निराधार आधार संकट,भविष्य निधि
भी हो गयी बाजार के हवाले
पलाश विश्वास
पूरा देश अब मोंटेक सिंह आहलूवालिया के पैंतीस लाख टकिया शौचालय जैसा खुला बाजार है। भविष्य निधि में मालिक के अवदान से आप कुछ निकाल नहीं सकते। अपने हिस्से से महज साठ फीसद उठा सकते हैं। बाकी रकम बाजार के हवाले है। जीवन बीमा निगम के करीब नौ करोड़ ग्राहकों को शेयर बाजार के खेल में पहले ही चूना लग चुका है। विनिवेश में आपके प्रीमियम को लगाया जा रहा है। अपको जो घाटा होगा , उसकी तो भरपायी नहीं हो सकती। जीवन बीमा सरकारी दबाव में शेयर बाजार में निवेश करके डूबने के कगार पर है।
अब बैंकों में जमा पूंजी, भविष्यनिधि और पेंशन तक बाजार के हवाले होने के बाद बाकी क्या बचा है, सोचते रहिये। बाकी है जीटीसी और टीटीसी। कंपनी कानून बदल गया। संपत्ति कानून भी बदल रहा है। भूमि सुधार नहीं,भूमि अधिग्रहण के बंदोबस्त के लिए भूमि अधिग्रहण कानून बदला। खनिज पर जमीन मालिक के अधिकार,पांचवी और छठी अनुसूचियों के खुल्ला उल्लंघन के लिए वानाधिकार कानून और खनन कानून भी बदल गये। गरीबी की परिभाषा बदलकर मिली खाद्य सुरक्षा। सूचनाओं से बेदखल करके मिला सूचनाओं का अधिकार। बेदखली के बाद सड़क पर खड़ा होने की इजाजत तक न मिलेगी।
16 सालों में देश भर में पौने तीन लाख कृषकों ने आत्महत्या कर ली है। उन्होंने कहा कि बड़े देशों की बात मानकर हमारी केन्द्रीय सरकार नई उदारीकरण की नीति चला रही है और वैश्वीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी है। आज नए बिल के कारण पेंशन और भविष्य निधि का पैसा अनिश्चित हो गया है। सरकार इस जनता के धन को बाजारों में लगाने का उपक्रम कर रही है। यह डकैती नहीं तो क्या है?
कब तक सोते रहोगे दोस्तो?
कब तक इस तिलिस्म में ?
फंसे रहोगे दोस्तों ?
कब तक भटकते रहोगे
भूलभूलैय्या में?
कब तक गुमराह करनेवाले
बाबाओं और राजनेताओं के अंधभक्त
बनकर अपना ही सिर चढ़ाते रहोगे दोस्तों?
सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है भइया
जाग सको तो जाग जाओ भइया
आगे आओ, हाथ बढ़ाओ
हम तुम्हारे इंतजार में हैं भइया
निराधार आधार संकट,भविष्य निधि
भी हो गयी बाजार के हवाले
दावा निपटान के आंकड़ों पर मत जाइये
आन लाइन पीएफ है,भाइया मत इतराइये
जैसा कि बीमा,भविष्यनिधि और पेंशन
पर गिद्ध दृष्टि थी संस्थागत निवेशकों की
वैसे ही व्यवस्था बनी है अब
बीमा का प्रीमियम भी अब
वापस नहीं मिलता,लोग इंतजार करते बेसब्र
कब उछले बाजार और झट निकाल लें पैसा
तड़ातड़ मोबाइल पर रिंगटोन निरंतर
जी का जंजाल हुआ एजंटों का भी
लेकिन चेक हाथ लगे, तो प्रीमियम
भी अब वापस नहीं होता
बीमा के बाद पेंशन और भविष्य निधि में भी
हो गया प्रत्यक्ष विनिवेश
रुपया गिरते जाने की पृष्ठभूमि में
गजब का बंदोबस्त है
ऐसा घनघोर अर्थसंकट का मेघ गहराया
सारे सुधार लागू हो गये फटाफट
रिजर्व बैंक के गवर्नर बदलते ही
बाजार हो गया फिर सांड़ों के हवाले
मालामाल हुआ रिलायंस और
मालामाल हो गया कारपोरेट
शेयरों के चक्कर में हम होते रहे दिवालिये
विदेशों में उनका ऐसेट भी
हो गया बेशकीमती अब
ऐसी जादू की छढ़ी घूमायी
नये आरबीआई गवर्नर ने
कि बैंकों को कर्ज हुआ बेलगाम
बाजार को मिल गयी खुली लूट की छूट
उदारीकरण हो गया ऐसा फिर
संस्थागत विदेशी निवेशक
लौट आये और दुर्गोत्सव में दीदी
के अतिथि होंगे वे लोग भी
गणपति बप्पा हो गया बम बम
केदार नाथ में शुरु हुई पूजा
मरने वालों को रोये कौन
बलि चढ़ाने पर मातम कैसा
गोधरा भी दोहरा दिया
और पूरा देश अब नमो नमो
संसद की संप्रभुता से बड़ा कोई झूठ
अब कोई नहीं, नीति निर्धारण
करते कारपोरेट, कारपोरेट ही
बना देते बदले देते कानून तमाम
कारपोरेट ही चलाती राजनीति
संसद में सरकार चीख चीख कर
कहती रही बार बार आधार अनिवार्य नहीं
लेकिन दर हकीकत आधार से
अब चतुर्दिक अंधियारा है
जनसंख्या रजिस्टर का क्या हुआ
कोई नहीं जाने हैं, जारी हो गये
तमाम रंग बिरंगे आंकड़े
हम को खड़ा कर दिया बलिबेदी पर
पहले उंगलियों की छाप दे दो अपनी
फिर तस्वीर खिंचा लो पुतलियों की भी
जनगणनावाले कहीं नहीं है
हाकर घूम रहे हैं कारपोरेट हर गली
गली गली शोर है आधार ले लो
अधिसूचना है अखबारों में
निराधार लोगों की नागरिक
सेवाएं हो जायेंगी निलंबित
नागरिक संप्रभुता और निजता के
अधिकार, मौलिक और मानव अधिकार के
घनघोर उल्लंघन पर देश मौन है
देश मौन है जल जंगल जमीन आजीविका
और नागरिकता के खिलाफ जारी
अश्वमेध अभियान के बारे में
देश मौन है निनानब्वे फीसद भारतीय
कृष जीवी जनगण के विरुद्ध
युद्धघोषणा के बारे में भी
नरसंहार संस्कृति के खिलाफ
कोई मोमबत्ती जुलूस नहीं है
बलात्कारियों को फांसी की सजा
अब जनता की मांग है
देश को सेक्स बाजार बनाने के विरुद्ध
औरतों को माल बनाने के खिलाफ
लेकिन कोई मोमबत्ती जुलुस नहीं हैं
उन्हें लाशें हमेशा कम पड़ रही हैं
ऐसे जघन्य नरभक्षी हैं वे
रक्तनदियों में निरंतर बहते
खून का सैलाब उनकी प्यास बुझाने
को काफी नहीं है इन दिनों
और खुले बाजार की ही
यह महिमा है कि हम अराजक अनंत
अभूतपूर्व आत्मघाती हिंसा के दौर में हैं
अस्मिताएं हैं हमें बांटने के लिए
सबसे बीभत्स मूलभूत मौलिक
आर्थिक संरचना है जाति व्यवस्था
मनुस्मृति भी अर्थशास्त्र है
जो उत्तर आधुनिक कारपोरेट
बिल्डर प्रोमोटर दलाल राज है
जिसके तहत हजारों जातियों में
बंटे हैं उत्पादक लोग तमाम
कृषिजीवी जनपद तमाम
वर्ण से बाहर हैं शूद्र अतिशूद्र
उत्पादक भी वे और कृषक भी वे
धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की पैदल सेनाओं
में भी शामिल वही निनानब्वे फीसद
अर्थव्यवस्था से बाहर हैं वे तमाम लोग
नरसंहार में मारे जाने वाले हैं वे लोग तमाम
आपदाओं के शिकार भी वे ही लोग
खुले बाजार में क्रयशक्ति से वंचित भी वे
आजीविका और जल,जंगल जमीन से बेदखल भी वे
हाथ उनके कट गये,लेकिन उथलते बहुत वे ही
सबसे जोर बुलंद नारे लगाते वे ही
फेसबुक सोशल नेटवर्क पर
नमो नमो कैंपेन चलाते वे लोग
भारत निर्माण औरर भारत उदय
शेयर करते मोबाइलों पर वे ही तो
रैलियों सभाओं में उन्हीं की भीड़
मतदान के लिए कतारबद्ध वे ही लोग
धर्मस्थलों पर भगदड़ में वे ही तो
पुण्यस्नान में वे ही भूल जाते
कि कैसे बिक गयी नदियां तमाम
कैसे बंध गयी नदियां तमाम
डूब अनंत में शामिल वे ही तो
ड्रिकलंग इकानोमी में
कृत्तिम नकदी प्रवाह
की सामाजिक योजनाओं के लिए
मरते खपते वे ही लोग
हरित क्रांति से बने श्मशानों के वे ही औघड़
उदित भारत में आत्महत्या करने वाले भी वे
निराधार वे ही आधार से वंचित
विदर्भ में भी वे ही लोग आत्महत्या करते
धारावी और सोनागाछी में भी घुट घुटकर मरते
हिमालय के कोने कोने में भी वे ही लोग
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के जद में भी वे
रंग बिरंगे अभियानों में, आपरेशनों में
विविध किस्म के सलवा जुड़ुम में
स्वजनों को मारने वाले भी वे ही लोग
धर्मोन्मादी वे ही आर्थिक राजनीतिक
इशारों में दंगों में शामिल
अपनों को मारते,लूटते वे ही लोग
अपनी हत्या से एकदम बेखबर
खुद लुट जाने की खबर से भी बेखबर
अपना सर कटाने को तैयार
विदेशी संस्तागत निवेशक
घनघोर अर्थसंकट मे रातोंरात
आखिर कैसे लौट आये हैं
क्यों लौट आये हैं और उनकी
वापसी की शर्तें क्या हैं
देश बेचने वाले लोग
किस किस को बेच रहे हैं
हम अनजान हैं, हम अनजान रहे हैं हमेशा
प्रिज्मिक निगरानी के करिश्मे से
फेसबुक, गुगल और याहू तक ने
कर दिया है आत्मसमर्पण
लेकिन नाटो की योजना के तहत
स्वेच्छा से हो रहे हैं हम बायोमेट्रिक
हम हो गये हैं डिजिटल,स्पेक्ट्रम
उपग्रहों से हो रही निगरानी
रोबोट और कंप्यूटर से
नियंत्रित हो रहे हैं विचार
नियंत्रित हो रहे हैं सपने
नियंत्रित हो रहा है जीवन
यही कार्निवाल का मजा है
कार्निवाल का कोई चेहरा तो
होता नहीं है भाई
बिनचेहरा हम मुखौटे हैं भाई
योजना यह हैः
लंबी अवधि से लंबित पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) अधिनियम पिछले सप्ताह संसद ने पारित कर दिया। यह वित्तीय क्षेत्र के विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। यह अधिनियम पेंशन योजनाओं तथा नई पेंशन योजना के नियमन का सांविधिक अधिकार प्रदान करता है। इसके तहत पेंशन फंड में 26 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति दी गई है। बीमा कंपनियों के लिए भी इसे ही मानक सीमा बनाया गया है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह विविध जोखिम प्रोफाइल वाली पेंशन योजनाओं के प्रावधानों को लागू करता है,जिसमें उपभोक्ता अब विभिन्न पोर्टफोलियो में से अपनी पसंद का चुन सकेंगे। ये सभी कारक पेंशन फंड द्वारा प्रबंधित फंडों के आकार में बढ़ोतरी की ओर इशारा करते हैं।
इसके अलावा इसके तहत ऐसी अनेक योजनाएं सामने आएंगी जो दो उद्देश्यों की पूर्ति करेंगी। पहली, वे बचतकर्ताओं को लंबी अवधि के दौरान बेहतर प्रतिफल देंगी ताकि सेवानिवृत्ति के बाद वे बेहतर जीवन जी सकें। दूसरा, वे बुनियादी ढांचा समेत लंबी अवधि की परिसंपत्तियों में निवेश का सशक्त माध्यम तैयार करेंगी। कुलमिलाकर देखा जाए तो जिन देशों में पेंशन फंड महत्त्वपूर्ण हैसियत रखते हैं वहां इन दोनों ही मानकों पर उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है।
तथापि देश के कार्यबल के ढांचे को देखते हुए (बमुश्किल 8 फीसदी संगठित क्षेत्र में जबकि शेष मौसमी कृषि कार्यों में) स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि आखिर कितने लोगों को इस पहल से लाभ मिलेगा? क्या योजनाओं का दायरा उस स्तर तक पहुंच सकेगा कि वे योजनाओं में विविधता लाएं और नए प्रयोग करें??ये वाजिब सवाल हैं लेकिन ऐसी चिंताओं के चलते इस पहलू पर हो रहे विकास को रुकने नहीं देना चाहिए भले ही शुरुआती परिणाम निराश करने वाले हों। इस दिशा में सुधार
संबंधी एक महत्त्वपूर्ण उपाय होगा समूचे मौजूदा भविष्य निधि को पेंशन कोष में बदलना। तमाम मौजूदा खाता धारकों को दोनों प्रबंधकों में से चुनाव करने का
अवसर देना चाहिए। सरकारी कर्मचारी इसके सबसे बड़े योगदानकर्ता हैं और उनको भविष्य निधि के उन तक सीमित निवेश का फायदा भी मिलता है, जाहिर है वे इसका विरोध कर सकते हैं। लेकिन इससे इस क्षेत्र के विकास पर कोई असर नहीं पडऩा चाहिए।
वहीं दूसरी ओर, यह सुनिश्चित करने का हर प्रयास किया जाना चाहिए कि ये फंड बेहतर माहौल में निवेश करें। खासतौर पर बुनियादी ढांचा क्षेत्र में जहां नियामकीय, नीतिगत और परिचालन संबंधी अनिश्चितताओं के चलते तमाम परियोजनाएं ठिठकी पड़ी हैं और वे शायद ही समझदार पेंशन फंड प्रबंधकों को उत्साहित करें। इन परियोजनाओं से जितना यकीन पैदा होगा, पेंशन फंड लंबी अवधि वाली इन परियोजनाओं की बिना पर उतना ही बेहतर प्रदर्शन करेंगे। देश की आबादी को ध्यान में रखा जाए तो ऐसी परिसंपत्तियों में निवेश की भारी संभावना है और उसका जितना अधिक संभव हो फायदा उठाया जाना चाहिए। आखिर में, पेंशन कोष तक लोग खुदबखुद नहीं पहुंचेंगे।
इसके लिए प्रभावी तरीके से बाजार तैयार करना होगा। यह काम टेलीविजन विज्ञापनों के बल पर नहीं होगा बल्कि युवा कर्मचारियों और कॉलेज जाने वाले विद्यार्थियों तक पहुंचने के लिए एक व्यवस्थित अभियान शुरू करना होगा।
याहू प्रमुख का डर, सूचना मुहैया न की तो जेल हो सकती है
याहू की मुख्य कार्यकारी मैरिसा मेयर को डर है कि यदि उन्होंने ने अपने याहू के नेटवर्क का इस्तेमाल करने वालों की सूचनाओं को अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए को मुहैया न कराया तो उन्हें देशद्रोह के आराप में जेल भेजा जा सकता है।
उन्होंने यह बात सैन फ्रांसिस्को में टेकक्रंच डिसरप्ट सम्मेलन के मंच पर हुए कल एक साक्षात्कार के दौरान एक सवाल के सवाल के जवाब में कही। उनसे पूछा गया था कि वह सरकारी निरंकुशता से याहू का उपयोग करने वालों की गोपनीयता की सुरक्षा के लिए क्या कर रही हैं।
मेयर ने कहा कि याहू अमेरिकी सरकार द्वारा विदेशी आसूचना निगरानी अदालत की स्वीकृति के साथ सूचना के लिए प्रस्तुत आवेदनों जांच करती है और आंकड़ों के लिए सरकार के आवेदनों का प्रतिवाद भी करती है। पर यदि इस लड़ाई में हार जाती है या फिर जब उसे देशद्रोही करार दिए जाने का जोखिम होता है तो उसे वही करना होता है जैसा कि उसे निर्देश दिया जाता है।
यह पूछने पर कि वह अमेरिकी जासूसी एजेंसी द्वारा याहू का उपयोग करने वालों के संबंध में मांगी गई जानकारी जाहिर क्यों नहीं करतीं, मेयर ने कहा कि यदि आप इस आवेदन पर अमल नहीं करते तो यह देशद्रोह है। उन्होंने कहा कि सरकार डाटा के लिए जो अनुरोध भेजती है वह अदालती सहमति के साथ आती है और उसके बारे में कंपनी के अधिकारियों को किसी से कुछ बताने की मनाही होती है।
उन्होंने कहा ''हम इसके बारे में बात नहीं कर सकते क्योंकि यह गोपनीय है। गोपनीय जानकारी पेश करना देशद्रोह है और आपको जेल होती है। अपने उपयोगकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिहाज से व्यवस्था के दायरे में काम करना ही बुद्धिमानी है।''
याहू, गुगल, फेसबुक और माइक्रोसाफ्ट उन इंटरनेट कंपनियों में शामिल हैं जो अपने उपयोगकर्ताओं को आतंकवाद और अन्य जोखिम से निपटने के नाम पर मांगी गई सूचना के विषय में और अधिक जानकारी मुहैया कराने की छूट चाह रही हैं।
फेसबुक के सह-संस्थापक और प्रमुख मार्क जुकरबर्ग ने इस सम्मेलन में कहा ''हमारी सरकार की जिम्मेदारी है कि व हमारी रक्षा करे एवं हमारी स्वतंत्रा की रक्षा करे और अर्थव्यवस्था व कंपनियों की रक्षा करे।'' जुकरबर्ग ने कहा ''मुझे लगता है कि सरकार ने ही यह बात फैसाई''
जांच अधिकारियों के गैर वर्गीकृत दस्तावेजों में खुलासा हुआ है कि राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी :एनएसए: तीन साल तक निजता के नियम का उल्लंघन कर ऐसे अमेरिकियों के फोन रिकार्ड को खंगाला जिनके बारे में आतंकवाद से जुड़े होने का कोई संदेह नहीं था।
इस खुलासे से एनएसए की भारी मात्रा में जुटाई गई जानकारी के संभालने की क्षमता पर सवाल खड़ा हो गया है। साथ ही संदेह जाहिर किया गया है कि क्या अमेरिकी सरकार अपने नागरिकों की निजता की रक्षा में सक्षम है।
सेबी का करिश्मा
देश के बाजारों में विदेशी निवेशकों के निवेश नियमों को सरल बनाने के मामले में पूंजी बाजार नियामक सेबी जल्द ही नये नियमों को अधिसूचित करेगा।
सरकार की तरफ से नियमन संबंधी जरूरी बदलावों को अंतिम रूप देने के बाद सेबी नियमों को अधिसूचित कर देगा। विदेशी निवेशकों के निवेश नियमों में व्यापक बदलाव किया जा रहा है।
नये नियमों के तहत जो कि अगले कुछ दिनों में घोषित किये जाने हैं, सेबी निवेशकों की एक नई श्रेणी बना रहा है। इस श्रेणी को विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) कहा जायेगा।
वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि विदेशी निवेशकों की नई श्रेणी के तहत जोखिम को देखते हुये उन्हें तीन वर्गों को बांटा जायेगा।
अधिकारियों के अनुसार अपने ग्राहक को जानो (केवाईसी) तथा अन्य नियामकीय अनुपालन आवश्यकताओं को भी उनकी जोखिम श्रेणी के अनुरूप ही तय किया जायेगा। जिन निवेशकों के मामले में जोखिम कम होगा उनके लिये नियम ज्यादा सरल होंगे।
ये प्रस्ताव पूर्व कैबिनेट सचिव के.एम. चंद्रशेखर समिति की सिफारिशों पर आधारित हैं। सेबी ने जून में हुई निदेशक मंडल की बैठक में इन्हें मंजूरी दे दी थी। इसके बाद नियामक ने इन सिफारिशों को क्रियान्वयन के लिये सरकार को भेज दिया था।
सेबी विदेशी निवेशकों की विभिन्न श्रेणियों को आपस में मिलाकर एक श्रेणी बना रहा है। विदेशी संस्थागत निवेशकों एफआईआई, उनके उप..खाताधारकों और पात्र विदेशी निवेशकों सभी को मिलकार एक नई श्रेणी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) बनाई गई है। इनके लिये नये समान और सरल प्रवेश नियमों को अंतिम रूप दिया गया है।
দ্রুত আধার কার্ড দেওয়ার উদ্যোগ
সুমন ঘরাই, এবিপি আনন্দ
Thursday, 12 September 2013 10:52
আগামী বছরের ২৮ ফেব্রুয়ারির মধ্যে আধার কার্ড তৈরির কাজ শেষ করতে চায় রাজ্য সরকার৷ ১ নভেম্বর থেকে দেশজুড়ে চালু হতে চলেছে রান্নার গ্যাসের ভর্তুকির টাকার সরাসরি হস্তান্তর প্রকল্প৷ যেখানে গ্রাহককে বাজার দরেই কিনতে হবে রান্নার গ্যাসের সিলিন্ডার৷ সিলিন্ডার পাওয়ার পর ভর্তুকির টাকা সরাসরি জমা পড়বে গ্রাহকদের আধার নম্বর যুক্ত ব্যাঙ্ক অ্যাকাউন্টে৷ ইতিমধ্যেই এই মর্মে সংবাদপত্রে বিজ্ঞাপনও দিয়েছে পেট্রোলিয়াম মন্ত্রক৷
এই পরিস্থিতিতে নড়েচড়ে বসল রাজ্য সরকার৷ বুধবার জরুরি বৈঠক হয় মহাকরণে৷ বৈঠকে উপস্থিত ছিলেন স্বরাষ্ট্রসচিব, বিভিন্ন জেলার প্রশাসনিক আধিকারিক, কলকাতা ও হাওড়া পুরসভা এবং ডাকঘরের প্রতিনিধিরা৷ স্বরাষ্ট্র দফতর সূত্রে খবর, বৈঠকে সিদ্ধান্ত হয়েছে, ২৮ ফেব্রুয়ারির মধ্যে বর্ধমান, দুই ২৪ পরগনা, মুর্শিদাবাদ, নদিয়া ও দার্জিলিং জেলার আধার কার্ড তৈরির কাজ শেষ করা হবে৷ ৩১ অক্টোবরের মধ্যে কাজ শেষ হবে হাওড়া, হুগলি, কলকাতা বাঁকুড়া, দক্ষিণ দিনাজপুর, মালদা জেলার৷ ৩১ ডিসেম্বরের মধ্যে কাজ শেষ হবে বীরভূম, দুই মেদিনীপুর, উত্তর দিনাজপুর, জলপাইগুড়ি ও পুরুলিয়ায়৷
স্বরাষ্ট্র দফতর সূত্রে খবর, জঙ্গলমহল ও পাহাড়বাসীদের আধার কার্ড তৈরিতে বাড়তি গুরুত্ব দেওয়ার নির্দেশ দিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী৷ কারণ, রাজ্যে প্রায় ৫০ শতাংশ আধার কার্ড তৈরি হলেও পশ্চিম মেদিনীপুরে এই কার্ড হয়েছে ২৪.৬ শতাংশ মানুষের, পূর্ব মেদিনীপুর ৪৭.২ শতাংশ মানুষের, বাঁকুড়ায় মাত্র ১৩.৯ শতাংশ, পুরুলিয়া ১৩.১ শতাংশ, দার্জিলিঙে ৩৫ ও জলপাইগুড়িতে হয়েছে মাত্র ২২.৩ শতাংশ৷ মহাকরণ সূত্রে খবর, এর পরেও যাঁদের আধার কার্ড তৈরি বাকি থেকে যাবে তাঁদের জন্য জেলায় জেলায় স্থায়ী কেন্দ্র করা হবে৷
http://www.abpananda.newsbullet.in/state/34/41024
পারফরম্যান্স খারাপ, দ্বিতীয় দফায় আধার কার্ড তৈরিতে কোমর বাঁধল রাজ্য
আধার কার্ড তৈরির পারফরম্যান্সে পিছিয়ে রাজ্য। তাই দ্বিতীয় দফায় কোমর বেঁধে নেমে পড়ল রাজ্য সরকার। আজ মহাকরণে আধার কার্ড নিয়ে বৈঠকে বসেন স্বরাষ্ট্রসচিব বাসুদেব বন্দ্যোপাধ্যায়। বিভিন্ন জেলার জন্য নির্দিষ্ট সময় সীমা বেঁধে দিয়ে স্বরাষ্ট্রসচিব বলেন, আঠাশে ফেব্রুয়ারির মধ্যে রাজ্যের সব জেলাকে আধার কার্ড তৈরির কাজ শেষ করতে হবে। শেষ হয়েছে প্রথম দফার আধার কার্ড তৈরির কাজ। কিন্তু আধার কার্ড তৈরিতে পিছিয়ে রয়েছে এ রাজ্য। ৫০% বেশি কাজ শেষ করতে পেরেছে মাত্র ছটি জেলা।
প্রথম দফায় হুগলিতে কাজ হয়েছে ৭৯.১%। বাঁকুড়ায় কাজ হয়েছে ৮৩.৯%। কলকাতায় কাজ হয়েছে ৬৬.৩%। কোচবিহারে৭৭% কাজ হয়েছে দক্ষিণ দিনাজপুরে কাজ হয়ে ৮৩.৩%। মুর্শিদাবাদে ৫৬.১% কাজ হয়েছে।
বাকি ১৩টি জেলায় কাজ হয়েছে ৫০%ও কম। সবথেকে খারাপ অবস্থা উত্তর দিনাজপুর জেলার।
শুরু হচ্ছে দ্বিতীয় দফায় আধার কার্ড তৈরির কাজ। এবার ভাল পারফরম্যান্সে তত্পর রাজ্য। বুধবার মহাকরণে বৈঠকে বসেন স্বরাষ্ট্রসচিব বাসুদেব বন্দ্যোপাধ্যায়। স্বরাষ্ট্রসচিবের নির্দেশ ৩১ অক্টোবরের মধ্যে হাওড়া, হুগলি, কলকাতা, বাঁকুড়া, দক্ষিণ দিনাজপুর এবং মালদায় কাজ শেষ করতে হবে।
৩১ ডিসেম্বরের মধ্যে বীরভূম, দুই মেদিনীপুর, উত্তর দিনাজপুর, জলপাইগুড়ি, পুরুলিয়ার কাজ শেষ করতে হবে। আঠাশে ফেব্রুয়ারির মধ্যে বর্ধমান, দুই ২৪ পরগনা, মুর্শিদাবাদ, নদিয়া, দার্জিলিংয়ের কাজ শেষ করতে হবে।
মাওবাদী অধ্যূষিত এলাকা, দার্জিলিং, শিলিগুড়ি, জলপাইগুড়ির আধার কার্ড তৈরিতে বিশেষ জোর দেওয়ার নির্দেশ দিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী। দ্বিতীয় দফাতেও যদি কেউ আধার কার্ড তৈরি করতে না পারেন সেক্ষেত্রে তৈরি হবে স্থায়ী কেন্দ্র। যেখান থেকে পরবর্তী সময়ে আধার কার্ড বানানো যাবে।
http://zeenews.india.com/bengali/zila/adhar-card_15968.html
No comments:
Post a Comment