काशी में मोदी: पहुँची वहीं पे ख़ाक जहाँ का ख़मीर था
Posted by Reyaz-ul-haque on 3/17/2014 10:53:00 AMकाशीनाथ सिंह नरेंद्र मोदी के मुकुट में सबसे ताजा पंख हैं. बीबीसी हिंदी से बात करते हुए सुनिए कि उन्होंने कितनी उम्मीद और हसरत से मोदी के बनारस से चुनाव लड़ने के फैसले की तारीफ की है. काशीनाथ सिंह बड़े शौक से प्रगतिशील लेखक कहलाते रहे हैं और काशी का अस्सी, अपना मोर्चा जैसी किताबों के लेखक हैं. कार्यक्रम में उनकी बातचीत सुनने के लिए 8.40वें मिनट पर जाइए. साथ में पढ़िए असद जैदी की टिप्पणी.
किस बात पर हैरानी और कैसी मायूसी! मेरी तो आधी से ज़्यादा उम्र यह सुनते हुए गुज़री है कि "अरे, ये नामवर जी को क्या हो गया है?"
हर कुछ महीने बाद, जब इनकी कोई नयी करतूत उजागर होती, कोई न कोई मित्र मिलने पर या फ़ोन करके पूछता : "यार तुमने सुना, ये नामवर सिंह…?" जैसे अंग्रेज़ लोग आपस में मिलते हैं तो मौसम का हाल पूछा करते हैं। अचरज करने वालों की इस दुनिया में कमी नहीं।
मेरा जवाब सार रूप में यह होता कि इन्हें कुछ नहीं हुआ है। ये ऐसे ही हैं, और हमेशा से ऐसे ही थे।
जैसा कि अक्सर होता है ऐसी विभूति का एक छोटा भाई भी होता है ताकि कहने की गुंजाइश रहे : "… छोटे मियाँ सुब्हानल्लाह!"
नामवर और काशीनाथ – इन सिंह बंधुओं के बीच 'हिंदी जाति' की कल्पनाशीलता का अंत हो गया लगता है।
रही बात बनारस के विकास की, तो सब प्रतिभागी इस शब्द के कूट अर्थ को जानते हैं। जिस तरह अमरीका दुनिया भर में 'लोकतंत्र' ला रहा है उसी तरह संघ परिवार और नरेन्द्र मोदी 'विकास' लाना चाहते हैं। यह हिंदुत्ववादी फ़ासीवाद, कॉरपोरेट लूट और मुस्लिम-द्वेष का ही दूसरा नाम है। काशीनाथ सिंह ऐसा ही विकास चाहते होंगे।
जहाँदार शाह का नाम इस दुनिया से पूरी तरह मिट गया होता अगर वह ये अमिट मिसरा न कह गए होते — "पहुँची वहीं पे ख़ाक जहाँ का ख़मीर था।"
Bahut hee sateek aur tatthyon per aadhaarit.-Sam Agrawal
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