Wednesday, September 25, 2013

केंद्र ने दी 7वें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी और खेल यह है कि गैरकानूनी असंवैधानिक निराधार कारपोरेट आधार योजना को अब वैधानिक बनायेगी कारपोरेट सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में जैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला खारिज करके दागियों को संसद में लाने के लिए उनके हक में जारी कर दिये अध्यादेश रिटायरमेंट की उम्र 60 से बढ़कर 62 होगी! আধারকে মান্যতা দিতে বিল শীত অধিবেশনে 2.5 करोड़ परिवारों को मुफ्त में मोबाइल फोन! SC's interim ruling may boost UPA's welfare plans minus Aadhaar Nandan Nilekani 3.0: From entrepreneur to 'plumber' for govt, and now, to a change initiator

केंद्र ने दी 7वें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी और खेल यह है कि


गैरकानूनी असंवैधानिक निराधार

कारपोरेट आधार योजना को अब

वैधानिक बनायेगी कारपोरेट सरकार

संसद के शीतकालीन सत्र में जैसे

सुप्रीम कोर्ट का फैसला खारिज करके

दागियों को संसद में लाने के लिए

उनके हक में जारी कर दिये अध्यादेश

रिटायरमेंट की उम्र 60 से बढ़कर 62 होगी!


আধারকে মান্যতা দিতে বিল শীত অধিবেশনে

2.5 करोड़ परिवारों को मुफ्त में मोबाइल फोन!


SC's interim ruling may boost UPA's welfare plans minus Aadhaar


Nandan Nilekani 3.0: From entrepreneur to 'plumber' for govt, and now, to a change initiator




पलाश विश्वास


केंद्र ने दी 7वें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी

और संयोग ऐसा कि ताबड़तोड़

यह फैसला इसीलिए कि आखिर


गैरकानूनी असंवैधानिक निराधार

कारपोरेट आधार योजना को अब

वैधानिक बनायेगी कारपोरेट सरकार

संसद के शीतकालीन सत्र में जैसे

सुप्रीम कोर्ट का फैसला खारिज करके

दागियों को संसद में लाने के लिए

उनके हक में जारी कर दिये अध्यादेश

2.5 करोड़ परिवारों को मुफ्त में मोबाइल फोन!



नई दिल्ली। चुनाव नजदीक आते-आते केंद्र सरकार ने एक और मास्टर स्ट्रोक जमा दिया है। सरकार ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों को तोहफा देते हुए सातवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। आयोग की सिफारिशों को एक जनवरी 2016 से क्रियान्वित किए जाने की संभावना है।

वित्तमंत्री पी चिदंबरम की तरफ से आज जारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सांतवे वेतन आयोग के गठन को स्वीकृति दे दी है। इसका फायदा देश भर के करीब 50 लाख से ज्यादा केंद्रीय कमर्चारियों और 35 लाख से ज्यादा पेंशनरों को होगा।

वेतन आयोग को अपनी सिफारिशें देने में औसतन दो साल का समय लगता है। इसे देखते हुए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के एक जनवरी 2016 से क्रियान्वित किए जाने की संभावना है। बयान में कहा गया है कि सभी पक्षों से विचार विमर्श कर सांतवे वेतन आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की घोषणा जल्दी कर दी जाएगी।

पाकिस्तान के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में मंगलवार को आए तेज भूकंप से भारत की राजधानी दिल्ली, एनसीआर, नोएडा समेत उत्तर भारत के भी कई इलाकों में झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता ७.७ मापी गई है। पाक चैनल जियो न्यूज के अनुसार भूंकप से ८० लोगों की मौत हो गई तथा सैकड़ों मकान क्षतिग्रस्त हो गए। मलबे में अनेक लोगों के दबे होने की आशंका है। हालांकि भारत में जानमाल के नुकसान की खबर नहीं है।


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। और इसके बाद केंद्रीय कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 हो सकती है।


माना जा रहा है कि सातवें वेतन आयोग के गठन से सरकारी खजाने पर 1 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। साथ ही सातवां वेतन आयोग जनवरी 2016 से लागू हो सकता है।


इक्रा की सीनियर इकोनॉमिस्ट अदिति नायर का कहना है कि 7वें वेयतन आयोग की सिफारिशें 2 साल बाद लागू होंगी जिससे इसका असर तुरंत वित्तीय घाटे पर नहीं होगा। पिछली बार 6ठें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू धीरे धीरे की गई और इसका असर एक साथ सरकारी खजाने पर नहीं डाला गया क्योंकि ये संभव नहीं था।


इस साल सरकार ने 7वें वेतन आयोग को लागू करने के लिए 2 साल पहले ही तैयारी शुरु कर दी है जिससे इसका काम समय पर चालू हो पाएगा और सरकारी कर्मचारियों को इसका फायदा मिल पाएगा।


আধারকে মান্যতা দিতে বিল শীত অধিবেশনে

নয়াদিল্লি: সরকারি সুবিধা পেতে আধার কার্ড আবশ্যিক নয় বলে সোমবারই জানিয়ে দিয়েছে সুপ্রিম কোর্ট৷ মঙ্গলবার সরকার জানিয়ে দিল, আধার কার্ডকে মান্যতা দিতে শীতকালীন অধিবেশনেই বিল আসছে৷ আরও এক ধাপ এগিয়ে পেট্রোলিয়াম মন্ত্রী বীরাপ্পা মইলি জানান, পরিকল্পনা মতো রান্নার গ্যাসে ভর্তুকি দেওয়া হবে আধারের মাধ্যমেই৷ মইলি এও জানান, 'আধার নিয়ে রায় সংশোধনের জন্য সরকার সুপ্রিম কোর্টে যাবে৷ এ ব্যাপারে সলিসিটর জেনারেল মোহন পরাশরণের সঙ্গে ইতিমধ্যেই আমি কথা বলেছি৷'

রান্নার গ্যাসের ভর্তুকি সরাসরি গ্রাহকের ব্যাঙ্ক অ্যাকাউন্টে পাঠাতে গ্রাহকের আধার নম্বর তাঁর ব্যাঙ্ক অ্যাকাউন্ট এবং গ্যাসের গ্রাহক নম্বরের সঙ্গে যোগ করার নির্দেশ দিয়েছে কেন্দ্রীয় সরকার৷ নভেম্বর থেকে কলকাতা, হাওড়া এবং হুগলী জেলায় এই ডিরেক্ট বেনেফিট ট্রান্সফার চালু হওয়ার কথা৷

কিন্তু সোমবারই দেশের সর্বোচ্চ আদালত এক অন্তবর্তী রায়ে বলেছে, শুধুমাত্র ভারতের নাগরিকদেরই আধার দেওয়া যেতে পারে এবং সরকারি ভর্তুকি প্রকল্পগুলির জন্য এই কার্ডকে আবশ্যিক করা যাবে না৷ পরিকল্পনা মন্ত্রী রাজীব শুক্লা বলেন, 'আধার কোনও ব্যক্তির নাগরিকত্বের প্রমাণ নয়, শুধু পরিচয়পত্র মাত্র৷ এটা ঠিকানার প্রমাণও বটে৷ আরও একটা বিষয় হল, এটা আবশ্যিক নয়, স্বেচ্ছানির্ভর৷' তিনি বলেন, 'আসন্ন শীতকালীন অধিবেশনেই আমরা ন্যাশনাল আইডেন্টিফিকেশন অথরিটি অফ ইন্ডিয়া বিল ২০১০ সংসদে আলোচনা পাশের জন্য পেশ করতে চলেছি৷' প্রশাসনিক ক্ষমতা প্রয়োগ করে ১২ সংখ্যার আধার কার্ডকে সরকার মান্যতা দিলেও এখনও তাতে সংসদের মোহর পড়েনি৷ সরকার চাইছে বিল পাশ করিয়ে এটিতে আইনি মোহর দিতে৷

২০১০ সালের সেপ্টেম্বরেই এই বিল অনুমোদন করে কেন্দ্রীয় মন্ত্রিসভা, ডিসেম্বরে রাজ্যসভায় পেশ করা হয়৷ প্রাক্তন অর্থমন্ত্রী ও বিজেপির যশবন্ত সিনহার নেতৃত্বাধীন সংসদের অর্থ বিষয়ক স্থায়ী কমিটিতেও পাঠানো হয়৷ শুক্লা বলেন, 'বিলে কয়েকটি বদল করেছে স্থায়ী কমিটি৷ এখন এটি যোজনা কমিশনে৷ খুব শীঘ্রই এটি মন্ত্রিসভায় ঘুরে আসবে৷ চেষ্টা করা হবে যাতে শীতকালীন অধিবেশনেই তা পাশ করানো যায়৷'


कल ही हमने लिखा था

चेता दिया था आपको

सुप्रीम कोर्ट दरअसल

सुप्रीम नहीं है, सुप्रीम है

कारपोरेट बिल्डर माफिया

दलाल बाहुबलि राज


लिखा था नियमागिरि

के फैसले के बारे में

खोला था तिलिस्म

अर्थ संकट छलावे का


बताया था आपको

डीएमआईसी और अमृतसर

कोलकाता शैतानी

महासत्यानाश गलियारे के

बारे में भी सिलसिलेवार


ऊर्जा देश के बारे में

जानकारी भी देते रहे हैं हम

सुनामी और परमाणु बमों के

बारे में भी बताया था


आप सोते रहोगे तो

खनिज उसीका

जमीन जिसकी

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

किस का भला


वनाधिकार कानून

पांचवी छठीं अनुसूचियां

नागरिकों के मौलिक अधिकार

संवैधानिक रक्षाकवच

पर्यावरण कानून, पेसा

सब कुछ बेकार है


आधार कार्ड की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से उठाए गए सवालों के बाद केंद्र सरकार सकते में है। अब आनन-फानन आधार को कानूनी जामा पहनाने की भी तैयारी है। इसके लिए सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक ला सकती है। दूसरी तरफ, आदेश पर पुनर्विचार के लिए सरकार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर विचार कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर कई गंभीर सवाल उठाए थे।

जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं सरकार लोगों को रिझाने के लिए नई-नई स्कीम लॉन्च करने में लग गई है। मुफ्त मोबाइल देने की स्कीम पर सरकार ने ड्राफ्ट कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है। इस स्कीम के तहत देश में 2.5 करोड़ गरीब परिवारों को फोन मिलेंगे। साथ ही नोकिया, सैमसंग जैसी मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियों के लिए एक बहुत बड़ा बाजार भी खुल गया है।


माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक मोबाइल बांट दिए जाएंगे। इस स्कीम पर सरकार 4,850 करोड़ रुपये खर्च करेगी और ये खर्च यूएसओ फंड से किया जाएगा। साथ ही जल्द बीएसएनएल मोबाइल फोन के लिए टेंडर जारी करेगा।


सरकार की मोबाइल फोन में 2 साल का कनेक्शन देने के साथ 300 रुपये का टॉकटाइम भी देने की योजना है। सरकार की तरफ से 2 साल तक हर महीने 30 रुपये का रिचार्ज किया जाएगा। 30 रुपये के रिचार्ज में 30 मिनट का मुफ्त टॉक टाइम और 30 मुफ्त एसएमएस की सुविधा देने की योजना है।


हर हाथ में मोबाइल योजना के तहत सरकार की ओर से पहले साल 25 लाख, जबकि दूसरे साल में 50 लाख मोबाइल फोन दिए जाएंगे। तीसरे साल में 75 लाख और चौथे साल में 1 करोड़ मोबाइल फोन बांटे जाएंगे।


                 सर्वदलीय सहमति से

संसद का हो रहा है कारपोरेट

दुरुपयोग प्रलयंकर


कानून का राज कहीं नहीं है

न कहीं लागू है संविधान


जब चाहे तब हालात

प्रतिकूल होते ही

अनुकूल कानून तैयार

वरना अध्यादेश जारी


सरकारी आदेश जीओ को

तो अदालत में भी चुनौती

नहीं दे सकते भइया


गनीमत है कि पूरा दशक

बीत जाने के बाद

सरकार ने आखिर

मान लिया निराधार है

आधार असंवैधानिक भी



तो कैसे गैरकानूनी ढंग से

कारपोरेट बंदोबस्त में

असंवैधानिक तरीके से

कॉरपोरेट इंडिया की हालत खस्ता, डिफॉल्ट बढ़े


क्या कॉरपोरेट इंडिया की हालत खस्ता है? ये सवाल उठाए हैं देश की जानी मानी रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स ने। इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक कॉरपोरेट्स के पेमेंट डिफॉल्ट 10 साल की ऊंचाई पर पहुंच गए हैं। और अच्छे मॉनसून के बावजूदद इस साल आगे भी हालात अच्छे नहीं दिख रहे हैं। क्या है वजह और हालात सुधरने की उम्मीद कब तक है, इस मुद्दे पर इंडिया रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट देवेंद्र कुमार पंत ने अपनी राय दी है।


डी के पंत का कहना है कि वित्त वर्ष 2011-2012 में कॉर्पोरेट्स का डिफॉल्ट रेट 3.5 फीसदी था जो 2012-2013 में बढ़कर 4.5 फीसदी हो गया है। इसके अलावा डाउनग्रेड अनुपात घटने के बावजूद डिफॉल्ट रेट बढ़ गया है। इस समय लिक्विडिटी की स्थिति काफी कड़ी है और सिस्टम में मांग कम हो रही है। वैश्विक इकोनॉमी में सुधार के चलते जुलाई-अगस्त में एक्सपोर्ट में थोड़ा सुधार देखा जा रहा है। इससे हालात कुछ सुधर रहे हैं।


पिछले 2 महीनों में टेक्सटाइल सेक्टर में रिकवरी हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार से घरेलू इकोनॉमी को भी सहारा मिलेगा। आगे चलकर बेहतर मांग रहने का अनुमान है।


डी के पंत के मुताबिक रेपो रेट और आरबीआई के उपायों के बावजूद कॉर्पोरेट डिफॉल्ट में बढ़त देखी जा रही है। कर्ज के बोझ, ऊंची ब्याज दरों और कमजोर मांग से क्रेडिट क्वालिटी पर बुरा असर पड़ रहा है। आरबीआई के एमएसएफ में कमी और रेपो रेट में बढ़ोतरी करने से बैंकों के ऊपर कुछ ज्यादा असर नहीं हुआ है।


अगर लिक्विडिटी में आगे भी कमी रही साथ ही मांग कमजोर रही तो और कॉर्पोरेट डिफॉल्ट देखने को मिल सकते हैं। इसके चलते वित्त वर्ष 2014 में आर्थिक माहौल और चुनौतीपूर्ण रहने वाला है।


कुछ राज्यों में कम बारिश के कारण इस साल खरीफ सीजन में देश का कुल चावल उत्पादन थोड़ा सा घटकर 9.23 करोड़ टन रहने का अनुमान है। हालांकि, इसी पीरियड में कुल अनाज उत्पादन मामूली तौर पर बढ़कर 12.93 करोड़ टन रहने की उम्मीद है। एग्रीकल्चर मिनिस्टर शरद पवार ने बताया कि क्रॉप ईयर 2012-13 (जून-जुलाई) के दौरान अनाज का रेकॉर्ड उत्पादन होने की उम्मीद है। उनके मुताबिक, इस साल एग्रीकल्चर ग्रोथ में फिर से मजबूती देखने को मिलेगी। खरीफ सीजन में अनाज उत्पादन से जुड़ा पहला अनुमान जारी करते हुए पवार ने कहा, 'चावल उत्पादन मामूली गिरावट के साथ 9.23 करोड़ टन रहने का अनुमान है।


दागी सांसदों पर अध्यादेश को लेकर कोहराम


नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी दागी सासंदों पर अध्यादेश पास किए जाने का विरोध किया है। ये अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को नकारता है, जिसमें सांसदों व विधायकों के किसी आपराधिक मामले में दोषी होने पर उन्हें अयोग्य ठहराए जाने की बात कही गई थी। संसद के मानसून सत्र में इस बाबत विधेयक पारित नहीं हो सका था इसलिए केंद्र सरकार ने मंगलवार को अध्यादेश का रास्ता अपनाया।

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ट्विटर पर लिखा "केंद्रीय कैबिनेट ने दोषी सांसदों पर अध्यादेश को स्वीकृति दे दी है। हम इसका विरोध करते हैं। हम राष्ट्रपति से अनुरोध करते हैं कि वह इस पर हस्ताक्षर न करें।"

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने ट्विटर पर इसका जवाब देते हुए लिखा, "संवैधानिकता या कानून लागू करना संवैधानिक अदालतों में जांचा जाता है न कि यह भाजपा का काम है। अनचाही सलाह न तो सराही जाती है और न ही उसे गंभीरता से लिया जाता है। ये कानूनी पेशे के पहले सिद्धांत है। विपक्ष की नेता की सलाह हास्यास्पद है।"

अध्यादेश पर किसने क्या कहा, पढ़ें-

केसी त्यागी, जेडीयू नेता

सरकार के इस अध्यादेश का हम विरोध करते हैं। अपने लाडले क्रिमिनल नेताओं को बचाने के लिए ये बिल लाया गया है। ये एक विचार का मुद्दा है। अगर किसी रंजिश के तहत नेता को फंसाया जा रहा है तो वो गलत है लेकिन किसी नेता को क्रिमिनल केस के लिए बचाया भी नहीं जाना चाहिए। सरकार बचाने की जल्दबाजी में है।

मुख्तार अब्बास नकवी, बीजेपी नेता

इस सरकार को न संसद की चिंता है न कानून की। इस सरकार को तो अध्यादेश की सरकार कहना चाहिए। ये हड़बड़ी में चौकतरफा गड़बड़ी कर रहे हैं। इसे स्टैंडिंग कमिटी के पास जाने देना चाहिए था। लोगों में अपराधी नेताओँ के खिलाफ नाराजगी है।

यशवंत सिन्हा, बीजेपी नेता

मैं ना सिर्फ इस ऑर्डिनेंस के खिलाफ हूं बल्कि इस कानून के भी खिलाफ हूं। जब कानून संसद के विचाराधीन होता है, उस समय ऑर्डिनेंस लाना गैर-संवैधानिक है। ये संवैधानिक क्राइम है। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऑर्डर पास किया है। तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में जाइए। अगर कसी सजायाफ्ता एमपी की सदस्या रद्द होती है तो हो। राजनीति रसातल की तरफ है। राजनेता अपनी साख खो रहे हैं।

पीसी चाको, कांग्रेस प्रवक्ता

वो क्या कहते हैं मुझे नहीं पता। सभी पॉलिटिकल पार्टियों ने साथ दिया था। लेजिस्लेशन लाना सरकार का अधिकार है। सभी पॉलिटिकल पार्टियां हमारे साथ थीं। हम चाहते थे कि पिछले सत्र में लेकर आएं लेकिन किसी कारणवश नहीं ला पाए, इसीलिए हम ऑर्डिनेंस ला रहे हैं।

रामगोपाल यादव, सपा नेता

सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था उससे कोई भी व्यक्ति सहमत नहीं हो सकता, क्योंकि कानून बनाने का काम संसद का है। उस कानून की व्याख्या करना कोर्ट का अधिकार है, लेकिन रोकना नहीं। सही अध्यादेश लाया गया है कोई कमी नहीं है इस अध्यादेश में। पूरा देश सपोर्ट करता है इसे।

यह अध्यादेश निर्वाचित नेताओं को अयोग्य ठहराए जाने से बचाएगा लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं लेने देगा। अध्यादेश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मंजूरी मिलने के बाद इसे नवबंर-दिसंबर में होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में पारित कर दिया जाएगा।



शीर्ष अदालत के रुख पर सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता बैंक खाते में सीधे रसोई गैस सब्सिडी ट्रांसफर करने की योजना को लेकर है। इस योजना को कांग्रेस आगामी चुनाव के लिए 'गेम चेंजर' के तौर पर देख रही है। यही वजह है कि अब बिना देरी के आधार कार्ड बनवाने की प्रक्रिया को कानूनी तौर पर अनिवार्य किया जाएगा। संसदीय कार्य राज्यमंत्री ने मंगलवार को बताया, 'शीतकालीन सत्र में राष्ट्रीय पहचान पत्र विधेयक, 2010 पर चर्चा कराने और पारित कराने की कोशिश की जाएगी। अभी विधेयक को कुछ बदलावों के लिए योजना आयोग के पास भेजा गया है। जल्द ही आयोग की रिपोर्ट आने की उम्मीद है।' सनद रहे कि इस विधेयक को पहले सरकार ने पेश किया था, जिसे वित्त मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया गया था। समिति के अध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने अपनी रिपोर्ट में विधेयक में कई खामियां गिनाते हुए आधार की वैधता को लेकर ही गंभीर सवाल उठा दिए थे। बहरहाल, इस दौरान सरकार ने आधार के जरिए सब्सिडी बांटने के अपने कार्यक्रम को काफी तेज कर दिया। कई कांग्रेसी राज्यों ने कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए इसे अनिवार्य बना दिया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जहां इसकी अनिवार्यता को खारिज करने का अंतरिम आदेश दिया गया है।

पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मंगलवार सुबह अटॉर्नी जनरल से बात की। मोइली ने बताया कि अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट से अपने आदेश पर पुनर्विचार को कहा जाएगा। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीधे बैंक खाते में एलपीजी सब्सिडी डालने की योजना अधर में लटक गई है। हाल में मंत्रालय ने लगभग देश के आधे एलपीजी ग्राहकों को सीधे बैंक खाते में सब्सिडी देने की योजना जनवरी, 2014 तक लागू करने का एलान किया था।



अब तक होता रहा

नागरिकों की निजता

का उल्लंघन, जरा


महामहिम एणएलए

एमपी और मंत्रियों से

अपने तमाम वकीलों से

पढ़े लिखे कायर महापुरुषें

से बूझकर हमें बताना


कैसे हजारों करोड़

हो गये स्वाहा बिना

संसदीय मंजूरी के


इस घोटाले पर कहीं

हुआ हो हंगामा तो बताना

किसी ने किया हो स्टिंग

कि किसने कमाशन खाया


किसी ने पूछा क्या

अबतक कि एनडीए ने

बहुउद्देशीय नागरिक

पहचान पत्र योजना

पर जो झोंके करोड़ करोड़

उसको क्यों कबाड़ में डाला


लोकसभा चुनाव सामने हैं

सत्ता परिवर्तन के आसार भी है

सरकार अल्पमत में है


जनादेश भी नहीं है

नमो नमो हो रहा है देश

तीसरे मोर्चे का विकल्प भी है


हार जायेंगे मनमोहन तो

इस निराधार आधार का

हश्र क्या होगा

किसी ने पूछा क्या भइय़ा


हम सारे लोग टैक्सपेयर हैं

हमारे पैसे से जो ऐश

कर रहे हैं उनकी

जवाबदेही नहीं है कोई


हम सादर समर्पित

उन्हींकी पैदल सेनाएं

मंत्रमुग्ध अपना ही गला

कटाने को पल पल तैयार


स्वजनों के वध के लिए

मोर्चाबंद हम सारे लोग

बेगानी शादी में हमलोग

बन गये हैं अब्दुल्ला दीवाना


जनसरोकार मुद्दा कोई नहीं

जनसुनवाई कहीं भी नहीं

हर कहीं फ्री सेक्स का बोलबाला

अवैध संबंधों में हर आदरणीय

बन गये हैं आशाराम बापू


हामारा न कोई मोर्चा है

और न कोई आंदोलन है

गैस चैंबर में बंद हम लोग


डिओड्रेंट राष्ट्रवाद की महक से

भूल रहे हैं मौत की गंध


चारों तरफ हमलावर

घात लगाये बैठे हैं

हमें क्या परवाह

हम तो कबंध हैं


सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है

तेज बहुत तेज बहुत ही तेज है


पानी जो बहता है और बहता है

जो कुछ भी,यहां तक कि जीवनदायी

आक्सीजन में लबालब खून है


इस खून की कोई शिनाख्त नहीं

लावारिश यह खून है स्वजनों का


हम जीत का जश्न मना रहे हैं

अपनों का ही सफाया कर रहे हैं


Nandan Nilekani 3.0: From entrepreneur to 'plumber' for govt, and now, to a change initiator


What is not clear in Nilekani's case—and this is not in his hands alone—is the shape this greater political participation could take.

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By Soma Banerjee, ET Bureau | 19 Sep, 2013, 10.43AM IST

On a hot May afternoon in the capital this year, when Nandan Nilekani walked into South Block to meet Prime MinisterManmohan Singh, unique identity cards and cash transfers were on his mind. The ruling UPA had publicly staked its political future on these two projects, whose creator and keeper was Nilekani, and such meetings with the prime minister had become routine. That meeting turned out to be anything but routine.


Singh asked Nilekani, a rare hand in his cabinet who was not a member of either house of Parliament, to change that in the near future, says an aide of Singh privy to the meeting. Nilekani responded with his disarming smile.


The prime minister's words came out of the blue that day. But for Nilekani, that idea—to join the hurly burly of politics to try and achieve bigger things—had been swirling in his mind for close to a year. And, as always, the pull for him was the idea of being a changemaker and finding what he describes as the "next level in my story of change".


That story has seen him graduate from employee to entrepreneur, from IT industry captain to a technocrat in the government in charge of transformational projects. And now, possibly, probably, politics.


Nilekani, 58, is clear he wants to play a larger role in governance. "The choices at this stage are clear," he told ET. "Getting into the mainstream and becoming one who can initiate change for the larger public good." He also recognises the conventional and respectful road in the space he wants to operate in flows through greater political participation. "You need political energy and political support to execute any change," he adds.


*

What is not clear in Nilekani's case—and this is not in his hands alone—is the shape this greater political participation could take. In the space in which Nilekani wants to exist, there are, broadly speaking, three options.


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One, stay a technocrat, as he has been since 2009, when he was handpicked by Congressvice-president Rahul Gandhi to lead a project to issue unique identity numbers to every Indian. Two, come in as a member of the Rajya Sabha, which does not require a mandate from the people, and be a minister like Jairam Ramesh or even Manmohan Singh. Three, in what will be the most challenging personally and professionally for Nilekani, a member of theLok Sabha, elected by the people.


Nilekani, blessed with a disposition for risk and also the makeup to manage it, is said to be leaning towards elections, representing the Congress Party from a constituency in Bangalore—home to Indian IT and the city he calls home. "It is a great signal that he is willing to enter politics by contesting elections and not as a Rajya Sabha member, which is normally the route taken by entrepreneurs businessmen and professionals," says Deepak Parekh, a doyen of Indian industry. "It shows courage and conviction."


Even as he lists the many upsides of Nilekani being in the political system, TV Mohandas Pai, a former colleague at InfosysBSE -0.23 %, says the Congress needs to win for Nilekani to give true expression to what he wants to do by joining politics. "Say, Nandan wins, but the Congress loses," says Pai, chairperson of the board of Manipal Global Education. "Then, what does he do except for making some good Parliament speeches for five years?"


Whichever option he chooses, Nilekani is seeing it as part of a continuum and inclined. "My journey so far has progressed from being an ideator, which I was when I wrote the book on ideas that made India and some of the anticipated ones too. Next, the doing part, with the UID database," he says. "Now, the question is of being the change initiator, doing what needs to be done."


POLITICAL DYNAMICS


Ravi Bapna, who has known Nilekani for about five years and has worked with him onUIDAI projects, is not surprised by Nilekani's likely move towards greater political participation. "His story is that of transformation," says Bapna, a professor at the University of Minnesota. "In a representative democracy, true power resides, and rightly so, with the elected, as opposed to the appointed."


Milind Deora, a young minister in the UPA cabinet, sees Nilekani make an easy transition. "He has the skills to negotiate change and build consensus, and also understands how political parties are run," he says.


Yashwant Sinha, who left the civil services to join politics, too endorses Nilekani's move. "Successful professionals can only enrich politics when they join it," says Sinha, a BJP leader and a former finance minister. "Every party should encourage more professionals to come into the political fold."


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According to Deora, the Congress has been in discussions with professionals from other fields who could cross over, including Nilekani, for some time. "We have always believed in getting different stakeholders and people from diverse backgrounds into the polity," he says, citing the example of Shashi Tharoor, a career official at the United Nations who contested on a Congress ticket in 2009 and won.


While the popular reading is that Nilekani too would choose the Congress, he is guarded in his response but reveals enough. "The party and the ideology do matter to what I believe in and my nature of work," he says. "My background speaks for my work. I come from a background that has believed in a secular, liberal, inclusive, empowered environment."

Back in 2009, when prime minister Singh asked him to join the government—which meant leaving Infosys, where he was serving as the co-chairman of its board of directors— it was an easy choice for Nilekani at that stage.


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In 2007, he finished a five-year term as CEO of Infosys, a tenure in which its revenues grew five-fold, and Nilekani cemented his reputation as a leader with a knack of getting the job done. "He has a logical mind, driven with data," says Pai. "He listens to all stakeholders, but has the capacity to take decisions."


*

Increasingly, around the time his executive duties with Infosys were tailing out, he was veering into public policy. For example, he became a member of the National Knowledge Commission, formed by the prime minister to reform higher education in India. "There was no hesitation in my mind as I had always dreamt of this," he told ET in 2011, of Singh's offer. "As a child, I had watched my father and uncle closely, and heard family conversations on public policy."


STEEP LEARNING CURVE


After a ringside view of policymaking in those panels, the last four years at the helm of the Unique Identification Authority of India(UIDAI) have seen him in the ring, trying to push through change in a system, with multiple stakeholders.


At times, he's been on the offence. At times, he's been on the defence. At times, he's been collateral damage. All this in spite of being backed by the highest echelons in the government (the prime minister) and theCongress Party (Sonia Gandhi and Rahul Gandhi).


Nilekani joined UIDAI at a cabinet rank. Its mandate was to assign a unique identity number, called Aadhaar, to every Indian by 2017, and this would eventually become the reference number for all kinds of transactions. Gradually, UIDAI's remit widened to also cover financial inclusion, targeted subsidies and cash transfers to beneficiaries." It was a reflection of the faith the UPA leadership was willing to place in him. "The bonus with him is that he gets the transformative power of technology intuitively, and with a scale and scope that is unparalleled," says Bapna.


As of August 30, UIDAI had issued 420 million Aadhaar numbers, alternating between enthusiastic expression and identity crisis. The crisis stemmed from a disagreement between two government's ministries—finance and home, then led by Pranab Mukherjee and P Chidambaram, respectively—on who should do these enrolments and how.


January 2012, to forge a truce. And it took a political realisation on the UPA's part, in mid-2012, for the government to take a singular view on Aadhaar and cash transfers, and push hard, together. "His stint as UIDAI chairman and his dealings with various states have prepared him extremely well for anything that lies ahead," says Bapna.


When talking about wheels of change, a phrase that is a refrain with Nilekani is "consensus building". He feels it is more difficult to build consensus in public policy than in the corporate world, where the stakeholders are fewer. "It's on a larger scale, from government ministries to bureaucrats to think-tanks to political parties, auditors," he says. "You have to use different motivations and policies to navigate the differences among stakeholders."


Despite his corporate background, Nilekani demonstrates a nuanced understanding of the political economy, and a patient resolve to engage with it. "The first thing I did when I took over was to go to every state and meet the chief minister and the chief secretary," he says. "Having them on board was crucial and reaching out to them was important politically too."


He is willing to subscribe to its rules, but is also constantly looking for openings to subtly sell his ideas. "My three main learnings from the UIDAI project have been: keep the solution simple; design it such that it comes across with more enhancements for the stakeholder and not something that can disturb their turf; and reach out, articulate and communicate."


Professor Deepak Pathak, who taught Nilekani at IIT Bombay in the seventies, has seen early signs of that political bent of mind. "He became the general secretary of the students union at IIT, not an easy task," says Pathak. "He has always believed in the India story and I have found him to be keen to work on projects that would serve a larger good."


That desire and urgency to serve a larger good has seen Nilekani and his wife, Rohini, give away hundreds of crores of their personal wealth—which Forbes estimates at $1.3 billion (about Rs 9,000 crore), as of March 2013, largely from their Infosysshareholding—to educational institutions, and organisations that work to address some of the basic human needs. Some of this thinking is influenced by Nilekani's father, Mohan Rao, a manager in a textile company and a Nehruvian.


LARGER POLITICAL CHANGE


Embedded in Nilekani's move towards greater political participation, likely via elections, is the wider point of how accomplished leaders from other fields joining politics could change the nature of the polity.


In recent times, Meera Sanyal, former chief executive of Royal Bank of Scotland India, stood in the 2009 general elections from South Mumbai. As did Captain GR Gopinath, founder of Air Deccan, from Bangalore. Both lost. "But, as of now, this (professionals entering politics) is episodic," says Yogendra Yadav, member of the Aam Aadmi Party and a political commentator. "They have not been able to make an impact on the body politics."


Compared to Sanyal and Gopinath, Nilekani is seen to have a higher public profile and represents the highest of ethics. He is also seen as a man who has earned his spurs in the government and understands its workings. "Nandan will be a symbol of the aspirational Indian, the India that wants to dream, own a house and drive a car," says Pai. "Unfortunately, the Congress worships the poor and wants to perpetuate it. They are bound to target him."


Yadav gives the highest endorsement to Nilekani's likely crossover, saying his party would readily give him a ticket as he ticks every box to be its candidate. "Politics needs people with the highest virtues," he says.


At the same time, Yadav is wary of reading this as being a catalyst for a larger shift. "Isolated entries may not be the way to change the system," he says. "Meenakshi Natarajan of the Congress is very honest person with highest credentials. But what is not known is whether her entry has made a change in the honesty quotient of the Congress Party."


Yadav would like to see Nilekani contest polls, rather than take the Rajya Sabha route. "It will speak of his commitment as this will help him soil his hands, connect with millions of people, deal with numerous issues," he says. "This will give the political legitimacy he would want to have to represent people." Adds Parekh: "He will have to forget his Saturdays and Sundays, and get down to canvassing."




  1. UIDAI - Official Website

  2. uidai.gov.in/

  3. RBI notifies Aadhaar e-KYC as an 'Officially Valid Document' under PML Rules · About 23 mn(2.3 Crore) Aadhaar linked to bank accounts: Nandan Nilekani.

  4. Enrolment Centre Search - ‎Data Catalog

  5. download e-Aadhaar - uidai

  6. https://eaadhaar.uidai.gov.in/

  7. Important Note : 1. You can download e-Aadhaar only if your Aadhaar has ...

  8. Kolkata AADHAAR Card Centres

  9. aadharcarduid.com/centre/district/Kolkata_29203_West-Bengal_8932

  10. Kolkata district centres address & phone no.s. Download AADHAAR form for Kolkata district. Apply for AADHAAR online registration. Locate AADHAAR center ...

  11. Aadhar Card: Latest News, Videos, Photos | Times of India

  12. timesofindia.indiatimes.comTopics

  13. See Aadhar Card Latest News, Photos, Biography, Videos and Wallpapers. Aadhar Card profile on Times of India.

  14. Aadhar cards not compulsory: Supreme Court - Zee News - India

  15. zeenews.india.com/.../aadhar-cards-not-compulsory-supreme-court_878...

  16. 1 day ago - In a significant development, the Supreme Court on Monday ruled thatAadhar cards are not mandatory even as various state governments ...

  17. Unique Identification Authority of India - Wikipedia, the free ...

  18. en.wikipedia.org/wiki/Unique_Identification_Authority_of_India

  19. An Aadhaar card with number : 4991 1866 5246 was issued in the name of Mr Kothimeer (Coriander), Son of Mr Palav (Biryani), Mamidikaya Vuru (Village Raw ...

  20. Aadhaar card status

  21. services.ptcmysore.gov.in/Speednettracking/Track/UIDTrack.aspx

  22. Enter the Enrolment Number: Enter the Enrolment Date. Aadhaar card status | Worldnet Express | Tracking help | Corporate login | SMS tracking | Home.

  23. How to get Aadhaar, Apply for Aadhar Card | My Aadhaar Card

  24. www.myaadhaarcard.in/enrolling-for-aadhaar/how-to-get-aadhaar/

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  26. News for aadhar card

  27. Aadhaar card must be voluntary, says Supreme Court | NDTV.com

  28. www.ndtv.comAll India

  29. 2 days ago - In the middle of a working day, SM Rehman, a daily wage earner, is at the ration card office in Delhi's Ambedkar Nagar, trying to get a new ...

  30. Getting Aadhar card not mandatory: Centre - The Hindu

  31. www.thehindu.comNewsNational

  32. 2 days ago - The Aadhaar scheme is unconstitutional as applicants are required to part with personal information on biometrics, iris and fingerprints, ...

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The Supreme Court has ordered the government not to withhold any social benefits from those who are yet to get the Aadhar card and not to issue the unique identification card to illegal immigrants.

"No benefit of service shall be denied on account of non-possession of Aadhar, and no illegal immigrants would be issued Aadhar," a Supreme Court bench said in an interim order on Monday while dealing with a public interest litigation that challenged the scheme's constitutional validity and the indiscriminate manner in which the government was issuing the card.

The Aadhar or UID scheme, steered by former Infosys Technologies co-chairman Nandan Nilekani, was seen as the first step towards weeding out those undeserving of subsidies.

Some states such as Delhi had even attempted to make it mandatory for availing subsidies.

But a SC bench, comprising Justices BS Chauhan and SA Bobde, has thwarted any such attempt when it directed all states and union territories not to link subsidies and social welfare benefits to the possession of Aadhar cards.

The central government, through Solicitor General Mohan Parasaran and Additional Solicitor General L Nageshwar Rao, said the Aadhar was purely voluntary and denied all the charges raised in the PIL filed by retired Karnataka High Court judge KS Puttaswamy.

The petition claimed that different governments have linked social benefits to Aadhar which resulted in many people being denied these benefits. It cited several examples such as Maharashtra paying salaries to teachers only into Aadhar card-linked bank accounts and such cards being made mandatory in Jhakhand for registration of marriages.

"The linkage of Aadhar numbers with various government benefits and services, such as food security, LPG, Provident Fund etc makes enrolment and obtaining of such cards mandatory, falsifying government claims that they were voluntary," it said.

Represented by senior lawyer Anil Divan, the petition also claimed that Aadhar cards are being issued indiscriminately to all, including illegal immigrants, posing a huge security risk to the country.

It claimed that a law brought in to implement it had been rejected by a parliamentary standing committee on finance. Hence, the scheme lacked any legislative backing.

The whole process was rushed through vide an executive order for political ends, the petition alleged.

The PIL also claimed that the UID was in violation of Article 21, right to life guaranteed by the Indian Constitution, as it was against a person's right to privacy. The process of getting Aadhar entails biometrics such as finger printing and iris recognition. Courts in the US and UK have held collection and retention of such biometric data to be violation of an individual's right to privacy, it said.



भले सुप्रीम कोर्ट ने जरूरी सेवाओं में आधार कार्ड की अनिवार्यता को नहीं माना हो लेकिन डायरेक्ट कैश सब्सिडी स्कीम को लेकर अभी तक कुछ साफ नहीं हो पाया है। यही वजह है कि पेट्रोलियम मंत्रालय की योजना को लागू करने के लिए गैस कंपनियां अपनी पूर्व की तैयारियों पर ही काम कर रही हैं। गैस कंपनियां अब भी आधार कार्ड वालों को ही डायरेक्ट सब्सिडी का लाभ देने की बात कह रही हैं। वहीं, जिला प्रशासन को भी ऐसे किसी आदेश की जानकारी नहीं मिली है। कंपनियां एक जनवरी-2014 से सब्सिडी लागू करने करने के पक्ष में हैं।


गैस कंपनियों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एलपीजी गैस सब्सिडी मामले में आधार कार्ड की अनिवार्यता पर कोर्इ टिप्पणी नही की थी। नाम न छापने की शर्त पर एलपीजी के एक अधिकारी ने बताया कि वर्तमान में लखनऊ में तकरीबन साढ़े सात लाख घरेलू गैस उपभोक्ता हैं। जिसको देखते हुए तीनों गैस कंपनियां इंडेन आयल, हिन्दुस्तान और भारत पेट्रोलियम घरेलू गैस उपभोक्ताओं को एक साल में मिलने वाले नौ सिलेंडरों पर हर महीने करीब 450 रुपये की सब्सिडी देने की तैयारी कर रही है।


लखनऊ में अधिकारी ने कहा कि घरेलू गैस उपभोक्ता को बाजार भाव में ही सिलेंडर मिलेगा। उसकी डिलीवरी होने पर उपभोक्ता के बैंक खाते में सब्सिडी ट्रांसफर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हर गैस एजेंसी के पास सॉफ्टवेयर होगा। इसमें आधार कार्ड की सारी डिटेल फीड होगी। यही डाटा बैंकों को दिया जाएगा, जिसके आधार पर सब्सिडी ट्रांसफर की जाएगी।


'डायरेक्ट कैश सब्सिडी स्कीम भारत सरकार की है। अभी तक केंद्र सरकार से आधार कार्ड की अनिवार्यता को खत्म करने को लेकर कोई आदेश नहीं मिला है। जब तक कोई आदेश नहीं आता तब तक पुरानी योजना के तहत काम किया जाएगा। गैस कंपनियों को इसकी बेहतर जानकारी होगी।'


अपने ही खून से होली

खेल रहे हैं हम लोग

अपने खून के दिये जलाकर

हम मना रहे हैं दिवाली

अपने ही वध का उत्सव

मना रहे हैं महिषासुर वध से


जाग सको तो जाग जाओ भइया

सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है भइया


সপ্তম বেতন কমিশন গঠনের মঞ্জুরি দিল কেন্দ্র


এই সময় ডিজিটাল ডেস্ক: কেন্দ্রীয় সরকারি কর্মচারীদের উপহার দিল কেন্দ্রীয় সরকার। বুধবার সপ্তম বেতন কমিশন গঠনের মঞ্জুরি দিল কেন্দ্র। আগামী দু'বছরের মধ্যে নিজের অনুমোদন পেশ করবে এই কমিশন।


লোকসভা নির্বাচনের আগে প্রায় ৫০ লক্ষ কেন্দ্রীয় সরকারি কর্মচারী এবং ৩৫ লক্ষ পেনশনারদের এই উপহার দিল কেন্দ্রীয় সরকার। কর্মচারী সংগঠনের দাবিতে সাড়া দিয়ে কমিশন নিয়োগের নির্দেশ দেয় সরকার। উল্লেখ্য, ষষ্ঠ বেতন কমিশনের অনুমোদনগুলি ২০০৬-এর ১ জানুয়ারি থেকে লাগু হয়েছিল।


সপ্তম বেতন কমিশনের অনুমোদন পাওয়ার পর ২০১৬-র জানুয়ারি থেকেই তা কার্যকরী হবে বলে জানা গিয়েছে। মনে করা হচ্ছে, এবার নির্ধারিত সময়েই অনুমোদন কার্যকরী করবে কেন্দ্রীয় সরকার। প্রসঙ্গত, গত বেতন কমিশনের অনুমোদনগুলি নির্ধারিত সময়ের তিন বছর পর কার্যকরী হয়েছিল। তবে কর্মচারীদের এরিয়ার দেওয়া হয়েছিল।



उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने एक फैसले में कहा है कि आवश्यक सेवाओं, मसलन-रसोई गैस कनेक्शन, विवाह और वाहन पंजीकरण, वेतन भुगतान, भविष्य निधि या अन्य सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि आधार कार्ड बनाने का फैसला लोगों की इच्छा पर निर्भर है। अदालत का यह निर्देश कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान आया।

उन्होंने जनहित याचिका में कहा था कि आधार कार्ड योजना के लिए संसद से अनुमति नहीं ली गई है और इसे प्रशासनिक स्तर पर ही शुरू किया गया था। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस बात का ध्यान रखने के लिए ताकीद भी किया कि किसी भी अवैध नागरिक का आधार कार्ड न बने। इस बारे में नंदन निलेकणी और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के महानिदेशक विजय ए मदान से प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी। दोनों से ही संपर्क नहीं हो सका।


'भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण' (यूआईडीएआई) को वैधानिक दर्जा प्रदान करने के लिए सरकार काफी समय से लंबित एक विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पारित करने पर जोर देगी।


योजना मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा, 'हम आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण विधेयक 2010 को चर्चा और पारित करने के लिए लाएंगे।' यूआईडीएआई लोगों को 12 अंकों वाला आधार नंबर जारी करता है।


यूआईडीएआई फिलहाल कार्यपालिका के आदेश से संचालित होता है। यूआईडीएआई का कामकाज उच्चतम न्यायालय के समक्ष आया जिसने कल अपने एक अंतरिम आदेश में कहा कि आधार सिर्फ भारतीय नागरिकों को जारी किया जा सकता है और पहचान नंबर सरकार की सब्सिडी योजनाओं को पाने के लिए अनिवार्य नहीं हो सकता।


यह विधेयक प्राधिकरण को वैधानिक समर्थन प्रदान करेगा जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर 2010 में मंजूरी दी थी और पिछले साल दिसंबर में राज्यसभा में पेश किया गया। इससे पहले इसे वित्त मंत्री एवं भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली वित्त मामलों की संसदीय स्थायी समिति के समक्ष जांच के लिए भेजा गया।


शुक्ला ने कहा, 'अब स्थायी समिति ने कुछ संशोधनों के साथ विधेयक को फिर से योजना आयोग के पास भेज दिया है। हम इसे शीघ्र ही मंत्रिमंडल के पास ले जाएंगे और शीतकालीन सत्र में इसे पारित कराने पर जोर देंगे।'


मंत्री ने कहा कि यूआईडीएआई ने आधार नंबर के लिए पंजीकरण निवासियों के लिए अनिवार्य नहीं किया है और केंद्रीय विभागों, मंत्रियों तथा राज्य सरकारों को इस बारे में फैसला करना है कि लाभार्थियों की पहचान का सत्यापन कैसे किया जाए। उन्होंने कहा, 'आधार लोगों की पहचान बताता है न कि राष्ट्रीयता। यह आवास प्रमाण पत्र का भी सबूत है। हालांकि, यह स्वैच्छिक है न कि अनिवार्य।'


उच्चतम न्यायालय में सौंपे गए योजना आयोग के हलफनामे के मुताबिक आधार लोगों को स्वैच्छिक आधार पर जारी किया जा रहा है। व्यक्ति की सहमति आधार नंबर जारी करने के लिए कोई अनिवार्य शर्त है..यह नहीं कहा जा सकता कि इसके तहत ली जाने वाली बायोमेट्रिक सूचना मूल अधिकार का उल्लंघन है।


यूआईडीएआई का गठन जनवरी 2009 में किया गया था जो योजना आयोग के तहत एक कार्यकारी इकाई के तौर पर काम करता है। प्राधिकरण को 18 राज्यों में 60 करोड़ निवासियों का नाम शामिल करने और उनका बायोमेट्रिक डाटा एकत्र करने की जिम्मेदारी दी गई है जबकि शेष 61 करोड़ आबादी का डाटा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) कार्यक्रम के तहत जुटाया जाएगा।


समूची 121 करोड़ आबादी के लिए 12 अंकों वाला विशिष्ट पहचान नंबर यूआईडीएआई द्वारा तैयार किया जाएगा।


एनपीआर और यूआईडीएआई जुटाए गए डाटा को साझा करेंगे ताकि आधार नंबर के साथ बहुउ्देश्यीय राष्ट्रीय पहचान कार्ड देश में सभी निवासियों को जारी किया जा सके।


SC's interim ruling may boost UPA's welfare plans minus Aadhaar

http://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/scs-interim-ruling-may-boost-upas-welfare-plans-minus-aadhaar/articleshow/23011940.cms

By M RAJSHEKHAR & VIKAS DHOOT, ET Bureau | 25 Sep, 2013, 11.08AM ISTThe answers are starkly different. Aadhaar, unless the Supreme Court changes its ruling in the final judgement, has received a body blow.

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NEW DELHI: What is the future of one of India's most high profile government programmes after Monday's Supreme Court interim ruling on Aadhaar? And is there a collateral damage on election-facing UPA's ambitious welfare schemes?


The answers are starkly different. Aadhaar, unless the Supreme Court changes its ruling in the final judgement, has received a body blow. But, ironically, minus the linkage with Aaadhar, UPA's direct benefits transfer(DBT) programme can perhaps get a boost. Meanwhile, oil minister Veerappa Moily said on Tuesday that, "We have told the solicitor general of India to take steps for correction of this order." On Monday, a bench of Justices BS Chauhan and SA Bobde ruledAadhaar cannot be made mandatory for accessing government services and subsidies. If it is repeated in the final order, Aadhaar will lose the main reason people were queuing to enrol.


*

The top court can vacate the order if it's convinced of the government's case on that day. The government could specially contest that part of the order, which asked governments not to issue it to illegal immigrants.


All this time, people were queuing at Aadhaar enrolment centres, fearing that without a UID number, they would not get their pensions, scholarships and subsidies. In states like Delhi, an Aadhaar number was essential for anyone looking to register their marriage or rent a house.


AP Shah, the retired Chief Justice of the Delhi High Court, feels the interim order is unlikely to change. "While all interim orders are subject to the final order, there is very low probability of this order being changed by the court unless the government changes its position about Aadhaar being voluntary."


If Aadhaar is voluntary, he says, "the natural corollary is that governments cannot deny anyone any social benefit because they do not have an Aadhaar number." The interim order will affect DBT differently, and perhaps positively.


According to Himanshu, an assistant professor in Economics at Delhi's Jawaharlal NehruUniversity, "DBTs can be done without Aadhaar." Indeed, across India, NREGA payments have been made into workers bank accounts without them having Aadhaar numbers -- all that is needed to transfer the wages is the worker's name, job card number and bank account number.


If anything, the rollout could accelerate. Till now, DBT rollout has been slowed due to the limited number of districts with high Aadhaar penetration. Not to mention the slow progress being made on seeding every database (of banks and welfare departments) with the Aadhaar number.


The ruling also comes as a shot in the arm for the Home Ministry's National Population Register (NPR) which has seen bruising battles over enrolments with the UIDAI over the last two years.


In this period, the NPR, which was to originally issue resident ID cards with Aadhaar numbers embedded in them, has been scuttled by the Cabinet which refused to approve a home ministry proposal to issue cards under the programme. A GoM set up by the Cabinet to examine if NPR cards were necessary given that the GoI was already issuing Aadhaar numbers met once in March 2013. Since then, the matter has been in suspended animation. But now, with Justices Chauhan and Bobde criticising the Aadhaar project on two grounds -- that states were trying to make possession of a voluntary number mandatory; and that the numbers were being given to "illegal migrants" -- the government might have to rethink.


Unlike Aadhaar, the NPR is mandatory. Further, its original mandate, before it was diluted by the UPA in a bid to broker peace between the NPR and UIDAI, was to enrol only citizens. In contrast, Aadhaar was enrolling all residents. When asked about this, a senior official at the Registrar General's office, said: "We have not been told anything about this." It's not clear what Aadhaar will do next. UIDAI chairman Nandan Nilekani did not respond to an ET questionnaire.


If the interim order is repeated by the final order, then the organisation will have to go back to the drawing board. If Aadhaar is to become mandatory, the UPA will have to either get an Ordinance or the UIDAI Bill passed. The bill, incidentally, had been severely criticised by the Standing Committee of Finance, which had even asked whether such a programme was needed.


If it stays voluntary, then it will be just one more form of ID among others.



सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आधार कार्ड को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग अब इसे लेकर नए आदेश आने के इंतजार में है। हालांकि गैस सब्सिडी के लिए शहर की गैस एजेंसियों पर बनाए जा रहे आधार कार्ड का काम अभी भी जारी है।



इस परियोजना पर सरकार अब तक अरबों रुपये फूंक चुकी है। यूआइडीएआइ के अध्यक्ष नंदन नीलेकणी की उपलब्धियों के पुरस्कार स्वरूप कांग्रेस पार्टी उन्हें सांसद के लिए टिकट भी पक्का कर रखा है।


करीब 30 अरब रुपये की इस योजना को चुनौती देने वालों ने इसे संविधान प्रदत्त बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन बताया है। इस पर केंद्र सरकार ने खुद इसकी अनिवार्यता से पल्ला झाड़ लिया है।


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कबायली समुदाय से लांच की गई इस योजना में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के तहत आधार संख्या को आम आदमी का अधिकार बताया था।





केंद्र सरकार ने चुनाव से पहले अपनी बहुप्रचारित व सर्वाधिक महत्वाकांक्षी योजना आधार की खुद बुनियाद हिला दी है। उसने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआइ) द्वारा जारी किए जा रहे आधार कार्ड हासिल करना वैकल्पिक है। उसने सभी नागरिकों के पास इसका होना अनिवार्य नहीं किया है। वर्ष 2009 में बड़ी तामझाम के साथ देश के तमाम नागरिकों को विशिष्ट पहचान पत्र मुहैया कराने के लिए शुरू किए गए आधार कार्ड की अनिवार्यता समाप्त हो गई है।

कुछ राज्य सरकारों ने वेतन, भविष्य निधि भुगतान, विवाह पंजीयन और संपत्ति के निबंधन जैसे बहुत सारे कामों के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने का निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट इनके खिलाफ दायर याचिकाओं की एक साथ सुनवाई कर रहा है। शीर्ष अदालत ने केंद्र को कहा कि अवैध रूप से देश में रहने वालों को आधार कार्ड जारी नहीं करें क्योंकि इससे उनके भारत में रहने को वैधता मिल जाएगी।

केंद्र सरकार ने कहा है कि आधार कार्ड के लिए किसी व्यक्ति की सहमति अनिवार्य है। इसकी शुरुआत समाज के वंचित तबके के समावेशन को बढ़ावा देने और उनके लाभ के लिए किया गया है, जिनके पास औपचारिक तौर पर पहचान का कोई प्रमाण नहीं है। यूआइडीएआइ और केंद्र के वकीलों ने याचिकाकर्ताओं के दलीलों का जवाब दिया। इन्होंने कहा कि भारत में आधार कार्ड स्वेच्छिक है। न्यायमूर्ति बीएस चौहान और एसए बाबडे की पीठ के समक्ष संक्षिप्त सुनवाई के दौरान बताया गया कि इस सचाई के बावजूद कि आधार कार्ड प्रकृति से स्वेच्छिक है, बांबे हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार की ओर से राज्य सरकार के एक आदेश का अनुसरण करते हुए एक आदेश जारी किया गया है कि यह न्यायाधीशों और कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए जरूरी होगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल दीवान ने कर्नाटक हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश केएस पुट्टास्वामी के लिए बहस करते हुए कहा 'यह योजना संविधान के अचुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और स्वाधीनता का अधिकार) में दिए गए बुनियादी अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन है। सरकार दावा करती है कि यह योजना स्वच्च्छिक है लेकिन ऐसा नहीं है। महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में कहा है कि यदि आधार कार्ड नहीं रहने पर किसी भी शादी का पंजीयन नहीं होगा। जस्टिस पुट्टास्वामी ने भी अपनी लोकहित याचिका में इस योजना के लागू करने पर रोक लगाने की मांग की है।


हिमाचल ने योजना को गंभीरता से लिया और 10 जिलों में नौ महीने में 19 लाख से अधिक आधार कार्ड बने। प्रदेश में वर्तमान में 90 फीसद आधार कार्ड बनाए जा चुके हैं व अधिकतर जिलों में आधार कार्ड बनने का काम पूरा हो गया है। ऊना जिला आधार कार्ड बनाने में अव्वल रहा है।


हिमाचल देश के उन अग्रणी राज्यों में है जहां 90 फीसद से ज्यादा आधार कार्ड बन चुके हैं। नए गैस कनेक्शन, बैंक में खाता खोलने, भविष्य निधि भुगतान व गरीबों के लिए सरकारी योजनाओं के लाभ पर राज्य सरकार आधार कार्ड को ही अहम दस्तावेज मानते हुए लागू कर चुकी है। मतदान प्रक्रिया के लिए भी आधार को अनिवार्य किया है। हाल ही में शिमला में राज्य सरकार द्वारा लांच की गई योजना में सस्ते अनाज के लिए भी आधार कार्ड अहम भूमिका में है। अब भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआइ) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैकल्पिक करार देने के बाद राज्य सरकार इस मामले पर कानूनी राय लेने की तैयारी में है। तर्क यह कि राज्य में करोड़ों रुपये इस योजना को लागू व प्रचारित करने पर खर्च किए गए हैं। सरकार ने जिला स्तर पर जागरूकता मुहिम बड़े पैमाने पर छेड़ी है। प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट की कॉपी के इंतजार में है। इसके बाद प्रदेश सरकार केंद्र से भी संपर्क साधेगी। खाद्य आपूर्ति एवं परिवहन मंत्री जीएस बाली ने इसकी पुष्टि की है। राज्य में आधार कार्ड की अनिवार्यता को बरकरार रखने के लिए कानूनी विशेषज्ञों से हर पहलू पर राय ली जाएगी। आवश्यक हुआ तो अन्य राज्यों के मजदूरों और नेपाली मूल के अलावा हिमाचल में शरणार्थी तिब्बती समुदाय की आबादी के लिए आधार को निराधार किया जा सकता है।


बिना आधार के

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नवभारत टाइम्स | Sep 25, 2013, 01.00AM IST

आधार कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है उससे हमारे सिस्टम की एक बड़ी कमजोरी उजागर हुई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आवश्यक सेवाओं जैसे एलपीजी कनेक्शन, टेलिफोन वगैरह के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। इसे बनवाना स्वैच्छिक है। इसे लेकर शुरू से ही दुविधा रही है। कई लोग इसे ऑप्शनल मानते रहे हैं, तो कई कम्पलसरी। खुद कई राज्य सरकारें भी इसे लेकर साफ नहीं रही हैं। हालांकि केंद्र सरकार का कहना है कि उसने कभी इसे अनिवार्य नहीं बनाया, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने तो इसे सैलरी और शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी बना दिया। इससे लोगों में नाराजगी फैली।


कई लोगों ने इसे अपने मूल अधिकारों का उल्लंघन बताया और मामला अदालत में पहुंच गया। यह वाकई आश्चर्य की बात है कि इसे लेकर केंद्र और राज्य अलग-अलग सोच रहे थे। साफ है कि उनमें तालमेल की भारी कमी है। सरकार बड़े जोरशोर से योजनाएं शुरू करती है और उन्हें लेकर बड़े-बड़े दावे भी करती है, लेकिन आखिरकार नौकरशाही उनका कबाड़ा करके रख देती है। अव्वल तो योजना पर ढंग से होमवर्क ही नहीं होता। फिर ब्यूरोक्रेसी उसमें अपना लाभ देखती है और उनके जरिए अपने लोगों को फायदा पहुंचाने की कोशिश करती है। आधार को ही लें। कार्ड बनाने का काम मनचाही प्राइवेट एजेंसियों को सौंपा गया, जिन्होंने इसमें घपले किए। उन्होंने दस्तावेजों की ढंग से जांच तक नहीं की।


फिर आम आदमी से आशा की गई कि वह खुद ही आगे आकर कार्ड बनवाएगा। जिस देश में लाखों लोगों के खाने और रहने का कोई निश्चित ठिकाना न हो, उनसे यह अपेक्षा करना ही गलत है। जब जन प्रतिनिधियों को अपनी संवैधानिक जवाबदेही की चिंता नहीं है तो आम नागरिक से ऐसी उम्मीद क्यों? इस मामले में हमें विकसित देशों की नकल नहीं करनी चाहिए। उन्होंने एक लंबे समय में अपने नागरिकों को जागरूक बनाया है। हमें अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर ही योजनाएं बनानी चाहिए और उन्हें उसी के हिसाब से लागू भी करना चाहिए। भारत में लोग सरकार तक नहीं पहुंचेंगे, सरकार को उन तक पहुंचना होगा। इस बुनियादी समझ के साथ ही इस योजना को अंजाम देना होगा।

গরিবের কর্মসংস্থানে অগ্রাধিকার, নির্দেশ মমতার

পাহাড়ের কোলে মুখ্যমন্ত্রীর সভা। বাঘমুণ্ডিতে ছবিটি তুলেছেন অমিত সিং দেও।

ঝিলম করঞ্জাই, দুর্গাপ্রসাদ মুখোপাধ্যায় ও সঞ্জিত গোস্বামী

বাঁকুড়া ও পুরুলিয়া: গরিব মানুষকে খুশি রাখতে পারলে ভোটে তাঁকে সরানোর কেউ নেই৷ পঞ্চায়েত নির্বাচনের পর মঙ্গলবার ১২টি পুর নির্বাচনের ফলাফলে তা স্পষ্ট৷ মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দোপাধ্যায়ের পাখির চোখ তাই সাধারণ মানুষের হাতে টাকার নিয়মিত জোগান দেওয়া৷ সেজন্য কর্মসংস্থানের উপরই সর্বাধিক গুরুত্ব দিচ্ছেন তিনি৷ তাঁর সেই অগ্রাধিকার যথাযথ পুরণ না-করায় তাই আমলারা মুখ্যমন্ত্রীর রোষে পড়ছেন৷ ১০০ দিনের কাজ থেকে শুরু করে গ্রামোন্নয়নের নানা প্রকল্প নিয়ে তাই বাঁকুড়ার জেলাশাসক থেকে শুরু করে বিডিও-রা মঙ্গলবার তাঁর কড়া ধমক খেলেন৷

বাঁকুড়ার খাতরায় জেলা স্তরের প্রশাসনিক বৈঠকে জাতীয় কর্মসংস্থান নিশ্চয়তা প্রকল্পে মাত্র ১৯ দিন কাজ হয়েছে শুনেই মেজাজ খারাপ হয়ে যায় মমতার৷ প্রশাসনিক সূত্রে জানা গিয়েছে, জেলাশাসককে উদ্দেশ্য করে তিনি বলেন, 'কেনও এত কম হল? কোনও অজুহাত শুনব না৷ যেভাবে হোক, গরিব মানুষকে কাজ দিন৷ তাঁরা কাজ বোঝেন৷ বুঝতে হবে, ওঁরা কি চান৷ আমি দু'মাস পরে আবার আসব৷ আমাকে হাতেনাতে দেখাতে হবে সেই কাজ কতটা করলেন আপনারা৷'

কি ভাবে হবে সেই কর্মসংস্থান? মুখ্যমন্ত্রী নিজেই জেলার আধিকারিকদের কখনও বলেছেন, কলকাতার মতো এলাকা পরিষ্কার করার কাজ করান গরিব মানুষকে দিয়ে৷ যেসব জায়গায় লোকের অভাব আছে, সেখানে ঠিকাদারের অধীনে গ্রামের মানুষকে কাজ দিন৷ বাঁকুড়া গরম জেলা৷ জল ধরো, জল ভরো কর্মসূচিতে এখানে অনেক পুকুর কাটান৷ তাতে অনেকের কাজ হবে৷ এমনকী, লোকশিল্পীদেরও কাজ দেওয়ার দাওয়াই দেন তিনি৷

মুখ্যমন্ত্রী বলেন, 'শিক্ষা, স্বাস্থ্য, শিশু বিকাশ প্রকল্প ইত্যাদি সব বিভাগে যে কাজ হচ্ছে, তার ভালো করে বিজ্ঞাপন করান৷ বিজ্ঞাপনের দায়িত্ব তিন শিল্পীদের৷ যেমন ছৌ শিল্পীরা সাংস্কৃতিক কর্মকাণ্ডের মধ্যে দিয়ে এ সব প্রচার করতে পারেন৷' উন্নয়নই একমাত্র পথ বলে বার বার বোঝানোর চেষ্টা করেন মমতা৷ পুরুলিয়ার জনসভাতেও এ দিন সেই উন্নয়নের পক্ষেই সওয়াল করেন তিনি৷

বাঘমুণ্ডি পাহাড়ের কোলে এক সভায় মাওবাদীদের নাম উচ্চারণ না-করে তিনি বলেন, 'বন্দুক দিয়ে কিছু হয় না৷ মানুষ বন্দুক চানও না৷ তাঁরা শান্তি চান৷ সবার পেটে ভাত চান৷ সুতরাং বন্দুক হাতে নেবেন না কেউ৷' এর পরই উপস্থিত জনতার উদ্দেশে তিনি প্রশ্ন ছুড়ে দেন, 'আপনারা কি বলেন?' সভায় উপস্থিত মানুষ সমস্বরে চিত্কার করেন, 'বন্দুক না, আমরা শান্তি চাই৷' এর পরই অযোধ্যা পাহাড়-সহ পুরুলিয়ার প্রত্যন্ত বিভিন্ন অঞ্চলের উন্নয়নে একগুচ্ছ কর্মসূচি ঘোষণা করেন মুখ্যমন্ত্রী৷

মাওবাদীদের প্রতি কটাক্ষ করলেও তিনি তাঁদেরই ভয়ে সোমবার অযোধ্য পাহাড়ে রাত্রিবাসের পুর্ব ঘোষিত কর্মসূচি বাতিল করেছেন বলে অভিযোগ করেছেন সেখানকার বাসিন্দারা৷ ক্ষোভ গোপন করেননি সেখানকার তৃণমূল নেতা-কর্মীরাও৷ পর্যটকদের প্রতি নিরাপত্তার বার্তা দিতেই ওই রাত্রিবাসের পরিকল্পনা বলে ইতিপুর্বে মুখ্যমন্ত্রীর দল ও প্রশাসন ঘোষণা করেছিল৷ বাঘমুণ্ডির সভায় তিনি সেই প্রসঙ্গ উল্লেখ না-করে শুধু বলেন, 'কাল অযোধ্যা পাহাড়ে গিয়েছিলাম৷ অত্যন্ত সুন্দর জায়গা৷ এই পাহাড় ঘিরে পর্যটন ক্ষেত্র গড়া হবে৷'

তিনি যে ব্যাখাই দিন না কেনও, তাতে সন্ত্তষ্ট নন অযোধ্যার গ্রামবাসী৷ সেখানকার তৃণমূলের নেতৃস্থানীয় কর্মী মহেশ্বর সিং মুড়া বলেন, 'প্রমাণ হয়ে গেল পাহাড়ের মানুষ জংলি৷ জংলিদের জায়গায় রাত কাটাতে চাইলেন না দিদি৷ আরও বোঝা গেল এখানে কোনও উন্নয়ন হয়নি৷ মোবাইলের নেটওয়ার্ক পর্যন্ত পাওয়া যায় না৷ উন্নয়নের নামে যা বলা হয়, তা গল্প মাত্র৷' প্রকাশ্যে কেউ না-বললেও গোয়েন্দা সূত্রে মুখ্যমন্ত্রীর সিদ্ধান্ত বদলের অন্য খবর মিলেছে৷

ওই সূত্রে জানা গিয়েছে, মুখ্যমন্ত্রী আসার দু'দিন আগে অযোধ্যা পাহাড়ের আমকচা গ্রাম লাগোয়া এলাকায় মাওবাদীদের ১০-১২ জনের একটি দলের ঢুকে পড়ার খবর পান গোয়েন্দারা৷ তাঁরা যোগাযোগ রাখছিলেন ঘাটশিলার জঙ্গলে আত্মগোপন করে থাকা মাওবাদী নেতা প্রশান্ত বসুর সঙ্গে৷ তিনি অবশ্য এখনই কিছু না-করতে নির্দেশ দেন৷ তবু মুখ্যমন্ত্রীর নিরাপত্তায় ঝুঁকি নেওয়া হয়নি৷






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