रवींद्र का दलित विमर्श-19
लालन फकीर का मनेर मानुष गीतांजलि का प्राणेर मानुष।
ज्यों-की -त्यों धरि दीन्हीं चदरिया।।
संत कबीर को समझे तो रवींद्र और लालन फकीर को भी समझ लेंगे।
पलाश विश्वास
बौद्धमय बंगाल का अवसान ग्यारहवीं शताब्दी में हुआ।आठवीं सदी से लेकर ग्यारहवीं सदी तक बंगाल में बौद्ध पाल राजाओं का शासन रहा जिसका ग्यारहवीं सदी में सेन वंश के अभ्युत्थान के साथ अंत हुआ।सेन वंश के राजा बल्लाल सेन के शासनकाल में बंगाल में ब्राह्मण धर्म का प्रचलन हुआ लेकिन सेन वंश के शासन का अंत तेरहवीं सदी में हो गया।बंगाल में पठान सुल्तानों,हिंदू राजाओं और बारह भुइयां के साथ शूद्र और आदिवासी राजाओं का राजकाज अलग अलग क्षेत्र में चला।
बंगाल प्राचीन काल में आर्यों के लिए निषिद्ध रहा है और इसे असुरों का देश माना गया है।
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The history of Bengal includes modern-day Bangladesh and West Bengal in the eastern part of the Indian subcontinent, at the apex of the Bay of Bengal and dominated by the fertile Ganges delta. The advancement of civilization in Bengaldates back four millennia.[1] The region was known to the ancient Greeks and Romans as Gangaridai. The Ganges and the Brahmaputra rivers act as a geographic marker of the region, but also connect it to the broader Indian subcontinent.[2] Bengal, at times, has played an important role in the history of the Indian subcontinet.
Etymology
The exact origin of the word Bangla is unknown, though it is believed to be derived from the Dravidian-speaking tribe Bang/Banga that settled in the area around the year 1000 BCE.[12][13] Other accounts speculate that the name is derived from Venga (Bôngo), which came from the Austric word "Bonga" meaning the Sun-god. According to the Mahabharata, the Puranas and the Harivamsha, Vanga was one of the adopted sons of King Vali who founded the Vanga Kingdom. It was either under Magadh or under Kalinga Rules except few years under Pals.The Muslim accounts refer that "Bong", a son of Hind (son of Hām who was a son of Prophet Noah/Nooh) colonised the area for the first time.[14] The earliest reference to "Vangala" (Bôngal) has been traced in the Nesari plates (805 CE) of Rashtrakuta Govinda III which speak of Dharmapala as the king of Vangala. The records of Rajendra Chola I of the Chola dynasty, who invaded Bengal in the 11th century, speak of Govindachandra as the ruler of Vangaladesa.[15][16][17] Shams-ud-din Ilyas Shah took the title "Shah-e-Bangla" and united the whole region under one government.
Some references indicate that the primitive people in Bengal were different in ethnicity and culture from the Vedic people beyond the boundary of Aryavarta and who were classed as "Dasyus". The Bhagavata Purana classes them as sinful people while Dharmasutra of Baudhayana prescribes expiatory rites after a journey among the Pundras and Vangas. Mahabharataspeaks of Paundraka Vasudeva who was lord of the Pundras and who allied himself with Jarasandha against Krishna. The Mahabharata also speaks of Bengali kings called Chitrasena and Sanudrasena who were defeated by Bhima and Kalidasamentions Raghu defeating a coalition of Vanga kings.
अनार्य असुरों के बंगाल में सेन वंश के राजकाज के दौरान पहले शैब और शाक्तधर्म का प्रचलन रहा है,जो वैदिकी सभ्यता के दायरे से बाहर अनार्य संस्कृति हैं।सेन वंश के अंतिम राजा लक्ष्मण सेन के सभाकवि जयदेव के गीतगोविंदम् से बंगाल में बाउल और वैष्णव धर्म का प्रचलन हुआ जो ब्राह्मण धर्म और पुरोहित तंत्र के साथ साथ दैवी सत्ता के खिलाफ हैं।
तेरहवीं सदी से इस्लामी राजकाज और सेन वंश के शासन के दौरान बड़े पैमाने पर बौद्धों और अनार्यों असुरों के हिंदुत्वकरण और हिंदुत्वकरण के तहत जाति व्यवस्था को अस्वीकार करने के कारण इस्लाम में धर्मांतरण की वजह से बंगाल में साझा संस्कृति का जन्म हो गया।यह साझा संस्कृति वैष्णव बाउल,बौद्ध और इस्लाम के सूफी पंथ के मुताबिक मनुष्यता का धर्म है,जो सामंती और दैवी सत्ताओं को सिरे से नामंजूर करता है।
रवींद्र साहित्य और दर्शन में इसी साझा बाउल फकीर संस्कृति का सबसे ज्यादा असर है,जिसके तहत आध्यात्म का अर्थ मनुष्य देह में बसी अंतरात्मा की खोज के तहत मनुष्यता के उत्कर्ष का अनुसंधान है.जो धर्म सत्ता और राजसत्ता दोनों के विरुद्ध है।प्राचीन काल से बंगाल में अनार्यों,असुरों के जनपद रहे हैं।
फिर अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भी आदिवासी और शूद्र शासक निरंकुश सत्ता की राष्ट्रव्यवस्था के खिलाफ लड़ते रहे हैं।इसलिए राजसत्ता का विरोध इस आध्यात्म के अंतर्गत है।
इस्लामी शासन के दौरान बाकी भारत में भी राजसत्ता और दैवी सत्ता दोनों के विरुद्ध हिंदू मुस्लिम एकता की साझा विरासत के तहत संतों और सूफी फकीरों का आंदोलन जारी रहा है।बंगाल में इन सूफी फकीरों का असर बहुजन संस्कृति पर सबसे ज्यादा रहा है,जिसमें बौद्ध,वैष्णव,बाउल और सूफी धर्म समाहित है।
इस परंपरा के सबसे बड़े बाउल फकीर लालन फकीर रहे हैं।
लालन फकीर लालन साँई के नाम से मशहूर हैं।इसे लेकर विवाद है कि रवींद्रनाथ की उनसे कभी मुलाकात हुई या नहीं हुई।पूर्वी बंगाल में टैगोर परिवार की जमींदारी सिलाईदह में थी,जहां युवा रवींद्रनाथ जमींदारी के कामकाज के सिलिसिले में जाया करते थे।रवींद्र की युवावस्था में ही लालन फकीर का निधन हो गया और तब उनकी आयु 116 साल के करीब बतायी जाती है।इसलिए संभावना यही है कि सिलाईदह से नजदीक लालन का अखाड़ा होने के बावजूद इन दोनों की शायद मुलाकात नहीं हुई होगी।लेकिन लालन के अनुयायियों के संपर्क में थे रवींद्र।लालन ने खुद अपने गीतों को लिपिबद्ध नहीं किया,उनके अनुयायियों ने उनके गीतों को संकलित किया और उन्हीं के मार्फत वे गीत रवींद्र तक पहुंचे।जिनके बारे में रवींद्र ने बार बार चर्चा की है।
लालन फकीर मानवतावादी थे और जाति धर्म नहीं मानते थे।मनुष्यता का धर्म उनका धर्म था और वे अपने अतःस्थल में ही ईश्वर का अनुसंधान करते थे और यही अनुसंधान उऩकी साधना थी।उनका गीत हैः
'ডানে বেদ, বামে কোরান,
মাঝখানে ফকিরের বয়ান,
যার হবে সেই দিব্যজ্ঞান
সেহি দেখতে পায় ।'
(दाहिने वेद,बाँए कुरान,
बीच में फकीर का बयान
जिसको होगा वह दिव्यज्ञान
वही देख सके हैं)
यह भारत की सूफी और संत परंपरा की साझा विरासत है।
रवींद्र रचना में इसी दिव्यज्ञान की झलक हैः
'সীমার মাঝে, অসীম, তুমি
বাঁজাও আপন সুর।
আমার মধ্যে তোমার প্রকাশ
তাই এত মধুর।
কত বর্ণে কত গন্ধে
কত গানে কত ছন্দে,
অরূপ, তোমার রূপের লীলায়
জাগে হৃদয়পুর।'
(सीमा के मध्य,असीम,तुम्हीं
बजाओ अपना सुर
मेरे बीतर तुम्हारी अभिव्यक्ति
इसीलिए इतना मधुर।
कितने रंगों में,कितने गंध में
कितने गीतों में कितने छंद में
अरुप तुम्हारे रुप की लीला में
जागे ह्रदयपुर)
ब्रह्म समाज के निराकार ईश्वर हिंदू मुस्लिम संत सूफी परंपरा में फिर वही निराकार हैं,जिसे अपने अंतःस्थल में देखते हैं लालन फकीर और रवींद्रनाथ दोनों।लालन फकीर की कोई धार्मिक पहचान उसीतरह नहीं है,जैसे संत कबीर की नहीं थी।संत कबीर का ईश्वर भी निराकार था।
कबीर का धर्म भी मनुष्यता का धर्म है।संत रविदास के लिए कठौती में ही गंगा है।सूफी संतों की वाणी में समानता और न्याय की गूंज अनुगूंज है और वे मनुष्य में ही ईश्वर को देखते हैं।
रवींद्रनाथ सदाचार को भारत की सभ्यता मानते थे और सभ्यता केइतिहास में उन्होंने पश्चिमी सभ्यता के प्रतिमानों को खारिज करते हुए सदाचार की भारतीय संस्कृति को ही भारत की सभ्यता बताते हैं।भारत में संत और सूफी आंदोलन में सदाचार ही मनुष्यता की उत्कृष्टता की कसौटी है।लालन फकीर और संत कबीर दास सदाचार का आदर्श बताते हैं तो यही सदाचार फिर गांधी का दर्शन है।
जाति धर्म के भेदभाव के खिलाफ लालन फकीर और संत कबीर दोनों तीखे प्रहार करते हैं तो अस्पृश्यता के नस्ली रंगभेद की विषमता को भारत की मुख्य समस्या मानने वाले रवींद्र नाथ जल को जीवन का आधार मानकर अस्पृश्यता के खिलाफ जलदान के अधिकार को लेकर चंडालिका लिखते हैं।
बंगाल के बाउल धर्म की गूंज कबीर दास की रचना में हैः
झीनी -झीनी बीनी चदरिया।
काहे कै ताना,काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया।।
इंगला पिंगला ताना भरनी,
सुषमन-तार से बीनी चदरिया।।
आठकंवल दल चरखा डोलै,
पांच तत्त गुन तीनि चदरिया।।
साँई को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक के बीनी चदरिया।।
सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी,
ओढ़ि के मैली कीन्हीं चदरिया।।
दास कबीर जतन सौं ओढ़ी,
ज्यों-की -त्यों धरि दीन्हीं चदरिया।।
रवींद्र नाथ पर संत कबीर का भी गहरा असर है,जिसका हम अलग से चर्चा करेंगे।सफी बाउल संतों की तरह कबीर पर बी बौद्ध दर्शन का असर है,इसकी भी आगे चर्चा करेंगे।
रवींद्र लालन प्रसंग में कबीर दास के संदर्भ बाउल संत परंपरा की साझा विरासत को समझने में हिंदी पाठकों के लिए मददगार साबित हो सकती है।
सूफी परंपरा के बारे में कमोबेश जानकारी और समझ होने के बावजूद हिंदी के आम पाठकों को बंगाल के बाउल फकीरों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
लालन फकीर के देहत्तव,उनकी धर्मनिरपेक्षता,समता और न्याय की उनकी पक्षधरता और समंतवाद के किलाप उनके प्रतिरोध,जाति धर्म के आधार पर भेदभाव और पुरोहित मुल्ला तंत्र पर कड़े प्रहार,मनुष्यता के धर्म कबीर और नानक के साहित्य और बाकी भारत की साझा विरासत के मुताबिक हैं।
कबीर दास की रचनाओं से आम पाठक काफी हद तक परिचित हैं,इसलिए हम रवींद्र लालन प्रसंग में कबीर का उल्लेख कर रहे हैं।
आप कबीर को समझते हैं तो लालन फकीर को समझने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।लालन फकीर के दर्शन को समाने लाने में रवींद्रनाथ ने ही पहल की थी।लालन फकीर का एकमात्र चित्र जो उपलब्ध है,वह ज्योतिंद्रनाथ टैगोर ने बनायी है,जिसके आधार पर रवींद्र और लालन की मुलाकात की किंवदंती प्रचलित हो गयी।लालन फकीर के बीस गीतों का प्रकाशन रवींद्रनाथ ने 1905 में प्रवासी पत्रिका में कराया।इसे साहित्य की अमूल्य संपदा बतौर प्रकाशित किया गया।
বিশ্বকবি রবীন্দ্রনাথের নিজের ভাষায় - 'আমার লেখা যারা পড়েছেন, তাঁরা জানেন বাউল পদাবলীর প্রতি আমার অনুরাগ আমি অনেক লেখায় প্রকাশ করেছি। শিলাইদহে যখন ছিলাম, বাউল দলের সঙ্গে আমার সর্বদাই দেখা সাক্ষাৎ ও আলাপ- আলোচনা হতো। আমার অনেক গানে আমি বহু সুর গ্রহন করেছি এবং অনেক গানে অন্য রাগরাগিনীর সাথে আমার জ্ঞাত বা অজ্ঞাতসারে বাউল সুরের মিল ঘটেছে। এর থেকে বোঝা যাবে, বাউলের সুর ও বানী কোন এক সময় আমার মনের মধ্যে সহজ হয়ে মিশে গেছে। আমার মনে আছে, তখন আমার নবীন বয়স- শিলাইদহ (কুস্টিয়া) অঞ্চলের এক বাউল একতারা হাতে বাজিয়ে গেয়েছিল -
'কোথায় পাবো তাঁরে - আমার মনের মানুষ যেঁরে।
হারায়ে সেই মানুষে- তাঁর উদ্দেশে
দেশ বিদেশে বেড়াই ঘুরে ।'
(এই গানটি গেয়েছিল-ফকির লালন শাহের ভাবশিষ্য গগন হরকরা। যার আসল নাম বাউল গগনচন্দ্র দাস।)
रवींद्रनाथ ने लिखा हैः मेरा लिखा जिन्होंने पढ़ा है,वे जानते हैं कि बाउस पदावली से मुझे किस हद तक प्रेम है,जनिके बारे में मैंने अपने अनेक लेखों में लिखा है।मैं जब सिलाईदह में था,बाउलों के दल के साथ मेरी हमेशा मुलाकात बातचीत हुआ करती थी।मैंने अपने अनेक गीतों में उनके अनेक सुरों को अपनाया है और दूसरे अनेक गीतों में दूसरी राग रागिनियों के सात मेरे जाने अनजाने में बाउल सुर मिल गया है।इसीसे समझा जा सकता है कि बाउल सुर और वाणी मेरे मन में कितनी सहजता के साथ एकाकार हैं।मुझे याद है कि जब मेरी उम्र कम थी,सिलाईदह (कुष्टिया) इलाके में एक बाउल ने हाथों में इकतारा बजाते हुए गाया था-
कहां मिलेगा वह-मेरे अंतःस्थल का मानुष जो
उस मानुष को खोकर-उसीकी खोज में
देश विदेश भटकूं मैं।
लालन फकीर के इस गीत को गा रहे थे उन्ही के अनुयायी गगन हरकरा।
लालन फकीर का मनेर मानुष गीतांजलि का प्राणेर मानुष है।
हम लालन फकीर और खास तौर पर गीतांजलि पर चर्चा जारी रखेंगे।फिलहाल रवींद्र संगीत पर आधिकारिक गीतवितान डाट काम से हम रवींद्र के उन गीतों की सूची दे रहे हैं,जिनमें बाउल प्रभाव है।गौरतलब है कि रवींद्र के सारे गीत गीतवितान शीर्षक से संकलित हैं।
Tagore songs composed in Baul style
List of related Tagore songs
The following Tagore songs which are correspond to Baul style. These songs contain ideas with double meaning and the style of the tune pertaining to a homeless minstrel. They are fit for singing with modest or even without accompaniment. Rabindranath had combined this style with other formats of Hindustani classical music in order to suit his compositions.
Baul-Sur
Agune Holo Agunmoy
Akash Hote Khoslo Tara
Akashe Dui Hate Prem Bilay
Amader Bhoy Kahare
Amader Khepiye Beray
Amader Pakbe Na Chul
Amar Mon Bole Chai Chai
Amar Mon Jakhon Jagli Na Re
Amar Naiba Holo Pare
Amar Pothe Pothe Pathor
Amar Praner Manus Ache
Amar Sonar Bangla Ami
Amare Paray Paray
Ami Marer Sagor Pari
Amra Bosbo Tomar Sone
Amra Chas Kori Anande
Bachan Bachi Maren Mori
Bajre Tomar Baje Banshi
Bare Bare Peyechi
Bhenge Mor Ghorer Chabi
Bhule Jai Theke Theke
Bolo Bolo Bondhu Bolo
Byartho Praner Aborjona
Chi Chi Chokher
Choli Go Choli
Dao Hey Amar
Dukkha Jodi Na
E Din Aji Kon
Ebar Dukkho Amar
Ei Ekla Moder
Ei Shraboner Buker
Ei To Bhalo Legechilo
Gan Amar Jay Bhese
Ganer Bhelay Bela
Ghore Mukh Molin
Gram Chara Oi Rangamatir
Hay Hemantalaksmi
Hridoy Amar Oi Bujhi
Ja Chilo Kalo
Jakhon Porbe Na
Jakhon Tomay Aghat
Jani Jani Tomar
Jani Nai Go
Jatri Ami Ore
Je Ami Oi Bhese
Je Tomay Chare
Je Tore Pagol Bole
Jethay Tomar Lut
Jhnakra Chuler Meyer Kotha
Jodi Tor Bhabna
Jodi Tor Dak Shune
Khyapa Tui Achis
Kon Alote Praner Pradip
Kothin Loha Kothin
Ma Ki Tui Porer
Mati Toder Dak Diyeche
Matir Prodip Khani
Megher Kole Kole Jay
Moder Kichu Nai Re
Moner Modhye Nirobodhi
Na Re Na Re Hobe
Nirabe Thakis Sokhi
O Amar Mon Jakhan
O Bhai Kanai
O Dekha Diye Je Chole Gelo
O Jaler Rani
O Nithur Aro Ki Ban
Oder Kathay Dhnada Lage
Ogo Tomra Sabai Bhalo
Oi Asontaler Matir Pore
Or Maner E Bandh
Ore Agun Amar Bhai
Ore Jhor Neme Ay
Ore Tora Nei Ba Katha Bolli
Pagla Hawar Badoldine
Paye Pori Shono Bhai
Phagun Haway Haway
Phaguner Shuru Hotei
Phire Chal Matir Tane
Pothik Megher Dol Jote
Roilo Bole Rakhle Kare
Sabai Jare Sab Diteche
Se Ki Bhabe Gopon Robe
Sedine Apad Amar Jabe
Sharote Aj Kon Atithi
Sokhi Tora Dekhe Ja Ebar
Tar Anto Nai Go
Tomar Surer Dhara Jhare
Tor Apon Jone Charbe
Tor Shikol Amay Bikol
Tora Nei Ba Kotha Bolli
Tumi Bahir Theke Dile Bisam
Tumi Ebar Amay Laho
Tumi Je Surer Agun
Tumi Khushi Thako
Bahar-Baul
Basante Ki Shudhu
Ore Ay Re Tabe Mat
Behag-Baul
Akash Jure Shuninu Oi
Amay Dao Go Bole
Basanta Tor Shesh
Elem Natun Deshe
Jini Sakol Kajer
Mon Re Ore Mon
Or Bhab Dekhe Je Pay
Tora Je Ja Bolis Bhai
Behag-Khambaj-Baul
O Amar Chander Alo
Shiter Hawar Laglo Nachon
Dujone Dekha Holo
Bhairavi-Baul
Amay Bhulte Dite Naiko
Apnake Ei Jana Amar Phurabe
Ay Re Mora Phasal Kati
Biswajora Phad Petecho
Biswasathe Joge Jethay
Eto Alo Jaliyecho
Hey Nobina
Keno Re Ei Duwartuku
Lakshmi Jakhon Asbe
Oder Sathe Melao Jara
Pran Chay Chokshu Na Chay
Tomar Mohon Rupe Ke
Tui Phele Esechis
Bibhas-Baul
Aj Dhaner Khete Roudro
Aji Bangladesher Hridoy
Aji Pronomi Tomare
Aji Sharototapone Probhat
Ami Bhoy Korbo Na Bhoy
Ami Kan Pete Roi
E Bela Dak Poreche
Ei Je Tomar Prem
Ei Kothata Dhore
Ei To Tomar Prem Ogo
Ek Hate Or Kripan
Megher Kole Rod Heseche
Nayan Mele Dekhi Amay
Nishidin Bharasa Rakhis
Ogo Bhagyodebi Pitamohi
Ore Grihobasi Khol Dar
Pous Toder Dak Diyeche
Shrabon Tumi Batase Kar
Chhayanat-Baul
Amar Nayan Bhulano Ele
Desh-Baul
Amay Bandhbe Jodi Kajer
Aro Aro Probhu
Oi Je Jhorero Megher Kole
GourSarang-Baul
Badol Baul Bajay Re
Hameer-Baul
Basante Phul Gathlo
Iman-Baul
Akash Hote Akash Pothe
Ek Din Chine
Nityo Tomar Je Phul
Noy Noy E Modhur Khela
Sakal Snaje Dhay Je Ora
Iman-Kalingara-Baul
Poth Ekhono Sesh Holo Na
Jhijhit-Baul
Bajramanik Diye Gnatha
Sab Dibi Ke Sab Dibi Pay
Jogia-Baul
Ore Jete Habe Ar Deri
Kalingara-Baul
Amare Dak Dilo Ke
Ami Tarei Khuje Berai
Diner Pore Din
Kanna Hasir Dol
Sahaj Habi Sahaj Habi
Khambaj-Baul
Amar Kontho Hote
Amar Shesh Paranir Kori
Ami Phirbo Na Re
Bhalo Manush Noi Re
Chokh Je Oder
Ganer Jhornatolai
Kon Khela Je Khelbo
Moder Jemon Khela Temni
Nayan Chere Gele Chole
O To Ar Phirbe Na
Ore Pothik Ore Premik
Phul Tulite Bhul Korechi
Tomari Nam Bolbo Nana Chole
Tumi Hothath Haway
Mishra Behag-Baul
Jibon Jakhon Chilo
Mishra Jhijhit-Baul
Ore Shikol Tomay Kole
Pancham-Baul
Apon Hote Bahir Hoye
Pilu-Baul
Ami Jabo Na Go Omni
Ami Tarei Jani
E Poth Geche Konkhane
Nahoy Tomar Ja Hoyeche
O Amar Desher Mati
Rangiye Diye Jao Jao Jao
Sab Kaje Hat Lagai
Se Je Moner Manush Keno
Pilu-Bhimpalasi-Baul
Apni Amar Konkhane
Pilu-Khambaj-Baul
Kon Bhiruke Bhoy
Tilak-Kamod-Baul
Amar Kontho Tare Dake
http://www.geetabitan.com/raag/light-classical-and-regional-forms/baul.html
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