Friday, October 11, 2013

শিয়রে সাইক্লোন৷ সুপার সাইক্লোনের থেকেও যা হতে পারে ভয়ানক৷ समुद्री तूफ़ान की आशंका से सेना सतर्क কত জৌলুস,কত টাকা তুলে দেই দেবীর পায়ে দেবী বন্দনায় ওম ব্রাহ্মণ্যায় নমো অন্ধ্র-ওড়িশায় ধেয়ে আসছে সাইক্লোন `ফাইলিন`, ২০০ কিমি আছড়ে পড়বে কাল Asur tribals mourn ‘martyr’ Mahishasur ইহাই কি ধর্ম নিরপেক্ষতা? এবার সেরা পুজোর পুরস্কার দেবে রাজ্য সরকারও

শিয়রে সাইক্লোন৷ সুপার সাইক্লোনের থেকেও

যা হতে পারে ভয়ানক৷

समुद्री तूफ़ान की आशंका से सेना सतर्क


কত জৌলুস,কত টাকা

তুলে দেই

দেবীর পায়ে

দেবী বন্দনায়

ওম ব্রাহ্মণ্যায় নমো

অন্ধ্র-ওড়িশায় ধেয়ে

আসছে সাইক্লোন `ফাইলিন`,

২০০ কিমি আছড়ে পড়বে কাল

Asur tribals mourn 'martyr' Mahishasur

ইহাই কি ধর্ম নিরপেক্ষতা?

এবার সেরা পুজোর পুরস্কার দেবে রাজ্য সরকারও

  1. तूफ़ान की चित्र

  2. - छवियों की रिपोर्ट करें


পলাশ বিশ্বাস

साल 1999 में 29 अक्तूबर को तूफ़ान आया था जिसकी रफ़्तार 250 से 260 किलोमीटर प्रति घंटा थी. इसकी वजह से क़रीब 10,000 लोग मारे गए थे.

'फैलिन' तूफ़ान तेज़ी से बढ़ रहा है भारतीय तट की ओर

फ़ोटो: AFP

चक्रवाती तूफ़ान 'फैलिन' 215 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज़गति से भारत के दो तटीय राज्यों, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा की ओर आगे बढ़ रहा है।

शनिवार शाम तक यह तूफ़ान तटवर्ती इलाकों तक पहुँच जाएगा। आंध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम, गंजम और पुरी तथा उड़ीसा में जगतसिंहपुर नगरों में तूफ़ान के परिणामों से निपटने के लिए तैयारियां की जा रही हैं। इन क्षेत्रों के निवासियों को सहायता उपलब्ध कराने के लिए सेना की कुछ टुकड़ियों को भी तैयार कर दिया गया है।

उड़ीसा के आपदा राहत मंत्री सूर्य नारायण पात्र ने कहा है कि इस बार प्राकृतिक आपदा का सामना करने के लिए सन् 1999 की तुलना में बेहतर तैयारी की गई है। उड़ीसा में सन् 1999 में आए चक्रवाती तूफ़ान के कारण लगभग 15 हज़ार लोग मारे गए थे।

और पढ़ें: http://hindi.ruvr.ru/news/2013_10_11/246118503/




ওড়িষ্যা উপকূলে পুনর্বাসিত

উদ্বাস্তু উপনিবেশ জেলায় জেলায়

সবচেয়ে বেশি বিপর্যস্ত

ব্রাত্য বাঙ্গালি উদ্বাস্তুরা আজ

বাংলায় ঘরে ঘরে বারোযারি উত্সব


Xavier Dias shared Nitish Priyadarshi's photo.

19 minutes ago

तूफ़ान फाइलिन जो अब सुपर साइक्लोन में बदल रहा है जैसा १ ९ ९ ९ में हुआ था। इसके बीच में बनी आंख इसके खतरनाक होने का संकेत है। अगर ये भारत से टकराया तो स्तिथी भयावह होगी इसमें दो राय नहीं है। कम ही सही लेकिन झारखण्ड भी इसके चपेट में आएगा।

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আজ অন্ধ্রপ্রদেশ ও ওড়িষ্যা উপকূলের দিকে ধেয়ে আসছে ঘূর্ণিঝড় পিলিন। ওড়িষ্যার পারাদ্বীপ থেকে ৯০০ কিলোমিটার দূরে বঙ্গোপসাগরের ওপর রয়েছে ঘূর্ণিঝড়টি। আগামী ২৪ ঘন্টার মধ্যে ১৭৫-১৮৫ কিলোমিটার বেগে অন্ধ্র ও ওড়িষ্যা উপকূলের ওপর আছড়ে পড়তে পারে। ঘূর্ণিঝড়টি ক্রমশ উত্তর-পশ্চিম দিকে এগিয়ে যাচ্ছে।

तूफ़ान फ़ाइलुन हफ़्ते की शाम तक साहिली आंध्र से टकरा जाएगा। चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी ने तूफ़ान के ख़तरात के पेशे नज़र सीनीयर ओहदेदारों को हिदायत दी है कि वो साहिली आंध्र के अज़ला में एहतियाती इक़दामात करें।

महकमा-ए-मौसीमीयत के ओहदेदारों ने आज बताया कि कॉलिनगा पटनम और प्रदीप के दरमयान शुमाली आंध्र और उडीशा के साहिल से टकरा जाने वाला तूफ़ान ख़तरनाक होसकता है।

हुक्काम ने नुक़्सानात को कम से कम होने के लिए कई इक़दामात किए हैं। नशीबी इलाक़ों में रहने वाले अवाम का तख़लिया( मुन्ताकिल ) किए जाने का मंसूबा है। बचाव‌ कारी ख़िदमात के लिए नेशनल डीज़ासटर रेस्पांस फ़ोर्स और साहिली फ़ोर्स का तआवुन हासिल किया जा रहा है।

रियास्ती वज़ीर माल राहत कारी-ओ-बाज़ आबादकारी एन रग्घू वीरा रेड्डी ने कहा कि ओहदेदारों को हिदायत दी गई हैके वो फ़ौज , बहरीया और फ़िज़ाईया को अलर्ट करते हुए बचाव‌ कारी काम अंजाम दें।

महकमा-ए-मौसीमीयत के बुलेटिन के मुताबिक़ ये तूफ़ान ख़लीज बंगाल के मशरिक़ी वस्त में सरगर्म है। चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी ने चीफ़ सेक्रेटरी पी के मोहंती के साथ जायज़ा मीटिंग मुनाक़िद किया और तमाम ज़िला कलेक्टरस ख़ासकर श्रीकाकुलम , विजयानगरम , मशरिक़ी-ओ-मग़रिबी गोदावरी , गुंटूर , कृष्णा , प्रकाशम और नेल्लोरे के कलेक्टरस को हिदायत दी गई है कि तूफ़ान के नुक़्सानात को कम से कम करने के लिए इक़दामात करें।

आइन्दा 12 घंटों के दौरान ये तूफ़ान शिद्दत इख़तियार करसकता है। मुवाफ़िक़ मुत्तहदा आंध्र प्रदेश मुलाज़मीन ने पहले ही तीक़न दिया है कि वो तूफ़ान के पेशे नज़र हंगामी ख़िदमात अंजाम देंगे। इसी दौरान साहिली आंध्र और तेलंगाना के कई मुक़ामात पर बारिश रिकार्ड की गई।

- See more at: http://www.siasat.com/hindi/news/%E0%A4%A4%E0%A5%82%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A5%9E%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A4%B2-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%A4%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%97%E0%A4%BE#sthash.2VBErZdt.dpuf

আজ মহাসপ্তমি। পুজোর আমেজে গোটা শহর। রোদ ঝলমলে দিনে সকাল থেকেই মন্ডপে মন্ডপে মানুষের ভীড়। উতসবে মাতোয়ারা আট থেকে আশি। আজ মন্ডপে মন্ডপে দেবী দুর্গাকে আমন্ত্রণ ও প্রতিষ্ঠার দিন। শাস্ত্রমতে আজই দেবী দূর্গার পুজো শুরু। মন্ডপে মন্ডপে নবপত্রিকার প্রবেশ। সকাল থেকেই গঙ্গার ঘাটে কলাবউ স্নান ও তারপর…


বাংলাদেশের প্রধান দুই রাজনৈতিক দল আওয়ামী লীগ ও বিএনপির প্রতি মানুষের সমর্থন আগের চেয়ে বেড়েছে। তবে ক্ষমতায় থাকা আওয়ামী লীগের চেয়ে বিএনপির জনপ্রিয়তা বেড়েছে।


বাংলাদেশে শহবাগ ঝড়,যূদ্ধ অপরাধিদের ফাঁসি,যাবজ্জীবন সত্বেও গণতন্ত্র ওধর্মনিরপেক্ষতার লড়াই শেষ হল না


ওপার বাংলায় যা হল তা হল,এপার বাংলার কিচ্ছু যায় আসে না

এপার বাংলায় যারা জীবনের প্রতিটি ক্ষেত্রে একচেটিয়া আধিপাত্যে শাসক শ্রেণী,ভারত ভাগের দুর্বাগ্যের বোঝা তাঁদের বইতে হয়না


ভারতবর্ষে সর্বশেষ বৌদ্ধময় রাজত্ব ছিল এই অখন্ড অনার্য ব্রাত্য বঙ্গে,যা এখন ওম ব্রাহ্মণ্যায় নমো

ASUR Adivasi Wisdom Documentation Initiative

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बहुत दुःख के साथ लेकिन समूची शक्ति जोड़ते हुए आप सभी को महिषासुर शहादत दिवस पर एकजूट होने का आह्वान कर रही हूं. हम इस कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं. आप भी आइए. इस अवसर पर विमर्श होगा असुर आदिवासी इतिहास पर और महिषासुर की प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी.

- सुषमा असुर


ভয়াবহ পাইলিনের ভ্রূকুটি, সতর্ক ওড়িশাকে, ভারী বৃষ্টির সম্ভাবনা রাজ্যে

Tag:  Cyclone Phailin,  Odisha,  Andhra Pradesh

Last Updated: October 11, 2013 13:46ক্রমশ ভয়াবহ রূপ ধারন করছে সাইক্লোন পাইলিন। আগামিকাল বিকেলে ওড়িশার গোপালপুরের কাছে পাইলিন আছড়ে পড়বে বলে জানিয়েছে আবহাওয়া দফতর। পাইলিনের গতিপ্রকৃতি নিয়ে যথেষ্টই চিন্তিত ভারতীয় আবহাওয়া দফতরের  বিজ্ঞানীরা। তাঁদের আশঙ্কা ২০০ কিলোমিটারেরও বেশি গতিতে পাইলিন আছড়ে পড়বে ওড়িশায়।


গঞ্জাম, পুরী, জগতসিংপুর এবং খুরদায় পাইলিনের প্রভাবে সবচেয়ে বেশি ক্ষয়ক্ষতি হওয়ার আশঙ্কা। সতর্কতা হিসেবে এখনই ওড়িশা উপকূল খালি করার নির্দেশ দিয়েছে নবীন পট্টনায়েক সরকার। ওড়িশা প্রশাসন সূত্রে খবর, এখনই একশো কিলোমিটার বেগে ঝড় শুরু হয়েছে উপকূলবর্তী জেলাগুলিতে। আগামিকাল তা আরও শক্তি বাড়িয়ে আছড়ে পড়ার আশঙ্কা। পরিস্থিতি মোকাবিলায় তৈরি রাখা হয়েছে বিপর্যয় মোকাবিলা বাহিনীকে। পুজোয় পুরী যাওয়া রাজ্যের অধিকাংশ পর্যটকই আজ ধৌলি ও দুরন্ত এক্সপ্রেসে ফিরে এসেছেন।


পাইলিনের প্রভাব পড়তে পারে এ রাজ্যেও। সাইক্লোন জেরে ভারী বৃষ্টির সম্ভাবনা রাজ্যের উপকূলবর্তী এলাকায়। ওড়িশা উপকূলে আছড়ে পড়তে চলেছে ঘূর্ণিঝড়। ওড়িশার অত্যন্ত কাছে বলে দিঘাতে সতর্কতা জারি করা হয়েছে। সতর্কতা জারি করা হয়েছে উদয়পুর, শঙ্করপুর, তাজপুর ও মন্দারমণিতে। প্রশাসনের তরফ থেকে মাইকিং শুরু হয়েছে। পর্যটকদের দিঘা, মন্দারমণি, শঙ্করপুর ও তাজপুর ছেড়ে যেতে বলা হয়েছে। দিঘায় না আসতে অনুরোধ করা হয়েছে পর্যটকদের। তৈরি রয়েছে বিপর্যয় মোকাবিলা দল। মত্স্যজীবীদের সমুদ্রে মাছ ধরতে যেতে নিষেধ করা হয়েছে। সমস্ত ধরনের সতর্কতা জারি করা হয়েছে। পরিস্থিতি মোকাবিলায় দিঘাতেই দফায় দফায় বৈঠক করেছেন প্রশাসনিক কর্তারা।

पूर्वी मध्य बंगाल की खाड़ी के ऊपर भीषण चक्रवाती तूफान पेलिन शुक्रवार को और अधिक मजबूत हो गया है। इसके कारण तटीय आंध्र प्रदेश और ओडिशा के 23 जिलों में खतरा बढ़ गया है। इन इलाकों में शुक्रवार से लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का काम शुरू कर दिया गया है। हजारों लोगों को तटीय क्षेत्रों से हटाया जा चुका है। सेना को भी हर तरह से तैयार रहने को कहा गया है।


आंध्र के तटवर्ती जिलों से मिली जानकारी में कहा गया है कि बारिश हो रही है और समुद्र में लहरें तेज हैं। मौसम विभाग ने बताया कि शुक्रवार तड़के भारतीय समयानुसार 2.30 बजे तूफान का केंद्र पारादीप तट से दक्षिण-दक्षिण पूर्व में करीब 590 किमी की दूरी पर बना हुआ था। शनिवार शाम तक पेलिन के कलिंगापट्टनम और पारादीप तट को पार करने की संभावना है। ओडिशा में यह कम-से-कम 205 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली हवाओं के साथ गोपालपुर के पास पहुंच सकता है। मौसम विभाग ने अपने ताजा बुलेटिन में कहा, 'पेलिन उत्तर-पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ेगा और कलिंगपट्टनम, पारादीप होते हुए शनिवार शाम तक गोपालपुर पास पहुंचेगा।'


पहले मौसम विभाग को उम्मीद थी कि शनिवार को चक्रवात के पहुंचने तक हवाओं की गति 185 किलोमीटर प्रति घंटे के दायरे तक सीमित रहेगी। लेकिन इसने अब अपने ताजा बुलेटिन में कहा है कि 'पेलिन' 205 से लेकर 215 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से टकराएगा।

इसी तरह, मौसम विभाग ने गुरुवार को गंजम, खुर्दा, पुरी और जगतसिंहपुर जिलों में तटीय इलाके में तूफान के चलते 1.5 से 2 मीटर तक की समुद्री लहरें उठने का पूर्वानुमान व्यक्त किया था। लेकिन, आज इसने कहा कि लहरों की ऊंचाई करीब 2 से 2.5 मीटर तक होगी। इससे ओडिशा में गंजम, खुर्दा, पुरी और जगतसिंहपुर में निचले इलाकों में बाढ़ की आशंका जताई जा रही है।


पेलिन के प्रभाव के चलते ओडिशा तट पर शुक्रवार की सुबह 55 से 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली हवाएं पहले ही पहुंचनी शुरू हो गईं। मौसम विभाग ने कहा कि चक्रवात के पहुंचने के समय साउथ ओडिशा के तटीय जिलों में हवाओं की रफ्तार 205 से 215 किलोमीटर प्रति घंटे की होगी।


इस बीच, चिंतित राज्य सरकार ने कई स्तरों पर बैठक की और बदली हुई परिस्थितियों में स्थिति का जायजा लिया। राज्य सरकार जिलाधिकारियों से पहले ही समुद्र के पास निचले इलाकों से लोगों को निकालने को कह चुकी है। स्पेशल रिलीफ कमिश्नर पी.के. महापात्र ने कहा, 'हमने आदेश दिए हैं कि किसी को भी घास फूस से बने और कमजोर मकानों में रुके रहने की अनुमति नहीं दी जाए।'


आंध्र प्रदेश सरकार ने भी पेलिन के खतरों से निपटने के लिए तैयारी कर रही है। मुख्यमंत्री एन किरण कुमार रेड्डी ने चक्रवाती तूफान का सामना करने के लिए सरकार की तैयारियों की समीक्षा की और अधिकारियों को ऐहतियाती कदम उठाने का निर्देश दिया।


सचिवालय में 24 घंटे कार्य करने वाला कंट्रोल रूम बनाया गया है और जिला कलेक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे स्थिति से निपटने के लिए सभी आवश्यक उपाय करें। तटवर्टी आंध्र और रायलसीमा में राज्य बंटवारे के खिलाफ हड़ताल कर रहे बिजली कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री के साथ बातचीत के बाद तूफान के खतरे के मद्देनजर अपनी हड़ताल अस्थायी तौर पर वापस ले ली है। अन्य सरकारी कर्मचारियों ने भी घोषणा की है कि वे चक्रवाती तूफान के मद्देनजर राहत और बचाव कार्यों में हिस्सा लेंगे।


क्या है पेलिन

पेलिन का मतलब सफायर (नीलम) होता है। पेलिन थाई शब्द है। बीते 04 अक्टूबर को जापान के मौसम विज्ञान विभाग ने इसे थाइलैंड की खाड़ी में मॉनिटर करना शुरू किया। इसके बाद यह वेस्टर्न पैसिफिक बेसिन होता हुआ अंडमान सागर पहुंचा। फिर अंडमान द्वीप के मायाबंदर होते हुए पेलिन बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ गया। यहां इसे मॉनिटर करने के बाद भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इसे पेलिन नाम दिया।

পরিবর্তন এল কত সাধের

হার্মাদ তাড়ানো সাঙ্গ হল

মা মাটির সরকার হল

হল উন্নযন

এল পিপি মডেল

কৃষি হল বন্ডেড

মল হল মদের দোকান

ফুটপাথে বিযার রাম

পাড়ায় পাড়ায় বার

বেকার ভাতাও হল

হল মৌলবি ইমাম ভাতাও

বাম উচ্ছেদ হল

বিপ্লব হল

হল রাজধানী বদল

লাল হল সবূজ

আরও হল রাজকার্য

ধর্ম উন্মাদনা এখন

রাস্তায় রাস্তায় মোড়ে মোড়ে

অবিরাম চন্ডীপাঠ

হল রসগোল্লা দৌড়ের মত

রাজ্যপাল ও মুখ্যমন্ত্রীর

দ্বিমুখী প্রতিদ্বন্দ্বিতা

পুজো উদ্বোধনের

প্রতিপদ থেকে একে একে

273 টি পুজো উদ্বোধনে

উইনসটন বোল্ট বা

সচিন তেন্দুলকর

কোথায় লাগে

রাজ্যপাল হেরে ভুত

দিদির চন্ডীপাঠ

বাংলার রাজনীতি আজ

পরব হল

করপোরেট উত্সব

ধর্মীয় আস্থা

হয়ে গেল

বারোযারি রাজনীতি

ছিল রুমাল

বের হল বিড়াল

হল ভোজবাজি খূব

ভুখা বাঙ্গালি

পেট পুরে খাবে ফ্রী

সরকারি পয়সায়

এর চেয়ে বড়

পরিবর্তন পাবে না

কোথাও

মাগ্গিগন্ডা বাজারে

ইলিশ কেনার মুরোদ নেই

অথচ সরকারি ভোজে

পাতে পাতে মহার্ঘ ইলিশ

মহার্ঘ ভাতা বাকী এখনও

বেতন দিতে নাভিশ্বাস

সম্মান,পুরস্কার ,ভাতার

ছড়াছড়ি, তারপরও

সরকারি পুজো সম্মান

বাংলাদেশ ইসলামী

আমরা বরং ধর্মনিরপেক্ষ

জীবন্ত আদিবাসী

অসুর বধ

আমাদেরই উত্সব

বারোয়ারি রাজনীতি

মহিষাসুর বধ


কত জৌলুস,কত টাকা

তুলে দেই

দেবীর পায়ে

দেবী বন্দনায়

ওম ব্রাহ্মণ্যায় নমো


শিয়রে সাইক্লোন৷ সুপার সাইক্লোনের থেকেও

যা হতে পারে ভয়ানক৷

  1. News for Cyclone Phailin, Odisha, Andhra Pradesh

  2. Times of India

  3. Cyclone Phailin intensifies as it approaches India | Reuters

  4. in.reuters.com/.../india-cyclone-phailin-odisha-andhra-idINDEE9990532...

  5. 23 hours ago - In 1999, a super cyclone battered the coast of Odisha for 30 hours with... In neighbouring Andhra Pradesh, government workers, who have ...

  6. Cyclone Phailin: Heavy rains lash Andhra; Odisha seeks Army's help

  7. timesofindia.indiatimes.com/.../Cyclone-Phailin...Andhra-Odisha.../2392...

  8. 16 hours ago - Cyclone Phailin: Heavy rains lash Andhra; Odisha seeks Army's help... Heavy rains lashed parts of Andhra Pradesh on Thursday under the ...

  9. Odisha, Andhra Pradesh brace for Cyclone Phailin - The Times of ...

  10. timesofindia.indiatimes.com/.../Odisha-Andhra-Pradesh...Cyclone-Phailin...

  11. 1 day ago - Odisha Thursday raised its warning level as cyclonic storm "Phailin" over east central Bay of Bengal was gaining strength and moving slowly ...

  12. Cyclone Phailin: Sea along Andhra, Odisha coast will become ...

  13. timesofindia.indiatimes.com/.../Cyclone-Phailin...Andhra-Odisha.../2390...

  14. 1 day ago - BHUBANESWAR: Cyclone "Phailin" which was to make landfall two days... The sea along and off Odisha and north Andhra Pradesh coast ...

  15. Cyclone Phailin intensifies, moves closer towards Andhra Pradesh ...

  16. zeenews.india.com/.../cyclone-phailin-intensifies-moves-closer-t...

  17. by Ajith Vijay Kumar - in 100 Google+ circles

  18. 10 hours ago - Cyclone Phailin over the Bay of Bengal slightly intensified further and moved ... It is expected to cross north Andhra Pradesh andOdisha coast ...

  19. Cyclone Phailin, half the size of India, set to hit Odisha, Andhra ...

  20. indiatoday.intoday.inIndiaEast

  21. Cyclone Phailin, half the size of India, set to hit Odisha, Andhra Pradesh coasts. India Today Online Bhubaneswar, October 11, 2013 | UPDATED 11:48 IST ...

  22. Cyclone Phailin approaches Odisha, Andhra Pradesh; states on ...

  23. www.ndtv.com/.../cyclone-phailin-approaches-odisha-andhra-pradesh-st...

  24. 6 hours ago - #Phailin just officially reached Category 5 status. 140kts, 918mb central pressure. Same as 1999 cyclone at its peak. http://t.co/MNJcggKEkd.

  25. AP braces for cyclone 'Phailin' - The Hindu

  26. www.thehindu.comNewsNational

  27. 17 hours ago - The authorities in 23 cyclone-prone districts of Odisha and Andhra ...storm, cyclone Phailin, Odisha red-alert, Andhra Pradesh red-alert, Bay of ...

  28. Cyclone Phailin: Odisha braces for 1999 supercyclone revisit ...

  29. www.rediff.comNews

  30. 9 hours ago - Cyclone Phailin UPDATES | Cyclone Phailin: Odisha braces for 1999... to move in to Odisha and Andhra Pradesh in view of cyclone Phailin.


Ashok Kumar Pandey updated his cover photo.

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Ak Pankaj via ASUR Adivasi Wisdom Documentation Initiative
The tribal belief is part of an oral tradition. Vandana Tete, who has been documenting unwritten tribal folklore, said: "Tribal tales are mostly in oral form and from various Santhal, Asur and Porku folktales we have figured out that Mahishasur was a king and he was killed by Durga. The incident has never been revered in our community. Civilized society should give equal place to all perspectives."

আজ মহাসপ্তমী৷ শাস্ত্রমতে পুজো শুরু আজ থেকে৷ সপরিবারের উমার পিতৃগৃহে প্রবেশের দিন৷ শুক্রবার সকাল থেকেই দেবীর নবপত্রিকাস্নান ও প্রাণ প্রতিষ্ঠা দিয়ে মুখ্য আচার শুরু হয়েছে৷


''ওঁ আগচ্ছ মদ গৃহে দেবী অষ্টাধি শক্তিভিসহ,পূজাং গৃহান বিধিবত্ সর্বকল্যাণকারিণী''

এতদিন পরে বাপের বাড়ি ফিরেছে মেয়ে৷ সুতরাং শুচি শুদ্ধ না করে মেয়েকে কি ঘরে তোলা যায়৷ তাই ভোর হতেই শুরু হয় যায় নবপত্রিকা স্নান৷ একে একে হয়েছে মহাস্নান, অষ্ট কলস স্নান, আবাহন, চক্ষুদান, প্রাণ প্রতিষ্ঠা৷ তারপর পুরোহিতের মন্ত্রোচ্চারণ৷ ঢাকের আওয়াজ৷


দুর্গা পুজায় সপ্তমী তিথিতে অনুষ্ঠিত হয় সপ্তমীবিহিত পূজা। এর মধ্যে নবপত্রিকা প্রতিষ্ঠা অন্যতম। নবপত্রিকায় নয় ধরনের বৃক্ষ ও লতার সমাহার করা হয় যা নয়জন দেবীকে নির্দেশ করে-- ১. কলা গাছ : দেবী ব্রাক্ষ্মণী। ২. কালা কচু : দেবী কালী। ৩. হলুদ গাছ : দেবী দুর্গা। ৪. জয়ন্তী লতা : দেবতা কার্তিক। ৫. বেল গাছ : ভগবান শিব। ৬. ডালিম গাছ : দেবতা রক্তদানটিকা। ৭. মানকচু : দেবী চামুণ্ডা। ৮. ধান গাছ : দেবতা লক্ষ্মী। ৯. অশোক গাছ : দেবতা শোকরাহিতা।


শাস্ত্রমতে সপ্তমী থেকে পুজো শুরু হলেও, উত্‍সব প্রিয় বাঙালির কাছে ষষ্ঠী থেকে বেজে গিয়েছে পুজোর ঘণ্টা৷ মণ্ডপে মণ্ডপে দর্শনার্থীদের ভিড় দেখা গিয়েছে৷ শহরজুড়ে আলোর রোশনাই৷ রাতভর শুধুই ঠাকুর দেখা৷

থিম-সাবেকিয়ানা-আড্ডা-প্রেম-বন্ধুত্ব-খাওয়া-দাওয়া৷ সব মিলিয়ে দেদার মজা করা পুজোর এই চারটে দিন৷

समुद्री तूफ़ान की आशंका से सेना सतर्क

शुक्रवार, 11 अक्तूबर, 2013 को 16:53 IST तक के समाचार

ओडीशा और आंध्र प्रदेश में समुद्री तूफान पायलिन की आशंका को देखते हुए रक्षामंत्री एके एंटनी ने तीनों सेनाओं को पूरी तरह सतर्क रहने के निर्देश दे दिए हैं.

पायलिन के शनिवार की शाम तक ओडीशा और आन्ध्रप्रदेश के तटों तक पहुंचने की संभावना है.

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इससे पहले, ओडीशा और आंध्रप्रदेश सरकारों ने रक्षा मंत्रालय से समुद्री तूफान को देखते हुए बचाव एवं राहत अभियान चलाए जाने की मांग की गई थी. इसके बाद रक्षा मंत्री एंटनी ने रक्षा सचिव से इस मुद्दे पर चर्चा की.

दूसरी ओर, मौसम विभाग की ओर से मिली जानकारी के अनुसार समुद्री तूफ़ान पायलिन से दक्षिणी ओडीशा के सर्वाधिक प्रभावित होने की आशंका है. तूफ़ान की वर्तमान दिशा उत्तर-पश्चिम है. इसलिए इस तूफ़ान के ओडीशा के बाद छत्तीसगढ़ की तरफ़ बढ़ने की संभावना है.

भुवनेश्वर के मौसम विभाग के निदेशक शरत साहू ने बीबीसी से कहा, "समुद्री तूफ़ान 12 अक्तूबर की शाम को उत्तरी आंध्र प्रदेश और ओडीशा के पास से गुज़रेगा."साहू के अनुसार, "ओडीशा से गुज़रते हुए इस तूफ़ान की गति 210 से 220 किलोमीटर तक रहने की संभावना है. तट के क़रीब आने पर ठीक-ठीक पता चलेगा कि तूफ़ान की तीव्रता कितनी है."

इस रफ्तार के तूफ़ान से कच्चे मकान, पुरानी इमारतें, रेलरोड ट्रैफ़िक, बिजली के खंभे प्रभावित हो सकते हैं. इसके अलावा इसकी वजह से बाढ़ आने और खेती को भी भारी नुक़सान पहुँचने की आशंका है.

साल 1999 में 29 अक्तूबर को तूफ़ान आया था जिसकी रफ़्तार 250 से 260 किलोमीटर प्रति घंटा थी. इसकी वजह से क़रीब 10,000 लोग मारे गए थे.

साहू ने कहा, "हमें इस तूफ़ान से जुड़े आँकड़े मिल रहे हैं. हमें रडार डाटा मिलना भी शुरू हो जाएगा फिर हम इसके बारे में ज्यादा सही अनुमान लगा सकेंगे."

उनके अनुसार ओडीशा का मौसम विभाग राज्य सरकार से लगातार संपर्क में है, वे अपने बुलेटिन को भी लगातार अपडेट कर रहे हैं और राज्य के उच्च अधिकारियों को एसएमएस के माध्यम से लगातार अपडेट दे रहे हैं.

इस तूफ़ान की दिशा के आधार पर दक्षिणी ओडीशा के गंजाम ज़िले के गोपालपुर, कंधमाल ज़िले के फूलबानी और सोनपुर ज़िले के सर्वाधिक प्रभावित होने की आशंका है. इऩ इलाकों में क़रीब दो से तीन लाख लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं.

ख़तरा

समुद्री तूफ़ान पायलिन के और मज़बूत होने के कारण तटीय आंध्र प्रदेश और ओडीशा के 23 ज़िलों में ख़तरा बढ़ गया है. इस कारण इलाक़े में शुक्रवार से लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का काम शुरू कर दिया गया है.

भारतीय मौसम विभाग ने बताया कि शुक्रवार तड़के भारतीय समयानुसार 2.30 बजे तूफ़ान का केंद्र पारादीप तट से दक्षिण-पूर्व में क़रीब 590 किमी की दूरी पर बना हुआ था. शनिवार शाम तक पायलिन के कलिंगापट्टनम और पारादीप तट को पार करने की संभावना है.

मौसम विभाग ने तटीय इलाक़ों से लोगों को पूरी तरह से निकालने का सुझाव दिया है.

तूफ़ान के कारण तटीय इलाक़ों में 205 से 215 किमी प्रति घंटा की गति से हवाएं चल सकती हैं, जिसके कारण ओडीशा और तटीय आंध्र प्रदेश में भारी तबाही मच सकती है.

दोनों राज्यों में आपातकालीन स्थिति से निपटने और राहत कार्य के लिए सेना को तैयार रहने के लिेए कहा गया है.

तूफ़ान की चपेट में आने वाले इलाकों में राहत कार्य चलाने के लिए हेलीकॉप्टर और भोजन के पैकेट तैयार रखे गए हैं.

मौसम विभाग ने शुक्रवार से समुद्र में मछली पकड़ने पर पूरी तरह से रोक लगाने और मछुआरों को समुद्र में न जाने की सलाह के साथ रेल और सड़क परिवहन के संचालन में सावधानी बरतने का भी सुझाव दिया है.

मौसम विभाग के मुताबिक़ तूफ़ान के कारण शनिवार की सुबह से तटीय ओडीशा और आंध्र प्रदेश के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में बेहद भारी बारिश होगी. इन राज्यों के आसपास के इलाक़ों में भी बारिश होगी.

इन इलाक़ों में शुक्रवार की सुबह से 45 से 55 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से हवाएं चल रही है. पायलिन के क़रीब आने के साथ ही हवाओं की गति बढ़ेगी और शनिवार की शाम तक इनकी गति 215 किमी प्रति घंटे तक पहुंच सकती है.

मौसम विभाग के मुताबिक़ तूफ़ान के कारण समुद्र में दो से ढाई मीटर ऊंची लहरें उठेंगी. इस कारण ओडीशा के गंजाम, खुर्दा, पुरी और जगतसिंहपुर और आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम ज़िले के निचले इलाक़ों में बाढ़ की आशंका है.

पिछले साल नवंबर में आए नीलम तूफ़ान के कारण तटीय इलाक़ों में भारी तबाही मची थी. लेकिन माना जा रहा है कि पायलिन तूफ़ान नीलम से ज्यादा ताक़तवर है. इस कारण भारी तबाही की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ उपग्रह से ली गई तस्वीर में बंगाल की खाड़ी में बने तूफ़ान का आकार भारत के आकार का क़रीब आधा है.

एजेंसी ने लंदन स्थित तूफ़ान पर नज़र रखने वाली एजेंसी ट्रॉपिकल स्टॉर्म रिस्क के हवाले से बताया है कि फ़ैलिन कैटेगरी-4 का तूफ़ान है जबकि सबसे ताक़तवर तूफ़ान को कैटेगरी-5 में रखा जाता है.

इस बीच, प्रभावित इलाक़ों में सरकार ने अपने कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी है और आपदा प्रबंधन दल को तैयार रहने के लिए कहा गया है.

गुरुवार को ओडीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा था कि तूफ़ान से जन-जीवन और संपत्ति को नुक़सान पहुंचने की आशंका है.

उन्होंने कहा कि पायलिन से प्रभावित होने वाले ज़िलों में लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के साथ प्रशासन को सभी ज़रूरी उपाय करने को कहा गया है.

पटनायक ने रक्षा मंत्री को पत्र लिखकर आपदा से निपटने के लिए सेना को तैयार रखने को कहा है.

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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/10/131011_sarat_sahoo_phailine_rns.shtml


শিয়রে সাইক্লোন৷ সুপার সাইক্লোনের থেকেও যা হতে পারে ভয়ানক৷


ভূবনেশ্বর, কলকাতা ও নয়াদিল্লি: শিয়রে সাইক্লোন৷ সুপার সাইক্লোনের থেকেও যা হতে পারে ভয়ানক৷ শনিবার সন্ধ্যায় ওড়িশা উপকূলে আছড়ে পড়তে পারে ঘূর্ণিঝড় পিলিন৷ পূর্বাভাস দিল্লির মৌসম ভবনের৷ পিলিনের কবলে পরতে পারে অন্ধ্র উপকূলও৷ কড়া সতর্কতা জারি ওড়িশা ও অন্ধ্রপ্রদেশে৷ঘূর্ণিঝড়ে ব্যাপক ক্ষয়ক্ষতি হতে পারে ওড়িশা ও অন্ধ্রপ্রদেশের৷মৌসম ভবন জানিয়েছে, এই ঝড় ভারী বস্তুকেও উড়িয়ে নিয়ে যাওয়ার শক্তি রাখে। যে পথ দিয়ে পিলিন যাবে সেখানকার যোগাযোগ ব্যবস্থা বেহাল হয়ে যাওয়ারও আশঙ্কা রয়েছে। আবহাওয়া দফতর জানিয়েছে, উপকূল এলাকায় বন্যা পরিস্থিতি তৈরি হতে পারে।তবে পশ্চিমবঙ্গে পিলিনের প্রভাব পড়বে না বলে জানিয়েছে আবহাওয়া দফতর৷

বঙ্গোপসাগরের ওপর তৈরি হওয়া পিলিন এখন শক্তি বাড়িয়ে প্রবল ঘূর্ণিঝড়ের রূপ নিয়েছে৷ সাম্প্রতিককালে যা সবচেয়ে শক্তিশালী ঘূর্ণিঝড়৷ ঘণ্টায় ২২০ থেকে ২৩৫ কিলোমিটার বেগে আছড়ে পড়তে পারে পিলিন৷ যা ১৯৯৯ সালের সুপার সাইক্লোনের থেকেও ভয়বাহ রূপ নিতে পারে বলে আশঙ্কা মৌসম ভবনের৷

এই মুহূর্তে পূর্ব-মধ্য বঙ্গোপসাগরের ওপর রয়েছে পিলিন৷ পারাদ্বীপ থেকে ঠিক ৫২০ কিলোমিটার দূরে৷

শুক্রবার সকাল থেকেই ঘণ্টায় ৬৫ কিলোমিটার বেগে ঝোড়ো হাওয়া বইতে শুরু করে ওড়িশা উপকূলে৷ শুরু হয়েছে বৃষ্টি৷ মৌসম ভবনের পূর্বাভাস, ওড়িশার গোপালপুর, পারাদ্বীপ এবং অন্ধ্রপ্রদেশের কলিঙ্গপত্তনম পিলিনের কবলে পড়তে পারে৷ ওড়িশা ও অন্ধ্র উপকূল খালি করে দেওয়া হয়েছে৷ পুরীতে চূড়ান্ত সতর্কতা জারি৷ সতর্কতা জারি হয়েছে পুরীতে থাকা পর্যটকদের উদ্দেশেও৷ সমুদ্রে যেতে নিষেধ করা হয়েছে মত্স্যজীবীদের৷ বিপর্যয় মোকাবিলা দলকে প্রস্তুত থাকতে নির্দেশ দিয়েছেন ওড়িশার মুখ্যমন্ত্রী নবীন পট্টনায়ক৷ উপকূল এলাকায় কন্ট্রোল রুম খুলেছে অন্ধ্র সরকারও৷ শনিবার সন্ধাতেই পিলিন উত্তর-পশ্চিমে এগিয়ে কলিঙ্গপত্তনম ও পারাদ্বীপের মধ্যে দিয়ে অন্ধ্রপ্রদেশ ও ওড়িশার উপকূল অতিক্রম করতে পারে বলেও জানানো হয়েছে।

যদিও আলিপুর আবহাওয়া দফতর জানিয়েছে, রাজ্যে পিলিনের প্রভাব পড়বে না৷ তবে পূর্ব মেদিনীপুর, উত্তর ও দক্ষিণ ২৪ পরগনার উপকূলবর্তী এলাকায় অষ্টমীর রাতে বৃষ্টি হতে পারে৷ সতর্কতা জারি হয়েছ দীঘা, মন্দারমণি, শঙ্করপুরে৷ তবে কলকাতায় এখনই বৃষ্টির সম্ভাবনা নেই বলেই জানিয়েছে আবহাওয়া দফতর৷

ইতিমধ্যেই নৌ সেনা ও বায়ুসেনার সাহায্য চেয়েছে ওড়িশা সরকার৷ উপকূল এলাকায় মোতায়েন করা হয়েছে বিপর্যয় মোকাবিলা দল৷ প্রস্তুত রাখা হয়েছে হেলিকপ্টার এবং ত্রাণসামগ্রী৷ প্রতিরক্ষামন্ত্রী একে অ্যান্টনি সেনা বাহিনীকে ওড়িশা ও অন্ধ্রে উদ্ধারের কাজে প্রস্তুত থাকার নির্দেশ দিয়েছেন। সেইমতো প্রস্তুতি নেওয়া হয়েছে বলে সেনাবাহিনী সূত্রে জানানো হয়েচে। মৌসম ভবন সূত্রে খবর, পরিস্থিতি মোকাবিলায় রাজ্যগুলিকে সবরকম সহায়তার আশ্বাস দিয়েছে কেন্দ্র৷

http://www.abpananda.newsbullet.in/national/60-more/42285-2013-10-11-09-18-55

ইহাই কি ধর্ম নিরপেক্ষতা?


এবার সেরা পুজোর পুরস্কার দেবে রাজ্য সরকারও


এই সময়: 'সেরা পুজো'র প্রতিযোগিতার আয়োজনে বেসরকারি প্রতিষ্ঠানগুলির সঙ্গে এবার রাজ্য সরকারও নামল৷ কলকাতা-সহ প্রতিটি জেলাতেই এই প্রতিযোগিতার আয়োজন করা হচ্ছে৷ মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় বুধবার, পঞ্চমীর বিকালেই এই প্রতিযোগিতার সিদ্ধান্ত নেন৷ এর নাম দেওয়া হয়েছে 'বিশ্ব বাংলার সেরা পুজো'৷ মহাষ্টমীর দিন বিজয়ীদের নাম ঘোষণা করা হবে৷ মুখ্যমন্ত্রী নিজেই কিছুদিন আগে বাংলার ব্র্যান্ডকে দেশ-বিদেশের বাজারে তুলে ধরতে 'বিশ্ব বাংলা' গড়েছেন৷ এর লোগো এঁকেছেন তিনিই৷ বাংলার কুটির শিল্পকে বাজারজাত করাই এই ব্র্যান্ডের লক্ষ্য৷


পুজোতেও এই প্রতিযোগিতার মাধ্যমে রাজ্যের ক্ষুদ্র ও কুটির শিল্পকে বিচারকের মাপকাঠিতে আগ্রাধিকার দেওয়া হবে৷ কোন মণ্ডপসজ্জায় বাংলার কুটির শিল্প কতটা প্রাধান্য পেল তা দেখা হবে৷ এছাড়া পুজো কমিটিগুলি মণ্ডপ থেকে কী সামাজিক বার্তা দিচ্ছে তাও বিচারকরা দেখবেন৷ বিশেষ করে সরকারের 'কন্যাশ্রী', 'যুবশ্রী' বা 'জল ধরো জল ভরো'র মতো প্রকল্পগুলি নিয়ে বার্তা দেওয়া চেষ্টা হলে সেগুলি বিশেষ গুরুত্ব পাবে বিচারকদের কাছে৷ তবে পুরস্কারমূল্য এখনও স্থির হয়নি৷


সরকারি সূত্রের খবর, কলকাতায় কুড়িটি পুজো কমিটিকে এই পুরস্কার দেওয়া হবে৷ প্রতিটি জেলায় এই পুরস্কারের জন্য ১০টি করে পুজো কমিটিকে নির্বাচন করা হবে৷ কলকাতার জন্য মুখ্যমন্ত্রী নিজেই বিচারকমণ্ডলী গড়ে দিয়েছেন৷ এই কমিটিতে রয়েছেন শুভাপ্রসন্ন, যোগেন চৌধুরী, ইন্দ্রনীল সেন, রাজ্যের তথ্য ও সংস্কৃতিসচিব অত্রি ভট্টাচার্য, নারী কল্যাণসচিব রোশনী সেন ও ক্ষুদ্র ও কুটির শিল্পসচিব রাজীব সিনহা৷ প্রতিটি জেলায় আলাদা করে নির্বাচকমণ্ডলী গড়ার জন্য জেলাশাসকদের নির্দেশ দেওয়া হয়েছে৷


Ipsita Pal
sedin group e eniye tarko hoyechhilo, ekhane sei niyeo lekha hoyehche :http://www.ebela.in/epaperimages/11102013/11102013-md-hr-4/4337515.jpg

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www.ebela.in



India Untouched: Darker side of India: 1 [HQ]


http://www.youtube.com/watch?v=uM85zVt6xCU


অন্ধ্র-ওড়িশায় ধেয়ে আসছে সাইক্লোন `ফাইলিন`, ২০০ কিমি আছড়ে পড়বে কাল, রাজ্যের পর্যকরা ফিরে পড়ছেন

http://zeenews.india.com/bengali/nation/very-severe-cyclone-phailin-heads-for-odisha-andhra-pradesh-at-wind-speed-of-200-km-per-hour_17096.html

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Asur tribals mourn 'martyr' Mahishasur

Jaideep Deogharia, TNN | Oct 11, 2013, 01.12 AM ISTRANCHI: As Hindus across the world observes Durga Puja or Navratri, a small group of tribals inJharkhand are in mourning. While most celebrate Goddess Durga slaying the Demon King, the Asur tribe from Jharkhand and West Bengal will observe Mahishasur Martyrdom Day on Mahanavami and remember how an "outsider" used trickery and illusion to kill their ancestor.


Asurs believe they are descendants of 'Hudur-Durga' -- the Santhal name for Mahishasur -- and do not worship any god. They say that the Devi Mahatmya story of the Markandeya Purana, which describes the birth of Durga and her nine-day battle with Mahishasura, is biased. According to them, the birth of Durga from the conjoined powers of Brahma, Vishnu and Shiva was a "crooked conspiracy".


The tribals now have help from experts and academics to bring their perspective to the forefront. Started three years ago in Kassipore area of Purulia district in West Bengal to search for tribal roots of Indian mythology, an organization called 'Shikar Dishum Kherwal Veer Lokachar Committee' has gone from strength to strength and now invites tribal counterparts from neighbouring states to Purulia later this month to help out with their mission.


A team from Jharkhand -- comprising Sushma Asur, Vandana Tete, Ashwining Pankaj and other new-age activists researching tribal literature -- are set to participate in the programme this year. Sushma, a member of the primitive tribe group (PTG), features prominently on a Facebook page titled 'Asur Aadivasi Documentation Initiative'. She urged other communities - particularly those in the power corridors from 'Akhra', a platform for tribals to promote their art, culture and literature -- to stop celebrating the assassination of their ancestor with "such grandeur".


"Ravan and Mahishasur are our ancestors and the celebration of their killing by trickery must not continue the way it has for centuries," she said. "The so-called upper caste always had a grip over documentation of Indian mythology and that is the reason why the tribal perspective never got highlighted."


The tribal belief is part of an oral tradition. Vandana Tete, who has been documenting unwritten tribal folklore, said: "Tribal tales are mostly in oral form and from various Santhal, Asur and Porku folktales we have figured out that Mahishasur was a king and he was killed by Durga. The incident has never been revered in our community. Civilized society should give equal place to all perspectives."


Admitting that comprehensive research has not been done to look into the real history of mythological events, Tete said the ritual of Durga Puja was sponsored by the erstwhile East India Company for the zamindar families of Bengal to create a socio-religious divide among the tribals and the upper caste.


Today, few Asurs, especially the younger generation, know who Mahishasura was and what he means to their community and the activists hope to change that. Soon after the gathering in Purulia, the tribals will congregate at Jawaharlal Nehru University in New Delhi on October 26 to raise their voice against the "centuries-old systematic repression of their culture and religion".

http://timesofindia.indiatimes.com/city/ranchi/Asur-tribals-mourn-martyr-Mahishasur/articleshow/23927688.cms

Jagadish Roy
copy from saradinduএই দশহরাই বাংলায় "বিজয়া দশমী"
বাংলায় এই দেবায়ন সুরু হয় হর্ষবর্ধনের মৃত্যুর পর। কনৌজ তখন বৈদিক ধর্মের প্রধান ঘাঁটিতে পরিণত । কুমারিল ভট্টের নেতৃত্বে ব্রাহ্মণেরা পৈশাচিক হত্যালীলায় মেতে ওঠে। হাজার হাজার বৌদ্ধ শ্রমণের মাথা ধড় থেকে নামিয়ে দেওয়া হয়। জ্বালিয়ে দেওয়া হয় বৌদ্ধ শাস্ত্র রাশি। অনেক বৌদ্ধ শ্রমণ পুঁথিগুলি বাঁচানোর জন্য হিমালয়ের রাজ্যগুলিতে আশ্রয় নিতে বাদ্ধ হয়।
কনৌজ তখন বিজয়ী ব্রাহ্মণদের রাজধানী। কূমারিল ভট্ট তাঁদের প্রধান। কূমারিল ভট্ট মীমাংসা সূত্রের উপড় একটি কমেন্টরই লেখেন। এই সময় থেকে সারা ভারতবর্ষে কনৌজ থেকে ব্রাহ্মণ সরবরাহ করা হতো। অসুর বাংলায় এই সময় থেকেই ব্রাহ্মণের চালান শুরু হয়।
বিদ্যাসাগর মহাশয়ের বহুবিবাহ এবং সম্বন্ধ নির্ণয় গ্রন্থে বাংলায় চালান হওয়া ৫জন ব্রাহ্মণ ও তাদের চাকরের তালিকা দেওয়া হয়েছে ঃ
১) ভট্টনারায়ণ
২) শ্রীহর্ষ
৩) দক্ষ
৪) বেদগর্ভ
৫) ছান্দড়
এদের সঙ্গে আসা চাকরগুলো যথাক্রমে ঃ
১) মুকুন্দ ঘোষ
২) বিরাট/দাশরথী গুহ
৩) দশরথ বসু
৪) কালিদাস মিত্র
৫) পুরুষোত্তম দত্ত
বল্লাল সেন অসুর বাংলাকে কৌলীন্য প্রথার চোলাই গেলাতে শুরু করেন এবং বাংলার বিভিন্ন অঞ্চলে ভুদেবতা ও তাদের ভৃত্যদের ভূদান, গাঁই দান, গোত্র দান করে দেব সংস্কৃতি ছড়িয়ে দেবার ব্যবস্থা করেন। ভুদেবতারা ১৫শ শতকে বাংলায় এই দশেরা বা দশহরা কে নতুন কলেবরে প্রতিষ্ঠা করার তোড়জোড় শুরু করেন।
বাংলায় প্রথম দুর্গা পূজা ঃ
ইংরাজী সংবাদপত্র- এর ২৮/১০/১৯৬১ সালের চিঠিপত্র কলমে শ্রী সুরথ চক্রবর্তী নামে এক ব্যক্তির একটি চিঠি প্রকাশিত হয়। তিনি দাবি করেন যে, রাজসাহী জেলার তাহেরপুরে রাজা কংস-নারায়ণ পঞ্চদশ শতাব্দীতে প্রথম দুর্গোৎসব করেন। সেই সময় কবি কৃত্তিবাস ওঝা নাকি রাজা কংসনারায়ণের সভাকবি ছিলেন। কবি কৃত্তিবাস রচিত বাংলা রামায়ণে এই দুর্গাপূজাকে "অকাল বোধন" হিসাবে উল্লেখ করা হয়েছে।
ডাঃ দীনেশচন্দ্র সেনের উল্লেখ করেনঃ
'কেহ কেহ অনুমান করেন, কৃত্তিবাস তাহেরপুরে রাজা বা জমিদার কংস-নারায়ণের সভায় উপস্থিত হইয়াছিলেন। কিন্তু, কংস-নারায়ণের শেষে যে বংশাবলী পাওয়া গিয়াছে, তাহাতে তাঁহাকে ষোড়শ শতাব্দীর লোক বলিয়া অনুমিত হয়। সুতরাং, 'রাজা কংস-নারায়ণ পঞ্চদশ শতাব্দীতে প্রথম দুর্গোৎসব করেন বলে জানা যায়', এই কথাটার মধ্যে দিনাঙ্কের একটা ভালো রকম গণ্ডগোল পাওয়া যাচ্ছে।
মুসলমান বিজয়ের/আক্রমণের পর হিন্দু রাজা গণেশের গৌড়ের সিংহাসনে আরোহন করেন। তিনি ১৩৯৮ খ্রী. পর্যন্ত রাজত্ব করেছিলেন। কবি কৃত্তিবাস জন্মেছিলেন ১৩০০ খ্রিষ্টাব্দের আশেপাশে। তিনি হয়ত এই সময়ে রাজা গণেশের সভায় এসে থাকবেন।

Apna Bihar
बड़ी खबर : बाइस नवंबर के बाद जदयू में बगावत के संकेत ! बिजेंद्र यादव संभाल सकते हैं सीएम की कुर्सी
पटना(अपना बिहार, 11 अक्टूबर 2013) – आगामी 22 नवंबर के बाद सत्तारुढ जदयू में बगावत की तैयारियां शुरु हो गयी हैं। विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अगर चारा घोटाला मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की संलिप्तता की पुष्टि होती है और अदालत द्वारा सीबीआई के हलफ़नामे को अस्वीकार कर दिया जाता है तब ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार पर मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। read more on www.apnabihar.org

শঙ্কর রায়ের একটি লেখা থেকেই তুলে দিলাম –

"Imagine Calcutta in 1757, when it looked like a village with huge vacant spaces strewn haphazardly. A grandiloquent Durga puja was underway. The venue was a newly-built pucca house built upon a four-acre strip by the yet-to-be crowned Nabakrishna Deb, who named the palatial residence as Shobhabazar Rajbari.


There was a VVVIP at the centre of a podium, an Englishman, colonel Robert Clive of the English East India Company (EEIC), who had conquered Bengal by defeating Nawab Mirza Muhammad Siraj-ud-doula in the Battle of Plassey on June 23 that year.


Clive was the chief guest. Religious scruples were on the wayside and nautch girls, mostly from Muslim gharanas, entertained the Englishmen attending the dance-parties. For the new rulers, beef and ham were bought from Wilson's Hotel, let alone unlimited drinks that inebriated them.


Unbelievable as it may seem, Deb had the nod from orthodox Sanskrit pundits in bringing Clive, a firinghee, to grace a Hindu religious event in those days. Literary historian and poet, Abanti Kumar Sanyal, throws light on the situation in a small book, Baboo. Clive's Sanskrit tutor was Jagannath Tarkapanchanan, according to Sanyal, submitted to Clive for a handsome pension. As a result, there was no clamour from the erudite-but-conceited Sanskrit pundits of Bhatpara (now in the North 24 Parganas district).


Deb was conferred the title of 'Maharaja' by Warren Hastings in 1766 for his unflinching loyalty and services rendered to the company. This included the drafting of the infamous 1775 agreement between the EEIC and a group of 'aggrieved' royal officials, for dethroningSiraj-ud-Doula, the last king of greater Bengal. The agreement was signedat the palace of Jagat Seth, one of the signatories and the largest banker of Asia in those days (financially several times larger than the first ten bankers of Britain together). Other signatories included Siraj-ud-doula's commander-in-chief, Mir Jaffar, Roy Durlabh and Umichand. Also present was the Maharaja of Krishnagar, portrayed as a patron of art and culture, whom social historian Benoy Ghosh described as the initiator of 'dependent and colonial culture', hybridised with feudal grandeur.


The conspirators alleged that the young Nawab had instituted an unbearable misrule and was atrociously lascivious, making beautiful damsels insecure, and was a drunkard. This canard was later refuted by Luke Scrafton, the director of the East India Company between 1765 and 1768, "The name of Siraj-ud-daula stands higher in the scale of honour than does the name of Clive. He was the only one of the principal actors who did not attempt to deceive." He wrote that the young Siraj had taken an oath on the Quran at his father's deathbed that he would thenceforth not touch liquor – and that he had kept his promise.


The conspirators gradually became a symbol of hatred when anti-colonial sentiment grew during the national freedom struggle. It is said that the land Deb's house was built on belonged to Sobharam Basak, who was much wealthier, and that Deb pressurised Basak using his proximity to Clive. The new palace had a big dancing hall, an entrance where shehnai tunes used to welcome the guests, a large library of Sanskrit, Farsi, Arabic and English titles, and a mammoth dinner room, apart from scores of living rooms. Much of this is now on the pages of history textbooks.


Deb's ceremony of 1757 might have set a pattern for the Durga puja, which became a fashion andstatus symbol among the upcoming merchant class of Kolkata. Deb and his descendants, like Raja Radhakanta Deb, considered the aliens attending the family Durga Puja as an index of social prestige.


Over two centuries, the festival turned into a socio-religious celebration, more dispersive perhaps than Ganesha Chaturthi in Maharashtra or Dussera in northern India".

http://www.dnaindia.com/lifestyle/report_durga-pujas-colonial-roots_1754517

(Source: Biplab Pal)

Durga puja's colonial roots - Lifestyle - dna

The tradition of community Durga Puja in Kolkata was started by Nabakrishna Deb, a key conspirator against Nawab Siraj-ud-Doula, writes Sankar Ray. - Lifestyle dna

DNAINDIA.COM

2 hours ago · Mumbai, Maharashtra


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Status Update

By Harichand Thakur

মুলনিবাসী রাজা অসুর

দুর্গা উৎসব না অসুর নিধন যজ্ঞ ? কে এই অসুর ? সত্যিই কি অসুর অশুভশক্তির প্রতিক ? নাকি প্রকৃত অশুভশক্তির লোকেরা তাদের প্রতিপত্তি প্রতিষ্ঠিত করার জন্য মুলনিবাসী মহান রাজাকে বা তাদের বংশধরদের মহান কর্মকে লুকিয়ে রেখে উল্টা তাদের বদনাম করছে ?

এ বিষয়ে সঠিক জ্ঞান অর্যনের জন্য -

-মনি মোহন বৈরাগীর লেখা বই-

বৌদ্ধ ও মতুয়া ধর্মের আলোয় অবৈদিক ধর্মীয় সামাজিক সংস্কৃতি-এর থেকে তুলে দিলাম (পৃ:নং (17,18)

বিষয়:- অতীত অন্ধকারে চাপা পড়া ভারতীয় ইতিহাস ও ধর্মসংস্কৃতি-র সমীক্ষা ও পর্যালোচনা


প্রাগার্য তাম্র যুগে অর্থাৎ ৫০০-১৫০০ খ্রীষ্টপূর্বাব্দ পর্যন্ত সময়ে সাম্যবাদী পূর্ববুদ্ধ সনাতনী ভারতবর্ষের অতীত ইতিহাস বড়ই অন্ধকারাচ্ছন্ন । কারণ স্বার্থান্বেষী নর্ডিক আর্যরা ভারতীয় সনাতনী পূর্ববুদ্ধদের যাবতীয় ইতিহাসই ধ্বংস করে দেয় । তবে নর্ডিক আর্য আগমনের বহু পূর্বে অর্থাৎ খ্রীষ্টপূর্ব প্রায় ৫০০ বৎসর পূর্বে আলপাইন মানবগোষ্ঠীর পূর্ববুদ্ধ সনাতন ধর্মাবলম্বী মানুষেরাই ভারতবর্ষের সিন্ধুনদকে কেন্দ্র করে যে নগরকেন্দ্রিক সভ্যতার বিকাশ ঘটিয়েছিলেন উহাই সিন্ধু সভ্যতা নামে খ্যাত । এই আলপাইন মানবগোষ্ঠীর এক বৃহত্তম অংশকে আবার অসুর জাতিও বলা হয় । ভারতীয় প্রাচীন হিন্দুধর্ম গ্রন্থগুলিতে বারবারই এই অসুর জাতির উল্লেখ পাওয়া যায় । আবার প্রাচীন পারস্যের অসুর সভ্যতাই ছিল বিশ্বের এক বিস্ময় । কারণ একথা ঐতিহাসিক ভাবেই সত্য যে তাম্রযুগে আবার প্রাচীন পারস্যের এই অসুর সভ্যতাই হল বিশ্বের প্রথম নগরকেন্দ্রিক সভ্যতা । 'আর যে সময়ে তথাকথিত পশুপালক নর্ডিক আর্যরা ছিলেন ভারতীয় অসুরদের কাছে যাযাবর পশু-মানব বলেই গণ্য।'(ভোলগা থেকে গঙ্গা; রাহুল সাংকৃত্যায়ন; অষ্টম মুদ্রণ;সেপ্টেম্বর'২০০৫;পুরুধান; পৃ:৬৫) সিন্ধু সভ্যতা প্রবর্তনের সমসাময়িককালে এই অসুর জাতির এক বৃহত্তম অংশ পূর্ব ভারতেও এক নতুন সভ্যতা প্রবর্তন করেন । বগুড়ার করতোয়ানদী কূলে অবস্থিত মহানগড়ের ধ্বংসাবশেষই এ সত্যের প্রকৃত প্রমাণ । তাই দেখা যায়, পশ্চিম ভারতে সিন্ধুনদকে কেন্দ্র করে আলপাইন মানবগোষ্ঠীর অসুর জাতির দ্বারা যেমন গড়ে উঠেছিল নগরকেন্দ্রিক সিন্ধু সভ্যতা, ঠিক সমসাময়িক কালে অনুরূপভাবে পূর্বভারতেও কেবলমাত্র আলপাইন অসুর জাতির দ্বারা করতোয়া এবং গঙ্গা নদীকে কেন্দ্র গড়ে উঠেছিল উন্নত নগরকেন্দ্রিক আর এক অসুর সভ্যতা । যার অধীশ্বর ছিলেন আলপাইন মানবগোষ্ঠীর অসুর জাতির গর্বিত কোল, শরব, পুলিন্দ, ডোম, চন্ডাল(নম:), পৌন্ড্র, কৈবর্ত্য, ইত্যাদি সম্প্রদায় সমূহ । অতীত বঙ্গ রাজ্যে ছিল যেমন নম:দের (চন্ডাল) আধিপত্য, আসামের কামরূপে ছিল কৈবর্ত্যদের আধিপত্য, তেমনি পৌন্ড্রদের আধিপত্য ছিল পৌন্ড্র রাজ্যে । সপ্তম শতকেও কামরূপের রাজারা দানবাসুর, হাটকাসুর, সম্বরাসুর, রত্নাসুর, নরকাসুর প্রভৃতি অসুরদের পূর্বপুরুষ বলে পরিচয় দিতেন । মহাভারতের আদি পর্বেই দেখা যায় অসুররাজ বলির পাঁচ পুত্রের নামানুসারে পূর্বভারতের পাঁচটি রাজ্যের নামকরণ হয় যথাক্রমে -অঙ্গ(পূর্ব বিহার), বঙ্গ, কলিঙ্গ(সুবর্ণরেখা নদী থেকে গোদাবরী নদী পর্যন্ত বিস্তৃত উড়িষ্যা ও অন্ধ্রের কিছু অংশ),সুহ্ম ও পুন্ড্র (দক্ষিণ বঙ্গ) ।এছাড়া প্রাচীন বৌদ্ধগ্রন্থ 'আর্য মঞ্জুশ্রী মূলকল্প'-তেও বলা হয়েছে বঙ্গদেশের মানুষ অসুর ভাষাতেই কথা বলে । "অসুরানাং ভবেত বাচা গৌড়পুন্ড্রোদ্ভবা সদা" । ড: নীহার রঞ্জন রায় তাঁর 'বাঙ্গালীর ইতিহাস ' গ্রন্থেও এ কথা স্বীকার করেছেন । বৈদিক যুগে আর্যরা বিহারের মিথিলা পর্যন্ত দখল করলেও শেষ পর্যন্ত তারা পূর্ব ভারতের আলপাইন মানবগোষ্ঠীর অসুর জাতির কাছে বারবার পরাজিত হয়ে পূর্বভারত দখলের যাবতীয় স্বপ্ন ত্যাগ করতে বাধ্য হয় । কারণ এই অসুর জাতির যেমন ছিল এক বিশাল হস্তীবাহিনী তেমনি ছিল তাদের শক্তিশালী এক রাজতন্ত্রও। ঐতরেয় ব্রাহ্মণে(১/১৪) এই অসুর জাতির রাজতন্ত্রের মধ্যে একমাত্র প্রাচ্যদেশেই এই একরাট বা সম্রাট ব্যবস্থার প্রচলন ছিল । যেহেতু অসুর রাজতন্ত্রের সর্বাধিনায়ককে সম্রাট বলা হত সেহেতু বৌদ্ধ যুগে অসুর জাতির বংশধর হিসাবে সম্ভবত: মৌর্য শাসকদের সর্বাধিনায়কের উপাধীও ছিল সম্রাট । তবে সুচতুর নর্ডিক আর্যরা, পরাজিত আলপাইন অসুর জাতির লোকদের দেবতার ভয়ে ভীত করে চিরদিনের মত দাবিয়ে রাখতে তাদেরই সৃষ্ট কাল্পনিক দেবী দুর্গার আবির্ভাব ঘটিয়ে এই অসুরদের রাজত্ব বঙ্গদেশে ব্যাপকভাবে দুর্গাপূজার প্রচলন করেন; যা ভারতবর্ষের আর কোন রাজ্যে দেখা যায় না । কাল্পনিক এই দুর্গার আসরে অসুরদের এমন ভাবে তারা অত্যাচারী এবং অশুভ শক্তির ধারক ও বাহকরূপে প্রকাশ করেন যাতে ভবিষ্যতে কোন বাঙালি যেস ঘৃণা ভরে কোনদিনও জানতে না চান যে আসলে তারাই হল আলপাইন অসুর জাতির মানুষ । কখনও যেন তাদের মনে এ প্রশ্ন না আসে যে অসুর নামে কোন মানবজাতি সত্যিই কোন দিন ছিল কি না-আর যদি থাকে তবে কারাইবা ছিল এই অসুর জাতির মানুষ, কিইবা ছিল তাদের ধর্ম ।……………………………..


Ipsita Pal
দুর্গার পুজো নিয়ে নানা বিতর্ক
চন্দ্রশেখর ভট্টাচার্য


গ্রামবাংলায় দুর্গাপুজোই প্রধান উৎসব ৷ নানা বিতর্কের অবকাশ রয়েছে এই পুজোকে কেন্দ্র করে। পুরাণ মতে, বিন্ধ্যাচলের কোল বংশীয় রাজা সুরথ প্রথম মৃন্ময়ীমূর্তিতে দুর্গা পুজো করেন৷ সে-পুজো শরৎকালে হয়েছিল? মনে হয় না! তার নানা কারণ আছে। প্রত্যেক সেনা বাহিনীর রণযাত্রার নিজস্ব নিয়ম আছে। বর্ষার পর যুদ্ধযাত্রা মানেই চলাচলে সমস্যা। তখন যুদ্ধ করা যায় না।

তা হলে, শ্রীরাম কি শরতে যুদ্ধ করেন নি? এই নিয়েও নানা প্রশ্ন আছে৷ কারণ, বিন্ধ্যের দক্ষিণে এই পুজো করলেও তার আগে অযোধ্যায় দুর্গাপুজোর উল্লেখ কোনও রামায়ণে নেই৷ বাল্মিকী রামায়নে অকালবোধনই নেই৷ এমন কি, বনবাসের আগে বা পরেও কখনও তিনি অযোদ্ধায় দুর্গা পুজো করেছেন বলে কোনো উল্লেখ নেই।

নদীয়ার তাহেরপুরের রাজা কংসনারায়ণ প্রথম লক্ষ লক্ষ টাকা ব্যয়ে মাটির মূর্তি পুজো করেন বলে প্রচারিত৷ কিন্তু,বারো ভূঁইঞার এক ভূঁইঞা, যিনি মোগলদের কর দেন, তাঁর পক্ষে কি এত টাকা ব্যয় করা সম্ভব ছিল! কংসনারায়ণ পুজো শুরু করেন ১৫৮৩ খ্রীস্টাব্দে। বাংলায় তার চেয়েও প্রাচীন পুজো হল বিষ্ণুপুরের মল্ল রাজবাড়ির। শুরু হয়েছিল ৯৯৭ খ্রীস্টাব্দ বা ৪০৪ বঙ্গাব্দে। কংসনারায়ণের বাড়িও এই বাংলায় নয়, বাংলাদেশে, বর্তমানে রাজশাহীর তাহেরপুরে।

দুর্গাপুজোর ইতিহাসে দেখা যায়, আগে বসন্তকালেই হত মূল দুর্গাপুজো৷ তার নাম ছিল 'বাসন্তী' পুজো৷ বাংলার রাজ়নৈতিক ইতিহাস বলছে, রাজা শশাঙ্কর আমলে বাংলার ধর্মমত ছিল শৈব৷ কিন্তু, তখনও দুর্গার পুজো হত না৷ রাজা গোপালের পর থেকে পাল আমলে বাংলায় বৌদ্ধধর্মের প্রাধান্যে দুর্গা কেন, কোনও মূর্তিপুজোরই চল ছিল না৷ তা সত্বেও সুবচনী, মঙ্গলচণ্ডী, শীতলা, মনসা-র মতো অ-কুলীণ দেবীরা নিচু শ্রেণির মানুষের পুজো পেয়েছেন, মূর্তি ছাড়াই৷ সিংহবাহিনী দশভূজা তখনও নেই৷ বল্লাল সেনের আমলেই ফের মূর্তি পুজার চল৷ তখনও বাসন্তীই প্রধান দেবী৷ বীরেন্দ্রকৃষ্ণ ভদ্রের কণ্ঠে বাণীকুমার রচিত মহিষাসুরমর্দিনী', যা মহালয়া মানেই পরিচিত, তাও কিন্তু প্রথমে বসন্তকালেই প্রচারিত হত, 'বসন্তেশ্বরী' নামে, শরতে নয়৷

দুর্গা পুজোয় 'নবপত্রিকা প্রবেশ ও কুল্পারম্ভ' বলে একটি প্রথা আছে। এই নবপত্রিকাকে আমরা 'কলাবঊ' বলেও বলে থাকি। আসলে, নয় রকমের গাছের চারাকে 'নবপত্রিকা' বলে পুজো করা হয়। বাংলার ঋতুচক্রে শরৎ ছিল কৃষকের অভাব ও দুযোর্গের মাস৷ বাংলায় বন্যার সময় হল আগস্ট এর শেষ থেকে সেপ্টেম্বর মাস। ফলে এই সময় ফসল নস্ট হত৷ তার আগেই হলকর্ষণ, বীজবপন, কৃষিশ্রমিকের খোরাকি মেটাতে কৃষক সর্বস্বান্ত হতেন কৃষকেরা ৷ তাঁদের মজুত শষ্যও শেষ হয়ে যেত৷ অনেক সময় ঋণের দায়ে মহাজনের কাছে জমি বাঁধা পড়ত বা বিক্রি হয়ে যেত৷ শরতে তাঁর জীবনে কোনও আনন্দই ছিল না৷ বরং, বর্ষা-পরবর্তী ধান ও শীতের সব্জি তাঁকে দু'টো পয়সার মুখ দেখাত, মনে আনন্দ আনতো৷ সে অন্নপূর্ণা ও বাসন্তীর পুজোয় মেতে উঠতে পারতো৷ তাই জমিদার-মহাজনদের কাছে শরৎ ছিল উৎসবের মাস, আপামর বাঙালীর তা নয়৷ বাংলায় শরতে দুর্গা পুজো শুরুর সঙ্গে এই জমিদার-মহাজনদের সম্পর্কি প্রধান, চাষের সাঙ্গে যুক্ত মানুষদের নয়।

কলকাতার পুজোর ইতিহাসেও দেখা যায়, জগৎ শেঠ-উমিচাঁদ-ঘসেটি বেগম-মির জাফরদের সহযোগিতায় ইংরজেরা সিরাজ-উদ-দৌল্লাকে পরাস্ত করায় ইংরেজদের 'মুন্সি' রাজা নবকৃষ্ণ দেব প্রথম জাঁকের সঙ্গে দুর্গাপুজো করেন৷ তিনি ওয়ারেন হেস্টিংসের ফারসি শিক্ষক হিসাবে চাকরি শুরু করে প্রথমে 'মুন্সি' ও পরে 'রাজা' উপাধি পান৷ তাঁদের বাড়ির পুজোয় আসতেন ইংরেজ কর্তারা, জুতো পরেই৷ সেই উপলক্ষে মদ ও বাঈজীদের আসর বসতো, ফোর্ট উইলিয়াম থেকে কামান দাগা হত, ভাসানে আর্মি ব্যান্ড আসতো৷ তাই, দেশপ্রেমিকরা এই পুজোকে 'বেইমানের পুজো' আখ্যা দিতেন৷ কলকাতার আরেক পুরানো পুজো হল বড়িশার সাবর্ণ চৌধুরীদের বাড়ির পুজো, ৪০০ বছরের বেশী পুরানো। কলকাতার প্রত্যেকটি সাবেকি পুজোর ইতিহাসেই এই কাহিনী।

ধীরে ধীরে ঋতুর বদলে, কৃষির চরিত্র বদলে, নিবিড় চাষের ফলে শরতেও কৃষক কিছুটা পয়সার মুখ দেখতে থাকল৷ পাশাপাশি, রাজা-জমিদার মহাজনদের বাড়ির পুজোর রেওয়াজ তাঁদেরকেও প্রভাবিত করল৷ এই প্রথার প্রচলনে সহায়ক হল মধ্যসত্ত্বভোগী অনুকরণপ্রিয় কর্তাভজার দল৷ গ্রামীণ মানুষ তাকেই মানতে বাধ্য হল৷ পুজোর ইতিহাসে তাই দেখা যায় শারদার পুজো শহরে থেকেই গ্রামে ছড়িয়েছে৷ ধীরে ধীরে সুবচনী, মঙ্গলচণ্ডী, শীতলা, মনসা-র মতো লৌকিক দেবীরা কৌলিন্য হারিয়েছে, তাদের জায়গা নিয়েছে দেবী দুর্গা৷ গ্রাম বাংলায় পুজোয় সপ্তদশ থেকে উনবিংশ শতকে পাওয়া যেত ভক্তির প্রাবল্য৷ তার খানিকটা উল্লেখ বঙ্কিমচন্দ্রের আনন্দমঠে "মা যা ছিলেন, মা যা হইয়াছেন, মা যা হইবেন"-এর কথা পাওয়া যায়৷ গ্রামের পুজায় পরিবর্তনের চালচিত্র প্রসঙ্গে এই বিষয়টি গুরুত্বপূর্ণ৷

পুজোর জন্য থাকত স্থায়ী পুজামণ্ডপ৷ আটচালায় তৈরি হত একচালা প্রতিমা, তা দেখতে গুরুমশাইর পাঠশালার ছাত্রদের অবস্থা পাওয়া যায় সনৎ সিংহের গানে - 'মন বসে কি আর?... না না না, তাক তা ধিনা, তাক তা ধিনা, তাক কুড়কুড়, কুড়ুর কুড়ুর তাক'৷



যৌবনের প্রতিকী দেবী দুর্গা

বহু শাস্ত্রে ও পুথিতে দেবী দুর্গাকে প্রজননের, উদ্দাম যৌবনের ও অবাধ মদ্যপানের দেবী বলে বর্ণনা করা হয়েছে৷ তার একটি নিদর্শণ তামিল মহাকাব্য শিলপদ্দিকারম। তামিলভাষায় প্রধান পাঁচটি মহাকাব্যের অন্যতম এটি ব্ল্যাঙ্ক ভার্স-এ লেখা ৷ আনুমানিক ষষ্ঠ শতাব্দীতে এটি লেখেন চের সাম্রাজ্যের রাজা সেঙ্গুত্তুভান-এর 'ভাই' হিসাবে পরিচিত পণ্ডিত ইলাঙ্গো আডিগাল৷

শিলপদ্দিকারম এর কাহিনিতে আছে, কারুর বা তাঞ্জাভুরের কাছে এক ধনী ব্যবসায়ীর কন্যা কান্নাগি ওরফে কানাক্কির সঙ্গে তারই আশৈশব বন্ধু স্থানীয় ধনী মৎস্যজীবীর পুত্র কোভালম-এর জাঁকজমকের সঙ্গে বিয়ে হয়৷ সুখেই চলছিল তাঁদের সংসার। হঠাৎই তাতে ছন্দপতন ঘটে৷ কোভালমের নজর পরে মাধবী নামে এক নর্তকীর দিকে৷ কান্নাগিকে ভুলে মাধবীর প্রেমে বিভোর হয়ে কোবালম তার সঙ্গেই রাত কাটাতে থাকে, মাধবীর প্রেমে নিজের সব সম্পদও বিলিয়ে দেয়৷

একদিন সম্বিত ফেরে, তখন সে কপর্দকশূণ্য৷ নিজের ভুল বুঝে সে ফিরে আসে পতিব্রতা কান্নাগির কাছে। কান্নাগি তাঁকে গ্রহণ করেন৷ কোবালম চায় অন্যত্র চলে গিয়ে নিজে ব্যবসা করবেন৷ ব্যবসার পুঁজির জন্য কান্নাগি নিজের পায়ের একটি মুক্তো বসান মল কোবালামকে দেন৷ দিনের পর দিন পায়ে হেঁটে একের পর দুর্গম বন পার হয়ে তিরুচিরাপাল্লি থেকে মাদুরাই যাওয়ার পথে তাঁরা পৌঁছন শবর যোদ্ধা মারবারদের এলাকায়৷ রাতে কোভালম-কান্নাগি দেখেন, যুদ্ধে যাওয়ার আগে এক নগ্ন দেবীর পুজা করছেন যোদ্ধারা৷ সেই দেবীর নাম 'কোররাবাই'৷ সেই দেবীর দু-পাশে বাহন সিংহ ও হরিণ৷ দেবীর চার হাতে শূল, শঙ্খ, চত্রু ও বরাভয়৷ পায়ের নিচে মহিষের মুণ্ড। যুদ্ধে বিজয় প্রার্থণায় মদ্যপ যোদ্ধারা নিজেদের গলা চিরে স্ব-রক্তে দেবীর অঞ্জলি দিচেছন, মদ ও মাংসে ভোজ সারছেন এবং অবাধ যৌনাচারে লিপ্ত হচেছন৷

ভয় পেয়ে যান কোবালাম ও কান্নাগি। কিন্তু মারবার যোদ্ধারা তাদের আভয় দেন। পাশাপাশি তারা কোবালম-কান্নাগিকে নিজেদের এলাকা নিবির্ঘ্নে পার করে দেন। এ কাহিনি ষষ্ঠ শতাব্দীর। কোবালম-কান্নাগির দেখা সেই মূর্তিই এখনো আছে তামিলনাডুর তানজোরের পুণ্ডমঙ্গেশ্বর ও পুজাইয়ের মন্দিরে৷ 'শিলপদ্দি' বা পায়ের মল খুলে দিয়েছিলেন কান্নাগি, সেই কারনেই কাহিনির নাম 'শিলপদ্দিকারম'। শিলপদ্দিকারম আজও সমাভ জনপ্রিয়৷ গান, নাচ, নাটকের মাধ্যমে আজও তামিল শিল্পীরা দেশে-বিদেশে এটি অভিনয় করেন। শিলপদ্দিকারম যে প্রশ্নের উদ্রেক করে, তা হল, দুর্গার পুজো কি তবে সত্যই অবাধ মদ্যপান ও যৌনতার উৎসব?

এ-প্রসঙ্গে প্রাচীন স্মার্ত পুথিকার জিমূতবাহনের 'কালবিবেক', রঘুনন্দনের অষ্টাবিংশতিতত্ত্ব', শূলপাণির দুরগোৎসববিবেক আলোচিত হতে পারে ৷ খ্রিষ্টপূর্ব প্রথম শতকে বিহারের সহরসার রাজা শালিবাহনের পুত্র জিমূতবাহন লিখেছিলেন কালবিবেক ৷ চতুর্দশ শতকে নবদ্বীপে জন্মানো পণ্ডিত শূলপাণির লেখা অনেক গ্রন্হের অন্যতম হল দুরগোৎসববিবেক ৷ এই তিনজনের লেখাতেই দেখা যাচেছ, দুর্গা পুজোয় আমোদ-প্রমোদই প্রধান এবং মদ্যপান বিধেয়৷ তাঁরা লিখেছেন, "আদিম রিপুর প্রবৃত্তি এবং অবাধ যৌনাচারের হুল্লোড় না থাকলে দেবী প্রসন্না হতেন না ৷ বরং, কুপিতা এই দেবী উপাসকদের প্রাণভরে অভিশাপ দিতেন৷" bakita :http://www.guruchandali.com/default/2012/10/23/1350956527646.html#.UlfwnlBvPSM

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দ্য গ্রেট বেঙ্গল সার্কাস

ওরফে দুর্গাপুজো৷ আবার সে এসেছে ফিরিয়া৷ এক বছরের হাপিত্যেশ প্রতীক্ষার পর৷ হুল্লোড়, ট্র্যাফিক জ্যাম, ক্লাবের ঝগড়া, নাটকের রিহার্সাল- সবটুকু নিয়ে৷ লিখছেন অমিতাভ মালাকার৷ ছবিতে উদয় দেব


সব দুর্গাপুজো একটা মিটিং ডেকে শুরু হয়৷ একদল খুব উত্‍সাহী লোক জুন মাস নাগাদ হই চই করে ওঠে, আর অন্য এক দল লোক তাদের দিকে আড়চোখে পিটপিট করে চায় আর গাছতলা, ক্লাবের বারান্দায় গোঁজ হয়ে বসে বিড়ি ফোঁকে৷ উত্‍সাহীর দল 'অমুক তারিখে অত ঘটিকায়' লেখা সাদা ফুলস্কেপ কাগজ ক্লাবের দেওয়ালে সেঁটে মিটি মিটি হাসে৷ কোথাও আবার পাজামা পাঞ্জাবি পরা ভদ্রলোকেরা নিজেদের পছন্দের লোকেদের বাড়ি গিয়ে জানিয়ে আসে কোন দিন মিটিং হবে- 'আপনাকে কিন্ত্ত আসতেই হবে বুনিকদা'৷ গোঁজ প্রার্থীরা মিটিং-এ দু'কাপ করে চা খায় আর বলে 'তোরা কর না, আমরা তো আছিই', তার পর পঞ্চমীর দিন শিলং বেড়াতে যাবার টিকিট রিজার্ভেশনের জন্য কয়লাঘাটে লাইন দেয়৷ কিছু লোক এদিকে না ওদিকে বোঝা যায় না৷ তারা অষ্টমী পুজোর খিচুড়ি, লাবড়া, চাটনিতে খেজুর দিলে সুগারের রোগীদের অসুবিধে নিয়ে চেঁচায়৷ তাদের কথা কেউ শোনে না৷ পাড়ায় এই সময় থেকেই ভ্রাম্যমাণ জামাকাপড় বিক্রেতারা আসতে শুরু করে৷ ফুলিয়া, বোম্বাই, দক্ষিণের ভয়ানক খটমট সব নামওলা শাড়ি- যত খটমট, তত বেশি দাম৷ ধার বাকি চলে, বিজয়া দশমীর পর হপ্তা দেড়েক এরা বাড়ি বাড়ি নাড়ু আর নিমকি খেয়ে 'নাঃ, অ্যাসিড হয়ে যাবে, চা আর খাবো না' বলে ওঠার সময় 'আমারটা যদি এবার দিয়ে দেন তো...' ইত্যাদি করুণ গলায় কাঁদাকাটা সেরে ফের অন্য পাড়ায় অন্য বাড়িতে গিয়ে বেল বাজায়- 'দাদা আছেন? বউদি ভালো তো? কী বাবু, পুজোয় ক'টা জামা হল?' ইত্যাদি বাঁধা গত আউড়ে আড়চোখে ঘরের ভিতরটা দরজার চিলতে ফাঁক দিয়ে দেখে 'আজ আর বসব না, খুব তাড়া...' বলে টলে জোর করে ঠেলে ধাক্কিয়ে ভিতরে ঢোকার চেষ্টা করে৷


মিটিং সেরে একদল দৌড়োয় ডেকরেটারের আপিসে- তিনি মহা ব্যস্ত লোক, পুজোর আগে শ্রাদ্ধের সম্ভাবনা আছে এমন লোকেদের পারলে গলা টিপে মেরে কাজ এগিয়ে রাখেন৷ তিনটে মোবাইল, একটাতেও ওনাকে পাওয়া যায় না৷ প্যান্ডেলের বাজেট দেন ষাট হাজার টাকা, উদ্যোক্তারা সাড়ে পনেরো হাজারে এই বারেরটা নামিয়ে দেবার জন্য জোরাজুরি শুরু করেন৷ কিন্ত্ত বাইরেটায় টেরাকোটার কাজ চাই আর তিনটে গেট, একটা আপিস ঘর, একটা কালচারাল অনুষ্ঠানের স্টেজ যার উপরে বাউলরা নাচবে, তিনশো চেয়ার আর কুড়িটা টেবিল দিতেই হবে৷ ডেকরেটার ভদ্রলোক মাঝে মাঝেই অসুস্থ হয়ে পড়েন, তাই পুজোর আগের এই সময়টায় রোজই একটু বেশি রাতে চিকেন তন্দুরি আর হুইস্কি খান৷ উদ্যোক্তারা চেলাদের 'স্টেজের সামনে এক লরি মাটি ফেলিয়ে দিস ভাই' ইত্যাদি বলে টলে টলে বাড়ি ফিরে পুজোয় বেড়াতে আসা শ্যালিকার দিকে চেয়ে কী যেন ভেবে শাশুড়ির সঙ্গে খারাপ ব্যবহার করে ভায়রার সঙ্গে জাস্ট দু'পেগ মাল টানতে বসেন৷ পুজোর পর দিঘায় বেড়াতে যেতে হবে গায়ের ব্যথা মারতে, বউ অলরেডি দুটো নাইটি কিনেছে৷ ফেরার পথে দর করে সওদায় জিতে যাওয়া কাজু বাদাম দিয়ে মুরগির রেসিপি ওল্টাচ্ছে রোজ, তাই বাড়িতেও মিটিং৷ রাত দেড়টা নাগাদ ক্লাবের মাঠে প্রতিদিনই চিত্‍কার চেঁচামেচি৷ আবুদা বাঁকুড়া, বীরভূম থেকে পটুয়া এনে হংসেশ্বরী মন্দিরের ডিজাইন দিয়েছিল৷ শিল্পীরা ডেকরেটারের লোকেদের কী যেন বুঝিয়ে ব্যাপারটাকে ক্রমশই তাজমহলের দিকে টানছে, উইথ সাটল্ টাচেস অব ব্রিচ ক্যান্ডি হাসপাতাল৷ চিফ আর্টিস্ট বোম্বাইতে গিয়েছিলেন এক বার, সেখানে কেউ তাঁকে ওই হাসপাতাল দেখিয়ে বলে 'ওই দ্যাখ অমিতাভ বচ্চনের বাড়ি', সেই থেকে হয়তো সুপ্ত ইচ্ছে ছিল ওই রকম প্যান্ডেল বানাবেন৷ আবার রাতের দিকে কথা কন না বিশেষ, আবুদা চেঁচাচ্ছে, আর উনি চোখ বুঁজে গান গাইছেন- 'ওরে ভোলা মন, কেমন বাড়ি বানাইয়াছে, অমিতাব্বচ্চন৷' ডেকরেটারের চামচেগুলো থেকে থেকেই জামার খুঁটে চোখ মুছে ফোঁপাতে ফোঁপাতে ওনার পায়ে মাথা ঠুকে প্রণাম করছে৷


পাড়ার সন্ধেবেলাগুলো কৈশোরের দখলে৷ একতলার বড়ো ঘরটায় নাটকের রিহার্সাল চলছে৷ কমরেডদের পড়াশুনা নাই৷ পাড়ার কোণ ঘেঁষে যে দিকটায় রাস্তায় আলো কম, সেই দিকে কোনও একটা বাড়ির একতলার রান্নাঘরের পিছন দিকের কামরায় নাকি পাড়ার কয়েকজন বউদি গান প্র্যাকটিস করছেন৷ অভিজিত্‍দা স্পষ্ট শুনেছে ভিতর থেকে ফিসফিসে খোনা গলায় কারা যেন 'সংকোচের বিহ্বলতা নিজেরে অপমান' গাইছে৷ শুনে বৃদ্ধ কয়েক জন আড্ডা ছেড়ে সোজা ঘরপানে ছুট দিলেন কাঁপতে কাঁপতে৷ ঘটনাটি হয়তো সত্যি, একজন ঘাড়ে পাউডার মাখা বাবরি চুলো সিড়িঙ্গে তবলচি টাইপকে হামেশাই সন্ধের পর পাড়ার রাস্তায় দেখা যাচ্ছে আজকাল৷ এক ষোড়শী নাকি তার প্রেমেও পড়েছে৷ ছেলেরা মওকা মতো পেলে ধোলাই দেবার জন্য প্রস্ত্তত হচ্ছে৷ এর মধ্যে পঞ্চমীর রাতে প্রতিমা আনার তোড়জোর৷ বাসে করে মহিলা ও শিশু, উঠতিরা ট্রাকে মাটাডোরে আর বয়স্করা নিজ নিজ গাড়িতে৷ গোঁজরা আলাদা যাবে- ওদের পুরোটাই রহস্যাবৃত৷ যাচ্ছে সিরিফ 'এহেহেহেহে, মা তো ট্যারা, আর পেঁচাটাকে টম হ্যাঙ্কস্-এর মতো দেখতে' ইত্যাদি বলার জন্য, তবু যাবে৷ ওখানে গিয়ে নিজেদের গাড়ির বুট থেকে মদের বোতল বের করে খাবে অন্যদের মতো, আর কেউ একটা বমি করা এস্তক সমানে সারা রাস্তা বলতে বলতে আসবে 'আগেই বলেছিলাম অমল পালেকরকে দিয়ে ঠাকুর বানা, শুনল না, আমার কথা কেউ শোনে না, আমি একা, বড়োই একা, অ্যালোন, অ্যালোন, অ্যালোন৷' প্রতিমা মণ্ডপে তোলার পর দেখা যাবে সিংহের লেজ ছাড়া সবটুকুরই প্রায় অ্যালায়েড বম্বিং-এর পর ড্রেসডেন৷ টম হ্যাঙ্কসকে, মানে প্যাঁচাটাকে খুঁজেই পাওয়া যাচ্ছিল না, পরে বিয়ারের পেটি থেকে কে অমন চোখ গোলগোল করে চেয়ে আছে দেখতে গিয়ে ওকে খুঁজে পাওয়া গেল৷ ততক্ষণে অবশ্য গায়ে চিলি আর পুদিনা সস্ মেখে সে টিয়াপাখির রূপ ধরেছে৷ তাতে অসুবিধে ছিল না, কিন্ত্ত মাস ইনেব্রিয়েশানের ফাঁক গলে নবমীর সন্ধ্যায় প্রোগ্রাম এনশিওর্ড করতে পেরে অত্যুত্‍সাহী এক বাউল সেটিকে প্রথমে জলে ধুয়ে তার পর গোটাটাকেই আলতা মাখিয়ে রং করায় সেবার বহু শিশুই জীবনের প্রথম দুর্গাপুজোয় লাল পেঁচা দেখার সুযোগ পেলে৷ ধর্ম সম্পর্কে গোড়া থেকে স্কেপটিকাল হওয়ার সুযোগও ছিল, কারণ কোনও এক অজ্ঞাত আর্টিস্টিক ইন্সপিরেশনের ফলেই হয়তো লক্ষ্মী গণেশ ইত্যাদি সবাইকেই সহোদর এবং তাদের বাহনদের দিকে আড়চোখে সন্দেহজনক দৃষ্টিতে তাকিয়ে থাকতে দেখা যায়৷ প্রতিবাদের ঝড় বয়ে গেল, আর্টিস্ট বললেন পরে মেক আপ করে দেবেন- 'কিন্ত্ত দোষটা আপনাদেরই, ওই তো উনি বলেছিলেন এ বারে লুকটা যেন অন্য রকমের হয়৷' এর পর আর কথা চলে না৷ ও দিকে উঠতিদের কয়েকজন মেইন রোডে পুলিশের জিপে হেলান দিয়ে মদ খেয়েছে শুধু তাই নয়, সাব ইন্সপেক্টর 'একটু সরে দাঁড়াবেন দাদা, গাড়িটা নিয়ে থানায় যেতাম' বলায় উঠতি গ্রুপের আবু সালেমটি বলেছে 'আব্বে চল, বেসসি ছলকাবি তো সোজ্জা ট্রান্সফার করিয়ে দেব৷ হেঁটে হেঁটে থানায় যা, দেকচিস্ না পুজোর দিনে মাল খাচ্চি?' অতঃপর সবকটাকে থানায় নিয়ে যাওন, একটাকে ননবেইলেবেল কেস দেওন, আর বাকিগুলোকে পাড়ায় এনে সিনিয়রদের সে কী মার!


এ দিকে এখনও অনেক চাঁদা বাকি৷ পাড়ায় যারা সম্বত্‍সর তেমন ইম্পর্টান্স পায় টায় না, তারা রাস্তার ধারে আপিস ঘর বানিয়ে চেয়ার টেবিল পেতে বসে পড়েছে- 'আসলে আমরাই উদ্যোক্তা, ওরা কেউ নয়' হাবভাব৷ অনেকে এর মধ্যেই নবাগত ভাড়াটেদের ডেকে 'কলের মিস্তিরি চাই আপনার'...'ইলেকট্রিক বিল জমা দিতে হবে, আমার অফিস ও দিকেই'...'কোনও ব্যাপার না বউদি, কাল ফাস্টাওয়ারে আমি আপনার রান্নার গ্যাস পৌঁছে দিয়ে তার পর আপনার ছেলেকে স্কুল থেকে নিয়ে আসব' ইত্যাদি বলছেন৷ এমনিতে ক্যারামবোর্ডের আলোর তলায় রোজ একবার করে জ্বলে ওঠা ছাড়া দেখা পাওয়া ভার, এসময়ে সারাদিন চাঁদা তুলে জনসংযোগ বাড়াচ্ছেন, বেপাড়ার লোক আত্মীয় বাড়ি খঁুজে না পেলে এক চান্স-এ বাড়ি দেখিয়ে দিচ্ছেন ধাঁ করে৷ একটু সিনিয়র কয়েকজন ক্লাবের বারান্দায় বসে পা নাচাচ্ছেন বরাবরের মতোই- এরা অ্যাডভাইজারি কমিটি, দু'পক্ষকেই স্পেশালাইজড্ টিপস্ দেন এবং সবাই নির্ভেজাল ধ্যারালে গম্ভীর মুখে বলেন 'আমি তো আগেই বলেছিলাম'৷ বিজ্ঞাপনের কাগজ হাতে একদল কর্মকর্তা সেই ছ'মাস ধরে হাতে পায়ে ধরে কাকুতি মিনতি করেছেন একটা বিজ্ঞাপন এনে দেওয়ার জন্য৷ এরা সব সময়ই ওইরকম পা নাচাতে নাচাতে বলেছেন 'ঠিক সময়ে দিয়ে দেব৷' ষষ্ঠীর দিন সকালে 'কী হল দাদা' জিজ্ঞেস করলে ওই একই উত্তর পাওয়া যায়, 'আমি তো আগেই বলেছিলাম৷' যাই হোক, ওদিকে পাড়ার ক্যাটারারের ব্যস্ততার সীমা নেই৷ হালে তার আবার এক কম্পিটিটার জুটেছে৷ এক প্রোমোটার টাইপের ছোকরা সাইড বিজনেস করবে বলে- বাঙালি সব সময়ই তক্কেতক্কে থাকে কী ভাবে সাইড বিজনেসে নামা যায়, এর ফলে আসল ব্যবসা গোল্লায় গেলেও ক্ষতি নেই- আর এক পাখি-ব্যবসায়ীকে ভুজুংভাজুং দিয়ে দলে টেনেছে৷ পাখি-ব্যবসায়ী অরিজিনাল ভেঞ্চারের কথা মাথায় রেখেই সব পদের ফিশ মুনিয়া, চিকেন তোতা, ময়ুরী কাবাব ইত্যাদি নামকরণ করায় ঈষত্‍ গণ্ডগোল শুরু হতে গ্রিল চিকেন ইনক্লুড করে অবস্থা সামলানো হয়েছে বলে খবর৷ তবে সবখানেই ফায়েড্রাইস আর চিলিচিকেন ঢালাও, ঘাবড়ানোর কারণ নেই৷


এই সময়টায় কেশ এবং ত্বকের পরিচর্যায় মাতেন প্রায় সকলেই৷ বামপন্থায় বিশ্বাসী কিছু দৃঢ়চেতা অ্যাদ্দিন চুল না আঁচড়ে, দাড়ি না কামিয়ে, দাঁত না মেজে বিপ্লবের পথ সুগম কচ্ছিলেন, ইদানীং তারাও লুকিয়ে চুরিয়ে ফেসিয়াল করান- বলছেন ওটাই প্রগতিশীলতার লক্ষণ৷ তা বটে৷ দেবীপক্ষে রাম পানও কচ্ছেন শোনা যায় ভোদকা ছেড়ে৷ পাড়ায় এক অশীতিপর বৃদ্ধ কাঁকলাশের মতো চেহারা ঘুরিয়ে কী ভাবে কে জানে তিরিশ বছরের এক অনিন্দ্যসুন্দর মহিলাকে বিয়ে করে ফাটিয়ে দিয়েছেন৷ মহিলা ফেসিয়াল ইত্যাদিতে মাহির৷ মহালয়ার দিন দেখা গেল ওই বৃদ্ধকে ষাট বছরের যুবার মতো দেখাচ্ছে, চুলের কায়দাও ঘাড়ের কাছে ময়ূরের পেখমের মতো৷ এমনকী কয়েকটা দাঁতও দেখা গেল ফোকলা মুখগহ্বরে৷ ব্যস, আর যাবে কোথায়! সবাই ছুটল চুল কোঁকড়াতে, গালের চামড়া টান করাতে৷ গোঁজরা আরও গোঁজ হয়ে বসলেন- মহিলা কোনদিকে সেটা না জেনে তার কাছে যায় কী করে ওরা? মহা সমস্যা৷ পাড়ার ভিতরে নাকি লোকাল ডিসকাউন্টেরও ব্যবস্থা আছে- সঙ্গে বাড়ির শ্যাম্পু নিয়ে গেলে আরও ছাড়৷


একজন চিরুনি, পাউডার, ফেসক্রিম, স্নো, নেলপালিশ, মেহেন্দি সব বাড়ি থেকে নিয়ে গিয়ে শেষ বারো টাকায় রফা করার চেষ্টা করেন এবং 'তোমার বর তো আপিসে, একটু শুয়ে নিই' বলে সোজা বেডরুমে ঢুকে ঘুমিয়ে নেন সন্ধে অবধি, তার পর থেকে দ্বিপ্রাহরিক সার্ভিস বন্ধ করা হয়৷ তবে শোনা যাচ্ছে অনেকেই নাকি ওর চাইতেও ভালো ফেসিয়াল করে, সার্ভিস চার্জও কম আবার গেলে নাকি চা আর নানা রকমের খাবার বানিয়ে খাওয়ায়৷ ক্লাবে সকালের আড্ডায় সে নিয়ে চাপা টেনশন, দল পাল্টানোর মরশুমে যেমনটা হত তেমনই আবহাওয়া, কৃশানু বিকাশকে কারা পাবে সে নিয়ে চোরা অন্তর্ঘাত৷ গোঁজদের একজনের নাকি নিজস্ব হেয়ার ড্রায়ার আছে- একজন 'ওই তো ওর মামাশ্বশুর দুবাই এয়ারপোর্ট থেকে সস্তায় এনে দিয়েছে' বলার ধরা পড়ে গেলেন যে উনি উল্টোদিকের৷ পরিবেশ থমথমে, সবাই সব কথার উল্টোপাল্টা উত্তর দিচ্ছে৷


ঠাকুর দেখতে যাওয়া হবে রোজ৷ তৃতীয়া থেকে শুরু৷ 'আমরা বর্ধমান যাচ্ছি' বলে একজন কথা শুরু করা মাত্র আর একজন 'আমরা সুইত্‍জারল্যান্ডে বুডঢিস্ট মতে দেবীর অরাধনা দেখতে যাচ্ছি, ওই পথ দিয়েই হনুমানরা এদেশে প্রথম আসে' বলে গোটা ক্লাবের বারান্দায় শ্মশানের স্তব্ধ সন্ধ্যায় শিরশিরে ঠান্ডা হাওয়া বইয়ে দিলেন একপ্রস্থ৷ বর্ধমান পার্টির বাড়িতে সকাল বিকেল ঝামেলা- 'কী করলে অ্যাদ্দিন চাকরি করে! ওরা ইউরোপ যাচ্ছে, আবার শুনলাম নাকি নতুন বিএমডাব্লিউ-ও কিনেছে, তুমি তো কিসুই পারো না৷' বেচারা গোঁজ রিজার্ভেশন পায়নি, ওরা 'দেশের এই ক্রাইসিসে আমাদের সকলের কর্তব্য' ইত্যাদি বলতে গিয়েছিল, কিন্ত্ত জানাজানি হয়ে যাওয়ায় এবং টানা সবাই 'আহারে, একটা টিকিটও পেলি না' বলায় আরও গোঁজ মেরে গিয়েছে৷ যাই হোক এই সব নিয়েই বাঙালির পুজো, অবশ্য এতদসত্ত্বেও মজা হবে জোর, ফুর্তির সীমা থাকবে না৷ মাঠে যারা বেলুন, চা, ঘুগনি, বুড়ির চুল, বাঁশি বেচবেন তারাও এসে বলে কয়ে গিয়েছেন৷ পুরনো ঢাকি চিঠি দিয়েছেন তিনি আসবেন, তবে এ বারের ধুতিটা যেন একটু ভালো কোয়ালিটির হয়, অন্তত একটা বছর না চললে ভালো দেখায় না- যারা দেন, তারা সব বড়োমানুষ কি না, তাই৷

নীলকান্তের মর্জি-সুতোয় ঝুলে পুজোর ভাগ্য

আনন্দবাজার – বৃহস্পতি, ১০ অক্টোবর, ২০১৩

  • নীলকান্তের মর্জি-সুতোয় ঝুলে পুজোর ভাগ্য

মানচিত্রের হিসেবে মাত্র কয়েক ডিগ্রি। উত্তর-পশ্চিম থেকে উত্তর দিকে সামান্য বিচ্যুতির প্রশ্ন। কিন্তু তার মধ্যেই ঝুলে আছে বাংলার পুজো-ভাগ্য।

কারণ, বঙ্গোপসাগরের উপর দিয়ে ছুটে চলা ঘূর্ণিঝড়ের অভিমুখ প্রত্যাশিত 'রুট' থেকে স্রেফ ওইটুকু বদলে গেলেই বাংলার কপালে ঘোর বিপর্যয় প্রায় নিশ্চিত। দিন দুয়েক আগে আন্দামান সাগরে যে নিম্নচাপের আভাস পেয়ে পুজোর আকাশে অনিশ্চয়তার মেঘ দেখেছিলেন আবহবিদেরা, সেটাই এখন ঘূর্ণিঝড়ের রূপ নিয়ে রীতিমতো ত্রাসের কারণ হয়ে দাঁড়িয়েছে। ওঁরা বলছেন, ঝড়ের গতিপথ সাকুল্যে কয়েক ডিগ্রি বেঁকে ওড়িশা-পশ্চিমবঙ্গ উপকূল অভিমুখী হয়ে পড়লে রাজ্যবাসীর অর্ধেক পুজো মাটি তো হবেই, ব্যাপক ক্ষয়ক্ষতিরও প্রভূত আশঙ্কা। কেননা সেটা তখন আর মামুলি ঘূর্ণিঝড় থাকবে না। প্রবল, অতি প্রবল ঘূর্ণিঝড়ের চেহারা নিতে পারে।

বস্তুত সোমবার বিকেলে দক্ষিণ-পূর্ব বঙ্গোপসাগরে (আন্দামান সাগরে) একটি নিম্নচাপ দানা বাঁধতে দেখেই আবহাওয়া অফিস প্রমাদ গুনতে শুরু করেছিল। আবহবিদেরা সে দিনই জানিয়ে দিয়েছিলেন, নিম্নচাপটি যদি ওড়িশা-অন্ধ্রপ্রদেশের দিকে যায়, পশ্চিমবঙ্গ বেঁচে গেল। সে ক্ষেত্রে অষ্টমীর রাত বা নবমী থেকে উপকূলবর্তী জেলাগুলোয় বিক্ষিপ্ত বৃষ্টি ছাড়া রাজ্যে বিশেষ প্রভাব পড়বে না। কিন্তু মতি পাল্টে তা উত্তুরে পথ বাছলে কলকাতা-সহ তামাম দক্ষিণবঙ্গ পড়বে দুর্যোগের কবলে।

স্থলভূমিতে আঘাত হানার সময়সীমা মোটামুটি একই রয়েছে। তবে নিম্নচাপের চরিত্র বদলে গিয়েছে। আবহ-বিজ্ঞানীরা জানিয়েছেন, উৎপত্তির চব্বিশ ঘণ্টার মধ্যে, মঙ্গলবার রাতে আন্দামান সাগরের ওই নিম্নচাপ পরিণত হয় গভীর নিম্নচাপে। তার পরে কিছু সময় এক জায়গায় দাঁড়িয়ে সে শক্তি বাড়িয়েছে। বুধবার রাতে ঘূর্ণিঝড়ের রূপ নিয়ে আন্দামান দ্বীপপুঞ্জ অতিক্রম করে এগোতে শুরু করেছে মূল ভারতীয় ভূখণ্ডের দিকে। এ বার যে হেতু নামকরণের পালা তাইল্যান্ডের, নতুন ঘূর্ণিঝড়ের নাম হয়েছে 'পিলিন।' তাই ভাষায় যার অর্থ নীলকান্ত মণি।

এখন পর্যন্ত যা ইঙ্গিত, তাতে পিলিন অন্ধ্র-ওড়িশা উপকূলের দিকেই যাচ্ছে। মৌসম ভবনের আশঙ্কা, আগামী ৭২ ঘণ্টার সম্ভাব্য যাত্রাপথে পিলিন ক্রমাগত শক্তি বাড়িয়ে যাবে। যার সুবাদে পরশু, অর্থাৎ শনিবার রাত নাগাদ স্থলভূমিতে আছড়ে পড়ার সময়ে তা অতি প্রবল ঘূর্ণিঝড়ের সাজ ধরতে পারে। কিন্তু এই বাহাত্তর ঘণ্টার মধ্যে পিলিনের অভিমুখ যদি অন্ধ্র-ওড়িশা থেকে সামান্য উত্তরের দিকে সরে আসে, তা হলে পশ্চিমবঙ্গ পড়ে যাবে তার ধ্বংসের নিশানায়।

বাস্তবে তেমন পরিস্থিতি দাঁড়াবে কি না, উৎসবোন্মুখ বঙ্গবাসীর কাছে সেটাই এই মুহূর্তে কোটি টাকার প্রশ্ন। গত মে মাসে বঙ্গোপসাগরে তৈরি হওয়া ঘূর্ণিঝড় 'মহাসেন' পশ্চিমবঙ্গকে রেহাই দিয়ে বাংলাদেশের চট্টগ্রাম উপকূলে আছড়ে পড়েছিল। পিলিন-ও কি এ রাজ্যকে এড়িয়ে যাবে?

নিশ্চিত কোনও আশ্বাস না-দিলেও আবহবিদেরা অবশ্য কোনও দুঃসংবাদও শোনাননি। বরং কেন্দ্রীয় আবহাওয়া দফতরের ডেপুটি ডিরেক্টর জেনারেল বিশ্বজিৎ মুখোপাধ্যায় এ দিন বলেন, "ঘূর্ণিঝড়টির অভিমুখ এখনও ওড়িশা-অন্ধ্র উপকূলের দিকে। পশ্চিমবঙ্গের এখনও বিশেষ আশঙ্কা নেই।" আলিপুর আবহাওয়া দফতরের বিজ্ঞানী সঞ্জীব বন্দ্যোপাধ্যায়েরও বক্তব্য, "মনে হচ্ছে, অন্তত ষষ্ঠী-সপ্তমী এখানে ভালই কাটবে। অষ্টমীর রাত থেকে হাল্কা বৃষ্টি হতে পারে। ঝড় স্থলভূমিতে ঢোকার পরে নবমীতে পশ্চিমবঙ্গের উপকূল অঞ্চলে কোথাও কোথাও ভারী বৃষ্টি হতে পারে।" মৌসম ভবনের অনুমান, অষ্টমীর রাতে পিলিন প্রবল ঘূর্ণিঝড়ের চেহারা নিয়ে ওড়িশার পারাদ্বীপ ও অন্ধ্রের কলিঙ্গপত্তনমের মাঝামাঝি তটে আছড়ে পড়বে। যার দাপটে ওখানে ঘণ্টায় ১৮০ কিলোমিটার বেগে ঝড় বইতে পারে, সঙ্গে বৃষ্টি।

অর্থাৎ বিদায়বেলায় সক্রিয় হয়ে ওঠা মৌসুমি অক্ষরেখার দৌলতে বিক্ষিপ্ত বর্ষণ বাদ দিলে এই মুহূর্তে বাংলার আকাশে ঝড়-বিপর্যয়ের স্পষ্ট কোনও সঙ্কেত নেই বলেই আবহবিদদের দাবি। কী ভাবে ওঁরা এমন কথা বলছেন? কেন্দ্রীয় আবহাওয়া দফতরের এক বিজ্ঞানী জানাচ্ছেন, ঘূর্ণিঝড়ের আগাম নিশানা নির্ধারণের জন্য প্রাকৃতিক নানা বিষয় (প্যারামিটার) যাচাই করে নানা হিসেব কষা হয়। সম্ভাব্য গতিপথের পূর্বাভাস দেওয়ার আগে প্রধানত খতিয়ে দেখা হয় তিনটি বিষয়। কী রকম?

প্রথমত, যে ঋতুতে ঘূর্ণিঝড়টি তৈরি হয়েছে, সেই সময়ে সংশ্লিষ্ট অঞ্চলে বায়ুপ্রবাহের গতি-প্রকৃতি সাধারণত কেমন থাকে। অর্থাৎ, কোন দিক থেকে কোন দিকে হাওয়া বয়। পাশাপাশি দেখা হয়, ওই ঋতুতে আগে সৃষ্টি হওয়া ঘূর্ণিঝড়গুলির গতিপথ কী ছিল। দ্বিতীয়ত, অতীত-অভিজ্ঞতার তথ্যাদির সঙ্গে খুঁটিয়ে দেখা হয়, ঘূর্ণিঝড়টি তৈরি হওয়ার পরে বায়ুমণ্ডলের উপরিস্তরের গতি-প্রকৃতি কী রকম রয়েছে। কারণ, বায়ুমণ্ডলের উপরিস্তরের অবস্থা বদলে গেলে ঘূর্ণিঝড়ের গতিপথের উপরে তা প্রভাব ফেলতে পারে। ঘুরে যেতে পারে অভিমুখ। তৃতীয়ত যাচাই করা হয় সংশ্লিষ্ট সমুদ্রের উপরিস্থিত পরিমণ্ডলের পরিস্থিতি (যেমন বায়ুচাপ, উষ্ণতা, আর্দ্রতা ইত্যাদি)।

এমন বিবিধ পরিসংখ্যান নিয়ে চুলচেরা বিশ্লেষণ চলে। সাম্প্রতিক ঘূর্ণিঝড়ের প্রতি মুহূর্তের অবস্থান জানতে উপগ্রহ ও রেডার-চিত্রের সাহায্যে চলে চব্বিশ ঘণ্টার নজরদারি। পিলিনের ক্ষেত্রেও তাই হচ্ছে। এ দিন রাত পর্যন্ত যাবতীয় তথ্য-চিত্র বিশ্লেষণ করে পাওয়া ফলাফলের ভিত্তিতেই আবহবিদদের পূর্বাভাস, অষ্টমীর রাতে ওড়িশা-অন্ধ্র উপকূলে এসে আঘাত হানতে পারে অতি প্রবল ঘূর্ণিঝড়। "তবে পরে বায়ুমণ্ডলের উপরিস্তরের অবস্থা বা সামুদ্রিক পরিমণ্ডলে কিছু পরিবর্তন ঘটলে ঝড়ের মুখ পাল্টে যেতেও পারে। তখন ওড়িশা-অন্ধ্রের পরিবর্তে ওড়িশা-বাংলা উপকূল তার গন্তব্য হয়ে উঠতে পারে।" মন্তব্য কেন্দ্রীয় এক আবহ-বিজ্ঞানীর।

বিশ্বজিৎবাবুও তা মানেন। যদিও এ দিন পর্যন্ত তাঁরা সে রকম কোনও লক্ষণ দেখছেন না। তাঁর কথায়, "ঝড় অন্ধ্রের দিক থেকে ওড়িশা-বাংলার উপকূলের দিকে (পরিভাষায়, মধ্য বঙ্গোপসাগর) সরে এলে উৎসবের মরসুমে বাংলার বিপদ বাড়তে পারে ঠিকই। তবে বৃহস্পতিবারও যদি দেখা যায় ঘূর্ণিঝড়ের অবস্থান পশ্চিম বঙ্গোপসাগরে (অন্ধ্রের দিকে), তা হলে চিন্তা কমবে।"

বাংলার ভাগ্যে ঠিক কী আছে, তা এখনও নিশ্চিত না-হলেও আসন্ন বিপদের আঁচ পেয়ে ওড়িশায় ইতিমধ্যে সতর্কবার্তা জারি হয়েছে। সেখানে উস্কে উঠছে চোদ্দো বছর আগের সুপার সাইক্লোনের স্মৃতি। ১৯৯৯-এর এই অক্টোবর মাসেই ধেয়ে আসা ওই বিধ্বংসী সামুদ্রিক ঝড়ে গঞ্জাম, পুরী-সহ উপকূল ওড়িশা কার্যত ধুয়েমুছে গিয়েছিল। মৃত্যু হয়েছিল অন্তত দশ হাজার মানুষের। গত বছর অক্টোবরে তামিলনাড়ুর উপকূলে আছড়ে পড়েছিল ঘূর্ণিঝড় নিলম। তাতে ৭৫ জন মারা যান, নষ্ট হয় বহু সম্পত্তি। সেই অক্টোবর। সেই বঙ্গোপসাগরের ঘূর্ণিঝড়। এ বার জল কতটা গড়ায়, তা ভেবেই কপালে ভাঁজ সকলের। শহরজোড়া পুজোমণ্ডপেও তাই ছায়া ফেলেছে পিলিন।

আনন্দবাজার পত্রিকা


Sudhir Suman
बाथे जनसंहार का फैसला राजनीतिक फैसला है और इसका जवाब भी एक संगठित राजनीति के जरिए ही दिया जा सकता है. कल से देख रहा हूँ कि जिन लोगों के बारे में अमीरदास आयोग ने रणवीर सेना को संरक्षण देने की बात की थी, वे भी इस पर वाह वाह कर रहे हैं कि नितीश ने क्या काबिले तारीफ काम किया, सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का मन बनाया. आप किसी कोर्ट में जाइए नितीश बाबू, और आप जितना सामंती-साम्प्रदायिक ताकतों से खुद को अलग दिखाइए, इस फैसले ने फिर एक बार दिखाया है कि आप हैं उनके साथ ही. भाई पहला तो सवाल यह है कि पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध कराने की जिम्मेवारी किसकी है? और अगर गरीबों को न्याय दिलाने का तुम्हारा इरादा है तो अमीरदास आयोग की रिपोर्ट के अनुसार रणवीर सेना के संरक्षकों पर भी कार्रवाई करो न! इस पर भी बात क्यों न हो कि लोवर कोर्ट को जो लोग हत्यारे लगे वही लोग हाई कोर्ट को हत्यारे क्यों नहीं लगे? और इस फैसले को कई महीने तक रोक कर क्यों रखा गया? राष्ट्रपति जा रहे थे जगजीवन राम जी की मूर्ती का अनवारण करने आरा, पर प्रोग्राम कैंसिल कर दिया. कहा जा रहा है उन्होंने भाजपा के निवेदन पर ऐसा किया. देख लीजिए देश का राष्ट्रपति किनका निवेदन सुनता है. कभी एक राष्ट्रपति ने बाथे जनसंहार को राष्ट्रीय कलंक कहा था. पर आज एक राष्ट्रपति है जो लगातार आ रहे इस तरह के अन्यायपूर्ण फैसलों पर कुछ नहीं बोलता. बल्कि वहां जाने से कन्नी काट लेता है जहाँ जनसंहार के पीडितों से उसे मुलाकात की आशंका होती है. किसके राष्ट्रपति हैं श्रीमान! कांग्रेस की राजनीति के? उसी राजनीति की सामंतपरस्ती के खिलाफ तो बिहार के गरीब मेहनतकशो ने विद्रोह शुरू किया था, जिसका परिणाम यह है कि बिहार से उखड़े तो आज तक उखड़े हुए हैं. लालू भी इसी कारण गए और नितीश भी इसी कारण जायेंगे. जिन्हें आप कुछ नहीं समझते और जिन्हें आप समझते हैं कि उनको शारीरिक तौर पर खत्म कर दिया और न्यायिक तौर पर उनका नामोनिशान मिटा देंगें. वे निर्णायक होंगे. सबकी राजनीति आज साफ तौर पर दिख रही हैं. कौन है जो न्याय के साथ है और कौन है जो अन्याय के साथ खड़ा होके न्याय का नया झांसा दे रहा है. सचमुच जो न्याय के लिए लड़ रहे हैं, उनकी राजनीति को अख़बारों और चैनलों में न देखिए, वहां वह नजर नहीं आएगी . लड़ाई बदस्तूर जारी है. मुगालते में न रहें, यह अन्यायपूर्ण फैसला गरीब मेहनतकशों की राजनीति का अंत नहीं है. क्रूर जातिवादी सामंती सामंती व्यवस्था और कारपोरेट के बल पर राज करने वाली राजनीति के पाखंड और 'हुंकार' दोनों से जनता और समाज को 'ख़बरदार' करने को वह राजनीति तैयार है.

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Economic and Political Weekly
Notes: Conditions of SC/ST Households: A Story of Unequal Improvement
http://www.epw.in/notes/conditions-scst-households.html

S.r. Darapuri
दीक्षा दिवस कब?
एस आर. दारापुरी
यह सर्वविदित है कि डॉ. अम्बेडकर ने 14, अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धम्म परिवर्तन का आयोजन कर पांच लाख लोगों के साथ धम्म परिवर्तन किया था. उस दिन संयोग से हिंदों का विजय दशमी का त्यौहार भी था. इस अवसर पर बाबा साहेब ने नागपुर में दीक्षा समारोह मनाने के कारण तो बताये थे परन्तु 14 अक्टूबर को ही इस का आयोजन क्यों किया गया इसके बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा था.
अतः यह स्वाभाविक था कि हरेक साल 14 अक्तूबर को ही दीक्षा दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए परन्तु ऐसा नहीं हुआ. बाद में दीक्षा भूमि नागपुर में ही 14 अक्तूबर के स्थान पर विजय दशमी के दिन दीक्षा दिवस मनाया जाने लगा. इस का मुख्य आधार यह दिया गया कि इस दिन तथाकथित अशोक धम्म विजय दशमी थी क्योंकि इस दिन ही महान अशोक ने बौद्ध धम्म ग्रहण किया था. अब अगर इमानदारी से देखा जाये तो अब तक कहीं भी इस अवधारणा का ऐतहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है.
अब प्रशन उठता है कि बाबा साहेब ने 14 अक्टूबर के दिन का चुनाव क्यों किया? इस कार्यक्रम के मुख्य संयोजक श्री गोडबोले जी की इस सम्बन्ध में मराठी में छपी पुस्तक में यह उल्लिखित है कि पहले बाबा साहेब धम्म परिवर्तन का कार्यक्रम माह दिसंबर, 1956 में बॉम्बे में करने वाले थे परन्तु बाद में आयोजकों के सुझाव पर इसे केन्द्रीय स्थान नागपुर में करने का निर्णय लिया गया.
विख्यात अम्बेडकरी लेखक श्री. भगवान दास जी ने विचार विमर्श के दौरान मुझे बताया था कि 14 अक्टूबर का चुनाव इस लिए किया गया था क्योंकि उस दिन विजय दशमी के त्यौहार पर दो दिन का अवकाश था. इस समारोह में बहुत सारे सरकारी कार्मचारी भाग लेने वाले थे, अतः उन की सुविधा के लिए 14 अक्टूबर के दिन का चयन किया गया था. यदि 14 अक्टूबर, 1956 को अशोक धम्म विजय दशमी होती तो बाबा साहेब इस का ज़िकर ज़रूर करते.
अब अलग अलग जगह पर दीक्षा दिवस 14 अक्टूबर अथवा अशोक धम्म विजय दशमी अर्थात हिदुओं के विजय दशमी त्यौहार के दिन मनाया जाता है जो कि 14 अक्टूबर से भिन्न होता है. इस से दीक्षा दिवस भी हिन्दुओं के त्योहारों की तरह दो दो अलग दिनों को मनाया जाता है.
14 अक्तूबर के स्थान पर अशोक धम्म विजय दशमी वाले दिन दीक्षा दिवस मनाने वालों का एक तर्क यह भी है कि उस दिन इसे मनाने से बहुत से दलित विजय दशमी के त्यौहार में भाग न लेकर अशोक विजय दशमी में भाग लेंगे. मेरे विचार में यह तर्क तो बिलकुल ही मान्य नहीं है क्योंकि अगर कोई दलित बौद्ध धम्म को मानता है तो वह हिन्दुओं के त्योहर में क्यों जायेगा. दूसरे इस का एक हानिकारक पहलु यह भी है कि उस दिन हिन्दुओं के विजय दशमी का त्यौहार होने के कारण मीडिया में दीक्षा दिवस को उचित स्थान नहीं मिलता. यह बिंदु भी विचारणीय है कि हिन्दुओं के विजय दशमी त्यौहार के दिन ही अशोक ने बौद्ध धम्म ग्रहण किया था इस का अब तक कोई भी ऐतहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है. इस दिन दीक्षा दिवस मनाने से हिन्दुओं के पिछलग्गू अथवा प्रतिक्रियावादी होने का आक्षेप भी लगाया जाता है.
अतः मेरे विचार में बाबा साहेब के सभी अनुयायिओं को 14 अक्टूबर के दिन ही दीक्षा दिवस मनाने के बारे में इमानदारी से पुनर विचार करना चाहिए और एक दिन पर ही इसे सभी जगह मनाया जाना चाहिए. इस से एक तो इस दिवस की एक अलग पहचान बनी रहेगी और दूसरे हिन्दुओं के विजय दशमी त्यौहार से किसी प्रकार का टकराव भी नहीं होगा.



जनज्वार डॉटकॉम
हम एक भी गांव या कस्बा ऐसा नहीं बना पाए हैं जो ग्रहण, पशुबलि और डायन जैसे अंधविश्वासों से मुक्त हो. लोग ऐसी दशा में धकेल दिए गये हैं, जहां अपने जीवन की हर उपलब्धि का श्रेय बाबाओं को दे रहे हैं....http://www.janjwar.com/society/1-society/4406-shiksha-kee-asflta-by-mahesh-chandra-punetha-for-janjwar — with Neelabh Ashk and 50 others.

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Chakraborty Samrat
কাতারে ৭০০ ভারতীয়ের শ্রমিকের মৃত্যু ! ভারত সরকার কেন চুপ ?

আগেই আশংকা প্রকাশ করেছিল ফিফা , কাতারের চরম ভাবাপন্ন আবহাওয়াতে ২০২২ এর বিশ্বকাপ এর প্রতিযোগী দল গুলোর খেলার পারফরমেন্স এর ওপর প্রভাব পড়তে পারে ।২০১১-২০১৩ সালের মধ্যে প্রায় ৭০০ ভারতীয় শ্রমিকের মৃত্যু হয়েছে ।শুধু ভারত নয় নেপাল , ভুটান শ্রীলংকা পাকিস্থান সহ তৃতীয় বিশ্বের বহু শ্রমিক মারা গেছেন সাম্প্রতিক অতীতে ।প্রায় ৭০ জন নেপালি শ্রমিক মারা গেছেন । আশংকা মারা গেছেন প্রায় ৪০০০ শ্রমিক ।আশ্চর্য্যের বিষয় এব্যাপারে কোনো হোলদল নেই দেশের সরকার গুলোর ! মৃত্যুর কারণ গুলো অজানা নয় ।চরমভাবাপন্ন অবোহাওয়াতে দিনে সতেরো থেকে আঠারো ঘন্টা কাজ করতে হচ্ছে শ্রমিকদের ।এই ঠিকা শ্রমিকের দল স্টেডিয়াম , হোটেল , রাস্তা সহ নির্মান কার্যের সঙ্গে যুক্ত ।ইন্টারন্যাশনাল লেবার অর্গানাইজেশানের নিয়ন্ত্রিত বা বিধিকৃত কোনো আইনের তোয়াক্কা না করে মধ্য প্রাচ্যের শেখের দল দেশের শ্রমিকদের ওপর চরম অত্যাচার নামিয়ে এনেছে ।কাতারে পৌছাতেই কেঁড়ে নেওয়া হচ্ছে পাসপোর্ট ।ফলে দেশে ফেরার কোনো বিকল্প থাকছে না ।দিনে সতেরো আঠারো ঘন্টা কাজ করে ঠিক মত খাবার দেওয়া হচ্ছে না । পয়ঃ প্রণালীর ব্যবস্থা শোচনীয় ।বাসস্থানের মান যথেষ্ট খারাপ ।এটাও কি এক ধরনের সন্ত্রাস নয় ? যে দলের এক নেতা দক্ষিন আফ্রিকাতে ভারতীয় দের ওপর নিপীড়নের দেখে রাস্তায় নেমেছিলেন , যাঁকে ট্রেন থেকে নামিয়ে দিলে পাল্টা নিয়েছিলেন তাঁর উত্তরসুরীরা আজ ক্ষমতায় ! এরা কি প্রতিবাদ ভুলে গেছেন ?কি করছে ভারতের হাই-কমিশন ?দেশের সংবাদপত্র গুলোও যেন কেমন নিশ্চুপ ! শ্রমিকের দেখার কথা যাঁদের সেই বাম দলগুলোও তো কিছু করেছে বলে জানা নেই । ধিক ধিক এঁদের । — with Ami Bam Ponthi.

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Prasanta Mukherjee

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Sankha Subhra Ganguly

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1999 Odisha cyclone

From Wikipedia, the free encyclopedia
1999 Odisha cyclone
Super cyclonic storm (IMD)
Category 5 tropical cyclone (SSHS)
05B making landfall
Formed October 25, 1999
DissipatedNovember 3, 1999
Highest winds3-minute sustained:
260 km/h (160 mph)
1-minute sustained:
260 km/h (160 mph)
Lowest pressure 912 mbar (hPa); 26.93 inHg
Fatalities~15,000 direct
Damage$4.5 billion (1999 USD)
Areas affectedIndiaMyanmar
Part of the 1999 North Indian Ocean cyclone season

The 1999 Odisha cyclone, also known as Cyclone 05B, and Paradwip cyclone, was the deadliest tropical cyclone in the Indian Ocean since the 1991 Bangladesh cyclone, and deadliest Indian storm since 1971. The Category Five storm made landfall just weeks aftera category 4 storm hit the same general area.

A tropical depression formed over the Malay Peninsula on October 25. It moved to the northwest and became a tropical storm on October 26. It continued to strengthen into a cyclone on October 27. On October 28, it became a severe cyclone with a peak of 190 mph (305 km/h) winds. It hit India the next day as a 155 mph (250 km/h) cyclone. It caused the deaths of 15,000 people, and heavy to extreme damage in its path of destruction.

Meteorological history[edit]

Storm path

A tropical disturbance developed in the South China Sea in mid-to-late October. It tracked westward and organized itself enough to have the Joint Typhoon Warning Center (JTWC) issue a Tropical Cyclone Formation Alert (TCFA) on October 23. But the system failed to organize itself any further in the Pacific, and the TCFA was cancelled. When the system reached the Andaman Sea on October 25, another TCFA was issued. Shortly after, the convective area consolidated, and it became Tropical Depression 5B on October 25 over theMalay Peninsula. The depression tracked northwestward under the influence of theSubtropical ridge to its north. Warm water temperatures and favorable upper level winds allowed further strengthening, and it became Tropical Storm 5B on October 26, 210 miles (345 km) south-southwest of Yangon,Myanmar.[1]

The storm passed to the south of Myanmar and continued to strengthen, and intensified to a cyclone on the 27th in the open Bay of Bengal. On October 28, the cyclone rapidly intensified to a peak of 160 mph (260 km/h) winds, the equivalent of a Category 5 hurricane.[1] The system was the first storm to be given the new meteorological label "super cyclonic storm" by the IMD.[2]

Just prior to its Indian landfall, the cyclone weakened slightly to a 155 mph (250 km/h) cyclone with an estimated minimum central pressure of 912 mbar.[3] On October 29, the cyclone hit the Indian state of Odisha near the city of Bhubaneswar. The ridge to the north blocked further inland movement, and the cyclone stalled about 30 miles (50 km) inland of the ocean. It slowly weakened, maintaining tropical storm strength as it drifted southward. The cyclone re-emerged into the Bay of Bengal on October 31, and dissipated on November 3 over the open waters.[1]

Preparations[edit]

Tens of thousands of families from the coastal districts of BalasoreBhadrakKendraparaJagatsinghpurPuri, and Ganjam were forced to evacuate their homes before the storm's arrival. More than 44,500 people took shelter in twenty three Red Cross cyclone shelters.[1].[4] Cuttack and Khorda further inland were also severely affected.[3]

Impact and records[edit]

05B with winds of 155 mph (250 km/h)

The cyclone dumped heavy torrential rain over southeast India, causing record breaking flooding in the low-lying areas.[1] The storm surge was 26 feet (8 meters).[5] struck the coast of Odisha, traveling up to 20 km inland.[4] 17,110 km² (6,600 mi²) of crops were destroyed,[6]and an additional 90 million trees were either uprooted or had snapped.[7]

Approximately 275,000 homes were destroyed,[6] leaving 1.67 million people homeless.[7]Another 19.5 million people were affected by the supercyclone to some degree.[7] A total of 9,803 people officially died from the storm, with 40 others still missing,[1] though it is believed that 15,000 people died.[8] 8,119 of those fatalities were from the Jagatsinghpurdistrict. Another 3,312 people were injured. 2,043 out of 5,700, or 36% of the residents ofPadmapur perished.[5] The number of domestic animals fatalities was around 2.5 million,[7]though the number of livestock that perished in the cyclone amounted to only 406,000.[1]The high number of domestic animal deaths may have possibly had to do with around 5 million farmers losing their livelihood. The damage across fourteen districts in India[7] resulted from the storm was approximately $4.5 billion (1999 USD, $5.1 billion 2005 USD).[3]

Ten people in Myanmar were reported to have been killed by the tropical cyclone, while another 20,000 families were left homeless.[9]

When Cyclone 05B reached its peak intensity of 912 mb, it became the most intense Tropical Cyclone of the North Indian Basin.

Aftermath[edit]

Indian Red Cross Society (IRCS) immediately responded with emergency relief,[4] as did BAPS Care International (BAPSCI).[7] The Odisha state branch extended the emergency relief phase to a three-month relief operation and a six-month rehabilitation program with the help of the Federation. The overall humanitarian response spanned well into the late 2000. The Odisha State Branch (OSB) immediately shipped emergency buffer stocks from the Indian Red Cross headquarters in New Delhi.[4] BAPSCI dispatched about 2,340 volunteers to 84 villages greatly affected by the storm. BAPSCI also cremated 700 bodies and buried 3,500 cattle carcasses because many people were superstitious about touching the dead bodies of those they did not know. Three villages were "adopted" by BAPSCI in January 2000 to rebuild, ChakuliaBanipat, and Potak, all in Jagatsinghpur. A total of 200 concrete homes were constructed, as well as two concrete schools and two village tube-wells. The project was finally completed in May 2002, two and a half years after the cyclone hit.[7] As of October 30, 1999, 50,000 people were evacuated from low-lying flooded areas on the coast of the Ganjam andJagatsinghpur districts. More people on the coast of Paradeep were evacuated by the Odisha Government.

The Federation withdrew 200,000 CHF from its Disaster Relief Emergency Fund to send to India, but the Indian Government refused the money, saying the cyclone was not a national disaster.[4]

Many people died of starvation and diseases after the storm, since rescue workers could not reach everyone in time.[10]

See also[edit]

References[edit]

  1. Jump up to:a b c d e f http://www.usno.navy.mil/NOOC/nmfc-ph/RSS/jtwc/atcr/1999atcr/pdf/05b.pdf
  2. Jump up^ R. Ramachandran (November 13, 1999). "Scientific failures"India's National Magazine. Frontline. Retrieved February 23, 2008.
  3. Jump up to:a b c http://www.rmsi.com/PDF/orissasupercyclone.pdf
  4. Jump up to:a b c d e Appeals: India: Cyclone – Oct 1999, India: orissa Cyclone Appeal No. 28/1999 Final Report, Situation Reports: India: Floods – Jul 2001, India: orissa Cyclone Appeal No. 28/1999 Final Report
  5. Jump up to:a b Experts Say Deforestation Caused Cyclone Havoc in India
  6. Jump up to:a b Troubled Times: 1999
  7. Jump up to:a b c d e f ghttp://www.bapscharities.org/services/disaster/1990/1999supercyclone.htm
  8. Jump up^ "Natural catastrophes and man-made disasters in 2008: North America and Asia suffer heavy losses". Swiss Reinsurance Company Ltd. January 21, 2009. p. 38. Retrieved January 18, 2010.[dead link]
  9. Jump up^ http://www.ifrc.org/docs/appeals/rpts99/in005.pdf
  10. Jump up^ "1999: Super-cyclone wreaks havoc in India"BBC News. October 29, 1999. Retrieved April 21, 2010.

External links[edit]

Wikimedia Commons has media related to 1999 Orissa Cyclone 05B.
[hide]
The most powerful tropical cyclones by area of formation or impact
North central Pacific
Hurricane Ioke (2006)
 — 920 hPa
Australia
Cyclone Inigo (2003)
 — 900 hPa
North Indian Ocean
Orissa Cyclone (1999)
 — 912 hPa
Northeast Pacific
Hurricane Linda (1997)
 — 902 hPa
South Pacific
Cyclone Zoe (2002)
 — 890 hPa
Southwest Indian Ocean
Cyclone Gafilo (2004)
 — 895 hPa
North Atlantic
Hurricane Wilma (2005)
 — 882 hPa
Western Pacific
Typhoon Tip (1979)
 — 870 hPa

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