Sunday, August 18, 2013

वैश्वीकरण की राह से नहीं हटेंगे, यह प्रधानमंत्री का वक्तव्य नहीं सिर्फ, भारत पर विदेशी पूंजी के वर्चस्व की उदात्त घोषणा है!

वैश्वीकरण की राह से नहीं हटेंगे, यह प्रधानमंत्री का वक्तव्य नहीं सिर्फ, भारत पर विदेशी पूंजी के वर्चस्व की उदात्त घोषणा है!


पलाश विश्वास


भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गर्वनर डी. सुब्बाराव ने ifjlजाते जाते बेलगाम हो गये तो शेयर बाजार के मार्फत तिहरे विपर्यय का शिकार हो गयी भारतीय अर्थव्यवस्था क्योंक खुले बाजार में शेयर बाजार ही भारतीय अर्थव्यवस्था है। न भारतीय कृषि संकट के स्थाई भाव के विलंबित लय में कोई व्यवधान है और न औद्योगिक परिदृश्य में सुधार की कोई  गुंजाइश नही है। उत्पादन प्रणाली का वजूद मिट गया है। विदेशी संस्थागत निवेशकों की मेहरबानी से हवा पानी मिल रहा है भारत की रोजमर्रे की जिदगी को। शत प्रतिशत प्रत्यक्ष निवेश का अशनिसंकट कितना प्रबल है, आम भारतीय बहिस्कृत निनानब्वे फीसद जनगण और सर्वशक्तिमान पत्रकार बिरादरी की दुर्गत अब समांतर है। मीडिया में विदेशी पूंजी की घुसपैठ की वजह से तलवारें तमाम मलाईदार गरदनें नाप रही हैं और दुनिया भर कीखबर लेने वाले मीडिया,दुनियाभर को दुनियाभर की खबर देने वाले मीडिया की चूं तक करने की हिम्मत नहीं है। सारी की सारी धारदार कलमें जंग खा गयी हैं।तमाम तीसमारखां की बोलती बंद हो गयी है। मीडियाकर्मी संगठन और कस्बो तक बिखरे दारुक्लब में तब्दील प्रेस क्लबों के धुरंधरों ने नपुंसक सन्नाटा ओढ़ लिया है। जी हां, ऐसी होती है विदेशी पूंजी। अबाध विदेशी पूंजी का अबाध प्रवाह ही ग्लोबेलाइजेशन है।


कल तक देश बेचने वाले लुंगी पहने कारपोरेट वित्तीय प्रबंधक भारतीय रिजर्व बैंक के कान उमेठकर विदेशी पूंजी और कारपोरेट इंडिया के मर्जीमुताबिक मौद्रिक नीतियां तय करा रहे थे। खाद्य मुद्रास्फीति जब दहाई को स्पर्स कर रही है तो जाते जाते सुब्बाराव का विवेक दगा दे गया और उन्होंने गिरते रुपये को थामने, मुद्रास्फीति को लगाम कसने के लिए आवारा पूंजी पर लगाम कसने की कवायद करने की बगावत कर दी।


संस्थागत निवेशकों की आस्था पर जब निर्भर हो अर्थव्वस्था तब गाहे बगाहे सांढ़ों और भालुओं के उपद्रव से शेयर बाजार में उछल कूद बाजार का आम चलन है। नीति निर्धारण को अपने मुताबिक बनाने के लिए यह कृत्तिम संकट सबसे बड़ी कारपोरेट लाबिंइंग है खुल्लमखुल्ला और इस आईपीएल में मैच फिक्स्ड ही हैं। शेयरबाजार का दमाल देस की किस्मत तय कर रहा है और प्रधानमंत्री को सफाई देनी पड़ रही है कि वैश्वीकरण की राह से नहीं लौटेंगे।


गौर फरमाइये जनाब, देश के प्रधानमंत्री और भारत में ग्लोबीकरण के ईश्वर कोई लालकिले के प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित नहीं कर रहे हैं, वे विदेशी संस्थागत निवेशकों और प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश को संबोधित कर रहे हैं, जिसे प्रधानमंत्रित्व के दावेदार और तमाम कारपोरेट विकल्पों के रथी महारथी कोई चुनौती देने वाले नहीं हैं।


दरअसल, जनादेश का मतलब ही कारपोरेट विकल्प है। इसमें अब कोई लोकतांत्रिक कारोबार नहीं है। जनमत अब मीडिया प्रोजेक्टेड सर्वे है और जनप्रतिनिधित्व कारपोरेट कृपा।


जाहिर है कि प्रधानमंत्री के वक्तव्य पर न कोई प्रतिक्रिया हो रही है और न कोई संवाद। जिस अर्थशास्त्र के शिकार हैं भारतीय जनगण, उस तिलिस्म को तोड़ने का कोई मंत्र तो क्या कोई संकल्प भी नहीं है। हमारे लिए सिर्फ चूंती हुई विदेशी पूंजी की एक थैली है और हम भारतीय नागरिक लार टपकाते लोगों की अनंत कतार है जो जीभ निरकाले हुए दो चार बूंद आत्मसात करके ही जन्म सार्थक कर रहे हैं।


जरा काला शुक्रवार से पहले वित्तमंत्री के इस बयान पर भी गौर करें तो इस मैच फिक्सिंग पर किसी स्टिग आपरेशन की आवश्यकता नहीं होगी।

वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बुधवार को कहा कि सरकार विदेशी निवेश नीति का और अधिक उदारीकरण करेगी और उसमें और स्पष्टता लाएगी।वित्तमंत्री के रूप में एक साल पूरा करने के मौके पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा कि सरकार पूरी शिद्दत से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति के उदारीकरण पर विचार कर रही है। उन्होंने एक अगस्त 2012 को वित्त मंत्रालय का जिम्मा संभाला था।


उन्होंने कहा कि सरकार जल्द ही बहुब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों में स्पष्टता लाएगी, जिससे देश में निवेश जुटाने में मदद मिलेगी।


तनिक प्रधानमंत्री के वक्तव्य पर गौर करें और आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखें तो फिक्सिंग, सेक्सिंग और बेटिंग के सार परिदृश्य आइने की तरह साफ हो जायेंगे।इस पर जरा फोकस करें कि पूंजी पर नियंत्रण करने वाली कोई मौद्रिक नीति नहीं होगी। हम गार का हश्र देक चुके हैं। जिसको ठिकाने लगाने के लिए देशबेचो विशेषज्ञों की सेवा ली जा जा रही है वित्तीय प्रबंधन के लिए इन दिनों ौर तत्कानलीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को रायसीना हिल्स में आराम फरमाने के लिए भेज दिया गया।


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वर्ष 1991 के भुगतान संकट के दोहराए जाने और भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के रास्ते से हटने की आशंकाओं को खारिज किया है।शुक्रवार को आई बाजार में भारी गिरावट के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस पर सफाई दी। उन्होंने साफ-साफ कहा कि इकोनॉमी की स्थिति 1991 जैसी नहीं है। उन्होंने कैपिटल कंट्रोल जैसी बातों को भी खारिज किया।


मनमोहन सिंह के मुताबिक उस समय फॉरेन एक्सचेंज फिक्स्ड था, लेकिन अब ये बाजार के मुताबिक निर्धारित होता है। हालांकि उन्होंने भरोसा जताया कि आरबीआई भविष्य में ग्रोथ को भी ध्यान में रखकर फैसले लेगा।आर्थिक वृद्धि और रिजर्व बैंक की सख्त मौद्रिक नीति पर छिड़ी तीखी बहस के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को वैश्वीकरण और वित्तीय समस्याओं से घिरी अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति की सीमाओं और संभावनाओं पर नए सिरे से गौर किए जाने पर जोर दिया।


जाहिर है कि भारतीय रिजर्व बैंक को भी पिंजरे में कैद तोता के अलावा कोई हैसियत देने को तैयार नहीं है देश का कारपोरेट नेतृत्व।

बाजार के मुताबिक नियंत्रण का जो महिमामंडन किया है प्रधानमंत्री ने वह अनियंत्रित खुले बाजार का समकालीन सार्वजनीन भोगा हुआ यथार्थ है। बाजार कीमतें तय करता है मुद्रा बाजार की तरह। वस्तुएं हों या सेवाएं, उनके मूल्य निर्धारण में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। आप बाजार में खड़े हैं तो आपकी क्रयशक्ति ही आपकी उपभोग क्षमता तय करेगी।

अब मुद्रा बाजार जब अनियंत्रित है तो उसके उतार चढ़ाव पर इतना हंगामा क्यों बरपा है, यह समझ से परे है।प्रधानमंत्री ने पीटीआई से कहा, वर्ष 1991 के (भुगतान संतुलन संकट) संकट को दोहराये जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। उस समय भारत में विदेशी मुद्रा विनिमय निर्धारित दर पर था। अब यह बाजार के हवाले है। हम केवल रुपये में भारी उतार-चढ़ाव को ही ठीक कर सकते हैं।


मनमोहन सिंह ने कहा कि वर्ष 1991 में देश में केवल 15 दिन की जरूरत की विदेशी मुद्रा बची थी। अब हमारे पास छह से सात महीने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार है। इसलिए दोनों स्थितियों के बीच कोई तुलना नहीं की जा सकती। ऐसे में 1991 के संकट के दोहराए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।


देश के चालू खाते के ऊंचे घाटे की पृष्टभूमि में प्रधानमंत्री से पूछा गया था कि कुछ वर्गों के बीच ऐसी आशंका बढ़ रही है कि देश 1991 के संकट की तरफ लौट रहा है। विदेशी मुद्रा पाने के लिए देश को सोना गिरवी रखना पड़ा था और आर्थिक सुधार कार्यक्रम की शुरुआत करनी पड़ी थी। इसके बाद से देश विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ने की राह पर आ गया था।


देश का वित्तीय प्रबंधन और कारपोरेट सर्वदलीय नेतृत्व चालू घाटे की रट तो लगाता है और राजस्व प्रणाली को क्रयशक्ति हीन जनसमुदायों के मत्थे पर लादने के सिवाय किसी वित्तीय नीति निर्धारण के रास्ते पर नहीं चलता। कृषि व औद्योगिक विकास दर बढ़ाने के उपाय नहीं होते। न ईंधन का पर्यावरण सम्मत कोई अनुशासन है और न रक्षा सौदों पर पारदर्शी कोई निगरानी या नियंत्रण। घोटालों की हर स्वतंत्रता है। सेवाओं पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं। कालाधन कहां हैं, जानते हुए निकालने की कोशिश नहीं। सरकारी खर्च बेलगाम। अब वित्तीय और राजस्व घाटा सादने की जिम्मेदारी आम जनता पर। भुगतान संतुलन कोई विदेशी मुद्रा भंडार की क्षमता से नियंत्रित नहीं होता, क्या यह बात अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री नहीं जानते, ताज्जुब है। अर्थव्यवस्था में उत्पादन प्रणाली , संसाधन व राजस्व प्रबंधन परनिर्भर है भुगतान प्रणाली और विदेशी मुद्रा का भी वही स्रोत है। अंधाधुंध सैन्यीकरण, जल जंगल जमीन  आजीविका नागरिकता से बेदखली, डिजिटल बायोमेट्रिक स्पेक्ट्रम देश में अर्थव्यवस्था की बुनियाद में बारुदी सुरंगे लगाकर अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगीकरण से ही बिगड़ता है भुगतान प्रणाली। इस जनसंहार कारपोरेट संस्कृत की नवधनाढ्य अवैध संतानों को हर सहूलियत, छूट और राहत है।संवैधानिक प्रेवधानों के विरुद्ध प्राकृतिक संसादन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले है। रक्षा, आंतरिक सुरक्षा और समाचार माध्यम जैसे अति संवेदन शील इलाके विदेशी पूंजी के कब्जे में हैं। खाद्यान्न कारोबर आयात निर्यात का खेल है। सामाजिक योजनाएं बाजार के विस्तार को समर्पित। सरकारी खर्च भी बाजार के ही लिए। बहिस्कार, विस्थापन और एथनिक रंगभेदी नरसंहार के  लिए परिभाषाएं, पैमाने और सिद्धात बदले जाते हैं रोज। और इसी के तहत अर्थ व्यवस्था के संकट का ठिकरा फोड़ा जाता है मरणासण्ण और मृत जनसमुदायों पर। लाखों करोड़ का सालाना कर्ज छूट औद्योगिक घरानों, पूजीपतियों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को, जिसके तहत राजस्व घाटा सदाबहार मौसम है। उस घाटे को पाटने के लिए विदेशी कर्ज, जिसका भुगतान कभी होता नहीं। ब्याज निपटाने की कवायद में विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल और इसी से निरंतर भुगतान संतुलन का संकट आर्थिक नीतियों की निरंतरता के लिए।


लेकिन डालर के मुकाबले गिरते रुपए और शेयर बाजार में जारी गिरावट को थामने के सरकार के प्रयासों के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश में 1991 के भुगतान संकट की पुनरावृत्ति और अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण की राह से हटने की आशंकाओं को शनिवार को खारिज कर दिया। प्रधानमंत्री ने वैश्वीकरण और वित्तीय समस्याओं से घिरी अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति की सीमाओं और संभावनाओं पर नए सिरे से गौर किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने समष्टिगत आर्थिक नीति निर्माण, उसके लक्ष्य और साधनों को लेकर नई सोच से काम करने का भी आह्वान किया।


देश के चालू खाते के ऊंचे घाटे (कैड) और डालर के मुकाबले रुपए के सर्वकालिक नए निम्न स्तर तक गिरने के बीच प्रधानमंत्री से पूछा गया कि कुछ हिस्सों में ऐसी आशंका जताई जा रही है कि देश वापस 1991 जैसे संकट में घिर सकता है। 1991 के इस संकट के समय विदेशी मुद्रा पाने के लिए देश से सोना गिरवी रखना पड़ा था। इसके बाद ही देश को सुधारों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था और वैश्वीकरण की राह पर आगे बढ़ा।


असल बात तो यह है कि रिजर्व बैंक के विदेशों में किये जाने वाले निवेश पर अंकुश के कदमों से भारतीय उद्योग जगत निराश है।उद्योग जगत का कहना है कि इससे घरेलू कंपनियों का विदेशों में निवेश प्रभावित होगा।


उद्योग मंडल सीआईआई ने कहा कि रिजर्व बैंक के विदेशों में किये जाने वाले निवेश पर प्रतिबंध से भारत की वैश्विक बाजार में विस्तार की अभिलाषा पर असर पड़ेगा।सीआईआई ने उम्मीद जताई कि इन उपायों पर नए सिरे से विचार होगा और यथास्थिति बहाल की जाएग।

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वहीं फिक्की ने कहा है कि बाजार में जोरदार गिरावट आई।बाजार में केंद्रीय बैंक के प्रतिबंधों की अच्छी प्रतिक्रिया नहीं हुई.। बाजार को आशंका है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों सहित अन्य इकाइयों पर इसी तरह की और पाबंदियां लगाई जा सकती हैं।


फिक्की अध्यक्ष नैना लाल किदवई ने कहा, 'इन आशंकाओं को दूर करने की जरूरत है.रुपये में गिरावट निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था की बुनियाद में कमजोरी को रेखांकित करती है।


एक अन्य उद्योग मंडल पीएचडी ने कहा, 'शेयर बाजार में गिरावट से निवेशकों की धारणा कमजोर होगी।'

उल्लेखनीय, है कि हाल ही में रिजर्व बैंक ने रुपये में गिरावट रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। 14 अगस्त को केंद्रीय बैंक ने देश से बाहर विदेशी मुद्रा भेजने पर पाबंदी लगा दी है।



इसी सिलसिले में वित्तमंत्री का बयान गौरतलब है।बंबई शेयर बाजार के सेंसेक्स में शुक्रवार को आई चार प्रतिशत की भारी गिरावट के लिए वैश्विक कारणों को जिम्मेदार ठहराते हुए वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि घरेलू बाजारों को अमेरिका से आने वाले आंकड़ों के प्रति इतना संवेदनशील नहीं होना चाहिए।


चिदंबरम ने कहा कि भारतीय बाजार में स्थानीय परिस्थितियां झलकनी चाहिए। वित्तमंत्री ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों से अलग से बातचीत में कहा, मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि घरेलू बाजारों में शांति बहाल होगी, लोग यह समझने लगेंगे कि भारतीय बाजार सूचकांकों में मूलरूप से भारतीय बाजारों की परिस्थितियों की झलक मिलनी चाहिए। उन्हें अमेरिका से आने वाले आंकड़ों के प्रति इतना संवेदनशील नहीं होना चाहिए।


बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स शुक्रवार को करीब 769 अंक यानी चार प्रतिशत लुढ़क गया, जबकि रुपया भी नए सर्वकालिक निम्न स्तर 62 रुपये प्रति डॉलर को छू गया। इस दौरान सोने का भाव 1,310 रुपये उछलकर 31,010 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया। बाजारों के इस घटनाक्रम से चिंतित वित्तमंत्री ने कहा, मेरा मानना है कि यह शांत रहने का समय है, यह चिंतन का समय है, बहरहाल, देखते हैं कि अब अगले सप्ताह क्या होता है।


उन्होंने कहा कि बुधवार से शुक्रवार सुबह तक भारतीय अर्थव्यवस्था में कोई ऐसी घटना नहीं हुई, जिससे बाजार में कोई हलचल हो। चिदंबरम ने कहा, बावजूद इसके, बाजारों को तेज झटका लगा, यह रुपये में भी दिखा। हमने कई उपाय किए हैं... कई उपाय किए जा रहे हैं, बहरहाल, देखते हैं कि अब पहली तिमाही के आर्थिक वृद्धि के आंकड़े क्या रहते हैं। अमेरिका में बेरोजगारी में गिरावट के आंकड़ों का पूरी दुनिया के बाजारों पर असर देखा गया।


प्रधानमंत्री शनिवार को यहां 'आरबीआइ हिस्ट्री: लुकिंग बैक एंड लुकिंग एहेड' नामक रिजर्व बैंक के इतिहास पर जारी चौथे खंड को जारी करने के अवसर पर बोल रहे थे। इस अवसर पर उनके रेसकोर्स स्थित सरकारी आवास पर एक छोटे कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। मनमोहन सिंह से जब कहा गया कि चालू खाते का घाटा अभी भी काफी ऊंचा है, प्रधानमंत्री ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि सोने के अधिक आयात का इसमें प्रमुख योगदान है। लगता है कि हम गैर-उत्पादक आस्तियों में बहुत ज्यादा निवेश कर रहे हैं। सरकार ने सोने के आयात को नियंत्रित करने और कैड को 70 अरब डालर के दायरे में रखने के लिए सोना, चांदी और प्लेटिनम के आयात पर शुल्क बढ़ाकर 10 फीसद कर दिया। ऊंचे कैड की वजह से रुपए पर दबाव बढ़ रहा है। सरकार ने रुपए की गिरावट थामने के लिए भी कई उपाय किए हैं। इन आलोचनाओं के बारे में पूछे जाने पर      

कि भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जरूरत से ज्यादा जुड़ गई है और मौजूदा समस्या के लिए यही स्थिति जिम्मेदार है, क्या इस रास्ते से वापस कदम खींचे जा सकते हैं, प्रधानमंत्री ने कहा- ऐसी कोई संभावना नहीं है।


उन्होंने कहा- अब समय आ गया है जब हमें वैश्वीकरण की इस दुनिया में वित्तीय अड़चनों से घिरी अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति की सीमाओं और संभावनाओं के कुछ क्षेत्रों पर नए सिरे से गौर करना चाहिए। वृहद आर्थिक नीति निर्माण, लक्ष्य और साधन अन्य क्षेत्र है जहां नई सोच की जरूरत है।


अब सुब्बाराव की विदाई पर प्रधानमंत्री के तात्पर्यपूर्ण बयान परजरा गौर करें।प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर पद के लिए नामित रघुराम राजन सहित भविष्य में बनने वाले गवर्नर इनमें से कुछ क्षेत्रों पर गौर करेंगे। रघुराम राजन भी इस अवसर पर श्रोताओं में मौजूद थे। रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति की चिंता को लेकर सख्त मौद्रिक नीति के रास्ते पर चलने और सरकार की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने की प्राथमिकता को लेकर छिड़ी बहस के बीच प्रधानमंत्री की ये टिप्पणियां काफी महत्त्व रखती हैं। उन्होंने कहा कि भारत जैसे विविधतापूर्ण और बड़े देश में सामाजिक और आर्थिक बदलावों को आगे बढ़ाने के लिए एक हद तक राष्ट्रीय सहमति कायम किए जाने की जरूरत है।



रिजर्व बैंक की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस संस्थान ने देश की पूरी क्षमता के साथ सेवा की है लेकिन फिर भी सबसे बेहतर अभी होना बाकी है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक का इतिहास आजादी के बाद से भारत की आर्थिक वृद्धि की कहानी है। इस दौरान केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक व कर्ज नीतियों को दिशा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज सुविधा पहुंचाने में जो भूमिका निभाई है उसके लिए देश को उस पर गर्व है।


प्रधानमंत्री ने सेवानिवृत्त होने जा रहे मौजूदा गवर्नर सुब्बाराव को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उन्होंने रिजर्व बैंक और देश की पूरी लगन व निष्ठा के साथ सेवा की। रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभालने जा रहे रघुराम राजन का स्वागत करते हुए मनमोहन ने कहा- राजन के रूप में हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त एक बेहतर अर्थशास्त्री मिला है, मुझे पूरी उम्मीद है कि उनके गवर्नर बनने के बाद रिजर्व बैंक नई ऊंचाइयों को छुएगा।


मजे की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री के वक्तव्य के विपरीत भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गर्वनर डी. सुब्बाराव ने कहा कि आरबीआई मूल्य स्थिरता के साथ ही विकास को लेकर भी चिंतित है, और यह कहना अनुचित और गलत होगा कि केंद्रीय बैंक महंगाई के पीछे पागल है। सुब्बाराव ने कहा, 'आरबीआई की मौद्रिक नीति के तीन उद्देश्य हैं -मूल्य स्थिरता, विकास और वित्तीय स्थिरता। यह कहना कि रिजर्व बैंक महंगाई को लेकर अत्यधिक चिंतित है, और विकास की चिंता नहीं कर रही है, मुझे लगता है ये दोनों बाते गलत और अनुचित हैं।'


उन्होंने कहा, 'आरबीआई महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए प्रतिबद्ध है, इसलिए नहीं कि इसे विकास की चिंता नहीं है, बल्कि इसलिए कि इसे विकास की चिंता है।' सुब्बाराव का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब भारतीय उद्योग जगत के साथ ही सरकार के एक वर्ग से आरबीआई पर नीतिगत दरों में कटौती करने के लिए भारी दबाव है, ताकि आर्थिक वृद्धि दर में तेजी आए, जो कि एक दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है।


सुब्बाराव ने कहा कि विकास और महंगाई के बीच दुविधा को लेकर हो रही बहस, आरबीआई की भूमिका का अत्यंत सरलीकरण करने का परिणाम है। उन्होंने कहा, 'यह बहस कुछ गलत धारणाओं के कारण गहरा गई है। एक गलत धारणा यह है कि विकास का दायित्व सरकार पर और मूल्य स्थिरता का दायित्व आरबीआई के जिम्मे है। एक अन्य गलत धारणा इस बात पर जोर देना है कि विकास और महंगाई के बीच तनाव की स्थिति है, और किसी न किसी को अनिवार्यरूप से नीति निर्माण में विकास और महंगाई के बीच द्वंद्व की भूमिका निभानी है।'


सुब्बाराव ने ये बातें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के रेस कोर्स मार्ग स्थित आधिकारिक निवास पर 'रिजर्व बैंक ऑफ इंडियाज हिस्ट्री वॉल्यूम 4' को जारी करने के लिए आयोजित कार्यक्रम के दौरान ही कही। प्रधानमंत्री ने पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता वाली सलाहकार समिति के दिशानिर्देशन में लिखी गई इस पुस्तक का लोकार्पण किया। इस समिति के सदस्यों में पूर्व डिप्टी गवर्नर द्वय सुबीर गोकर्ण और राकेश मोहन, पूर्व कार्यकारी निदेशक ए. वासुदेवन, भारतीय प्रबंधन संस्थान, कोलकाता के अमित्व बोस, और इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान, मुंबई के दिलीप नचाने शामिल हैं। सुब्बाराव का कार्यकाल चार सितंबर को समाप्त हो रहा है। उन्होंने यह जोर देकर कहा कि विकास के लिए महंगाई पर नियंत्रण आवश्यक है।




चिदंबरम ने कहा, अमेरिका में अब पहले से कम लोग रोजगार पाने की प्रतीक्षा में हैं या फिर अमेरिका में कुछ ज्यादा लोग रोजगार मिलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसका भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियादी स्थिति पर किस प्रकार प्रभाव पड़ेगा। ऐसा नहीं होगा, इसका असर नहीं होगा, मेरा मानना है कि यह साधारण सी बात है... यदि ये आंकड़े नीचे आते हैं और ऊपर जाते हैं, तो इनका भारतीय अर्थव्यवस्था पर वास्तव में कोई संबंध नहीं है अथवा कोई असर नहीं होगा।


उन्होंने कहा, इसके बावजूद बाजार ने हमेशा ही इन संकेतों पर, जब भी ये आंकड़े अमेरिका से बाहर आते हैं, प्रतिक्रिया दिखाई है। बाजारों ने 22 मई को भी इसी तरह प्रतिक्रिया दिखाई, जब अमेरिका के फेडरल रिजर्व के प्रमुख बेन बर्नान्नके ने एक बयान दिया था। अमेरिका में बेराजगारी के आंकड़ों पर भी बाजार ने उसी तरह की प्रतिक्रिया दिखाई है, कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है, कि बाजार में ऐसी प्रतिक्रिया क्यों होती है।


भारत के मामले में चिदंबरम ने कहा, जहां तक भारत की बात है, गुरुवार को अवकाश था, इसलिए शुक्रवार को भारतीय बाजारों पर दो दिन का असर एक साथ दिखाई दिया। यही वजह है कि यह गिरावट ज्यादा बड़ी दिखाई दे रही है।



वित्त मंत्री ने कहा, "वाणिज्य मंत्रालय नीति में स्पष्टता लाने के अंतिम चरण में है।" उन्होंने साथ ही कहा कि गुरुवार को मंत्रिमंडल की बैठक में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।


सरकार ने पिछले साल बहुब्रांड रिटेल क्षेत्र में 51 फीसदी तक एफडीआई को अनुमति दी थी। अभी तक हालांकि इस क्षेत्र में कोई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं हुआ है।


चिदंबरम ने उम्मीद जताई कि नीति में स्पष्टता के बाद विदेशी कंपनियां भारतीय बहुब्रांड क्षेत्र में प्रवेश कर सकती हैं। उन्होंने कहा, "कुछ बड़े सवालों के कारण बहु ब्रांड रिटेल में एफडीआई रुकी हुई है।"


चिदंबरम ने कहा कि चालू खाता घाटा कम करने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है, जो सकल घरेलू उत्पाद के रिकार्ड 4.8 फीसदी तक पहुंच गया है।


उन्होंने कहा कि सरकार तेल और सोने के अलावा गैर जरूरी महंगे सामानों के आयात घटाने पर विचार कर रही है। वित्त मंत्रालय ने उम्मीद जताई कि चालू खाता घाटा की भरपाई कर ली जाएगी।


रुपये के बारे में चिदंबरम ने कहा कि रुपये में हाल में हुआ अवमूल्यन अप्रत्याशित है।


उन्होंने कहा, "रुपये का कोई स्तर तय नहीं किया जा सकता है, हम बस स्थिर मुद्रा चाहते हैं।" रुपया बुधवार को डॉलर के मुकाबले 61.18 के स्तर पर पहुंच गया, इसी महीने के शुरू में रुपये के रिकार्ड निचले स्तर 61.21 के अत्यधिक करीब है।


रिजर्व बैंक का ध्यान रुपए को संभालने में लगा होने के चलते ब्याज दरों में कटौती में विलंब होने की संभावना है और केंद्रीय बैंक द्वारा दिसंबर 2013 और अप्रैल 2014 के बीच मौद्रिक नीति नरम करने की संभावना है।


वैश्विक ब्रोकरेज फर्म बार्कलेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'रिजर्व बैंक द्वारा रुपए में गिरावट रोकने पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना है। मई के बाद से रुपया 13 प्रतिशत से अधिक टूट चुका है और पिछले सप्ताह यह 62 रुपए प्रति डॉलर के स्तर से नीचे आ गया।


बार्कलेज ने कहा, 'जैसा कि उनका (आईबीआई का) ध्यान रुपए पर है, हमें लगता है कि केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति में बहुत नपातुला कदम उठाएगा जो मौद्रिक नीति सख्त करने के बजाए इसे नरम करने की दिशा में होगा। हालांकि, हमें लगता है कि ब्याज दरों में कटौती में विलंब होने की संभावना है।' वित्तीय सेवा प्रदाता फर्म ने कहा कि आगे चलकर नीतिगत दरों में पौना प्रतिशत तक की कटौती की जाएगी जो इसी वित्त वर्ष में होगी, लेकिन यह विलंब से होगा।


शेयर मार्केट के विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का उतार-चढ़ाव, विदेशी निधियों के इन्वेसमेंटका रुख और वैश्विक संकेत चालू सप्ताह में मार्केट की दिशा निर्धारित करेंगे। इसके अलावा निवेशकों की निगाह संसद के चालू मानसून सत्र पर भी रहेगी, क्योंकि सरकार के पास काफी विधायी कार्य लंबित हैं।


इवेंचर ग्रोथ एंड सिक्योरिटीज के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक नागजी के रीता ने कहा, 'कोई प्रमुख घरेलू उत्प्रेरक न होने के कारण कारोबारी रुपए की चाल तथा अंतरराष्ट्रीय मार्केट से संकेत लेंगे। इसके अलावा बुधवार को होने वाली फेडरल ओपन मार्केट समिति की बैठक पर भी सभी की निगाह रहेगी।'


रेलिगेयर सिक्योरिटीज के खुदरा वितरण के अध्यक्ष जयंत मांगलिक के अनुसार, 'रुपए की नाजुक स्थिति नियमित अंतराल पर शेयर मार्केट को प्रभावित करती रही है और इसका यहां कोई अंत होता नजर नहीं आ रहा।' शुक्रवार को रुपया 62.03 रुपये प्रति डॉलर के सर्वकालिक निम्न स्तर तक लुढ़क गया और अंत में थोड़ा सुधरकर 61.65 रुपए प्रति डॉलर के रेकॉर्ड निम्न स्तर पर बंद हुआ।


मार्केट विशेषज्ञों ने कहा कि उम्मीद से बेहतर अमेरिकी आर्थिक आंकड़े से यह चिंता बनी कि फेडरल रिजर्व अगले महीने तक अपने प्रोत्साहन कार्यक्रम को नरम करना शुरू करेगा जो विदेशी संस्थागत इन्वेस्टर्स को स्थानीय मार्केट से निकासी करने के लिए प्रेरित कर सकता है। अमेरिका में बेरोजगारी के दावे 10 अगस्त को समाप्त सप्ताह में वर्ष 2007 के बाद के निम्नतम स्तर पर चले गए जिसने डॉलर को प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले मजबूत बनाया।


विदेशी मुद्रा की निकासी को रोकने के लिए रिजर्व बैंक ने 14 अगस्त को कुछ कड़े उपायों की घोषणा की थी जिसके तहत विदेशों में इन्वेस्मेंट करने वाली भारतीय कंपनियों पर रोक लगाना और अनिवासी भारतीयों द्वारा बाहर को धनप्रवाह रोकने जैसे उपाय शामिल हैं। बेचैन निवेशकों को शांत करने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को कहा कि पूंजी नियंत्रण व्यवस्था की ओर बढ़ने का कोई प्रयास नहीं है।


बंबई शेयर मार्केट का सेंसेक्स शुक्रवार को 769 अंक नीचे आ गया। इससे पिछले सप्ताह सेंसेक्स 1.84 प्रतिशत अथवा 348.8 अंक की गिरावट के साथ 18,598.18 अंक पर बंद हुआ था। बोनान्जा पोर्टफोलियो के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राकेश गोयल ने कहा, 'फिलहाल आर्थिक चिंताएं और कमजोर होती मुद्रा परेशानी का प्रमुख कारण हैं। आने वाले सत्रों में अल्पावधि के लिए 5,480 अंक का स्तर महत्वपूर्ण निर्णायक स्तर होगा और इस स्तर से नीचे बिकवाली पर झटका लग सकता है।'


सोने का दाम चालू वर्ष के अंत तक करीब 31,000 रुपए प्रति 10 ग्राम रहने का अनुमान है। आयात कम करने के लिए सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों के बावजूद मांग 860 टन पर बने रहने की संभावना है। यह बात विशेषज्ञों ने कही है।


एंजल ब्रोकिंग के प्रमुख (जिंस) नवीन माथुर ने यहां कहा कि कमजोर रुपया तथा उच्च शुल्क से सोने की लागत ऊंची रहेगी। दिसंबर के अंत तक सोने का दाम 30,500 से 31,000 रुपए प्रति 10 ग्राम के दायरे में रह सकता है। एमसीएक्स सोने का दाम 28,600 रुपए है जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका भाव 1,376.70 डॉलर प्रति औंस है।


माथुर ने कहा कि अगर सरकार सोने का आयात हतोत्साहित करने के लिए और कदम उठाती है तो इससे इसकी आपूर्ति प्रभावित होगी और इसकी कीमत पर दबाव बढ़ेगा। अमेरिकी डॉलर में मजबूती तथा अमेरिकी अर्थव्यवस्था सुधार की खबर से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने में फिलहाल मंदी का परिदृश्य है।


उन्होंने कहा कि साल के अंत तक सोना 1,375-1,400 डॉलर प्रति औंस के करीब रहेगा। माथुर के अनुसार सोने की मांग पिछले साल के समरूप रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि बेहतर मानसून से उम्मीद है कि चौथी तिमाही में सोने की मांग अच्छी रहेगी लेकिन उच्च सीमा शुल्क के साथ कीमत में तेजी तथा आपूर्ति की कमी से यह नियंत्रित रहेगी।


हालांकि दुनियाभर में प्रमुख स्वर्ण खनन कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार भारत और चीन में सोने की मांग 2013 में 900 से 1000 टन (दोनों देशों में) रहने की संभावना है, वहीं कोटक कमोडिटी सर्विसेज की विश्लेषक माधवी मेहता ने कहा कि मांग इस साल 860 टन से अधिक रहेगी।


उन्होंने कहा कि सरकार ने मांग पर अंकुश लगाने के इरादे से आयात नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए हैं। अंतरराष्ट्रीय कीमतें में सुधार तथा रुपए में गिरावट के रुख को देखते हुए पीली धातु का भाव दिसंबर तक 32,000 रुपए हो जाने का अनुमान है।


उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर सोने का दाम इस साल के अंत तक 1,300 से 1,465 डॉलर के आसपास रहने का अनुमान है।


सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों को डीजल, मिट्टी तेल और रसोई गैस लागत से कम कीमत पर बेचने से होने वाली अंडर रिकवरी 16 अगस्त से शुरू हुए पखवाड़े में इससे पहले पखवाड़े के 379 करोड़ रुपए दैनिक की तुलना में बढ़कर 389 करोड़ रुपए हो गई।


डीजल पर होने वाला नुकसान भी प्रति लीटर 9.29 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर पांच माह के उच्च स्तर 10.22 रुपए पर पहुंच गया। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन पेट्रोलियम एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) के मुताबिक 16 अगस्त से शुरू हुए पखवाड़े में डीजल पर अंडर रिकवरी इससे पहले पखवाड़े के 9.29 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर 10.22 रुपए प्रति लीटर हो गई।


सरकार ने इस वर्ष 17 जनवरी को तेल विपणन कंपनियों को डीजल पर अंडर रिकवरी पूरी करने के लिए हर माह इसकी कीमत में 50 पैसे प्रति लीटर बढ़ोतरी करने की अनुमति दी थी। इसके बाद से कंपनियां हर माह दाम बढ़ाती आ रही हैं। हाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से अंडर रिकवरी बढ़ी है।

सरकार ने कंपनियों को डीजल में अंडर रिकवरी को पूरा करने के लिए इसकी कीमत में 50 पैसे प्रति माह से अधिक भी वृद्धि करने को स्वीकृति दी है। सोलह अगस्त से शुरू हुए पखवाड़े के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बेचे जाने वाले मिट्टी तेल पर अंडर रिकवरी 33.54 रुपए प्रति लीटर और घरेलू रसोई गैस सिलेंडर पर 412 रुपए पर स्थिर रही।


सरकार इसके अलावा मिट्टी तेल पर 82 पैसे और घरेलू रसोई गैस सिलेंडर पर 22.58 रुपए प्रति सिलेंडर की सब्सिडी देती है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कंपनियों को तीनों संवेदनशील उत्पादों पर कुल 25,579 करोड़ रुपए की अंडर रिकवरी हुई है।


देश के दूरसंचार क्षेत्र में पिछले 13 साल में कुल 58,782 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आया। हालांकि, 2012-12 में इस क्षेत्र में एफडीआई 81.64 प्रतिशत घटकर 1,654 करोड़ रुपये रह गया।


संचार एवं आईटी राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा ने कहा कि अप्रैल, 2000 से मई, 2013 तक दूरसंचार क्षेत्र ने 58,782 करोड़ रुपये का एफडीआई आकर्षित किया। हालांकि, देश में आर्थिक नरमी एवं सख्त नियामकीय वातावरण के चलते 2012-13 में इस क्षेत्र में एफडीआई 81.64 प्रतिशत घटकर 1,654 करोड़ रुपये रह गया। डीआईपीपी के मुताबिक, 2011-12 में देश में 9,012 करोड़ रुपये एफडीआई आया।


देवड़ा ने कहा कि दूरसंचार क्षेत्र के लिए स्पष्ट रूपरेखा एवं नीतिगत प्रारूप पेश करने के उद्देश्य से सरकार ने परामर्श प्रक्रिया अपनाते हुए दूरसंचार नीतियों की पहले ही समीक्षा कर ली और जून, 2012 में नई दूरसंचार नीति (एनटीपी) 2012 की घोषणा की।


उल्लेखनीय है कि सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी दी है ताकि उद्योग को अपना वित्तीय बोझ कम करने के लिए धन हासिल करने में मदद मिल सके।



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