व्यक्ति पुजेविरुध् बाबासाहेब
इस गुस्से का हम क्या करें कि पानी अब सर ऊपर है?
गुस्सा फिर भी आता है।
गुलामों के इस गुस्से का क्या कीजिये,वे जी भरकर गरिया कर फिर मौके बेमौके वोट वही हत्यारों की सत्ता के हक में ही डालेंगे और हमेशा अपने हक हकूक से बेदखल होते रहेंगे और उनकी औरतों का आखेट वैसे ही होता रहेगा जैसा हाल में ओड़ीशा के बोलांगीर में हुआ,जैसे हरियाणा में हुआ,जैसे खैरंजलि में हुआ,जैसे नागौर में हुआ,और हम समरसता का वंदेमातरम गाते रहेंगे ।
भारतमाता अब भी लालगोला के काली मंदिर में वैसे ही कैद है जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी के राज में थी।
फर्क इतना है कि वंदे मातरम गाने वाले ही अब ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक हैं।
पानी सर के ऊपर है।अब इस गुस्से का भी कुछ करो दोस्तों।
बाबासाहेब फिर पैदा नहीं होंगे।
देवमंडल के देवता फिर फिर अवतार हैं।
लेकिन गौतम बुद्ध फिर पैदा न होंगे।
बूतपरस्ती छोड़ो और इस गुलामी से आजादी के लिए जो बी संभव है ,करो।
पलाश विश्वास
Pulin1 Babu ki 14 vi punyatithi per shradhanjjali karyakram.
श्रीमन सुदत्त वानखेड़े लिहिलाः
व्यक्ति पुजेविरुध् बाबासाहेब
(आपल्या 55 व्या जन्मदिनी चेन्नई च्या जय भीम ला पथवलेल्या संदेशात)
डॉ बाबासाहेब म्हणतात , माझ्या 55 व्या वाढदिवसी तुम्ही प्रकाशित करणार असलेल्या तुमच्या विशेषंकासाठी मी संदेस पाठवावा असे आपण म्हटले आहे.राजकीय नेत्याला प्रेषिताच्या पातळीवर नेऊन बसवले जाते, ही भारतातील एक दुर्दैवी वस्तुस्थिति आहे.भारताच्या बाहेर लोक आपापल्या प्रेषितांचे वाढदिवस साजरे करतात.येथे भारतातच फ़क्त प्रेषिता बरोबर राजकरण्याचेही जन्मदिवस साजरे केले जातात.ही परिस्थिति केविलवाणीच म्हणावि लागेल.व्यक्तिश: मला माझा वाढदिवस साजरा केलेला आवडत नाही.मी इतका लोकशाहीवादी आहे,की व्यक्तिपूजा मला रुचनेच शक्य नाही.व्यक्तिपूजेला मी लोकशाहीचे विडंबन समजतो.नेत्यांची तशी पात्रता असेल तर,त्याच्याबदल कौतुक,प्रेम,सदभावना, आणि आदर चालेल.नेता आणि अनुयायी दोहोंसाठी एवढे पर्याप्त ठरावे पण नेत्याची पूजा मुळीच क्षम्य नाही.
इस गुस्से का हम आखिर क्या करें,समझना पहेली है।
फिलहाल गुस्से का सबब दिनेशपुर से पिताजी की 14 वीं पुण्यतिथि मनाये जाने की तस्वीरें और खबरें है।मुझे उनकी पुण्यतिथि याद नहीं रहती और न उन्हें मैं श्रद्धांजलि की रस्म अदायगी से भूलना चाहता हूं।
वे हमारी गुलामी की वारिस हैं।विरासत हैं।हमारी तकलीफों की आत्मा हैं वे और हमारी अंतहीन लड़ाई में उनकी कोई पुण्यतिथि हो नहीं सकती जैसे कि उनकी कोई जन्मतिथि नहीं होती।
इन तस्वीरों में जो कथा है,वह मैं समझ रहा हूं और भीतर ही भीतर दहक रहा हूं।
पिता की मूर्ति तो बनाकर बैठा दी गयी है लेकिन जनम मरण दिन के अलावा कोई उन्हें याद नहीं करता।साल भर कभी उनके हाथ तोड़ दिये जाते हैं तो कभी उनके पांव तोड़ दिये जाते हैं।
मूर्ति को कपड़ा लपेटकर रस्सियों से बांधकर श्रद्धांजलि की यह कौन सी रस्म अदायगी है,इस सोच सोचकर मन लेकिन दुर्वासा है।तपबल नहीं है,गनीमत है वरना न जाने किस किसको भस्म कर देता।
दर्सल पिता की यह मूर्ति इस देश में मूर्ति पूजा की असलियत है।
दरअसल गांधी और अंबेडकर समेत तमाम जो मूर्तियां हमने गढ़ ली हैं,वे सारी की सारी इसी तरह रस्सियों से बंधी हैं।कपड़ा लिपटा हो या न हो।हम ये मूर्तियां बनाते हैं तोड़ने के लिए ही।जब तक तोड़ते नहीं हैं, बांधकर रखते हैं।ताकि वे हमारे काम आयें।
बसंतीपुर के चेहरे मेरे भाई पद्दोलोचन,पड़ोसी निताई दास और मेरे सबसे पुराने दोस्त टेक्का के अलावा इस तस्वीर में एको मेरी पहचान का नहीं है।
जब बसंतीपुर वालों को ही पुलिनबाबू याद नहीं हैं तो बाकी तराईवाले क्यों भला याद करें जबकि फनफनाता हुआ हिंदुत्व पल छिन पल छिन उस मूर्ति को खंडित कर रहा है क्योंकि हिंदू साम्राज्यवाद के लिए पुलिनबाबू काम की कोई चीज नहीं है और बाकी राजनीति ने उनका जितना इस्तेमाल करना था,उतना कर लिया है।
इसलिए हम बार बार अनुरोध करते हैं कि बहुत कर लिया याद,जब उनकी लड़ाई से किसी को कोई मतलब नहीं तो इस बूतपरस्ती का क्या मतलब।वैसे ही हर मूर्ति विसर्जित होने के लिए बनती है,इसे भी विसर्जित कर ही दें,तो बेहतर है।
मसला लेकिन पिता की यह खंडित विखंडित रस्सियों से बंधी मूर्ति नहीं है।वे हमारे लिए चाहे जितने खास हों,आखिरकार वे थे तो एक अदद आम आदमी।
यकीन मानिये कि जितनी दुर्गति मेरे पिता की मूर्ति की है,उससे कहीं ज्यादा दुर्गति गांधी और अंबेडकर की है।
भले ही उन्हें श्रद्दांजलि देने वालों का कुंभमेला लगता हो मौके बेमौके पर,मुक्तबाजार में उनका किसी भी तरह के इस्तेमाल की छूट है और उनके खरीददार खूब हैं।
गनीमत हैं कि पुलिनबाबू के खरीददार कोई नहीं है और आजीवन वंचित वर्ग के हक हकूक के लिए मरते खपते पुलिनबाबू का हिंदुत्व के एजंडे के लिए कोई इस्तेमाल हो नहीं रहा है।
जहां तक गुस्से की बात है,वह हमारे वजूद का हिस्सा है क्योंकि जैसे मेरे पिता पुलिनबाबू मरने के चौदह साल बाद भी गुलामी की जंजीरों में कैद हैं,वैसे ही महामना गौतम बुद्ध से लेकर बाबासाहेब तक हजारों हजार साल से समता और न्याय की लड़ाई,मनुष्य और प्रकृति के अधिकारों की लड़ाई,अश्वेत और अछूतों,बहुजनों और मूलनिवासियों की लड़ाई लड़ने वाले हमारे तमाम पुरखे गुलामी की जंजीरों में कैद हैं।
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There is an image of Kali in the Lalgola palace temple that is unique. Its four hands are bereft of any weapon. The two lower hands are folded in front .
जैसे साहित्य सम्राट बंकिम चंद्र ने मुर्शिदाबाद के लालगोला(अब लालगोला मुक्त जेल) में सन्यासी विद्रोहियों की गुलाम देश के प्रतीक बतौर जिस भारी लोहे की जंजीरों में बंधी कालीमां के मंदिर में रहकर वंदे मातरम की रचना की थी या विवादों के मुताबिक विद्रोहियों के रचे श्लोक को आधार बनाकर आनंदमठ लिखा था और जो वंदेमातरम और भारतमाता दोनों की देह है,आजादी के सात दशक बाद भी वह जंजीरों में कैद हैं।
किसी ने मां काली की इस मूर्ति में कैद हजारों साल से गुलामी जीती भारतमाता की रिहाई के बारे में नहीं सोचा।
दो दो बार सत्ता में आकर वंदे मातरम को अनिवार्य करने वाले,रामंदिर बनाने की सौगंध खाने वाले,बच्चा बच्चा राम के नाम बलिप्रदत्त करने वाले,बाबरी विध्वंस से लेकर गुजरात नरसंहार तक कोहराम मचाते हुए विदेशी पूंजी के हवाले देश करनेवाले और हर कार्यक्रम वंदेमातरम से शुरु करने वाले विधर्मियों के खिलाफ इसी वंदेमातरम का इस्तेमाल करने वाले केसरिया किसी राम,लक्ष्मण या हनुमान ने इस बंदिनी भारतमाता को आजाद करने के बारे में सोचा तक नहीं।
राममंदिर आंदोलन के किसी महामहिम ने इस भारतमाता का कभी दर्शन किया है या नहीं,हम यह भी नहीं जानते।
बहरहाल गुस्से की विरासत हममें घनघोर है।
इस गुस्से से निजात पाने के उपाय भी स्वजनों के खिलाफ गालीगलौज और मारपीट का शार्टकट है।हमारे बहुजनसमाज इस मामले में हजारों साल से उस्ताद हैं।
बंगाल में कहावत है,राजदरबारे हेरे एसे घरे एसे बउ मारे।
इस मुहावरे के आशय है कि राजकाज के बारे में अनजान राजदरबार में पिटते लुटते घर की औरत पर कहर बरपाना ही पुरुषार्थ है।
सारे गुस्से का इजहार निहत्थे औरतों और बच्चों पर।
हालिया बलात्कार संस्कृति और स्त्री विरोधी वीभत्स वैदिकी हिंसा की जड़ में भी वहीं स्त्री योनि पर झंडे फहराने के करतब दोहराने की विरासत है।
कुल मिलाकर हिंदुत्व का सच यही है।
वर्ग वर्ण शासन के खिलाफ लाचार गुलाम बहुसंख्य बहुजन जनगण में गुस्सा भीतर ही भीतर ज्वालामुखी समान है और वे अपने इस गुस्से का इजहार परिवार समाज में सबसे कमजोर और निहत्थे तबके के खिलाफ करते हैं तो सत्ता वर्ग के दमन उत्पीड़न की भाषा फिर वहीं बालत्कार संस्कृत है(संस्कृति नहीं,संस्कृत),देवसंस्कृति की विरासत में मर्त्यलोक के अश्वेत अछूत विरादरी के हिंदुत्व का यही आचरण है।
हमारी लोक भाषा में बहुजन स्त्री पुरुष के नैसर्गिक संवाद को अश्लील माना नहीं जाता और भद्र संसार की अश्लील दुनिया में उत्पीड़ितों की भाषा हमेशा अश्लील लगती है जैसे उत्पीड़ितों की हर आवाज अश्लील देशद्रोह।
सारारा गालियों को लोक त्योहारों,रस्मोरिवाज में तब्दील करके गुलामों के गुस्से को विशुद्ध वैदिकी सब्यता में निष्णात कर दिया गया है।
गुलामों की भाषा अब सिरे से नपुंसक है।
गुलामी का गु्स्सा भी सिरे से नपुंसक है।
मसलन जब कोई मेरी हैसियत और पहचान,जात जनम को निशाना बांधकर ऊंची आवाज में वैदिकी भाषा में भी बोलता है, या बिना बोले अपने आचरण से वही भाषा संप्रेषित करता है तो मेरा मन यकायक नरसिंहावतार बन जाता है,लेकिन वैदिकी संस्कृति में शूद्र वध्य हैं और उन्हें किसी का वध करने का अधिकार नहीं है।
हम हजारों साल से यही मानते हैं कि हम वध्य हैं और हम अपना दुर्गोत्सव जैसा यह वध उत्सव मनाते रहते हैं और अपने इस हिंदुत्व की वजह से विरोध प्रतिरोध की भाषा ही भूल चुके हैं।
जाति की पहचान के साथ वंचना,अन्याय,असमता और उत्पीड़न,कत्लेआम का इतिहास झाढ़ू और गले में मटका गायब होने के बावजूद बंदिनी भारत मां कालीमां की तरह जस का तस है और हिंदुत्व के इस गोरा साम्राज्य मुक्तबाजारी रामराज्य में हम अपना काला रंग और इसके साथ अश्वेत सौंदर्यबोध भी भूल गये हैं।वजूद भूल गये हैं।
गदहा पढ़ लिखकर भी गदहा रहता है और घोडो़ं को पढ़ने लिखने की कोई जरुरत होताइच नहीं क्योंकि वे जनमजात मेधासमृद्ध हैं।
इसलिए तमाम हैसियतों,पदों पर उन्हींका वर्चस्व होना चाहिए क्योंकि घोढ़ों के लिए जनमजात संरक्षण का स्थाई बंदोबस्त है और गदहों को संरक्षण का मतलब है उनकी पीठ पर चीनी के बोरे डालो या नून के बस्ते,मालूम ही नहीं पड़ेगा।
ढोते रहेंगे,ढोते रहेंगे गुलामी का बोझ और कुछ मूर्तियां बाना दी जायेंगी जहां रो धोकर मनोवासना की आस्था में निष्णात हजारों साल से जो वे खपते रहे हैं ,खपते रहेंगे।
अब शिक्षा,चिकित्सा से लेकर बैंकिंग,बिजली और रेलवे के निजीकरण के खिलाफ सिर्फ गिने चुने लोग बोल रहे हैं बाकी अपना अपना गला बढ़ाये,चारा चबाते हुए बाजार का जिंगल गुनगुनाते हुए वध हने के लिए कतारबद्ध हैं इस अनंत वधस्थल पर।
कमफोर्ट जोन के तमाम लोग,क्रयक्षमता धारक तमाम लोग सत्ता जाति सत्ता वर्ग के तमाम लोग निजीकरण उदारीकरण ग्लोबीकरण के झंडेवरदार ही नहीं हैं,उनके मुखर आक्रामक प्रवक्ता हैं।मुक्तबाजार में उनकी चांदी,उनका सोना तो काहे को रोना धोना।
मगर जो मारे जा रहे हैं,जो मारे जाने वाले हैं,हजारो सालों से गुलाम हैं,मूक वधिर और अंधे,हिंदुत्व के नर्क में कीड़े मकोड़े या गंदी नालियों में बहने वाले जात कुजात बेजनमा बेनागरिक बहुजन जनता हैं,वे बाबासाहेब का नाम जापते हुए बाबासाहेब की मूर्ति गौतम बुद्ध की मूर्ति को जंजीरों से बांधते रहेंगे,क्योंकि गुलामी की इन्हीं जंजीरों ही उनकी जान है।गुलाम अगर आजाद होंगे तो गुलामी के हजारों सालों से अब्यस्त गुलाम जी नहीं सकेंगे।इसीलिए हम शामिल हो रहे हैं,होते रहेंगे अपने ही वध महोत्सव में।
गुस्सा फिर भी आता है।
गुलामों के इस गुस्से का क्या कीजिये,वे जीभरकर गरिया कर फिर मौके बमौके वोट वही हत्यारों की सत्ता के हक में ही डालेंगे और हमेशा अपने हक हकूक से बेदखल होते रहेंगे और उनकी औरतो का आखेट वैसे ही होता रहेगा जैसा हाल में ओड़ीशा बोलांगीर में हुआ,जैसे हरियाणा में हुआ,जैसे खैरंजलि में हुआ,जैसे नागौर में हुआ,और हम समरसता का वंदेमातरम गाते रहेंगे जबकि भारतमाता अब भी लालगोला के काली मंदिर में वैसे ही कैद है जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी के राज में थी।
फर्क इतना है कि वंदे मातरम गाने वाले ही अब ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक हैं।
पानी सर के ऊपर है।अब इस गुस्से का भी कुछ करो दोस्तों।
बाबासाहेब फिर पैदा नहीं होंगे।
देवमंडल के देवता फिर फिर अवतार हैं।
लेकिन गौतम बुद्ध फिर पैदा न होंगे।
बूतपरस्ती छोड़ो और इस गुलामी से आजादी के लिए जो भी संभव है ,करो।
An Innocent poor SC girl Snehalata (15 yrs matric passed girl) raped n murdered by bloddy bastards n also they brutally cut all d sensitive parts of Snehalata.
http://palashscape.blogspot.in/2015/06/an-innocent-poor-sc-girl-snehalata-15.html
Fatwa, Vande Mataram, Anandamath, Sanyasi Vidroh ...
o3.indiatimes.com/nandigram/archive/2009/11/09/4985544.aspx
Nov 9, 2009 - Vande Mataram Anand Math Lata Hemant Bankim Original ... Faces of Future Lost In Virtual Reality Palash Biswas ( You may publish the ...
Sickled BHARAT MATA, Vande Mataram, Bankim Chandra ...
o3.indiatimes.com/palashbiswas/archive/2008/11/21/4948888.aspx
Nov 21, 2008 - Was Vande Matram Written By. Bankim at All, Another. Controve
Sickled BHARAT MATA, Vande Mataram, Bankim Chandra ...
https://groups.yahoo.com/neo/groups/agtian_students/.../1375
Jan 15, 2009 - On Fri, 11/21/08, palash biswas <banga_sss2003@. .... We were stunned to see the SICKLE BHARAT MATA temple being so marginalised and ...
১৯৫৩ সালে মনকাডা দুর্গ অবরোধের ' অপরাধে ' গ্রেপ্তারের পর বিচারপতিদের সামনে সওয়াল করে ফিদেল কাস্ত্রো একটি বক্তৃতা করেন । শেষ অংশে বলছেনঃ - " আমি জানি আমার জন্য কারাবাসে অন্য যে কারোর চাইতে কঠোরতম কাপুরুষোচিত হুমকি আর বিদ্বেষ পূর্ণ নিঠুরতা অপেক্ষা করছে । কিন্তু আমি কারাবাসকে ভয় পাই না, যেমন Aaমি ভয় পাই না সেই হীন স্বৈরাচারীর ক্রোধকে, যে আমার সত্তরজন কমরেডের জীবন নিয়ে নিয়েছে । আমাকে আপনারা সাজা দিন , তাতে কিছু যায় আসে না । ইতিহাস আমাকে মুক্ত করবে ।"
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