Tuesday, June 18, 2013

पूरब की छवियां

पूरब की छवियां

पलाश विश्वास

संवाद हो या नहीं,फर्क नहीं पड़ता
सेल्युलाइड में बोलता है परिवेश



लेकिन जीवन कोई फिल्म नहीं
रीटेक की गुंजाइश नहीं कोई
सर्वत्र सीधा प्रसारण



परिवेश कहीं नहीं बोलता
कलाकार की हर भाव भंगिमा
असंभव आलोकपात में आलोकित
अघोषित आयाम रेखांकित



चौराहे पर खड़े होकर
कह बोलने से थमता नहीं ट्राफिक

शूटिंग देखती जनता कहीं
फ्रेम में न आ जाये
सख्त हिदायतें जारी



निरंतरताएं लिपिबद्ध
शिड्यूल लेकिन क्रमबद्ध नहीं है
ग्रीनरूम का फ्रेम

कहीं नहीं दीखती परदे पर
कथा जैसी लिख दी
हमेशा फिल्मांकन वैसा ही नहीं होता
कैमरे के पीछे से एकदम सामने
चला आता निर्देशक कभी कभी

सारे पात्र अप्रासंगिक कठपुतलियां मात्र
प्रदूषित गंगाजल में झांकता नगर
गंगा आरती पृष्ठभूमि में
रीमिक्स में संगीत चीखता
गीतों का अनायास यातायात

किल कूपमंडूक ने कह दिया
सारे नृत्यहोंगे शास्त्रीय
तालबद्ध छंदित नंदित
कणकसज्जा नहीं राजपथ



मछलीबाजार के शोर में
कहीं नहीं है वह आईना
जिसमें दिखायी पड़े सारा देश

सुर्खियां निर्जीव फिलर हैं
प्रायोजित विज्ञापनों के लिए
हर वक्तव्य के पीछे
अघोषित रणकौशल

युद्धकला में पारंगत संवाद
सिर्फ चीखें सन्नाटा तोड़तीं
माहौल गरमाता धमाकों से

तभी शुरु हो जाती मठभेड़
एक्शन बहुत जरुरी है
उसमें जरुरी है स्पेशल इफेक्ट
जिंदगी चाहे जितनी बेरंग हो
सेल्युलाइड रंगीन होना चाहिए

संवाद हो या नहीं
सचमुच कोई फर्क नहीं पड़ता

दो

लोकताक किनारे धान खेत यह
देखो,कितनी बड़ी झील है

समुंदर जैसे विस्तार में असंख्य टापू
हर दीवार पर पोस्टर है यहां

लाइहरोबा उत्सव के विलंबित लय में
संवाद का क्या प्रयोजन,सखी

वहां सारे लोग वैष्णव हैं
आम्रपाली! लाइट! साउंड! एक्शन!

झील में तैरतीं नावें असंख्य
तीर को छूते मछुआरों के जाल
कितने तो कमल खिले हैं

पास ही मोइरांग छावनी
सांझ का अंधियारा ढलने दो
दूर दराज में गोलियां चलने दो

फौजे रोक लेंगी कदम कदम

हैलमेट नहीं था,उन्होंने गोलियों से भून डाला
हमने सारे गांवगांव फूक दिये
जो मिला ,उसे गोलियों से छलनी कर दी
कितने बच्चे थे, नहीं मालूम

सुंदरियों को मार कर फायदा क्या
यह संवाद फिल्मी नहीं है
निर्देशक ने साफ कहा था-
लोककथा में संवाद नहीं चाहिए

सिर्फ सेल्युलाइड कोबोलने दो
संकीर्तन जारी है- पांच शतक बीते
महाप्रभु चैतन्य के आविर्भाव उपरांत

देखो,घाटी में कितने फूल खिले हैं
आम्रपाली,फैशन का तकाजा है
थोड़ा एक्सपोजर होने दो

कैमरा चढ़ रहा है पहाड़
आहिस्ते आहिस्ते, सांसें तेज

हवाएं बतियाती हैं यहां
यहां किसी टापू में कहीं
नहीं बसते कबूई नगा।

वे तैरना जानते हैं
और नाचते हैकबूई नगा डांस

तितलियों को पंख फैलाते देखा है
पंखों की उन्मुक्त छंदबद्ध उड़ान
स्थानांतरित नगा कन्याओं की देह में

उन्हें मुस्कुराते हुए देखो
भूल जाओ कि नेताजी की प्रतिमा
को चारों तरफरेत के बोरों से
कर दी है उन्होंने किलाबंदी

टूटा हुआ रसधागा जोड़कर
प्रेम उन्मत्त पाखंबा देखो,
नाच रहा धान के खेतों में
आम्रपाली, मुड़ मुड़कर न देखो

थांगता के प्रेम काव्य में क्यों
चाहिए संवाद कोई?

युद्धविराम बार बार टूटता
फिर फिर घात लगाकर हमले
अपहरण,फिरौती की मांग
फिर भी संवाद?

चारों तरफ सैनिक जमावड़ा
उड़ान किंतु सही समय पर
तोपों, मशीनगनों,कार्बाइनों
और फौजी गाड़ियों को मत देखो

आम्रपाली, शाट तैयार है
मेक्प पर ध्यान दो
कितनी तो सुंदर लगती हो तुम

फौजी हस्तक्षेप हो
जब समूचा परिवेश
तब सेल्युलाइड पर
प्रेम को मुखर होने दो

तीन

सत्यनारायम की कथा चल रही है अंदर
बाहर अहाते में स्मृति स्मारक
शाम ढलने लगी है
घिरने लगा है अंधियारा

छतों पर किलेबंदी
मोर्चाबंद तमाम दीवारें
पोस्टर सजीव हैं सारे

आग दीख नहीं रही कहीं
आंच सुलग रही है
भीतर ही भीतर



दहशत में वर्दियां तमाम
मशीनगनें, कार्बाइन मुश्तैद
बारुदी गंध है स्मृतियों में

हंसकर अफसर ने कहा
इंफाल बहुत दूर है
कोई अखबारवाल नहीं है
टीवी चैनलवाले लापता
हमेन उनके गांव फूक दिये
खबर नहीं हुई कहीं

उग्रवाद से निपटना है
तो सख्ती बरतनी होगी
बारुदी सुरंगों पर बैठे हैं

एहतियात बरतनी होगी
पहली रेजीमेंट हटा दी गयी
सामूहिक बलात्कार के बाद

खबर का खुलासा नहीं हुआ
ळेकिन उनके जवाबी कार्रवाई में
नुकसान हुआ भारी

तलाशी और छापेमारी में
थोड़ी ज्यादती हो जाती है

इतनी सुंदर कन्याएं हैं यहां
मन तो बहक जाता है
घर से इतनी दूर इतनी दूर

लीजिये, हनुमान जी की कृपा है
सत्यनारायण का प्रसाद है

पूर्वोत्तर में ऐसे आना
फिर जान जोखिम में डालना
एकदम मुफ्त सौदा है क्या?

हमारे कमांडो खेत रहे
और हम बदला न लें?

हमारे जख्म चीखते रहे
और हम उन्हें चैन से सोने दें?

कुमुक पहुंचते न पहुंचते
सारे के सारे फरार छापेमार
इसी को गुरिल्ला युद्ध कहते हैं

बाकी बचे गांववाले
गांव को तो फूंक दिया
लोग कहां गये, इसकी क्या
फिक्र करें, साहब?

चार

गांव के बीचोंबीच पहाड़ी पर लोकेशन
कोहिमा सिर्फ कुछपहाड़ियों के पार
आगामी रणहुंकार गूंजते घाटियों में

हर गांव एक निषिद्ध देस- चीन की
असंख्य प्राचीरें अलंघ्य ये पहाड़

गृहद्वार पर सज्जित नरमुंड काठ के
दरवाजे के ऊपर एक छोर से दूसरे छोर तलक

भैंसो और सांडों केसिर पंक्तिबद्ध
रात गहराती,गहराती रात
ट्राली पर घूमता कैमरा

फोकस बनाने में लगे रज्जाक,शुभ्रा
चारोंतरफ मोनोलिथ की
तेज ठंडी सांसे
और हवाएं काटती हुई...

नगा कुत्ता खाते हैं और
हिरोइन का कुत्ता गायब?

क्या करेगा निर्देशक

धुंध सी घटाएं घेरतीं
चारों तरफ से..

ईस्टर कीप्रार्थना कब  हो गयी खत्म
गिरजाघर में, मोमबत्तियां
शायद अभी जल रही हों

दूर कहीं अरण्य में बांसवन में
गुरिल्ला युद्धाभ्यास



चूड़ियां खनकती नहीं उन हाथों में
जिनमें सधे हुए राकेट लांचर
नगा लड़कियों के रंगीन
ग्राम परिधान कहां
जहां जलती है
विद्रोह की आग



गणतंत्र परेड इन पहाड़ों में कहां?
फिल्म में नाचती गाती
जो सुंदर  कन्याएं
उन्हींके हाथों में

सज्जित मशीनगन,कार्बाइन

बारुदी सुरंगें कितनी दफा
उड़ातीं गाड़ियां
कोहिमा और
इंपाल के मध्य

असम राइफल्स काअभियान
जारी है सिपाही विद्रोह के बाद से

यकीनन,पर सैन्यअभियान
का इतिहास सुप्राचीन



कोहिमा,इंपाल,ऐजल,आगरतला,
शिलांग और गुवाहाटी तक फैले
समूचा पहाड़
बारुदी सुरंगों पर खड़ा
प्रतीक्षारत
महाविस्फोट के लिए

शताब्दियां बीत गयीं
सैन्य अभियान थमें नहीं
नरमुंड कतारबद्ध
और कबंध भी कतारबद्ध

रक्ताक्त ब्रह्मपुत्र

कहां है संवाद?




(अक्षर पर्व, उत्सव अंक 2004 में प्रकाशित)








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