार जारी है। फिरभी हमारी बड़बोली राजनीति और अराजनीति पूरे एक दशक खामोश है।
नागरिक और मानव अधिकार किसी भी हाल में निलंबित नहीं किये जा सकते। यह सभ्यता और लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है। फर लोकघणराज्य भारत में जहां 1958 से सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून जैसा नरसंहार संस्कृतिसहायक विरासत बनी है, देश के तमाम आदिवासियों के किलाफ राष्ट्र ने बाकायदा युद्धघोषणा कर दी है, आधा से ज्यादा भूगोल नस्ली भेदभाव के तहत अस्पृश्य है, प्रकृति से हर कही बलात्कार परंपरा है और प्राकृतिक संसाधनों की लूटखसोट के लिए रोजाना रंग बिरंगे अभियान के तहत संसदीय सहमति से आम जनता का खुला आखेट चला रहा है, तो नागरिक अधिकार और मानव अधिकार अप्रासंगिक हो गये हैं। अप्रासंगिक हो गये हैं लोकगणराज्य, संसदीय लोकतंत्र और संविधान। सर्वत्र कारपोरेट राज।
लेकिन कारपोरेट के व्याकरण का भी खुला उल्लंघन हो रहा है। देश अगर खुला बाजार है और नागरिक अगर उपभोक्ता और क्रयशक्ति धारक क्रेता, तो कारपोरेट व्याकरण के हिसाब से उसके अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए।ऐसा भी नहीं हो रहा है।
नागरिकों को अनिवार्य सेवाएं शिक्षा, कानून व्यवस्था के तहत सुरक्षा, चिकित्सा, बैंकिंग, यातायात और देश में कहीं भी अबाध आवागमन का अधिकार होना चाहिए। यूरोप जैसे परस्परविरोधी शत्रुता के महादेश में राजनीतिक सीमाएं लोगो के आवागमन को अवरुद्द नहीं करती। पर इस देश में बायोमेट्रिक नागरिकता अपनाने के बाद बैंक खाता हो या गैस सिलिंडर, बिजली पानी हो या बच्चों का दाखिला हर कहीं अपनी संप्रभुता और निजता के अपहरण के बाद दागी अपराधियों की तरह आपके हथेलियों और आंखों की पुतलियों की छाप अनिवार्य है। नागरिक रोजगार और व्यवसाय के लिए अन्यत्र आ जा नहीं सकते। बसवास नहीं कर सकते।
नकद सब्सिडी के साथ आधार कार्ट नत्थी करके जरुरी और अनवार्य सेवाओं के निलंबन से क्या नागरिकता नागरिक व मानव अधिकारों का हनन नहीं हो रहा है?
यहीं नहीं, मजदूरी, वेतन और भविष्यनिधि का भुगतान आधार योजना से अवैध तौर पर जोड़कर विलंबित या स्थगित करने का नागरिक विरोधी , संविधान विरोधी मानवता विरोधी कारोबारविरोधी अपराध सर्वदलीय सहमति से आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्रहित के नाम पर किये जा रहे हैं।
मालूम हो कि इस पूरी प्रक्रिया की शुरुआत तत्कालीन गहमत्री लालकृष्ण आडवानी ने नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करके किया, जिसका संसद में किसी दल ने विरोध नहीं किया। जनसुनवाई की औपचारिकता हुई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। तब संसदीय समिति के अध्यक्ष बतौर मौजूदा राष्ट्रपति व तत्कालीन विपक्ष के नेता प्रणव मुखर्जी ने कानून बनाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया। इसमें वामपंथियों, समाजवादियों और अंबेडकरवादियों की जितनी सहमति थी, उतनी ही आम राय थी अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यक समुदायों के नेताओं की।
गौरतलब है कि तब माननीया ममता बनर्जी केंद्र सरकार में केबिनेट मंत्री थीं। उन्होंने तब कोई विरोध किया हो तो हमें जानकारी अवश्य दें।
जैसे सूचना के अधिकार के दायरे से राजनीतिक दलों को बाहर करने का मामला है, जैसे कारपोरेट चंदे , बेहिसाब संपत्ति और कालाधन से राजनीति चलाने का मामला है, नागरिकता , निजता और नागरिक संप्रभुता का मामला भी ठीक वैसा ही है , जिस पर हम जैसे कुछ बदतमीज लोग भौंकते रहते है, राजनीति और अराजनीति इस मुद्दे पर खामोश है। वे सिर्फ अपने, अपने दल और अपने स्वजनों, कारपोरेट आकाओं के खिलाफ स्टिंग आपरेशन, सराकीर तौर पर फोन टैपिंग और खुफिया निगरानी के खिलाफ आवाज बुलंद करने के अभ्यस्त हैं।
आम नागिरक जिये या मरे , उनके गुलशन का कारोबार जारी रहना चाहिए।
दीदी इस मुद्दे पर लीक तोड़कर बोलीं, उन्हें धन्यवाद।
बाकी लोग जुबान खोलेंगे?
Mamata Banerjee
It seems, the privacy of our countrymen would soon be at stake at the hands of the UPA-II Government.
Reports reveal that this UPA-II Government is in the process of developing a system called Centralized Monitoring System (CMS) by C-DoT that will enable the Government and its agencies unfettered access in real time to any mobile and fixed line phone conversation, SMS, fax, website visit, social media usage, Internet search and emails, including partially written emails in draft folders of target accounts.
Experts feel that these capabilities could be as lethal and intrusive as the highly controversial PRISM project.
The plan is to launch it in Kolkata, Karnataka and Kerala. By March, 2014, the aim is to cover about 12 states.
Why the UPA-II Government is developing an autocratic system of surveillance and monitoring to secure interception of telephonic conversation in all forms?
Will it be targeted to silence the opposition in general, and politicians and others in particular? Who will authorize or decide on selection of targets?
Will not this intrusion make our Constitutional right to freedom of speech and expression under Article 19(1)(a) a mockery?
In a federal and democratic system of our country, will it be proper to move ahead with such a draconian means without consulting the political parties or without discussing the matter in the Parliament?
There are many more questions than answers in mind.
I thought of sharing this information with all of you so that you become aware of the project and generate your questions and opinion on it.
The relevant media report is uploaded.
Please share your views quickly as time is running out….
यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल की ताजा रिपोर्ट में कहा है कि पिछले नौ वर्ष के दौरान देश में ढांचागत क्षेत्र में बड़ी तरक्की हुई है.
सड़क एवं रेल नेटवर्क, बिजली उत्पादन व दूरसंचार सेवाओं तक लोगों की पहुंच के मामले में व्यापक सुधार दर्ज किया गया है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा आज जारी इस लेखा जोखा के मुताबिक, पिछले नौ वर्ष में सड़क ढांचे में उल्लेखनीय सुधार हुआ जिसमें भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 17,394 किलोमीटर सड़क का निर्माण अथवा उन्नयन किया.
इस दौरान, सड़कों में निवेश दस गुना बढ़ा है जिससे किसानों को अपने उत्पाद बाजारों तक ले जाने में मदद मिली और उन्हें अपने उत्पादों का अच्छा मूल्य मिला. इस दौरान दो लाख किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़क नेटवर्क का विस्तार हुआ.
अकेले बीते वित्तवर्ष में ही 21,000 किलोमीटर सड़कों के निर्माण या उन्नयन में 6,450 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है.
रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक, रेलवे नेटवर्क में इतनी क्षमता उत्पन्न की गयी कि आज यह सालाना 822.4 करोड़ लोगों को परिवहन सुविधा देने के साथ-साथ एक अरब टन से अधिक माल की ढुलाई कर रही है.
रिपोर्ट में कहा गया है, 'पश्चिमी व पूर्वी समर्पित माल ढुलाई गलियारों पर काम शुरू हो चुका है और इन गलियारों से रेलवे नेटवर्क का आधुनिकीकरण होगा.'
बिजली क्षेत्र में पिछले नौ वर्ष के दौरान और उत्पादन क्षमता जोड़ी गई जो स्वतंत्रता के बाद की संपूर्ण अवधि में जोड़ी गई क्षमता से भी अधिक है.
रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक, अक्षय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादन नए स्तर पर पहुंच गया, जबकि प्रति व्यक्ति बिजली खपत 2011 में बढ़कर 813 यूनिट 'किलोवाट आवर' पहुंच गई जो 2002 में 559 किलोवाट आवर थी.
यूपीए सरकार के कार्यकाल में ग्रामीण इलाकों में दूरसंचार घनत्व 25 गुना बढ़ा है और भारत इस समय उन देशों में है जहां दूरसंचार सेवाओं की दरें न्यूनत स्तर पर हैं.
रिपोर्ट के अनुसार 'ब्राडबैंड 2014 तक ढाई लाख गांवों तक पहुंच जाएगा. यूपीए सरकार के कार्यकाल में इंटरनेट व ब्राडबैंड सेवाएं सौ गुना से अधिक बढ़ी हैं.'
इकोनामिक टाइम्स की इस स्टोरी पर भी गौर करेंः
PM's Rescue Mission Salvages 125 Projects
First Y e a r o f C C I : T h e H i t s & t h e M i s s e s While it's useful to nudge various agencies, industry feels it can only be a short-term solution to jump-start investments
VIKAS DHOOT NEW DELHI
Prime Minister Manmohan Singh's big idea to revive the economy by fast-tracking long-delayed major investment projects through special interventions by the Cabinet Committee on Investments completed a year on Thursday, having salvaged nearly 125 projects worth over 4 lakh crore from layers of red tape.
For India Inc, this has been one of the most positive developments in recent months even as the economy continued to slide from a decadelow level of 5% growth recorded in 2012-13. Enthused by the government's intent, promoters of nearly 280 other projects worth . 15.50 lakh crore have queued up for an intervention from the Cabinet Committee on Investments or CCI and the special project monitoring group (PMG) set up under its aegis to attempt resolution of pending clearances and paperwork hurdles that are holding them up. These include India's biggest ever FDI proposal – Posco's . 53,000 crore integrated steel plant in Odisha, which approached the cabinet secretariat last month for help in expediting clearances and land acquisition. And many more are waiting in the wings. The Confederation of Indian Industry president S Gopalakrishnan has urged the Centre to reduce the Rs 1,000 crore threshold for a project to be considered by the special investment vehicle to Rs 500 crore, stressing that projects with smaller outlays are equally critical to fix the economy's woes.
The PMG was launched in June 2013 to attempt resolving red tape delays through a constant interaction with ministries and state governments and flag larger unresolved projects and issues for the CCI's attention. Gopalakrishnan lauded the CCI's efforts at putting stalled projects back on track so that investment momentum picks up again, in a letter to Prime Minister Manmohan Singh. He also appreciated the 'exemplary role' of the PMG in resolving issues holding up projects through persistent dialogue with state governments and multiple ministries.
"It appears that this mechanism is working smoothly and over the next few months, the pending projects in the list (of projects before the CCI and the PMG) would also be addressed," the CII president wrote to the PM on Dec 9. Though industry has welcomed the CCI's ability to get delayed project files moving, it believes that the panel can only be a short-term solution to jump-start investments.
"While CCI is a useful mechanism to nudge various agencies in central and state governments to accelerate approvals and permits for projects with outlay of over . 1,000 crore, it's about time the governments, both central and state, do a complete rethink on the archaic approval processes for projects across sectors," said Sanjay Sethi, senior executive director and head of the infrastructure group at Kotak Investment Banking.
"The real question to ask is why do we need a 100 clearances to set up a power plant," Sethi said. "The country deserves a new paradigm which will drastically reduce the numbers of approvals required for each project and simplify the entire approval mechanism," he said. Many industry experts that discussed the CCI's functioning with ET felt that the PM's big idea could have achieved much more and possibly even pre-empted the economy's woes, had it been put in place a couple of years ago, if not earlier.
HITS
The power sector has been the biggest beneficiary of interventions by the CCI and the PMG, with as many as 83 power projects worth Rs 3.41 lakh crore getting critical clearances so that they can move towards commissioning the projects. Most of these projects were starved of coal and Coal India Limited has signed fuel supply agreements over the past year.
This means more than half of the 160 power projects costing . 8.37 lakh crore that sought the government's help, have already been bailed out.
Over 18 coal mining projects worth . 11,000 crore also benefited from the CCI's diktats, as crucial green clearances were granted for them. An attempt is being made to get another 42 coal projects worth Rs 25,000 crore off the ground, along with special railways projects for coal transport worth . 10,000 crore.
Five oil and gas projects worth . 5,000 crore have been freed of red tape. But many of the 38 other projects in the sector worth . 2.36 lakh crore awaiting a rescue act, are expected to get a go-ahead soon with petroleum minister Veerappa Moily taking charge of the environment and forest ministry, where a lot of relevant clearances are stuck. 14 projects in steel, shipping, road transport and railways sectors worth nearly . 17,000 crore have got the green signal. Again, around 88 projects worth over Rs 5 lakh crore across these sectors are still awaiting a nod.
"It would be helpful to know how many of these projects are now closer to commissioning or kicking off operations and thus, contribute to the economy's revival," Sethi said. In order to ascertain the ground-level impact of these decisions, the government has now asked the finance ministry to keep tabs on actual investment inflows into projects where all outstanding issues have been fixed. The Department of Financial Services, which had pushed for a mechanism like the PMG to check banks' rising non-performing assets due to exposures to stalled projects, has been entrusted with this post-clearance monitoring role.
CHALLENGES
The bureaucracy's fear of taking decisions in the face of an overdrive from investigative agencies like CBI and CVC, industry fears, could dampen the CCI's ability to push projects as well as an overhaul of approval procedures that is a part of its mandate.
Assocham president and Yes Bank CEO Rana Kapoor has warned the PM that the situation would become "even more precarious" in an election year.
"We are afraid, if this environment of distrust continues, the decision- making will get further hampered and all those big projects recently cleared by the Cabinet Committee on Investments (CCI) will not take off, since they will be stuck again at the implementation stage because of demoralised bureaucracy and a shaken entrepreneur," wrote Kapoor, who is also the founder and managing director of Yes Bank. FICCI president Sidharth Birla said it is important that CCI removes the kinks in the system rather than assume a permanent role of bailing out projects.
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Manufacturing PMI Tapers on Weak Domestic Market
Index down to 50.7 points in Dec from 51.3 in Nov indicating continued drag on industrial recovery
OUR BUREAU NEW DELHI
India's manufacturing activity slackened in December compared with the previous month because of sluggish domestic orders, a private survey released on Thursday showed, indicating a continued drag on country's industrial recovery.
The HSBC Purchasing Managers' Index (PMI) for manufacturing was down to 50.7 points in December from 51.3 in November. A reading of over 50 on this survey-based index shows expansion while below that signals contraction. "Today's numbers show that growth remains moderate and struggles to take off due to lingering structural constraint," said Leif Eskesen, HSBC's chief economist for India and ASEAN. However, this was the second straight month of growth after three successive months of contraction till October.
The PMI report is based on a survey of 500 private sector firms and not on actual production or output, which is why its findings are considered only a broad indicator of the trends in the manufacturing sector.
The official industrial production data showed zero growth in the first seven months of the fiscal due to subdued investment and demand in the economy. The economy expanded 4.6% in the first half of 2012-13. So it will have to grow by at least 5.4% during the rest of the year to match the previous fiscal's 5% growth. The PMI data suggests that achieving this higher growth is likely to be a stiff task especially due to a likely sharp compression in government spending.
The sub-index that measures new orders fell to 51.3 in December from 51.9 in November, explaining the decline in output in December. However, the companies surveyed indicated a pickup in exports order growth.
The backlogs of work rose again during the latest survey period, with the rate of accumulation climbing to a sixmonth high. "Anecdotal evidence highlighted raw material shortages at vendors and power cuts," it said. The survey showed that inflation might be easing finally, an expectation that could allow the Reserve Bank of India to keep rates on hold. "On the bright side, there are signs that inflation pressures may be easing. The strengthening of the exchange rate since August has helped reduce imported inflation and weak domestic demand is also contributing," the survey noted.
"If the softening in inflation pressures materialise in the CPI and WPI numbers released later this month, the RBI may feel compelled to remain on hold again." RBI Governor Raghuram Rajan had surprised the markets in December by refraining from another rate hike despite record high retail inflation and a 14-month high wholesale inflation.
अब तक गोपाल कृष्ण जी के जो आलेख मैंने आधार परियोजना पर अपने ब्लागों में लगाये हैं,उनको भी दुबारा पढ़ लें, उनके मूल लिंक इस प्रकार हैं-
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Biometric profiling, including DNA, is dehumanising -Part III
Marketing and advertising blitzkrieg of biometric techies and supporters -Part IV
History of technologies reveals it is their owners who are true beneficiaries -Part V
UID's promise of service delivery to poor hides IT, biometrics industry profits –Part VI
Technologies and technology companies are beyond regulation? -Part VII
Surveillance through biometrics-based Aadhaar –Part VIII
Narendra Modi biometrically profiled. What about Congress leaders?-Part IX
Aadhaar: Why opposition ruled states are playing partner for biometric UID? -Part X
Is Nandan Nilekani acting as an agent of non-state actors? –Part XI
Aadhaar and UPA govt's obsession for private sector benefits–Part XII
Are Indians being used as guinea pigs of biometric technology companies? -Part XIV
Aadhaar: Is the biometric data of human body immortal and ageless? Part XV
Aadhaar: The propaganda of transnational vested interests –Part XVI
Aadhaar: Pakistan handed over, India giving database on a platter– Part XVII
Engineered row in US-India relations, an attention diversion tactics of big brothers?—Part XVIII
Jagadishwar Chaturvedi
मनमोहन सरकार का सही क़दम-
सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना के तहत दिसंबर, 2013 तक एलपीजी सब्सिडी के तौर पर 2,000 करोड़ रुपये 6.6 करोड़ खातों में हस्तांतरित किए हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संप्रग सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी करते हुए आज कहा कि दिसंबर, 2013 तक एलपीजी के अंतर्गत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण 2,000 करोड़ रुपये का स्तर पार कर गया है। देशभर में 184 जिलों में छह करोड़ से अधिक उपभोक्ता एलपीजी के लिए डीबीटी का लाभ उठा रहे हैं।
भारतीय विशेष पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने देशभर में 51 करोड़ से अधिक आधार कार्ड जारी किए हैं और केंद्र द्वारा प्रायोजित 28 योजनाओं को आधार से संबद्ध किया गया है। उन्होंने कहा कि चार करोड़ बैंक खातों को आधार से जोड़ा गया है और 156 बैंक प्रत्यक्ष सब्सिडी अंतरण में भागीदारी कर रहे हैं।
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Economic and Political Weekly
The hard-hitting report of the independent fact-finding committee on#Muzaffarnagar riots has been published on the EPW website.
An EPW web exclusive: http://www.epw.in/web-exclusives/fact-finding-report-independent-inquiry-muzaffarnagar-%E2%80%9Criots%E2%80%9D.html
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(Gopal Krishna is member of Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL), which is campaigning against surveillance technologies since 2010)
Aadhaar: UIDAI and the 'fifth column' of Napoleon—Part XIX
GOPAL KRISHNA | 26/12/2013 03:25 PM |
Most of those who are in public life are in the 'fifth column' because of either their naivety or their seemingly apolitical tunnel vision for UIDAI's Aadhaar project, which makes them act treacherously in a historical vacuum
It is said that once on a military campaign Napoleon Bonaparte, a military and political leader of France, stood outside his tent in the battlefield facing the most fortified castle of an European city and said, "Once this city is taken, nothing will stop my campaign, and I'll soon be Emperor of France" with my five army columns. Everybody knew about his four columns of army but not the fifth. When asked about his 5th column, Napoleon replied, "My fifth column is within the city itself!" Soon the gate keepers of the castle were clubbed to death, the huge gates swung open, and Napoleon's soldiers marched through. The "fifth columnists" told him about the barracks full of soldiers kept to defend the city. Napoleon woke them and asked them to join him or die. The city fell in no time and Napoleon did indeed go on to become Emperor of France with the help of the fifth columnists.
There is an unacknowledged relationship between the biometric Unique Identification (UID)/Aadhaar project and the US-based National Defense Industrial Association (NDIA). The latter was set up in 1919 to scale up the war effort during World War-I. Since then, it has been "promoting national security" of the US and 'institutionalising' Biometrics Enabled Identification based on Automatic Identification Technologies (AIT). The same National Defense Industrial Association-sponsored Unique Identification (UID) Industry Leadership Advisory Group (ILAG) that was organised "in March 2005 at the suggestion of the US Department of Defence (DoD) UID Program Manager to serve as a defense industry focal point for government-industry collaboration and coordination in developing UID implementation policy and procedures."
Notably, Defence Procurement and acquisition policy office in the US DoD has a "Unique Identification" (UID) section for "in tracking and reporting the value of items the Government owns", "Item Unique Identification (IUID) Standards for Tangible Personal Property" and "Unique Identification (UID) Standards for a Net-Centric Department of Defense" that cites "Department of Defense Chief Information Officer (CIO) Memorandum, "DoD Net-Centric Data Strategy"" dated 9 May 2003.
It is stated that IUID requirement does not apply to "software, manuals, etc." and "commercial off-the-shelf (COTS) items" but it applies to "not-for-profit contracts such as research contracts with universities", "classified items", "foreign military sales", "small businesses", "government-furnished property", "Defense Logistics Agency (DLA) requests" "models, prototypes, or development items delivered to DoD".
US Department of Defence uses both Radio Frequency Identification (RFID) and Item Unique Identification (IUID). "Within IUID, the unique item identifier (UII) is a piece of data associated with an item that uniquely identifies it throughout its life. RFID is a vehicle for holding and sharing data. IUID of tangible items deals with physical markings applied directly (or indirectly via label, data plate, etc.) on items. IUID also requires data to be captured about the item and submitted electronically to a registry database. It is thought of as creating a birth certificate for the item. On a superficial level, IUID and RFID employ different technologies. IUID utilises an optically scannable 2-dimensional data matrix barcode to carry information whereas RFID utilises some form of integrated circuitry to encode information and produce radio waves which can be received and interpreted at a greater distance with a radio antenna and receiver.
Notably, RFID has been recommended in India for installation vehicles and libraries. A briefing paper of Government of India observed that "Information or an opinion about an individual" is personal sensitive information.
Functionally, IUID's purpose within the (US) DoD is "to uniquely identify individual items". The purpose of RFID within the (US) DoD is "to identify cases, pallets, or packages which contain items". UID Policy Office of US DoD has a number of working groups to support the development and implementation of the UID policy. These include Working Groups on: Logistics IUID Task Force, Industry Leadership Advisory Group (ILAG), Wide Area Work Flow (WAWF)/UID/RFID Users Group, Property Management, Joint Aeronautical Commanders, Government Furnished Property Industry, Federal Acquisition Regulation, Business Rules, Standards, Implementation, Technical Interface and IUID Quality Assurance.
Biometrics technology companies like Raytheon Company who were awarded byNational Defense Industrial Association in 2009 participated in the ILAG. They have created an artificial need to sell their surveillance products in India unmindful of its dehumanising ramifications. It is these entities which are behind the biometric UID/Aadhaar project and the Bill to sell their products.
The preamble of The National Identification Authority (NIDAI) Bill, 2010 which was rejected by the Parliamentary Standing Committee on Finance reveals that it is meant "for the purpose of issuing identification numbers to individuals residing in India and to certain other classes of individuals". There are two parts to the phrase "individuals residing in India and to certain other classes of individuals".
The first part refers to "resident" as an individual usually residing in a village or rural area or town or ward or demarcated area (demarcated by the Registrar of Citizen Registration) within a ward in a town or urban area in India." This motivated definition of the term resident in the Section 2 (q) of the NIDAI Bill accords wide scope to the Bill. It leaves the definition vague about the Indians who are residing abroad temporarily, non-resident Indians (NRIs), persons of Indian origin (PIOs) and refugees. By now, Indians know that there are NRIs and PIOs of all ilk and shades whose role merits rigorous attention. The second part of the phrase is "certain other classes of individuals". The first part is defined but the second part has not been defined.
The National Identification Authority (NIDAI) Bill, 2013 which was re-approved by the Union Cabinet on 8 October 2013 was listed for introduction in the winter session of the Parliament between 5th to 18 December 2013, but it could not be introduced. In the new version, "certain other classes of individuals" have been substituted with "certain other categories of individuals to enable establishing the identity."
In the NIDAI Bill 2010, Section 4(3) reads, "An Aadhaar number shall, subject to authentication, be accepted as proof of identity of the Aadhaar number holder."
In the NIDAI Bill, 2013, Section 4 (3) reads, "An Aadhaar number in physical or electronic form, subject to authentication and other conditions as may be specified by regulations, shall be accepted as proof of identity and proof of address." Along with it is added an "Explanation—For the purposes of this sub-section, the expression "electronic form" shall have the same meaning as assigned to it in clause (r) of sub-section (1) of section 2 of the Information Technology Act, 2000."
Section 9 of the Bill reads: "The Authority shall not require any individual to give information pertaining to his race, religion, caste, tribe, ethnicity, language, income or health." The issue here is once someone has been biometrically profiled and identified 'Prohibition on requiring certain information' becomes irrelevant. But the question ishow biometric information is less sensitive than information regarding race, religion, caste, tribe, ethnicity, language, income or health collection of which is prohibited?
Section 10 of the Bill reads: The Authority shall take special measures to issue Aadhaar number to women, children, senior citizens, persons with disability, migrant unskilled and un-organised workers, nomadic tribes or to such other persons who do not have any permanent dwelling house and such other categories of individuals as may be specified by regulations." It does not reveal or define the "special measures" being deployed to trap these categories of people in the database.
The Bill makes a specific distinction between the "identity information" in respect of an individual means biometric information, demographic information and Aadhaar number of such individuals" and "demographic information" that includes information relating to the name, age, gender and address of an individual (other than race, religion, caste, tribe, ethnicity, language, income or health), and such other information as may be specified in the regulations for the purpose of issuing an Aadhaar number. It refers to "biometric information" as "a set of such biological attributes of an individual as may be specified by regulations." It is important to note that although Planning Commission or Ministry of Home Affairs does not have the legal mandate to collect biometric data instead of seeking that mandate under the NIDAI Bill, there is once again an effort being made to do it through sub-ordinate legislation.
The Bill defines "Central Identities Data Repository" (CIDR) as "a centralised database in one or more locations containing all Aadhaar numbers issued to Aadhaar number holders along with the corresponding demographic information and biometric information of such individuals and other information related thereto." It is not made clear as to why CIDR will be at "one or more locations."
Now, if one looks at the definition of "authentication" in the Bill which is defined as "the process wherein, Aadhaar number along with other attributes (including biometrics) are submitted to the Central Identities Data Repository for its verification and such Repository verifies the correctness thereof on the basis of information or data or documents available with it," it implies that authentication using CIDR of an "Aadhaar number holder", an individual who has been issued an Aadhaar number, will be done at "one or more locations."
It is quite apparent that these locations can be private companies. In effect, a private company of Indian or/and foreign origin will authenticate whether a resident of India is definitely the same person as he/she claims to be. As an implication identity of an Indian citizen is going to be decided by a company, which can be a National Information Utility (NIU), a private company with a public purpose with a profit making as the motive but not maximising profit.
Most of those who are in public life are in the fifth column because of either their naivety or their seemingly apolitical tunnel vision which makes them act treacherously in a historical vacuum. It is evident that in India, knowingly or unknowingly many institutions and individuals are acting like this column, a party that is acting with the foreign and corporate entities to subvert the very idea of India and Indian civilisation under the influence of their supervisors.
Do Indians need to ponder over—who all are in the fifth column, which institutions are acting like this column and isn't there a need to know the identity of those in the column in question?
AAP rose as non-Cong, non-BJP force: Prakash Karat
Akshaya Mukul, TNN Jan 2, 2014, 02.24AM IST
CPM general secretary Prakash Karat speaks on the current political situation, rise of AAP and the important role that Tamil Nadu CM Jayalalithaa could play after the next general elections.
What is your assessment of the political situation after the assembly elections in four states?
Well, the assembly elections in four states in the north has shown clearly a strong anti-Congress mood. Congress suffered its worst defeat in Delhi and Rajasthan where it was in government.
BJP was the beneficiary of this anti-Congress mood because politics in these states is bipolar — Congress and BJP — for a long time. But the exception has been Delhi where the Aam Aadmi Party was able to present itself as a viable alternative to Congress and BJP.
This rise of AAP shows people will support a credible alternative to Congress and BJP if it exists.
What about Narendra Modi? So much was riding on him?
More than the Modi factor, it has been the depth of anti-Congress feeling that has stood out in these elections.
How do you see AAP's rise?
The rise of AAP and its getting major metropolitan cities is a new phenomenon. It has been able to attract support of middle classes who are normally apolitical. People have also responded to its image as a clean party. How far this can go beyond an urban setting remains to be seen. In many states, they are entrenched political parties. Some of them are fighting against both Congress & BJP. In such states, AAP may not be able to make much headway. Even in Delhi, after the formation of AAP, it was not only the corruption issue, they also took up other issues like electricity and water rates which helped them get wider support.
AAP is raising issues that were traditionally espoused by Left. Do you see AAP taking the Left space?
Left has not been a strong force in Delhi. In other states too, there are regional parties which have occupied political space where Left has limited presence. Many of the virtues that AAP claims for itself like a clean image, denying the perks and privileges of office and decentralizing power have been practised by the Left from the outset. Chief ministers of Left-led governments in West Bengal, Kerala and Tripura are known for their clean image and simple living. In fact, the current CM of Tripura is considered the 'poorest' CM in the country.
What do you think of AAP's policies and principles?
The election manifesto of AAP takes up some of the issues of people of Delhi and promises to address them. But the AAP leadership has not spelt out their basic programme and policies. For instance, are they for privatization of basic services — the constant increase in electricity rates is due to privatization of electricity supply. What is their stand on neo-liberal economic policies? There is an absence of their stand on communalism. When they criticize BJP, they do not speak about Hindutva agenda. Unless their comprehensive policy platform and programme are clear we cannot assess their future direction and role.
Do you see AAP as a potential ally?
That will depend on how the party evolves at a political and policy platform. As of now we consider it as a non-Congress, non-BJP force. They have aroused great expectations among the people.
What about Left's strategy for the next LS elections?
There is going to be an overall loose understanding between various non-Congress secular parties, regional parties and the Left. This may not translate into a specific election alliance but is part of a larger co-ordination. After the elections this can get solidified into a combination.
There is a talk of Tamil Nadu CM J Jayalalithaa becoming a rallying point.
We expect the AIADMK-led alliance to do very well in Tamil Nadu.
Jayalalithaa will emerge as an important factor in the future arrangement.
Times of India
महाघोटालों का सच
'स्पीक एशिया पोंजी स्कीम घोटाले ने देश के एक बड़े वर्ग को प्रभावित किया है। यह इकलौता ऐसा उदाहरण नहीं है। ऐसे कई और उदाहरण मौजूद हैं। बता रहे हैं विवेक सिन्हा और गौरव चौधरी
हर सुबह नाश्ते से पहले 44 साल के मुकेश बिष्ट जब अपना लैपटॉप खोल कर स्पैम मेल समेत अपने सारे नये मेल चेक करते हैं तो पाते हैं कि बहुत सारे मेल अपमानजनक हैं, कुछ में उन्हें गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी गई है तो कुछ में विनम्र अनुरोध भी किया गया है। बिष्ट को उनके नाम पढ़ने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह जानते हैं कि वे लोग कौन हैं। ये उनके वे डाउनलाइन इन्वेस्टर्स हैं, जिन्हें उन्होंने स्पीक एशिया की निवेश योजना में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया था, जिस स्कीम में बाद में करोड़ों रुपये के घोटाले का पता चला। उन्हें आए इन ई-मेल्स की भाषा चाहे अलग-अलग हो, लेकिन सभी में एक ही मांग होती है कि सिंगापुर की स्पीकएशिया ऑनलाइन लिमिटेड (एसएओएल) की जल्दी अमीर बनने की इस योजना में निवेश करवाने के लिए प्रोत्साहित करने वाले 'बिष्ट महोदय,' अब हमारे उन पैसों की भरपाई आपको करनी चाहिए, जो आपके कहने पर हमने गंवा दिये। बिष्ट कहते हैं, प्रतिदिन इस तरह के अपमानजनक मेल देख कर मैं खुद को ठगा हुआ और असहाय महसूस करता हूं।
एसएओएल योजना के प्रमोटरों के गायब हो जाने के बाद देहरादून निवासी मुकेश बिष्ट के साथ-साथ 24 लाख भारतीय इस ठगी के शिकार हुए हैं। कंपनी ने अपनी योजना शुरू करते हुए इन्वेस्टर्स और पैनेलिस्ट से कहा था कि अगर आप साल में 52,000 रुपये कमाना चाहते हैं तो हर हफ्ते ऑनलाइन फॉर्म भरें। फॉर्म भरने वालों से कंपनी ने वायदा किया था कि इसके बदले उन्हें साल में सिर्फ 11,000 रुपये जमा करने हैं और यह रकम तीन महीने के भीतर उन्हें वापस मिल जाएगी। एसएओएल ने साथ में यह भी वायदा किया था कि वे जितने अधिक सदस्य बनाएंगे, उन्हें उतनी ही अधिक अतिरिक्त कमीशन भी मिलेगी।
बिष्ट बताते हैं, 'स्पीक एशिया में मैंने जो शुरुआती पूंजी लगाई थी, वह मुझे तो मिल चुकी है, लेकिन मैं उन लोगों के लिए चिंतित हूं, जो मेरी सलाह पर इस योजना से जुड़े थे। मेरी चिंता यह है कि अगर उन लोगों का पैसा वापस नहीं लौटता तो मैं उनसे क्या कहूं?'
बिष्ट की इकलौती उम्मीद इस योजना के कथित सरगना राम सुमिरन पाल की भारत में हुई गिरफ्तारी से है। बहुएजेंसी जांच के बाद विशेषज्ञों का मानना है कि यह 2,200 करोड़ रुपये की एक व्यवस्थित वित्तीय ठगी है। अनुमान है कि इस ठगी में आठ और फर्मे भी शामिल हैं। इस सिलसिले में मुंबई पुलिस ने हाल ही में स्पीक एशिया के प्रमोटरों के खिलाफ 5000 पन्ने की एक चाजर्शीट दायर की है।
पिरामिड घोटाला
निवेशकों को छलने के लिए स्पीक एशिया ने एक वित्तीय पिरामिड योजना बनाई थी, जिसे पोंजी स्कीम कहा जाता है। यह नाम उस कार्लो पोंजी के नाम पर दिया गया है, जिसने अपने निवेशकों के सामने 1920 में एक स्कीम पेश की थी, जिसमें 45 दिन में 50 प्रतिशत मुनाफे का वायदा किया गया था और 90 दिन में 100 प्रतिशत का। उसने दावा किया था कि यह पैसा दूसरे देशों में छूट पर बिक रहे पोस्टल कूपन्स की अमेरिका में बिक्री से आएगा। पोस्टल कूपन बेचने में कुछ भी गैरकानूनी नहीं था। पोंजी चाहता तो इस व्यापार में कोई और व्यवस्थित तथा उचित तरीका अपना सकता था, लेकिन उसने इसके बदले एक अनोखा रास्ता अपनाया। उसने पुराने इन्वेस्टरों को नये इन्वेस्टरों से लिए पैसे से रकम वापस की और इसे तब तक जारी रखा, जब तक कि वह कानूनी जांच में फंस नहीं गया। इस बीच वह निवेशकों को लगभग दो करोड़ डॉलर का चूना लगा चुका था।
स्पीक एशिया से पहले के भारतीय उत्तराधिकारियों ने लगभग यही मॉडल अपनाया। सामान्यत: इन्होंने इसके लिए रीयल एस्टेट, हॉस्पिटेलिटी और मनोरंजन क्षेत्र का उपयोग किया। लेकिन विदेश में स्थित कंपनियों के लिए यह काम इंटरनेट के जरिये करना आसान रहा। एक शीर्षस्थ सरकारी अधिकारी ने बताया कि अपने खुद के सर्वर को छोड़ कर नेट इस्तेमाल करने वालों का उनके पास ऐसा कोई डाटा मौजूद नहीं है। हाल में सुपर फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) की अंतरविभागीय बैठक में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने अमेरिका आधारित ऑपरेटरों के बारे में यह मामला उठाते हुए चेतावनी दी थी।
एक घटना और देखें, अक्तूबर 2011 में कानपुर के 28 साल के समीर मनचंदा ने स्पीकएशिया के ऑनलाइन पैनेलिस्ट में शामिल होने के लिए 11,000 रुपये अपने एक रिश्तेदार से उधार लिये थे। वह कहते हैं, 'शुरू-शुरू में मुझे यह अपने सपनों की नौकरी की तरह लग रही थी। पर कुछ महीनों बाद जब स्पीकएशिया से मेरे किसी भी डाउनलाइन इन्वेस्टर के पैसे वापस नहीं आए तो वे मुझसे पूछने लगे कि माजरा क्या है। तब मैं समझ गया कि मेरे सारे सपने चूर-चूर हो गए हैं।'
जागा बाजार
भारतीय नियामक संरचना इस तरह के किसी भी धोखे को रोकने के लिए तैयार नहीं है। हाल ही में भारत सरकार ने नियामक बाजार को सशक्त बनाने के लिए एक अध्यादेश पारित किया है कि सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) इस तरह की पोंजी स्कीम को रोके। इस संशोधन में सेबी को यह अधिकार दिया गया है कि जहां 100 करोड़ या इससे अधिक की पूंजी लगी हो, वहां वह नजर रखे कि नियमों का अनुपालन हुआ है या नहीं। वह ऐसे मामलों में भी जानकारी प्राप्त कर सकती है, जिसमें उसे लगे कि कोई संदिग्ध व्यक्ति अथवा संगठन अवैध लेन-देन में लगा है। इस अर्थ में देखें तो स्पीकएशिया घोटाले ने बाजार को जगा दिया है।
(रिपोर्ट में वर्णित लोगों के नाम उनके अनुरोध पर बदल दिए गए हैं)
क्यों कहते हैं पोंजी घोटाला
यह नाम उस कार्लो पोंजी के नाम पर दिया गया है, जिसने अपने निवेशकों के सामने 1920 में एक स्कीम पेश की थी, जिसमें 45 दिन में 50 प्रतिशत मुनाफे का वायदा किया गया था और 90 दिन में 100 प्रतिशत का। उसने दावा किया था कि यह पैसा दूसरे देशों में छूट पर बिक रहे पोस्टल कूपन्स की अमेरिका में बिक्री से आएगा। पोस्टल कूपन बेचने में कुछ भी गैरकानूनी नहीं था। उसने इसके बदले एक अनोखा रास्ता अपनाया। पुराने इन्वेस्टरों को नये इन्वेस्टरों से लिए पैसे से उनकी रकम वापस करने का। इसे उसने तब तक जारी रखा, जब तक कि वह कानूनी जांच में नहीं फंस गया। इस बीच वह निवेशकों को लगभग दो करोड़ डॉलर का चूना लगा चुका था।
http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gaget/article1-story-67-68-389265.html
ब्लॉग
गूगल के साथ आया चुनाव आयोग
भारतीय निर्वाचन आयोग गूगल के साथ मिलकर मतदाताओं को उनके पंजीकरण की जानकारी मुहैया कराएगा. लेकिन अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की जासूसी के संदर्भ में क्या यह कदम उचित है.
भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी है कि आजादी के बाद से लगातार संवैधानिक संस्थाओं की साख में गिरावट आई है और इसके लिए देश का राजनीतिक वर्ग ही मुख्य रूप से जिम्मेदार रहा है. लेकिन न्यायपालिका, विशेषकर सर्वोच्च न्यायालय और निर्वाचन आयोग ऐसी संवैधानिक संस्थाएं हैं जिनकी साख आज भी पहले जैसी ही है. जहां तक निर्वाचन आयोग का सवाल है, शायद वह अकेली ऐसी संस्था है जिसकी साख में पिछले दो दशकों के दौरान वृद्धि ही हुई है. इसलिए निर्वाचन आयोग के हर एक फैसले पर पूरे देश की निगाह रहती है क्योंकि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाने में इन फैसलों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अनेक बार उसके फैसलों पर आशंकाएं प्रकट की गईं, मसलन इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल के फैसले पर, लेकिन सौभाग्य से वे सभी निर्मूल साबित हुईं. अब फिर से उसके एक ताजा फैसले पर लोगों का माथा ठनक रहा है और उन्हें कई किस्म की आशंकाएं सताने लगी हैं.
क्या करेगा गूगल
निर्वाचन आयोग ने अमेरिका की विराट इंटरनेट कंपनी गूगल के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके तहत आगामी लोकसभा से पहले गूगल उसे मतदाताओं के ऑनलाइन पंजीकरण तथा अन्य सुविधाओं से संबंधित सेवाएं मुहैया कराने में मदद करेगा. अगले छह महीनों के दौरान गूगल आयोग को अपने सर्च इंजिन समेत सभी संसाधन उपलब्ध कराएगा ताकि मतदाता इंटरनेट पर जाकर ऑनलाइन अपने पंजीकरण की ताजा स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकें और गूगल के नक्शों का इस्तेमाल करके अपने मतदान केंद्र को ढूंढ सकें.
एनएसए और गूगल की मिली भगत
पिछ्ले महीने अंतिम दिनों में इस अनुबंध को अंतिम रूप दिया गया और माना जा रहा है कि इस महीने के मध्य तक यह प्रभावी हो जाएगा. गूगल निर्वाचन आयोग को ये सुविधाएं मुफ्त देगा क्योंकि इसके लिए वह अपने सामाजिक दायित्व कोष से खर्च करेगा. यह खर्च भी कोई बहुत अधिक नहीं होगा, मात्र तीस लाख रुपये. गूगल जैसी सभी कंपनियों को कानून सामाजिक कार्यों के लिए अपने मुनाफे का एक निश्चित प्रतिशत खर्च करना होता है, इसलिए वह 100 देशों में इसी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराता है.
एनएसए का हस्तेक्षेप
पिछले दिनों एडवर्ड स्नोडन द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन के बाद अब यह तथ्य सार्वजनिक हो गया है कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी एनएसए अमेरिकी नागरिकों के साथ साथ दुनिया के अनेक देशों की सरकारों, उनके दूतावासों और नागरिकों के टेलीफोन, ईमेल और सामाजिक मीडिया पर गतिविधियों पर कड़ी निगाह रखे हुए है और सभी सूचनाएं एकत्र करती है. इन देशों की सूची में भारत का स्थान काफी ऊपर है. यह एक मित्र देश की सरकार और उसके नागरिकों के खिलाफ खुल्लमखुल्ला जासूसी करने का मामला है लेकिन अमेरिकी अदालतें इसमें कोई भी गैरकानूनी बात नहीं देखतीं. अमेरिकी प्रशासन भी इसे लेकर शर्मसार नहीं है और दुनिया भर के देशों के नागरिकों की निजता के हनन को गलत नहीं मानता.
गूगल कुकीज के जरिए एनएसए उपभोक्ताओं की जासूसी करता है
अमेरिकी कंपनियां अमेरिकी कानून का पालन करने के लिए बाध्य हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी को सभी जानकारी मुहैया कराना उनका कानूनी दायित्व है. जब कोई मतदाता ऑनलाइन पंजीकरण कराएगा, तो उसे अपने बारे में सभी जरूरी जानकारी देनी होगी और वह जानकारी और संभवतः निर्वाचन आयोग का पूरा डेटाबेस भी इस प्रकार गूगल को उपलब्ध हो जाएगा. लोगों के मन में यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि अमेरिका द्वारा दुनिया भर के देशों के नागरिकों पर आतंकवाद के खतरे का मुकाबला करने के नाम पर निगरानी रखने के बारे में जानने के बाद भी क्या गूगल को भारतीय मतदाताओं के बारे में सारी जानकारी देना उचित होगा?
कुछ अहम सवाल
एक दूसरा सवाल भी है और वह यह कि सिर्फ तीस लाख रुपये बचाने के लिए निर्वाचन आयोग को गूगल के साथ इस तरह का अनुबंध करना चाहिए था? भारत जैसे विशाल देश में चुनाव प्रबंध करने पर होने वाले विराट खर्च के सामने तीस लाख रुपये की रकम नगण्य है. इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि क्या भारत में इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं है जो गूगल की मदद ली जाये. इस संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग गूगल के पास नहीं गया, गूगल ने स्वयं उसके सामने मदद का प्रस्ताव किया. क्या यह अयाचित मदद बिना किसी अन्य मंतव्य के है?
सूचना तकनीकी के क्षेत्र में काम करने वाले कुछ भारतीयों ने अखबारों में छपी खबरों पर टिप्पणी करते हुए निर्वाचन आयोग के सामने प्रस्ताव रखा है कि वे अपने सभी सर्च इंजिन उसके काम में लगाने को तैयार हैं और वह गूगल के बजाय उनसे मतदाता पंजीकरण आदि कामों में सहायता ले ताकि जानकारी अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के हाथों में न जाए. देखना होगा कि क्या आयोग उनके अनुरोध का संज्ञान लेता है या नहीं.
ब्लॉग: कुलदीप कुमार
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन
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सुपर कंप्यूटर बना रहा है एनएसए
जेब में जासूस बिठाते उपकरण
एनएसए पर लगाम का सुझाव
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प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने पिछले तीन साल में अपने पहले और दस सालों में तीसरे संवाददाता सम्मेलन में भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए नामित किए गए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी वार करते हुए देश की जनता को चेताया कि यदि वह (नरेंद्र मोदी) भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंच गए तो यह देश के लिए घातक सिद्ध होगा. मनमोहन सिंह ने कहा, अगर आप अहमदाबाद की गलियों में बेगुनाह लोगों के नरसंहार को प्रधानमंत्री बनने की क्षमता नापने का पैमाना मानते हैं तो मैं इसमें विश्वास नहीं करता.
तीसरी बार नहीं बनूंगा प्रधानमंत्री
मनमोहन ने कहा कि वर्ष 2014 के आम चुनाव के बाद वह लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री का पदभार नहीं संभालेंगे, और समय आने पर कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए नए प्रत्याशी की घोषणा कर दी जाएगी. प्रधानमंत्री ने कहा, लोकसभा चुनाव के बाद मैं प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी नए प्रधानमंत्री को सौंप दूंगा. मुझे उम्मीद है कि अगला प्रधानमंत्री संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का ही चुना हुआ होगा और हमारी पार्टी अगले आम चुनाव के प्रचार के लिए काम करेगी.
उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है कि हमारी नई पीढ़ी के नेता अपरिचित व अस्थिर वैश्विक बदलाव की लहर के साथ हमारे महान देश को सफलतापूर्वक दिशा देंगे, लेकिन अगर यूपीए दोबारा सत्ता में आता है तो मैं प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं होऊंगा. उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में स्पष्ट कहा कि राहुल गांधी में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की उल्लेखनीय क्षमताएं हैं, लेकिन इसका फैसला पार्टी करेगी.
विधानसभाओं में हार से लेंगे सबक
डॉ मनमोहन सिंह ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि हालिया विधानसभा चुनाव ने भारतीय लोकतंत्र की मजबूती को प्रदर्शित किया है, और हमारी जनता ने हाल के विधानसभा चुनाव में रिकार्ड मतदान किया. हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया, कांग्रेस ने इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन हम चुनाव में भागीदारी के विस्तार का स्वागत करते हैं और हम परिणाम पर विचार करेंगे और उचित सबक सीखेंगे. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र आधुनिक भारत की आधारशिला है, और इसके साथ ही उन्होंने सभी से लोकतंत्र का आदर करने की अपील की. उन्होंने कहा, हम सभी, जो बेहतरीन भारत बनाना चाहते हैं, उन्हें इस संस्था का आदर करना चाहिए.
पेश किया 10 साल का रिपोर्ट कार्ड
उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपने 10 साल के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुए कहा कि यूपीए-1 सरकार के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप थे, लेकिन देश की जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया और हमें दूसरा कार्यकाल सौंपा, हालांकि अर्थव्यवस्था पर बोलते हुए मनमोहन ने स्वीकार किया कि वह लगातार उच्च स्तर पर बरकरार मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में कामयाब नहीं रहे, क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ी, लेकिन वह वृद्धि में सुधार, उद्यम को प्रोत्साहित करने, रोजगार बढ़ाने और गरीबी दूर के लिए अपनी नीतियों लागू करना जारी रखेंगे. उन्होंने कहा कि दुनिया की अर्थव्यवस्था सुधर रही है, और अब अच्छे दिन आने वाले हैं. उन्होंने दावा किया कि पिछले नौ सालों में सबसे तेज विकास हुआ है.
नकारे भ्रष्टाचार के आरोप
खुद की सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर जवाब देते हुए मनमोहन सिंह ने दावा किया कि जब इतिहास लिखा जाएगा तो वह पाक-साफ साबित होंगे. उन्होंने कहा, तथ्य यह है कि मैं ही वह व्यक्ति था, जिसने बात पर जोर दिया था कि स्पेक्ट्रम आवंटन पारदर्शी, निष्पक्ष होना चाहिए और कोयला खानों का आवंटन नीलामी पर आधारित होना चाहिए. 2-जी और कोल ब्लॉक मामले में उचित कार्रवाई हुई है.
वहीं हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ लगे आरोपों पर विचार करने का मुझे अभी समय नहीं मिला है. प्रधानमंत्री ने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर विपक्ष के निजी स्वार्थ थे और मीडिया, कैग तथा अन्य पक्षों ने कई मौकों पर इसे हवा दी. उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि लोग आर्थिक और सामाजिक क्रांति को आगे बढ़ाने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन की जरूरत को समझेंगे.
इस्तीफा देने के बारे में कभी नहीं सोचा
पीएम ने कहा कि उन्होंने पूरी प्रतिबद्धता और ईमानदारी से देश की सेवा की है. उन्होंने कभी अपने मित्रों अथवा रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए अपने पद का इस्तेमाल नहीं किया. मनमोहन सिंह ने कहा कि सरकारी फैसलों में किसी तरह की गलती को कानून की स्थापित प्रक्रिया के तहत दंडित किया जाएगा. अपने दोनों कार्यकालों के दौरान इस्तीफा देने का विचार मन में आने को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें कभी नहीं लगा कि वह इस्तीफा दें. उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति अथवा प्राधिकार लोकतांत्रिक शासन की स्थापित प्रक्रिया का विकल्प नहीं हो सकता.
बेहतर दौर की ओर बढ़ने का दावा
अर्थव्यवस्था के बारे में बात करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, भारत सहित सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पिछले दो-एक साल से नरमी का दौर चल रहा है, लेकिन पिछले नौ वर्षों में हासिल हुए उच्चतम वृद्धि दर का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम बेहतर दौर की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या घटी है. उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति के बारे में चिंता वाजिब है, लेकिन ज्यादातर लोगों की आय मुद्रास्फीति के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ी है. उन्होंने स्वीकार किया कि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण में वह कामयाब नहीं रहे, और खाद्य कीमतों पर लगाम लगाने के लिए आपूर्ति बढ़ाने की जरूरत है.
महत्वपूर्ण क़ानून बनाने का लिया श्रेय
उन्होंने यह भी दावा किया कि संसद में अभूतपूर्व व्यवधानों के बावजूद यूपीए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कानून पारित किए. उन्होंने कहा कि विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के अवसर न बढ़ने से चिंता होती है, तथा मध्यम एवं छोटे उद्यमों की मदद करने की जरूरत है. अल्पसंख्यकों के लिए सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने और उन योजनाओं के अवाम तक न पहुंचने पर मनमोहन सिंह ने कहा कि मुझे इस बात का खेद है कि सच्चर समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन का लाभ सभी लोगों तक नहीं पहुंच पाया.
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दिलीप परमार केजरीवाल जी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए मेट्रो में सफ़र कर के आये और हमारी मीडिया ने उनके इस कदम को क्रन्तिकारी बदलाव की शुरुआत बताते बताते बताते सुबह से शाम हो गई और फिर रात भी हो गई पर थके नहीं. पर हमारी समझ में ये नहीं आता है की हमारी ये मीडिया उस समय कहाँ थी जब १६ वर्ष पहले बिहार के मुख्या मंत्री लालू प्रसाद यादव गरीबो की खून से चलने वाली रिक्से से समर्पण करने गए थे न की बिजली से चलने वाली आलिशान मेट्रो ट्रेन से जिसमे शर्दी में गर्मी और गर्मी में शर्दी देने के लिए ए सी भी लगा है. इसी देख सिखा में सुना है की नितीश कुमार जी भी आजकल पटना की सड़को पर रिक्से की सवारी करने लगे है. वैसे लालू जी आज घोड़े हाथी और लक्ज़री फोर्ड की एन्दवोर कार में चलते है और सबसे अधिक भ्रष्ट राजनेताओ में भी गिने जाते है. हमारी मीडिया केजरीवाल की इस बात की बड़ाई करते थक ही नहीं रहे है की दिल्ले के नए मुख्य मंत्री महोदय बिना लाल बत्ती वाली गाड़ी में चलेंगे, तीन कमरे वाली अपनी खुद के घर में रहेंगे और अपनी शुरक्षा के लिए कोई खर्च नहीं करेंगे, लेकिन हमारी मीडिया पिछले पञ्च बार से मणिपुर के मुख्यमंत्री बनाते आ रहे मानिक सरकार को कैसे भूल जाती है जो बेचारे मुख्यमंत्री को मिलने वाले वेतन को भी दान में दे देते है. केजरीवाल के पास तो एक नीली रंग की वेगेनर कार भी है पर मानिक सरकार के पास न तो अपना कोई घर है और न ही कोई कार. उनकी पत्नी भी जब कहीं बहार जाती है तो रिक्से से जाती है और उनकी शुरक्षा के लिए भी कोई सुरक्षाकर्मी नहीं होते है. बीजेपी के ही मनोहर पर्रीकर जो की गोवा के मुख्यमंत्री है, वो तो राह चलते किसी भी स्कूटर वाले से ही लिफ्ट मांग लेते है. पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य जी भी तो किराये के एक माकन में रहते थे और बिना किसी कार के जीवन व्यतीत करते थे.
जहाँ केजरीवाल की संपत्ति करोडो में आंकी जाती है वहीँ मानिक सरकार की सम्पति ३ लाख भी नहीं है और दोनों के बिच अंतर सौ गुना से कम नहीं है. अब बताइए ज्यादा आम कौन है? मानिक सरकार या केजरीवाल जी? वैसे मानिक सरकार के अलावा हमारी ममता दीदी जी, नितीश कुमार जी और नरेन्द्र भाई मोदी जी भी संपत्ति के मामले में केजरीवाल से गरीब ही है. ममता दीदी जी भी तो मुख्यममंत्री आवास में न रहकर अपनने निजी घर में रहती है और खुद अपना खाना बनती है और उनके घर जाने वाले मेहमानों को चाय और फरही(भुना हुआ चावल) नास्ते में देती है.
वैसे केजरीवाल को समझाने के लिए पर्रीकर से उनका तुलना करना सबसे उचित होगा क्यूंकि दोनों ही लगभग एक ही मुद्दे पे जीतकर मुख्यमंत्री बने है. दोनों ने बिजली, पानी के दाम में कटौती, भ्रस्टाचार, जैसे मुद्दों पर चुनाव जीता है. एक ने पानी के टैंकर माफिया को खत्म करने का वादा किया है तो एक ने खनन माफिया को. दोनों में अंतर सिर्फ इतना है की पर्रीकर को सरकार बनाये लगभग दो वर्ष होने वाले है और उनके द्वारा किये गए वादों को पूरा न होने से जनता में उनके प्रति आक्रोश बढ़ना शुरू हो चूका है. अगर केजरीवाल पर्रीकर के अनुभव से कुछ सिख सकते है तो सिख लें वर्ना बहुत जल्द ही जनता उन्हें उनका रास्ता दिखाएगी. अब मोदी जी का यहाँ बात ना करें तो ही अच्छा होगा क्यूंकि बड़े बड़े बाड़े करने में तो आजकल उनका कोई सामना ही नहीं कर सकता है......
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Virendra Yadav
अब 'आम आदमी' की परिभाषा बदल रही है .रायल बैंक आफ स्काटलैंड की इण्डिया हेड मीरा सान्याल ने आम आदमी पार्टी में शामिल होने की घोषणा करते हुए कल कई मीडिया चैनलों पर कहा कि जो अपने परिवार की बेहतरी और बच्चों के अच्छे भविष्य का सपना देखता है वह आम आदमी है .वे आर्थिक मसलों पर 'आप' के लिए काम करना चाहती हैं और नव उदारवादी आर्थिक नीतियों की समर्थक हैं .उन्होंने यह भी कहा कि यह समझना गलत है कि 'आप' की आर्थिक नीतियां वाम के करीब हैं .इसके पूर्व इनफ़ोसिस के बालाकृष्णन ने भी आप में शामिल होने की घोषणा की है .वे भी नयी आर्थिक नीतियों के पैरोकार है .कार्पोरेट दुनिया से 'आप' पार्टी में शामिल होने का उत्साह देखते ही बन रहा है . इसके निहितार्थ भी समझे जाने चाहिए .Speaking to The Indian Express, Sanyal expressed her fascination for the party.
She attributed her inclination to the people associated with the party and their intent to serve the common man.
Inside the party, she wishes to contribute in banking and finance sector and hopes that party will provide her with a role equivalent to her profile.
Sanyal defended AAP and refuted the allegations that party's economic policies are in line with the left.
This is the second big shift to the league of Aam Aadmi Party (AAP). Recently, Ex-CFO of Infosys V Balakrishnan became a member of the newly found party.
"Yes I have become the member of AAP, have got the confirmation today," Balakrishnan told PTI with his move to dabble in politics coming three weeks after his sudden exit from India's second largest software services exporter.
"They (AAP) have revolutionised politics in this country, I'm fascinated with it," Balakrishnan said.
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Sudha Raje shared Navbharat Times Online's photo.
ये है मीडिया की चालाकी!!!!!! क्या समझे????
खबर वही है स्त्री का रेप!!!!!
किंतु यहाँ तसवीर है निर्वस्त्र स्त्री की?????
क्यों??
क्यों नहीं यहाँ जेल में बंद पुरुष को हथकङी पहने दिखाया जाता है??
स्त्री तो रेखाचित्र भी हो नग्न तो पहले करना ही है कागज पर पोस्टर पर अखबार पत्रिका कहीं भी???
खबर अगर लगानी है तो स्त्री के शरीर को निर्वस्त्र नहीं ।
दलालगीरी छोङ फाँसी और जेल में सङता पुरुष दिखाओ ।
है
हिम्मत ये ट्रैण्ड बदलने की???
औरत की कमाई खाने वाले चित्रकार क्या कम लुटेरे है???
12 लोगों ने किया गैंग रेप, पुलिस ने की 5 हजार रुपये की 'मदद'। पढ़िए कहां का है यह मामला...http://nbt.in/XLF60a कॉमेंट करके दें अपनी राय #Gangrape
Alka Bhartiya बिलकुल इतने सामजिक संघठन हैं कोई आवाज़ बुलंद नहीं अकृत सी पर इसी श्रृंखला में के नाम हैं यो यो हनी सिंग जिसे मीडिया अवार्ड दे रहहा हैं जबकि उसके गानों एम् इतनोई बह्दी भाषा स्त्री को लेकर इस्तेमाल की गयी हैं और दो अर्थी शब्द इस्तेमाल किये जाते हैं मैं दो बार मिस्न्ट्री को मेल लिख चुकी हूँ उसे बन किया जाय कोई सुनवाई नहीं कोई जवाब नहीं आया
22 minutes ago · Like · 1
Alka Bhartiya मिडिया म तरुण तेजपाल जैस एही बैठे हैं कोई कम नही , और बालीवुड का भी वही हाल हैं सी पर के बड़ी मुहीम छेड़नि चहिये
20 minutes ago · Edited · Like · 1
Sudha Raje Sudha Rajeबलात्कारएक सामाजिक क्रूरता की सोच है जहाँ बङा भाई बहिन की चोटी खींचकरछोटी बहिन को थप्पङ बजाकरपीटता है अपना चायनाश्ता खाना बनवाने के हक के साथ ।जहाँ पिता काका बाबा ताऊलङकी को रात दिन पराई पराई कहतेधमकाते रहते है और उसको अजनबी सेडराया जाता हैफ...See More
20 minutes ago via mobile · Like · 2
Alka Bhartiya नारी को बड़ा विरोध करना चहिये इस मानसिकता का लेकिन जो सबल हैं वोह अपन आपको परुष सा महसूस करने लगी हैं यह भी उसी मानसिकता का एक हिस्सा हैं परुष मानसिकता परुष के साथ साथ नारी को भी पाने मन स एनिकलनी पड़ेगी
17 minutes ago · Like · 1
Reyazul Haque with Baishali Choudhuri and 3 others
The characteristic feature of fascism consists in the fact that it has succeeded in creating a mass organization of the petty bourgeoisie. It is the first time in history that this has happened. The originality of fascism consists in having found the right form of organization for a social class which has always been incapable of having any cohesion or unitary ideology: this form of organization is the army in the field.
-Antonio Gramsci
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Lenin Raghuvanshi shared PVCHR's photo.
On the eve of Savitri Bai Phules' Birthday,PVCHR handed over first tube well for irrigation of musahar people at Sakara village of Jaunpur.It is first this type of initiative in eastern part of UP for Musahar(http://www.pvchr.net/2012/07/musahar-life-of-torture-by-state-with.html). Center inaugurated by Parul Sharma from Sweden and Shruti Nagvanshi jointly. Parul Sharma says, "Land-mark day for PVCHR! Land-mark day for human rights!" PVCHR established Savitiri Bai Phule woman Forum in 2000,which is promoting her idea of fight among masses. Savitri Bai Phule ((http://en.wikipedia.org/wiki/Savitribai_Phule))is first woman teacher to open the school for women.
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Rajiv Nayan Bahuguna
सुनहूँ सखा कहिं कृपा निधाना
जेंहि जय होंहि सो स्यंदन आना
सौरज , धीरज अस रथ चाका
सत्य , शील दृढ़ ध्वजा पताका
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Jagadishwar Chaturvedi
अरविंद केजरीवाल बुर्जुआजी मुख्यमंत्री के रास्ते पर आ गए हैं। राजनीति से वीआईपी संस्कृति समाप्त करने पर जोर देने वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल का नया पता भगवान दास रोड स्थित फ्लैट नंबर-7/6, 7/7 होगा। डीडीए के इस 10 कमरे के सरकारी फ्लैट में तेजी से काम चल रहा है। 9 हजार वर्गफुट जमीन पर बने इस मकान में पांच-पांच कमरे के दो फ्लैट हैं। इन दोनों फ्लैटों की दीवार को तोड़कर एक कर दिया गया है।
यहां छह हजार वर्गफुट में कारपेट एरिया है, जबकि तीन हजार वर्ग फुट में लॉन है। फ्लैट नंबर 7/6 में आप कार्यालय होगा, जहां से मुख्यमंत्री आप का कामकाज देखेंगे। जबकि 7/7 में वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ रहेंगे। अभी केजरीवाल गाजियाबाद के कौशांबी स्थित गिरनार अपार्टमेंट में अपने माता-पिता, पत्नी व बच्चों के साथ रह रहे हैं।हम उम्मीद करते हैं कि वे खोखलेपन से इस बहाने निकल रहे हैं और अब उनके विधायकगण भी सरकारी घरों की शोभा बढ़ाएँगे ।उल्लेखनीय है पश्चिम बंगाल से वे अभी बहुत पीछे हैं मुख्यमंत्री के सरकारी घर के मामले में !माकपा नेता पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य अपने छोटे निजी फ़्लैट में रहते थे और वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने पुराने छोटे घर में रहती हैं ।
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Gladson Dungdung
The Super-hero is not going to address the real issues of Indian nation instead he'll add more problem to it. The experiences of the largest democracy for last 6 decades say so. The issues will be resolved only through the joint leadership with real participation of the people. You can read my latest colum in Khabar Mantra.
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Lalit Surjan
नए साल का पैग़ाम!
न हो नफरत, न तिरस्कार और न कोई मौत
न हो विध्वंस और न कोई युद्ध
जिये मानवता शांति के साथ
मानव गौरव के साथ, हमदर्दी और न्याय के साथ
अमन हो सारी दुनिया में, फिलस्तीन में, लीबिया में,
और ईराक में जहां परिंदों की तरह मारे जा रहे इंसान
जहां चलता आदेश व्हाइट हाउस का
अरब दुनिया के लोगों में हो जाए कायम अमन
सारी दुनिया में भी, जो सम्भव है तभी
परमाणु हथियारों को समन्दर में कर दिया जाए दफन
जहां राजनीतिज्ञ करें काम मानव अस्तित्व के लिए
पूरे गौरव, सम्मान और भगवान से डरकर
जागो भारत जागो, सारी दुनिया को है तुमसे उम्मीद
2014 जगाए साहस, ताकत और संकल्प
पैदा करे मानव सहअस्तित्व दक्षिण और उŸार में,
पूर्व और पश्चिम में जहां आध्यात्मिकता और भौतिकता
पनपें सौहार्द, जिससे सारी दुनिया के लोग
जिएं शांति और सौहार्द के साथ
नववर्ष 2014 बने शांति का संदेश वाहक
जिससे अब न हो कहीं मौत, न विध्वंस
अब न हो कोई लड़ाई और न कोई युद्ध
इस पैग़ाम के साथ आप सभी को मेरी
हार्दिक शुभकामनाएं!
एक बहुत-बहुत खुशहाल
और शांतिमय नववर्ष की!
(प्रोफ भीमसिंह से साभार)
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Sudha Raje
हमें तरस आता है उन सक्षम स्त्रियों पर जो कभी मलिन बस्ती नहीं गयीं । ना खेत खलिहान देखे ना गाँव के भीतर कभी कदम रखा ना कुआँ हैंडपंप बरतन को हाथ लगाया ना कभी चूल्हे की आँच महसूस की मगर जब बात स्त्री के लिये इंसाफ की आती है तो फटाफट अपने लैपटॉप पर स्त्री विरोध में खङी होकर पुरुषों की वाहवाही बटोरने की कोशिश करके महान बनने चल पङती है जिनको शो बिजनेस में आने वाली लङकियों की गाथा नहीं पता जिनको कभी वास्ता नहीं पङा कि लङकी बिकी कैसे और कैसे तेजाब पङा क्यों वह कैमरे तक पहुँची और बस ।
फतवा जारी कर दिया कि औरते भी बराबर की दोषी है अश्लीलता के लिये!!!
जिनको पूरी स्त्री नस्ल कौम प्रजाति की जनसंख्या में से पत्रिकाओं और टीवी पर दिखने सिनेमा में कपङे हिलाने वाली लङकियों की सही सही संख्या और अनुपात रेशियो तक नहीं मालूम ।
हमारी सहानुभूति से अपील है
कृपया हमारी पोस्ट पर स्त्री विरोधी कमेंट ना करें ।
ये अभियान आपके लिये नहीं है ।
लाखो स्त्री पुरुष मिलकर
स्त्री के ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ लङ रहे है ।
और
आप आराम करें ।
क्योंकि जब तक विश्व की अंतिम स्त्री तक को इंसाफ नहीं मिल जाता सदियों की क्रूरता का प्रायश्चित्त नहीं होगा यहाँ कोई प्रतिशोध नहीं केवल
जियो और जीने दो की वैचारिक बातचीत जारी है ।
©®सुधा राजे
Like · · Share · 13 minutes ago ·
गंगा सहाय मीणा
दिल्ली में एस.सी./एस.टी. बेरोजगारों को 15000 ऑटो रिक्शा परमिट मिलेंगे. 'आप' सरकार की अच्छी पहल.
Delhi govt to give 15,000 auto rickshaw permits to SC/ST
articles.economictimes.indiatimes.com
Like · · Share · Yesterday at 2:47pm near New Delhi ·
18 hours ago · Edited ·
क्रान्ति करने वालों कुछ तो "आप" से सीखो.....
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सत्ता तक इतनी जल्दी पहुंच जाने से कई राजनीतिक विश्लेषक और विचारक भी हतप्रभ हैं, पर यदि इस पूरे घटनाक्रम को गौर से देखा जाए तो यह ऐसा परिवर्तन है, जिसका सपना हर भारतीय देखता ही है । हर एक व्यक्ति आज की राजनीतिक व्यवस्था से बहुत ही खिन्न है, पर अभी तक उसके पास कोई मजबूत विकल्प नहीं बन पाया है, जिस पर भरोसा कर सके । आज यदि गुजरात, ओडिशा, एमपी और छत्तीसगढ़ किसी भी तरह से अपने राजनीतिक पुरोधाओं को दूसरा और तीसरा अवसर देने में नहीं चूकते हैं, तो उसके पीछे जनता की क्या मंशा हो सकती है, यह किसी से छिपा नहीं है ? किसी एक राज्य या नेता की बातें करने के स्थान पर यदि इस मसले को समग्र रूप में देखा जाए तो बहुत कुछ सामने आ सकता है । आज जिन भी राष्ट्रीय दलों के क्षेत्रीय नेताओं या अन्य क्षेत्रीय नेता ने जनता की नब्ज पहचान कर उसके अनुरूप काम करना शुरू किया है, तो जनता ने भी उसे निराश नहीं किया है ।
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जनता केवल सुशासन और बेहतर सरकारी पकड़ वाले नेता को ही सर्वोपरि मान लेती है, भले ही उसमें कितने भी अन्य अवगुण क्यों न भरे पड़े हों ? देश की राजनीति में यह परिवर्तन एक दिन में नहीं आया है । हर राज्य में ऐसे उदाहरण आज आम हो चुके हैं, जिनमें जनता औसत से बेहतर काम करने वाले दलों को दोबारा मौका देने में कोई कोताही नहीं कर रही है । दिल्ली की राजनीति में ऐसे निराशा भरे माहौल में आप का उभरना बड़ा राजनीतिक परिवर्तन भी है । इसके प्रभाव के कारण ही जन दबाव में केंद्र सरकार ने कई बड़े फैसले भी लिए हैं । आज यह कहा जा सकता है कि आप ने जनता की उस उपेक्षा वाली दुखती रग पर मरहम लगाने का काम बहुत ही अच्छे तरीके से किया, तभी देश के मुख्यमंत्रियों में अच्छा काम करने वालों में शुमार शीला दीक्षित के लिए काम और विकास का पैमाना इतना छोटा पड़ गया कि उनके लिए अपनी सीट बचा पाना भी मुश्किल हो गया ?
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आज देश की जनता परंपरागत राजनीतिक दलों की नकारात्मक राजनीति से ऊबी हुई है और आप के उभार ने कम से कम देश के महानगरों, दिल्ली और उसके आसपास की सौ सीटों पर अपना प्रभाव आने वाले समय में छोड़ना ही है, तो ऐसे में इन सीटों पर लड़ने वाले राजनाथ सिंह जैसे नेताओं के लिए अब अधिक सुरक्षित सीटों को तलाश करना एक मजबूरी भी बन गई है । दिल्ली की तरह ही यदि कांग्रेस विरोधी मत आप के पक्ष में जाता है, तो यह भाजपा के 272 के जादुई आंकड़ों के लिए एक दु:स्वप्न ही होगा । अभी तक आप को हल्के में लेने का खामियाजा वह दिल्ली की छोटी सरकार बनाने में भुगत चुकी है ।
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क्या आप के इस तरह के उत्थान को भारत की राजनीतिक बिसात पर एक नया परिवर्तन नहीं कहा जा सकता है ? दिल्ली में केवल आप की 28 सीटों ने इन बड़े दलों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अभी तक जिस नैतिकता की लंबी-चौड़ी बातें ये किया करते थे, अब उनसे जरा-सी भी चूक उन्हें कहीं का भी नहीं रखने वाली है, क्योंकि आप ने सामने आकर इस पूरी व्यवस्था को ही परिवर्तित कर दिया है । आम दिन होते तो दिल्ली में भाजपा आराम से सबसे बड़े दल होने के नाते सरकार बनाकर जोड़तोड़ करना शुरू कर देती, पर आप के नैतिक मानदंडों ने उसे पूरी तरह से यह सब करने से रोक दिया और उसे चार राज्यों की विजय को तीन राज्यों में बदलते हुए मजबूरी में देखना ही पड़ा, जिसका अभी तक की स्थापित भारतीय राजनीति में कोई स्थान नहीं था । झारखंड में जिस तोलमोल की राजनीति वह अभी तक करती आई थी, यह उससे बिलकुल ही अलग तरह का स्टैंड था । कांग्रेस की भी समझ में यह आ चुका था कि केवल विरोध की राजनीति करने का समय नहीं है । आप की सरकार बनने से अपनी राजनीति को सकारात्मक कह सकेगी, भले ही किसी भी क्षण आप सरकार से सर्मथन वापस ही क्यों न ले ले ।
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फिलहाल देश ने राजनीतिक रूप से एक बड़े परिवर्तन को बड़ी आसानी से समझ तो लिया ही है और भले ही दिल्ली में आप की सरकार चले या जाए, पर उसका जो भी उद्देश्य था कि किसी भी तरह से राजनीतिक गंदगी फैलाने वाले किसी भी दल की हर हरकत को जनता के सामने लाया जाए, जिसमें वह पूरी तरह सफल ही नजर आती है । आज अगर राहुल आदर्श घोटाले की जांच रिपोर्ट को खारिज किए जाने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले से सीएम चव्हाण के सामने ही खुली असहमति जता रहे हैं, तो यह भी देश के बदलते हुए राजनीतिक रुख का दबाव या किसी हद तक राहुल की कार्यशैली भी कही जा सकती है । पिछले कुछ दिनों में भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों पर यह उनकी दूसरी असहमति थी । महत्वपूर्ण यह नहीं है कि राहुल यह सब स्वेच्छा से कर रहे हैं या दबाव के कारण पर, जिस तरह से राजनीति कि सफाई की बातें अन्ना, रामदेव और केजरीवाल किया करते हैं, यह उसकी शुरुआत तो है ही । देश के निर्माण में भले ही किसी एक का योगदान कहीं भी न लिखा जाए, पर जिस तरह से यह परिवर्तन देश के राजनेताओं और राजनीतिक दलों को बदलने का क्रम शुरू कर चुका है, वह अपने आप में अनूठा है और जनता के इस दबाव की एक जागृत लोकतंत्र को सदैव ही आवश्यकता रहती है, जो अब भारत के लोकतंत्र में समाहित होती नजर आने लगी है । हर राज्य में ऐसे उदाहरण आज आम हो चुके हैं, जिनमें जनता औसत से बेहतर काम करने वाले दलों को दोबारा मौका देने में कोई कोताही नहीं कर रही है । जनता सुशासन देने वाले नेता को सर्वोपरि मान लेती है ।
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साभार : ग्याडूवाणी ब्लॉग
Umesh Tiwari, Devki Nandan Bhatt, Ganesh Rawat and 72 others like this.
Dabal Singh Well said.
18 hours ago · Like · 1
Manish Kumar Bhatt Hahaha... Likha to bahut Achha hai Aapne & Log AAP ko join bhi karna chahte hain... Qunki wo Honest party hai.... but Use kon join kar rha hai Aap ek baar jaroor dekhna.... 2-3 Saal baad ye bhi KHAAS Aadmi party hone wali hai.... Haan inke kaam or vi...See More
17 hours ago via mobile · Like · 2
चन्द्रशेखर करगेती Manish Kumar Bhatt जी मैं "आम आदमी पार्टी" का सदस्य नहीं हूँ, लेकिन जो सकारात्मकता उसने पैदा की है उसे खुले दिल से स्वीकार करना और अपने मन्तव्य को लिखना तो बनता ही है, हो सकता कल को "आम आदमी पार्टी" के अधिकतर नेता लोग भी भाजपा-कांग्रेस की तरह के गुंडे-...See More
10 hours ago · Edited · Like · 5
Manish Kumar Bhatt Mai jaanta hu Aap independent hain meri tarah se,... Mai wahi keh rha hun.. Mai sweekar karta hun in sab kaaryon. & Vichaaron ko ,.. lelin Jaise-2 Vistaar hoga,... tabhi iska asli test hoga.. Abhi 28 MLA hain.. Chhota pariwaar hai,.. Extend hone k baad pata chlega & unki Ideology kya hogi..uss par bhi depend hoga..
9 hours ago via mobile · Like
Kailash Nauriyal aag ko kisne gulistan na banana chaha ,jal gaye kitne khaleel aag pani na hui .
6 hours ago · Like · 1
Pan Bohra क्रा'ति का कार्यक्रम इन समस्याओ' की जड पर चोट करने का है , किसी भले चेहरे वाले पूँजीवाद का नही'( वह भी आज सम्भव नही' है ) दिल्ली की परिधटना जनता के आक्रोश की अभिव्यक्ति है , यह गुस्सा तमाम विकल्पो'की तलाश मे' है , क्राति करने वालो' को सीखने की जरूरत हमेशा रहेगी पर फिलहाल तो वह सीख ले सकते है'जो इसी सिस्टम के भीतर सुधारो' को ही व्यवस्था परिवर्तन मानते है' .
6 hours ago via mobile · Like · 2
Kailash Nauriyal samrajyawad prayojit satranga samajwad .
Manish Pandey ओशो ने कहा था,
''जो अपनी ईमानदारी और त्याग
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का बखान करे....., समझ...See More
6 hours ago · Like · 1
Kailash Nauriyal kahin ka eent kahin ka roda ,bhanumati ne kunba joda .
6 hours ago · Like · 1
Pan Bohra हम सुधारो' का विरोध नही' करते , सुधारो' के लिये स'धर्श की जरूरत समझते है' , लेकिन सुधारो' की सीमाओ' की व्याख्या जरूरी है , नही' तो जनता मे' भारी आशावाद ( यह बिल्कुल सकारात्मक चीज है ) उल्टी चीज मे' बदल जायेगा.
6 hours ago via mobile · Like · 1
Bharat Rawat !!~~**~~!! Joke of The Day !!~~**~~!!
Shahwez Khan इसे कहते हैं सम्बोधन ... सब विरोधी केजरीवाल को ऐसे सुन रहे हैं जैसे सांप सूंघ गया हो! जैसे कोई उनकी क्लास ले रहा है। आम और खास आदमी की परिभाषा ही बदल कर रख दी .…
5 hours ago · Like · 1
दिनेश बेलवाल बिल्कुल सही कहा है अब इन्हें भी सोचने को मजबूर होना पड़ेगा,जिसकी आज जरूरत थी की आज की लोगों की आशाऐं क्या हैं कैसी हैं दिखावे और वायदों से कुछ नहीँ होता जो होता है जमीन पर आकर होगा
5 hours ago via mobile · Like · 1
प्रदीप किशोर नौटियाल rajeev gandhi jaisa mr. clean bhee media ne dikhaya aur uska end bhee dekha ab aap ki imaandaari bhee media dikha raha hai, aage dekheyie kya kya dikhayega ye media jo khud bahut corrupt hai, but keep hope for best
Deepak Azad सूचना निदेशालय के घोटालेबाजों के खिलाफ पुलिस में शिकायत
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WatchDog/ दीपक आजाद//उत्तराखंड में घपले-घोटालों का सिलसिला अनवरत जारी है। भ्रष्ट नौकरशाही और राजनेताओं की चमड़ी कमीशनखोरी करते-करते इतनी मुठिया चुकी है कि उन पर न तो किसी जांच रिपोर्ट का असर होता ह...
Surendra GroverMedia Darbar
इसी देश में एक भगवा पार्टी है. उसने देखा कि उसके प्रतिद्वंद्वी सस्ता अनाज बांटकर बाजी मार ले जा रहे हैं, तो उस पार्टी की राज्य सरकारों ने गाय-बैलों का चारा गरीबों को खिलाने के नाम पर और सस्ता कर दिया. भगवा पार्टी की राज्य सरकारों ने गरीब जनता रूपी गाय-बैलों को एक रुपये में उनका चारा देने की घोषणा की है. ..
Read more: http://mediadarbar.com/25466/what-you-will-do/
तुम क्या करोगे..बाबा जी का ठुल्लू…मीडिया दरबार « मीडिया दरबार
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Ashok Dusadh
भाई साहब आप कुछ कहिये -- हम भाजपा को ख़त्म कर देंगे ,कांग्रेस को मीटियामेट कर देंगे , इसको करने के लिए आपको जो करना है कीजिये ,मगर सबसे बड़ी बात बहुजन आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए आपको मुफ्त -मुफ्त का खेल करना ही होगा .सब मुफ्त कर दीजियेगा आपकी ऐसी नियत नहीं न ही कुव्वत है .नागनाथ -सांपनाथ अपना केंचुल छोड़कर नए रूप -रंग में अवतरित हो रहे है .क्योंकि ब्राह्मणवाद का पुराना रूप -रंग अब धोखा देने में बिलकुल विफल है ,नया रंग चढ़ाना जरूरी है .मगर एक बात याद रखियेगा अब इतिहास के पहिये को वापिस इतिहास के तरफ ले जाना असंभव भी है ,नामुमकिन भी .आप आधुनिक मनुवादी षड़यंत्र की परियोजना तैयार कीजिये ,हम बहुजन आज क्रांति -ज्योति राष्ट्र माता सावित्रीबाई फुले का जयंती मना रहे है .आप भी क्या याद कीजियेगा जैसे आपके कुमार विश्वास हर चीज को ठेंगे पर रखते है ,उसी तरह हम भी ठेंगे पर रखते है आप को !!
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Ashok Dusadh
केजरीवाल साहब आप तो घोटाला समाप्त करने के प्रतीक पुरुष है यानि आधुनिक ब्राह्मणवादी देव जो असीमित अधिकार वाला ही नहीं बल्कि असीमित शक्तिवाला भी होता है !! आप एक घोषणा कीजिये अपने दिल्ली प्रदेश के जितने भी धार्मिक बेईमानी है उसे आप ख़त्म करेंगे और दुनिया के सबसे बड़ा घोटाला जातिवाद के रचयिता ब्राह्मणों/द्विजों के स्वछंदता पर रोक लगा देंगे .उनके अघोषित असीमित राजनीतिक अधिकार ,सामजिक वर्चस्व और आर्थिक आधिपत्य को समाप्त करेंगे .फिर देखते है आप कहेंगे की हमे अब भी सुरक्षा गार्ड की आवश्यकता नहीं ?!
Like · · Share · 4 hours ago · Edited ·
Communalism Watch: India 2014 election campaign: Modi is now back to speaking Hindutva in UP
Like · · Share · 57 minutes ago ·
Upendra Prasad
700 लीटर मुफ्त पानी देने के फैसले पर केजरीवाल फंस गए हैं. दिल्ली के 19 लाख घरों में पानी का कनेक्शन है, जिनमें 9 लाख में मीटर लगे हुए हैं. गरीब इलाकों में मीटर नहीं लगे हैं. और वहाँ 21000 लीटर पानी का मासिक बिल अपने आप आता रहता है, जबकि महीने में उन्हें 10 से 15 हजार लीटर पानी ही मिलता होगा या 10 हजार लीटर से भी कम. इन्हें अभी भी बिल देना पड़ेगा. 2013 में 300 रुपया प्रति महीना देना पडता था. 2014 में 330 रुपया प्रति महीना देना पड़ेगा. 9 लाख मीटरों में भी 5 लाख खराब रह्ते हैं. पता नहीं उन खराब मीटर वालों को कितने हजार लीटर का बिल जल बोर्ड भेजता है. एक बात तय है कि केजरीवाल के इस निर्णय से आम आदमी पार्टी का दिल्ली में सफाया भी हो सकता है. हालांकि अभी निर्णय को सही करने का वक्त केजरीवाल सरकार के पास है.
Like · · Share · 25122 · 3 hours ago near New Delhi ·
Jagadishwar Chaturvedi
बिजली-पानी पर सब्सीडी देना भारत की राजनीति का आम फिनोमिना है। गांवों में यह झुनझुना बजाकर विभिन्न दल वोट लेते रहे हैं ।
Like · · Share · 17 hours ago near Calcutta ·
BBC Hindi
दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. कई खास लोग आम आदमी पार्टी में शामिल हो रहे हैं लेकिन क्या आम आदमी पार्टी नरेंद्र मोदी के लिए खतरा बन सकती है. पढ़िए जुबैर अहमद की रिपोर्ट और दीजिए अपनी राय.
Like · · Share · 1,22961987 · 7 hours ago ·
The Economic Times
The AAP govt in Delhi has been quick off the block to indulge in populism and sheer giveaways, to curry favour with the electorate. This week's Poke Me invites your comments on why the middle class should be wary of AAP's subsidies http://ow.ly/sdak1
Like · · Share · 4027252 · 17 hours ago ·
Navbharat Times Online
दिल्ली असेंबली में विश्वास मत पर चर्चा के दौरान जेडी(यू) MLA शोएब इकबाल ने खुद को बदमाश बताते हुए बीजेपी विधायकों को दो-दो हाथ करने के लिए ललकारा।
तस्वीरें देखें: http://navbharattimes.indiatimes.com/photomazza/national-international-photogallery/jdu-mla-shoaib-iqbal-challenges-bjp-legislator-to-fight-inside-house/Iqbal-challenged-BJP-MLA/photomazaashow/28314868.cms
Like · · Share · 2,021589361 · 7 hours ago ·
Aalok Shrivastav
ll AAP या तुम ? ll
हर तरफ़ 'आप' का डंका बज रहा है. पार्टी के लिए सुविधा हो गई है. ABP News कहता है - ''आप' को रखे आगे'. इंडिया टीवी की टैग लाइन है - ''आप' की बात'. रजत शर्मा कहते आ रहे हैं - ''आप' की अदालत'. मार्केटिंग के दौर में, बिना किसी ख़र्च के 'आप' का ज़ोरदार प्रोमोशन हो रहा है. वक़्त का तकाज़ा है. ABP News को बाज़ार में तठस्थ बने रहने के लिए 'आप' को पीछे रखना होगा. उसे अपनी टैग लाइन ''आप' को रखे आगे' बदलनी होगी. तहज़ीब को ताक पर रख कर कहना होगा - 'तुम को रखे आगे'. लहज़ा तो इंडिया टीवी को भी बदल लेना चाहिए. रजत साहब को अब ''आप' की अदालत' का नाम 'तुम्हारी अदालत' कर देना चाहिए. सच तो यह है कि 'आप-आप' करने वाले तमीज़ और तहज़ीब के लोगों को अब पार्टी-लाइन से ऊपर उठ कर 'तुम-तुम' कहना चाहिए. यह भी कम दिलचस्प नहीं कि ख़ुद अरविंद केजरीवाल जहां से आते हैं वहां 'आप' कहने का कल्चर ही नहीं है. बात हरियाणा की है. जहां ज़ुबान ही 'तुम' और 'तू' पर खुलती है. दाग़ साहब ने फ़रमाया है -
रंज की जब गुफ़्तगू होने लगी,
आप से तुम, तुम से तू होने लगी.
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Shree Prakash, Pawan Karan, Atul Sinha and 158 others like this.
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4 of 57
Aalok Shrivastav Bhai Sanjay Joshi किस एडिशन में आई है कश्मीर वाली नज़्म ? ज़रा हमें भी बता दीजिए. हम भी देख लें हमारी नज़्म.
Nazim Naqvi दूर की कौड़ी ढूंढ़कर लाए हैं 'आप'...
Manish Saxena ham bhi to kahte h cha rahe h aap
Sanjay Joshi Dainik bhaskar ke Gwalior ke edition me
14 minutes ago via mobile · Edited · Like
Satya Narayan
असग़र वजाहत की कहानी
http://ahwanmag.com/archives/3374
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Jitendra Visariya, Sundeep Nayyar and 9 others like this.
केजरीवाल की बदलती पहचान को जानो !
January 2, 2014 at 11:22pm
केजरीवाल कमाल का भाषण देते हैं,ईमानदार हैं,हम चाहते हैं वे हमेशा सरकार में बने रहें। चिंता हमें मीडिया को देखकर हो रही है,वह उनका भोंपू की तरह प्रचार कर रहा है । जो जीतता है ,मीडिया उसके पीछे पड़ जाता है। जय हो ,जय हो करने लगता है। यह सच है कि केजरीवाल ने अपने साथ जिन विधायकों को विधानसभा के अंदर पहुँचा दिया है ,वे अब आम आदमी नहीं रहे। वे विधायक हैं । यह उनकी नई पहचान है। कल तक जो गृहिणी थी ,या पत्रकार था ,वह अब विधायक है।
केजरीवाल आम आदमी नहीं है ,मुख्यमंत्री हैं। केजरीवाल सरकार चला रहे हैं। चुनाव जीतते ही उनकी अस्मिता में अचानक बदलाव आ गया है । यह उनके जीवन,राजनीति और समूचे व्यक्तित्व में आया पैराडाइम शिफ्ट है ।
सवाल यह है एक साधारण गृहिणी जब विधायक बन जाती है तो उसकी पहचान बदलती है या नहीं ?कल तक मनीष सिसोदिया समाजसेवक थे,एनजीओ चलाते थे,अराजनीतिक थे। लेकिन आज विधायक हैं,राजनीति करते हैं,मंत्री बन गए हैं। यह पैराडाइम शिफ्ट है ,और इससे उनकी अस्मिता का एक नया आयाम सामने आया है ।यह शुभलक्षण है।
जो विधायक है ,मंत्री है, मुख्यमंत्री है ,वह अब आम आदमी नहीं रहा। वह कहां सोता है,कहां रहता है, क्या खाता है , यह गैर जरुरी तत्व है, जरुरी तत्व है उसका विधायक बनना। विधायक बनते ही उसकी पहचान में रुपान्तरण हुआ है ,और यह जनसमर्थन से बदली पहचान है। कल तक केजरीवाल सामान्य नागरिक थे, लेकिन आज मुख्यमंत्री है। मुख्यमंत्री,विधायक या मंत्री का अर्थ है कि वे सरकार चला रहे हैं और सरकार का कांम है सत्ता का प्रबंध करना।
वे कल तक आम जनता का अंग थे ,लेकिन विधायक बनते ही सत्ता का अंग बन गए हैं । वे भत्ते लें या न लें, गाडी-बंगला लें या नहीं, लेकिन वे तो विधायक हैं,मुख्यमंत्री हैं।यह सत्ता का क्षेत्र है। यह आप पार्टी के चुनेहुए विधायकों की पहचान में आया नया पैराडाइम शिफ्ट है। इसे मीडिया में आम आदमी ,आम आदमी कहकर छिपाया नहीं जा सकता ।
Sanjoy Roy and 15 others like this.
Harshit Gupta par kejrival aam aadmi ko represent kr rhe h........
18 hours ago · Like · 1
Jagadishwar Chaturvedi यही तो मुश्किल है राजनीति की गुप्ताजी, अपनी पूर्व पहचान खोनी पड़ती है नेता को।
Harshit Gupta haan pehchaan to badal jati h.....lekin bada hone k baad bhi apni purani pehchaan bhulni nhi chahiye ......ar abhi tak to lgta h kejrivaal apni purani pehchaan nhi bhule h....ar aasha krta hu ki aage bhi nhi bhule ar aise hi aam aadmi k liye kaam karte rhe....
Jagadishwar Chaturvedi गुप्ताजी, अब गेंद केजरीवाल के हाथ में नहीं है।
Harshit Gupta fir kiske haath me h sir....mujhe to lgta h kejrivaal ji k hi haatho me h......
17 hours ago · Like · 1
Jagadishwar Chaturvedi गुप्ताजी, अब केजरीवाल आम आदमी नहीं है राजनेता है। कल तक नेता था।
17 hours ago · Like · 2
Harshit Gupta hn sir vo to me maanta hu......ab raajniti me h to raajneta to honge hi... par raajneta bhi achhe ar bure dono hote h ....ar mujhe lagta h abhi tak to achhe raajneta hi h kejrivaal ji... ar yhi aashha h ki gandi daldal khi jane vali raajniti me vo achhe hi bane rhe.......ar raajniti ko ek nya achha naam de....
17 hours ago · Like · 1
Jagadishwar Chaturvedi गुप्ताजी, विश्वनाथप्रताप सिंह को जानते हैं थोडा सोचें उनके बारे में.
17 hours ago · Like · 2
Jagajit Singh प्रभु उसको छोड़ो - अपने आप को पहचानो और बदलने की ठानो
16 hours ago via mobile · Like · 4
Devdeep Mukherjee लोहिया,जेपी,जार्ज,राजनारायण...तमाम वाम विधायक या सांसद....वे सब भी तब आम नहीं थे/हैं...वह भी पैराडाइम शिफ्ट हुआ.....
37 minutes ago · Like · 2
Jagadishwar Chaturvedi राजनेता नई पहचान है यह हमें देखना चाहिए।
35 minutes ago · Like · 1
Devdeep Mukherjee यह कोई नया सिलसिला तो है नहीं..जननेता से बहुत सारे लोग राजनेता हुए हैं...ज्योति बसु भी उसी श्रेणी में थे..असली मुद्दा है ईमानदारी से शासन करना ताकि जनता को सुविधाएं मिले,,शांति और सुरक्षा मिले..
30 minutes ago · Like · 3
Jagadishwar Chaturvedi मुद्दा नया नहीं है, समस्या पहचान की है। विधायक बनते ही पहचान बदलती है चाहे किसी दल का हो।
27 minutes ago · Edited · Like · 2
Economic and Political Weekly
"The shallow credibility of the law and order machinery in Muzaffarnagar is best reflected in the statement of senior police officials that – "both the Jats and the Muslims are complaining against us, so the police must have done something good.""
Excerpt from the independent fact-finding committee's report on the Muzaffarnagar riots.
Full report on Economic and Political Weekly:
Like · · Share · 273 · 2 hours ago ·
Navbharat Times Online
बंगले के बजाय आम आदमी की तरह फ्लैट लेने की बात कहने वाले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल अब 9 हजार स्क्वॉयर फीट पर बने 2 बंगलों में शिफ्ट होने जा रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर और कॉमेंट के जरिए दें अपनी राय...
खबर: http://navbharattimes.indiatimes.com/delhi/politics/two-adjacent-5-bedroom-duplex-houses-for-aam-aadmi-cm/articleshow/28319019.cms
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Pradyumna Yadav shared Tara Shanker's photo.
सावित्रीबाई फुले भारत
की पहली महिला शिक्षिका थीं!
लोगों की गालियाँ, समाज के ताने-
धमकियां और पत्थर सहकर
भी वो महिलाओं की शिक्षा के लिए
प्रतिबद्ध थीं! अछूत लड़कियों के लिए देश
में पहला स्कूल खोला इन्होंने!
स्त्रियों की आज़ादी और स्वाभिमान के
लिए इन्होने अपना पूरा जीवन
लगा दिया! विधवा विवाह के लिए
संघर्ष हो, महिलाओं के लिए हॉस्पिटल
खोलने की बात हो या फिर पीने के लिए
अपने आंगन के कुएं को सबके लिए खोल देने
की बात हो या फिर प्लेग
जैसी महामारी से लोगों को बचाने के
लिए पूरे परिवार सहित जी जान से
जुटना और अंततः उसी प्लेग संक्रमण से
अपनी जान दे देना......ये सब उस
दकियानूस, अन्धविश्वासी,
स्त्रीविरोधी ज़माने में
किया जाना मानव सेवा की अद्वितीय
मिसाल है!
आज भी सावित्रीबाई
करोड़ों भारतीयों ख़ासकर दलितों,
अछूतों और महिलाओं के लिए एक
प्रेरणा हैं, संबल हैं! उनके जन्मदिन पर
उन्हें सादर नमन!
सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं! लोगों की गालियाँ, समाज के ताने-धमकियां और पत्थर सहकर भी वो महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध थीं! अछूत लड़कियो...See More
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राजनीति का बदल रहा स्वरूप
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देश के पांच राज्यों के चुनाव को राजनैतिक विश्लेषक लोक सभा 2०14 का सेमीफाइनल बता रहे हैं। ज़ाहिर है पांच में से चार प्रदेशों के विधानसभा चुनाव जहां एक तरफ कांग्रेस की पराजय की ओर स्पष्ट संके त कर रहे हैं वहीं उसने दूसरा एवं एकमात्र विकल्प का दावा कर रही भाजपा को भी संशय में डाल दिया है। अगले आम चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री-प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का जादू विधानसभा चुनाव में चला है, इससे हम पूरी तरह इंकार नहीं कर सकते। लेकिन यह भी इतना ही सच है कि परिवर्तन को ले सचेष्ट व बचैन मतदाता किसी अन्य मज़्ाबूत विकल्प के अभाव में भाजपा के प्रति नरम रुख़ दिखा रहा है। दरअसल देश परिवर्तन चाहता है। मगर उसके समक्ष कोई सक्षम नेतृत्व नहीं है। बेशक थोड़ा लाभ भाजपा को मिल रहा है। लेकिन दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जिस मज़्ाबूती से आम आदमी पार्टी (आप) भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल करने से रोकने में कामयाब हुई वह भी चौंकाने वाली बात है। चंद दिनों की पार्टी ने दिल्ली के आम आदमी को पूरी तरह झकझोर कर रख दिया। अब आप के प्रतिनिधि अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि आम आदमी ने तो कांग्रेस के भ्रष्ट शासन को बखूबी ख़्ाारिज कर चुका है। लिहाजा अब सत्ता की असली जंग भाजपा और आप के बीच ही होगी। अगर दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो केजरीवाल बेशक सही लग रहे हैं।
यह निरा संयोग नहीं है कि आप पार्टी ऐसे समय में अस्तित्व में आयी है जब देश की जनता कांग्रेस के सुदीर्घ किंतु अक्षम व भ्रष्ट शासन से तंग आ चुकी है और वह एक मज़्ाबूत और ठोस विकल्प की तलाश में है। ज़ाहिर है भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी की छवि उसके अन्य नेताओं की तुलना में उदार रही है। भारतीय जनमानस में छह वर्ष का वाजपेयी शासन तुलनात्मक तौर पर कांग्रेसी शासन से बेहतर रहा जिसे नरेंद्र मोदी अपने हिसाब से भुनाने को ले सचेष्ट हैं। परंतु भारत के जागरुक व चेतनशील तबके की आखिरी पसंद नरेंद्र मोदी नहीं हैं। ज़ाहिर है कि जिस नेता को देश-दुनिया के इतिहास-भूगोल की सही समझ व जानकारी ही नहीं हो उसे राष्ट्रनायक की कुर्सी पर बैठाना ख़्ातरे से खाली नहीं है। सच कहा जाये तो मोदी का वैसा व्यक्तित्व भी नहीं है। उन पर 2००2 में गुजरात-दंगा को सांप्रदायिक रूप देने का आरोप है। सूबे का प्रधान होते हुए भी राजधर्म न निभा पाने का इल्ज़ाम है। हालांकि आरएसएस से अपनी नजदीकी का लाभ उठाकर लालकृष्ण आडवानी जैसे ताक़तवर नेता को वह पटकनी दे चुके हैं। फिर भी भाजपा व संघ की राजनीति में अतीत हो चुके अटल बिहारी वाजपेयी की जगह वह सहज ही ले पायेंगे, इसकी उम्मीद तो नहीं की जा सकती है। यह ज़्ारूर है कि किसी तीसरे मज़्ाबूत विकल्प के अभाव में आम मतदाता नरेंद्र मोदी को अपना खुला समर्थन दे सकता है। इसके इतर एक और संभावना बनती दिख रही है जिसके कारण भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व चिंता में पड़ गया है। यदि देश के विभिन्न क्ष्ोत्रीय दल 'आप' के एजेंडे पर सहमत होकर एक राष्ट्रीय धर्म निरपेक्ष गठबंधन बनाते हैं तो वह तीसरा विकल्प बन सकता है। ज़ाहिर है यह कांग्रेस के लिए भी भारी पड़ सकता है। अगर ऐसा होता है तो भारतीय राजनीति में किसी बड़े उलट-फेर की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
मिसाल के तौर पर पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस, ओडिसा का बिजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस को लिया जा सकता है। कुछ अन्य दल भी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के साथ होते हुए भी कतिपय कारणों से दूरी बनाये हुए हैं या अवसर की ताक में हैं। फिलहाल ये भीतर से कांग्रेस के खिलाफè होते हुए भी अपने 'सुरक्षित वोट-बैंक' और कुछ वैचारिक प्रतिबद्धताओं के चलते भाजपा के साथ जाने के लिए तैयार नहीं हैं। 'आप' के प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उनकी पार्टी देश के अन्य क्ष्ोत्रीय दलों से बातचीत कर संयुक्त मोर्चा कायम करने पर विचार कर सकती है। यदि ये दल कुछ ख़ास जनपक्षीय मुद्दों पर संयुक्त मोर्चे का गठन करते हैं तो यह भाजपा से इतर 'तीसरा-विकल्प' बन सकता है। फिलहाल 'आप' जिन नीतियों और राजनैतिक कार्यश्ौली के साथ काम कर रही है, उसे देखते हुए हम इस संभावना से भी इन्कार नहीं कर सकते कि आने वाले दिनों में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का साथ छोड़कर तीसरे विकल्प के साथ इसलिए खड़े हो सकते हैं कि उन्हें नरेंद्र मोदी का 'उग्र हिंदुत्व' पसंद नहीं है। कहना न होगा कि उत्तर भारत में और पूर्वोत्तर व पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाता अहम् कारक साबित हुए हैं। यह संगठित वोट बैंक यदि अपने साथ हरिजन व पिछड़े वोट बैंक को भी साथ में लेने में सफल होता है तो देश की राजनैतिक तस्वीर अलग हो सकती है।
देश की संसदीय राजनीति एक नाजुक और परिवर्र्तनकारी दौर से गुजर रही है। 2०14 का लोकसभा चुनाव नजदीक है। उधर, दिल्ली में तीन बार कांग्रेस को सत्ता दिलाने वाली शीला दीक्षित एक नये युवा राजनेता अरविंद केजरीवाल से 25 हजार से अधिक मतों से हार चुकी हैं। अब 'आप' दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने को ले अपने मतदाताओं के मन को टटोल रही है। वहीं, अपने गांव रालेगण सिद्धि में गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे ने लोकपाल विध्ोयक के संसद में पारित होने पर अपना आमरण अनशन समा' कर दिया है। दूसरी ओर 'आप' प्रतिनिधि ने केंद्र की कांग्रेसनीत सरकार पर जन लोकपाल के 'नरम' संस्करण को पारित कराने को ले एक नयी बहस छेड़ दी है। यह संभव है कि निकट भविष्य में 'सरकारी लोकपाल' और 'जन लोकपाल' भी देश के सामने एक बड़ा मुद्दा बन कर उभर सकता है। आज आम जनता के सामने भ्रष्टाचार व महंगाई एक बड़ी समस्या है। राष्ट्रीय अस्मिता धूल चाट रही है। मूल्यों के संकट समाज जूझ रहा है। जीवन की अनिश्चयता तेज़ी से बढ़ती जा रही। देश के युवकों के सामने बेरोजगारी का विकट सवाल खड़ा है। बदतर तंत्र-तंज़ीम को ले आम-अवाम के भीतर भारी आक्रोश है। देश के भीतर एक आग सुलग रही है जो किसी भी समय भयानक रूप ले सकती है। वर्तमान परिदृश्य में सत्ता की लड़ाई के बीच व्यवस्था परिवर्तन की लहर भी दिख रही है। ज़ाहिर है उसे दबाना किसी भी राजनैतिक दल या गठबंधन के लिए मुश्किल होगा। यों कहें तो फिलहाल कांग्रेस और भाजपा ये दोनों ही अगिÝ-परीक्षा के दौर से गुजर रही हैं।
इस परिदृश्य को समझने के लिए हमें स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को याद करना होगा। आजादी के तुरंत बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि भारतवर्ष को ब्रिटिश पराधीनता से आजादी मिल गयी है। इसलिए चूंकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लक्ष्य पूरा हो गया है इसलिए हमें कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए। उसकी जगह लोक सेवा संघ की स्थापना कर वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व को ग्रामीण क्ष्ोत्रों में जाकर रचनात्मक कार्य में लगना चाहिए। दरअसल गांधी जी कांग्रेस के आंदोलन को राष्ट्र निर्माण में लगाना चाहते थ्ो। लेकिन ऐसा न हो सका। नतीजा आज देश के सामने है। अब समय रहते कांग्रेस और भाजपा खुद को समय के साथ परिवर्तित नहीं करते हैं तो उनका रसातल में जाना निश्चित है। ज़ाहिर है काठ की हांड़ी चूल्हे पर नहीं चढ़ाई जा सकती। समय करवट ले रहा है। समय बदलाव का संकेत दे रहा है। संसदीय राजनीति की विसंगतियों से खुद को बचाते हुए वामपंथी ताक़तों को नये सिरे से संसदीय राजनीति में सार्थक पहल करनी चाहिए। अतीत की अपनी गलतियों से सबक लेते हुए काफ़ी संभलकर कè दम बढ़ाना होगा। एक अवसर प्रतीक्षा कर रहा...।
अगर आने वाले दिनों में राजनीतिक अखाड़े के बड़े-बड़े पहलवान धूल चाटते नजर आएं तो इसमें हैरत वाली बात नहीं होनी चाहिए। इतिहास की सूनामी बड़े-बड़े शूरमाओं को अपने साथ बहा ले जाता है, यह हम कई बार देख चुके हैं।
बहरहाल, 'आप' एक नयी पार्टी ज़्ारूर है लेकिन इसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। जो करिश्मा दिल्ली के चुनाव में हुआ वह देश के अन्य प्रदेशों में भी हो सकता है। कारण कि मतदाता स्थापित राजनैतिक दलों की सत्ता लोलुपता, भ्रष्टाचार और परिवारवाद से तंग आ चुका है। वह यह समझ गया है कि जनता की बुनियादी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए और सत्ता में बने रहने के लिए ये राजनैतिक दल जातिवाद, संप्रदायवाद, भाषावाद और यहां तक क्ष्ोत्रीय उन्माद का लाभ उठाते रहे हैं। यह तिकड़म और धोखाघड़ी अब ज़्यादा दिनों तक चलने वाली नहीं है। लेकिन प्रश्न है कि सत्ता-परिवर्तन के इस दौर में क्या राजनीति में व्यवस्था-परिवर्तन के किसी नये दौर की भी शुरुआत हो सकती है। भारत की वर्तमान राजनीति पर यदि हम निगाह डालें तो एक नयी युवा पीढ़ी जो एक नए भारत का सपना देखती रही है, ज्ञान के आधुनिकतम उन्मेष (इंटरनेट/सोशल मीडिया) के साथ मैदान में उतर रही है। वह एक ऐसे भारत का सपना देख रही है जहां लोग खुद को प्रशासन का अभिन्न हिस्सा समझें और राष्ट्र भावना से प्रेरित होकर राष्ट्र के लिए जीवन जीएं।
इस बात को स्थापित राजनैतिक दलों के नेताओं को समझ लेना होगा। सत्ता के बंदरबांट का ख्ोल अब ज़्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है। बदलते हालात और तकाजों के मुताविक इन नेताओं को अपने दलीय ढांचों के साथ अपनी प्राथमिकताओं को लेकर भी आत्ममंथन करना होगा। युवा पीढ़ी और जागरुक तबके की इच्छा-आकांक्षाओं पर ख़्ारा उतरने का प्रयास करना होगा। वरना परिवर्तन की तेज़ लहर में पता नहीं वे कहां फेंका जायेंगे!
मोदी पर मनमोहन का वार PM की गरिमा से बाहरः जेटली
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर मुख्य विपक्षी दल बीजेपी भड़की हुई है। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने कहा कि ये प्रेसवार्ता प्रधानमंत्री की विदाई की घोषणा के लिए थी। चूंकि वे ये घोषणा कर चुके हैं इसलिए हम उनकी अच्छी सेहत और लंबी उम्र की प्रार्थना करते हैं। जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री ने प्रेसवार्ता में मान लिया है कि सरकार भ्रष्टाचार के मामले में फेल हुई, बेरोजगारी रोक नहीं पाई और महंगाई काबू में नहीं कर पाई। किसी भी शासन के ये तीन मापदंड बताते हैं कि सरकार पूरी तरह से विफल रही है। जेटली ने कहा कि 2जी और कोल आवंटन के मामले में . |
अमेरिका चाहता है भारत से अच्छे संबंध, लेकिन...
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अमेरिका, भारत के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखना चाहता है, लेकिन भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के मुद्दे पर पीछे भी नहीं हटना चाहता। अमेरिका के एक सीनियर ऑफिसर ने इस बात के संकेत दिए हैं। हालांकि भारत ने पहले ही साफ कर दिया है कि देवयानी पर लगे सभी केस अमेरिका को वापस लेने की होंगे।
अमेरिका के अधिकारी ने कहा है कि उसका ध्यान भारत-अमेरिका संबंधों को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है। इसके साथ ही अमेरिका ने इस बात पर भी जोर दिया कि राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के खिलाफ कानूनी कार्रवाई राजनयिक प्रक्रिया से अलग है। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता मैरी हर्फ ने कहा, 'विदेश विभाग में हमारा ध्यान जिस चीज पर केंद्रित है, वह द्विपक्षीय संबंधों को आगे ले जाना है। हर्फ वीजा धोखाधड़ी और गलत सूचना देने के आरोपों में खोबरागड़े की गिरफ्तारी की पृष्ठभूमि में भारत और अमेरिका के संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव से जुड़े सवालों के जवाब दे रही थीं। हमारा ध्यान इस संबंध को आगे ले जाने और सभी मुद्दों पर साथ मिलकर काम करने पर केंद्रित है। यहां हमारा मूल ध्यान इसी पर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि विदेशमंत्री जॉन कैरी और अन्य शीर्ष अधिकारी इस घटना पर अपना दुख जाहिर कर चुके हैं और वे अब आगे बढ़ना चाहते हैं।'
हालांकि हर्फ ने कहा कि भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को भारत के संयुक्त राष्ट्र मिशन में स्थानांतरित किए जाने पर कागजी कार्यवाही की समीक्षा हो रही है। उन्होंने कहा, हमें यह (संबंधित कागजात) 20 दिसंबर को मिले। इसकी समीक्षा की जा रही है। हम भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि समीक्षा कब तक पूरी होगी और इसकी तुलना पिछले आग्रहों से नहीं की जा सकती, क्योंकि हर चीज भिन्न होती है तथा हम प्रत्येक का मूल्यांकन उसके गुण दोष के आधार पर करते हैं।'
पिछले दिनों भारत और अमेरिका के बीच देवयानी के मुद्दे पर संबंधों में खटास आई। लेकिन अमेरिका नहीं चाहता कि भारत के साथ उसके संबंध खराब हों। इसीलिए अब अमेरिका की ओर से बयान जारी किए जा रहे हैं कि वो भारत-अमेरिका के संबंधों को बेहतर करने की ओर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
और भी... http://www.p7news.com/world/17750-us-wants-good-relations-with-india-but.html
Please watch and share the full speech of Delhi CM Arvind Kejriwal in Assembly where he listed out AAP Government's pro-people agenda.
Watch Delhi CM Arvind Kejriwal's speech in Assembly
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#AAP wins trust vote in Delhi. Now time to deliver our manifesto and work for Loksabha 2014
Would you like to contribute?
Join #AAP at http://www.aamaadmiparty.org/join-us — with Sanketh Leeladhar and 48 others.
Ak Pankaj shared आदिवासी साहित्य - Adivasi Literature'sphoto.
आदिवासियों के मौलिक चिंतन और लेखन के विस्तार में आदिवासी, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशित इन किताबों ने जरूरी हस्तक्षेप किया है. 2013 में आए आदिवासी साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता है गैर-आदिवासी साहित्यकारों के घेरे में कैद आदिवासी साहित्य विमर्श को 'आदिवासियत' के खुले और उन्मुक्त प्राकृतिक-सांस्कृतिक स्थल में ले आना. गैर-आदिवासी साहित्यिक प्रवक्ताओं द्वारा लिखित भ्रामक तथ्य-कथ्य से असहमति व्यक्त करना. आदिवासी साहित्य और समाज के कोरस को आदिवासी विश्वदृष्टिकोण से दुनिया के साथ साझा करना.
वर्ष 2013 का बहुचर्चित आदिवासी साहित्य (भाग-1) गुजरे साल में आदिवानी, कोलकाता से छपी ग्लैडसन डुंगडुंग की अंग्रेजी पुस्तक 'हूज कंट्री इज इट एनीवे?', प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन, रांची से प्रकाशित वंदना टेटे की वैचारिक पुस्तक 'आदिवासी साहित्य: परंपरा और प्रयोजन', अलख प्रकाशन, जयपुर से हरिराम मीणा के संपादन में आई 'समकालीन आदिवासी कविता', सुंदर मनोज हेम्ब्रम का कथा संग्रह 'सेंगेल बुरु', अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली से प्रकाशित गंगा सहाय मीणा संपादित आलोचनात्मक किताब 'आदिवासी साहित्य विमर्श' और डकबिल पब्लिशर्स से छप कर आया सुजान्ने संगी का अंग्रेजी उपन्यास 'फेसबुक फैंटम' उन कुछ प्रमुख प्रकाशनों में हैं जिनसे आदिवासी साहित्य विमर्श को एक ठोस दिशा मिली है. आदिवासियों के मौलिक चिंतन और लेखन के विस्तार में आदिवासी, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशित इन किताबों ने जरूरी हस्तक्षेप किया है. 2013 में आए आदिवासी साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता है गैर-आदिवासी साहित्यकारों के घेरे में कैद आदिवासी साहित्य विमर्श को 'आदिवासियत' के खुले और उन्मुक्त प्राकृतिक-सांस्कृतिक स्थल में ले आना. गैर-आदिवासी साहित्यिक प्रवक्ताओं द्वारा लिखित भ्रामक तथ्य-कथ्य से असहमति व्यक्त करना. आदिवासी साहित्य और समाज के कोरस को आदिवासी विश्वदृष्टिकोण से दुनिया के साथ साझा करना. गंगा सहाय मीणा, Gladson Dungdung, Sunder Manoj Hembrom, Vandna Tete Joy Tudu, Hari Ram Meena
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