Thursday, August 15, 2013

हर कहीं पानी नहीं दरअसल वह जो बहता है असल में खून है जैसे हमारे रगों में बहता खून खून नहीं पानी है


हर कहीं पानी नहीं
दरअसल वह जो बहता है
असल में खून है
जैसे हमारे रगों में बहता खून
खून नहीं पानी है

पलाश विश्वास
Rajiv Lochan Sah की दीवाल से
आइये दुआ करें कि वतन में अमन-चैन रहे.....
खतरा बाहर से नहीं अन्दर से है। उनसे है, जो खुद डकैत हैं और ईमानदारी बर्दाश्त नहीं कर पाते। देश को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों बेच रहे हैं और देश की सम्पदा बचाने को जूझ रहे लोगों को माओवादी कह कर प्रताड़ित करते हैं। अपने अपराध छिपाने के लिये RTI को dilute करते हैं। मजहब के नाम पर एक देशवासी को दूसरे से लड़ाते। आपदा में कफ़न बेच खाने के लिये अपने राजनैतिक मतभेद भूल जाते हैं। आइये, ऐसे देशद्रोहियों को अपने कंधे से उतारने की जुगत सोचें.....
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें!



हम तो भइये पार कर आये वैतरिणी
इसी इहलोक में
बिना गोदान में दी गयी
गाय की पूंछ पकड़े
जनशताब्दी में सवार
गवाह है रत्नगिरि पहाड़

हमने देख लिया भइये
कि कैसे रंग बदल रहा है पानी
दया नदी में इन दिनों
कौन कहता है कि
खून का कहीं नहीं होता
नामोनिशान

खून हर वक्त लेकिन लाल रंग में
नहीं होता,ऐसा
बहुत पहले जहानाबाद
और अरवल नरसंहारों पर
फिल्म बनाते वक्त
बताया था फिल्मकार मित्र
राजीव कुमार ने
उसने कहा था कि
पानी भी खून होता है आखिर

जब हम विरासत की शूटिंग
कर रहे थे बनारस में
वह बार बार पूरी यूनिट
को लिये चल देता था गंगा घाट
पानी को कैमरे में कैद
करने के लिए

फिर एक शाम
कवि ज्ञानेंद्रपति और काशी के मस्त
कवियों के साथ
बीड़ी में भंग पीकर
कविताएं सुनते हुए
हमने सचमुच देखा था
पानी का रंग भी कैसे
लाल हुआ जाता है

वैसे इससे भी पहले
नैनीझील के बदलते हुए पानी से
रंगों का मिजाज समझने लगे थे हम
जहां झील के पानी का रंग बदलते ही
बुजुर्ग कह देते थे कि
पानी में फिर कोई लाश है
सेलानियों के लिए हालांकि
बहुत मुश्किल है पानी का रंग
और उसका मिजाज समझना

दरअसल पानी को
खून में बहते हुए देखने के लिए
किसी त्रिनेत्र की जरुरत होती ही नहीं है
सचमुच दृष्टि हो किसी की
तो अंधा भी हुआ तो
देख सकता है वह
आखिर पानी में बहता है
हमारा खून

मंदाकिनी घाटी
और हिमालय से लेकर नेपाल तक
जलप्रलय के वक्त
हमने मैदानों तक बह आयी लाशों
और आपदा के सुनामी स्पर्श में
महसूस भी की थी खून
की वही गर्माहट
जो लावारिश चीख रही थी
हमारी इंसानियत को पुकार रही थी
और कह रही थी
हिमालय वध की अनंत कथा



ढिमरी ब्लाक में कोई नदी नहीं है
बहुत बड़ी गंगा यमुना जैसी
पर तराईभर में
हरित क्रांति की कृपा से
लग गये नलकूपों से
बहते पृथ्वी के गर्भ जल से
खून की खुशबू
महसूस की जाती है
उसी तरह
जैसे ख्वाबों के रंग
या फिर इंद्रधनुष

मरीचझांपी तो चारों तरफ से
घिरा है जल से
सुंदरवन में पानी खून की तरह ही
नमकीन है बहुत
जिससे बाघ हुए नरभक्षी
और उनके संरक्षण के लिए
शरणार्थी बना दिये गये
बाघों का चारा भइये।
सत्ता का न्याय है यह
जिसके विरुद्ध
तीस साल से
कहीं कोई आवाज तक नहीं हुई

नक्सलबाड़ी हो या तेलंगना
या फिर दंडकारण्य
या हिमालय का कोई कोना
या हो पूर्वोत्तर
या पाकिस्तान का पराया भूगोल
या श्रीलंका
या नेपाल
या बांग्लादेश
इराक के दजला और फरात की तरह
अफगानिस्तान के रेगिस्तान
और पहाड़ों की तरह
हर कहीं पानी नहीं
दरअसल वह जो बहता है
असल में खून है
जैसे हमारे रगों में बहता खून
खून नहीं पानी है
बिन पानी कोई वजूद ही नहीं है
दरअसल खून का कहीं
नदियां जो बिक गयी हैं
नदियां जो डूब में शामिल हैं इनदिनों
नदियां जो शीतल पेय हैं इन दिनों
नदियां जो सलवा जुड़ुम हैं  इन दिनों
नदियां जो बाढ़ में बहा ले जातीं जनपद सारे
नदियां जो भस्खलन और भूंकप में
तोड़तीं ग्लेशियरों से लेकर
तमाम ऊर्जा परियोजनाएं
और दैत्याकार तमाम बांध
और समुंदर जो सुनामी है
या परमाणु ऊर्जा संयंत्र या फिर
परमाणु ऊर्जा संकुल है
या पनडुब्बियों का शरणस्थल है
आणविक और रेडियेशन फैलाता
इस वधस्थल में पल प्रतिपल
उनमें पानी को मत देखों भइये

दरअसल जो बह रहा है या
फिर जो बहते हुए बंध
गया है या फिर देश बेचो
कार्यक्रम के तहत
इस डिजिटल बायोमेट्रिक देश में
बेच दिया गया है
या विदेशी निवेशकों की आस्था के बदले
सरेबाजार ग्लोबल दुनिया में
बेच दिया गया है राष्ट्रहित में
वहां कहीं भी जल है ही नहीं
क्योंकि राजीव कुमार ने सच कहा है कि
कोई जरुरी भी नहीं कि
हमेशा खून का रंग हो
चटख लाल
जैसे फैशन में प्रदर्शित
खुले बाजार में पन्य
नारी की देह
में बहता नहीं सौंदर्य दरअसल
जो दिखता है वह दरअसल पानी है
और वह पानी यक ब यक देश के कोने कोने
में अबाध मुक्त बाजार
और अबाध पूंजी प्रवाह
की तरह हो जाता
रक्तनदियों में तब्दील
जिसे पानी की शक्ल देने के लिए
फिर बदला जाता कानून
बलात्कार के रक्षा कवच
और उन्मुक्त यौनव्यापार
के अबाध कारोबार के तहत
क्योंकि
मोमबत्ती जुलूस की शक्ल
में खून और पानी एकाकार है
क्योंकि अराजनीति में
इंडिया परेड में नग्न कार्निवाल ही
सबसे बड़ा सामाजिक यथार्थ है

एक और मित्र हैं हमारे फिल्मकार
जोशी जोसेफ
जो पता नहीं क्यों
हर बार पूर्वोत्तर को ही
कैद करते हैं कैमरे में
फिल्माते हैं
सशस्त्र सैन्य बल विशेषाधिकार कानून
तलाशी और गिरफ्तारियां
फ्रेम दर फ्रेम
मानवाधिकार हनन की कथा है जिनकी
वह तो ध्रूपद मणिपुरी नृत्य
मार्शल आर्ट
और फूलते हुए बांसों में भी
दिखा देते हैं रक्तनदियां तमाम

आनंद पटवर्धन भी गजब हैं
जयभीम कामरेड
दरअसल रक्तनदी का ही सैलाब है
लावारिश खून का दस्तावेज है
उनका फिल्मांकन

किसी दिन मंटेक बदल देंगे परिभाषा
पानी और खून दोनों की
डीएनए जांच होगी
जांच आयोग होगा
संसदीयकमिटी होगी
फिर विशषेज्ञों की कमिटी भी
कारपोरेट हरी झंडी होगी
रपट लिखी जायेगी
अदालती मुकदमे होंगे
तब जाकर तय होगा कि
दरअसल पानी क्या है
और क्या है खून

मेरे लिए तो अब जो बहता दिखता है
उसमें या तो हिमालय है जख्मी
या न्याय की गुहार लगाती मरीचझांपी है
या भुले हुए तेलंगाना के खेत हैं
या ढिमरी ब्लाक का इतिहास है
या बांग्लादेश मुक्तिसंग्राम के गौरव में छुपा
बंगाल का जनविद्रोह नक्सल बाड़ी का
निर्मम दमन है
बरानगर हत्याकांड है
देश के कोने कोने में
रोजाना जारी फर्जी मुठभेड़ हैं
या बाबरी विध्वंस है
या सिखों का संहार है और
है आपरेशन ब्लू स्टार
आपातकाल है
या
भोपाल गैस त्रासदी है
या गुजरात नरसंहार
या मानवनिर्मित तमाम आपदाएं
शीतताप नियंत्रित
खुले बाजार की जो
उत्तर आधुनिक सभ्यता है डिजिटल
और सर्वत्र जो पानी है
वह पानी है ही नहीं भइये
वह मेरे स्वजनों का खून है

2
Himanshu Kumar के वाल से
8. राज्य हमारे संविधान के विवेक को दर्शाने वाले इस तरह के सुझावों पर ध्यान नहीं दे रहा है। इसकी बजाय, इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि शासन के लिए मजबूत और हिंसक होना अनिवार्य है। वर्तमान केस की सुनवाई में भी बार-बार यही बात सामने आती रही है। छत्तीसगढ सरकार इसी नजरिए से दंतेवाडा और उसके पड़ोसी जिलों के हालात के बारे में फैसले ले रही है। यह माओवादी/नक्सलवादी विद्रोह को दबाने के लिए कानून की उपेक्षा करके सिर्फ हिंसा का सहारा ले रही है। उसने इस तथ्य से भी आँखें बंद कर ली हैं कि इस तरह की नीति से न तो समस्याएँ सुलझी हैं और न ही सुलझेंगी। इससे सिर्फ हिंसक विद्रोह और विद्रोह के दमन का चक्र ज्यादा गहरा और ज्यादा व्यापक होता जाएगा। खुद छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिए गए मौत के आँकड़े भी इसी तथ्य को बयान करते हैं। हिंसा और प्रतिहिंसा का यह चक्र तकरीबन पिछले एक दशक से चल रहा है। इससे कोई भी विवेकशील इंसान यह नतीजा निकाल सकता है कि योजना आयोग की विशेषज्ञ समिति द्वारा कही गई बातें सही हैं।

9. दरअसल, समस्या का बुनियादी कारण कहीं और है। इस कार...See More
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हत्यारों की मौलिकता अजब है
गजब है उनकी तकनीक
भव्य है कला कौशल
पीढी़ दर पीढ़ी
एकाधिकार आरक्षित
मंत्रसिद्ध भोग्या वसुंधरा

बीज मंत्र में सारे आयुध समाहित
ब्रह्मास्त्र उनके उच्चारण
किसी को नहीं मालूम कि
कैसे कर्मकांड मार्फत
समर्पित की जातीं
रजःस्वला अरजःस्वला स्त्रियां
और वे जाप करती रहती अपने ही भोग का मंत्र
प्रसाधन और सौंदर्य का अद्भुत यह तंत्र

जरा फेस बुक पर
हिमांशु कुमार के वाल पढ़ें रोज
देख लेना भइये दंतेवाड़ा वाणी भी
पुरखौती के खामोश मृदंग में
गूंजेगी बहते खून की छलछलाहट खूब
कहीं नहीं बचा कुछ भी धानी
जो हरियाली है
बस झंडों में है
या फिर डंडों में है
धान का कटोरा अब भीखमंगा है
मराठवाड़ा में दुष्काल है
और पूरा कच्छ इनदिनों सेज है
और तो और
फिल्मों में रोमांस और मनोरंजन का
तड़का डालने वाले
सारे के सारे चायबागान
अब मृत्युजुलूस हैं

बाकी वाल भी पढ़ लेना भइये
अखबार बांचे न बांचे
पहाड़ का हर कोना अब मुखरित है
पूर्वोत्तर की धड़कने हैं कहीं कहीं
महसूस कर सकों तो दक्षिण की भाषाएं
भी खूब मुखर हैं
पाली और प्राकृत की क्या कहें
हिंदी अब हिंग्लिश है
बाजार में बेदखल हैं भाषाएं इनदिनों
मृत बोलियों में कहीं नहीं है
माटी की सोंधी महक
लेकिन उनमें भी बहता हमारा ही खून



विधाएं अब सामूहिक बलात्कार में
अभियुक्त हैं
शूली पर चढ़ा दिये जायें तमाम
संस्कृति अपराधी
तो भी न्याय होगा कभी
क्योंकि कलाओं और सौंदर्यबोध
के विरुद्ध कभी कभी नहीं
दायर होता कोई अभियोगपत्र
सत्ता और सौंदर्यबोध
राजनीति और विधाएं बहुत
गड्डमड्ड हैं भइये इन दिनों
और धर्मोन्माद का रंग
सिर्फ गेरुआ ही नहीं होता
इंद्रधनुषी है धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता इनदिनों



किसी को अहसास नहीं कि अब
हर स्त्री या सोनी सोरी है
या फिर इरोम शर्मिला
कोई कोई हालांकि बन जाती फूलन
फिरभी तंत्र जस का तस
और किसी को नहीं मालूम कि
हर जनपद अब कलिंग है
विजित है हर कलिंग
हर खेत अब युद्धक्षेत्र है
सर्वत्र है विधवा गांव
सुंदरवन से लेकर केदार घाटी तक
पी साईनाथ और अरुंधति को भी पढ़लो भइये
देख लो किसानों की आत्महत्याओं के ब्योरे सिलसिलेवार और घूम आओ नियमागिरि भी
सरना धर्म के अनुयायियों का अलगाव देखो
देको अलगाव धारावी  और सोनागाछी का
देखो अलगाव शरणार्थी विस्थापित समूहों का
टटोलकर देखो जनपदों का भूगोल भइये
फिर कहना ,कहां नहीं बहता
अपने स्वजनों का खून कहां
फिर कहना जो पानी है बहता
या जो है तेल की धार
या जो है शीतल पेय
या जो शापिंग माल में सजा है माल इफरात
या जो ट्रफिक नदियां हैं
महानगरों,नगरो और कस्बों के सम्मिलित
खुले बाजार के लिए गांवों का सीना चीरकर
वहा कहीं भी कहां नहीं है खून हमारा

और धम्म स्तूपों की मौजूदूगी के बावजूद
जारी है वैदिकी हिंसा
क्योंकि युद्ध का अंत नहीं होता कभी
गृहयुद्ध में ही हैं सत्ता के बीज
इसीलिए बारंबार
सलवा जुड़ुम में विभाजित सारा देश

जलप्लावित जनपदों में तिरती लाशों
और खैरात कारोबार में
पानी का रंग नहीं देखता कोई
खून की सड़ांध से
ज्यादा गोरापन कहीं
और पैदा हो ही नहीं सकता
दरअसल जो सौंदर्य कारोबार है
वह असल में खून का कारोबार है
पुरुष वर्चस्व का लिंग निर्धारण
अबाध है पूंजी प्रवाह की तरह यहां
दासी और देवदासी हो चाहे हों
देवियां,जो सर्वत्रे पुज्यते
भ्रूणहत्या से बचकर जनमी ही हैं
लिंगराज में समाधिस्थ होने के लिए

अश्वेत जनसमुदायों की अंधदौड़ जारी
रंगभेदी सौंदर्यबोध में निष्णात जीवन
विज्ञापनों में बाजार लगते
अपने ही वधउत्सव की
उल्टीगिनती में पलक पांवड़े बिछाये जनपद

हत्यारों की खुली बहस
लोकतंत्र का पर्याय है
रंगभेद ही समावेशी विकास है
और हर संवाद विशुद्ध घृणा अभियान
तमाम विधायें महानगरीय
लामबंद जनपदों के विरुद्ध

मातृभाषा से बेदखल हैं हम
मानवाधिकार सिर्फ अवधारणा है
नागरिकता ही निजता विहीन
उंगलियों की छाप और आंखों की पुतलियां बेदखल
हर प्रतिवादी स्वर राष्ट्रद्रोह है यहां
सामाजिक अन्याय और असमता
पर आधारित राष्ट्रनिर्माण यहां

कहीं कोई मगध नहीं है इन दिनों
न कोई कलिंग है
न कहीं वैशाली के लोक गणराज्य
कोई गणतांत्रिक जोड़ नहीं कहीं
सिर्फ विघटन है
दावानल है चारों दिशाओं में
उन्मादी सांप्रदायिक जनसमूह
लामबंद एक दूसरे के खिलाफ

शेयर बाजार के सांड़
ही नीति निर्धारण करते
मनोरंजन और सेक्स के सिवाय
सारे माध्यम अप्रासंगिक
यौन उत्पीड़न की रचना ही रचनाधर्मिता है
आसनसमृद्ध कुंडलिनी जागरण
ही रचनाकर्म है इन दिनों

हत्यारों की की दक्षता
की क्या कहिये,भइये
सिंधुरक्षक डूबे जाते
कारगिल विजयोत्सव मनाते बार बार
रक्षा घोटालों में निष्णात
रक्षा प्रतिरक्षा
सआईए मोसाद के हवाले
और हम डिजिटल निगरानी में हैं
हत्यारों की सुरक्षा के
चाक चौबंद इंतजाम ही
भुगतान संतुलन
राष्ट्र की भूमिका राजस्व घाटा है
रिजर्व बैंक पूंजी के पहरेदार
वित्तीय प्रबंधन
खुला बाजार है इन दिनों

आम नागरिकों की रपट किसी थाने में दर्ज नहीं होती
फेसबुक पर मंतव्य के लिए भी धरे जाते लोग
हर हाथ में मोबाइल है
लेकिन कहीं नही है संवाद
थ्री जी फोर  जी
और ई गवर्नेंस है
हरित क्रांति इन दिनों
हरियाली कहीं नहीं है इन दिनों
और हरित क्रांति भी कब हुई नीली क्रांति में तब्दील
रंगों का खेल नहीं मालूम किसी को
जैसे खून और पानी का प्रक नहीं मालूम किसी को

कुत्ते नहीं भौंकते कहीं आजकल
जनपद जनपद पिपली लाइव है
नत्थू की आत्महत्या के तमाशे हैं
हत्यारे अपराधी बलात्कारी
और तमाम अरबपति
अब हमारे जन प्रतिनिधि हैं
मानवता के विरुद्ध
युद्ध अपराधी ही
अमन चैन का संदेश सुनाते
हर मसखरा अब आइकन है
प्रवचन सर्वश्रेष्ठ मनोरंजन है
हम सभी तो भइये,
अंधभक्त हैं
धर्माधिकारियों के
और हर कमंडल से
बहती रहती दया नदी कोई
और हम घिरे होते एकदम अकेले
कलिंग युद्ध में
वध होने से पहले तक चंडाशोक के
ह्रदयपरिवर्तन के लिए
अस्त्र संवरण के लिए
प्रिज्म प्रक्षेपास्त्र और
अंतरिक्ष उपग्रहों की जद में
ड्रोन और गाइडेड बुलेट को समर्पित, भइये




3
Dilip C Mandal उवाच
अंग्रेजों की वजह से नहीं हुआ, लेकिन अंग्रेजी राज में हुआ- मतदान से सीमित अधिकारों वाली प्रतिनिधि सरकार का चुनाव, स्त्री शिक्षा, शूद्रों और अतिशूद्रों को संपत्ति का अधिकार, अतिशूद्रों की शिक्षा का अधिकार, सती प्रथा का अंत, विधवा विवाह की शुरुआत, कानून की नजर में हर कोई बराबर यानी समान अपराध के लिए समान सजा...बहरहाल स्वतंत्रता दिवस की बधाई. इस समय से अच्छा कोई समय भारतीय इतिहास में कम से कम पिछले 2000 साल में तो कभी नहीं था.

दया नदी में अब भी
कलिंग युद्ध है जारी
जिसका दूसरा नाम कुछ भी हो
सकता है भइये,
कलिंगनगर कह लो
चाहे कह लो
नियमागिरि
या फिर
सलवाजुड़ुम ही कहो उसे
या फिर मरीचझांपी
पानी लेकिन सर्वत्र  लाल है
लालरंग सिर्फ नजर नहीं आता कहीं
क्योंकि राजसूय जारी है अब भी
जारी है अश्वमेध भी
और जारी है
कलिंग का युद्ध भी

धवल पर्वत पर खड़े होकर
हमने देखा भुवनेश्वर
जहां पल प्रतिपल रचा जाता
कलिंग युद्ध
भुवनेश्वर ही क्या हर
राजधानी में दरअसल
रचा जाता कलिंगयुद्ध
पल प्रतिपल
राजधानी बदल जाने से
जनभवितव्य य़कीनन नहीं बदलता

कोई अशोक कहीं नहीं है
सारे के सारे
चंडाशोक के अखंड अवतार यहां

धरमस्तूप पर फ्यूजी गुरु की
भविष्यवाणी सच नहीं होती दिखती
कि फिर बौद्धमय होगा भारत
समयसीमा खत्म है
बौद्धमय तो हुआ नहीं भारत
भारत अब अनंत वधस्थल है
असमता और भ्रातृघाती आत्मघाती
हिंसा लेकिन गगन घटा गहरानी
सत्य कहीं है ही नहीं
सिर्फ एक नारा है
सत्यमेव जयते
जो दरअसल है लेकिन
असत्यमेवजयते
का अमोघ सामाजिक यथार्थ है
स्वतंत्रता और संप्रभुता की हत्या है
समता और सामाजिक न्याय कहीं नहीं है
बुद्ध ने जो तोड़ दिये वर्णाश्रम   
वह अब एकाधिकारवादी मनुस्मृति है
और चूंती हुई अर्थव्यवस्था
दरअसल खून चूंता कलिंग युद्ध है
निरंतरता जिसकी आर्थिक नीतियों की तरह
निरंतर जारी है

ध्यान से देखो भइये
विकास के आंकड़ों से भी चूं रहा है खून
जैसे निर्मित इतिहास से चूंता है खून
परिभाषाओं और विचारधाराओं में भी
दरअसल खून है
या अस्मिताओं की लड़ाई
सत्ता में भागेदारी
और सत्ता समीकरण
सर्वत्र मेरे स्वजनों के खून के
सिवाय कुछ भी नहीं है

जल जंगल जमीन
आजीविका और नागरिकता
में भी देख लो भइये
खून का धाराप्रवाह विस्तार
और तो और
भारत का जो संविधान है
जो लागू होने से पहले खत्म होने को है
और अभिजनों की जो
संसदीय प्रणाली है
जो लोकतंत्र का यह तामझाम
उनमे भी बह रही हैं
रक्त नदियां तमाम
और यह सारा खून
मेरे ही स्वजनों का खून है

4
Nilakshi Singh की दीवाल से
क्या 'भारत' शब्द स्त्रीलिंग है ?

आदिवासियों के प्रतिरोधों को हिंसा अहिंसा के चश्में से देखने वालों से एक सवाल-
सोनी सोरी के पति की १अगस्त को मौत हो गयी,पति की अन्तिम विदाई और ३ छोटे बच्चों को सहेजने के लिए डाली गयी अन्तरिम जमानत की अर्जी कोर्ट ने खारिज कर दी.यह हिंसा है या अहिंसा?

जवाब देते समय इस तथ्य को भी ध्यान में रखें कि जेसिका लाल के हत्यारे को कोर्ट ने अपने भाई की शादी में शामिल होने के लिए ४ दिन का पेरोल दिया था.
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Amalendu Upadhyaya का हस्तक्षेप
सच्चा लोकतंत्र नहीं हो सकता निर्दोष मुसलमानों को न्याय न देने वाला तंत्र – रिहाई मंच
सच्चे लोकतंत्र के लिए फासीवाद के खिलाफ संघर्ष जारी रखेगा रिहाई मंच

खालिद के इंसाफ की लड़ाई मुसलमानों की नहीं लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है- संदीप पांडे



यह जो स्वतंत्रता का पर्व है
और राष्ट्र के नाम संबोधन है
उसमें न पानी है
और न हिमालय है
मैदानों तक बह आयी लाशें कहीं नहीं हैं
ने उन लोगों का अता पता है,जो लापता हैं हजारों
न शामिल है डूब में गायब गांव कहीं
न ग्लेशियरों के जख्म कहीं हैं
और न लावारिश हिमालयी जनता
पर कोई आंकड़ा है
न जंगलों की अवैध कटान का
कहीं कोई हिसाब है
न पांचवीं अनुसूची है
और न छठीं अनुसूची है
न बहुजनों के लिए
संवैधानिक रक्षा कवच हैं
न कहीं हैं आत्महत्या करते किसान
और अबाध सामूहिक बलात्कार की शिकार
स्त्रियां कहीं हैं
न दमन, उत्पीड़न, अत्याचार और अन्याय
की कोई कथा है

खंडित जनादेश पर
टिकी राजनीतिक स्थिरता
और अबाध एकाधिकार,
कारपोरेट राज का
विजयोत्सव है यह

जहां न पानी है और न खून है
सेवाएं हैं तमाम क्रययोग्य
और क्रयशक्ति से बाहर जो लोग हैं
राजपथ से लेकर संसद मार्ग तक
यहां तक कि लालकिले के प्राचीर तक
वहां बहती दया नदी कोई
जिसे वैतरिणी बताते हैं
चिदंबरम, मंटेक और मनमोहन

कलिंग युद्ध जारी है
जनसमुदायों की बेदखली अबाध है
जनता के विरुद्ध युद्ध प्रतिवाद विहीन है
सुधारों का राजसूययज्ञ है
और बहिस्कार है
बहिस्कृत निनानब्वे फीसद के सफाये
का अबाध अभियान है
और असमाप्त नरसंहार के संकल्प हैं
जिसमें न कातिल का कोई सुराग है
और न खून है
और न पानी है

रक्ताल्पता से बीमार
कुपोषण का शिकार यह देश अब
युद्ध है या फिर गृहयुद्ध है
सामाजिक प्रतिबद्धता
सिर्फ युनेस्को का कार्यक्रम है
या एकदम बेपर्दा विश्वबैंक और
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष
या दुनियाभर में युद्ध गृहयुद्ध के
सौदागरों का कारपोरेट
उपक्रम है यह देश

जनप्रतिनिधित्व सिर्फ
सुधारों के एजंडा में जारी
सर्वदलीय व्हिप है
और अराजनीति
कारपोरेट मोमबत्ती जुलूस
या
वाशिंगटन में
देश बेचो अभियान को मजबूत करता बेशर्म
इंडिया परेड है
या घोटालों का घटाटोप है
फर्जीवाड़ा है
आईपीएल है
सेनसेक्स है
और शेयर बाजार को समर्पित
डिजिटल बायोमेट्रिक नागरिकता है

नंदन निलेकणि की उदात्त घोषणा है
कि सिर्फ साठ करोड़ को ही
मिलेंगे आधार कार्ड
मंटेक ने गरीबी परिभाषित करके
पात्र अपात्र भी छांट दिये
उत्पादन प्रणाली से बेदखल लोग
मृत खेतों की लाश पर
शून्य कृषि विकास
शून्य औद्योगिक विकास
और कारपोरेट रेटिंग संस्थाओं की विकास गाथा में
अब होंगे खाद्य सुरक्षा के हकदार
उसीतरह जैसे सूचना का अधिकार है
लेकिन राजनीति उसके दायरे से बाहर है
उसीतरह जैसे सर्वशिक्षा है
और शिक्षा की तमाम दुकानें भी हैं बेलगाम
उसीतरह जैसे आरक्षण की मारामारी है
उत्कट अस्मिताएं हैं
और सुरसामुखी बेरोजगारी भी है
लेकिन नौकरियां कहीं नहीं है

जो भी कुछ जनता का है
सबका निजीकरण है
और कारपोरेट एकाधिकारवादी
आक्रमण है जनता के विरुद्ध
यह देश सिर्फ रिलायंस है
या फिर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश है
या अकूत बेहिसाब कालाधन है
कहीं नहीं है खून
कहीं नहीं है पानी
हालांकि जो भी कुछ
बहता नजर आता भइये,
चाहे वह भोपाल गैस त्रासदी
का कार्बन मोनोक्साइड हो
या फिर शीतल पेय में कीटनाशक
या जैविकी बीज
या परमाणु संयंत्रों से बहता
विकिरण
सर्वत्र लेकिन जो बहता है
वह हमारे ही रगों में बहनेवाला खून है

न सूचना है और न कोई खबर
चारों तरफ मसखरे और विदूषक
विज्ञापनों के माडल
और पेज थ्री के सेलिब्रेटी
और मैच फिक्सिंग,
सेक्सिंग और बेटिंग हैं
करोड़पति बनने की
गला काटू
प्रतिद्वंद्विता है
नागरिक सेवाओं को झटकने
की आधार जुगत है

डीकंट्रोल है सबकुछ
अनियंत्रित हैं बिजली दरें
और तेल के दाम भी
आयात निर्यात के खेल में
अर्थव्यवस्था के कैसिनों में
अनियंत्रित अनाज के भाव भी
प्याज और टमाटर के भावों पर
बहुत है हंगामा इन दिनों
लेकिन खुले नरसंहार पर खामोश हैं लोग
चूं करने वाला भी कोई माई का लाल नहीं

नागरिकता मूक और वधिर है
नागरिक कबंध है
और देश पर भारी है
अल्पमत सरकारों के लिए
जनादेश का प्रबंधन

हम धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की पैदल सेना में
तब्दील हैं
न हमारी इंद्रियां सही सलामत हैं
हर शख्स कैंसर पीड़ित है
हरकिसी को क्षय रोग है
सब्सिडी वंचित हर कोई
कुपोषण का शिकार

आत्मदाह के इरादे बनाता हर कोई
या फिर आत्महत्या की प्रक्रिया से
गुजर रहा है  हर कोई
लेकिन न पानी है
और न कहीं खून है
सिर्फ असमाप्त कलिंग युद्ध है
और दसों दिशाओं में
बौद्धमय भारत के अवसान के ताम्रपत्र
शेयर और बांड. चिटफंड सर्टिफिकेट
स्थापन्न हैं अशोक के शिलानुशासन के
गौतम बुद्ध के शील सिरे से गायब है
जो है वह शीलभंग है सर्वत्र
न खून है और न पानी है
हर कहीं बहती कोई दया नदी है
उसपर नजर किसी की नहीं है
वह इहलोक है
परलोक में मोक्ष के लिए
वैतरिणी के कर्मकांड
ही हमारे जीवित होने के सबूत हैं
हम कबंधों के जीवित होने के सबूत
लेकिन भइये, न पानी है कहीं
और न कहीं है खून

5
Aaj Tak
नरेंद्र मोदी ने कहा, 'प्रधानमंत्री जी आपका नाम अब सबसे ज्यादा बार तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्रियों में शामिल हो गया है. फिर भी आप वही बोल रहे हो जो 60 साल पहले नेहरू बोला करते थे. सवाल यह है कि इन 60 सालों में आपने क्या किया.'... क्‍या आप भी प्रधानमंत्री जी से सवाल पूछना चाहते हैं... क्लिक करें और पढ़ें नरेंद्र मोदी का पूरा भाषण और पूछे प्रधानमंत्री जी से सवाल....http://aajtak.intoday.in/story/gujarat-cm-narendra-modi-delivers-independence-day-speech-at-lalan-college-in-bhuj-1-739198.html‪#‎india67‬ ‪#‎aajtak‬

Aaj Tak
प्रधानमंत्री ने लाल किले से गिनाईं सरकार की उपलब्धियां, साथ ही पाकिस्तान को भी दी चेतावनी, कहा-आतंक के लिए जमीन का इस्तेमाल ना करने दे पाकिस्तान, सरहद पर जवानों की हत्या को बताया कायराना हरकत. सुनें पूरा भाषण...http://bit.ly/126u3YF
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यह तस्वीर बंगाल के सिंगुर गांव की एक गरीब महिला तापसी मलिक की है जिसे अपनी जमीन के अधिग्रहण का विरोध करने पर असामाजिक तत्वों द्वारा बलात्कार के बाद जिन्दा जला द...See More




जनता का कोई इतिहास नहीं है
जनती की कोई विरासत नहीं है
जनता की कोई पहचान नहीं है
सिर्फ जातियां हैं, धर्म हैं
और संप्रदाय हैं
आस्था हैं अनेक
और अस्मितायें है अनेक
विकास है ,लेकिन जनता के हिस्से में
न कोई विकास है और न कोई राजमार्ग है
न आर पार कहीं पैदल जाने की इजाजत है
तिलिस्म हैं अनेक
भूलभूलैया भी हैं अनेक
अनेक हैं विचारधाराएं
सर्वनाश के नियतिबद्ध मार्ग भी अनेक

कोई बुनियादी ढांचा नहीं है जनता के
न हर हाथ को रोजगार है
और न हर सर पर छत है
रहने को घर नहीं
सारा जहां हमारा है
न पानी है और न खून है कहीं
अबाध कलिंग युद्ध है
अबाध अतिक्रमण है
अबाध खनन है
अबाध बंधुआ बंदोबस्त है
अबाध लूटतंत्र है

इतिहास नहीं है कहीं
न कहीं है प्रथम पुरुष
और उसका भोगा हुआ यथार्थ है
हर कोई यहां तृतीय पुरुष है
परायी कथा को अपनी कथा मानकर इतराता
अपने ही वध का उत्सव मनाता हर कोई असुर है
और हर कोई तैंतीस करोड़ देवदेवियों में शामिल

भूदेवता भी अल्पसंख्यक हैं
पर भूदेवता बनने को उत्सुक तमाम लोग
अपनी पहचान मिटाने को सदैव तत्पर
इहलोक की ऐसी तैसी करके
वैतरिणी पार करने की जुगत लगाते लोग
सड़कों पर उछाले गये नारे
और सत्तावर्ग के रंग बिरंगे झंडे पर कुर्बान लोग
नकली किले की रक्षा में सती होते लोग

इतिहास नहीं है, कथा है, कहानी है
उपन्यास भी है परायी जुबान में
धर्मग्रंथ भी अनेक हैं
जहां हमारी कोई कथा नहीं है

हमारे विजित होने के इतिहास
का राष्ट्रवाद है अमोघ
फिर प्रवचन है,य़ोग है
सिर्फ संभोग है
या सिर्फ समाधि है
धारदार कंडोम की व्यवस्था है
वियाग्रा है तमाम
वीर्य नहीं है
और न मुक्त गर्भ है कोई
किराये के गर्भ में जन्म लेती गुलाम पीढ़ियां
और इतिहास रचते विजेता

अशोक के शिलानुशासन हैं
स्तूप हैं तमाम
मठ हैं अनेक
गुंफायें भी जहां तहां
धर्म चक्र है
बिहार भी अनेक हैं
तथागत की मूर्तियां हैं बहुत
ईश्वर हो गये बाबासाहेब भी
लेकिन कहीं आक्रमणकारी अस्त्र का समर्पण नहीं है
राष्ट्र का सैन्यीकरण है
नागरिकों के विरुद्ध
बौद्धमय भारत का कोई अवशेष नहीं है कहीं

बाकी जो बचा
वह दयानदी है या फिर वैतरिणी
सारनाथ है या फिर बोधगया
या फिर नालंदा मृत
और मृत तक्षशिला
कहीं नहीं है गौतम बुद्ध
अब तो कहीं नहीं हैं बाबासाहेब भी
न पानी है कहीं और न खून है कहीं

लेकिन भइये,हर कहीं पानी नहीं
दरअसल वह जो बहता है
असल में हमारे स्वजनों का खून है
जैसे हमारे रगों में बहता खून
खून नहीं पानी है

हर कहीं जारी है कलिंग युद्ध
परिशिष्ट
1

नरेंद्र मोदी का तंज, बोले 'किस रॉकेट में बैठकर फासला तय करोगे प्रधानमंत्री जी'

आज तक
- ‎40 मिनट पहले‎






स्वतंत्रता दिवस पर भुज के लालन कॉलेज से भाषण देते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भारी पड़े. उन्होंने लाल किले से दिए गए प्रधानमंत्री के भाषण में जमकर खामियां निकालीं और कई मसलों पर उनकी कड़ी आलोचना की. नरेंद्र मोदी ने कहा, 'प्रधानमंत्री जी आपका नाम अब सबसे ज्यादा बार तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्रियों में शामिल हो गया है. फिर भी आप वही बोल रहे हो जो 60 साल पहले नेहरू बोला करते थे. सवाल यह है कि इन 60 सालों में आपने क्या किया.' मोदी ने एक परिपक्व राजनेता की तरह अपने भाषण में संतुलन बनाया. वह बढ़ती गरीबी पर भी बोले और शिक्षा पर ...

*

चिदंबरम बोले- रिजर्व बैंक के कदम को ना समझें 'पूंजी नियंत्रण'

आज तक
- ‎3 घंटे पहले‎






वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बुधवार को कहा कि भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में किए जाने वाले निवेश के मामले में रिजर्व बैंक द्वारा किए गए उपायों को 'पूंजी पर नियंत्रण नहीं माना जाना चाहिए और केंद्रीय बैंक समय आने पर इसकी फिर समीक्षा करेगा.' चिदंबरम ने बताया, 'रिजर्व बैंक के परिपत्र (विदेशों में किए जाने वाले प्रत्यक्ष निवेश के बारे में) को घरेलू कंपनियों पर पूंजी नियंत्रण के तौर पर नहीं देखना चाहिए.' उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि ये उपाय तात्कालिक हैं और मुझे पूरा भरोसा है कि रिजर्व बैंक इनकी समय पर फिर से समीक्षा करेगा. इसलिए इसे पूंजी नियंत्रण न समझा जाये.'.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 10वीं बार फहराया तिरंगा

Live हिन्दुस्तान
- ‎2 घंटे पहले‎






प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुरुवार को लाल किले पर लगातार 10वीं बार तिरंगा फहराया। वह जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी के बाद लाल किले पर सबसे ज्यादा बार तिरंगा फहराने वाले प्रधानमंत्री हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर 17 बार तिरंगा फहराया था, जबकि इंदिरा गांधी ने 16 बार। अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 से 2003 तक छह बार तिरंगा फहराया। भारत के आजाद होने पर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने पहली बार इस ऐतिहासिक लाल किले पर 1947 में तिरंगा फहराया था। मनमोहन सिंह ने देश के 14वें प्रधानमंत्री के तौर पर 15 अगस्त 2004 को पहली बार लाल किले पर तिरंगा फहराया था। वह उसी वर्ष मई में ...

पूरे उत्साह से मना आजादी का जश्न

Bhasha-PTI
- ‎2 घंटे पहले‎






नयी दिल्ली, 15 अगस्त :भाषा: आसमान पर घने बादल, जमीन पर चौकन्ने सुरक्षाकर्मी और चप्पे चप्पे पर सुरक्षा बंदोबस्त दिल्लीवासियों के उत्साह को कम नहीं कर पाया और भारी संख्या में लोग ऐतिहासिक लाल किले पर आजादी का जश्न मनाने के लिए उमडे । सुबह हल्की बौछार पड़ने से मौसम सुहाना हो गया । स्कूली बच्चे और अन्य मेहमान पूरे जोश-ओ-खरोश से 67वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में जुटे । अपनी टिप्पणी पोस्ट करे । नाम. ईमेल आईडी. विषय. चेक, अगर आप इस साइट पर अपना नाम प्रदर्शित नहीं करना चाहते। चेक, अगर आप इस तरह की और खबरे देखना चाहते हैं। पीटीआई-भाषा किसी भी तरह की अमर्यादित टिप्पणी ...

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आंकड़ों ने लगाई छलांग, महंगाई दर हुई बेकाबू

दैनिक जागरण
- ‎3 घंटे पहले‎






नई दिल्ली। कारखानों की रफ्तार के रसातल में जाने के बाद अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सरकार के लिए दूसरी बुरी खबर है। बमुश्किल काबू में आई महंगाई की दर ने फिर से पांव पसारने शुरू कर दिए हैं। आलू, प्याज समेत अन्य सब्जियों की बढ़ती कीमतों के चलते जुलाई में महंगाई की दर 5.79 फीसद पर पहुंच गई है। पिछले चार महीने में यह पहला मौका है जब थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर ने पांच फीसद की सीमा तोड़ी है। महंगाई बढ़ाने में सर्वाधिक भूमिका खाद्य उत्पादों ने निभाई है। इनके चलते खाद्य उत्पादों की महंगाई दर 12 फीसद के नजदीक पहुंच गई है। महंगाई बढ़ाने में प्याज की सबसे बड़ी भूमिका रही है।

एक बार में 2 से 3 रुपये तक महंगा हो सकता है डीजल

बिजनेस भास्कर
- ‎1 घंटा पहले‎






महंगाई के इस दौर में डीजल वाहन चलाने वालों की जेब अब और हल्की होने वाली है। दरअसल, सरकार प्रति लीटर डीजल की कीमतों में 2-3 रुपये की एकमुश्त बढ़ोतरी करने पर विचार कर रही है। गिरते रुपये के चलते पड़ रहे असर को कम करने के मकसद से ही सरकार डीजल को महंगा करने की तैयारी में है। इतना ही नहीं, डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का चौतरफा असर होगा। महंगे डीजल के चलते पहले तो ट्रक भाड़े बढ़ जाएंगे। फिर इसके बाद ट्रकों से ढुलाई किए जाने वाले तमाम सामान महंगे हो जाएंगे। इसका असर खासकर फल-सब्जियों की कीमतों पर दिखेगा जो पहले से ही आसमान छू रही हैं। हालांकि, थोड़ी राहत की बात यह है कि रसोई …

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  2. राष्ट्रपति ने माना, देश में चौतरफा निराशा का ...

  3. अमर उजाला-7 घंटे पहले
  4. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी माना है कि आज पूरे देश में शासन व्यवस्था तथा संस्थाओं के कामकाज के प्रति ... संसद व विधानसभाओं के आए दिन हंगामे से नाराज राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी विधायिकाएं कानून बनाने वाले मंचों से ...
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  6. धैर्य की एक सीमा होती है:राष्ट्रपति

  7. प्रभात खबर-4 घंटे पहले
  8. नयी दिल्ली: शासन और संस्थाओं के कामकाज में व्यापक 'निराशा और भ्रम' की स्थिति का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि अगले साल के चुनाव एक ऐसी स्थिर सरकार को चुनने का अवसर देंगे जो सुरक्षा तथा आर्थिक ...
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  11. सीआईएसएफ के 28 कर्मियों को राष्ट्रपति पुलिस मेडल

  12. Live हिन्दुस्तान-14 घंटे पहले
  13. सीआईएसएफ के 28 कर्मियों को राष्ट्रपति पुलिस मेडल ... बल केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के 28 कर्मियों को स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर विशिष्ट और सराहनीय सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पुलिस मेडल से नवाजा गया।
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  15. देश में भ्रष्टाचार बड़ी चुनौती : राष्ट्रपति

  16. Webdunia Hindi-18 घंटे पहले
  17. नई दिल्ली। देश के 67वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद और विधानसभाओं में कामकाज की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार बड़ी चुनौती बन ...
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  19. राज्य के चार पुलिसकर्मियों को राष्ट्रपति वीरता ...

  20. दैनिक जागरण-14 घंटे पहले
  21. जागरण ब्यूरो, पटना : स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बिहार के चार पुलिसकर्मियों को राष्ट्रपति के गैलेंट्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इनमें तीन कांस्टेबल व एक इंस्पेक्टर हैं। इसके अतिरिक्त ग्यारह पुलिस वाले जिसमें एसपी ...
  22. National > 67वां स्वतंत्रता दिवस, राष्ट्रपति का ...

  23. पंजाब केसरी-14 घंटे पहले
  24. नई दिल्ली: भारत के 67वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्र के नाम संदेश में बुधवार को कहा कि पिछले लगभग सात दशकों से हम अपने भाग्य के नियंता खुद हैं। और यही वह क्षण है, जब हमें पूछना चाहिए कि ...
  25. *
  26. राष्ट्रपति की पाक को ललकार, सीमा पर धैर्य की भी ...

  27. khaskhabar.com हिन्दी-17 घंटे पहले
  28. नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को कहा कि संस्थाएं राष्ट्रीय चरित्र का दर्पण होती हैं। आज हमें अपने देश में शासन व्यवस्था तथा संस्थाओं के कामकाज के प्रति चारों ओर निराशा और मोहभंग का वातावरण दिखाई देता है।
  29. *
  30. भ्रष्‍टाचार देश की बड़ी समस्‍या: राष्‍ट्रपति

  31. आज तक-17 घंटे पहले
  32. स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश को संबोधित किया. राष्‍ट्रपति ने भ्रष्‍टाचार को देश की बड़ी समस्‍या करार देते हुए समाज के हर तबके के विकास पर ध्‍यान दिए जाने की जरूरत बताई है. प्रणब मुखर्जी ने कहा ...
  33. स्‍वतंत्रता दिवस पर राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी का देश ...

  34. p7news-16 घंटे पहलेसाझा करें
  35. राष्‍ट्रपति प्रणब मुखजी ने स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर देश के नाम संदेश दिया। इस संदेश में उन्‍होंने देश के बेहतर भविष्‍य के साथ स्‍वर्णिम अतीत की यादों को ताजा किया। शासन और संस्थाओं के कामकाज में व्यापक निराशा और ...
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साल 2011 में 14 हजार से अधिक किसानों ने की आत्महत्या

Posted by Reyaz-ul-haque on 7/21/2012 02:29:00 PM



द हिंदू के ग्रामीण मामलों के संपादक पी. साईनाथ विदर्भ और दूसरे राज्यों में किसानों की आत्महत्याओं पर लगातार लिखते रहे हैं. 3 जुलाई के द हिंदू में उनका यह नया लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र में लगातार बढ़ती आत्महत्याओं पर चिंता जताई है. मनीष शांडिल्य का अनुवाद.

बीच सफ़हे की लड़ाई

गरीब वह है, जो हमेशा से संघर्ष करता आ रहा है. जिन्हें आतंकवादी कहा जा रहा है. संघर्ष के अंत में ऐसी स्थिति बन गई कि किसी को हथियार उठाना पड़ा. लेकिन हमने पूरी स्थिति को नजरअंदाज करते हुए इस स्थिति को उलझा दिया और सीधे आतंकवाद का मुद्दा सामने खड़ा कर दिया. ये जो पूरी प्रक्रिया है, उन्हें हाशिये पर डाल देने की, उसे भूल गये और सीधा आतंकवाद, ‘वो बनाम हम ’ की प्रक्रिया को सामने खड़ा कर दिया गया. ये जो पूरी प्रक्रिया है, उसे हमें समझना होगा. इस देश में जो आंदोलन थे, जो अहिंसक आंदोलन थे, उनकी क्या हालत हमने बना कर रखी है ? हमने ऐसे आंदोलन को मजाक बना कर रख दिया है. इसीलिए तो लोगों ने हथियार उठाया है न?

अरुंधति राय से आलोक प्रकाश पुतुल की बातचीत.

कॉरपोरेट जगत के हित में देश की आम जनता के संहार की योजना रोकें

हम महसूस करते हैं कि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक विध्वंसक कदम होगा, यदि सरकार ने अपने लोगों को, बजाय उनके शिकायतों को निबटाने के उनका सैन्य रूप से दमन करने की कोशिश की. ऐसे किसी अभियान की अल्पकालिक सफलता तक पर संदेह है, लेकिन आम जनता की भयानक दुर्गति में कोई संदेह नहीं है, जैसा कि दुनिया में अनगिनत विद्रोह आंदोलनों के मामलों में देखा गया है. हमारा भारत सरकार से कहना है कि वह तत्काल सशस्त्र बलों को वापस बुलाये और ऐसे किसी भी सैन्य हमले की योजनाओं को रोके, जो गृहयुद्ध में बदल जा सकते हैं और जो भारतीय आबादी के निर्धनतम और सर्वाधिक कमजोर हिस्से को व्यापक तौर पर क्रूर विपदा में धकेल देगा तथा उनके संसाधनों की कॉरपोरेशनों द्वारा लूट का रास्ता साफ कर देगा. इसलिए सभी जनवादी लोगों से हम आह्वान करते हैं कि वे हमारे साथ जुड़ें और इस अपील में शामिल हों.
-अरुंधति रॉय, नोम चोम्स्की, आनंद पटवर्धन, मीरा नायर, सुमित सरकार, डीएन झा, सुभाष गाताडे, प्रशांत भूषण, गौतम नवलखा, हावर्ड जिन व अन्य

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भुवनेश्वर

India / Orissa / Bhubaneswar /
नगर / शहर, capital city of state/province/region (en)

ओडिशा की इस वर्तमान राजधानी का निमार्ण इंजीनियरों और वास्‍तुविदों ने उपयोगितावादी सिद्धांत के आधार पर किया है। इस कारण नया भुवनेश्‍वर प्राचीन भुवनेश्‍वर के समान बहुत सुंदर तथा भव्‍य नहीं है। यहां आश्‍चर्यजनक मंदिरों तथा गुफाओं के अलावा कोई अन्‍य सांस्‍कृतिक स्‍थान देखने योग्‍य नहीं है।
मुख्य आकर्षण:-
अनुश्रुतियों के अनुसार भुवनेश्‍वर में किसी समय 7000 मंदिर थे, जिनका निर्माण 700 वर्षों में हुआ था। लेकिन अब केवल 600 मंदिर ही बचे हैं। राजधानी से 100 किलोमीटर दूर खुदाई करने पर तीन बौद्ध विहारों का पता चला है। ये बौद्ध विहार थें रत्‍नागिरि, उदयगिरि तथा ललितगिरि। इन तीनों बौद्ध विहारों से मिले अवशेषों से अनुमान लगाया जा सकता है कि 13वीं शताब्‍दी तक बौद्ध धर्म यहां उन्‍नत अवस्‍था में था। बौद्ध धर्म की तरह यहां जैन धर्म से संबंधित कलाकृतियां भी मिलती है। राजधानी से 6 किलोमीटर दूर उदयगिरि तथा खन्डगिरि की गुफाओं में जैन राजा खारवेल की बनवाई कलाकृतियां मिली है जोकि बहुत अच्‍छी अवस्‍था में है।
राजा-रानी मंदिर ...
मुक्‍तेश्‍वर मंदिर समूह
लिंगराज मंदिर समूह
लिंगराज मंदिर के आसपास का मंदिर
राज्‍य संग्रहालय
हीरापुर
(अगर यह आवश्यक है तो, .....संपादित करें या इस जानकारी को सही करें)
विकीपेडिया लेख: http://hi.wikipedia.org/wiki/भुवनेश्वर
आसपास के शहर: NANU'S residence vim-799, Himanshu Sekhar Mohapatra's House, sambit home
ध्रुवीय निर्देशांक:   20°18'45"N   85°48'48"E

Kalinga (India)

From Wikipedia, the free encyclopedia
This article is about the ancient Indian kingdom. For other uses, see Kalinga (disambiguation).
Kalinga c. 261 BCE
Kalinga (Oriya: କଳିଙ୍ଗ, Devnagari: कलिङ्ग,Telugu: కళింగ) was an early republic in central-easternIndia, which comprised most of the modern state of Odisha, as well as the Andhra region of the bordering state of Andhra Pradesh.[1] It was a rich and fertile land that extended from the riverDamodar/Ganges to Godavari and from Bay of Bengal to Amarkantak range in the West.[1] The region was scene of the bloody Kalinga War fought by the Maurya Emperor Ashoka the Great ofMagadha c. 265 BCE.[2]

Contents

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Rise of Kharavela[edit source | editbeta]

Kharavela was the warrior emperor of Kalinga.[3] He was responsible for the propagation of Jainism in the Indian Subcontinent but his importance is neglected in many accounts of Indian history. According to the Hathigumpha inscription near Bhubaneswar, Odisha, he attacked Rajagriha in Magadha, thus inducing the Indo-Greek king Demetrius to retreat to Mathura.[4] But this inscription doesn't mean that he merged Magadha in Kalinga. But this shows his strong ties with the Shunga ruler Pushyamitra and Agnimitra who have just started their rule after uprooting the Mauryans.
The Kharavelan Jain empire had a formidable maritime empire with trading routes linking it to Sri Lanka, Burma, Thailand, Vietnam,Cambodia, Borneo, Bali, Sumatra and Java. Colonists from Kalinga settled in Sri Lanka, Burma, as well as the Maldives and Malay Archipelago.

Historical accounts of Kalinga[edit source | editbeta]

Kalinga is mentioned in the Adiparva, Bhismaparva, Sabhaparva, Banaprava of Mahabharata. Kalinga King Srutayu is stated to have fought the Mahabharat war for the Kauravas. Kalinga is also mentioned as Calingae in Megasthenes' book on India – Indica & Megasthenes states that Magadha & Kalinga were Jain Dominant Kingdoms:
"The Prinas and the Cainas (a tributary of the Ganges) are both navigable rivers. The tribes which dwell by the Ganges are the Calingae, nearest the sea, and higher up the Mandei, also the Malli, among whom is Mount Mallus, the boundary of all that region being the Ganges." (Megasthenes fragm. XX.B. in Pliny. Hist. Nat. V1. 21.9–22. 1.[5])
"The royal city of the Calingae is called Parthalis. Over their king 60,000 foot-soldiers, 1,000 horsemen, 700 elephants keep watch and ward in "procinct of war." (Megasthenes fragm. LVI. in Plin. Hist. Nat. VI. 21. 8–23. 11.[5])
The Kalinga script,[6] derived from Brahmi, was used for writing.

The Fall of Kalinga[edit source | editbeta]

The kingdom fell when Ashoka, leader of the Mauryan Empire led a war against the kingdom, leading to its bloody defeat in the Kalinga War. It is said that the war was so bloody that the river turned red. This ultimately led to Ashoka becoming a Buddhist king. Some advocates of the Greater India theory claim this led to an exodus of people to Southeast Asia where they set up Indianized kingdoms, but there is no evidence for such a migration of people.[7]

The term "Keling"[edit source | editbeta]

Long past the end of the Kalinga Kingdom in 1842 CE, derivatives from its name continued to be used as the general name of India in what are now Malaysia and Indonesia. "Keling" was and still is in use in these countries as a word for "Indian", though since the 1960s Indians came to consider it offensive.

See also[edit source | editbeta]

*
Wikimedia Commons has media related to: Kalinga (India)

Notes[edit source | editbeta]

  1. ^ a b An Advanced History of India. By R.C. Majumdar, H.C. Raychaudhuri, and Kaukinkar Datta. 1946. London: Macmillan
  2. ^ Asoka and the Decline of the Mauryas, 1961 (revision 1998); Oxford University Press
  3. ^ Agrawal, Sadananda (2000): Śrī Khāravela, Sri Digambar Jain Samaj, Cuttack, Odisha
  4. ^ Shashi Kant (2000): The Hathigumpha Inscription of Kharavela and the Bhabru Edict of Ashoka, D K Printworld Pvt. Ltd.
  5. ^ "[Omnigator] Kalinga". Ontopia.net. Retrieved 2012-02-01.
  6. ^ Hall, D.G.E. (1981). A History of South-East Asia, Fourth Edition. Hong Kong: Macmillan Education Ltd. p. 17. ISBN 0-333-24163-0.

Kalinga War

From Wikipedia, the free encyclopedia
The Kalinga War


Date
262-261 BC
Location
Result
Decisive Maurya victory
Territorial
changes


Belligerents

Commanders and leaders

Rani Padmavati(presumed)
Strength

Total 400,000
60,000 infantry,[1]
1,000 cavalry,[1]
Casualties and losses

100,000
200,000+ (exaggerated figures by Ashoka himself)[2][3]
(including civilians)
The Kalinga War was fought between the Mauryan Empire under Ashoka the Great and the state of Kalinga, a feudal republic located on the coast of the present-day Indian state of Odisha and northern parts of Andhra Pradesh. The Kalinga city is capital of Kalinga kingdom, it is situated in present day Srikakulam, Andhra Pradesh. The Kalinga war, the only major war Ashoka fought after his accession to throne, is one of the major and bloodiest battles in world history. Kalinga put up a stiff resistance, but they were no match for Ashoka's brutal strength. The bloodshed of this war is said to have prompted Ashoka to adopt Buddhism. However, he retained Kalinga after its conquest and incorporated it into the Maurya Empire.[4]

Contents

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Background[edit source | editbeta]

Kalinga and Maurya Empire before invasion of Ashoka
The main reasons for invading Kalinga were both political and economic.[5] Since the time of Ashoka's father, King Bindusara, the Mauryan Empire based inMagadha was following a policy of territorial expansion. Kalinga was under Magadha control during the Nanda rule,[citation needed] but regained independence with the beginning of the rule of the Mauryas. That was considered a great setback for the traditional policy of territorial expansion of the Magadhan emperors and was considered to be a loss of political prestige for the Mauryas merely imperative to reduce Kalinga to complete subjection. To this task Ashoka must have set himself as soon as he felt he was securely established on the throne.[6] The war began in the 8th year of Ashoka's reign, probably in 261 BC. Ashoka's grandfather Chandragupta had previously attempted to conquer Kalinga, but had been repulsed. After a bloody battle for the throne after Bindusara's death, Ashoka tried to annex Kalinga. Ashoka was successful only after a savage war, whose consequences changed Ashoka's views on war and led him to pledge never to wage a war of conquest. It is said that in the aftermath of the Battle of Kalingathe Daya River running next to the battle field turned red with the blood of the slain; more than 150,000 Kalinga warriors and about 100,000 of Ashoka's own warriors were among those slain.
Dhauli hill is presumed to be the area where the Kalinga War was fought. The historically important Dhauli hills are located on the banks of the Daya River of Bhubaneswar in Odisha (India). Dhauli hill, with a vast open space adjoining it, has major Edicts of Ashoka engraved on a mass of rock by the side of the road leading to the summit of the hill. It was an important and a decisive event in the history of the world.

Aftermath[edit source | editbeta]

Ashoka had seen the bloodshed with his own eyes and felt that he was the cause of the destruction. The whole of Kalinga was plundered and destroyed. Ashoka's later edicts state that about 100,000 people were killed on the Kalinga side and almost equal number of Ashoka's army. Thousands of men and women were deported. Ashoka after seeing this was filled with sorrow and remorse.
Ashoka's response to the Kalinga War is recorded in the Edicts of Ashoka. The Kalinga War prompted Ashoka, already a non-engaged Buddhist[citation needed], to devote the rest of his life to Ahimsa (non-violence) and to Dharma-Vijaya (victory through Dharma). Following the conquest of Kalinga, Ashoka ended the military expansion of the empire, and led the empire through more than 40 years of relative peace, harmony and prosperity.
"Beloved-of-the-Gods, King Priyadarsi, conquered the Kalingas eight years after his coronation. One hundred and fifty thousand were deported, one hundred thousand were killed and many more died (from other causes). After the Kalingas had been conquered, Beloved-of-the-Gods came to feel a strong inclination towards the Dhamma, a love for the Dhamma and for instruction in Dhamma. Now Beloved-of-the-Gods feels deep remorse for having conquered the Kalingas." Rock Edict No.13[7]
According to oral histories, a woman approached him and said, "Your actions have taken from me my father, husband, and son. Now what will I have left to live for?". Moved by these words, it is said, that he accepted/adopted Buddhism, and vowed to never take life again.

References[edit source | editbeta]













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