মহাপ্রাণ স্মরণে
চন্ডালের শূদ্র হয়ে ওঠার নেপথ্য কাহিনী।
Arya-Brahmin Vengeance on Bengali-Tamil Dalits & Chakma Adivasi Indigenous Refugees
आंबेडकर की पूजा में हिन्दुत्व का ही अनुकरण कर रहे हैं हम
পলাশ বিশ্বাস
Lok Sabha Debates
SPECIAL MENTION : Problems Faced By Lakhs Of Bengali Refugees With ... on 25 April, 2012
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Title : Problems faced by lakhs of Bengali refugees with regard to citizenship right.
SHRI BASU DEB ACHARIA (BANKURA): Mr. Chairman, Sir, I am raising an issue pertaining to lakhs of people who came as refugees to our country from erstwhile East Pakistan and Bangladesh because of their persecution as minorities.
These refugees have settled and are staying in different parts of the country and in different States like Uttarakhand, Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Chhattisgarh and Orissa. They are staying in these States for years together. In spite of staying here for many years, these refugees have not been granted citizenship in our country.
Sir, an assurance was given by no less a person than the Prime Minister himself that the granting of citizenship of these refugees would be considered favourably but the Central Government, till today, have not considered granting citizenship to lakhs of Bengali refugees.
Sir, when the Citizenship Act was brought before this House in 2003, an amendment was moved and that amendment was supported by all political parties. In spite of the support from the political spectrum of this House, the amendment was not accepted by the Government to grant citizenship to these hapless people. As a result of this, there are Namashudras living in Uttar Pradesh, Chhattisgarh and Uttarakhand. They are recognized as Scheduled Caste in the State of West Bengal but they are not recognized as Scheduled Caste in Uttarakhand, Uttar Pradesh and Chhattisgarh. I have already introduced a Private Member’s Bill in this regard.… (Interruptions)
MR. CHAIRMAN: That is another issue. Please speak about the refugees.
SHRI BASU DEB ACHARIA : Sir, it is the same issue pertaining to the refugees. They are belonging to the Namashudras who are recognized as Scheduled Castes in the State of West Bengal. Although the Government of Uttar Pradesh recommended them for inclusion under Scheduled Caste, that has not been considered. The problem has been accentuated when these people are being excluded by other identification. Now, uncertainty is prevailing in the country.
I demand that Citizenship Act should be suitably amended. Sub-Section 1(b) of Clause 2 of the Act should be amended accordingly to recognize and grant citizenship to the Bengali refugees who migrated from erstwhile Pakistan even before Indira-Mujib Agreement. They have been staying in the country for years together without having a right of citizenship. This uncertainty should be ended. The persecution of lakhs of Bengali refugees should be ended.
I demand that Citizenship Act should be amended to grant citizenship to these Bengali refugees.
Shri P.L. Punia and
Shri Khagen Das are allowed to associate with the issue raised by Shri Basudeb Acharia.
Arya-Brahmin Vengeance on Bengali-Tamil Dalits & Chakma Adivasi Indigenous Refugees
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Arya-Brahmin Vengeance on
Bengali-Tamil Dalits & Chakma Adivasi Indigenous Refugees
(Copyright-free E-Book)
[Earlier Printed in half yearly journal "Scientists for Social Change", edited by Sheetal Markam, Commander in Chief Gondwana Mukti Sena, India ]
Parts of the E-Book
Dedication
We present this E-Book at the feet of
Our Brave Namoshudra Dalit Community Who is Still suffering the Vengeance of Arya-Brahminists for Protecting
the Self-Respect of Dr. B.R. Ambedkar.
We the followers of Dr. B.R. Ambedkar
must forge Iron-Solidarity with Our Namoshudra Brethren
to Retaliate this Arya-Brahminist Vengeance
and to wipe out the Stigma of “Betrayers”
आंबेडकर की पूजा में हिन्दुत्व का ही अनुकरण कर रहे हैं हम
आंबेडकर की मूर्ति पर मत्था टेककर बहुजन समाज का वोट लूट ले जाते हैं लोग
एटीएम मशीन की तरह आंबेडकरवाद सबको नकद भुगतान कर रहा है
आंबेडकर मिशन आंबेडकर के निधन के बाद जबरन चंदा वसूली से आगे एक कदम नहीं बढ़ा
क्या आंबेडकर जयंती मनाने का हमें हक भी है?
पलाश विश्वास
देश विदेश में आंबेडकर अनुयायी सालाना रस्म बतौर आंबेडकर जयंती मनाने की तैयारी में हैं। हमारी आस्था ने उन्हें ईश्वर का दर्जा दे दिया है। किसी ईश्वर की कोई विचारधारा नहीं है। संघ परिवार का हिन्दुत्व उन्माद भी कोई विचारधारा नहीं है। लेकिन कम से कम हिन्दुत्ववादी आस्था को आन्दोलन में बदलने में कामयाब है और मनुस्मृति की अर्थ व्यवस्था के मुताबिक वर्चस्ववादी सत्ता भी उन्हीं की है। हम आंबेडकर की पूजा में हिन्दुत्व का ही अनुकरण कर रहे हैं। वरना क्या कारण है कि बहुजन समाज के निर्विवाद नेता को भारतीय राजनीति में किनारे कर दिया गया, फिर उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी, उन्हीं के आन्दोलन की वजह से संसद और विधानसभाओं में पहुँचे बहुजन समाज के पूना पैक्टी प्रतिनिधि तब से निरन्तर खामोशी अख्तियार किये हुये हैं। बिना समुचित जाँच पड़ताल के उनकी मृत्यु पर हमेशा के लिये पर्दा डाल दिया गया । आज सूचना के अधिकार के तहत जब प्रश्न किया जाता है तो भारत सरकार टका सा जवाब देती है कि डॉ. आंबेडकर की कैसे मृत्यु हुयी, उसे नहीं मालूम। भारत सरकार के पास डॉ. भीमराव अम्बेडकर की मौत से जुड़ी कोई जानकारी नहीं है।
आंबेडकर कोई मामूली हस्ती तो थे नहीं। संविधान निर्माता थे। वोट की राजनीति में जहाँ उनके प्रबल प्रतिद्वंद्वी गाँधी और संसदीय राजनीति के धुरंधर राम मनोहर लोहिया को सत्ता वर्ग ने गैर प्रासंगिक बना दिया है, वहीं आंबेडकर के बिना किसी भी रंग की राजनीति का कम नहीं चलता। बहुजन वोट आंबेडकर आराधना से ही मिल सकता है। इसलिये आंबेडकर आन्दोलन और विचारधारा की बजाय दुर्गा पूजा और आईपीएल बतर्ज आंबेडकर जयंती व आंबेडकर निर्वाण उत्सव का प्रचलन हो गय़ा। लोग आंबेडकर की मूर्ति पर मत्था टेककर बहुजन समाज का वोट लूट ले जाते हैं। बहुजनों की आर्थिक सम्पन्नता, सामाजिक न्याय, समता और जाति उन्मूलन का एजेण्डा सिरे से खारिज हो गया। एटीएम मशीन की तरह आंबेडकरवाद सबको नकद भुगतान कर रहा है। इसके अलावा हमने आंबेडकर की कोई प्रासंगिकता नहीं बनाये रखी। मौजूदा सवालों, चुनौतियों और संकट से मुखातिब हुये बिना हमें क्या हक है कि हम आंबेडकर के नाम अपने निजी हित साधते रहे, आंबेडकर जयंती पर यह सवाल सबसे बड़ा है।
काँग्रेस दलितों के वोटों पर कब्जा करने के लिये आंबेडकर के नाम का जाप करती है तो संघ परिवार भी पीछे नहीं है। मसलन इस वर्ष दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का परचम लहराने के लिये पार्टी ने ग्रामीण क्षेत्रों के बाद अब दलितों में पैठ बनाने की दिशा में कई कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की है। आंबेडकर के संविधान को खारिज करके खुलेआम मनुस्मृति की व्यवस्था लागू करने की मुहिम में जुटा संघ परिवार जाति उन्मूलन, सामाजिक न्याय और समता के विरुद्ध है। लेकिन सिर्फ दिखावे के लिये कोई भी आंबेडकर का नाम लेकर हमें बेहद आसानी से ठग सकता है, क्योंकि आंबेडकर अनुयायियों को उनकी विचारधारा और आन्दोलन के बारे में सही जानकारी नहीं है।
राम मनोहर लोहिया भारतीय यथार्थ के सन्दर्भ में जातिव्यवस्था के वास्तव को सम्बोधित करने की कोशिश कर रहे थे, उनके अनुयायी और आंबेडकर अनुयायी अपने-अपने वोट बैंक के गणित के मुताबिक जाति अस्मिता के आधार पर सत्ता में हिस्सेदारी की राजनीति करके न सिर्फ सत्ता में शासक वर्ग का आधिपत्य बनाये रखने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं बल्कि उनकी जाति अस्मिता की वजह से बहुजन समाज के घटक अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़े और अल्पसंख्यक अलग-अलग पहचान के जरिये भारत में बहुजन समाज का निर्माण को विलम्बित कर रहे हैं।
पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं। आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना।
यह कटु सत्य है कि गोलमेज सम्मेलन के मौके पर पंजाब के बाल्मीकि समुदाय ने खून से लिखकर एक चिट्ठी ब्रिटिश सरकार को भेजकर आंबेडकर को भारत में दलितों का प्रतिनिधि बताकर गाँधी के इस तर्क का खण्डन किया था कि आंबेडकर नहीं, गाँधी ही भारत में दलितों के प्रतिनिधि हैं। लेकिन बाद में बाल्मीकि गाँधी के समर्थक हो गये। विभाजन से पूर्व मुख्यतः महाराष्ट्र के महार और बंगाल के नमोशूद्र दो जातियाँ ही आंबेडकर के साथ खड़ी थीं। जब काँग्रेस ने आंबेडकर के लिये संविधान सभा में पहुँचने के दरवाजे और खिड़कियाँ तक बन्द कर दी थीं, तब जोगेन्द्रनाथ मण्डल, मुकुन्द बिहारी मल्लिक जैसे मतुआ अगुवाइयों की पहल पर उन्हें जैशोर, खुलना,फरीदपुर, बरिशाल के चुनाव क्षेत्र से पार्टी लाइन तोड़कर नमोशूद्र विधायकों ने ही संविधान सभा में भेजा।
इनमें जोगेंद्र नाथ मण्डल तो मुस्लिम लीग समर्थित भारत के कानून
मन्त्री थे, लेकिन मुकुंद बिहारी मल्लिक जैसे बाकी लोग
मुस्लिम लीग की राजनीति के कट्टर
विरोधी थे।
इसी वजह से हिन्दू बहुल आंबेडकर का पूरा चुनाव क्षेत्र पाकिस्तान में बिना किसी जमीनी सर्वे या सुनवाई के पाकिस्तान में डाल दिया गया आंबेडकर वहाँ की दलित विभाजन पीड़ित आंबेडकर अनुयायी जातियों को शरणार्थी बनाकर भारत भर में बिखेर दिया गया। फिर उनकी नागरिकता छीनने के लिये नागरिकता संशोधन कानून और आधार कार्ड योजना बहुजन सांसदों के समर्थन के साथ सर्वदलीय सहमति से लागू हो गया। इन शरणार्थियों को न मातृभाषा का अधिकार मिला और न आरक्षण का लाभ, लेकिन दलित होने के नाते वे नस्ली भेदभाव के शिकार हैं और बहुजन समाज भी उनके समर्थन में खड़ा नहीं हुआ।
इसके विपरीत जो जातियाँ आंबेडकर विरोध में सबसे आगे थीं, वे आरक्षण और सत्ता में भागेदारी के जरिये कमजोर अनुसूचितों के हक मार रही हैं। पिछड़े आंबेडकर का साथ देते तो हिन्दू कोड और पिछड़ों को आरक्षण की माँग लेकर आंबेडकर को भारत सरकार से त्यागपत्र नहीं देना होता और इन पर तत्काल अमल हो जाता। भूमि सुधार और सम्पत्ति के बँटवारे के बारे में आंबेडकर के प्रस्ताव भी लागू हो जाते। अब हालत यह है कि आंबेडकर की पहल मुताबिक आगे चलकर मण्डल कमीशन रपटलागू होने से सत्तावर्ग के मुख्य सिपहसालार, अनेक राज्यों के मुख्यमन्त्री पिछड़े वर्ग के लोग हैं।
हिन्दुत्ववादी कॉरपोरेट अश्वमेध के रथी महारथी, संघी प्रधानमन्त्रित्व के दावेदार नरेंद्र मोदी से लेकर रामजन्मभूमि आन्दोलन के सिपाहसालार कल्याणसिंह, उमा भारती, विनय कटियार जैसे लोग पिछड़े वर्ग से हैं। यहीं नहीं, मध्य बिहार और बाकी देश में दलितों के उत्पीड़न में सवर्ण जातियों के बजाय पिछड़ी जातियों की ही प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन आरक्षण और सत्ता में भागेदारी के सवाल पर पिछड़ी जातियाँ आंबेडकर अनुयायी बन गयी हैं, ठीक उसी तरह जैसे वे हिन्दुत्व के सबसे प्रबल अनुयायी हैं।
अब मजबूत पिछड़ी जातियों का आंबेडकर आन्दोलन का एकमात्र एजेण्डा अपनी अपनी जाति के लिये आरक्षण हासिल करना है। यह ठीक वैसा ही है जैसे सत्ता से बेदखल ब्राह्मण उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज की राजनीति करते हैं।
आंबेडकरवादी आरक्षण प्रत्याशी ओबीसी की गिनती के सहारे आंबेडकरवादी मिशन को अंजाम देने में लगे हुये हैं और पिछड़ों के नेता संघी मोर्चा का नेतृत्व करते हुये, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिये यज्ञ महायज्ञ करते हुये उनके साथ बने हुये हैं और इसी के जरिये वे कॉरपोरेट राजनीति में अपनी अपनी पैठ बना रहे हैं। इसी को भौगोलिक और सामाजिक नेटवर्किंग कहा जा रहा है।
आंबेडकर मिशन आंबेडकर के निधन के बाद जबरन चंदा वसूली से आगे एक कदम नहीं बढ़ा, तो सिर्फ इसलिये कि जाति अस्मिता से अलग आंबेडकर विचारधारा और आन्दोलन को निनानब्वे फीसद जनता के हक हकूक की लड़ाई में प्रासंगिक बनाने की कोई पहल नहीं हुयी। आंबेडकर आन्दोलन सत्ता में भागेदारी का पर्याय बनकर रह गया। यहीं नहीं, आंबेडकर ब्राह्मणवाद और पूँजीवाद को प्रमुख दुश्मन बताते थे। तो हमने ब्राह्मणों को प्रमुख दुश्मन बताकर आन्दोलन को ब्राह्मणवाद और पूँजीवाद दोनों के समर्थन में खड़ा कर दिया।
इसी तरह अलग दलित आन्दोलन और अलग पिछड़ा आन्दोलन जारी रखकर सत्ता के खेल में इस्तेमाल होते हुये आंबेडकर अनुयायियों ने इस तथ्य को सिरे से नज़र अंदाज कर दिया कि जाति व्यवस्था तो नस्ली भेदभाव के तहत, वंशवादी शुद्धता के तहत सिर्फ शूद्रों और अस्पृश्यों में हैं। बाकी शासक वर्ग तो वर्णों में शामिल हैं, जिनका उत्पादन प्रणाली से कोई सम्बंध नहीं हैं। वे या तो पुरोहित हैं या फिर भूस्वामी या फिर वणिक। किसान जातियाँ ही देश के अलग अलग हिस्से में अलग अलग नामकरण के साथ अलग अलग पैमाने के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जातियाँ हैं। नस्ली भेदभाव के तहत सम्पूर्ण हिमालय, पूर्वोत्तर और आदिवासी भूगोल के दमन और उत्पीड़न को आंबेडकरवादी बहुजन आन्दोलन ने सिरे से नजरअंदाज किया और यह भूल गये कि आंबेडकर विचारधारा और आन्दोलन कुल मिलाकर भारत के किसानों और आदिवासियों के महासंग्राम की निरन्तरता की ही परिणति है। साम्राज्यवाद और पूँजीवाद के विरुद्ध और अधुनातन कॉरपोरेट साम्राज्यवाद के विरुद्द दुनिया भर में नस्ली भेदभालव के शिकार अश्वेत आदिवासियों की नेतृत्वकारी बलिदानी भूमिका न सिर्फ हम भूल गये बल्कि इस महाशक्ति को हम अपने आन्दोलन की मुख्य शक्ति बनाने के कार्य भार से चूक गये। इसके विपरीत हिन्दू साम्राज्यवाद ने तो आदिवासी इलाकों को अपना आधार क्षेत्र बना लिया है, माओवादी चुनौती को तोड़ते हुये भी। हालत यह है कि हिदुत्ववादी ग्लोबल साम्राज्यवाद के हित साधते हुये आदिवासी ही आदिवासी के खिलाफ सलवा जुड़ुम में शामिल हैं। आदिवासी इलाकों में बहुजन आन्दोलन के बहाने अब कुछ आंबेडकरवादी संगठन भी आदिवासियों को आदिवासियों से लड़ाने के खेल में शामिल है। आंबेडकर की हत्या शासक वर्ग ने सही मायने में नहीं की, बल्कि बहुजन समाज की आत्मघाती प्रवृत्तियों के कारण ही आंबेडकर की हत्या की प्रक्रिया अत्यंत वैज्ञानिक तरीके से जारी है। चूंकि इस हत्या में हम स्वयं शामिल हैं, तो प्रतिरोध तो दूर, जाँच पड़ताल की माग भी नहीं उठा सकते हम!
बहुजन समाज का निर्माण उत्पादक व सामाजिक शक्तियों के एकीकरण के बिना असम्भव है, इस हकीकत को सिरे से नजरअंदाज किया जा रहा है। अपढ़ बहुसंख्य वंचित शोषित जनता की कौन कहें, आंबेडकर विचारधारा और आन्दोलन की वजह से जो अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग हैं, बेहतरीन ओहदों पर हैं और आंबेडकर विचारधारा के घोषित विशेषज्ञ हैं, वे भारतीय जनता और खासतौर पर बहुजन समाज के मौजूदा संकट से मुखातिब होने का कोई प्रयत्न नहीं कर रहे हैं। मेरे दिवंगत पिता कहा करते थे कि किसी भी विचारधारा की सही प्रासंगिकता जनता के अस्तित्व के लिये खतरनाक संकटों के समाधान की कसौटी से है, व्यक्ति से नहीं। दुनिया भर में कोई भी विचारधारा जस की तस जड़ नहीं है। वामपंथी आन्दोलन पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में देश काल परिस्थिति के मुताबिक बदलता रहा है। जाहिर है कि आंबेडकर के निधन से पहले कॉरपोरेट साम्राज्यवाद, एकध्रुवीय विश्व और मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था जैसी परिस्थितियों नहीं थी। ऐसा मार्क्स, लेनिन और माओ के जीवनकाल में भी नहीं था। पर दुनिया भर में वामपंथ के समर्थक इन प्रश्नों और चुनौतियों के समाधान के रास्ते निकालने में लगे हैं। वे संशोधनवादी और क्रान्तिकारी दोनों किस्म के लोग हैं। लेकिन इसके नतीजतन साठ और सत्तर दशक के वामपंथी आन्दोलन और वैश्विक व्यवस्था के मुताबिक के अलग अलग देशों में वामपंथी आन्दोलन के अलग अलग रुप सामने आये हैं। पर हमारे लोग तो आंबेडकर के उद्धरणों के दीवाने हैं, उससे इतर हम कुछ भी विचार करने को असमर्थ हैं। हम तो अंधे भक्तों की जमात हैं। ईश्वरों और अवतारों के अनुयायी। आस्था ही हमारा संबल है। विचारधार और आन्दोलन नहीं। इसललिये आंबेडकरवादी होते हुये हम कब संघी एजेण्डा के मुताबिक हिन्दुत्ववादी हो जाते हैं, हमें पता ही नहीं चलता।
भारत में किसान आन्दोलनों का इतिहास, उत्पादन सम्बंधों के बदलते स्वरूप और आदिवासी विद्रोह के कारण गौतम बुद्ध के समय से वर्चस्ववादी वैदिकी ब्राह्मणवाद के विरुद्ध निरन्तर जो जनविद्रोह हुये, उसमें सूफी संतों, आदिवासी किसान विद्रोहों के महानायकों, मतुआ आन्दोलन के जनक हरिचांद ठाकुर और उनके उत्तराधिकारी गुरुचांद ठाकुर, महात्मा ज्योतिबा फूले, पेरियार रामस्वामी और नारायण गुरु सबकी अपनी अपनी भूमिका है। उन लोगों ने अपने-अपने ढंग से अपने-अपने देस काल को सम्बोधित करने की कोशिश की। डॉ. आंबेडकर ने किसी को खारिज नहीं किया बल्कि सभी विचारधाराओं के सम्यक अध्ययन के तहत अपना खास रास्ता चुना, जो पूर्वजों के आन्दोलन का जस का तस अनुकरण तो कतई नहीं है।
अगर आंबेडकर विचारधारा के मुताबिक कुछ प्रश्न अनुत्तरित भी रह जाते हैं, तो उनकी ऐतिहासिक भूमिका खारिज नहीं हो सकती। हमें उन अनुत्तरित सवालों का जवाब खोजना चाहिये। दलित पैंथर आन्दोलन ने एक अच्छी क्रान्तिकारी शुरुआत की थी, लेकिन वह आन्दोलन भी बाकी बहुजन आन्दोलन की तरह भटक गया। कुछ लोग जरूर इस कवायद में लगे हैं। लेकिन बाकी लोगों में तो अवतारवाद और आस्था का इतना ज्यादा असर है कि वे कतई यह मुश्किल कवायद नहीं करना चाहते, जिसके जरिये आंबेडकर विचारधारा और आन्दोलन को भारतीय जनता के समक्ष हिन्दू साम्राज्यवाद और कॉरपोरेट साम्राज्यवाद से निपटने के लिये राष्ट्रव्यापी जनांदोलन और प्रतिरोध का हथियार बनाया जा सके, जो आंबेडकर की प्रासंगिकता को बनाये रखने के लिये बेहद जरूरी है।
अगर आंबेडकर विचारधारा और आन्दोलन को हम बहुसंख्य भारतीय बहिष्कृत जनता ही नहीं, इस उपमहाद्वीप और उससे बाहर ग्लोबल हिन्दुत्व और जायनवादी वैश्विक कॉरपोरेट व्यवस्था के प्रतिरोध में खड़ा नहीं कर सकते, तो आंबेडकर चर्चा अंततः वैदिकी संस्कार में ही निष्णात हो जाना है जो हो भी रहा है। क्योंकि जाति अस्मिता और सत्ता में भागेदारी का जो आंबेडकर आन्दोलन का प्रस्थान बिन्दु हमने बना दिया है, उससे जीवन के किसी भी क्षेत्र में शासक वर्ग का वर्चस्व तनिक कम नहीं हुआ बल्कि बहुजनों के हितों के विरुद्ध बहुजन समाज हिन्दू साम्राज्यवाद और कॉरपोरेट साम्राज्यवाद की पैदल सेना में तब्दील है। इस यथार्थ के महिमामण्डन से मौजूदा संकट के मुकाबले हम न आंबेडकर विचारधारा और न आंबेडकर आन्दोलन को सार्थक और सकारात्मक बनाने में कोई कामयाबी हासिल कर सकते हैं।
आंबेडकर विचारधारा और आन्दोलन को प्रासंगिक बनाने के लिये न दलितों की ओर से और न ही पिछड़ों की ओर से, बल्कि भारत के आदिवासी समाज, जो किसी भी जनप्रतिरोध के स्वाभाविक नेता है, की ओर से सबसे सकारात्मक पहल हुयी है, संविधान बचाओ आन्दोलन के तहत। बाबा साहेब के संविधान के तहत भारतीय आदिवासी समाज न सिर्फ मौलिक अधिकारों, पांचवीं और छढी अनुसूचियों, धारा 39 बी, धारा 39 सी के तहत हासिल रक्षाकवच को लागू करने की माँग कर रहे हैं, बल्कि वे बहुजन आन्दोलन को जल-जंगल-जमीन आजीविका, नागरिकता नागरिक मानवाधिकारों से जोड़ते हुये साधन संसाधनों पर मूलनिवासियों के हक हकूक का दावा पेश करते हुये पूना समझौते के तहत चुने गये तथाकथित जनप्रतिनिधियों के कॉरपेरेट नीति निर्धारण और उनके बनाये कॉरपोरेट हित साधने वाले कानून के विरुद्ध महासंग्राम का ऐलान कर रहे है। आंबेडकर विचारधारा और आन्दोलन के लिये आगे का रास्ता दरअसल इतिहास के खिलाफ भूगोल के इस महायुद्द से ही तय होना है। अब सिर्फ आंबेडकरवादियों को ही नहीं, लोकतान्त्रिक व धर्मनिरपेक्ष गैर आंबेडकरवादियों को भी तय करना है कि हम किस तरफ हैं।
চন্ডালের শূদ্র হয়ে ওঠার নেপথ্য কাহিনী।
লিখছেনঃ Nagraj Chandalচন্ডাল একটি বল-বীর্য সমন্বিত অর্থ দ্যোতক শব্দ। চন্ডের সঙ্গে জাতি সূচক আল প্রত্যয় যুক্ত হলে চন্ডাল হয়। এমনি ভাবে লাঙ্গল,জোঙ্গাল,জঙ্গল,ডাঙ্গাল,বহাল,খেড়ওয়াল,সাঁওতাল,বঙ্গাল প্রভৃতি আদি অস্ট্রাল শব্দগুলির ব্যুৎপত্তিগত বিশ্লেষণ করলেই চণ্ডাল শব্দের গুনগত এবং অর্থগত অভিব্যক্তিটি যথার্থ প্রতিভাত হয়ে উঠবে। ঋকের অনেকগুলি শ্লোকের রচয়িতা বিশ্বামিত্র ছিলেন চণ্ডাল। গুহক চণ্ডাল,রাজা হরিশ্চন্দ্রের কাহিনী অনন্যতার অন্যতম শ্রেষ্ঠ উদাহরণ। জাতক কাহিনীতে বোধিসত্ত্বকে সততার প্রতীক হিসেবে চণ্ডাল বলে আখ্যায়িত করা হয়েছে বহুবার। কার্যসিদ্ধির জন্য সুদাস,মনু,অগ্নী,বরুন প্রভৃতি দাস বা অসুর নেতাদের ও যথেষ্ট গুরুত্ব দেওয়া হতো বৈদিক সাহিত্যে। অর্থাৎ রক্ষস (পরবর্তী কালে রাক্ষস বলা হয়েছে), অসুর,নাগ,চণ্ডাল শব্দগুলি কোন ভাবেই ঋণাত্মক নয় বরং গুণবাচক এবং ধ্বনাত্মক ।
অন্যদিকে নমঃশূদ্র শব্দটি একেবারেই অর্বাচিন বৃটিশ আমলের আরোপিত হীনাত্মক শব্দ। প্রাচীন কোন শাস্ত্রেই এই জাতির কোন উল্লেখ নেই।
১৯১১ সালের সেন্সাসে বাঙলার জাতিগুলির মধ্যে নাম পরিবর্তনের একটা হিড়িক তৈরি করা হয়েছিল। ছোটজাতগুলোকে হিন্দুভুত করার জন্য বাংলার তৎকালীন দিকগজ পণ্ডিতদের উৎসাহ ছিল চোখে পড়ার মত। "জাতির উন্নয়ন" নামক গাল ভরা নামকরণের আড়ালে তারা বিজ্ঞাপন জারি করেছিলেন। প্রায় চল্লিশজন নামকরা মহা পণ্ডিত এই বিজ্ঞাপনে সই করে লিখে ছিলেন, "The caste called Namasudra is Brahmin by origin beging descended from the great Brahmin, Kashypa and not "Chandal'। শুধু চন্ডাল নয় এই হিড়িকে সামিল হয়েছিল বাংলা, বিহার ও আসামের তথাকথিত ছোটজাতেরা। আবেদন পত্রের ওজন ছিল দেড় মন। চন্ডালেরা চেয়েছিল নমঃ ব্রাহ্মণ নাম, কোচরা চেয়েছিল ক্ষত্রিয়, বৈদ্যরা চেয়েছিল ব্রাহ্মন, কাপালিরা চেয়েছিল বৈশ্যকাপালি , বাগদিরা চেয়েছিল ব্যগ্রক্ষত্রিয়,হাঁড়িরা চেয়েছিল ক্ষত্রিয়, সুবর্ণ বিনিকেরা চেয়েছিল বৈশ্য আর পোদরা চেয়েছিল পৌণ্ড্রক্ষত্রিয়। বিহারের ভূমিহারেরা হল ব্রাহ্মণ। কায়স্থরা প্রথমে শূদ্র পরে ক্ষত্রিয়। দুসাদেরা দাবি করেছিল ক্ষত্রিয়ত্বের।
এর আসল কারন ছিল আইন সভায় সংখ্যা অনুপাতে প্রতিনিধিত্ব করা। বিংশ শতকের শেষ দশকে আগাখাঁ ভাইয়েরা যখন সঠিক ভাবে লোক গণনার জন্য সরকারকে চাপ দিচ্ছিলেন, এবং বার বার প্রমান দাখিল করছিলেন যে, হাড়ি, ডোম, চন্ডাল, সাঁওতালরা কেউই হিন্দু নয়। সংখ্যা অনুপাতে মুসলমানেরাই অনেক বেশী তাই আইন সভায় তাদের বেশী প্রতিনিধি পাওয়া উচিৎ। তখন প্রোমাদ গুনেছিলেন ভূদেবতারা। স্বর্গ বুঝি যায় যায়। সংখ্যা ভারি না হলে বিপদ। যুগযুগ ধরে ঘৃণিত ছোটজাতগুলি মুসলমান শক্তির সাথে পূর্বের মতো হাত মেলালে খাইবার বোলান গিরি পথ দিয়ে ফিরে যাওয়া ছাড়া উপায় নেই। সুতরাং জাতির উন্নয়ন চাই। বিবেকান্দ উদাত্ত কন্ঠে বাহ্মন দের উদ্দেশ্যে আহ্বান করলেন, "এখনো সময় আছে, তুমি কোটিমাত্র বস্ত্রাবৃত হইয়া বল ব্রাহ্মণ ভারতবাসী, মূর্খ ভারতবাসী, চন্ডাল ভারতবাসী, মুচি, মেথর তোমার রক্ত তোমার ভাই।"
১৮৭৫ সাল পর্যন্ত যাদের ছায়া পর্যন্ত ব্রাহ্মণদের দূষিত করত দুই দশকের মধ্যে তারা হয়ে গেল, তোমার রক্ত, তোমার ভাই!আসামের চিফ কমিশনার ১৮৮৫ সালের ৮ই আগস্ট কাছাড় জেলার ডেপুটি কমিশনারকে চিঠি দিয়ে জানালেন যে, চন্ডালদের নমশূদ্র হিসেবে স্বীকৃতি দিতে আর কোন আপত্তি নেই। তারপর ওই চল্লিশজন ভূদেবতা জানান যে নমশূদ্ররা চন্ডাল নয়, তারা ব্রাহ্মন দেবতার সন্তান । পূজনীয় এবং নমস্য।
১৮৮৭ তে খুলনার কমিশনার সাহেবের সভায় সচিয়াদহ নিবাসী উমাচরন বিশ্বাস 'শক্তিসঙ্গম তন্ত্র'নামে একখানি শাস্ত্রের প্রাণতোষী নামক অধ্যায়ে "হর-পার্বতী সংবাদে" নম জাতির উল্লেখ আছে বলে লিখিত অংশ পড়ে শোনান এবং দাবী করেন যে তারা নমস মুনির সন্তান। নমস শুদ্র কন্যা বিবাহ করেন। তাই এই জাতি নমঃশূদ্র নামে পরিচিত । পিতৃ সূত্রে তারা বাহ্মন।
যাইহোক 'জাতির উন্নয়ন'নামে তৎকালীন ছোটজাতগুলির মধ্যে হিন্দু করণের হিড়িক পড়ে যায়। ব্রাহ্মনের আইন সভায় যাওয়ার প্রতিনিধি সংখ্যা বাড়ে। কিন্তু জাতিগুলি সিডিউল্ড তালিকা ভুক্ত হয়ে ব্রাহ্মনের স্থায়ী দাসে পরিণত হয়ে যায়। ১৯১১ সালের সেন্সাসে স্বাধীন বোধি চিত্ত সম্পন্ন একটি প্রাগ বৈদিক জাতি শুদ্রত্বে উন্নীত হয়।
Some References :
- The Census Report 1891, Voll-III, p 255-57
- The Census Report of Bengal 1909, p-396
- Jassor Kulnar Itihas, Satishchandra Mitra, p-179-80
- The People of India, Risley, p-76
- Bibidha Prabandha, Bankim Chandra Chattapadhya, p-315-345.
- Jati, Varna O Bangali Samaj edited by Sekhar Bandyapadhyaya p-125-143
- The District of Bakharganj, Faridpur, Jassor and Khulna, Risley p-1-10.
মহাপ্রাণ যোগেন্দ্রনাথ মণ্ডল তথা নমঃশূদ্ররা শূদ্র নয়
৩ জুন ২০১১ সংখ্যায় কালের কণ্ঠের সাহিত্য পাতা 'শিলালিপি'তে প্রখ্যাত সাহিত্যিক দেবেশ রায় রচিত 'বরিশালের যোগেন মণ্ডল' নামের উপন্যাসটির ওপর মিহির সেনগুপ্ত সমালোচনা করতে গিয়ে উদ্দেশ্যপ্রণোদিতভাবে মহাপ্রাণ যোগেন মণ্ডলসহ সমগ্র নমঃশূদ্র সম্প্রদায়কে খাটো করেছেন। সে মণ্ডল মহাশয়কে 'চণ্ডাল অভ্যুদয়ের নিঃসঙ্গ নায়ক' শিরোনাম দিয়ে নিবন্ধটি উপস্থাপন করে ধৃষ্টতাপূর্ণ আচরণ করেছেন। আমরা এর জোর প্রতিবাদ জানাচ্ছি।
শ্রী দেবেশ রায় তাঁর উপন্যাসে মহাত্মা যোগেন্দ্রনাথ মণ্ডলকে বিভিন্ন কারণে একজন মহান ব্যক্তি হিসেবে তুলে ধরেছেন। কিন্তু মিহির সেন হয়তো বইটি আত্মস্থ করতে সমর্থ হননি, যার কয়েকটি দৃষ্টান্ত এখানে তুলে ধরছি :
(ক) সে শিষ্টাচারবর্জিতভাবে এমন একজন শ্রদ্ধাস্পদ প্রয়াত ব্যক্তিকে বারে বারে শুধু 'যোগেন যোগেন' লিখে উপস্থাপন করেছেন। এ তাচ্ছিল্য না করে 'যোগেন্দ্রনাথ' বলে তিনি যথার্থ সম্মান দেখাতে পারতেন। একইভাবে কোনো সম্মানীয় ব্যক্তিকে 'সে' না বলে 'তিনি' বলতে হয়_তাও করেননি।
তিনি শুধু সম্মানীয় নয়, পরম সম্মানীয়। কারণ তিনি ১৯৩৭ সালে অবিভক্ত বাংলার আইনসভার সাধারণ আসনে স্বতন্ত্র প্রার্থী হিসেবে এমএলএ নির্বাচিত হন। তারপর তিনি নাজিমুদ্দিনের মন্ত্রিসভায় সমবায় ও ঋণদানমন্ত্রী হন। আবার ১৯৪৬ সালে এমএলএ নির্বাচিত হয়ে ফজলুল হক-সোহরাওয়ার্দীর মন্ত্রিসভায় বিচার ও পূর্তমন্ত্রীর দায়িত্ব পান। শেষ পর্যায়ে অবিভক্ত ভারতের অন্তর্বর্তী কেন্দ্রীয় সরকারের আইনমন্ত্রীর দায়িত্ব পালন করেন। অথচ মিহির সেন একজন ছোটলোক অর্বাচিনের মতো তাঁকে অশ্রদ্ধা করেছেন প্রতি ক্ষেত্রে।
(খ) মিহির লিখেছেন, 'বাঙালি হিন্দুর জাতপাত এবং বর্ণভেদের ওপর তাঁদের সমাজটা প্রতিষ্ঠিত। এর উদ্ভব তথাকথিত আর্য ব্রাহ্মণ বর্ণাশ্রম প্রথা থেকেই।'
তিনি এসব অযৌক্তিক কথা লিখে পুরো হিন্দু সমাজটাকেই খাটো করেছেন। কারণ বিশ্বায়নের (Globalization) এ যুগে কোনো সাম্প্রদায়িকতা বা বর্ণবৈষম্যবাদকে প্রশ্রয় দেওয়া হয় না। বর্তমানে বিশ্বে স্বীকৃত হচ্ছে, Survival of the fittest বা যোগ্যতাই মূল্যায়নের মাপকাঠি। ব্রাহ্মণের ছেলে লেখাপড়া না জানলেও তাকে সম্মান করতে হবে, সে যুগ নয়। এ বিষয়ে প্রাচীন হিন্দু ইতিহাস মহাভারতের মূল্যবান ঋষিদের উক্তি রয়েছে_
'শূদ্রেতু যদ্ভবেৎ লক্ষনং দ্বিজেতচ্চন বিদ্যতে।
নৈবশুদ্রো ভবেচ্ছূদ্রো নৈব সঃ চ ব্রাহ্মণ।'
অর্থাৎ শূদ্রে যদি ব্রাহ্মণের লক্ষণসকল দেখা যায় তাহলে সে ব্রাহ্মণই। ব্রাহ্মণে যদি শূদ্রের লক্ষণ দেখা যায়, তাহলে সে ব্রাহ্মণ নয়, শূদ্রই।
(গ) মিহিরের উক্তি, 'অস্পৃশ্য অন্তজ পর্যায়ে যে মানবগোষ্ঠী, যাদের নীচে আর কেউ নেই, তেমন এক জাতক হচ্ছেন যোগেন। চাতুর্বর্ণীয় বিধি অনুযায়ী, সে শূদ্রও নয়, অসৎ শূদ্রের নিম্ন পর্যায়ে।
মিহির সম্পূর্ণ মিথ্যার আশ্রয় নিলেও শেষ কথাটি সত্য বলেছেন, 'সে শূদ্রও নয়'। কারণ মনুসংহিতায় ৫/৮৩ সুক্তে বলা হয়েছে, 'শুধ্যাদ্বিপ্রে দশাহেন, দ্বাদশাহেন ভূমিপঃ বৈশ্যঃ পঞ্চদশাহেন, শূদ্রো মাসেন শুধ্যতি।' অর্থাৎ ব্রাহ্মণ দশ দিনে, ক্ষত্রিয় বারো দিনে, বৈশ্য পনেরো দিনে এবং শূদ্র এক মাসে অশুচি থেকে শুদ্ধ হয়। এ বিধান অনুযায়ী নমঃশূদ্ররা আজও দশ দিনে শ্রাদ্ধ করে অশুচি থেকে শুদ্ধ হয়। অর্থাৎ তারা ব্রাহ্মণ, শূদ্র নয়। গোত্রও তাদের কাশ্যপ, যা ব্রাহ্মণের পাঁচটি গোত্রের অন্যতম। কিন্তু শূদ্রদের বিধান এক মাসে শুদ্ধ হওয়া, যা মিহিরবাবু বা বৈদ্যরা আজও পালন করে থাকেন। অথচ এখানে তিনি নিজেকে কুলীন হিসেবে উপস্থাপনের অপচেষ্টা করেছেন।
(ঘ) মিহির আরো লিখেছেন, 'নমঃশূদ্ররা সরকারি তফসিলে নির্দিষ্ট, অনুন্নত হিন্দু সমপ্রদায়। কিন্তু তারা অস্পৃশ্যও।'
মানুষকে যারা অস্পৃশ্য বলে, তারা কতটুকু মানুষ। কেননা 'আশরাফুল মাখলুকাত' বলা হয়েছে মানুষকে। তা ছাড়া তিনি নিজেই তো ওই তফসিলভুক্ত। শাস্ত্র অনুযায়ী, যারা পেশাজীবী বা শ্রমজীবী তাদেরই তফসিলভুক্ত করা হয়েছিল। যেমন_মুচি, ডোম, মেথর, নাপিত, ধোপা, তেলি, মালি, বৈদ্য/কবিরাজ, কামার, কুমার (ভাস্কর্য পাল), সূত্রধর ইত্যাদি। এরা সবাই শূদ্র এবং ৩০ দিনে শ্রাদ্ধ করে। নমঃশূদ্ররা কি এদেরও নীচে?
(ঙ) এ নিবন্ধে মিহির মহাপ্রাণ যোগেন্দ্রনাথ মণ্ডলকে 'চাঁড়াল' বা চণ্ডাল বলেছেন।
চণ্ডাল হচ্ছে তারা, যারা শবদেহ দাহন করে, অর্থাৎ পেশাজীবী, যা প্রয়াত যোগেনবাবুরা কখনো করেননি। সে কারণে ০৯/০৯/১৮৮২ তারিখে সিলেটের সহকারী কমিশনার কর্তৃক নোটিশ জারির মাধ্যমে 'চণ্ডাল' শব্দকে নিষিদ্ধ করা হয়। ওটা ছিল বল্লাল সেনের দেওয়া গালি।
এসব কারণেই যোগেন্দ্রনাথ মণ্ডলের ওপর মিহিরদের এত ক্ষোভ। কর্মই তাদের নীচে ফেলে দিয়েছে। তাই জন্ম হোক যথা তথা, কর্ম হোক ভালো।
বিনয় বিশ্বাস রিকো
বাংলাদেশ নমঃশূদ্র কল্যাণ পরিষদ
আদর্শনগর, মিরপুর-১১, ঢাকা-১২১৬।
दलित हिंदू उत्पीड़न (संग्रह से) विरोध
লিখছেনঃ Saradindu Uddipan
पाकिस्तान पहले कानून और श्रम मंत्री, जे.एन. मंडल के इस्तीफा पत्र
श्री जे.एन. मंडल,
कानून और श्रम मंत्री
पाकिस्तान की सरकार ने
8 अक्टूबर, 1950 पर
मेरा प्रिय प्रधानमंत्री
यह मैं अपने मंत्रिमंडल की अपनी सदस्यता से इस्तीफा देने के लिए मजबूर महसूस कि ईस्ट बंगाल के पिछड़े हिंदू जनता के उत्थान के लिए अपना जीवन भर मिशन की विफलता पर एक भारी दिल और बोलना निराशा की भावना के साथ है. यह मैं मुझे विस्तार से भारत और पाकिस्तान के उप महाद्वीप के इतिहास के इस महत्वपूर्ण समय में यह निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया है जो कारण हैं, आगे की स्थापना करनी चाहिए कि उचित है.
(1) मैं अपने इस्तीफे के दूरदराज और तात्कालिक कारणों सुनाने से पहले, यह कुछ प्रमुख से संपर्क किया गया है, लीग के साथ अपने सहयोग की अवधि के दौरान जगह ले लिया है कि महत्वपूर्ण घटनाओं की एक छोटी सी पृष्ठभूमि देने के लिए उपयोगी हो सकता है फरवरी 1943 में बंगाल के लीग के नेताओं, मैं बंगाल विधान सभा में उनके साथ काम करने के लिए सहमत हुए. जाति विधायकों अनुसूचित 21 की एक पार्टी के साथ मार्च 1943 में Fazlul हक मंत्रालय के पतन के बाद, मैं ख्वाजा नजीमुद्दीन, अप्रैल 1943 में मंत्रिमंडल का गठन किया है जो मुस्लिम लीग संसदीय पार्टी के तत्कालीन नेता के साथ सहयोग करने के लिए सहमत हुए. हमारे सहयोग, अनुसूचित जातियों की शिक्षा के लिए वार्षिक आवर्ती अनुदान के रूप में रूपये पांच लाख रुपये की राशि (रुपए 500,000) की मंजूरी मंत्रिमंडल में तीन अनुसूचित जाति मंत्रियों के शामिल किए जाने के रूप में ऐसे में कुछ विशेष शर्तों पर सशर्त था और सरकारी सेवाओं में नियुक्ति के मामले में सांप्रदायिक अनुपात नियमों के अयोग्य कार्यान्वयन.
(2) के अलावा उन शब्दों से, मेरे मुस्लिम लीग के साथ सहयोग में काम करने के लिए संकेत है कि प्रमुख उद्देश्यों बंगाल में मुस्लिम के आर्थिक हितों को आम तौर पर अनुसूचित जाति के लोगों के साथ समान थे कि पहले किया गया था. मुसलमानों ताकि अनुसूचित जाति के सदस्य थे, ज्यादातर किसान और मजदूर थे. मुसलमानों के एक खंड ताकि अनुसूचित जातियों और मुसलमानों दोनों शैक्षिक रूप से पिछड़े थे, दूसरी बात, अनुसूचित जातियों के एक वर्ग के रूप में अच्छी तरह से किया गया था और, मछुआरों था. मैं लीग और अपने मंत्रालय के साथ अपने सहयोग बंगाल की जनसंख्या का विशाल थोक के आपसी कल्याण को बढ़ावा देने और निहित स्वार्थ की नींव को कम करते हुए जो, विधायी और प्रशासनिक उपायों की एक व्यापक पैमाने पर उपक्रम के लिए नेतृत्व करेंगे कि राजी किया गया था और विशेषाधिकार, सांप्रदायिक शांति और सौहार्द के कारण आगे होगा. यह ख्वाजा नजीमुद्दीन इस मंत्रिमंडल में तीन अनुसूचित जाति मंत्रियों लिया और अपने समुदाय के सदस्यों में से तीन संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है कि यहां उल्लेख किया जा सकता है.
सुहरावर्दी मंत्रालय
(3) मार्च 1946 में आयोजित आम चुनाव के बाद, श्री एचएस सुहरावर्दी लीग के संसदीय दल के नेता बने और अप्रैल 1946 में लीग मंत्रालय का गठन किया. मैं केवल अनुसूचित जाति के सदस्य फेडरेशन टिकट के लिए लौट रहा था. मैं श्री सुहरावर्दी के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था. उस वर्ष के अगस्त के 16 वें दिन मुस्लिम लीग ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' के रूप में मनाया गया. यह एक प्रलय में, परिणामस्वरूप .. हिंदुओं लीग मंत्रालय से मेरे इस्तीफे की मांग की. मेरा जीवन संकट में आ गया था. मैं लगभग हर दिन धमकी पत्र प्राप्त करना शुरू किया. लेकिन मैं अपनी नीति को स्थिर बने रहे. इसके अलावा, मैं कांग्रेस और यहां तक कि अपने जीवन के जोखिम में मुस्लिम लीग के बीच खूनी झगड़े से खुद को अलग रखने के लिए अनुसूचित जाति के लोगों के लिए हमारे पत्रिका 'जागरण' के माध्यम से एक अपील जारी की. मैं मैं अपनी जाति हिंदू पड़ोसियों से हिंदू भीड़ व्यथित के प्रकोप से बचा लिया गया था कि इस तथ्य को स्वीकार नहीं लेकिन कृतज्ञता कर सकते हैं. "नोआखली दंगा" अक्टूबर 1946 में कलकत्ता नरसंहार का पालन किया. वहां हिंदुओं सहित अनुसूचित जाति मारे गए थे और सैकड़ों इस्लाम में परिवर्तित किया गया. हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार और अपहरण कर लिया गया. अपने समुदाय के सदस्यों को भी जीवन और संपत्ति के नुकसान का सामना करना पड़ा. इसके तत्काल बाद इन घटनाओं के बाद, मैं Tipperah और फेनी का दौरा किया और कुछ दंगा प्रभावित क्षेत्रों को देखा. हिंदुओं की भयानक कष्टों दु: ख के साथ मुझे अभिभूत, लेकिन फिर भी मैं मुस्लिम लीग के साथ सहयोग की नीति को जारी रखा. तुरंत भारी कलकत्ता हत्या के बाद, एक अविश्वास प्रस्ताव सुहरावर्दी मंत्रालय के खिलाफ ले जाया गया था. यह केवल मेरे प्रयासों की वजह से था कि चार एंग्लो इंडियन सदस्य है और अब तक प्राप्त किया जा सकता है कांग्रेस के साथ किया गया था, लेकिन जिसके लिए मंत्रालय को पराजित किया गया होगा जो विधानसभा की चार अनुसूचित जाति के सदस्यों का समर्थन करते हैं.
(4) अक्टूबर 1946 में, सबसे अप्रत्याशित रूप से भारत की अंतरिम सरकार में एक सीट का प्रस्ताव श्री सुहरावर्दी के माध्यम से मेरे पास आया. झिझक का एक अच्छा सौदा करने के बाद और अपने अंतिम निर्णय लेने के लिए केवल एक घंटे का समय दिया जा रहा है, मैं अपने नेता, डॉ. बी आर अम्बेडकर मेरी कार्रवाई के अस्वीकृत तो मैं इस्तीफा देने के लिए अनुमति दी जानी चाहिए केवल इस शर्त पर कि प्रस्ताव विषय स्वीकार करने के लिए सहमति दे दी है. सौभाग्य से, तथापि, मैं लंदन से भेजे गए एक तार में उसका अनुमोदन प्राप्त किया. मैं कानून के सदस्य के रूप में पदभार लेने के लिए दिल्ली के लिए रवाना होने से पहले, मैं मेरे घर में अपने मंत्रिमंडल में दो मंत्रियों को लेने के लिए और अनुसूचित जाति फेडरेशन ग्रुप से दो संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए सहमत करने के लिए श्री सुहरावर्दी, बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री, राजी कर लिया.
(5) मैं 1 नवंबर 1946 को अंतरिम सरकार में शामिल हो गए. मैं कोलकाता का दौरा किया है जब एक महीने के बारे में के बाद, श्री सुहरावर्दी बहुत अधिक किया जा रहा है, विशेष रूप से Namasudras बहुमत में थे जहां गोपालगंज उप विभाजन, में, ईस्ट बंगाल के कुछ हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव की मुझे जानकारी दी. उन्होंने उन क्षेत्रों और मुसलमानों और Namasudras का पता बैठकों का दौरा करने के लिए मुझसे अनुरोध किया. तथ्य यह है कि उन क्षेत्रों में Namasudras प्रतिशोध के लिए तैयारियाँ कर दिया था कि था. मैं बड़े पैमाने पर भाग लिया बैठकों के एक दर्जन के बारे में संबोधित किया. परिणाम Namasudras प्रतिशोध का विचार छोड़ दिया था. इस प्रकार एक अपरिहार्य खतरनाक सांप्रदायिक अशांति टल गया.
(6) कुछ महीनों के बाद, ब्रिटिश सरकार ने अपने 3 जून वक्तव्य (1947) भारत के विभाजन के लिए कुछ प्रस्तावों embodying बनाया. पूरे देश को, विशेष रूप से पूरे गैर मुस्लिम भारत, चौंका दिया था. सत्य के लिए मैं हमेशा एक सौदेबाजी काउंटर के रूप में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग पर विचार किया था कि यह स्वीकार करना होगा. मैं ईमानदारी से एक पूरे मुसलमान के रूप में संदर्भ भारत में उच्च वर्ग के हिंदू वर्चस्व के खिलाफ शिकायत के लिए वैध कारण था महसूस किया कि हालांकि, मैं पाकिस्तान के निर्माण सांप्रदायिक समस्या का समाधान कभी नहीं होगा कि बहुत दृढ़ता से वास्तव में देखने का आयोजन किया. इसके विपरीत, यह सांप्रदायिक नफरत और कड़वाहट बढ़ जाएगा. इसके अलावा, मुझे लगता है कि यह पाकिस्तान में मुसलमानों की हालत सुधारना नहीं चाहते हैं कि बनाए रखा. यादगार बनाना नहीं तो देश के विभाजन का अपरिहार्य परिणाम, लम्बा होगा, गरीबी, अशिक्षा और राज्य दोनों की मेहनत जनता की दयनीय हालत. मैं आगे पाकिस्तान दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के सबसे पिछड़े और अविकसित देशों में से एक होने के लिए बदल सकता है कि गिरफ्तार किया.
लाहौर RESOLLUTION
(7) मैं यह स्पष्ट है कि मैं एक प्रयास के रूप में शरीयत और इस्लाम की रोक और formularies पर आधारित एक विशुद्ध रूप से 'इस्लामी' राज्य के रूप में पाकिस्तान को विकसित करने के लिए, वर्तमान में किया जा रहा है, बनाया जा सोचा होगा कि कि बनाना चाहिए. मैं इसे 23 मार्च, 1940 को लाहौर में अपनाया मुस्लिम लीग संकल्प में विचार पैटर्न के बाद सभी आवश्यक में स्थापित किया जाएगा कि प्रकल्पित. यही संकल्प (1) "भौगोलिक दृष्टि से सटे क्षेत्रों में आवश्यक हो सकता है के रूप में इस तरह के क्षेत्रीय readjustments साथ गठित किया जाना चाहिए जो क्षेत्रों में सीमांकन कर रहे हैं कि अन्य बातों के साथ कहा गया है कि मुसलमानों के उत्तर पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों में के रूप में बहुमत में संख्यानुसार हैं जिन क्षेत्रों में भारत का संविधान इकाइयों स्वायत्त और संप्रभु होगा "और (2)", पर्याप्त प्रभावी और अनिवार्य सुरक्षा उपायों के लिए विशेष रूप से इन इकाइयों में अल्पसंख्यकों के लिए संविधान में और इन क्षेत्रों में प्रदान की जानी चाहिए जिसमें स्वतंत्र राज्यों का गठन करने के लिए बांटा जा चाहिए उनके धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक और अन्य अधिकारों और उनके साथ परामर्श के हितों का संरक्षण. " इस सूत्र में निहित उत्तर पश्चिमी और पूर्वी मुस्लिम क्षेत्रों (ख) इन राज्यों के घटक इकाइयों स्वायत्त और संप्रभु होना चाहिए, (ग) कि अल्पसंख्यकों की गारंटी के संबंध में होना चाहिए दो स्वतंत्र राज्यों में गठित किया जाना चाहिए कि (क) थे अधिकार के रूप में अच्छी तरह से ब्याज के रूप में और उनके जीवन के हर क्षेत्र का विस्तार करने, और (घ) कि संवैधानिक प्रावधान अल्पसंख्यकों को खुद के परामर्श से इन संबंध में प्रयास किए जाने चाहिए. मैं कायदे आजम मोहम्मद अली जोनाह बराबर उपचार के पवित्र आश्वासन देने के संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में के लिए 11 वीं अगस्त 1947 को बनाने के लिए खुश था बयान से यह संकल्प और लीग नेतृत्व के व्यवसायों में मेरा विश्वास में दृढ़ था हिंदुओं और मुसलमानों के एक जैसे हैं और उन पर बुला वे सभी पाकिस्तानियों थे कि याद करने के लिए. पूर्ण मुस्लिम नागरिकों और इस्लामी राज्य और उसके मुस्लिम नागरिकों की सदा की हिरासत के तहत किया जा रहा है gummies में धर्म के आधार पर लोगों को विभाजित करने का कोई सवाल तो नहीं था. इन प्रतिज्ञाओं में से हर एक नीचता से अपने ज्ञान को जाहिरा तौर पर उल्लंघन किया और कायदे ए आजम की इच्छाओं और भावनाओं की पूर्ण उपेक्षा में और अल्पसंख्यकों की हानि और अपमान के लिए अपनी मंजूरी के साथ किया जा रहा है.
बंगाल का विभाजन
(8) यह भी कहा कि मैं बंगाल का विभाजन करने का विरोध किया गया था कि इस संबंध में उल्लेख किया जा सकता है. इस संबंध में एक अभियान शुरू करने में मैं सभी हलकों से जबरदस्त प्रतिरोध लेकिन यह भी अकथ्य शोषण, अपमान और अनादर न केवल सामना करना पड़ा. हिंदू धर्म के 32 करोड़ रुपए मेरे फैटायनों विरोध किया जब महान अफसोस के साथ, मैं उन दिनों को याद है, लेकिन मैं पाकिस्तान के लिए अपनी वफादारी में निडर और स्थिर बने रहे. यह मेरी अपील करने के लिए 7 करोड़ पाकिस्तान की जाति लोगों को उनमें से एक के लिए तैयार और उत्साही प्रतिक्रिया हुई अनुसूचित कि कृतज्ञता का एक मामला है. उन्होंने मुझे अपने पूर्ण समर्थन सहानुभूति और प्रोत्साहन प्रदान की.
(9) 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान की स्थापना के बाद तुम मुझे शामिल किया गया था, जिसमें मंत्रिमंडल का गठन और ख्वाजा नजीमुद्दीन ईस्ट बंगाल के लिए एक अनंतिम मंत्रिमंडल का गठन किया. 10 अगस्त को, मैं कराची में ख्वाजा नजीमुद्दीन से बात की और उसे ईस्ट बंगाल मंत्रिमंडल में 2 अनुसूचित जाति मंत्रियों लेने के लिए अनुरोध किया था. उन्होंने कहा कि कुछ समय के बाद भी ऐसा ही करने का वादा किया.
क्या इस संबंध में बाद में क्या हुआ आप के साथ अप्रिय और निराशाजनक वार्ता, ख्वाजा नजीमुद्दीन और श्री नुरुल अमीन, ईस्ट बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री के एक रिकॉर्ड था. मैं ख्वाजा नजीमुद्दीन इस या उस बहाने पर इस मुद्दे को टाल दिया गया था कि जब मुझे एहसास हुआ, मैं लगभग अधीर और हताश हो गया, मैं आगे की पाकिस्तान मुस्लिम लीग और उसके ईस्ट बंगाल शाखा के राष्ट्रपतियों के साथ इस मामले पर चर्चा की. अंत में, मैं आपके ध्यान में मामला लाया. आप अपने निवास पर मेरी उपस्थिति में ख्वाजा नजीमुद्दीन के साथ इस विषय पर चर्चा के लिए खुश थे. ख्वाजा नजीमुद्दीन ढाका के लिए उनकी वापसी पर एक अनुसूचित जाति मंत्री लेने पर सहमत हुए. मैं पहले से ही ख्वाजा नजीमुद्दीन के आश्वासन के बारे में नास्तिक बन गया था के रूप में, मैं समय सीमा के बारे में निश्चित होना चाहता था. मुझे लगता है वह मैं इस्तीफा देने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए, ऐसा न करने के एक महीने के भीतर इस संबंध में कार्रवाई करनी चाहिए कि जोर दिया. आप और ख्वाजा नजीमुद्दीन दोनों शर्त पर सहमत हुए. लेकिन अफसोस! आप शायद तुम क्या कहा मतलब नहीं था. ख्वाजा नजीमुद्दीन ने अपना वादा नहीं निभाया. श्री नुरुल अमीन ईस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री बन जाने के बाद, मैं उसके साथ फिर से यह मामला उठाया था. वह भी चोरी की वही पुरानी परिचित रणनीति का पालन किया. मैं फिर से 1949 में नृत्य करने से पहले अपने यात्रा करने के लिए अपने मामले पर पूरा ध्यान कहा जाता है, तो आप एक अल्पसंख्यक मंत्री ईस्ट बंगाल में नियुक्त किया है, और आप के विचार के लिए मेरे से 2-3 नामों कहा जाएगा कि मुझे आश्वस्त करने के लिए खुश थे. अपनी इच्छा के स्टेट सम्मान में, मैं आप ईस्ट बंगाल विधानसभा में फेडरेशन समूह बताते हुए और तीन नामों का सुझाव एक नोट भेजा है. मैं ढाका से अपनी वापसी पर क्या हुआ था के रूप में पूछताछ की है, तो आप बहुत ठंड हो दिखाई और केवल टिप्पणी की: "दिल्ली से नुरुल अमीन वापसी दें". कुछ दिनों के बाद मैं फिर से मामले को दबाया.
हिंदू विरोधी नीति
(10) बंगाल के विभाजन का सवाल ही पैदा हुई है, जब अनुसूचित जाति के लोगों के विभाजन के प्रत्याशित खतरनाक परिणाम पर चिंतित थे. उनकी ओर से प्रतिनिधित्व श्री सुहरावर्दी, विभाजन के बाद कटौती की जाएगी अनुसूचित जाति के लोगों द्वारा मज़ा आया अब तक अधिकार और विशेषाधिकार है कि कोई भी घोषणा कर प्रेस को एक बयान जारी करने की कृपा थी जो बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री को बनाया और कहा कि गया है कि वे केवल मौजूदा अधिकारों और विशेषाधिकारों का आनंद लेने के लिए जारी है, लेकिन यह भी अतिरिक्त लाभ प्राप्त नहीं होगा. इस आश्वासन के अपने व्यक्तिगत क्षमता में बल्कि लीग मंत्रालय के एक मुख्यमंत्री के रूप में अपनी क्षमता में न केवल श्री सुहरावर्दी दी. मेरा बोलना अफसोस यह विभाजन के बाद, विशेष रूप से कायदे आजम की मौत के बाद, अनुसूचित जातियों किसी भी मामले में एक उचित सौदा प्राप्त नहीं हुआ है कि कहा जा रहा है. आप समय समय पर मैं आपके ध्यान में अनुसूचित जातियों की शिकायतों लाया स्मरण होगा कि. मैं कई मौकों पर आप को ईस्ट बंगाल में अक्षम प्रशासन की प्रकृति के बारे में बताया. मैं पुलिस प्रशासन के खिलाफ गंभीर आरोप बनाया है. मैं तुच्छ आधार पर पुलिस द्वारा किये बर्बर अत्याचारों के अपने नोटिस घटनाओं के लिए लाया. मैं हिंदू विरोधी नीति ईस्ट बंगाल सरकार द्वारा विशेष रूप से पुलिस प्रशासन और मुस्लिम लीग के नेताओं के एक वर्ग का पीछा आपके ध्यान में लाना करने में संकोच नहीं किया.
कुछ घटनाओं
(11) मुझे सदमा लगा कि पहली घटना एक मुस्लिम, क्रूर अत्याचारों की झूठी शिकायत पर स्थानीय Namasudras पर प्रतिबद्ध थे जहां गोपालगंज के पास Digharkul नामक गांव में हुआ था. तथ्य यह है कि एक नाव में जा रहा था, जो एक मुस्लिम मछली पकड़ने के लिए अपने शुद्ध फेंकने का प्रयास किया गया था. उसके सामने शुद्ध के फेंकने का विरोध करने के एक ही उद्देश्य के लिए वहाँ पहले से ही था जो एक Namasudra. यह कुछ झगड़े के बाद किया गया और मुस्लिम पास के एक मुस्लिम गांव के पास गया और कहा कि वह और उसकी नाव में एक महिला Namasudras द्वारा हमला किया गया था कि एक झूठी शिकायत की है जो नाराज हो गया. समय, गोपालगंज के एसडीओ किसी भी जांच करने के बिना सच के रूप में शिकायत स्वीकार कर लिया और Namasudra सज़ा को हाजिर करने के लिए सशस्त्र पुलिस को भेजा है जो नहर के माध्यम से एक नाव में गुजर रहा था. सशस्त्र पुलिस आई और स्थानीय मुसलमानों ने भी उन्हें शामिल हो गए. वे न केवल Namasudras के कुछ घरों पर छापा मारा लेकिन निर्दयता से पुरुषों और महिलाओं दोनों को हराया, उनके गुणों को नष्ट कर दिया और कीमती सामान छीन लिया. एक गर्भवती महिला की निर्मम पिटाई की मौके पर ही गर्भपात में हुई. स्थानीय प्राधिकार की ओर से इस क्रूर कार्रवाई के एक बड़े क्षेत्र में दहशत पैदा की.
(12) पुलिस दमन की दूसरी घटना Barisal जिले में पुनश्च Gournadi के तहत 1949 के शुरुआती हिस्से में जगह ले ली. यहाँ एक झगड़े के एक केंद्रीय बोर्ड के सदस्यों के दो गुटों के बीच हुई. पुलिस की अच्छी किताब में किया गया था जिसमें एक समूह पुलिस स्टेशन पर हमले की याचिका पर विरोधियों को दंडित करने के लिए साजिश रची, मैडोना, Gournadi मुख्यालय से सेना सशस्त्र बुलाया. पुलिस, सशस्त्र बलों द्वारा मदद की, तो इस क्षेत्र में घरों की एक बड़ी संख्या में छापा मारा भी कम्युनिस्ट पार्टी में भी कम समय तक राजनीति में कभी नहीं थे जो अनुपस्थित मालिकों के घरों से, मूल्यवान गुण दूर ले गए. कई उच्च अंग्रेजी स्कूलों के छात्रों की एक बड़ी संख्या कम्युनिस्ट संदिग्धों थे और अनावश्यक रूप से परेशान किया. यह क्षेत्र बहुत पास मेरे पैतृक गांव के लिए जा रहा है, मैं इस घटना के बारे में बताया गया था. मैं जिला मजिस्ट्रेट और एक जांच के लिए एसपी को पत्र लिखा है. स्थानीय लोगों का एक वर्ग भी एसडीओ द्वारा एक जांच के लिए प्रार्थना की, लेकिन कोई जांच आयोजित की गई थी. जिला अधिकारियों को भी अपने पत्र में स्वीकार नहीं कर रहे थे. मैं तो अपने आप को, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, सहित पाकिस्तान में सर्वोच्च प्राधिकरण के ध्यान में यह मामला लाया.
सेना के लिए महिलाओं
(13) निर्दोष हिंदुओं, जिला में अग्रदूत की विशेष रूप से अनुसूचित जाति पर पुलिस और सेना द्वारा बढ़ावा अत्याचारों. ओले के साथ वर्षा के वर्णन के पात्र हैं. मासूम पुरुषों और महिलाओं को बेरहमी से अत्याचार किया गया, ravished कुछ महिलाओं को उनके घरों पर छापा मारा और गुणों पुलिस और स्थानीय मुसलमानों ने लूट लिया. सैन्य pickets के क्षेत्र में तैनात थे. दीन इन लोगों को न केवल सैन्य और दूर ले गए हिन्दुओं के घरों से जबरन सामान, बल्कि हिंदुओं सेना की कामुक इच्छा को पूरा करने के लिए शिविर के लिए रात में उनकी महिलाओं लोक भेजने के लिए मजबूर कर दिया. इस तथ्य को भी मैं आपके ध्यान में लाया. आप इस मामले पर एक रिपोर्ट का मुझे आश्वासन दिया है, लेकिन दुर्भाग्य से कोई रिपोर्ट आगामी था.
(14) तो पुलिस न केवल कम्युनिस्टों के दमन के नाम पर भी हिंदुओं पर अत्याचार पुलिस के सहयोग से स्थानीय मुसलमानों में और उनकी संपत्तियों को लूटा जहां राजशाही के जिले में Nachole पर घटना हुई. संथाल तो सीमा को पार कर गया और पश्चिम बंगाल के लिए आया था. वे बेहूदगी से मुसलमानों और पुलिस द्वारा अत्याचार की कहानियाँ सुनाई.
(15) कठोर और धीर क्रूरता का एक उदाहरण के खुलना जिले में पुनश्च Mollarhat तहत Kalshira में 20 दिसंबर 1949 को हुई थी कि घटना से सुसज्जित है. क्या हुआ देर रात चार कांस्टेबलों कुछ कथित कम्युनिस्टों की तलाश में गांव Kalshira में एक Joydev ब्रह्मा के घर पर छापा मारा था. पुलिस की खुशबू में, कम्युनिस्टों गया हो सकता है, जिनमें से कुछ युवकों के आधा दर्जन, घर से भाग निकले. पुलिस कांस्टेबल के घर में प्रवेश किया और जिसका रोना उसके पति और घर से भाग निकले जो कुछ साथियों को आकर्षित Joydev ब्रह्मा की पत्नी पर हमला किया. वे हताश हो गया, घर में फिर से प्रवेश किया, केवल एक बंदूक के साथ 4 कांस्टेबल पाया. कि शायद मौके पर ही मृत्यु हो गई, जो एक सशस्त्र कांस्टेबल पर एक झटका मारा, जो युवकों को प्रोत्साहित किया गया हो सकता है. अन्य दो भाग गया और अपने बचाव के लिए आया था, जो कुछ पड़ोसी लोगों को आकर्षित किया है जो अलार्म उठाया जब युवकों फिर एक कांस्टेबल पर हमला किया. यह अंधेरा था जब घटना सूर्योदय से पहले जगह ले ली के रूप में ग्रामीणों के आने से पहले ही, हमलावरों मृत शरीर के साथ फरार हो गया. सेना और सशस्त्र पुलिस के एक दल के साथ खुलना की सपा अगले दिन के दोपहर में दृश्य पर दिखाई दिया. इस बीच, हमलावर भाग गए और बुद्धिमान पड़ोसियों को भी दूर भाग गए. वे पूरी तरह निर्दोष थे और हो रहा है के परिणाम का एहसास करने में विफल रहा है लेकिन ग्रामीणों की थोक, उनके घरों में बने रहे. इसके बाद पूरे गांव के निर्दोष लोगों पड़ोसी मुसलमानों को उनके गुणों दूर लेने के लिए प्रोत्साहित किया. व्यक्तियों की संख्या मारे गए थे और पुरुषों और महिलाओं के जबरन बदल रहे थे. घर पकड़ देवताओं टूट गया और पूजा के स्थानों को अपवित्र और नष्ट हो गए थे. कई महिलाओं को पुलिस, सेना और स्थानीय मुसलमानों के साथ बलात्कार किया गया. इस प्रकार एक सत्य नरक एक बड़ी आबादी के साथ लंबाई में आधा मील की दूरी पर है जो Kalshira के गांव में ढीली नहीं ही करते हैं, लेकिन यह भी Namasudra गांवों पड़ोसी की एक संख्या में किया गया था. गांव Kalshira कम्युनिस्ट गतिविधियों की एक जगह होने के लिए प्राधिकरण द्वारा संदिग्ध कभी नहीं किया गया था. Kalshira से 3 मील की दूरी पर था जो Jhalardanga नामक एक अन्य गांव, कम्युनिस्ट गतिविधियों का केंद्र होने के लिए जाना जाता था. इस गांव में कथित तौर पर कम्युनिस्टों के शिकार के लिए उस दिन पुलिस के एक बड़े दल ने छापा मारा था, दूर भाग गए और उनके लिए एक सुरक्षित जगह माना जाता था जो गांव Kalshira की उक्त घर में शरण ले ली जिनमें से एक नंबर.
(16) मैं Kalashira और 28 फ़रवरी 1950 पर एक या दो पड़ोसी गांवों का दौरा किया. सपा, खुलना और जिले की प्रमुख लीग के नेताओं में से कुछ मेरे साथ थे. मैं गांव Kalshira के लिए आया था, मैं जगह उजाड़ और खंडहर में पाया. मैं इस गांव में 350 घरों वहाँ थे SPthat की मौजूदगी में कहा गया था, इनमें से केवल तीन बख्शा गया था और बाकी को ध्वस्त कर दिया गया था. देश नौकाओं और Namasudras से संबंधित पशु के सिर सब दूर ले जाया गया था. मैं मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और ईस्ट बंगाल के पुलिस महानिरीक्षक के लिए और आप के लिए इन तथ्यों की सूचना दी.
(17) यह इस घटना की खबर पश्चिम बंगाल प्रेस में प्रकाशित किया है और यह वहाँ हिंदुओं के बीच कुछ अशांति बनाया गया था कि इस संबंध में उल्लेख किया जा सकता है. Kalshira से ग्रस्त मरीजों की संख्या, दोनों पुरुषों और महिलाओं, बेघर और बेसहारा भी कलकत्ता के लिए आते हैं और जनवरी के अंतिम भाग में पश्चिम बंगाल में कुछ सांप्रदायिक गड़बड़ी के परिणामस्वरूप जो उनके कष्टों की कहानियाँ सुनाई थी.
फ़रवरी अशांति का कारण
(18) यह Kalshira पर घटनाओं की प्रतिक्रिया का एक प्रकार के रूप में पश्चिम बंगाल में हुई सांप्रदायिक अशांति की कुछ घटनाओं की कहानियों पूर्वी बंगाल प्रेस में अतिरंजित रूप में प्रकाशित किया गया है कि ध्यान दिया जाना चाहिए. फरवरी 1950 के दूसरे सप्ताह में ईस्ट बंगाल विधानसभा का बजट सत्र शुरू हुआ, जब कांग्रेस सदस्य Kalshira और Nachole पर बनाया स्थिति पर चर्चा करने के लिए दो स्थगन प्रस्ताव लाने की अनुमति मांगी. लेकिन गतियों अनुमति नहीं थे. कांग्रेस सदस्य विरोध में विधानसभा के बाहर चला गया. विधानसभा के हिंदू सदस्य की इस कार्रवाई से नाराज और मंत्रियों लेकिन यह भी मुस्लिम नेताओं और प्रांत के अधिकारियों ने न केवल नाराज. यह शायद 1950 फरवरी में ढाका और ईस्ट बंगाल को दंगों के लिए प्रमुख कारणों में से एक था.
(19) यह 10 फ़रवरी 1950 को सुबह बजे के बारे में 10 में एक महिला को उसके स्तन कलकत्ता दंगा में काट दिया गया था कि यह दिखाने के लिए लाल रंग के साथ चित्रित किया गया है कि महत्वपूर्ण है, और दौर लिया गया था कि ढाका में ईस्ट बंगाल के सचिवालय. इसके तत्काल बाद, सचिवालय के सरकारी कर्मचारियों के काम मारा और हिंदुओं के खिलाफ बदला लेने के नारे लगा बारात में बाहर आया था. जुलूस यह एक मील से अधिक की दूरी पर पारित रूप में प्रफुल्लित करने के लिए शुरू किया. यह हिंदुओं के खिलाफ हिंसक भाषणों अधिकारियों सहित कई वक्ताओं द्वारा दिया गया जहां दोपहर में 12O'clock के बारे में विक्टोरिया पार्क में एक बैठक में समाप्त हो गया. पूरे शो का मजा सचिवालय के कर्मचारियों के जुलूस में बाहर चला गया है, जबकि ईस्ट बंगाल सरकार के मुख्य सचिव सांप्रदायिक गड़बड़ी को रोकने के लिए तरीके और उपाय पता लगाने के लिए एक ही इमारत में उसकी पश्चिम बंगाल समकक्ष के साथ एक सम्मेलन आयोजित किया गया था दो बंगाल में.
अधिकारियों युवक मदद
(20) दंगा शहर भर में एक साथ सभी के बारे में 1 बजे शुरू कर दिया. हिंदुओं की आगजनी, हिंदू दुकानों और मकानों की लूटपाट और हत्या, वे पाए गए, जहाँ भी शहर के सभी भागों में पूरे जोरों पर शुरू किया गया. मैं आगजनी और लूटपाट भी उच्च पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में प्रतिबद्ध थे कि यहां तक कि मुसलमानों से सबूत मिला है. हिंदुओं से संबंधित आभूषण दुकानों पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में लूट लिया गया. वे लूट को रोकने के लिए प्रयास है, लेकिन यह भी सलाह और दिशा के साथ looters मदद नहीं की थी ही नहीं. दुर्भाग्य से मेरे लिए, मैं Feb.10, 1950.To मेरा बोलना निराशा में, उसी दिन दोपहर में 5 बजे पर ढाका पहुंच गया, मैं करीब से चीजों को देखने और पता करने के लिए अवसर था. क्या मैंने देखा और पहली हाथ जानकारी से सीखा बस चौंका देने वाला और दिल प्रतिपादन था.
दंगा की पृष्ठभूमि
(21) ढाका दंगा के कारण मुख्य रूप से पांच थे:
(मैं) Kashira और Nachole मामलों पर दो स्थगन प्रस्तावों को अस्वीकार थे जब विधानसभा के बाहर चलने से विरोध की उनकी अभिव्यक्ति में विधानसभा में उनके प्रतिनिधियों के साहसी कार्रवाई के लिए हिंदुओं को दंडित करने के लिए;
(Ii) के मतभेदों और संसदीय दल में सुहरावर्दी समूह और नजीमुद्दीन के बीच अंतर तीव्र होते जा रहे थे;
(Iii) के हिंदू और मुस्लिम दोनों नेताओं ने पूर्व और पश्चिम बंगाल के पुनर्मिलन के लिए एक आंदोलन की शुरूआत की आशंका ईस्ट बंगाल मंत्रालय और मुस्लिम लीग को परेशान कर दिया. वे इस तरह के कदम को रोकने के लिए चाहता था. उन्होंने ईस्ट बंगाल में किसी भी बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगा पश्चिम बंगाल में प्रतिक्रियाओं मुसलमानों को मार डाला जा सकता थे निर्माण करने के लिए यकीन था कि सोचा. पूर्व और ईस्ट बंगाल दोनों में इस तरह के दंगे का परिणाम है, यह माना जाता था, बंगाल के पुनर्मिलन के लिए किसी भी आंदोलन को रोका जा सके.
ईस्ट बंगाल में बंगाली मुस्लिम और गैर बंगाली मुसलमान के बीच विरोध (iv) लग जमीन प्राप्त कर रहा था. यह केवल हिंदुओं और ईस्ट बंगाल के मुसलमानों के बीच नफरत पैदा करने से रोका जा सकता है. भाषा सवाल भी इसके साथ जुड़ा हुआ है और किया गया था
(V) में ईस्ट बंगाल की अर्थव्यवस्था को गैर अवमूल्यन और भारत और पाकिस्तान व्यापार गतिरोध के परिणामों का सबसे तीव्रता से पहले शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में महसूस किया और मुस्लिम लीग के सदस्यों और अधिकारियों से मुस्लिम जनता का ध्यान हटाने के लिए चाहते थे जा रहे थे हिंदुओं के खिलाफ जेहाद के लिए किसी प्रकार से आसन्न आर्थिक टूटने.
चौंका देने वाला विवरण - करीब 10,000 मारे गए
(22) ढाका में मेरे नौ दिनों के प्रवास के दौरान मैं ज्यादातर शहर और उपनगरों के दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. मैं PSTejgaon तहत भी मीरपुर का दौरा किया. ट्रेनों में निर्दोष हिंदुओं के सैकड़ों के मारे जाने की खबर है, ढाका और नारायणगंज, और ढाका और चटगांव के बीच रेलवे लाइन पर मुझे rudest झटका दिया. ढाका दंगा के दूसरे दिन, मैं पूर्व में बंगाल की मुख्यमंत्री से मुलाकात की और जिले के कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में दंगा के प्रसार को रोकने के लिए सभी एहतियाती कदम उठाने के लिए जिला अधिकारियों को तत्काल निर्देश जारी करने के लिए उनसे अनुरोध किया. 20 फ़रवरी, 1950 पर, मैं Barisal शहर पहुंचे और Barisal में घटनाओं के बारे में पता करने के लिए चकित था. जिले में हिंदुओं को मार डाला. मैं जिला में लगभग सभी दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. मैं बस भी जिला शहर से छह मील के दायरे में थे और मोटर सक्षम सड़कों से जुड़े हुए थे जो Kasipur, Madhabpasha और Lakutia, जैसी जगहों पर मुस्लिम दंगाइयों द्वारा गढ़ा कहर खोजने के लिए हैरान था. Madhabpasha Zaminder के घर में, के बारे में 200 लोग मारे गए और 40 घायल हो गए. Muladi नामक एक जगह है, एक भयानक नरक देखा. Muladi बन्दर अकेले में मारे संख्या के रूप में कुछ अधिकारियों सहित स्थानीय मुसलमानों ने टोम सूचना मिली थी, तीन सौ से अधिक कुल होगा. मैं कुछ स्थानों पर शवों के कंकाल पाया गया है, जहां मैं भी Muladi गांव का दौरा किया. मैं कुत्तों और नदी के किनारे पर लाशों खाने से गिद्धों पाया. मैं सभी वयस्क पुरुषों के पूरे पैमाने पर हत्या करने के बाद, सभी युवा लड़कियों शरारती तत्वों के ringleaders के बीच वितरित कर रहे थे कि वहां जानकारी मिली है. एक जगह पुनश्च राजापुर तहत Kaibartakhali बताया में 63 लोग मारे गए थे. से एक पत्थर फेंक दूरी के अंदर हिंदू घरों थाना कार्यालय, लूटा जला दिया और कैदियों की मौत हो गई थी. Babuganj बाजार के सभी हिंदू दुकानों को लूट लिया गया और फिर जला दिया और हिंदुओं की एक बड़ी संख्या में मारे गए थे. प्राप्त विस्तृत जानकारी से, हताहतों की संख्या का अनुमान अकेले Barisal के जिले में मारे गए 2500 में रखा गया था. ढाका और ईस्ट बंगाल दंगा के कुल हताहतों मारे गए 10,000 के पड़ोस में होने का अनुमान लगाया गया था. मैं वास्तव में दु: ख से अभिभूत था. प्रियजनों सहित अपने सभी खो दिया था, जो महिलाओं और बच्चों के विलाप मेरे दिल पिघल गए. मैं सिर्फ अपने आप से पूछा. "क्या lslam के नाम पर पाकिस्तान के लिए आ रहा था".
दिल्ली समझौते को लागू करने की कोई इच्छा पूरी गंभीरता
(23) बंगाल से हिंदुओं के बड़े पैमाने पर पलायन मार्च के बाद के हिस्से में शुरू किया गया. यह एक ही समय के अंदर सभी हिंदुओं को भारत की ओर पलायन होगा कि दिखाई दिया. वाकिफ रोने भारत में उठाया गया था. स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है. एक राष्ट्रीय आपदा अपरिहार्य हो दिखाई दिया. गिरफ्तार आपदा, तथापि, 8 अप्रैल के दिल्ली समझौते के द्वारा हटा दिया गया. आतंकित हिंदुओं की पहले से ही खो मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए एक दृश्य के साथ, मैं ईस्ट बंगाल का व्यापक दौरा किया. मैं ढाका, Barisal, फरीदपुर, खुलना और जेसोर जिलों में कई स्थानों का दौरा किया. मैं बड़े पैमाने पर भाग लिया बैठक के दर्जनों को संबोधित किया और साहस लेने के लिए और उनके पैतृक hearths और घरों को छोड़ने के लिए नहीं हिन्दुओं को कहा. मैं इस उम्मीद है कि ईस्ट बंगाल सरकार थी. और मुस्लिम लीग के नेताओं के दिल्ली समझौते की शर्तों को लागू करेगा. लेकिन समय बीतने के साथ, मुझे लगता है कि ईस्ट बंगाल सरकार न तो एहसास करने के लिए शुरू किया. और न ही मुस्लिम लीग के नेताओं के दिल्ली समझौते के कार्यान्वयन के मामले में वास्तव में बयाना थे. ईस्ट बंगाल सरकार. एक तंत्र स्थापित करने के लिए इतना रूप में न केवल दिल्ली समझौते में परिकल्पना की गई, लेकिन यह भी उद्देश्य के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए तैयार नहीं था. तुरंत दिल्ली समझौते के बाद पैतृक गांव में वापसी करने वाले हिंदुओं की संख्या मुसलमानों से इस बीच में कब्जा कर रहे थे, जो अपने घरों और भूमि का कब्जा नहीं दिया गया.
मौलाना अकरम खान के INCITATIONS
(24) मैं मौलाना अकरम खान, Mahammadi नामक एक मासिक पत्रिका के "Baisak" अंक में प्रांतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष ने संपादकीय टिप्पणी पढ़ने जब लीग के नेताओं के इरादे के बारे में मेरा शक की पुष्टि की थी. ढाका रेडियो स्टेशन से पाकिस्तान के अल्पसंख्यक मामलों के लिए डॉ. बजे मलिक, मंत्री का पहला रेडियो प्रसारण, पर टिप्पणी में उन्होंने कहा जिसमें, "यहां तक कि पैगंबर Mahammed अरब में यहूदियों के धार्मिक स्वतंत्रता दी थी," मौलाना अकरम खान ने कहा, "वह अरब के यहूदियों को अपने भाषण में किसी भी संदर्भ नहीं किया था यह अरब में यहूदियों Mahammed पैगंबर द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता दी गई थी सच है कि डॉ. मलिक अच्छी तरह से किया होता;.. लेकिन यह इतिहास का पहला अध्याय था पिछले अध्याय के रूप में निम्नानुसार चलाता है जो नबी Mahammed की निश्चित दिशा में है: - "अरब के दूर सभी यहूदियों को बाहर ड्राइव" यहां तक की राजनीतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन में एक बहुत ही उच्च स्थिति का आयोजन किया है जो एक व्यक्ति के इस संपादकीय टिप्पणी के बावजूद. मुस्लिम समुदाय, मैं नुरुल अमीन मंत्रालय तो निष्ठाहीन नहीं हो सकता है कि कुछ उम्मीद मनोरंजन. श्री नुरुल अमीन स्पष्ट रूप से कहा गया है जो दिल्ली समझौते के संदर्भ में अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक मंत्री के रूप में डी.एन. Barari जब चयनित लेकिन मेरा उम्मीद है कि पूरी तरह से बिखर गया था अल्पसंख्यकों के मन में विश्वास बहाल करने के लिए कि उनके प्रतिनिधियों की एक ईस्ट बंगाल और पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्रालय में ले जाया जाएगा.
नुरुल अमीन सरकार की. निष्ठाहीनता
(25) अपने सार्वजनिक बयान में से एक में, मैं अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक मंत्री के रूप में डी.एन. Barari की नियुक्ति न केवल किसी भी विश्वास बहाल करने में मदद नहीं था कि विचार व्यक्त किया, लेकिन, किसी भी वहाँ था अगर इसके विपरीत पर, सभी की उम्मीदों या भ्रम नष्ट श्री नुरुल अमीन सरकार की ईमानदारी के बारे में अल्पसंख्यकों के मन में. मेरी अपनी प्रतिक्रिया है कि श्री नुरुल अमीन की सरकार थी. भी निष्ठाहीन लेकिन न केवल दिल्ली समझौते के प्रमुख उद्देश्यों को हराने के लिए वांछित था. मैं फिर से डी.एन. Barari खुद को छोड़कर किसी को भी प्रतिनिधित्व नहीं करता है दोहराएँ. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पैसे और संगठन के साथ कांग्रेस के टिकट पर बंगाल विधान सभा के लिए लौट रहा था. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति फेडरेशन के उम्मीदवारों का विरोध किया. अपने चुनाव के बाद कुछ समय, वह कांग्रेस को धोखा दिया और संघ में शामिल हो गए. उन्होंने कहा कि वह भी संघ का सदस्य नहीं रह गया था एक मंत्री नियुक्त किया गया था. मैं ईस्ट बंगाल हिंदुओं पूर्ववृत्त, चरित्र और Barari एक मंत्री के पद धारण करने के लिए योग्य नहीं है बौद्धिक योग्यता से ही दिल्ली समझौते में परिकल्पित है कि मेरे साथ सहमत हैं कि पता है.
(26) मैं इस कार्यालय के लिए श्री नुरुल अमीन के लिए तीन नामों की सिफारिश की. मैं सिफारिश व्यक्तियों में से एक एक एमए, एलएलबी, अधिवक्ता, ढाका उच्च न्यायालय थी. उन्होंने कहा कि बंगाल में पहली Fazlul हक मंत्रालय में अधिक से अधिक 4 साल के लिए मंत्री थे. वह लगभग 6 वर्षों के लिए बोर्ड, कलकत्ता, नौभरण कोल माइंस के अध्यक्ष थे. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति फेडरेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष था. मेरा दूसरा नामांकित व्यक्ति एक बीए, एलएलबी था उन्होंने कहा कि पूर्व में सुधार के शासन में 7 साल के लिए विधान परिषद के सदस्य थे. मैं इन दो बहनों में से किसी का चयन और बजाय जिनकी नियुक्ति मंत्री के रूप में मेरा मानना है कि बहुत ठीक ही विचार के लिए पर आपत्ति एक व्यक्ति की नियुक्ति नहीं में श्री नुरुल अमीन के लिए वहाँ क्या हो सकता है सांसारिक कारण जानना चाहते हैं. अंतर्विरोध के बिना किसी डर मैं दिल्ली समझौते के मामले में एक मंत्री के रूप में Barari चयन में श्री नुरुल अमीन की इस कार्रवाई कि ईस्ट बंगाल सरकार निर्णायक सबूत है कि कह सकते हैं. जिसका मुख्य उद्देश्य हिंदुओं को उनके जीवन, संपत्ति, सम्मान और धर्म के लिए सुरक्षा की भावना के साथ ईस्ट बंगाल में रहने के लिए जारी करने के लिए सक्षम होगा के रूप में इस तरह की स्थिति पैदा करने के लिए है दिल्ली अनुबंध की शर्तों के बारे में अपने पेशे में गंभीर और न ही गंभीर न था.
सरकार. हिंदुओं बाहर SOUEEZE करने की योजना
(27) मैं इस संबंध है कि ईस्ट बंगाल सरकार मेरा दृढ़ विश्वास को दोहराना चाहूंगा. अभी भी प्रांत के हिंदुओं को बाहर निचोड़ की सुनियोजित नीति का पालन कर रहा है. एक से अधिक अवसर पर आप के साथ मेरी चर्चा में, मैं मेरी इस दृश्य को अभिव्यक्ति दी. मैं पाकिस्तान से हिंदुओं को भगाने की इस नीति को पश्चिमी पाकिस्तान में पूरी तरह से सफल रहा है और भी पूर्वी पाकिस्तान में पूरा होने वाला है कि कहना होगा. इस संबंध में एक मंत्री और मेरी सिफारिश करने के लिए ईस्ट बंगाल सरकार के अनौपचारिक आपत्ति रूप डी.एन. Barari की नियुक्ति सख्ती से वे एक इस्लामी राज्य क्या कॉल के नाम के अनुरूप. पाकिस्तानी हिंदुओं को पूरी संतुष्टि और सुरक्षा की पूरी समझ नहीं दिया है. वे अब पाकिस्तान के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन उन्हें किसी भी तरह से प्रभावित नहीं किया जा सकता है ताकि हिन्दू बुद्धिजीवियों से छुटकारा चाहते हैं.
ज्वाइंट मतदाताओं टांड़ गोलमाल रणनीति
(28) मैं मतदाताओं के सवाल का फैसला अभी तक नहीं किया गया है समझ में क्यों विफल रहे हैं. यह अल्पसंख्यक उप समिति नियुक्त की गई है कि अब तीन साल है. यह तीन अवसरों पर बैठ गया. पाकिस्तान में मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यकों के सभी प्रतिनिधियों पिछड़े अल्पसंख्यकों के लिए सीटों के आरक्षण के साथ संयुक्त मतदाता के समर्थन में अपने विचार व्यक्त करते समय संयुक्त या पृथक निर्वाचन होने के सवाल पिछले साल दिसंबर में आयोजित समिति की बैठक में विचार के लिए आया था. हम अनुसूचित जातियों की ओर से इस मामले को फिर से पिछले साल अगस्त में बुलाया एक बैठक में विचार के लिए आया लगता है. लेकिन इस मुद्दे पर किसी भी चर्चा के बिना, बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया. यह मकसद पाकिस्तान के शासकों की ओर से इस तरह के एक महत्वपूर्ण बात करने के संबंध में गोलमाल रणनीति के इस तरह के पीछे क्या है समझने के लिए मुश्किल नहीं है.
हिंदुओं के लिए निराशाजनक भविष्य
(29) वर्तमान स्थिति और दिल्ली समझौते का एक परिणाम के रूप में ईस्ट बंगाल में हिंदुओं के भविष्य के लिए अब आ रहा है, मैं वर्तमान स्थिति असंतोषजनक लेकिन बिल्कुल निराशाजनक ही नहीं है और जो कहना चाहिए कि हिंदुओं का भविष्य पूरी तरह से अंधेरे और निराशाजनक विश्वास ईस्ट बंगाल में कम से कम में बहाल नहीं किया गया है. समझौते ईस्ट बंगाल सरकार और मुस्लिम लीग द्वारा एक जैसे कागज का एक मात्र स्क्रैप के रूप में व्यवहार किया जाता है.
ज्यादातर जाति किसान ईस्ट बंगाल के लिए लौट रहे अनुसूचित हिंदू प्रवासियों की एक बहुत बड़ी संख्या में विश्वास बहाल किया गया है कि कोई संकेत नहीं है. यह केवल कहीं और भारतीय संघ में अपने प्रवास और पुनर्वास पश्चिम बंगाल में, या संभव नहीं हो सका है कि इंगित करता है. शरणार्थी जीवन के कष्टों से उन्हें अपने घरों को वापस जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं. इसके अलावा, उनमें से बहुत से चल लेख लाने और बसने या अचल संपत्ति के निपटान के लिए वापस जा रहे हैं. कोई गंभीर सांप्रदायिक अशांति हाल ही में पूर्वी बंगाल में स्थान ले लिया है कि दिल्ली समझौते के लिए जिम्मेदार ठहराया जा करने के लिए नहीं है. कोई समझौते या संधि थे अगर यह बस भी जारी नहीं कर सका.
(30) यह दिल्ली संधि अपने आप में एक अंत नहीं था कि स्वीकार किया जाना चाहिए. यह प्रभावी रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा इतने सारे विवाद और संघर्ष को हल करने में मदद कर सकता है के रूप में इस तरह की स्थितियों बनाया जाएगा कि इरादा था. लेकिन समझौते के बाद छह महीने की इस अवधि के दौरान कोई विवाद या संघर्ष को आसानी से हल किया गया है. पाकिस्तान ने इसके विपरीत, सांप्रदायिक प्रचार और भारत विरोधी दुष्प्रचार से दोनों देश और विदेश में पूरे जोरों पर जारी है. पूरे पाकिस्तान मुस्लिम लीग द्वारा कश्मीर दिवस के पालन पाकिस्तान द्वारा सांप्रदायिक भारत विरोधी प्रचार का एक भाषण सबूत है. पाकिस्तान भारतीय मुसलमानों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत सेना की जरूरत कह रही है कि पंजाब (पाकिस्तान) के राज्यपाल के हाल ही के भाषण भारत के प्रति पाकिस्तान का असली रवैया धोखा दिया है. यह केवल दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ जाएगा.
टुडे ई. बंगाल में क्या हो रहा है
(31) ईस्ट बंगाल में हालत क्या है? हिंदुओं के बारे में पचास लाख देश के विभाजन के बाद छोड़ दिया है. इसके अलावा पिछली फरवरी में ईस्ट बंगाल दंगा से, हिंदुओं के इस तरह के एक बड़े पैमाने पर पलायन के लिए कई कारण हैं. हिंदू वकीलों, चिकित्सकों, दुकानदारों, व्यापारियों और व्यापारियों के मुसलमानों द्वारा बहिष्कार हिंदुओं आजीविका के साधनों की तलाश में पश्चिम बंगाल की ओर पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है. यहां तक कि मालिकों को किसी भी किराए के कई और गैर भुगतान में कानून की प्रक्रिया का पालन किए बिना हिंदू घरों की थोक मांग भारतीय शेल्टर के लिए, भुगतान लंबे समय से पहले बंद कर दिया गया था हिन्दू जमींदारों के लिए किराए पर उन्हें लेने के लिए मजबूर कर दिया है. इसके अलावा, मैं शिकायतें मिली जिनके खिलाफ Ansars सब से अधिक हिंदुओं की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए खड़े खतरे हैं. शिक्षा और इस्लामीकरण के लिए शैक्षिक प्राधिकरण द्वारा अपनाई गई विधियों के मामलों में हस्तक्षेप उनके पुराने परिचित जड़ों से बाहर माध्यमिक स्कूलों और कॉलेजों के शिक्षण स्टाफ भयभीत. उन्होंने ईस्ट बंगाल को छोड़ दिया है. नतीजतन, शैक्षिक प्राधिकरण पहले शैक्षिक संस्थानों के अधिकांश स्कूल के काम शुरू करने से पहले पवित्र कुरान से कविता पाठ में सभी समुदायों के शिक्षकों और छात्र की अनिवार्य भागीदारी enjoining माध्यमिक स्कूलों को परिपत्र जारी, एक और परिपत्र अलग नाम करने के लिए स्कूलों के प्रधानाध्यापकों की आवश्यकता ऐसे जिन्ना, इकबाल, केवल बहुत हाल ही में ढाका में आयोजित एक शैक्षिक सम्मेलन में लियाकत अली, नजीमुद्दीन, आदि, के रूप में 12 प्रतिष्ठित मुस्लिमों के बाद परिसर के ब्लॉक, राष्ट्रपति, ईस्ट बंगाल में 1,500 उच्च अंग्रेजी स्कूलों में से सिर्फ 500 कि बाहर का खुलासा काम कर रहे थे. चिकित्सा चिकित्सकों के पलायन के कारण मरीजों के समुचित इलाज की किसी भी तरह शायद ही वहाँ है. लगभग हिंदू घरों में घर के देवताओं की पूजा करने के लिए प्रयोग किया जाता है जो सभी पुजारियों को छोड़ दिया है. पूजा के महत्वपूर्ण स्थानों पर छोड़ दिया गया है. परिणाम ईस्ट बंगाल के हिंदुओं शायद ही अब धार्मिक गतिविधियों का पालन करें और एक पुजारी की सेवाओं के लिए आवश्यक हैं जहां शादी जैसे सामाजिक समारोहों में प्रदर्शन करने के लिए किसी भी साधन मिल गया है. देवी की छवियों को बनाया जो कारीगरों को भी छोड़ दिया है. मुसलमानों पुलिस और सर्किल अधिकारी की सक्रिय मदद और मिलीभगत के साथ बलप्रयोग द्वारा केंद्रीय बोर्डों के हिंदू राष्ट्रपतियों जगह ले ली है. मुसलमान हिंदू प्रधानाध्यापकों और स्कूलों के सचिवों जगह ले ली है. कुछ हिंदू सरकार का जीवन. नौकरों उनमें से कई या तो जूनियर मुसलमानों से रह या पर्याप्त या किसी भी कारण के बिना खारिज कर दिया गया है के रूप में अत्यंत दयनीय बना दिया गया है. जिसे कम से कम मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह पूर्वाग्रह या द्वेष का कोई शुल्क नहीं लगाया जा सकता है के खिलाफ Srijukta नेली सेनगुप्ता द्वारा किए गए एक बयान में स्पष्ट किया गया है के रूप में केवल बहुत हाल ही में चटगांव की एक हिंदू लोक अभियोजक मनमाने ढंग से सेवा से हटा दिया गया था.
हिंदुओं वस्तुतः गैरकानूनी घोषित
(32) चोरी और यहां तक कि हत्या के साथ डकैती की आयोग से पहले के रूप में चल रहा है. थाना कार्यालय शायद ही कभी हिंदुओं द्वारा बनाए गए आधा शिकायतों रिकॉर्ड. हिन्दू लड़कियों का अपहरण और बलात्कार के एक निश्चित सीमा तक कम हो गई है कि केवल 12 साल की उम्र और वर्तमान में पूर्वी बंगाल में 30 रहने के बीच कोई जाति हिंदू लड़की वहाँ है कि इस तथ्य के कारण है. अपने माता पिता के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कुछ उदास वर्ग लड़कियों के भी मुस्लिम गुंडों से नहीं बचे हैं. मैं मुसलमानों द्वारा अनुसूचित जातियों लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाओं की संख्या के बारे में जानकारी मिली है.
पूरा भुगतान शायद ही कभी जूट और बाजार स्थानों में हिंदुओं द्वारा बेचा अन्य कृषि जिंसों की कीमत के लिए मुस्लिम खरीददारों द्वारा किया जाता है. तथ्य की बात के रूप में, पाकिस्तान में कानून, न्याय या निष्पक्ष खेलने का कोई आपरेशन अब तक हिंदुओं का संबंध है, वहाँ है.
पश्चिम पाकिस्तान में मजबूर रूपांतरण
(33) पूर्वी पाकिस्तान का सवाल अलग छोड़कर, खासकर सिंध, मुझे अब पश्चिम पाकिस्तान के लिए उल्लेख करते हैं. पश्चिम पंजाब अनुसूचित जाति के लोगों की एक लाख के बारे में विभाजन के बाद की थी. यह उनमें से एक बड़ी संख्या में इस्लाम में परिवर्तित किया गया है कि ध्यान दिया जा सकता है. केवल 4 बाहर मुसलमानों द्वारा अपहरण के एक दर्जन से अधिक अनुसूचित जाति की लड़कियों के अभी तक प्राधिकरण को दोहराया याचिकाओं के बावजूद बरामद किया गया है. उनके अपहर्ताओं के नाम के साथ उन लड़कियों के नाम सरकार को आपूर्ति की गई. हाल ही में अपहृत लड़कियों की वसूली के कार्यालय में प्रभारी द्वारा दिए गए पिछले जवाब "अपने समारोह में हिंदू लड़कियों को ठीक करने के लिए गया था और स्टेट" ने कहा कि Achuts "(अनुसूचित जातियाँ) हिंदुओं नहीं थे". अभी सिंध और कराची, पाकिस्तान की राजधानी में रह रहे हैं कि हिंदुओं की छोटी संख्या की हालत बस दु: खद है. मैं 363 हिंदू मंदिरों और कराची के गुरुद्वारों और सिंध की एक सूची मिली है मुसलमानों के कब्जे में हैं जो अभी भी (कोई एक संपूर्ण सूची के माध्यम से होता है). मंदिरों में से कुछ मोची की दुकानें, बूचड़खाने और होटल में तब्दील कर दिया गया है. हिंदुओं में से कोई भी वापस मिल गया है.
उनके उतरा गुण का कब्ज़ा किसी सूचना के बिना उन लोगों से दूर ले लिया है और शरणार्थियों और स्थानीय मुसलमानों के बीच परेशान थे. मैं व्यक्तिगत रूप से कस्टोडियन एक बहुत लंबे समय से पहले 200 से 300 हिंदुओं गैर evacuees के घोषित पता है. लेकिन अब तक गुण उनमें से किसी एक को बहाल नहीं किया गया है. यह गैर निष्क्रांत संपत्ति कुछ समय पहले घोषित किया गया था, हालांकि कराची पिंजरा पोल का भी अधिकार, न्यासियों को बहाल नहीं किया गया है. कराची में मैं कई दुर्भाग्यपूर्ण पिता और अपहरण हिंदू लड़कियों, ज्यादातर अनुसूचित जाति के पति से याचिकाएं प्राप्त किया था. मैं इस बात के लिए 2 अनंतिम सरकार का ध्यान आकर्षित किया. कम या कोई प्रभाव नहीं था. मेरे चरम अफसोस करने के लिए मैं अभी भी सिंध में रह रहे हैं जो अनुसूचित जाति की एक बड़ी संख्या को जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया है कि जानकारी प्राप्त की.
हिंदुओं के लिए पाकिस्तान 'शापित'
(34) अब यह अब तक हिन्दुओं की बात है तो पाकिस्तान का संक्षिप्त समग्र तस्वीर में किया जा रहा है, मैं पाकिस्तान के हिंदुओं को अपने घरों में "स्टेटलेस" प्रदान की गई सभी intents और प्रयोजनों के लिए किया है कि बताते हुए अनुचित नहीं होगा. उन्होंने कहा कि वे हिंदू धर्म दावे उस से कोई अन्य गलती है. पाकिस्तान है और एक इस्लामी राज्य होगा कि मुस्लिम लीग के नेताओं ने बार बार घोषणाओं के लिये कर रहे हैं. इस्लाम सभी सांसारिक बुराइयों के लिए रामबाण इलाज के रूप में की पेशकश की जा रही है. पूंजीवाद और समाजवाद की अतुलनीय द्वंद्ववाद में आप इस्लामी समानता और भाईचारे की लंबी लोकतांत्रिक संश्लेषण प्रस्तुत करते हैं. अकेले शरीयत मुसलमानों की है कि भव्य सेटिंग में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों एक कीमत पर सुरक्षा के हकदार हैं जो jimmies हैं जबकि शासक हैं, और आपको लगता है कि कीमत है क्या किसी और को प्रधानमंत्री महोदय, की तुलना में अधिक जानते हैं. उत्सुक और लंबे समय तक संघर्ष के बाद मैं पाकिस्तान के हिंदुओं में रहने के लिए और अपने भविष्य के रूपांतरण या परिसमापन की अशुभ छाया द्वारा अन्धेरा है कि कोई जगह नहीं है कि इस निष्कर्ष पर आ गए हैं. उच्च वर्ग के हिंदुओं और राजनैतिक रूप से जागरूक अनुसूचित जातियों के थोक ईस्ट बंगाल को छोड़ दिया है. शापित वादा रहने के लिए जारी रहेगा, जो हिंदुओं उन और पाकिस्तान में उस बात के लिए होगा, मैं क्रमिक चरणों से, डर लग रहा है और एक सुनियोजित तरीके से या तो इस्लाम में परिवर्तित या पूरी तरह से विनाश किया. यह आपकी शिक्षा, संस्कृति और अनुभव का एक आदमी समानता और अच्छी भावना के सभी सिद्धांतों का मानवता और विध्वंसक करने के लिए इतनी महान एक खतरे से भरा एक सिद्धांत का प्रतिपादक होना चाहिए कि वास्तव में आश्चर्यजनक है. मैं हिंदुओं धमकी या प्रलोभन, उनके जन्म के देश में jimmies रूप में माना जाए, जो भी खुद को अनुमति देगा कि आप और आपके साथी कार्यकर्ताओं को बता सकते हैं. वास्तव में उनमें से कई पहले से ही किया है, जैसा कि आज वे, दुख में, लेकिन दहशत में उनके hearths और घर छोड़ देना हो सकता है. कल वे जीवन की अर्थव्यवस्था में अपनी सही जगह के लिए प्रयास करते हैं. कौन भविष्य के गर्भ में क्या जानता है? मैं पाकिस्तान केन्द्र सरकार के कार्यालय में मेरे बने रहने मैं एक साफ अंतःकरण के साथ, हिंदुओं के साथ वहां रह सकते हैं कि पाकिस्तान के हिंदुओं और विदेश में लोगों के मन में गलत धारणा नहीं बनाना चाहिए हिन्दुओं के लिए किसी भी मदद की नहीं है आश्वस्त हूँ कि जब सम्मान और उनके जीवन, संपत्ति और धर्म के संबंध में सुरक्षा की भावना के साथ. यह हिंदुओं के बारे में है.
यहां तक कि मुसलमानों के लिए कोई नागरिक स्वतंत्रता
(35) और क्या लीग शासकों और उनके भ्रष्ट और अक्षम नौकरशाही का मंत्रमुग्ध सर्कल के बाहर हैं, जो मुसलमानों के बारे में? पाकिस्तान में नागरिक स्वतंत्रता बुलाया कुछ भी शायद ही है. उदाहरण के लिए गवाह, खान अब्दुल गफ्फार के भाग्य खान फिर एक अधिक भक्त मुस्लिम कई वर्षों के लिए इस पृथ्वी पर आया और उसके वीर देशभक्त भाई डॉ. खान साहिब का नहीं था जिसे. नॉर्थवेस्ट के और भी पाकिस्तान की पूर्वी बेल्ट के तत्कालीन लीग के नेताओं की एक बड़ी संख्या में परीक्षण के बिना हिरासत में हैं. श्री सुहरावर्दी बंगाल में लीग की जीत व्यावहारिक उद्देश्यों के परमिट के तहत स्थानांतरित करने के लिए और आदेश के तहत अपने होंठ नहीं खोल सकता है जो एक पाकिस्तानी कैदी के लिए है एक बड़ी मात्रा में होने के कारण है जिसे करने के लिए. महंगा पड़ा कि अब प्रसिद्ध लाहौर संकल्प के लेखक थे, जो बंगाल की भव्य बूढ़े आदमी प्यार करता था कि श्री Fazzul हक, महकमा के ढाका उच्च न्यायालय के परिसर में अपने अकेला कुंड जुताई कर रहा है, और तथाकथित इस्लामी योजना के रूप में क्रूर है यह पूरा हो गया है के रूप में. ईस्ट बंगाल के मुसलमानों के बारे में आम तौर पर, कम बेहतर कहा. वे एक स्वतंत्र राज्य के लाहौर में वादा किया गया था. वे स्वतंत्र राज्य के स्वायत्त और संप्रभु इकाइयों का वादा किया गया था. वे क्या बजाय मिला है? यह एक साथ रखा पाकिस्तान की सभी इकाइयों की तुलना में बड़ा है, जो आबादी के निहित हालांकि ईस्ट बंगाल, पाकिस्तान के पश्चिमी बेल्ट की एक कॉलोनी में तब्दील कर दिया गया है. यह कराची के लट्टे बोली कर रही है और अपने आदेश को बाहर ले जाने की एक पीला अप्रभावी सहायक है. उनके उत्साह में ईस्ट बंगाल के मुसलमानों रोटी चाहता था और वे सिंध के शुष्क रेगिस्तान और पंजाब के बजाय पत्थर मिला इस्लामी राज्य के रहस्यमय ढंग से काम कर रहे हैं और शरीयत से है.
अपने ही शिरोमणि अकाली दल और कड़वा अनुभव
(36) पाकिस्तान और दूसरों के लिए किया निर्दयी और क्रूर अन्याय की समग्र तस्वीर अलग छोड़कर, अपने स्वयं के व्यक्तिगत अनुभव से कम नहीं उदास, कड़वा और खुलासा है. तुम्हें पता है मैं पिछले 8 सितम्बर को किया था जो एक बयान जारी करने के लिए मुझे पूछने के लिए संसदीय दल के प्रधान मंत्री और नेता के रूप में अपनी स्थिति का इस्तेमाल किया. तुम्हें पता है मैं उन असत्य बदतर थे जो असत्य और आधा सच, जिसमें एक बयान करने के लिए तैयार नहीं था कि पता है. मुझे मैं तुम्हारे साथ और अपने नेतृत्व में एक मंत्री के रूप में काम कर रहा था इतने लंबे समय के रूप में अपने अनुरोध को अस्वीकार करने के लिए यह संभव नहीं था. लेकिन मैं अब अपने विवेक पर झूठा दिखावा और असत्य के इस भार ले जाने का खर्च वहन कर सकते हैं और मुझे लगता है कि मैं इसके लिए अपने हाथों और जिसमें दे रहा हूँ जो अपने मंत्री के रूप में अपने इस्तीफे की पेशकश करने का फैसला किया है, मैं आशा करता हूँ, आप बिना देरी को स्वीकार करेंगे. आप पर्याप्त रूप से और प्रभावी रूप से अपनी इस्लामी राज्य के उद्देश्यों के अनुरूप हो सकता है कि कार्यालय के साथ बांटना या इस तरीके से इसे के निपटान के लिए स्वतंत्रता पर निश्चित रूप से कर रहे हैं.
8 अक्टूबर 1950
निष्ठा से तुम्हारा है,
जे.एन. मंडल
कोई टिप्पणी नहीं: पर 2013/06/25 00:02:00
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