Friday, October 4, 2013

भारतीय लोकतंत्र भी पितृतांत्रिक,सह्स्र पुरुषांग का समावेश है और कुछ भी नहीं


भारतीय लोकतंत्र भी पितृतांत्रिक,सह्स्र पुरुषांग का समावेश है

और कुछ भी नहीं


रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम कंडोम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम छिद्रन्वेषण निष्णात

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम हनुमान जी का नाला पार

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम जापानी तेल

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम चैनल पुजारी

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे चैनल निवेशक हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे चिटफंटिये हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे राजनीति हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे शापिंग हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे घ्राणसर्वस्व हम

हम आध्यात्मिक हैं और इंद्रियां बेलगाम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे इंद्रताड़ित हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे पाखंडी हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे खुला बाजार हम


बाकी जो हैं,उनका क्या,कब होगी उनको सजा

लालू ने खाया चारा,हो गयी जेल

हम मना रहे कभी न हो उसको बेल

साथ में देख लें सन 47 से अब तक के घोटाले

जिनको रफा दफा किया गया और

किसी को सजा नहीं हुई


पलाश विश्वास
Rajiv Nayan Bahuguna
शायद ही कोई मूर्ख , सिरफिरा , जिद्दी या दुराग्रही होगा , जो लालू प्रसाद के जेल गमन पर आपत्ति उठाएगा , लेकिन मेरी और से कुछ क्षेपक / परिशिष्ट स्वीकार किये जाएँ .
१- राजनीति में धन बल अपरिहार्य हो गया है . चुनाव लड़ने - लड़ाने में करोड़ों , अरबों , खरबों का खर्चा आता है . वह पैसा स्वर्ग लोक के देवी देवताओं को नहीं , बल्कि मनुष्यों की भेंट चढ़ता है . इस लिए राजनीति को भ्रष्ट बनाने के लिए जनता भी उत्तरदायी है .
२- लालू अपने देसी भंगिमा - विन्यास के कारण वर्षों से अंग्रेजी भद्र लोक के लिए एक भदेस प्रतीक रहा है . उसे कदाचार का अधिष्ठाता मान लिया गया . क्योंकि गरीब परिवार से बिलोंग करने के कारण उसने पहली बार मुख्य मंत्री बनने पर गपा गप माल खाया . नया नया था , सो पकड़ लिया गया . लेकिन अंग्रेज़ी भद्र लोक के जेटली फेतली , थरूर - सरूर जो बहुत नफासत से खाते हैं , और ज्यादा खाते हैं , ये कब पकडे जायेंगे ?
३- राबर्ट बाड्रा सरे- आम ज़मीनें गड़प रहा है . यह एक गंभीर सामजिक , आर्थिक तथा पर्यावरणीय अपराध है . वह दिनों दिन कृषि तथा अर्ध वन भूमि को लगातार कंक्रीट में बदल रहा है . उस पर उँगलियाँ भी उठती हैं , पर कुछ नहीं होता .
४- लालू ने भारतीय देहाती और हिंदी जाति के पक्ष में लम्बी लड़ाई लड़ी है . वह न होता तो दिल्ली , बंगलुरु , मुम्बयी आदि के महानगरीय अंडवते - दंडवते , शरूर - थरूर और हावी हो गए होते
५- सज़ा कतयी भी कम न हो , पर लोक तंत्र , धर्म निरपेक्षता और हिन्दी के प्रति लालू के समर्पण को याद रखा जाए
६- जब वह मात्र विधायक था ( आज से करीब अठाईस साल पहले ) मैं तब पटना में अखबार की नौकरी करते हुए उसे चपरासी क्वार्टर में रहते तथा हम लोगों को अपने हाथ से मच्छी बना कर खिलाते देख चुका हूँ . उसके इन गुणों का सम्मान हो


मेरा मतः

राजीव नयन दाज्यु ( चूंकि औरिजिनल राजीव दाज्यु तो नैनीताल समाचार में हैं),


मैं आपके इस प्रक्षेपण के लिए आभारी हूं।

लालू ने चारा खाया बहुत अच्छा हुआ कि वह जेल गया।

बहुत अच्छा कि ओबीसी आइकन लालू राजनीति से बाहर हो गया।

बहुत अच्छा कि लालू की सांसदी खारिज हो गयी।

बहुसंख्य वध्य असुर मूलनिवासियों के जनप्रतिनिधियों को

चेताने की पहल बतौर,बहुजनों की गुलामी खत्म करने वाले मसीहा तानाशाह बेहिसाब आशाराम बापुओं और उनके भक्तों के लिए यह चेतावनी बहुत जरुरी भी है, वरना ईमानदारी से वदलाव की लड़ाई और विडंबना यह है कि जिसकी शुरुआत में इन्हीं पतित आइकनों की भारी भूमिका रही है,को रिलांच किया जा सकें।

लालू,शिबू सोरेन,बहन मायावती,मुलायम,करुणानिधि,शरद यादव,राम विलास पासवान,मान्यवर कांशीराम,कर्पूरी ठाकुर,चौधरी चरणसिंह,अजित जोगी, रामदास अठावले,उदित राज,चौटाला परिवार,अजित सिंह से लेकर हाल में विवाहित बामसेफ विधाता वामन मेश्राम तक ने बदलाव की बयार बनाने में भारी योगदान दिया है।


असहमति और आलोचना का विवेक भी होना चाहिए। भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक न्याय की लड़ाई की विरासत को सिरे से कारिज करना आत्मघाती कदम होगा। आपने यह याद दिलाया,इसके लिए हम आभारी हैं।


दरअसल आपने जैसा कहा कि इसके लिए दोषी व्यक्ति कम,हम जनगण ज्यादा हैं क्योंकि कर्मकांड के अभ्यस्त हम अपने लोगों को

देव देवी अवतार बनाने से चूकते नहीं हैं। अपने बदलाव के झंडेवरदार को भ्रष्ट दोषी बनाकर हमीं लोग काकस बना कर खूब कमाई करते हैं।कमाई के बना लेते हैं धर्मस्थल और देव देवियों को प्रसाद मात्र चढ़ाकर बाकी माल हड़प करने वाली पिछवाड़े की प्रजाति बहुत शातिर है और वे पकड़ में भी कभी नहीं आते।एक देवता स्खलित हो गया तो दूसरे वीर्यमान, ऋतुमती देवी को वैकल्पिक पीठ बनाने में हमारी कोई सानी नहीं है।


आस्था का कारोबार कुल मिलाकर यही है। आशारामुआ ,रामुआ, भाई,बहना संप्रदाय के अंधभक्तों कते निर्माण की उत्पादन प्रणाली खुलेबाजर की व्यवस्था माफिक है।


याद करें कि भारत में नवजागरण आंदोलन के पताकावाहक ब्राह्म सामाज और आर्यसमाज के तमाम दिग्गज मूर्ति पूजा और कर्मकांड के प्रबल विरोधी थे।लेकिन उस नवजागरण का हश्र अंततः ब्राह्मणवादी वर्चस्व और सनातनी धर्म के माध्यम से कारपोरेट खुल्ला बाजार हो गया,जिसमें पूंजीपरस्तों का ही स्वार्थ परमार्थ है। यहां तक कि आम, गरीब, सीमांत पुरोहित बामणों की भी कुकुरदशा है और सनातन आस्था के आस्थावानों का चहुंमुखी दिगंतव्यापी साढ़े सर्वनाश है।


ब्राह्मणवाद, फासीवाद या नाजीवाद कोई जाति नस्ल का विमर्श है ही नहीं।कुल मिलाकर यह वर्चस्ववादी एकाधिकारवादी अर्थव्यव्स्था के बेहतरीन टूल है और रंगबिरंगी आस्थाएं गजब के विजेट हैं। विजेट लगालो थरकीब से तो कारोबार की जुगत दुधारु गोमाता पवित्रतम।


याद रखना जरुरी है कि जर्मनी के दमन के विरुद्ध जर्मनी में हिटलर के उत्थान से पहले का जनांदोलन अमेरिका और फ्रांस की क्रांतियों से कम तात्पर्यपूर्ण नहीं है।अमेरिका अब चूंकि कारपोरेट साम्राज्यवादी वैश्विक व्यवस्था का अगुवा है,इसीलिए अगर हम अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम और सबसे पहले काम के घंटे की शिकागो की लड़ाई, सबसे पहले दासता के विरुद्ध सफल महासंग्राम,जार्ज वाशिंगटन,अब्राहम लिंकन और मार्टिन लूथर किंग की विरासत को सिरे से खारिज कर दें,तो यह आत्मघाती ही होगा।


अगर हम जायनवादी वैश्विक व्यवस्था और आक्रामक इजराइल के वर्तमान के मद्देनजर यहूदी इतिहास,होलोकास्ट और उसके महा प्रतिरोध को सिरे से खारिज कर दें,तो हमारे इतिहास बोध पर तरस आयेगी हर किसी को।

असल में निरंकुश शासन की अवधारणा दैवी शासन की अवधारणा है। यह लोकतंत्र नहीं, निरंकुश एकनायकतंत्र का व्याकरण है। जर्मनी  और इटली ने व्यक्तिसर्वस्व विप्लव का खामियाजा भुगता है रक्तात इतिहास के पन्ने दर पन्ने। अब हम उसी इतिहास को अपने यहां दोहराने के लिए लालायित है।


व्यक्ति और वंश आधारित लोकतंत्र लोकतंत्र है ही नहीं।इसकी अनिवार्य शर्त है अविच्छिन्न मूर्तिपूजा और प्रश्नहीन आनुगत्य और अंधश्रद्धा।1947 से लेकर अबतक हम इसी परंपरा का अनुसरण कर रहे हैं। विडंबना है कि इस आत्मघाती आवर्त में हम भी फंसे हैं और हमारे मसीहा संप्रदाय इसी दलदल में डुबोडूब हैं।बदलाव और आजादी के आंदोलन भी मूर्ति पूजा और अखंड कर्माकांडी संस्कार में आवद्ध हैं।


मुश्किल यह है कि लोकतंत्र की इस भयानक बीमारी का पहचाने बगैर जाति व्यवस्था,नस्ली भेदभाव,भौगोलिक अस्पृश्यता के धारक वाहक लोग चुनिंदा बहुजन मूलनिवासी आइकनों के पतन की जमकर ब्रांडिंग करते हुए बदलाव के सारे विकल्पों को खारिज कर रहे हैं। यह भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा ब्लैकहोल है,जिसके अमोघ आकर्षण से हमारे बचने की कोई राह निकल ही नहीं रही है।


अगर विचारधारा इतनी मजबूत है,अगर संगठन संस्थागत है और लोकतांत्रिक, अगर मिशन के प्रति समर्पण है तो फिर मूर्ति पूजा का प्रयोजन क्या है,यह समझ से परे हैं।


जो तमाम मूर्तियों का खंडल मंडन करते रहे हैं,हम आस्थावान लोग उन्ही की मूर्तियां गढ़ने में लगे हैं। इसमें उनका हित तो सधता नहीं है,जैसे किसी धर्मस्थल पर चढ़ाया भोग,प्रसाद, स्वर्ण,आभूषण, नकदी,थैलियां किसी देवता,देवी या ईश्वर तक नहीं पहुंचता- पंडों,पुरोहितों और प्रबंधकों की निजी प्रश्नातीत आय है वह।जरा आय का हिसाब मांगकर देखे प्रबल आस्थावान भक्त समुदाय,फिर देखें मजा। हम लोग तो गणित से सिरे से बचने वाले जनगण है।हमारे जमाने में तो हमने बेतें खायी हैं,मुर्गा भी खूब बने हैं और बेंच पर भी खड़े होते रहे हैं।वह जमाना गया। बहरहाल स्कूली शिक्षा में जो गणित सीखा,जो पाठ्यक्रम रटकर डिग्रियां बटोरी,कोटा बेकोटा नौकरियां हेसियत हासिल कर ली,वह सबकुछ कूड़ादान है।शाश्वत कालजयी साहित्य,इतिहासऔर भूगोल कूड़ादान है।दर्शन विचारधाराओं कूड़ादान है। मनोरंजन और सेक्स के सिवायइस बाजार में सबकुछ गैरप्रासंगिक हैं।


रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम कंडोम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम छिद्रन्वेषण निष्णात

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम हनुमान जी का नाला पार

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम जापानी तेल

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे हम चैनल पुजारी

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे चैनल निवेशक हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे चिटफंटिये हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे राजनीति हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे शापिंग हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे घ्राणसर्वस्व हम

हम आध्यात्मिक हैं और इंद्रियां बेलगाम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे इंद्रताड़ित हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे पाखंडी हम

रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे खुला बाजार हम


अब बताइये, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की विरासत पर एकाधिकार जमाये कांग्रेसी धर्मनिरपेक्षता की फंडिंग क्या है


अब बताइये,बहुजनों मूलनिवासियों की आजादी,सत्ता में भागेदारी की फंडिंग क्या है


अब बताइये, क्रांति रथ के रथियों महारथियों की फंडिंग क्या है


अब बताइये,मोमबत्ती जुलूसों और जंतर मंतर रामलीला मैदानों का

फंडा क्या है


झंडों में लगे डंडों के वर्चस्व का फंडा क्या है


लालू की मैली चादर का जश्न मना रहे दलों और लोगों की फंढिंग क्या है


उनके खेमे के दागदारों का क्या है


खांचे में बंद तोतों का किस्सा क्या है


पवित्र गोसंप्रदाय की अकूत संपत्ति का हिसाब किताब क्या है


हिंदुत्व पुनरुत्थान और हिंदू राष्ट्र जिनका मिशन है,उनका कारोबार क्या है


हिंदुत्व पुनरुत्थान और हिंदू राष्ट्र जिनका मिशन है,उनके महापुरुष,साधु संत शंकराचार्य देव देवियां क्या कम है,कि पूरा देश

इसवक्त नमो नमो और केशरिया भी नमो नमो


हम व्यक्ति और वंश के बदले संस्था और लोकतंत्र के परिपक्व नागरिक हैं,सम्मति का विवेक और असम्मति का साहस सिर्फ

समयांतर क्यों है या फिर समतकालीन तीसरी दुनिया या सिर्फ हस्तक्षेप जैसे चुनिंदा सोशल नेटवर्क


हम व्यक्ति और वंश के बदले संस्था और लोकतंत्र के परिपक्व नागरिक हैं,तो तकनीक विशेषज्ञ रात दिन हम फेसबुक ट्विटर

पर क्यों महामहिमों का स्खलित वीर्य लीप पोत रहे हैं


वंश और वंशजों के शिकंजे से बचे हैं कौन लोग,जरा आंके कोलकर देख लीजियेगा


हम व्यक्ति और वंश के बदले संस्था और लोकतंत्र के परिपक्व नागरिक हैं,तो सारे आंदोलन,सारी लड़ाई,सारी रैलियां,सारे संगठन व्यक्ति और वंश को समर्पिक क्यों


वैज्ञानिक विचारधारा और वैज्ञानिक परिकल्पनाओं की मेधा शक्ति भी वंश विरासत का मोहताज क्यों


दरअसल संस्था और लोकतंत्र की विरासत से हजारों साल से हम भारतीय बेदखल है। हम अपने नेताओं को ईश्वर और अवतार बनाकर अपने अपने गुलशन का कारोबार चलाने वाले मौकापरस्त लोग हैं।


हम चेखव के गिरगिट हैं और हवा मौसम का मिजाज भांपकर फौरन जीत और जश्न के बाड़े में दाखिल होकर जूठन बटोरने वाले लोग हैं


हमारे ईश्वर,देव देवी और अवतार भी इसी मर्त्यलोक के वाशिंदे हैं। इद्रियों के वे भी गुलाम हैं और भीतर से घंद्रदंव उनके नियंत्रक हैं और कथा तो यह है कि इंद्र कोई देव नहीं, सह्स्र पुरुषांग का समावेश है


भारतीय लोकतंत्र भी पितृतांत्रिक,सह्स्र पुरुषांग का समावेश है

और कुछ भी नहीं


लालू ने खाया चारा,हो गयी जेल

हम मना रहे कभी न हो उसको बेल


पर जनेने खाये और हजम किये

हमारे जल जंगल जमीन,उनका क्या

जिनने खाये परमाणु बम और

रक्षा आंतरिक सुरक्षा प्रतिरक्षा

के सारे अस्त्र शस्त्र

और भारत का समूचा बजट

और पंचवर्षीय योजनाएं तमाम

उनका क्या,कब होगी उनको सजा


जिनने खायी कृषि हमारी

हजम किये खेत खलिहान

खा लिया हर गांव ,समूचा देहात

उनका क्या,कब होगी उनको सजा


जो हैं हरा हरा और लाल से परहेज जिन्हें

जैविकी और रसायन हगते मूतते हैं

हरित क्रांति दूसरी हरित क्रांति

काकर हमे बनाया कंगाल जिनने

उनका क्या,कब होगी उनको सजा


जिनने जरुरी बुनियादी सेवायें

छिनी हमसे,छीन लिया

वेतन मान,स्थाई नौकरियां

बच्चों का भविष्य

हमारी भविष्यनिधि

और हमारा बीमा,पेंशन

उनका क्या,कब होगी उनको सजा


लालू ने खाया चारा,हो गयी जेल

हम मना रहे कभी न हो उसको बेल

लेकिन जो देश विदेश

घूम घूमकर डंके की चोट पर

रोज बेच रहे हैं देश,प्रदेश

उनका क्या,कब होगी उनको सजा


लालू ने खाया चारा,हो गयी जेल

हम मना रहे कभी न हो उसको बेल

जिनने सारी सरकारी कंपनियां

बेच दीकौड़ियों के मोल

बेच दिये नाल्को बाल्को

सारे बंदरगाह,सारे एअरपोर्ट

बेच दिये स्थल मार्ग सारे

और हवाई मार्ग भी

बेच दिये हमारे सारे हाट

सारे कारोबार,हमारी आजीविका

उनका क्या,कब होगी उनको सजा


जिनने खाये कोयला,अल्युमिनियम

सारे के सारे तेल क्षेत्र

सारी की सारी नदियां पी गये जो

जिनने बेचे हिमालय

सारे के सारे अभयारण्य

बेच दिये अरावली,विंद्यांचल

पश्चिम घाट और गारो पहाड़

बेच दिया सुंदर वन

और बेच डाला समुंदर हमारा

बेच दी हरी भरी घाटियां

बेच दिये हमारे सारे मौलिक

अधिकार, बेच दिया संविधान

राष्ट्र की एकता और अखंडता

भी बेच दी जिनने

जिनने बेची हमारी पहचान

हमारे तीज त्योहार पर्व

बेच दिये हमारे लोकगीत सारे

छिन ली मातृभाषा, सारी बोलियां

खत्म कर दी अस्मिताएं

बहुआयामी संस्कृतियां सारी


उनका क्या,कब होगी उनको सजा

लालू ने खाया चारा,हो गयी जेल

हम मना रहे कभी न हो उसको बेल



साथ में देख लें सन 47 से अब तक के घोटाले

जिनको रफा दफा किया गया और

किसी को सजा नहीं हुई


Rajendra Kapadia added a new photo. — with Jayantibhai Manani and5 others.

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Patrakar Praxis
"...लोकतंत्र में जनता की चेतना ही एक मात्र पैरामीटर हो सकती है कि वे लोकतांत्रिक संस्थाओं का कितना लाभ ले सके. चेतना के अभाव की स्थिति में चाहे कितने भी छोटे-छोटे राज्यों का निर्माण किया जाय, समाज में पूर्ववत मौजूद वर्चस्व की विभिन्न श्रेणियाँ/संस्थाएं ही असल लाभ पाएंगी. उदाहरण के लिए भाषा के आधार पर पृथक कर दिए जाने पर संभवतः नए राज्य में जातीय आधार पर एक नया वर्चस्व इसका लाभ उठाये. और माना जाति के आधार पर ही पृथक राज्य का गठन हुआ हो तो पूंजीवादी लोकतंत्र में तयशुदा तौर पर एक खास वर्ग ही वर्चस्व पर कब्ज़ा कर लेगा..."
by- Rohit Joshi
http://www.patrakarpraxis.com/2013/10/blog-post_4.html

पृथक तेलंगाना : नए राज्यों की चुनौतियां | पत्रकार Praxis

www.patrakarpraxis.com


Lenin Raghuvanshi
This final report contains the end-line evaluation findings of RCT and PVCHR's TOV program dubbed as Promoting a Psycho-Legal Framework to Reduce Torture and Organized Violence (TOV) in India.
The program's over-all objective is ensuring strong and well-organized testimonial campaigns that contribute to eliminate impunity for perpetrators of torture in India. The program had developed the capacity of PVCHR as a knowledge centre that promotes the testimonial therapy for psychosocial rehabilitation of the torture survivors and advances advocacy for the prevention of torture. The program likewise utilized the testimonial therapy as a psycho-legal intervention implemented at the individual and community level for healing and empowerment. The testimonial therapy had served as a bridge between rehabilitation and advocacy in the fight against torture in India.
Published at:
http://www.practiceinparticipation.org/documents/947/137/promoting-a-psycho-lega...



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