साल भर पहले "अच्छे दिन" का सपना देखने वाले लोग आज मा. अटल बिहारी वाजपेयी की यह कविता गुनगुना रहें होंगे... =============== चौराहे पर लुटता चीर प्यादे से पिट गया वजीर चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ मैं? राह कौन सी जाऊँ मैं? . सपना जन्मा और मर गया मधु ऋतु में ही बाग झर गया तिनके टूटे हुये बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं? राह कौन सी जाऊँ मैं? . दो दिन मिले उधार में घाटों के व्यापार में क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं? राह कौन सी जाऊँ मैं ? By Dhananjay Aditya. facebook.com/adityasir Please Like / Share. |
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