चक्रव्यूह से सुरक्षित मौत शायद कोई दूसरी नहीं हैं।
पलाश विश्वास
हम लोग सत्ता के वर्ग वर्ण अस्मिता चक्रव्यूह में फंसे अलग अलग द्वीपों में वीरगति पाने को अभिशप्त लोग हैं।मीडिया को जो हाल है,वह जगजाहिर है।सिर्फ विज्ञापन राजस्व का खेल है।जितना दावा है,न उतने पाठक हैं और न उतने प्रसार।मेरा यह बयान हवा हवाई नहीं है।
हम पांचवे स्तंभ के बारे में गंभीर हैं और हमारे पास निश्चित योजना है कि जनपक्षधरता के मंच से हम जनसुनवाई के लिए इस पूरे महादेश की जनता तक पहुंच सकते हैं और कारपोरेट तिलिस्म की धज्जियां बिखेर सकते हैं।
दूसरी तरफ,फासिज्म का राजकाज भारत तक सीमाबद्ध नहीं है और हमले का अगला निशाना शैतानी ग्लोबल आर्डर है,जहां भगवा फहराने की पीरी तैयारी का नाम बाबी जिंदल है।
समझ लीजिये कि हालात कितने संगीन हैं।
भाजपा के बदले कांग्रेस और कांग्रेस के बदले भाजपा के रंगभेदी वर्गीयशासन के खिलाफ लामबंदी फौरी जरुरत है,बाकी लफ्पाजी मौकापरस्त है।
अंग्रेजी राज वापस आया है और रंगभेद पूरजोर है।
अंग्रेजी जमाने की पुरानी बोतलों को नई बोतल का मेकिंग इन है और सारे कायदे कानून बदले जा रहे हैं।
श्रमकानून समेत दूसरे कानून जो बदल रहे हैं,उनसे कहीं ज्यादा तानाशाह तैयारी यह है कि बंद,हड़ताल और आंदोलन प्रतिबंधित कर दिया जाये।
जब सड़कों पर उतरना मना होगा,जब धरना प्रदर्शन की भी इजाजत नहीं होगी,ऐसे हालात में पंफलेट बुलेटिनों के जरिये सामाजिक सक्रियता के मोर्चे से हम चुप्पियां तोड़ने का प्लान कर रहे हैं विकल्प मीडिया के जरिये।
हस्तक्षेप की अपील हमने आपके अलावा संभावित मददगार मित्रों और साथियों को भेजी है उसमें सुधार के वास्ते ताकि उसे जल्द से जल्द जारी कर दिया जाये।हम कायदे से दुनियाभर से आ रहे फीडबैक को अपडेट नहीं कर पा रहे हैं।
सर्वर जवाब दे रहा है।पीसी हैंग हो रहा है।संसाधन नहीं हैं।मददगार हाथ भी नहीं हैं।
हम कोई भीख नहीं मांग रहे हैं।समयांतर और तीसरी दुनिया के जिंदा रखने के लिए भी हम आजीवन सदस्यता की पेशकश करते रहे हैं।मजदूर बिगुल भी इसीतरह बज रहा है।हम सिर्फ सदस्यता अभियान में आपकी मदद चाहते हैं।अनुदान वगैरह से घर भरने और राजमहल सजाने की हमारी योजना नहीं है।
बाकी जो सूचनाें हम दर्ज करते हैं,उन्हें सीधे जड़ोंतक जनता के बीच पहुंचाने और फिर वहां से सूचनातंत्र जनपक्षधरता बनाने का काम आपका ही है।लगता है कि यह कार्यभार किसी को मजूग नहीं है।
तो फिर फासिज्म पासिज्म और आपातकाल आपातकाल क्यों चीख रहे हैं लोग,समझ से परे हैं।
जैसो बहुतों के दिन फिरे हैं,मर्यादा पुरुषोत्तम सीता वनवास अवतार की शरण में जायें और मंकी बातें सुनते हुए चौसठ आसन आजमायें।अच्छे दिनों का रसायन यही है।ईश्वरचरणे आत्मसमर्पण ही धर्म हैं।
जो हम नास्तिक हैं,यह लड़ाई तो इस महाभारत अखंड के खिलाफ सिर्फ हमारी है और हमारी है और उनके जुल्मोसितम से लेकर पैखाना तक हमारे लिए।नागौर,खैरांजलि,बोलांगीर ,मध्य बिहार और मध्यभारत,आदिवासी भूगोल में सारी रक्तनदियों में हमारा खून।आप फिक्र न करें।
सांढ़ों को वधिया करना हम जाने हैं।
मैं हैरत में हूं कि हमारे सबसे प्रतिबद्ध मित्र हमपर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।दरअसल वे क्या कर सकते हैं,कैसे एटम बम फोड़ सकते हैं,इसका कोई अंदाजा उन्हें भी नहीं है।
हमें अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
आपकी प्रतिक्रिया भी नहीं।
चक्रव्यूह से सुरक्षित मौत शायद कोई दूसरी नहीं हैं।
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