Abhishek Srivastava
बनारस में 2012 में हेलमेट पहनना अनिवार्य किया गया था। कुछ लोगों ने इसके खिलाफ़ सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया। तर्क यह था कि हेलमेट लगे होने से पान थूकने में दिक्कत आती है। जैसे-जैसे तर्क ज़ोर पकड़ता गया, ट्रैफिक पुलिस की पकड़ कमज़ोर होती गई। आखिर में जनता की जीत हुई।
आज पता चला कि हेलमेट से अकेले बनारस में नहीं, गुजरात के राजकोट निवासियों को भी दिक्कत होती थी। बनारस में पान का तर्क था, लेकिन राजकोट के लोगों ने ऐसा कोई बहाना नहीं गिनवाया और सीधे हेलमेट पहनने से इनकार कर दिया। यह बात 2005 की है। कंपल्सरी हेलमेट लॉ तोड़ने के जुर्म में तीस लोग जेल गए। जब अदालत में पेश किया, तो लोगों ने गांधीजी की हिंद स्वराज से अपना बचाव किया। आखिरकार राजकोट की जनता की जीत हुई।
इस पुस्तक मेले की अब तक की मेरी इकलौती उपलब्धि यह किताब है: ''हेलमेट विरोधी आंदोलन''। दस रुपये की है और कुल 12 पन्ने हैं। जन मीडिया के स्टॉल से आप भी इसे ज़रूर खरीदिए और ऐसी मौलिक किताब छापने के लिए Anil Chamadia को एक बार धन्यवाद दीजिए।
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