Thursday, June 27, 2013

खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते!

खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते!


पलाश विश्वास


खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते।

खबरों में जख्मी होते हैं जो लोग,वे भी मेरे नहीं होते।


बुरी खबरों के लिए असंख्य अखबार अनगिनत चैनल


पृथ्वी में इतनी दुर्घटनाएं क्यों होती हैं आजकल?

बुरी खबरों के इंतजार में रतजगा व्यस्त तमाम लोग

व्यस्त इंटरनेट, सूचना महाविस्फोट


सबकुछसलामत है सुनकर बहुत अच्छा नहीं लगता


जिले बदल गये हैं बहुत दिन हुए दोस्त

प्रांतों की सीमाएं भी बदल गयी हैं

देस सही सलामत हैं,फिर भी बेचैन हैं हम बहुत


गांव तक पहुंचने के लिए सबसे जरुरी है पासपोर्ट


राशनकार्ड से भी नागरिकता तय नहीं होगी अब

मतदाता पहचान पत्र न जाने कब बेकार हो गये


तस्वीरे शिनाख्त नहीं करती चेहरे की

हर वजूद लावारिश है अब मेरे देश में


बायोमेट्रिक डिजिटल हुआ है रंगीन मेरा देश


नदियां बती हैं तो पानी भी लाल होना चाहिए

आबोहवा में में सुधार के लिए लाशें होना बहुत जरुरी है दोस्त

इंसान को लाश बनाने का हर सामान  बहुत जरुरी है दोस्त


हवाओं में बारुद न हो तो सब बेमजा समझिये दोस्त

एक्शन और स्पेशल असर अब लाइव चाहिए दोस्त

मल्ची मीडिया फोर जी स्पेक्टर्म बहुत जरुरी है दोस्त


घात लगाकर कहीं बैठा न हो आतंक

और आतंकर के खिलाफ जंग भी न हो तो मुश्किल है बहुत

आंतरिक सुरक्षा खतरे में न हो और देश हो सुरक्षित


तो बंदुकों से लेकर एटम बम की वर्दियां कैसी दोस्त

सरकारों को बहुत परेशान करती न्यायपालिका दोस्त

नरसंहार की संस्कृति नहीं कैसी राजनीति दोस्त


बयानों में दर्ज नहीं होते बेदखल अनाथ गांवों के आंसू


बलात्कृत फसलें क्या बोलेंगी किसी के खिलाफ

अपने ही लोगों की मौत का जायजा लेते लोग

पीठ में घोंपा न हो कोई छुरातो मजा क्या है जीने में


खबरों में मारे जानते हैं जो लोग, वे मारे कोई नहीं होते।

खबरों में जख्मी होते हैं जो लोग वेभी कोई नहीं होते।


हादसे अब दहशत पैदा नहीं करते तनिक


मृतकों के आंकड़ों में खिलती हैं सुर्खियां

अब नफरत नहीं होती सामूहिक बलात्कारों से दोस्त


गरीबी रेखा के नीचे हैं निनानब्वे फीसद लोग

अबाध पूंजी प्रवाह सकुशल है दोस्त

सकुशल है कालाधन काले हाथों में दोस्त


सारा जोर है इस वक्त जनसंख्या नियंत्रण पर


जनसंख्या के सफाये पर जश्न मनाइये दोस्तों

आपदा उत्सव पर भी जश्न मनाइये दोस्तों


राजनीति और अर्थव्यवस्था पर काबिज सफेदपोश अमानुष


अब भेड़िये की मुस्कान सबसे बेहतरीन रचना है

सौंदर्यबोध कलाकौशल और तकनीक वीभत्सता है

जीते जी हैवान बन गये हैं लोग


बौद्धिक गुलामी से शुरु होती है तरक्की की सीढ़ियां, दोस्तों


लहूलुहान खबरों के खंडहर में आत्मरतिमग्न

अपनी जमात के ही सारे प्रतिबद्ध सितारे


चमगादड़पंख फड़फड़ा रहे हैं बहुत

पीपल के पेड़ों से बेदखल ब्रह्मराक्षस

चौराहे बंद गलियों में तब्दील,अंधेरे में कैद हम


बेकार प्रक्षेपास्त्र सी दिनचर्या है दोस्तों


सूरज को पीठ पर ढोते हुए टहलना

मरे पर वार करना फैशन मौसम है दोस्तों

जलवायु बदल गया है,खतरे में हिमालय दोस्तों


लिहाजा


खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते

खबरों में जख्मी होते हैं,जो लोग वे भी मेरे कोई नहीं होते


(मूल कविता का पुनर्पाठ, मूल कविता साक्षात्कार,सितंबर,2000 में प्रकाशित)


प्रक्षेपक


खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते

खबरों में जख्मी होते हैं,जो लोग वे भी मेरे कोई नहीं होते


उत्तराखंड त्रासदी में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार में देरी की वजह कुछ उभरते मतभेदों को बताया जा रहा है। खराब मौसम की वजह से सामूहिक अंतिम संस्कार मंगलवार को भी नहीं हो पाया था और बुधवार को भी मौसम अनुकूल नहीं होने की वजह से इस प्रक्रिया में देरी हुई। वहीं, खबरों के मुताबिक राज्य सरकार चाहती है कि सेना अंतिम संस्कार के कामकाज में भी मदद करे जबकि सेना का कहना है कि उनका काम सिर्फ राहत और बचाव कार्य तक ही है और शवों का अंतिम संस्कार उनके कामकाज के दायरे में नहीं आता है।


सूरज को पीठ पर ढोते हुए टहलना

मरे पर वार करना फैशन मौसम है दोस्तों

जलवायु बदल गया है,खतरे में हिमालय दोस्तों

बकौल ताराचंद्र त्रिपाठी: एक मित्र ने इस तबाही के लिए चारधाम यात्रा को जिम्मेदार माना है. मेरे विचार से इस तबाही के लिए चारधाम यात्रा कत्तई जिम्मेदार नहीं है. जिम्मेदार हैं तो पिछली सरकारों और उनके लगुए भगुए नेता. कच्ची उमर के पहाड़ की छाती को विस्फोटों छलनी करने वाले, यूपी हो या उल्टाखंड किसी ने भी हिमालय की पीड़ा पर ध्यान नहीं दिया. नारायण हों, या भगोना, सब ने निश्शंक हो कर उसे लूटा है. उसकी गोद में पले हम सब लोगों ने अपने पितरों की वनों और पर्वतों को भी जीवन्त मान कर उनसे अपनी जरूरत भर की सामग्री लेना छोड़ कर उसे बेतहासा लूटना आरंभ कर दिया. जहाँ लंगूर और बन्दर भी सावधानी से उछलते कूदते थे, वहाँ हमारे बड़े बडे ट्रकों और अर्थ मूवरों ने धिरकना आरम्भ कर दिया. माटी को सहारा देने वाली झाड़ियाँ कब की समूल सरे राह बाजार में लुटा दी गयीं. जो मरे, जो पीड़ित हुए, जो आगे चल कर पीढ़ी दर पीढी पीड़ित होंगे. पहाड़ की नहीं समूची गंगा यमुना के दोआबे को आज ही नहीं कल भी हिमालय की बद दुआ को झेलना होगा.


उत्तराखंड सरकार ने इस बात का ऐलान किया है कि वह केदारनाथ मंदिर को फिर से बनवाएगी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा कि सरकार केदारनाथ मंदिर बनवाएगी। गौर हो कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदरनाथ मंदिर बनवाने की पेशकश की थी जिसे बहुगुणा ने ठुकरा दिया है।


गौरतलब हैकि उत्तराखंड में बाढ़ की सबसे ज्यादा विभीषिका झेलने वाले केदारनाथ में मंदिर गर्भगृह और नंदी को छोड़कर कुछ नहीं बचा है । माना जा रहा है कि इस पवित्र धाम को फिर से बसाने में दो से तीन साल लग जाएंगे।


बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश घौडियाल के अनुसार मंदिर के भीतर कोई नुकसान नहीं हुआ है। लिंग पूरी तरह सुरक्षित है लेकिन बाहर जमा मलबे का रेत और पानी मंदिर के भीतर घुस गया है। मंदिर के आसपास कुछ नहीं बचा है। मंदिर समिति का कार्यालय, धर्मशालाएं और भंडार गृह सब नष्ट हो गया है।


राहत अभियान खत्म हुआ नहीं अभी

केदरानाथदखल महाभारत शुरु

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने केदारनाथ के रावल के दावे को सिरे से खारिज कर दिया है। कहा कि रावल को अब केदारनाथ में पूजा नहीं करने दी जाएगी। बदरी-केदार दोनों जगहों के रावलों पर पूजा को लेकर एक ही बात लागू होती है। रावल स्वयं को जगदगुरु बता रहे हैं, लेकिन वे मंदिर समिति के वेतनभोगी कर्मी हैं।


कनखल स्थित शंकराचार्य निवास में ज्योतिषपीठाधीश्वर ने बताया कि केदारनाथ में स्थिति सामान्य की जानी जरूरी है। शवों को वहां से हटाकर उनका सनातन परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए। उसके बाद केदारनाथ में परंपरा के अनुसार पूजा शुरू होनी चाहिए। केदारनाथ के रावल भीमा शंकर लिंग के उस दावे को शंकराचार्य ने खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने स्वयं को जगदगुरु बताया था। शंकराचार्य ने कहा कि वे वहां के केवल रावल हैं। कौन सा जगदगुरु वेतनभोगी होता है। उन्होंने कहा कि स्वार्थ के लिए रावल उखीमठ में पूजा की बात कह रहे हैं। इसमें व्यावसायिक दृष्टिकोण छिपा हुआ है। केदारनाथ में सिद्ध शिवलिंग है। इसलिए वहां प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि रावल को अब केदारनाथ में पूजा अर्चना नहीं करने दी जाएगी।


शंकराचार्य ने केदारनाथ भेजा शिष्य, संतों पर असमंजस


शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने केदारनाथ की स्थिति का पता लगाने अपने एक शिष्य को रवाना कर दिया है। शंकराचार्य आश्रम कनखल से दी सूचना के अनुसार आत्मानंद जौलीग्रांट एयरपोर्ट से केदारनाथ जाएंगे। बुधवार दोपहर शंकराचार्य आश्रम से शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के हवाले से बताया कि आत्मानंद को केदारनाथ की स्थिति से संतों को अवगत कराने के लिए केदारनाथ धाम भेजा है। आगे की रणनीति उनकी ओर से दी गई जानकारी के आधार पर बनाई जाएगी। वहीं संतों के केदारनाथ जाने के लिए मंगलवार को शंकराचार्य ने सरकार को भेजे पत्र का बुधवार शाम तक कोई जवाब नहीं आया है। उधर, जौलीग्रांट एयरपोर्ट रवाना होने से पहले दैनिक जागरण से बातचीत में आत्मानंद से बताया कि वे हेलीकॉप्टर से केदारनाथ जाएंगे। सरकार ने कोई बंदोबस्त न किया तो वे शंकराचार्य के आदेश पर स्वयं के खर्चे पर हेलीकॉप्टर से केदारनाथ जाएंगे।


मंदिर समिति का नौकर बताना गद्दी का अपमान: रावल


गोपेश्वर [चमोली]। केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग शिवाचार्य महाराज ने कहा कि मुझे मंदिर समिति का कर्मचारी कहकर शंकराचार्य ने केदारनाथ की परंपरा व गद्दी का अपमान है। मैंने मंदिर समिति से नौकरी के रूप में आज तक कोई भी धन नहीं लिया है।


हैदराबाद से दूरभाष पर जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि श्री बदरीनाथ में पूजा परंपरा में रावल पुजारी के रूप में होते हैं। वे केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं, जबकि केदारनाथ में रावल गद्दी स्थान पर विराजमान होते हैं। उनसे दीक्षा प्राप्त वीर शैवलिंगायत संप्रदाय के जंगम लोगों में से पांच शिष्यों में से कोई भी एक पूजा करता है। हर वर्ष केदारनाथ की पूजा रावल से दीक्षित शिष्यों में से कोई भी कर सकते हैं। परंपरा के अनुसार केदारनाथ में पूजा करने वाले का ब्रह्मचारी होना जरूरी नहीं है। रावल को ही ब्रह्मचारी, सन्यासी होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि केदारनाथ में पूजा परंपरा का ज्ञान केदारघाटी की जनता, विद्वानों को भली भांति पता है। ऐसे में ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य उन्हें मंदिर समिति का नौकर कहकर अपमानित कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि उन्होंने मंदिर समिति से वेतन के रूप में कोई भी धनराशि आज तक नहीं ली है।


शंकराचार्य परंपरा पर बोलते हुए श्री शिवाचार्य महाराज ने कहा कि देश में धर्म की रक्षा के लिए चार आदि गुरु शंकराचार्य ने चार शंकराचार्यो को चार पीठों में बैठाया गया था। वीर शैवलिंगायत संप्रदाय परंपरा में पांच पंचाचार्यो को उस संप्रदाय के लोग जगत गुरु का स्थान देते है। पांच पीठों में से कर्नाटक के रंभापुरी में वीर पीठ, कर्नाटक के उज्जैनी में सधर्म पीठ, उत्तराखंड के ऊखीमठ ओंकारेश्वर मंदिर में हिमवत केदार बैराग्य पीठ, आंध्र प्रदेश के श्री शैल में सूर्य पीठ तथा उत्तर प्रदेश के काशी में ज्ञान पीठ है। इनमें से केदारनाथ के रावल को केदार जगत गुरु के रूप में वीर शैवलिंगायत संप्रदाय में पूजा जाता है। उन्होंने कहा कि भगवान केदारनाथ की विग्रह मूर्ति की पूजा ऊखीमठ में की जा रही है। यह धन कमाने के लिए नहीं बल्कि भगवान की भक्ति का एक माध्यम है। उन्होंने सन्यासी के रूप में न केवल धर्म प्रचार बल्कि पूजा परंपरा के निर्वहन के लिए अपने जीवन के हर क्षण बिताए हैं। शंकराचार्य के केदारनाथ की पूजा में विध्न डालने संबंधी बयान पर रावल ने कहा कि यह कृत्य धर्म और परंपरा के विपरीत होगा और इसे लोग कभी माफ नहीं करेंगे। वे भी अपने जीते जी केदारनाथ की धार्मिक परंपराओं को खंडित नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि केदारनाथ में मरण शूतक के कारण अभी पूजा संभव नहीं है। जब मंदिर समिति गर्भ गृह व मंदिर की सफाई कर देगी। इसके बाद शुद्धिकरण कर बाबा केदारनाथ की पूजा परंपरा के अनुसार फिर से शुरू होगी।


केदारनाथ में ही हो केदारेश्वर की पूजा: अविमुक्तेश्वरानंद


हरिद्वार। केदारनाथ के रावल पर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के साथ ही उनके शिष्यों ने तीखा हमला किया है। शंकराचार्य के प्रतिनिधि शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि केदारनाथ के रावल को परंपरा, व्यवहार व शास्त्र का ज्ञान नहीं है। केदारेश्वर की पूजा ओंकारेश्वर में नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि रावल मरण सूतक की बात कह रहे हैं, लेकिन वे यह बताएं की कौन से मंदिर में मृत्यु होने के बाद पूजा नहीं की जाती। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जिस मूर्ति को लेकर उखीमठ आने की बात कही जा रही है, उसको लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। वास्तव में कोई पुजारी मूर्ति लेकर आया तब भी वह गलत है। उन्होंने कहा कि माधवाश्रम महाराज आदि शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ में न होने का बयान दे रहे हैं। यह शास्त्रों में की बातों के विरुद्ध है।


तो बंदुकों से लेकर एटम बम की वर्दियां कैसी दोस्त

सरकारों को बहुत परेशान करती न्यायपालिका दोस्त

नरसंहार की संस्कृति नहीं कैसी राजनीति दोस्त


कांग्रेस ने मंगलवार को राहुल गांधी के बाढ़ प्रभावित उत्तराखंड दौरे को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से अलग करार देते हुए कहा है कि पार्टी उपाध्यक्ष 'फोटो सेशन' के लिए नहीं गए थे।


उधर, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की कांग्रेस की ओर से की जा रही आलोचनाओं और राहुल गांधी की यात्रा का स्वागत किए जाने पर खिन्नता जताते हुए भाजपा ने आज कहा कि कम से कम ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति से बचना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने यहां कहा कि जहां तक उत्तराखंड में आई आपदा का सवाल है, मैं यही कहना चाहूंगा कि किसी भी राजनीतिक दल को इसे लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए।


उन्होंने कहा कि कोई मुख्यमंत्री या कोई राजनीतिक दल उत्तराखंड में बाढ़ प्रभावितों की सहायता करना चाहता है तो मेरा मानना है कि उस मदद को स्वीकार करना चाहिए, न कि उसे राजनीतिक मुद्दा बना कर उछालना चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी से संवाददाताओं ने कहा कि मोदी 15,000 लोगों को बचाने का दावा करके 'रैम्बो' बनने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि उनका दौरा सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए था।


चमगादड़पंख फड़फड़ा रहे हैं बहुत

पीपल के पेड़ों से बेदखल ब्रह्मराक्षस

चौराहे बंद गलियों में तब्दील,अंधेरे में कैद हम

उत्‍तराखंड में त्रासदी पर अभी तक तो राजनीति ही हो रही थी, लेकिन अब हजारों लोगों के जख्‍मों पर लापरवाही और असंवेदनशीलता का नमक भी छिड़का जा रहा है। ये काम कोई छोटा मोटा नेता नहीं कर रहा है बल्कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने और सत्‍तारूढ़ यूपीए सरकार की अघोषित रूप से कमान संभालने वाली सोनिया गांधी और उत्‍तराखंड में कांग्रेस की सरकार के मुख्‍यमंत्री विजय बहगुणा कर रहे हैं। इन पर राजनीति इस कदर हावी है कि ये राहत कार्यों को बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहे हैं और वह भी हंसते हुए। इन्‍हें इस बात की परवाह नहीं कि अपना बखान करने के लिये इन्‍हें बाद में भी समय मिल जाएगा, लेकिन ये लोग तो अपना बखान कर रहे हैं, जबकि हकीकत ये है कि उत्‍तराखंड में न जाने कितने लोग भूख प्‍यास से मर गये और आज भी हजारों लोग वहां पर फंसे हैं।   


अखबारों में छपी मुस्‍कुराती हुई तस्‍वीरें


ये पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब राहत के काम में ढिलाई के आरोपों से घिरी उत्तराखंड सरकार ने छवि सुधारने के लिए अखबारों में दिये। इनमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की मुस्कुराती हुई तस्वीरें छापी गई हैं। इसमें पीएम मनमोहन सिंह की भी तस्वीर है। ये हंसती तस्वीरें लोगों के जख्मों पर नमक छिड़क रही है। उत्तराखंड सरकार ने मुसीबत की घड़ी में साथ रहने की प्रतिज्ञा वाले ये विज्ञापन सोमवार को अखबारों में जारी किए। इसमें आम लोगों तक पहुंचाई गई राहत के बड़े-बड़े दावे किए गए हैं। सेना से आगे सरकार का नाम जोड़ते हुए 83 हजार लोगों को बचाने का दावा किया गया है।


राहत सामग्री रवाना करते हुए भी सोनिया के चेहरे भी थी हंसी


इस विज्ञापन से पहले सोनिया गांधी ने कांग्रेस मुख्‍यालय से 25 ट्रक राहत सामग्री उत्‍तराखंड रवाना की थी। उत्‍तराखंड में त्रासदी के बाद से पहली बार राहुल गांधी इसी कार्यक्रम में नजर आए थे। उत्‍तराखंड में कुदरत के कहर के पूरे आठ दिन बाद। ट्रकों को हरी झंडी दिखाते हुए सोनिया गांधी के चेहरे पर हंसी थी। इस कार्यक्रम में शीला दीक्षित भी मौजूद थीं।


जनसंख्या के सफाये पर जश्न मनाइये दोस्तों

आपदा उत्सव पर भी जश्न मनाइये दोस्तों


16 और 17 जून को जलप्रलय के दौरान रामबाड़ा में कुछ निशान बचा ही नहीं। सबकुछ बर्बाद हो गया। चश्मीदादों के कहना है कि केदारनाथ में तो कुछ दिख भी रहा है लेकिन रामबाड़ा में कुछ भी नहीं दिख रहा है। नक्शे से उसका नामोनिशान मिट चुका है।केदारनाथ के ठीक पास है रामबाड़ा जो सैलानियों में बेहद चर्चित है। सैलानी यहां रुकने के अलावा ट्रैकिंग करना भी पसंद करते है। यहां लगभग 150 दुकाने थी और पांच होटल थे जहां सैलानी ठहरा करते थे। अब यहां कुछ भी नहीं दिखता, सब पानी में बह गए हैं। जब इस इलाके में पानी का सैलाब आया तो धरती से उसकी ऊंचाई 10 फीट थी जिसमें सब कुछ बह गया। यहां अब भी मलवा बिखरा हुआ है। इस मलबे में ना जाने कितनी इंसानी लाशें समेत कई चीजें मिलेंगी लेकिन फिलहाल यहां सबकुछ खौफ में सिमटा हुआ है। यहां सन्नाटा पसरा है,खामोशी है जिसमें बर्बादी का मंजर साफ दिखता है


इलाहाबाद के एक ग्रामीण इलाके में गंगा नदी से छह शव बरामद किए गए हैं। पुलिस ने इस आशंका को खारिज नहीं किया है कि ये शव उत्तराखंड में बह गए श्रद्धालुओं के हो सकते हैं। पुलिस प्रवक्ता उमाशंकर शुक्ला ने बताया कि मांडा थाना क्षेत्र में ग्रामीणों ने गंगा नदी में शव बहते हुए देखे और फिर पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने स्थानीय और गोताखोरों की मदद से शव बाहर निकाले।


खराब मौसम की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन बाधित होने से अभी भी उत्तराखंड के अलग-अलग पहाड़ी क्षेत्रों में करीब पांच हजार लोग फंसे पड़े है। हालांकि सरकारी सूत्र कह रहे हैं कि राहत कार्य अगले 48 से 72 घंटे में पूरा हो जाएगा, लेकिन कुछ ऐसे गांव भी हैं जो पूरी तरह से संपर्क मार्ग से कटे हुए हैं। इन गांवों में अभी तक कोई राहत व बचाव दल नहीं पहुंच पाया है। एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड में अभी भी करीब 5 हजार लोग फंसे हुए हैं और 400 लोग आधिकारिक रूप से लापता हैं।


कई शवों को कीड़ों ने खाया : सूबे की आपदा में बड़ी संख्या में क्षत-विक्षत शव को लेकर भी प्रशासन के हाथ-पांव फूल रहे हैं। सैकड़ों की संख्या में ऐसे शव हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाई है। कई शव ऐसे हैं, जिन्हें कीड़ों ने खा लिया है। कुछ शव पूरी तरह से सड़ गए हैं। इनका डीएनए लेने में भी सरकार को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। महामारी की आशंका से भी सरकार परेशान है। जरूरत के मुताबिक डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं।

रोजी-रोटी के संकट की चिंता : स्थानीय लोगों ने सरकार के सामने सबसे बड़ी चिंता तुरंत नुकसान के अलावा रोजी-रोटी के संकट पर भी जताई है। आपदा राहत मंत्री यशपाल आर्य के मुताबिक यहां के हजारों लोगों की रोजी-रोटी पर्यटन पर आधारित है। ऐसे में इनकी आजीविका का ध्यान सरकार को देना होगा।

अब भी सब जगह खाना नहीं : प्रदेश के कई इलाकों में आपदा के कई दिन बाद भी खाना नहीं पहुंच पाया है। सरकार ने बुधवार को फिर भरोसा दिलाया कि अगले तीन दिन में किसी भी प्रभावित इलाके में खाने की कमी नहीं होगी। हालांकि, सरकार ने अपने स्टॉक में पर्याप्त खाद्यान्न की उपलब्धता का दावा किया है।


मुख्यमंत्री बहुगुणा ने कहा कि राज्यों से जानकारी मंगाई जा रही है कि वहां से कितने लोग उत्तराखंड आए थे। अब तक कितने वापस लौटे, इसके आधार पर ही लापता लोगों की सही संख्या का पता चलेगा। चारों तरफ से हो रही आलोचना के बाद अब मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सभी जिला अधिकारियों को आपदा राहत का वितरण तुरंत सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया है। सभी जिला अधिकारियों से कहा गया है कि वे पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के नुकसान का आकलन करके अब रीस्टोरेशन का काम भी तुरंत शुरू कर दें। राज्य सरकार के विभिन्न एजेंसियों से तालमेल की कमी अखर रही है। सरकार को सूबे में काम कर रही सभी एजेंसियों से पूरी रिपोर्ट नहीं मिल रही है। सेना व अर्धसैनिक बलों में तालमेल नहीं है।



Tuesday, June 25, 2013

इच्छाकूप में अनंत छलांग

इच्छाकूप में अनंत छलांग


पलाश विश्वास


1


इच्छाकूप में मेरी वह अनंत छलांग

पृथ्वी का अंत नहीं था वह यकीनन


सपने में मूसलाधार वर्षा,कड़कती बिजलियां

चहकती इंद्रधनुषी घाटियां सुनसान अचानक

अंतरिक्ष अस्त व्यस्त, बहुत तेज हैं सौर्य आंधियां


हिमालय के उत्तुंग शिखरों में परमाणु धमाके

समुंदर की तहों में पनडुब्बियां

ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं तमाम

यौनगंधी हवाओं में बारुदी तूफान


ऋतुमती नदी किंतु मौन है


तीर्थस्थलों से मनुष्यों का पाप ढोकर

समुद्र तक पहुंचना, गांव गांव, शहर शहर

कहकहे लगाते बेशर्म बाजार


मंझधार में मांझी भूल गये गीत



युद्धक विमानों का शोर बहुत है

पृथ्वी में इन दिनों

जलमग्न हैं अरण्य, कैद वनस्पति


किंतु दावानल में जलते निशिदिन


विषकन्याओं की सौंदर्यअग्नि में

पिघल रही है पुरखों की अस्थियां


नदी बंधती जहां तहां



2



नदी तब बहती थी मेरे भीतर

उसके होंठों पर थे असंख्य प्रेमपत्र

तब टिहरी जलाशय कहीं नहीं था


गंगोत्री के स्तनों पर थे मेरे हाथ


तृतीय शिवनेत्र की रोषाग्नि से

बची हुई थी आकाशगंगाएं

रतिसुखसमृद्ध थी नदी


सौभाग्यवती कुलवधू


चुलबुली पर्वतकन्या की तपस्यारत

मूर्ति ही देखी थी देवताओं ने


चट्टानें तोड़ती सरपट दौड़ती

तेज धार तलवार सी बहती

अपने ही किनारे चबाती


नदी जनपदों में बाढ़ बनकर

कहर बरपाती कब तक


कब तक यात्रा यह बिन बंधी


षड्यंत्र था कि ब्रह्मकमंडल

में थी कैद जो नदी,परमार्थ

स्वार्थ खींच लाया उसे यहां

और अपनी कोख में सिरजा


उसने यह भारतवर्ष




3



सिहरण थी नदी की योनि में

उल्कापात जारी था पृथ्वी पर


वक्षस्थल में उभार कामोद्दीपक

महाभारत हेतु बार बार

गाभिन वह चुपचाप बहती


अतृप्त यौनाचारमत्त कलि,अवैध संतानें

वर्णशंकर प्रजातियां क्लोन प्रतिरुप


प्रवंचक ब्राह्मणत्व का

पुनरूत्थान


नदी असहाय बहती मौन


ऋतुस्राव के वक्त भी बलात्कृता

किसी थाने में कोई रपट नहीं

कहीं कोई खबर नहीं


इतनी बार इतनी बार

सामूहिक बलात्कार



फिरभी देवी सर्वत्र पुज्यति

या देवि...



4



ग्लेशियर से समुंदर तक नदी के संग संग

मेरी यह यात्रा अनंत

इच्छाकूप की छलांग यह अनंत


यकीनन पृथ्वी का अंत नहीं था वह


नदी के प्रवाह  में पलायन

महात्वाकांक्षाएं जलावतरित

बेइंतहा जलावतन


पीछे छूटा ग्लेशियर

पीछे छूटा पहाड़

छूटा गांव,छूटी घाटियां


वनस्पतियों ने तब भी शोक मनाया


बादल थे अचंभित ठहरे हुए

तालों में तिरती मछलियां रोती सी



चिड़िया भूल गयी थी चहकना


नदी के होंठें पर थी मुस्कान

नदी तब भी बह रही थी

बिन बंधी...


जारी वह अनंत छलांग



5



संवेदनाएं दम तोड़ रही थीं

आत्मीयता बंधन तोड़ रही थी

फूलों की महक पीछा छोड़ रही थी


फलों का स्वाद कह रहा था अलविदा



जोर से बह रही हवाएं एक साथ

चीड़, बांज और देवदार के जंगल शोकसंतप्त



सेब के बगीचे खामोश

खुबानी की टहनियां झुकी सी

स्ट्राबेरी की गंध दम तोड़ती


समूचा पहाड़ था चुपचाप खड़ा


सिर्फ कुल्हाड़ियों की आवाज थी

कगारें तोड़ती धार थी

और थी अकेली बहती पतवार


उत्तुंग हिमाच्छादित शिखरों ने भी

देखा निर्लिप्त मेरा पलायन


कुहासे की गोद में

चुपचाप सो रही थी पृथ्वी


चारों दिशाएं गूंज रही थी, भोर संगीत


इच्छाकूप की गहराइयों में थी

सीढ़ियां  अनंत फिसलनदार

मीनारे थीं अनंत


सिर्फ डूबते जाना था


डूबने में भी था चढ़ने का अहसास

पहाड़ से उतरकर


फिर कहां चढ़ोगे, बंधु?


एक नया सा आसमान था मेरी आंखों में


रंग जिसका नीला तो कतई न था

तिलस्मी संसार एक जरुर

और अय्यारियों का करिश्मा एक के बाद एक


फिर भी चंद्रकांता संतति थी नहीं कहीं


पग पग बदल रही थीं उड़ानें,हवाई यात्राएं

बदल रही थीं महात्वाकांक्षाएं रोज शक्ल अपनी


सारे आंखर बेअदब हो गये अकस्मात

बेमायने हो गये भाषाई सेतु

सारे समीकरण थे विरुद्ध, विरुद्ध थे जातिगणित


तलवारें बरस रही थीं चारों ओर से


घत लगाकर हो गये कितने आतंकवादी हमले

फिर बारुदी सुरंगें तमाम


अंधाधुंध फायरिंग अविराम गोलीबारी, बमवर्षा

मुठभेड़, युद्ध, गृहयुद्ध के हर मुकाम पर


लेकिन असमाप्त फिरभी वह अनंत छलांग



6



मैंने दिव्यचक्षु से नदियों को

ग्लेशियरों की बांहों में सुबकते देखा


मैंने देखी ऋतुमती घाटियां गर्भवती असहाय


हिमपात जारी आदि अनंतकाल से

मैं सिर्फ दौड़ता ही रहा


भागता रहा मैं....


नदियां क्या फिर बोलेंगी किसी दिन

नदियां क्या अंतःस्थल खोलेंगी किसी दिन


बहुत जरुरी है नदियों की पवित्रता

इस पृथ्वी को जीवित रखने के लिए


शुक्र है, इच्छाकूप में मेरी अनंत छलांग

के बावजूद पृथ्वी  का अंत नहीं हुआ


अंततः



(परिचय - 4, अक्तूबर, 2002 में प्रकाशित)








Saturday, June 22, 2013

खामोश! भूमंडलीकरण जारी है!

खामोश! भूमंडलीकरण जारी है!


पलाश विश्वास


महाश्वेतादी कहती हैं,अपराधी महाशक्ति है वह

दुनिया की कोई ताकत उसके खिलाफ

खड़ी नहीं हो सकती


महाश्वेतादी कहती हैं ,वैश्वीकरण का विरोधी

यानी उसके हितों पर चोट

बहुत भारी हैं उसकी जेबें


आइये,हम सब जेबकतरा बन जायें

आहिस्ते आहिस्ते उसकी जेबें काली कर दें


क्या वह दुनियाभर के लोगों पर

करेगा मिसाइलों की वर्षा

या फिर हमबनेंगे वियतनाम

अफगानिस्तान

या

इराक

इतना डर!


परमाणु विध्वंस के बाद

आज भी जीवित हैं

हिरोशिमा और नागासाकी

और हम?


दो


खामोश! भूमंडलीकरण जारी है

खामोश! पतन हो गया बगदाद का

खामोश! अब कहीं नहीं है सद्दाम


वे हमें मुक्ति देने आयेंगे


अब उनकी स्वतंत्रता का मतलब

क्या नहीं जानते भाई?


खाड़ी मे तैनात हैं उनकी मिसाइलें

उनके युद्धक विमान

बाप रे बाप!


खामोश! दादा चले हैं वसूली के लिए


तीन


तो क्या अब कश्मीर की बारी है?


कौन मूर्ख कहता है

आतंकवाद खत्म न हुआ

तो बातचीत नहीं


देखो, हम शांति गीत गा रहे हैं


दादा आये हैं, देखो

उनके स्वागत में गार्ड आफ आनर


और देखो,बाघा पर पर कैसा मधुर मिलन

हम मोमबत्ती जला रहे हैं


वाशिंगटन से आया है फोन


नहीं, हम उन्हें आश्वस्त कर देंगे

सीमा पर कोई तनाव नहीं है


अब देखो,क्रिकेट मैच भी शुरु होने वाला है


अश्वमेद यज्ञ के घोड़े से

आखिर किसे नहीं है डर?


चार


बैबिलोनिया के पुरखे मृत्योपरांत

बसते थे पाताललोक में


अब समूचा इराक पातालघर


वहां भी बनेंगे भारत , पाक

और

बांग्लादेश


वे कह रहे हैं सबको अपना

अलग देश चाहिए

शियाओं को, सुन्नियों को

और कुर्दों को भी


मुक्त कर दिया है करबला

जमकर मुहर्रम मनाइये


अब कहां बसेंगे पुरखे?


प्रेतात्माएं बाज की शक्ल में थीं कभी

अब तो बमवर्षक हैं या फिर मिसाइलें

या रंग बिरंगे युद्धपोत


मेसापोटामिया विस्मृत हुआ

अजायब घर का क्या कीजिये


गली कूचे में वे ही तैनात

आजादी से तनिक सांस लीजिये


पांच


बाजार की दीक्षा अभी  हुई नहीं पूरी

कल कारखाने भी नहीं हुए बंद


तमाम लोग कहां हुए हैं बेरोजगार


शौचालय तक में पहुंच गया इंटरनेट

हर हाथ में मोबाइल फोन


रोटी कपड़ा मकान की

क्यों फिक्र कीजिये


तनिक विनिवेश तो होने दीजिये


अखबारों की सुर्खियों पर

तनिक गौर कीजिये


फोटू हैं तमाम बेहद नंगी

चौदह जुलाई से खुली

आकाशगंगा का भी मजा लीजिये


चौबीसों घंटे नीली फिल्में

- वाह और क्या चाहिए


अब जाकर मिली है सही आजादी

कहो जय उनकी,जो कर दें मालामाल

जो बोले सो निहाल


छह


अखबारों,चैनलों का क्या कहिये

विदेशी पूंजी आने दीजिये


फ्रैन्चाइज मिल जाये बढ़िया से

बड़बोलों की छुट्टी कर देंगे


ठेके पर बहुत हाथ मिल जायेंगे


कंप्यूटर पर भले दिमाग और

दिल का क्या काम


बाजार से दोनों हाथ बटोरने दीजि्ये


पढ़कर क्या करोगे दोस्तों,

आंखों के लिए सबकुछ रंगीन है


कल था युद्ध विश्व व्यापी

आज भी युद्ध गृहयुद्ध विश्वव्यापी

युद्दक विश्व व्यवस्था विश्वव्यापी

खुला बाजार विश्वव्यापी


आत्मसमर्पण के सिवाय क्या कीजिये

या फिर गठबंदन साध लीजिये

देहमुक्ति की धर्मध्वजा फहरा दीजिये


याद कीजिये, सुंदरी मोनिका को

पामेला बोर्डेस को भूल गये क्या?


फिर थे सलमान रुश्दी


घोटाले और पर्दाफाश अनंत

रोज रोज के छापे और

नरसंहार

रंग बिरंगी हिंसा

व्याभिचार


मसाले क्या कम हैं?


सोचने का मौका कहां है, दोस्तों

जिनका भोंपू वहीं बजाये

साड्ढे नाल ऐश करोगे ,दोस्तों


सात


पातालघर के किस कोने में हैं सद्दाम हुसैन

कोई नहीं जानता

कोई नहीं जानता

किस घोड़े पर,किस तरफ चल दिये लादेन

कोई नहीं जानता


फिर भी जारी होते  वीडियो टेप रोज

और अखबारी बयान तमाम

जिहाद जारी है अनंतकाल से


न जाने किस यकृत प्राख्यापन से

भविष्यकथन से निर्धेशित होगा

अनंत गृहयुद्ध भी


हां, हमारे यहां भी


भविष्यवाणियां तमाम बेस्टसेलर

आइये, हम डरना सीखें

आइये, हम थरथराना सीखें


विरोध की बात भूल जाइये

प्रतिरोध की बात हरगिज मत कीजिये


बहरहाल, सामंतवाद फासीवाद को निशाना बनाइये

यात्राएं,रैलियां कीजिये


वे घरेलू हैं और पालतू भी


भूलकर भी साम्राज्यवाद का

नाम न लीजिये


उसे अब कौन रोकेगा

है कोई माई का लाल


तमाम कवि,साहित्यकार,संस्कृतिकर्मी

खामोश,सिर्फ बोलते हैं मीडियावाले


इस देश में अब सिर्फ मीडियावाले बोलते हैं

बोलते हैं उन्हीं की जुबान

उनके हाथ बहुत लंबे हैं


आठ


ठंडा का मतलब कोला

जेल हैं जहां, वहीं हल्ला बोला

कोला में है इराकी बच्चों का खून


तो कंप्यूटर और तकनीक में है

कामगारों के जिगर के टुकड़े


किस किस को रोइये, साहब


देखिये, मौसम कितना खराब है

सूखे की मार है

नदियां भी बिक गयीं

अनबंधी किसी नदी का नाम बताइये


प्राकृतिक आपदा की पड़ी है आपको

जो आया है, जायेगा

जिंदा है, तो मरेगा भी

उसका क्या मातम मनाइये


विकास दर कितनी तेज है

उसको भी देख लीजिये

शेयरों  की उछाल से

तबीयत हरी कर लीजिये


भूखों के देश में भुखमरी का

क्या कीजिये,प्रकृति को

जनसंख्या नियंत्रण करने दीजिये



तालाब,झीलों और नदियों पर भी

सीमेंट का जंगल नहीं देखते

फिर अरण्य का क्या कीजिये

अरण्य से बेदखली पर

सब्र से काम लीजिये


बड़ी बड़ी इमारतें,फ्लाई ओवर,

स्वर्णिम राजमार्ग, सेज, परमामु संयंत्र

देखकर उदित भारत मनाइये

भारत निर्माण की राह में बाधा

मत बन जाइये


नहीं देखते मेट्रो रेल

साइबार कैफे, आउटसोर्सिंग

सर्वव्यापी जींस प्रोमोटर राज

भूमि अधिग्रहण का विरोध क्यों कीजिये

पर्यावरण पर चीखकर क्या कीजिये


भूमंडलीकरण है और बारुदी सुरंगें बिछा दी है

उन्होंने हिमालय से लेकर समुंदर तलक में

सार संसाधन लूटकर ले जायेगें


आस्था से क्या होता है

आस्था चाहिए निवेशकों की

पूंजी का अबाध प्रवाह देखते जाइये


फिर यह अनंत फैशन परेड

दिक्दिगंतव्यापी बाजार में खपे हुए

खेत, खलिहान ,घाटी और झीलों को क्या रोइये


बंद बूंद को तरस रही जनता तो

मिनरल वाटर पीजिये


सैकड़ों करोड़ के मालिक बने जो

उनकी कमाई का राज कभी खुला है?


तो फिर किसका बायकाट!


सुपरलोटो और फारच्यून किसलिए

किसलिए यह पोंजी अर्थ व्यवस्था


किसलिए बंटते हैं मुफ्त कूपन, उपहार और

विदेश यात्राओं के टिकट,भाई?


किस्मत पर भरोसा कीजिये

फेंगशुई मुताबिक घर सजाइये

गुडलाक साड़ी पहन लीजिये


पर खुदा का वास्ता, मंदिर वहां बनायेंगे

सिर्फ बाजार के खिलाफ कुछ न कहो

कुछ भी मत कहिये


नौ


अब इन्हें देख लीजिये,खेल खत्म हुआ तो

राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दीजिये

राष्ट्रीय शोक भी मना लीजिये


तमाशबीन लौट चले घर के लिए

लूटखसोटकर घर जिन्हें भरना था,भर लिया

अकूत संपत्ति है उनके पास

सीबीआई जांचकरा लीजिये


स्टिंग भी हो जाने दीजिये

और चाहे तो कैग रपट भी

मामला कुछ ज्यादा फंसा हो

बलि का बकरा खोज लीजिये

निंदा प्रस्ताव पास करा दीजिये

थोड़ा हंगामा,थोड़ा वाक आउट

थोड़ी सिविल सोसाइटी हो जाने दीजिये

फिर सबकुछ रफा दफा समझ लीजिये


सबकुछ सीधा प्रसारण है

सबकुछ लाइव है

और विपक्ष का दबाव है

गठबंधन की मजबूरी है

सरकार अल्पमत में है

आपरेशन सहमति से कर लीजिये


राजनयिक कहां कहां नहीं दौड़े

कहां कहां नहीं बेच दिया देश

कितनी फिक्सिंग, कितनी मिक्सिंग

और कितनी सेक्सिंग

कितनी योजनाएं और कितनी घोषणाएं


कहां कहां नहीं किये फोन

अहाऍ पूंजी निवेश रुक जाता तो


जो जहां सत्ता में हैं, अपनी अपनी सत्ता बचाइये

जो जोर से बोलें, सवाल करें, काबू में न आये

उन सबको माओवादी बना दीजिये

जो बेदखली के खिलाफ करें प्रतिवाद

वे भी घोषित उग्रवादी

अल्पसंख्यक और आसान है

आतंक के खिलाफ युद्ध जोरों पर है

थोड़ा मुठभेड़ कर लीजिये

सरकार गिर रही है, तो मंडी खुली है

घोड़े खरीद लीजिये


मोटे मोटे अखबारों को जारी

कीजिये बयान ,विज्ञापन दीजिये

विज्ञापनों को समाचार बना लीजिये


दावतें दीजिये, पर्दाफाश कीजिये

हमारा लोकतंत्र अमर है

त्रिशुल औरर लाठी का खेल है

जन्मभूमि है या फिर स्वाभिमान

आरक्षण है या आरक्षण विरोध


विचारधारा थी ही कहां

जो सीढ़ी ती,उस पर चढ़ गये सभी

जो पिछड़ गये गधेराम वे ही तो

तालिंयां बजाने को बच गये.


अब मौसम बेहद सांस्कृतिक है

बहुराष्ट्रीय कंपनियां अनेक हैं

जो बिके नहीं हैं अभीतक

उन्हें भी लखटकिया पुरस्कार

बांट दीजिये


दस


किन पुरोहितों ने बतायी है उनकी वंशावली

किनने खोला डीएनए भेद,मूर्ख हैं वे

जो पढ़ते नहीं अकादमिक विरुदावली

किस देवगण में कौन देवता, कौन है देवी

तनिक इसकी तमिज भी साध लीजिये


सुंदरियों की नंगी टांगों पर पढ़ लें इबारत

किसको कैसे ठंडा करना है,भाई से पूछ लीजिये


सुमरियाव्यापी देवमंडल में बसे हैं तमाम जनरल


उन्हें नोबेल पुरस्कार जरुर मिलना चाहिए

लगे हाथ, अपनों के भी नाम सुझाइये


उनके इराक और अफगानिस्तान हैं तो क्या

हमारे भी है गुजरात, पूर्वोत्तर, दंडकारण्य,

कश्मीर और पूरा का पूरा हिमालय

कश्मीर पर तो उनकी लार टपकनी ही है


ठंडा का मतलब कोला मनुष्य का भाग्य गोला

उसमें अब वियाग्रा, जापानी तेल भी घोला


रोजगार नहीं तो एड्स और

एनजीओ का दफ्तर खोला


उनके हितों की रक्षा कीजिये

और पर्यावरण की दुहाई दीजिये


पहले बम बरसाइये

फिर राहत बांट लीजिये


क्या रक्का है इस जालिम दुनिया में

दुनियावाले प्यार के दुश्मन ते

अब खुल्लम खुल्ला प्यार नहीं, सेक्स करेंगे

दुनियावालों को तबाह कर देंगे


सर चुपाने को जगह नहीं

फिक्र क्यों कीजिये

चंद्र और मंगल अभियान हैं तो

चांद और मंगल पर घर बसायेंगे


खुला खुला बाजार है तो खुला खुला देश है

और खुली खुली है आकाशगंगा भी


( मूल कविता अक्षर पर्व के मई,2003 में प्रकाशित। मामूली तौर पर संशोधित।)