हिमालय के वध की हरिकथा अनंत है!
पलाश विश्वास
'केदारनाथ में लाशें ही लाशें, मंदिर में बस शिवलिंग'
बबीता मोदी ने देहरादून में बताया कि केदारघाटी में
सैलाब के समय उन्होंने कई लोगों को बहते देखा
केदारनाथ से आते समय उन्होंने
हजारों शव जहां-तहां बिखरे देखे
उन्होंने केदारनाथ में कम से कम
दो हजार लोगों के मरने की आशंका जाहिर की है
बकौल बबीता केदारनाथ मंदिर को भारी नुकसान हुआ है
केदारनाथ मंदिर के परिसर में मौजूद
नंदी और मंदिर के अंदर पांडवों की मूर्ति बह गई हैं
मंदिर के अंदर बस शिवलिंग ही बचा है
हमारा हिंदुत्व रस्मोरिवाज तक सीमाबद्ध है
गायत्रीमंत्र सिर्फ मोबाइल पर बजता अनवरत जिंगल है
हिमालय के वध की हरिकथा अनंत है
अश्वमेध के घोड़े पहाड़ों में सबसे तेज दौड़ते हैं,कोई शक?
राज्य आपदा राहत और प्रबंधन केंद्र ने कहा है कि
90 धर्मशालाओं के अचानक आई बाढ़ में बह जाने के कारण
प्रभावित क्षेत्र में मरने वालों की संख्या हजारों तक
पहुंच सकती है। हालांकि आधिकारिक तौर पर
मरने वालों की संख्या 150 बतायी गई है
हजारों लोगों के मारे जाने की आशंका के बीच
राहत और बचाव कार्य तेज कर दिया गया है तथा
केदारनाथ में फंसे लोगों को वहां से निकालने के लिए
भारतीय वायु सेना के आठ अतिरिक्त हेलीकॉप्टर लगाए गए हैं
हमारे चारों ओर लाशें हैं स्वजनों की और हम खुले बाजार में
देवादिदेव को वैज्ञानिक तरीके से प्रतिस्थापित करने के तौर तरीके और तकनीक का जश्न मना रहे हैं
हमारी आस्था पर मौत और सर्वनाश का कहर बरपा है,पर
हमें पिघतले ग्लेशियरों की सेहत का क्या,
चारों तरफ मारे जाते लोगों की तनिक नहीं परवाह
हम जश्न माना रहे हैं कि चाहे कितनी भारी हो विपदा,
चमत्कार देखिये, कि आस्था के केंद्र अटूट है!
केदारनाथ तबाह हुआ तो क्या,
क्या हुआ कि मारे गये हजारों, पांच या बीस हजार
या फिर बीस लाख, शिवलिंग अक्षत है
सब हो गये तबाह, बच गये बाबा केदारनाथ
कुदरत ने बाबा केदारनाथ धाम में ऐसा कहर बरपाया कि मंदिर परिसर लाशों, मलबे से पट गया। गौरीकुंड और रामबाड़ा पूरी तरह तबाह हो गये। होटल, लॉज और पूरा का पूरा बाजार बह गया। साढ़े 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बाबा केदारनपाथ विराजते हैं और बस ये ही मंदिर अब बाकी बचा है। बादल फटने से यहां ऐसी तबाही मची कि पूरे केदारनाथ मंदिर परिसर दुनिया के नक्शे से साफ हो गया। 6 फीट के जिस चबूतरे पर यह मंदिर बना है वो भी नहीं बचा है। आखिर ऐसा क्या है इस मंदिर में। हजारों साल प्राचीन इस मंदिर को कुदरत का कहर भी नहीं हिला सका, जबकि आसपास मॉडर्न टेक्नोलॉजी से बने भवन, होटल, लॉज पत्ते की तरह बह गये। क्या ये सिर्फ कुदरत का करिश्मा है या फिर प्राचीन भवन निर्माण शैली की आधुनिक तकनीक को खुली चुनौती।
पहाड़ों में आपदाओं तो आती रहती हैं,
लोग सदियों से मरते रहते हैं और
जीते भी ही हैं तो वे आखिर मरे हुए हैं
भारत के लिए या दक्षिण एशिया के लिए
जीवित होने चाहिए चारों धाम और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद
ताकि जारी रहे हैलीकाप्टर दौरा,
शोक संदेश का सिलसिला और
मृतकों की गिनती, बचाव और राहत अभियान
ताकि चलती रही सियासत और
प्रकृति से बलात्कार का सिलसिला,
क्योंकि इस राष्ट्र को नदीवक्ष में तैरती लाशों
की खबर नहीं होती कभी,
सद्गति के लिए ही तो लाशें
बहायी जाती है नदियों में
नदियों में बहता खून हमें सिर्फ
अमृत जल नजर आता है और
खून की नदियों में स्नान से हम
मनाते हैं धर्मिक, राजनीतिक और आर्थिक महाकुंभ
मैदानों की शापिंग माल हाईवे दुनिया में
बसने वालों को पगडंडियों की क्या खबर होगी
जब पहाड़ को पहाड़ कीखबर नहीं
अपने ही रगों से रिसते खून का अहसास नहीं
पर्यटन स्थलों में सुहागरात मनाने वालों और
धर्मकेंद्रों को भी हानीमूनस्थल बनाने वालों को
क्यों नदियों और ग्लेशियरों की सेहत का ख्याल होगा
कारपोरेट गुलामी के आलम में अब कोई फर्क नहीं है
नियमागिरि और हिमालय में
कोई फर्क नहीं है गंगा और
सलवाजुड़ुम मार्फत बंट गयी
बस्तर की आदिवासी नदी इंद्रावती में या
शीतलपेय कंपनियों को बेच दी गयी नदियों में
अभी ग्लेशियर पिघला नहीं है पूरी तरह,
बांध अभी बना है सिर्फ टिहरी में
वे चीन में बांध रहे हैं ब्रह्मपुत्र को भी
ऊर्जा प्रदेश उत्तराखंड है तो ऊर्जा देश बन रहा नेपाल
पहाड़ को चीरकर गांतोक की हर गली में पहुंचती हैं कारें
और जंगलों की कटान तो अबाध है ,अबाध पूंजीप्रवाह की तरह
अभी अनबंधी हैं डेरों नदियां
बंधी नदियों के बंधन टूटने से राजधानी में
सिरफ खलबली है, चेतावनी है
और बहुत बिजी हो गये राजनेता और पत्रकार
यह तो बस झांकी है
राम मंदिर अभी बाकी है
फिलहाल शरश्या प्रकऱम से
उबरा नहीं देश,जबकि हकीकत है
कि किसी भीष्म पितामह के होने न होने से
रुकता नहीं कुरुक्षेत्र का विध्वंस
अब फिलहाल हिमालय में स्थानांतरित है कुरुक्षेत्र
और वही से निर्णायक स्वर्ग यात्रा
बाबाओं, साधुसंतों के प्रवचन और रथयात्राओं के बिना
यहां तक कि बिना नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व के
मोक्षलाभ का महाराजमार्ग खुला बाजार
हम गैरसैण राजधानी की रट लगाते रहे
अलग उत्तराखंड की लाटरी निकलने के बाद से
हिमालय की धड़कनों में सुलगते
एटम बम की खबर नहीं ली किसी ने
सत्ता की आंधी में बह निकली पर्यावरण चेतना
अब सत्ता से चिपको के अलावा कोई चिपको नहीं है कहीं
चेतना है तो भोग की चेतना है
संभोग से समाधि तक
और अवचेतन में है
अनंत पापबोध
अनंत अपराधकर्म का जहर,
जिससे नीले पड़ते दिलोदिमाग के लिए
हम पहाड़ को देवभूमि बताता अघाते नहीं
जैसे हमारे तमाम लोग हो देव या देवादिदेव
मनुष्यता की नियति भूल चले थे हम
तबाही वहां भी मची जो कल तक हिंदू राष्ट्र था, उस नेपाल में भी
जिसे अब फिर हिंदूराष्ट्र बनने के लिए
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व की प्रतीक्षा है
तबाही का आलम है वहां भी
जहां देवताओं के फैसले
से चलता है जीवन
हिमाचल, उत्तराखंजड और नेपाल को
एकाकार कर दिया
प्रकृति के रोष ने, जिन्हें
राजनीति और अर्थव्यवस्था ने रखा
अलग थलग बाकी उपमहादेश से सदियों से
विषमता की विषबेल फलने लगी है और फैलने भी लगी है
नस्ली भेदभाव से जो थे अछूत सर्वव्यापी हिंदुत्व के बावजूद
उनकी त्रासदी के स्पर्श से लाशे छितरा गयी हैं हर कोने में देश के
मैदानों के मंत्री लाशों पर रात बिताने को मजबूर
कुदरत के कहर से बचकर मंत्रीजी
सही-सलामत लौट आए हैं
बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ने
उत्तराखंड से लौटकर आपबीती सुनाई है
उनका कहना है कि केदारनाथ में भारी तबाही मची हुई है
और प्रशासन की ओर से कुछ खास नहीं किया जा रहा है
उन्होंने यह भी कहा कि केवल केदारनाथ में ही
15 से 20 हजार लोगों के मारे जाने की आशंका है
पूर्व मंत्री अपने परिवार के साथ
केदारनाथ दर्शन के लिए गए थे
लेकिन बाढ़ के चलते वे वहां फंस गए
आंखों देखा हाल हर चैनल पर और हजारों के मारे जाने के दावे
विपक्ष का रणहुंकार हिंदुत्व का शंखनाद
संतों की भविष्यवाणी शिवलिंगप्रवाह पर विलाप
जैसे सत्ता में शामिल हो सिर्फ सत्तादल ही और
सत्यानाशी व्यवस्था में साझेदार नहीं कोई
जैसे अल्पमत सरकारे राजकाज चलाती रही हैं
विपक्ष की सहमति के बिना
और जैसे कारपोरेट चंदे से नहीं चलता कोई
राजनीतिक दल,होता नहीं धार्मिक आयोजन
सुकमा का जंगल वरनम वन बनकर फैल गया है
एवरेस्ट तलक और जल्द ही वह चला जायेगा तिब्बतपार
घात लगाकर हमले यकीनन नहीं होंगे
पर विनाश का जवाब अब भी महाविनाश होगा
1978 में भागीरथी की बाढ़ के बावजूद जूं नहीं रेंगी कानों में
विकास का विनाश राजकाज हो गया और हम विकास पुरुषों,
लौह पुरुषों के देव अवतारों के पुजारी बने रहे
हिमालय ने जब भी करवट बदली
तबाही का आलम हुआ और
हम आस्था का फूल चुनते हुए गंगास्नान से निवृत्त
खुले बाजार में अपनी अपनी कामना वासना और लालसा से
फारिग होते रहे, उदित भारत और
भारत निर्माण का सपना जीते रहे
हिमालय के सीने में क्रूर बूटों की
धमक से बेखबर रहे हम
1970 में भी अलकनंदा घाटी में आयी थी बाढ़
तब भी विपर्यस्त थे वद्रीनाथ और केदारनाथ
पर कारोबार बाधित न हुआ
मारे गये सिर्फ पहाड़ी
और पहाड़ी तो बेमौत मारे जाते हैं
हर दिन कहीं भी कभी भी
जैसे वे एकमुस्त मारे गये 1991 में
उत्तरकाशी के भूकंप में
भूकंप के गर्भ में हिचकोले खाते ग्लेशियरों की
खबर किसने ली कब
आखिर भूकंप के गर्भ से ही निकला नैनीताल
जिसकी शोभा नैनीझील भी सूखने लगी तो पर्यटन का क्या
पर्यटन और तीर्थाटन के सिवाय, माफ करें
डीएसबी के प्राचीन मित्रों
इस हिंदुस्तान के उत्कट हिंदुत्व का
हिमालय से कोई संबंध हो तो बतायें
अब तो डीएसबी में भी नहीं होती पर्यावरण चर्चा
नैलीताल समाचार अब भी निकलता है
गिरदा नहीं है और नहीं हैं उनके तमाम जंगी साथी तो क्या
शेखर पाठक हैं, हैं शमशेर, बूढ़े बीमार हुए तो क्या
प्रताप शिखर और कुंवर प्रसून के बिना अब भी हैं
सुंदर लाल बहुगुणा, हां, भवानी भाई भी हैं
कुमायूं विश्वविद्यालय हैं
है गढ़वाल विश्वाविद्यालय
हैं लाखों छात्र और युवा
और उनसे भी ज्यादा हैं नराई में लथपथ
हमारे जैसे प्रवासी पहाड़ी दुनियाभर में छितराये हुए
जिंदा लाशों की तरह, फिरभी न आंदोलन है और न प्रतिरोध है
बल्कि अलग राज्य है,अलग सरकार है
और हैं ऐसे कवि भी जिनका सौंदर्यबोध सिरे से बदल गया है
अब किसी धार में नहीं गूंजती पेड़ गिरने की आवाज
और कहीं कोई गौरा पंत नहीं बांधती राखी किसी पेड़ को
सरकारें व्यथित हैं और अखबार सुर्खियों से लबालब
वीडियो फुटेज से पूरे देश में सनसनी है
पर किसी को खबर नहीं कि समुंदर से ही नहीं
सुनामी दहक सकती है जंगल की आग की तरह
और ग्लेशियरों से निकलकर पिघल सकती है पूरे देश में,
पूरे महादेश में,आखिर उफनती नदियों को समुंदर में ही समाना है
और नदियां कोई हिमालय की तरफ नहीं बहतीं
लाशें केदारनाथ परिसर,गौरीकुंड,भरत सेवाश्रम, हरसिल
और उत्तरकाशी से लेकर अल्मोड़ा पिथौरागढ़, हिमाचल
और नेपाल और चीन से भी बहकर निकलेंगी
और और लाशों की तलाश में
हमारा हिंदुत्व रस्मोरिवाज तक सीमाबद्ध है
गायत्रीमंत्र सिर्फ मोबाइल पर बजता अनवरत जिंगल है
हिमालय के वध की हरिकथा अनंत है
अश्वमेध के घोड़े पहाड़ों में सबसे तेज दौड़ते हैं,कोई शक?
माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने केदरानाथ मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने हजारों वर्ष पहले करवाया था। मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये 12-13वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली राजा भोज स्तुति के अनुसार मौजूदा मंदिर उनका बनवाया हुआ है जो 1076-99 काल के थे। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाए गए पहले के मंदिर के बगल में है। मंदिर के बडे धूसर रंग की सीढियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। फिर भी इतिहासकार मानते हैं कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं।
पंचकेदारों में प्रमुख केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव के धड़ रूप के दर्शन होते हैं। माना जाता है कि भगवान केदारनाथ का सिर नेपाल में और उनकी भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुईं, इसलिए इन चार स्थानों सहित केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है, जिनकी आराधना समस्त पाप-कष्ट से मुक्ति देती है।
यह मन्दिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना था, लेकिन 16 जून को हुई तबाही में चबूतरा बह गया, लेकिन मंदिर अभी बाकी है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। नंदी को पकड़कर कई भक्तों ने अपनी जान बचाई। श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है।
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